Sunday 29 April 2018

भगवान खाद्य पदार्थ की तरह एक रस है .....


भगवान खाद्य पदार्थ की तरह एक रस है, उसी को खाओ, उसी को पीओ, उसी से मस्ती से रहो, और उसी में मतवाले हो जाओ| देह छोड़ने का समय आये उससे पूर्व ही उस रस को पीकर तृप्त हो जाओ .....
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आज के युग में भगवान की चर्चा मत करो अन्यथा लोग आपको पागल समझेंगे, पर जीओ उसी को| यह भगवान की चर्चा करने का युग नहीं है, उसको जीने का युग है| मैं आप सब के समक्ष भगवान की चर्चा कर रहा हूँ तो यह मेरा पागलपन और मुर्खता है| चर्चा करने की बजाय तेलधारा की तरह उसका ध्यान करो| एक बर्तन से दुसरे बर्तन में तेल डालते हैं तो धारा कभी खंडित नहीं होती वैसे ही परमात्मा का अखंड ध्यान करो|
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भगवान एक रस है, यह वेद वाक्य है ..... "रसो वै सः| रसं ह्येवायं लब्ध्वा आनन्दी भवति| - तैत्तिरीयोपनिषत् २-७-२||
भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर कहते हैं ....
सः एषः आत्मा रसः, अयं जीवः आत्मानन्दरसं लब्ध्वा एव हि आनन्दी भवति । प्रत्यक्षादिप्रमाणगोचरोऽपि आत्मा ‘नास्ति’ इति न मन्तव्यम् । इन्द्रियाणामपि प्रत्यगात्मभूतम् एतं परमात्मानम् इन्द्रियैः द्र्ष्टुं नैव शक्यते । तर्हि सः परमात्मा ‘अस्ति’ इत्यत्र प्रमाणं किम् ? अस्माकम् अनुभव एव प्रमाणम् । तत् कथम् ? इति चेत् ॥
आत्मा रसस्वरूपः । रसो नाम आनन्दः । आनन्दस्वरूप एव आत्मा । अयम् आनन्दस्वरूपः आत्मैव सर्वस्यापि जीवस्य आनंदित्वे कारणम् । सर्वः प्राणी सर्वथा जीवितुम् इच्छति खलु ? किं कारणम् ? रसस्वरूपस्य ब्रह्मणः एतेषां प्रत्यगात्मत्वात् ॥
'तपस्विनः बाह्यसुखसाधनरहिता अपि अनीहाः निरेषणाः ब्राह्मणाः बाह्यरसलाभादिव सानन्दा दृश्यन्ते विद्वांसः'
इति शाङ्करं भाष्यम् । कथं ते तपस्विनः सानन्दाः सदा ? आनन्दरसस्वरूपस्य ब्रह्मणः तेषां स्वरूपत्वात् ॥
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भगवान की चर्चा करने की बजाय उसको प्रेम करें| आपके सामने यदि मिठाई रखी हो तो बुद्धिमानी उसकी विवेचना करने में है या उसको खाने में? बुद्धिमान उसे खा कर प्रसन्न होगा और विवेचक उसकी विवेचना ही करता रह जाएगा कि इसमें कितनी चीनी है, कितना दूध है, कितना मेवा है, किस विधि से बनाया और इसके क्या हानि लाभ हैं .... आदि आदि| वैसे ही भगवान भी एक रस है| उसे चखो, उसका स्वाद लो, और उसके रस में डूब जाओ| इसी में सार्थकता और आनंद है| उसकी विवेचना मात्र से शायद ही कोई लाभ हो|
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हम कितनी देर तक प्रार्थना करते हैं या ध्यान करते हैं ? अंततः महत्व इसी का है| ध्यान और प्रार्थना के समय मन कहाँ रहता है ? यदि मन चारों दिशाओं में सर्वत्र घूमता रहता है तो ऐसी प्रार्थना किसी काम की नहीं है| हमें ध्यान की गहराई में जाना ही पड़ेगा और हर समय भगवान का स्मरण भी करना ही पड़ेगा| हम छोटी मोटी गपशप में, अखवार पढने में और मनोरंजन में घंटों तक का समय नष्ट कर देते हैं, पर भगवान का नाम पाँच मिनट भी भारी लगने लगता है| चौबीस घंटे का दसवाँ भाग यानि कम से कम लगभग अढाई तीन घंटे तो नित्य हमें भगवान का ध्यान करना ही चाहिए|
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जब हम अग्नि के समक्ष बैठते हैं तो ताप की अनुभूति होती ही है वैसे ही भगवान के समक्ष बैठने से उनका अनुग्रह भी मिलता ही है| भगवान के समक्ष हमारे सारे दोष भस्म हो जाते हैं| ध्यान साधना से सम्पूर्ण परिवर्तन आ सकता है| जब एक बार निश्चय कर लिया कि मुझे भगवान के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए तो भगवान आ ही जाते है .... यह आश्वासन शास्त्रों में भगवान ने स्वयं ही दिया है| जब ह्रदय में अहैतुकी परम प्रेम और निष्ठा होती है तब भगवान मार्गदर्शन भी स्वयं ही करते हैं| पात्रता होने पर सद्गुरु का आविर्भाव भी स्वतः ही होता है| प्रेम हो तो आगे का सारा ज्ञान स्वतः ही प्राप्त हो जाता है और आगे के सारे द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं| इस सृष्टि में निःशुल्क कुछ भी नहीं है| हर चीज की कीमत चुकानी पडती है| परमप्रेम ही वह कीमत यानि शुल्क है|
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आप सब में हृदयस्थ भगवान को नमन ! आप सब की जय हो |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
२८ अप्रेल, २०१८

एक निवेदन :---

एक निवेदन :---

मैंने विगत में कभी भी किसी की शिकायत, निंदा या नकारात्मक आलोचना भूल कर भी की हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ| जिस मार्ग पर मैं चल रहा हूँ, वहाँ किसी भी प्रकार की नकारात्मकता का कोई स्थान नहीं है| एक ओर तो मैं समष्टि की सकारात्मक समग्रता का यानि पूर्णता का ध्यान करता हूँ जहाँ मेरे सिवा कोई अन्य नहीं है, वहीं यदि कोई कमी दिखाई देती है तो वह मेरी स्वयं की ही कमी है, क्योंकि अन्य तो कोई है ही नहीं|

यह सृष्टि प्रकाश और अन्धकार से बनी है, मेरा वर्त्तमान कार्य सिर्फ प्रकाश की ही वृद्धि करना है, उसके लिए स्वयं आलोकमय बनने का अभ्यास कर रहा हूँ|

कोई यदि (मेरे) इस शरीर की बुराई करता है तो वह संभवतः ठीक ही करता होगा क्योंकि यह शरीर (जो मैं नहीं हूँ) हो सकता है इसी योग्य हो| पर कोई आत्मा की बुराई करता है (जो मैं वास्तव में हूँ) तो वह स्वयं की ही बुराई कर रहा है|

हे प्रभु, आपने जहाँ भी मुझे रखा है वहाँ सब कुछ मंगलमय हो, वहाँ कुछ भी अप्रिय न हो|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ अप्रेल २०१८

जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ हम क्या कर सकते हैं यह स्वयं के हृदय से पूछें और अपना सर्वश्रेष्ठ भारत माँ को और परमात्मा को समर्पित करें ....

जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ हम क्या कर सकते हैं यह स्वयं के हृदय से पूछें और अपना सर्वश्रेष्ठ भारत माँ को और परमात्मा को समर्पित करें .....
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चारों ओर चाहे कितना भी गहन अन्धकार हो, अनेक महान आत्माएँ किसी भी तरह के यश और कीर्ति की कामनाओं से दूर दिन-रात एक कर के भारत के सकारात्मक उत्थान में लगी हुई हैं| अनेक सनातन धर्म-प्रचारक पूरे विश्व में सनातन धर्म और आध्यात्म के प्रचार-प्रसार में निःस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं| संघ के हज़ारों अज्ञात प्रचारक शांत भाव से अपने निज जीवन की आहुति देकर माँ भारती की सेवा में राष्ट्र साधना कर रहे हैं| अनेक वास्तविक साधू-संत अपनी साधना से राष्ट्र को एक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं| अनेक पूरी तरह से निष्ठावान व ईमानदार अधिकारी और कर्मचारी अपनी सेवाएँ राष्ट्र को प्रदान कर रहे हैं| सभी बुरे नहीं हैं, कुछ कुछ अच्छे लोग भी हैं जो किसी भी तरह के प्रचार से दूर हैं| ये आशादीप हैं जो तिल तिल जलते हुए सतत अंधकार से संघर्ष कर रहे हैं और देवभूमि, पुण्यभूमि, माँ भारती के गौरव को पुनः विश्व में स्थापित करने में लगे हैं| इन आशा दीपों की जय हो|
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जो दबा हुआ है वह ही अंकुरित और पल्लवित होगा| कौवों की काँव काँव और कुत्तों के भोंकने से हमें विचलित नहीं होना चाहिए| वे अपना धर्म निभा रहे हैं| हमें अपना धर्म निभाना चाहिए|
आप सब परमात्मा के साकार रूप हैं| स्वयं में अव्यक्त परम ब्रह्म को व्यक्त करें| जीवन में इसी क्षण से अपना सर्वश्रेष्ठ करें| भगवान हमारे साथ है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०१८

'नायमात्माबलहीनेनलभ्यः' (बल हीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती) ........

'नायमात्माबलहीनेनलभ्यः' (बल हीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती) ........
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जितेन्द्रिय व्यक्ति ही महावीर होते हैं, वे ही परमात्मा को प्राप्त करते हैं| परमात्मा के प्रति परम प्रेम और गहन अभीप्सा के पश्चात इन्द्रियों पर विजय पाना आध्यात्म की दिशा में अगला क़दम है| बिना इन्द्रियों पर विजय पाए कोई एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकता| इन्द्रियों पर विजय न पाने पर आगे सिर्फ पतन ही पतन है| मैं जो लिख रहा हूँ अपने अनुभव से लिख रहा हूँ| मैं बहुत सारे बहुत ही अच्छे अच्छे और निष्ठावान सज्जन लोगों को जानता हूँ जिनकी आध्यात्मिक प्रगति इसीलिए रुकी हुई है कि वे इन्द्रियों पर नियंत्रण करने में असफल रहे है|
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मैंने जो कुछ भी सीखा है वह अत्यधिक कठिन और कठोरतम परिस्थितियों से निकल कर सीखा है| अतः इस विषय पर मेरा भी निजी अनुभव है| कुछ लोग अपनी असफलता को छिपाने के लिए बहाने बनाते हैं और कहते हैं कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'| पर वे नहीं समझते कि बिना इन्द्रियों पर नियंत्रण पाये मन पर नियन्त्रण असम्भव है| इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण का न होना आध्यात्म मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है| इन्द्रिय सुखों को विष के सामान त्यागना ही होगा| चाहे वह शराब पीने का या नशे का शौक हो, या अच्छे स्वादिष्ट खाने का, या नाटक सिनेमा देखने का, या यौन सुख पाने का| इन सब शौकों के साथ आप एक अच्छे सफल सांसारिक व्यक्ति तो बन सकते हो पर आध्यात्मिक नहीं| जितेन्द्रिय व्यक्ति ही महावीर होते हैं, वे ही भगवान को उपलब्ध होते हैं| यदि आपको महावीर बनना है तो जितेन्द्रिय होना ही होगा|
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इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण एक परम तप है| इससे बड़ा तप दूसरा कोई नहीं है| इसके लिए तपस्या करनी होगी| दो बातों का निरंतर ध्यान रखना होगा .....

(1) सारे कार्य स्वविवेक के प्रकाश में करो, ना कि इन्द्रियों की माँग पर .....
भगवान ने आपको विवेक दिया है उसका प्रयोग करो| इन्द्रियों की माँग मत मानो| इन्द्रियाँ जब जो मांगती हैं वह उन्हें दृढ़ निश्चय पूर्वक मत दो| उन्हें उनकी माँग से वंचित करो| यह सबसे बड़ी तपस्या है| इन्द्रियों का निरोध करना ही होगा|
(2) दृढ़ निश्चय कर के निरंतर प्रयास से मन को परमेश्वर के चिंतन में लगाओ|
विषय-वासनाओं से मन को हटाकर भगवान के ध्यान में लगाओ| जब भी विषय वासनाओं के विचार आयें, अपने इष्ट देवता/देवी से प्रार्थना करें, गायत्री मन्त्र का जाप करें आदि आदि|
सात्विक भोजन लें, कुसंग का त्याग करें, सत्संग करें और सात्विक वातावरण में रहें| निश्चित रूप से आप महावीर बनेंगे|
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श्रुति भगवती कहती है .... 'नायमात्माबलहीनेनलभ्यः'| अर्थात बल हीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती| और यह बल उसी को प्राप्त होता है जो जितेन्द्रिय है और जिसने अपनी इन्द्रियों के साथ साथ मन पर भी नियंत्रण पाया है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०१६
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पुनश्चः :---
हमारे तो परम आदर्श श्री हनुमान जी हैं| वे ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं, परम भक्त हैं, और अतुलित बलशाली हैं| वे हमें शक्ति दें और हमारा मार्गदर्शन करें|
सार की बात यह है कि जब तक बुद्धि को परमात्मा में नहीं लगायेंगे तब तक न तो कामनाएँ समाप्त होंगी और न ही इन्द्रियों और मन पर विजय प्राप्त कर सकेंगे| सबसे महत्वपूर्ण है .... अपनी बुद्धि को परमात्मा को समर्पित कर देना|

"बलात्कार" शब्द को परिभाषित किया जाए .....

"बलात्कार" शब्द को परिभाषित किया जाए .....
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हर तरह का दुराचार तभी रुकेगा जब देश में चरित्रवान नागरिक जन्म लेंगे| इसके लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, और ईश्वर-प्रणिधान की शिक्षा देनी होगी|
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असली विकास आत्मा का विकास है, बाहरी नहीं| बाहरी भी हो पर साथ साथ आत्मा का भी हो| आत्मा का विकास होगा तो बाहरी विकास निश्चित है| संतान अच्छी और चरित्रवान हो इसके लिए भारत में सौलह संस्कार भी होते थे, जिन्हें हमने अपनी धर्म-निरपेक्षता के चक्कर में भुला दिया है|
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बाहरी उपक्रम कितने भी करो, कितनी भी अच्छी सड़कें और मकान बनाओ, या कितने भी पुरुषों को फांसी पर लटकाओ, उससे देश में लोग चरित्रवान नहीं बनेंगे| बच्चों को बाल्यकाल से ही ध्यान करना और परमात्मा से प्रेम करना सिखाना होगा, तभी वे चरित्रवान बनेंगे|
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आप नशा कर के, अश्लीलता का चिंतन कर के, और अभक्ष्य भक्षण कर के संतान पैदा करोगे तो वे बलात्कारी, घूसखोर और नर-पिशाच ही होंगे| समस्या की जड़ पर प्रहार करो, न कि उसके फलों पर| सिर्फ सजा से बलात्कार और दुराचार नहीं रुकने वाले, इस पर चिंतन करो कि देश में सज्जन पुरुष कैसे पैदा हों|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ अप्रेल २०१८

ग्रह-नक्षत्रों के जाल से कैसे बच सकते हैं ? .....

ग्रह-नक्षत्रों के जाल से कैसे बच सकते हैं ? .....
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यह कर्मफलों का सिद्धांत और ग्रहों के संयोग का चक्कर बड़ा विचित्र है| प्रकृति के नियम भी बड़े जटिल हैं जो आसानी से समझ में नहीं आते| कई बार जीवन में मैनें देखा है कि जाने-अनजाने में कई मनुष्य बड़ी बड़ी भूलें और बड़े बड़े अपराध कर देते हैं, पर वे किसी की दृष्टि में नहीं आते, और वे दोषी होकर भी बच जाते हैं, उनका कुछ नहीं बिगड़ता| ऐसा संभवतः उसके ग्रह-नक्षत्रों की अनुकूलता के कारण होता है|
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कई बार व्यक्ति कोई व्यक्ति अनजाने में ही कोई छोटी-मोटी भूल कर बैठता है पर बड़े गंभीर मामलों में फँस जाता है जिस के बहुत बुरे परिणाम उसे भुगतने पड़ते हैं| कई बार किसी सरकारी संगठन में बड़े अधिकारी अपनी कमी या अपनी भूल छिपाने के लिए किसी कनिष्ठ कर्मचारी पर सारा दोष डाल कर उसे ऐसा फँसा देते हैं कि निरपराध होते हुए भी उसे सजा भुगतनी पड़ती है| कई बार पुलिस वाले भी मार मार कर निर्दोष को दोषी बना देते हैं| कई बार चलते चलते बिना किसी गलती के हम दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं| कई बार हम अचानक बीमार पड़ जाते हैं| लगता है यह सब भी ग्रह-नक्षत्रों की प्रतिकूलता के कारण होता है|
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इन सब परिस्थितियों से कैसे बच सकते हैं? मेरे विचार से कोई उपाय नहीं है| सिर्फ भगवान ही हमारी रक्षा कर सकते हैं| निरंतर शिव शिव या अपने अपने इष्टदेव का नाम जपते रहें| भगवान का निरंतर स्मरण निश्चित ही हमारी रक्षा करेगा|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ अप्रेल २०१८

(संशोधित व पुनर्प्रस्तुत). खेचरी मुद्रा .....

(संशोधित व पुनर्प्रस्तुत). खेचरी मुद्रा .....
(यह एक परिचयात्मक लेख ही है| पूरी विधि किसी अधिकृत योग-गुरु से ही सीखें| मैं यह विधि सिखाने के लिए अधिकृत नहीं हूँ| जो क्रियायोग की साधना करते हैं, उनके लिए यह विधि बहुत अधिक सहायक है| सन्यासियों के कुछ अखाड़ों में इसका अभ्यास अनिवार्य है|)
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खेचरी मुद्रा .... यह सदा एक गोपनीय विषय रहा है जिसकी चर्चा सिर्फ निष्ठावान एवम् गंभीर रूप से समर्पित साधकों में ही की जाती रही है| पर रूचि जागृत करने हेतु इसकी सार्वजनिक चर्चा भी आवश्यक है| ध्यानस्थ होकर योगी महात्मागण अति दीर्घ काल तक बिना कुछ खाए-पीये कैसे जीवित रहते हैं? इसका रहस्य है ....'खेचरी मुद्रा'|
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ध्यान साधना में तीब्र गति लाने के लिए भी खेचरी मुद्रा बहुत महत्वपूर्ण है| 'खेचरी' का अर्थ है ..... ख = आकाश, चर = विचरण| अर्थात आकाश तत्व यानि ज्योतिर्मय ब्रह्म में विचरण| जो बह्म में विचरण करता है वही साधक खेचरी सिद्ध है| परमात्मा के प्रति परम प्रेम और शरणागति हो तो साधक परमात्मा को स्वतः उपलब्ध हो जाता है पर प्रगाढ़ ध्यानावस्था में देखा गया है कि साधक की जीभ स्वतः उलट जाती है और खेचरी व शाम्भवी मुद्रा अनायास ही लग जाती है|
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वेदों में 'खेचरी शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है| वैदिक ऋषियों ने इस प्रक्रिया का नाम दिया -- 'विश्वमित्'| "दत्तात्रेय संहिता" और "शिव संहिता" में खेचरी मुद्रा का विस्तृत वर्णन मिलता है|
शिव संहिता में खेचरी की महिमा इस प्रकार है .....
"करोति रसनां योगी प्रविष्टाम् विपरीतगाम् | लम्बिकोरर्ध्वेषु गर्तेषु धृत्वा ध्यानं भयापहम् ||"
एक योगी अपनी जिव्हा को विपरीतगामी करता है, अर्थात जीभ को तालुका में बैठाकर ध्यान करने बैठता है, उसके हर प्रकार के कर्म बंधनों का भय दूर हो जाता है|
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जब योगी को खेचरी मुद्रा सिद्ध हो जाती है तब उसकी गहन ध्यानावस्था में सहस्त्रार से एक रस का क्षरण होने लगता है| सहस्त्रार से टपकते उस रस को जिव्हा के अग्र भाग से पान करने से योगी दीर्घ काल तक समाधी में रह सकता है, उस काल में उसे किसी आहार की आवश्यकता नहीं पड़ती, स्वास्थ्य अच्छा रहता है और अतीन्द्रीय ज्ञान प्राप्त होने लगता है|
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आध्यात्मिक रूप से खेचरी सिद्ध वही है जो आकाश अर्थात ज्योतिर्मय ब्रह्म में विचरण करता है| साधना की आरंभिक अवस्था में साधक प्रणव ध्वनी का श्रवण और ब्रह्मज्योति का आभास तो पा लेता है पर वह अस्थायी होता है| उसमें स्थिति के लिए दीर्घ अभ्यास, भक्ति और समर्पण की आवश्यकता होती है|
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योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय ध्यान करते समय खेचरी मुद्रा पर बल देते थे| जो इसे नहीं कर सकते थे उन्हें भी वे ध्यान करते समय जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालू से सटा कर बिना तनाव के जितना पीछे ले जा सकते हैं उतना पीछे ले जा कर रखने पर बल देते थे| वे खेचरी मुद्रा के लिए कुछ योगियों के सम्प्रदायों में प्रचलित छेदन, दोहन आदि पद्धतियों के सम्पूर्ण विरुद्ध थे| वे एक दूसरी ही पद्धति पर जोर देते थे जिसे 'तालब्य क्रिया' कहते हैं| इसमें मुंह बंद कर जीभ को ऊपर के दांतों व तालू से सटाते हुए जितना पीछे ले जा सकते हैं उतना पीछे ले जाते हैं| फिर मुंह खोलकर झटके के साथ जीभ को जितना बाहर फेंक सकते हैं उतना फेंक कर बाहर ही उसको जितना लंबा कर सकते हैं उतना करते हैं| इस क्रिया को नियमित रूप से दिन में कई बार करने से कुछ महीनों में जिह्वा स्वतः लम्बी होने लगती है और गुरुकृपा से खेचरी मुद्रा स्वतः सिद्ध हो जाती है| योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी जी मजाक में इसे ठोकर क्रिया भी कहते थे| तालब्य क्रिया एक साधना है और खेचरी सिद्ध होना गुरु का प्रसाद है|
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हमारे महान पूर्वज स्थूल भौतिक सूर्य की नहीं बल्कि स्थूल सूर्य की ओट में जो सूक्ष्म भर्गःज्योति: है उसकी उपासना करते थे| उसी ज्योति के दर्शन ध्यान में कूटस्थ (आज्ञाचक्र और सहस्रार के मध्य) में ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में, और साथ साथ श्रवण यानि अनाहत नाद (प्रणव) के रूप में सर्वदा होते हैं|
ध्यान साधना में सफलता के लिए हमें इन का होना आवश्यक है:-----
(1) भक्ति यानि परम प्रेम|
(2) परमात्मा को उपलब्ध होने की अभीप्सा|
(3) दुष्वृत्तियों का त्याग|
(4) शरणागति और समर्पण|
(5) आसन, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान|
(6) दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन|
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खेचरी मुद्रा की साधना की एक और वैदिक विधि के बारे में पढ़ा है पर मुझे उसका अभी तक ज्ञान नहीं है| सिद्ध गुरु से दीक्षा लेकर, पद्मासन में बैठ कर ऋग्वेद के एक विशिष्ट मन्त्र का उच्चारण सटीक छंद के अनुसार करना पड़ता है| उस मन्त्र में वर्ण-विन्यास कुछ ऐसा होता है कि उसके सही उच्चारण से जो कम्पन होता है उस उच्चारण और कम्पन के नियमित अभ्यास से खेचरी मुद्रा स्वतः सिद्ध हो जाती है|
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भगवान दत्तात्रेय के अनुसार साधक यदि शिवनेत्र होकर यानि दोनों आँखों की पुतलियों को नासिका मूल (भ्रूमध्य) के समीप लाकर, भ्रूमध्य में प्रणव यानि ॐ से लिपटी दिव्य ज्योतिर्मय सर्वव्यापी आत्मा का चिंतन करता है, तो उसके ध्यान में विद्युत् की आभा के समान देदीप्यमान ब्रह्मज्योति प्रकट होती है| अगर ब्रह्मज्योति को ही प्रत्यक्ष कर लिया तो फिर साधना के लिए और क्या बाकी बचा रह जाता है|
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जो योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की गुरु परम्परा में क्रियायोग साधना में दीक्षित हैं उनके लिए खेचरी मुद्रा का अभ्यास अनिवार्य है| क्रिया योग की साधना खेचरी मुद्रा में होती है| जो खेचरी मुद्रा नहीं कर सकते उनको जीभ ऊपर को ओर मोड़कर तालू से सटाकर रखनी पडती है| खेचरी मुद्रा में क्रिया योग साधना अत्यंत सूक्ष्म हो जाती है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ अप्रेल २०१३

विवाह की संस्था धीरे धीरे समाप्त हो रही है .....

विवाह की संस्था धीरे धीरे समाप्त हो रही है| अगले कुछ वर्षों में यह एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बनने वाली है| कानून के जानकार कृपया बताएँ कि ....

(१) कोई महिला किसी निर्दोष व्यक्ति पर छेड़छाड़ का, परेशान करने या बलात्कार का झूठा आरोप लगाए तो झूठी सिद्ध होने पर उस महिला के लिए क्या किसी सजा का प्रावधान है ? क्या पुलिस या कोई जाँच एजेंसी इस तरह के मामलों की जाँच करती है, या आरोपित व्यक्ति को ही स्वयं को निर्दोष सिद्ध करना पड़ता है?

(२) कई लोग अपने विपक्षी को फँसाने, परेशान व बदनाम करने के लिए अपनी नाबालिग/बालिग़ पुत्री या अपनी पत्नि या किसी सम्बन्धी महिला द्वारा झूठे आरोप लगवा तो देते ही हैं, साथ साथ समाचार पत्रों में समाचार भी दे देते हैं| क्या ऐसे फर्जी केस दायर करने वालों के लिए भी कोई सजा होती है?

(३) दहेज उत्पीड़न के झूठे केस करने वाली महिलाओं के लिए भी क्या कोई सजा है?

(४) वैवाहिक बलात्कार मे पत्नी के गलत होने पर क्या कोई सजा है? वैवाहिक बलात्कार हुआ या नहीं, और किसने किया ? इसकी जाँच कौन सा न्यायालय करेगा?

विवाह की संस्था धीरे धीरे समाप्त हो रही है| हर वर्ष हजारों पुरुष आत्महत्या कर के मर रहे हैं| यह एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बनने वाली है|

कुछ पाने की कामना माया का सबसे बड़ा अस्त्र है .....

कुछ पाने की कामना माया का सबसे बड़ा अस्त्र है .....
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आध्यात्म में कुछ पाने की कामना माया का सबसे बड़ा अस्त्र है| इससे मुक्त हुए बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते| जब तक कुछ पाने की कामना है, हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होता| कुछ पाने की कामना एक मृगतृष्णा है, किसी को कुछ नहीं मिलता| सब कुछ परमात्मा का है और सब कुछ "वह" ही है| हमें स्वयं को ही समर्पित होना पड़ता है| जो परमात्मा को समर्पित हो गया उसको सब कुछ मिल गया| बाकि अन्य सब को निराशा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलता|
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सब कुछ तो मिला हुआ ही है| पाने योग्य कुछ है तो "वह" ही है जिसे पाने के बाद कुछ भी प्राप्य नहीं है| "वह" मिलता नहीं है, उसमें स्वयं को समर्पित होना पड़ता है| कुछ करने से "वह" नहीं मिलता, कुछ होना पड़ता है| "वह" होने पर "वह" स्वयं ही सब कुछ है| परमात्मा एक प्रवाह है, उसे स्वयं के माध्यम से प्रवाहित होने दो| कोई अवरोध मत खड़ा करो| फिर पाएँगे कि वह प्रवाह हम स्वयं हैं| बातों से कुछ नहीं होगा, यह एक यज्ञ है जिस में स्वयं के अहंकार की आहुति देनी पड़ती है| हमें चाहिए बस सिर्फ एक प्रबल सतत अभीप्सा और परम प्रेम, अन्य कुछ भी नहीं| सारा मार्गदर्शन स्वतः ही स्वयं परमात्मा करते हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ अप्रेल २०१८

मेरी दृष्टि में पाप और पुण्य क्या हैं ? .....

मेरी दृष्टि में पाप और पुण्य क्या हैं ? .....
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हमारी आत्मा, परमात्मा का अंश होने के कारण परमात्मा के साथ एक है| पुण्य और पाप पर हमारे शास्त्रों में बहुत अधिक लिखा गया है| हम अपनी सुविधानुसार कुछ भी समझ लेते हैं| पर पाप और पूण्य को जो मैं समझ पाया हूँ, उसे व्यक्त कर रहा हूँ| मेरी मान्यता, हो सकता है अनेक पाठकों को सही नहीं लगे| पर मैं अपने निष्कर्षों पर अडिग हूँ| मुझे सुधारने का प्रयास न कीजिएगा| मैं पहिले से ही सुधरा हुआ हूँ|
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(१) पुण्य क्या है ? ..... जो कर्म मुझे आत्म-तत्व का बोध करायें, वे मेरे लिए पुण्य हैं|
(२) पाप क्या है ? ..... जो कर्म मुझे आत्म-तत्व को विस्मृत करायें, वे मेरे लिए पाप हैं|
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किसी भी घटना विशेष के कारण हमारी क्या प्रतिक्रिया होती है, वह बता देती है कि हम कितने पानी में हैं| अतः हर समय सतर्क रहें| यह एक विवाद का विषय हो सकता है, अतः इस पर और अधिक नहीं लिखूँगा| साधना करते करते कर्ता भाव से मुक्त हो जाएँ, फिर यह विषय और स्पष्ट रूप से समझ में आ जाएगा| कोई ऐसा कार्य न करें जिस से बंधन हों|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०१८

मैं जातिगत एकता के पक्ष में नहीं हूँ .....

जो लोग जातिगत एकता की बातें करते हैं, मैं आध्यात्मिक रूप से उनका समर्थन नहीं करता हूँ| पर सामाजिक रूप से कभी कभी जातिगत एकता की बातें करना मेरी विवशता यानि मज़बूरी है क्योंकि भारत की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में अनारक्षित जातियों के विरुद्ध राजनीतिक अन्याय बहुत अधिक है|
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पर सत्य तो यह है कि चाहे किसी भी जाति की बात हो, जातिगत एकता की बात ही वेदविरुद्ध है| जो वेदविरुद्ध है वह हमें कभी भी स्वीकार नहीं होना चाहिए| श्रुति भगवती ब्रह्म से एकत्व सिखाती है, वहाँ कोई जाति की बात नहीं है| एकस्तथा सर्व भूतान्तरात्मा, अर्थात सब प्राणियों में एक ही आत्मा छिपा हुआ है| प्रत्यगात्मा और ब्रह्म में एकत्व है| जातिगत एकता की बात करने वाले अज्ञान और माया के वशीभूत हैं|
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मध्यकाल के संत दरिया साहिब ने भी कहा है .....
"जाति हमारी ब्रह्म है, माता पिता हैं राम| गृह हमारा शुन्य है, अनहद में विश्राम||"
हमारी जाति "अच्युत" है| अर्थात् जो भगवान की जाति है, वह ही हमारी जाति है| ब्रह्म ही सत्य है और संसार मिथ्या है| अतः ब्रह्म से एकत्व ही सच्चा एकत्व है, इन सांसारिक जातियों से नहीं|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०१८

आत्म-तत्व अर्थात परमात्मा की अनंतता से जुड़कर ही हम महान हैं .....

आत्म-तत्व अर्थात परमात्मा की अनंतता से जुड़कर ही हम महान हैं .....
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'आचरण' क्या है? 'आ' अर्थात अनंत, उसकी ओर अग्रसर जो चरण हों, वे ही हमारा आचरण हैं| आत्मा यानि अनंतता से जुड़कर ही मनुष्य महान बनता है| पानी का एक बुलबुला सागर से दूर होकर अत्यंत असहाय, अकेला और अकिंचन है| उस क्षणभंगुर बुलबुले से छोटा और कौन हो सकता है? पर वही बुलबुला जब सागर में मिल जाता है तो एक विकराल, विराट व प्रचंड रूप या सौम्यतम रूप भी धारण कर लेता है| वैसे ही मनुष्य जितना परमात्मा से समीप है, उतना ही महान है| जितना वह परमात्मा से दूर है, उतना ही छोटा है| सत्य का अनुसंधान सब के लिए संभव नहीं है, पर जो उसके लिए प्राणों की बाज़ी लगा कर सब कुछ परमात्मा को अर्पित कर देते हैं, वे सब बाधाओं को पार करते हुए उस पार प्रभुकृपा से पहुँच ही जाते हैं|
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मेरे लिए तो सुषुम्ना का मार्ग ही स्वर्ग का मार्ग है, और कूटस्थ चैतन्य ही स्वर्ग का द्वार है| यह एक गुरुमुखी ज्ञान है जो सिद्ध सदगुरु और भगवान परमशिव की कृपा से ही समझ में आ सकता है| गुरु प्रदत्त विधि से हमें परमात्मा की अनंतता पर अजपा-जप और प्रणव ध्वनि यानि अनाहत नाद को निरंतर सुनते हुए कूटस्थ में सूक्ष्म भर्गज्योति: का ध्यान करते रहना चाहिए| ध्यान में सफलता के लिए भक्ति और अभीप्सा हो, फिर आसन मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान हो, जो सदगुरु ही प्रदान कर सकते हैं| साथ साथ दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन भी चाहिए|
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बाहर का विश्व हमारा ही प्रतिबिम्ब है| हमारा स्वरुप सुन्दर होगा तो प्रतिबिम्ब भी सुन्दर होगा| शृंगार हम स्वयं का करें, न कि दर्पण का| आत्मा हम स्वयं हैं, और यह संसार एक तरह के दर्पण में दिखाई देने वाला हमारा ही प्रतिबिम्ब है| दर्पण को कितना भी सजा लें, यदि हमारी आत्मा कलुषित है तो प्रतिबिंब भी कलुषित ही होगा | उज्जवल ही करना है तो बिम्ब को करें, फिर उसका प्रतिबिंब यह संसार भी अति सुन्दर होगा|
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तत्व रूप में शिव और विष्णु एक हैं| उनमें भेद हमारी अज्ञानता है| इस समय याद नहीं आ रहा है कि कहाँ पर तो मैनें पढ़ा है .....
"ॐ नमः शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे| शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:||"
भगवान परमशिव ही आध्यात्मिक सूर्य हैं, यह मैं यहाँ अपने निज अनुभव से लिख रहा हूँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०१८

भाजपा और २०१९ के आम चुनाव ......

भाजपा को २०१९ से पूर्व निम्न प्रश्नों का उत्तर तो देना ही होगा. हमें granted या अंधभक्त न समझा जाए....
(१) समान नागरिक संहिता के लिए कितना समय और लगेगा ? देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलने चाहियें, सभी के लिए एक ही क़ानून हो|
(२) धारा ३७० व ३५-ऐ की समाप्ति के लिए कितना समय और लगेगा ? "भाजपा" के पूर्व नाम "भारतीय जनसंघ" की स्थापना ही कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय के लिए डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा हुई थी, जिनको आपने पूरी तरह भुला दिया है| डॉ.मुखर्जी के नाम पर देश में कोई स्मारक या संस्था नहीं है|
(३) राममंदिर के निर्माण के लिए कितना समय और लगेगा ?
(४) रोहिन्गिया घुसपैठियों की बापसी कब होगी ?
(५) सुप्रीम कोर्ट के SC/ST वाले निर्णय में क्या गलत था ? बिना कोई अपराध सिद्ध हुए सिर्फ आरोपों पर किसी को बंदी बनाना क्या न्यायोचित है ?
(६) जम्मू-कश्मीर पर आप की नीति कुछ समझ में नहीं आ रही है. कब तक जवानों के मरने का क्रम चलता रहेगा ?
(७) विष वमन करती समाचार मिडिया पर अंकुश कब लगेगा?
(८) गौ-ह्त्या कब बंद होगी?
(९) जनता ने सुशासन और भ्रष्टाचार मिटाने के वायदे पर स्पष्ट बहुमत दिया था। भ्रष्टाचार को आपने अभयदान क्यों दिया हुआ है?
(१०) कश्मीर से भगाए गए हिन्दुओं को न्याय कब मिलेगा ?
(११) क्या जम्मू के हिन्दू भारतीय नहीं हैं? उनके साथ अब अत्याचार क्यों हो रहे हैं?
(१२) नेपाल, श्रीलंका, म्यानमार, व मालदीव जैसे देश चीन की गोद में क्यों चले गए? क्या आप की पड़ोसियों के प्रति विदेश नीति सफल रही है?
(१३) देश के कई राज्यों में व्याप्त अराजकता की स्थिति कब तक समाप्त होगी ?
(१४) तुष्टिकरण की नीति पर आप क्यों चल पड़े हैं? बसपा, सपा और कोंग्रेस का वोट बैंक आप कभी नहीं तोड़ सकते, फिर उनके वोट बैंक का भद्दा तुष्टिकरण कर अपने स्वयं के मतदाताओं का विश्वास खो रहे हो|
(१५) क्या आप राहुल गांधी की आक्रामकता से डर गए हैं? क्या आपका स्वयं के लोगों से विश्वास उठ गया है?
(१६) स्वयं की पार्टी की घोषित नीतियों से आप दूर क्यों हो गए हो?
(१७) हिन्दू मंदिरों की सरकारी लूट कब बंद होगी ? तथाकथित अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेद कब समाप्त होगा ?
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२०१९ अधिक दूर नहीं है| आप एकसौ करोड़ लोगों द्वारा चुने गए हैं, किसी एक नेता विशेष भीम बाबा से नहीं| आप अपनी जड़ों से कट कर स्वयं को नहीं बचा सकते| आपके कारण तिल तिल कर जल मरने की बजाय लोग कोंग्रेस को वोट देकर एक साथ आत्मह्त्या करना अधिक पसंद करेंगे|

Tuesday 17 April 2018

शिवभाव में स्थिति .... सब से बड़ा पुण्य है .....

अक्षय तृतीया पर किया गया पुण्य अक्षय होता है| सबसे बड़ा पुण्य है ब्रह्म यानि शिवभाव में स्थिति| शिवभाव में स्थिति का नित्य निरंतर अभ्यास सबसे बड़ा पुण्य है|

शिवभाव में कोई कामना जन्म नहीं ले सकती| कामना ही शैतान है| कामना तभी प्रभावी होती है जब हम उसके साथ एकता का अनुभव करते हैं| अगर हमें यह बोध हो जाये कि "यह किसी दूसरे की कामना है जो मेरे दुःख का कारण बनेगी", तब उसे हम कभी भी पूरा नहीं करेंगे|

मैं यह देह नहीं, "मैं सर्वव्यापी अनंत परमशिव हूँ" ....यही सर्वश्रेष्ठ भाव है| इसी की धारणा और मानसिक रूप से प्रणव की ध्वनी सुनते हुए कूटस्थ में इसी का ध्यान करें| अन्य सब परिवर्तनशील है, मैं नहीं|

शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि| ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ अप्रेल २०१८

जिम्मेदारी उन्हीं की है, हमारी नहीं .....

जिम्मेदारी उन्हीं की है, हमारी नहीं .....
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यदि न चाहते हुए भी हम भगवान से दूर हो जाएँ तो क्या करें ?
राग, द्वेष, अहंकार, लोभ और प्रमाद के वशीभूत होकर, न चाहते हुए भी हम भगवान से दूर जा कर किसी गहरी खाई में गिर जाते हैं| ऐसी स्थिति में हमें क्या करना चाहिए?
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यह प्रश्न मेरे मन में अनेक बार आया है| गीता में अर्जुन ने भी यह प्रश्न भगवान से एक बार किया है और भगवान ने उसका उत्तर भी दिया है| पर कोई भी बौद्धिक उत्तर संतुष्ट नहीं करता| एक बालक को कोई शिकायत या समस्या है तो वह अपने माँ-बाप से ही अपनी समस्या का निदान करा सकता है| हम भी इस समस्या का निदान करने में असफल रहे हैं और इसका स्थायी निदान प्रत्यक्ष परमात्मा से ही चाहते हैं, किसी अन्य से नहीं| कोई बालक बिस्तर में मल-मूत्र कर गन्दगी में भर जाता है तो वह स्वयं तो उज्जवल हो नहीं सकता| वैसे ही निज प्रयास कोई काम नहीं आते|
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भगवान को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा| कब तक हम अपना हाथ उनके हाथ में थमाते रहेंगे? कब तक उनसे सहायता माँगते रहेंगे? समस्या का स्थायी निदान हमें इसी समय चाहिए| बाकि उनकी मर्जी, वे जैसा चाहे वैसा करें| जिम्मेदारी उन्हीं की है, हमारी नहीं| हमने तो कहा नहीं था कि हमारे लिए ये समस्याएँ उत्पन्न करो| जब तुम ने कर ही दी हैं तो उनसे मुक्त करने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी ही है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१७ अप्रेल २०१८

"चंद्रशेखर" शब्द का आध्यात्मिक अर्थ क्या हो सकता है ? ....

"चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः" |
"चंद्रशेखर" शब्द का आध्यात्मिक अर्थ क्या हो सकता है ? ....
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भगवान शिव का एक नाम चंद्रशेखर भी है| उनके माथे पर चन्द्रमा सुशोभित है इसलिए वे भगवान चंद्रशेखर है| सप्तकल्पांतजीवी ऋषि मार्कंडेय कृत चंद्रशेखर स्तोत्र में एक पंक्ति है .... "चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः" ..... यह पंक्ति इस स्तोत्र का प्राण है| इस पर विचार करते करते जो अर्थ मेरी अति अल्प और तुच्छ सीमित बुद्धि से समझ में आया उसे मैं यहाँ व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ| वैसे तो यह पूरा स्तोत्र ही बहुत गहन अर्थों वाला है, पर यहाँ सिर्फ इसी एक ही पंक्ति पर विस्तार से विचार करेंगे|
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शिव का अर्थ है "शुभ"| मनुष्य अपनी उच्चतम चेतना में परमात्मा के जिस सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और परम कल्याणमय साकार विग्रह की कोई कल्पना कर सकता है, वह भगवान शिव का विग्रह है|
वे दिगंबर हैं, अर्थात दशों दिशाएँ ही उनके वस्त्र हैं, वे सर्वव्यापी हैं|
उनके गले में सर्प, कुण्डलिनी महाशक्ति का प्रतीक है| योगियों के लिए महाशक्ति कुण्डलिनी और परमशिव का मिलन ही योग है| वे योगियों के आराध्य हैं| कुण्डलिनी महाशक्ति जागृत होकर सभी चक्रों और सहस्त्रार को भेदती हुई जब अनंत ब्रह्म से एकाकार हो जाती है वह ही परमशिव से मिलन है| तब कोई भेद नहीं रहता| वह ब्राह्मी चेतना है जो उच्चतम परम चैतन्य है|
देह पर उन्होंने भस्म रमा रखी है जो परम वैराग्य का प्रतीक है| कामदेव को भस्म कर उसकी राख उन्होंने स्वयं की देह पर रमा ली थी| वे सब कामनाओं से परे हैं|
सारी सृष्टि का हलाहल उन्होंने स्वयं ग्रहण कर लिया है, किन्तु वे स्वयं अमृतमय हैं अतः वह हलाहल गले से नीचे ही नहीं उतर रहा, इस लिए वे नीलकंठ हैं|
उनके हाथों में त्रिशूल है जो त्रिगुणात्मक शक्तियों का प्रतीक है| वे तीनों गुणों के स्वामी हैं|
बैल, धर्म का प्रतीक है जिस पर वे सवारी करते हैं| वे जहाँ भी जाते हैं, धर्म वहीं स्थापित हो जाता है|
उनके सिर से गंगा जी बहती है, जो ज्ञान की प्रतीक है| वे निरंतर ज्ञान को प्रवाहित कर रहे हैं|
जिनका सृष्टि में कोई नहीं है, सब जिन से दूर रहना चाहते हैं, उन भूत-प्रेतों को भी उन्होंने अपने गणों में सम्मिलित कर रखा है, अर्थात वे सब के आराध्य हैं|
वे डमरू बजाते हैं जो अनाहत नाद का प्रतीक है, जिस से सभी स्वरों और सृष्टि की रचना हुई है|
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उन के माथे पर चन्द्रमा है जो कूटस्थ ज्योति का प्रतीक है| योगी लोग कूटस्थ ज्योति का ध्यान करते हैं जो आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में ध्यान के समय निरंतर दिखाई देती है| ध्यान में उस कूटस्थ ज्योति का दर्शन करते हुए और साथ साथ कूटस्थ नाद-ब्रह्म को निरंतर सुनते सुनते जिस चेतना में हमारी स्थिति हो जाती है वह "कूटस्थ चैतन्य" कहलाती है| वह ज्योति पहिले एक स्वर्णिम आभा के रूप में दिखाई देती है, फिर उसमें एक नीला वर्ण दिखाई देता है, जिसके मध्य में एक विराट सफ़ेद प्रकाश होता है| धीरे धीरे उस श्वेत प्रकाश के मध्य में एक अत्यंत चमकीले पञ्च कोणीय श्वेत नक्षत्र के दर्शन होते हैं जो पञ्चमुखी महादेव का प्रतीक है| योगिगण उस पञ्चमुखी महादेव का ही ध्यान करते हैं|
उस कूटस्थ चैतन्य में स्थिति ही भगवान चंद्रशेखर में आश्रय लेना है| जिसने भगवान चंद्रशेखर में आश्रय ले लिया, यमराज उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि वह भक्त तो पहिले ही जीवनमुक्त हो चुका होता है| यही "चंद्रशेखर" शब्द का आध्यात्मिक अर्थ है जो मुझे मेरी अति अल्प और सीमित तुच्छ बुद्धि से समझ में आया है| मेरे समझने में कोई भूल हुई हो तो मैं आप सब मनीषियों से क्षमा प्रार्थना करता हूँ|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अप्रेल २०१८
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सप्त कल्पान्तजीवी ऋषि मार्कंडेय अमर हैं और वे नर्मदा नदी के उद्गम पर सदा विराजते हैं| वे नर्मदा के द्वारपाल हैं जिनकी कृपा और आशीर्वाद से ही नर्मदा परिक्रमा सफल होती है|

क्या सत्य की सदा विजय होती है ?

कहते हैं कि सत्य की सदा विजय होती है| यह बात सत्ययुग के लिए ही सही होगी| इस युग में तो असत्य ही सत्य पर हावी है और विजय असत्य की ही हो रही है|
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"सत्यमेव जयते" (संस्कृत विस्तृत रूप : सत्यं एव जयते) भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है| इसका अर्थ है : सत्य ही जीतता है / सत्य की ही जीत होती है| यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में अंकित है| यह प्रतीक वाराणसी के निकट सारनाथ में २५० ई.पू. में सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए सिंह स्तम्भ के शिखर से लिया गया है, लेकिन उसमें यह आदर्श वाक्य नहीं है| "सत्यमेव जयते" मूलतः मुण्डक-उपनिषद का सर्वज्ञात मंत्र है| पूर्ण मंत्र इस प्रकार है:---
"सत्यमेव जयते नानृतम सत्येन पंथा विततो देवयानः|
येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो यत्र तत् सत्यस्य परमम् निधानम् ||
अर्थात अंततः सत्य की ही जय होती है न कि असत्य की। यही वह मार्ग है जिससे होकर आप्तकाम (जिनकी कामनाएं पूर्ण हो चुकी हों) मानव जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं|
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'सत्यमेव जयते' को राष्ट्रपटल पर लाने और उसका प्रचार करने में मदन मोहन मालवीय (विशेषतः कांग्रेस के सभापति के रूप में उनके द्वितीय कार्यकाल (१९१८) में) की महत्वपूर्ण भूमिका रही|
चेक गणराज्य और इसके पूर्ववर्ती चेकोस्लोवाकिया का आदर्श वाक्य "प्रावदा वीत्येज़ी" ("सत्य जीतता है") का भी समान अर्थ है|

कहते हैं मनुष्य को घमंड नहीं करना चाहिए .....

कहते हैं मनुष्य को घमंड नहीं करना चाहिए .....
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बड़े बड़े सुलतान जिनके नाम से दुनिया काँपती थीं, उनकी सल्तनतें मिटटी में मिल गईं और उनके वारिसों को अपना सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ा| बात कर रहा हूँ सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) यानि खिलाफत-ए-उस्मानिया की जिसकी स्थापना उस्मान गाज़ी ने २७ जुलाई १२९९ को की थी और जिसका पतन नवम्बर १९२२ में हो गया| सत्ता में आखिरी सुलतान खलीफा-ए-इस्लाम महमद-VI को अपने महल के पिछवाड़े से निकल कर इटली भागना पड़ा|
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महल से भागते हुए सुलतान की फोटो इस लेख में दिए लिंक को दबाने से आ जायेगी| कमेन्ट बॉक्स में सल्तनत के नक़्शे की लिंक भी दी हुई है, जो दिखाता है कि यह कितनी बड़ी सल्तनत थी| खलीफा-ए-इस्लाम महमद-VI के उत्तराधिकारी अब्दुल मजीद (१९२२-२४) को तो अपने वतन की हवा भी नसीब नहीं हुई| वह १९२४ में फ़्रांस में निर्वासित जीवन जीते हुए ही मर गया|
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भारत में महात्मा गाँधी ने खलीफा-ए-इस्लाम को बापस गद्दी पर बैठाने के लिए खिलाफत आन्दोलन चलाया पर मुस्तफा कमाल पाशा ने महात्मा गाँधी को कोई भाव नहीं दिया| गाँधी के खिलाफत आन्दोलन ने भारत का बहुत अधिक अहित किया| केरल में लाखों हिन्दुओं की हत्याएँ हुईं और पकिस्तान की नींव पडी| पकिस्तान के राष्ट्रपिता वास्तव में महात्मा गाँधी ही घोषित होने चाहिए थे| पाकिस्तान बनाने में बहुत बड़ा योगदान तो महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरु का था, मोहम्मद अली जिन्ना से भी अधिक|
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खिलाफत-ए-उस्मानिया से पहले खिलाफत-ए अब्बासिया थी जिसका पतन भी अत्यधिक हिंसा से हुआ| १२५८ में खिलाफत-ए-अब्बासिया का तातारियों के हाथों कत्ल-ए-आम के साथ खातमा हुआ| अंतिम अब्बासी खलीफा-ए-ईस्लाम मुस्तअसिम बिल्लाह को जानवर की खाल में लपेट कर घोडे दौड़ा कर कुचल दिया गया था|
"है अयां फितना ए तातार के अफसाने से ! पासबां मिल गए काबे को सनम खाने से" !!
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कहते हैं बाद में यही तातारी कौम मुसलमान हो गई और तुर्क नस्ल के नाम से मशहूर हुई| आगे का इतिहास बहुत लंबा है जो इतिहास के विद्यार्थियों के लिए है| अभी तो इतना ही|
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सभी को साभार धन्यवाद और नमन| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अप्रेल २०१८

Mehmed VI, the last sultan of the Ottoman Empire and caliph of Islam, leaves from a backdoor of the Dolmabahçe Palace in Istanbul, November 1922.
https://images.google.co.in/imgres…

जम्मू-कश्मीर पर भारत सरकार की नीति कुछ समझ में नहीं आ रही है ....


जम्मू-कश्मीर पर भारत सरकार की नीति कुछ समझ में नहीं आ रही है|
ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में अध्यादेश क्या आत्मघाती नहीं होगा? फैसले में क्या गलत है?
धारा ३७० व ३५-ऐ की समाप्ति, समान नागरिक संहिता, राम मंदिर का निर्माण और रोहिंगिया बापसी का काम, क्या अगले जन्म में होगा?
कुछ समझ में नहीं आ रहा है|
क्या तिल तिल कर मरने की बजाय लोग एक साथ कोंग्रेस को वोट देकर आत्म-ह्त्या करना पसंद नहीं करेंगे?
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कहीं श्री नरेन्द्र मोदी, ..... राहुल गांधी और कांग्रेस की आक्रामकता से डर तो नहीं गए हैं? कहीं उनका विश्वास अपने स्वयं के लोगों से ही डगमगा तो नहीं गया है? क्या केंद्र में भाजपा की सरकार २०१९ तक टिक पायेगी? बीच में ही क्या पता अविश्वास प्रस्ताव और गुप्त मतदान द्वारा गिरा दी जाए| हो सकता है भाजपा के सांसदों को कोंग्रेस ने खरीद ही लिया हो| आज के जमाने में किसी का भरोसा नहीं है| क्या पता मोदी जी को इस बात का पता चल गया हो और वे अन्दर ही अन्दर से डर गए हों|
सोनिया गाँधी अपना पूरा धन २०१९ के चुनावों में राहुल को प्रधान मंत्री बनाने में लगा देगी| राहुल गाँधी का चीनी राजदूत से मिलना क्या सन्देश देता है? क्या पता कोंग्रेस ने अपना धन चीन में ही रखवा दिया हो|
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भारत की समाचार मीडिया राहुल गाँधी के पक्ष में है| सारे वरिष्ठ सरकारी अधिकारी कोंग्रेस के समय से ही नियुक्त और कोंग्रेस के वफादार हैं| भाजपा के स्वयं के ही बहुत सारे भ्रष्ट लोग मोदी से नाराज हैं| अकेला मोदी क्या कर लेगा ? मायावती का और कोंग्रेस का वोट बैंक कभी भी नरेन्द्र मोदी को वोट नहीं देगा| मोदी जी उनका तुष्टिकरण कर के अपने परम्परागत वोट बैंक को नाराज कर के दूर खिसका रहे हैं| अतः भारत का राजनीतिक भविष्य मुझे तो अंधकारमय लग रहा है| भगवान करे ऐसा न हो|

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मोदी, लोकतंत्र, वोटबैंक, के संवैधानिक मकड़ी के जाले में फँस चुके हैं। इतिहास में लोग पढ़ेंगे rise and fall of Narendra Modi, who became hero to zero., Just within five years. ज्यादा संभावना तो यही दिखाई दे रही है। उनके सलाहकारों का समूह उन्हें घेर कर SC/ST/OBC/अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के भँवर में ले जा रहे हैं।
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जनता ने सुशासन और भ्रष्टाचार मिटाने के वायदे पर स्पष्ट बहुमत दिया था। राजस्थान में जिस तरह से भ्रष्टाचार को मोदी सरकार ने अभयदान दिया है इससे राजस्थान की जनता का भाजपा से मोह भंग हो चुका है।
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(General Knowledge) क्या भाजपा के किसी भी नेता को पता है कि .....
(१) डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी कौन थे जिन्होनें कश्मीर में भारत के विलय के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे? क्या देश में कहीं उनके नाम पर कोई स्मारक या संस्था है? क्या उनकी ह्त्या हुई थी? देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी का उनके साथ क्या सम्बन्ध था?
(२) वर्त्तमान भाजपा किस पूर्व राजनीतिक दल का एक रूपान्तरण मात्र है? क्या उस दल का नाम भारतीय जनसंघ था? उसकी स्थापना किसने की थी?
(३) पं.दीनदयाल उपाध्याय कौन थे ?
उपरोक्त प्रश्न पूछने के लिए इस लिए बाध्य हुआ हूँ क्योंकि मैनें कुछ भाजपा नेताओं को आपस में एक दूसरे से पूछते हुए सुना है कि यह दीनदयाल उपाध्याय कौन हैं? आजकल भाजपा के सभी नेता बाबा साहब अम्बेडकर के नाम की माला फेरते हैं, पहले बापू के नाम की फेरते थे| भाजपा के नए नेताओं को तो पता ही नहीं है कि डॉ.श्यामा प्रसाद मुख़र्जी कौन थे|
क्या जम्मू के हिन्दू भारतीय नहीं हैं? उनके साथ अब अत्याचार क्यों हो रहे हैं?

सिद्धि स्वयं के प्रयासों से नहीं, भगवत कृपा से मिलती है .....

मुझे वर्षों पहिले साक्षात शिवस्वरूप एक सिद्ध संत ने कहा था कि एक एकांत कमरे की व्यवस्था कर लो और सब तरह के प्रपंचों से दूर रहते हुए निरंतर 'शिव" का मानसिक जप और ध्यान करते रहो| उन्होंने यह भी कहा कि इधर-उधर की भागदौड़ करने की अब कोई आवश्यकता नहीं है| शिव का ध्यान करते करते तुम्हारी चेतना शिवमय हो जाएगी, और तुम शीघ्र ही जीवन-मुक्त हो जाओगे|
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पर मैं अपनी मानसिक कमजोरियों के कारण दुनियाँ के प्रपंचों से तो कभी दूर नहीं हो पाया| पर भगवान भी कृपा करते हैं जिस से अब तो दुनियाँ ही अपने प्रपंचों से दूर होने को मुझे बाध्य कर रही है| भगवान ने भी परम कृपा कर के अंतर्दृष्टि के दोषों को कम किया है, जिस से चेतना में और अधिक स्पष्टता आई है|
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एक बात तो निश्चित तौर से कह सकता हूँ कि किसी भी साधना में सिद्धि स्वयं के प्रयासों से नहीं, भगवत कृपा से ही मिलती है| प्रयास तो करते रहना चाहिए, पर यह परमात्मा की मर्जी है कि वे कब सफलता दें| इसी लिए बिना किसी शर्त के साधना करने का आदेश दिया जाता है| यह एक परीक्षा है जिस में उतीर्ण होना ही होता है| जहाँ थोड़ी सी भी अपेक्षा की वहीं अनुतीर्ण हो गए|
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और भी कई बाते हैं जिनका सार्वजनिक उल्लेख वर्जित है| परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप आप सब को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
१३ अप्रेल २०१८

जम्मू-कश्मीर की समस्या एक धार्मिक समस्या है, राजनीतिक नहीं .....

जम्मू-कश्मीर की समस्या एक धार्मिक समस्या है, राजनीतिक नहीं .....
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भारत की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में कश्मीर की समस्या का कोई हल नहीं है| इस के लिए अति सफल कूटनीति और दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता है| यह कोई राजनीतिक समस्या नहीं है, बल्कि धार्मिक समस्या है| जम्मू-कश्मीर में पुलिस भी थी, सेना भी थी, न्यायालय भी था, सरकार भी थी, दिल्ली में केंद्र सरकार भी थी, माननीय सुप्रीम कोर्ट भी थी, और समाचार मीडिया भी थी, फिर भी रातों-रात लाखों हिन्दुओं को मार-काट कर वहाँ से भगा दिया गया, उनकी महिलाओं की अत्यधिक दुर्गति की गयी और अनगिनत हत्याएँ हुईं| किसी भी वैधानिक संस्था ने उनकी कोई सहायता नहीं की| उपरोक्त सब वैधानिक संस्थाएँ पूर्ण रूप से विफल रहीं| आज तक कश्मीरी हिन्दू विस्थापितों को उनकी भूमि बापस नहीं दिलाई गयी| किसी भी जिम्मेदार अपराधी को आज तक कोई सजा नहीं मिली है| अब लगता है जम्मू को भी हिन्दू-विहीन करने का षडयंत्र हो रहा है| केंद्र सरकार की निष्क्रियता गलत सन्देश दे रही है| यह अक्षम्य अपराध है|
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पूरा कश्मीर पकिस्तान को दे दो तो भी वह संतुष्ट नहीं होगा| उसका असली लक्ष्य तो पूरे भारत को पकिस्तान बनाना है| कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बना दो यह भी कोई स्थायी समाधान नहीं है| पाकिस्तान सैन्य आक्रमण कर के चीन की सहायता से उस पर अधिकार कर लेगा| कश्मीर घाटी में सुन्नी मुसलमान अधिक हैं, वे पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं| बाकी कश्मीर में शिया मुसलमान अधिक हैं जो भारत के साथ रहना चाहते हैं| जम्मू में हिदू बहुमत है, लद्दाख में बौद्ध बहुमत है जो भारत के साथ रहना चाहते हैं| असली समस्या कश्मीर घाटी में है| पाक अधिकृत कश्मीर में विशेषकर बाल्टीस्तान और गिलगिट में शिया बहुमत है जो पकिस्तान का साथ नहीं चाहते| पर फौजी ताकत से दबाकर उन्हें रखा गया है| पूर्व तानाशाह जिया-उल-हक ने पाक अधिकृत कश्मीर का जनसांख्यिकी परिवर्तन करने के लिए लाखों सुन्नियों को कश्मीर में बसाया ताकि शियाओं को दबा कर रखा जा सके| जब तक पकिस्तान का अस्तित्व है तब तक कश्मीर में कोई शांति नहीं हो सकती|
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कश्मीर की समस्या का एक मात्र हल है ....... अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक और सैन्य सहयोग से पकिस्तान को चार टुकड़ों में बाँट दिया जाए| बलूचिस्तान, सिंध और कबायली इलाकों सहित पख्तूनख्वा को .... पंजाब से पृथक कर दिया जाए| पूरा पकिस्तान सिर्फ पाकिस्तानी पंजाब तक ही सीमित रह जाए| इसके लिए हमें अमेरिका, रूस, इजराइल, फ़्रांस और ईरान जैसे देशों से पूर्ण सक्रीय सहयोग भी लेना पड़ेगा| चीन को भी एक बार तो मनाना ही होगा| पकिस्तान का अस्तित्व विश्व शांति के लिए खतरा है| पकिस्तान को नष्ट किये बिना विश्व में सुख-शांति नहीं हो सकती| भारत के हित में पाकिस्तान को विखंडित करना अति आवश्यक है|
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उस से पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य को तीन भागों में विभाजित किया जाय| जम्मू एक अलग राज्य हो, लेह-लद्दाख मिलाकर एक अलग राज्य हो और कश्मीर एक अलग राज्य हो| भविष्य में पकिस्तान अधिकृत कश्मीर भी वर्तमान कश्मीर का ही भाग हो| पकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर अधिकार लेने के लिए अमेरिका का सहयोग आवश्यक होगा क्योंकि गिलगिट में एक बहुत बड़ा अमेरिकी सैनिक अड्डा है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
१७ अप्रेल २०१७
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Monday 16 April 2018

परमप्रेम और समर्पण ....

परमप्रेम और समर्पण ....
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हम जीवन की संपूर्णता व विराटता को त्याग कर लघुता को अपनाते हैं तो निश्चित रूप से विफल होते हैं| दूसरों का जीवन हम क्यों जीते हैं? दूसरों के शब्दों के सहारे हम क्यों जीते हैं? पुस्तकों और दूसरों के शब्दों में वह कभी नहीं मिलता जो हम ढूँढ रहे हैं, क्योंकि अपने ह्रदय की पुस्तक में वह सब लिखा है|
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कुछ बनने की कामना से हम कुछ नहीं बन सकेंगे, क्योंकि जो हम बनना चाहते हैं, वह तो पहले से ही हैं|
कुछ पाने की खोज में भटकते रहेंगे, कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि ----- जो हम पाना चाहते हैं वह तो हम स्वयं ही हैं|
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जीव और शिव, आत्मा और परमात्मा, भक्त और भगवान ------ इन सब के बीच की कड़ी है ..... परमप्रेम और समर्पण| जब हम स्वयं ही वह परमप्रेम बन जाते हैं तो फिर बीच में कोई भेद नहीं रहता| यही है रहस्यों का रहस्य | उठो इस नींद से, और पाओ कि हम स्वयं ही अपने परम प्रिय हैं| हम खंड नहीं, अखंड हैं| हम यह देह नहीं बल्कि सम्पूर्णता हैं| हम स्वयं ही मूर्तिमंत परम प्रेम हैं|
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जिसने हमें अब तक भ्रम में डाल रखा था वे हैं हमारे ही चित्त की तरल चंचल वृत्तियाँ जिन्हें हम कभी शांत नहीं कर सके| अतः अब बापस हम उन्हें परमात्मा को समर्पित कर रहे हैं| ये चित्त की चंचलता पता नहीं कब से भटका रही है| शांत होने का नाम ही नहीं ले रही है| इन्हें बापस स्वीकार कीजिये क्योंकि इन्हें शांत करना अब हमारे वश की बात नहीं है| देना ही है तो अपना स्थायी परम प्रेम दीजिये, इसके अलावा और कुछ भी नहीं चाहिए|
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अज्ञान के अनंत अन्धकार से घिरे इस दुर्गम अशांत महासागर के पथ पर सिर्फ एक ही मार्गदर्शक ध्रुव तारा है, और वह है आपका प्रेम| वह ही हमारी एकमात्र संपदा है जो कभी कम ना हो|
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न तो हमें श्रुतियों और स्मृतियों आदि शास्त्रों का कोई ज्ञान है और न ही उन्हें समझने की क्षमता| इस देह रूपी वाहन में भी अब कोई क्षमता नहीं बची है| हमारी इन सब लाखों कमियों, दोषों, और अक्षमताओं को बापस आपको अर्पित कर रहे हैं| सारे गुण-दोष, क्षमताएँ-अक्षमताएँ, पाप-पुण्य, अच्छे-बुरे संचित व प्रारब्ध सब कर्मों के फल और सम्पूर्ण पृथक अस्तित्व, सब कुछ बापस आपको अर्पित है, इसे स्वीकार करें| आप के अतिरिक्त अब हमें और कुछ भी नहीं चाहिए|
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आपकी अनंतता हमारी अनंतता है, आपका प्रेम हमारा प्रेम है, और आपका अस्तित्व हमारा अस्तित्व है| आप और हम एक हैं| आपका यह परम प्रेम सबको बाँटना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है|

ॐ नमःशिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
१७ अप्रेल २०१६

"धर्म" और "अधर्म" में भेद क्या है .....

(१७ अप्रेल २०१४)
"धर्म" और "अधर्म" में भेद क्या है .....
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'धर्म' और 'अधर्म' इन पर जितनी चर्चाएँ हुई हैं, वाद विवाद, युद्ध और अति भयावह क्रूरतम अत्याचार और हिंसाएँ हुई हैं, उतनी अन्य किसी विषय पर नहीं| धर्म के नाम पर, अपनी मान्यताएं थोपने के लिए, अनेक राष्ट्रों और सभ्यताओं को नष्ट कर दिया गया, धर्म के नाम पर लाखों करोड़ मनुष्यों की हत्याएँ कर दी गईं जो आज भी अनवरत चल रही हैं| मनुष्य के अहंकार ने धर्म सम्बन्धी अपनी अपनी मान्यताएँ अन्यों पर थोपने के लिए सदा हिंसा का सहारा लिया है|

पर धर्म के तत्व को समझने का प्रयास सिर्फ भारतवर्ष में हुआ है| भारत का प्राण -- धर्म है| भारत सदा धर्म-सापेक्ष रहा है| धर्म की शरण में जाने का आह्वान सिर्फ भारतवर्ष से ही हुआ है| धर्म की रक्षा के लिए स्वयं भगवान ने यहाँ समय समय पर अवतार लिए है| धर्म की रक्षा हेतु ही यहाँ के सम्राटों ने राज्य किया है| धर्म की रक्षा के लिए ही असंख्य स्त्री-पुरुषों ने हँसते हँसते अपने प्राण दिए हैं|

भारत में धर्म की सर्वमान्य परिभाषा -- "परहित" को ही माना गया है| कणाद ऋषि के ये वचन भी सबने स्वीकार किये हैं कि ---- जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस की सिद्धि हो वह ही धर्म है| पर यह भी विचार का विषय है कि अभ्युदय और निःश्रेयस की सिद्धि कैसे हो सकती है|

महाभारत में एक यक्षप्रश्न के उत्तर में धर्मराज युधिष्ठिर कहते हैं ---"धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां" यानि धर्म का तत्व तो निविड़ अगम गुहाओं में छिपा है जिसे समझना अति दुस्तर कार्य है|
धर्म और अधर्म पर बहुत चर्चाएँ होती हैं| पर जहाँ तक मेरी अल्प और सीमित बुद्धि की समझ है ---- प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय की गुफा में धर्म छिपा है| यदि कोई अपने ह्रदय को पूछे तो हृदय सदा सही उत्तर देगा| मन और बुद्धि गणना कर के स्वहित यानि अपना स्वार्थ देखेंगे पर ह्रदय स्वहित नहीं देखेगा और सदा सही धर्मनिष्ठ उत्तर देगा|

ह्रदय में साक्षात भगवान ऋषिकेष जो बैठे हैं वे ही धर्म और अधर्म का निर्णय लेंगे| हमारी क्या औकात है ????? पर कोई उन्हें पूछें तो सही|

आपकी देहरूपी रथ का रथी -- आत्मा है, और सारथी -- बुद्धि है| बुद्धि -- कुबुद्धि और अशक्त भी हो सकता है| उसे आप पहिचान नहीं सकते क्योंकि उसकी पीठ आपकी ओर है| धर्माचरण का सर्वश्रेष्ठ कार्य यही होगा कि आप अपनी बुद्धि को सेवामुक्त कर के भगवान पार्थसारथी को अपने रथ की बागडोर सौंप दें| जहाँ भगवान पार्थसारथी आपके सारथी होंगे वहाँ जो भी होगा वह -- 'धर्म' ही होगा, 'अधर्म' कदापि नहीं|

अंततः मेरा ह्रदय तो यही कहता ही कि जो भी कार्य अपने अहँकार को परमात्मा को समर्पित कर, समष्टि के कल्याण के लिए किया जाए वही धर्म है| व्यष्टि का अस्तित्व भी समष्टि के लिए ही हो| यही धर्म है|

आप सब में हृदयस्थ भगवान नारायण को प्रणाम| धन्यवाद|
कृपा शंकर
१७ अप्रेल २०१४

Sunday 15 April 2018

इस संसार में दम घुटता है, तो क्या करें ?....

इस संसार में दम घुटता है, तो क्या करें ?
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संसार की बुराइयों को तो मिटा नहीं सकते | यह समुद्र के पानी को सुखाने का सा प्रयास है | हमें इन बुराइयों और भलाइयों से ऊपर उठना होगा, पर यह तो वेदान्त का विषय है जो एक सामान्य व्यक्ति को समझ में नहीं आ सकता | हम जैसे सामान्य व्यक्तियों का दृष्टिकोण तो उस साधू जैसा होना चाहिए जिसके बारे में संत कबीरदास जी ने कहा है .....
"साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय| सार-सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय"||
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हम इस संसार में उस चींटी की तरह रहें जो बालू रेत में मिली चीनी को तो खा लेगी पर बालू रेत को छोड़ देगी | अन्य कोई दूसरा रास्ता हमारे लिए नहीं है | हम लोग जब गन्ना चूसते हैं तब रस को तो चूस लेते हैं पर छिलका फेंक देते हैं | यह संसार बुराई और भलाई दोनों का मिश्रण है | संसार में यही दृष्टिकोण अपना होना चाहिए | निज विवेक से हम अच्छाई को तो ग्रहण कर लें और बुराई को छोड़ दें |
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एक समय था जब जीवन में मन अति अशांत और उद्वेलित रहता था| अशांत, निराश और उद्वेलित मन को शांत करने के लिए मैनें अनेक प्रयास किये थे, पर कभी सफल नहीं हुआ| फिर एक नया तरीका अपनाया| यह सोचना ही छोड़ दिया कि कहाँ क्यों व क्या हो रहा है और अन्य लोग क्या कर रहे हैं| सारा ध्यान इसी पर लगाया कि इसी क्षण अपना सर्वश्रेष्ठ मैं कैसे और क्या कर सकता हूँ| फिर पाया कि मन में कोई निराशा, अशांतता और बेचैनी नहीं रही है| वर्त्तमान में जीना और अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास जीवन में संतुष्टि प्रदान करता है| 
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हे गुरु महाराज, आपकी जय हो | आपकी कृपा सदा बनी रहे | जब से यह सिर आपके समक्ष झुका है, तब से एक बार भी नहीं उठा है, लगातार झुका हुआ ही है | मैं आपकी शरणागत हूँ | ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ अप्रेल २०१८

Friday 13 April 2018

सब कुछ तुम्हीं हो ........

सब कुछ तुम्हीं हो ........
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तुम्हारी उपस्थिति से जीवन धन्य हुआ है
तुम्हारी मुस्कान से आत्मा तृप्त हुई है
तुम्हारे प्रेम से ह्रदय भर गया है
तुम्हारी करुणा से वेदना दूर हुई है
तुम्हारे प्रकाश से मार्ग प्रशस्त हुआ है
तुम्हारे शब्दों से शांति मिली है
तुम्हारे विचारों से विवेक जागृत हुआ है
तुम्हारी हँसी से आनंद मिला है
तुम्हारी अनंतता से आश्रय मिला है
तुम्हारी सर्व-व्यापकता से सब कुछ मिल गया है

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जीवन का यह सर्वश्रेष्ठ है
हिम्मत कैसे हार सकता हूँ
निराशा भीरुता कैसे आ सकती है
जब सब कुछ तुम ही हो
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कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०१६

दूसरों से ही नहीं, स्वयं से भी अपेक्षाओं ने मुझे सदा निराश ही किया है .....

दूसरों से ही नहीं, स्वयं से भी अपेक्षाओं ने मुझे सदा निराश ही किया है .....
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यह लेख मैं अपने स्वयं के लिए ही लिख रहा हूँ, किसी अन्य के लिए नहीं| इसमें कोई उपदेश है तो वह भी स्वयं को ही है, किसी अन्य को नहीं| यह मेरा स्वयं के साथ ही एक सत्संग है| किसी से भी कोई अपेक्षा अब मुझे नहीं रही है, स्वयं से भी नहीं| स्वयं से अपेक्षाओं ने भी मुझे सदा निराश ही किया है| अपेक्षा प्रकृति से भी नहीं है, क्योंकि प्रकृति भी अपने नियमों के अनुसार ही कार्य करेगी| भगवान भी अपने स्वयं निर्मित नियमों से ही चलेंगे अतः उनके प्रति सिर्फ श्रद्धा और विश्वास ही है, उनसे भी कोई अपेक्षा नहीं रही है|
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दूसरों से मैं कितनी भी ज्ञान की बातें करूँ, दूसरों को मैं कितने भी उपदेश दूँ, उन से कोई लाभ नहीं, बल्कि समय की बर्बादी ही है| हर मनुष्य अपने अपने स्वभाव के अनुसार ही चलेगा| किसी से कुछ भी अपेक्षा, निराशाओं को ही जन्म देगी| परमात्मा से जुड़कर ही अपने दृढ़ संकल्प से मैं कुछ सकारात्मक कार्य कर सकता हूँ, अन्यथा नहीं| यह सृष्टि भी परमात्मा के संकल्प से प्रकृति द्वारा चल रही है| उनके भी कुछ नियम हैं, जिन्हें वे नहीं तोड़ेंगे| मेरी दृढ़ संकल्प शक्ति ही अब मेरी प्रार्थना होगी| प्रचलित प्रार्थनाएँ मेरे लिए अब निरर्थक हैं| क्या जीवन भर प्रचलित प्रार्थनाएँ ही करते रहेंगे? उनका अब कोई उपयोग नहीं है|
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यह सृष्टि परमात्मा के संकल्प से निर्मित है| इसका संचालन भी उनके संकल्प से उनकी प्रकृति ही कर रही है| इसमें अच्छा-बुरा जो कुछ ही हो रहा है, उसके जिम्मेदार परमात्मा स्वयं ही हैं, मैं नहीं| अतः मुझे विचलित नहीं होना चाहिए| उन्हें मेरी सलाह की आवश्यकता नहीं है| मैं प्रयासहीन होकर बैठे बैठे सफलता को अपनी गोद में आकर गिरने की अपेक्षा नहीं कर सकता| एक बार मैनें अपनी दिशा तय कर ली है, तो दृढ़ निश्चय के साथ व्यवहारिक रूप से अग्रसर होने के लिए अनवरत प्रयास करने ही होंगे| किसी से, स्वयं से भी अब कोई अपेक्षा नहीं है|
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गीता में भगवान कहते हैं .....
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि| प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति|| ३:३३||
अर्थात् ज्ञानवान् पुरुष भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है| सभी प्राणी अपनी प्रकृति पर ही जाते हैं फिर इनमें (किसी का) निग्रह क्या करेगा|
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पूर्वजन्मों के संस्कारों से ही बनी हुई मेरी प्रकृति यानि स्वभाव है| जैसी मेरी प्रकृति है वैसा ही कार्य मेरे द्वारा संपादित होगा| उस से ऊपर उठने के लिए नित्य नियमित ध्यानोपासना द्वारा अपने उपास्य को पूर्णरूपेण समर्पित होना होगा| सिर्फ परमात्मा ही सब बंधनों से परे हैं और उनमें ही समस्त स्वतन्त्रता है| 


शिवोहं शिवोहं शिवोहं ! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०१८

Thursday 12 April 2018

जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति है .....

जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति है .....
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जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है, यह हमें सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म ही सिखाता है| सनातन हिन्दू धर्म कोई संगठित पंथ नहीं है, यह एक जीवन पद्धति है| कोई भी संगठित पंथ हमें परमात्मा से साक्षात्कार नहीं करा सकता| निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति करना हमें सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म ही सिखाता है| यह मेरे निजी अनुभवों का सार भी है| देश-विदेशों में मैं खूब घूमा हूँ, अनेक तरह के लोगों व विभिन्न धर्मगुरुओं से भी मिला हूँ, सभी प्रमुख पंथों का अध्ययन भी किया है, और जीवन में खूब अनुभव लिए हैं| अध्ययन भी खूब है और साधना मार्ग पर भी बहुत सारे निजी अनुभव हैं जो मेरी अमूल्य निधि हैं| अपने जीवन का यह सार बता रहा हूँ कि जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र लक्ष्य निज जीवन में आत्म-साक्षात्कार यानि ईश्वर की प्राप्ति है| हमारा लक्ष्य कोई स्वर्ग में जाना नहीं, बल्कि परमात्मा को पूर्ण समर्पण और परमात्मा के साथ एकाकार होना है|
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सभी से मेरा आग्रह है कि संगठित पंथों और मतों से ऊपर उठाकर नित्य परमात्मा का कम से एक घंटे तक ध्यान करो| कोई ऊपरी सीमा नहीं है| भगवान से प्रेम करो, जब प्रेम में प्रगाढ़ता आयेगी तब परमात्मा स्वयं आपका मार्ग-दर्शन करेंगे| सनातन हिन्दू धर्म हमें यही सिखाता है| ध्यान साधना का आपका अनुभव ही सबसे बड़ा प्रमाण होगा|
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जो भी मत आपको भयभीत होना यानि डरना सिखाता है, या आपको पापी बताता है वह गलत है| आप परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, उनके अंश हैं| उठो, जागो और अपने लक्ष्य यानि परमात्मा को उपलब्ध हों| शुभ कामनाएँ|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अप्रेल २०१८

ग्रीष्म ऋतु का सौन्दर्य और आनंद .....

इस ग्रीष्म ऋतु का भी एक सौन्दर्य, दिव्यता और आनंद है जिसका अनुभव लेने के लिए आपको सूर्योदय से डेढ़-दो घंटे पूर्व उठकर बाहर प्रकृति की गोद में खुली हवा में घूमते हुए जाना होगा|
मरुभूमि में तो यह आनंद और भी गहरा है, जहाँ की विरल वृक्षावली और रेतीली भूमि की सुरभित वायु आपको मुग्ध कर देगी| उस सुरभित वायु में घूमिये और उचित स्थान देखकर भगवान का ध्यान कीजिये, आप धन्य हो जायेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अप्रेल २०१८

वर्षा के जल का संग्रहण :-----

वर्षा के जल का संग्रहण :-----
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भारत में वर्षा के जल के संग्रहण की तकनीक हजारों वर्ष पुरानी है| इस तकनीक का उपयोग घरों में, सामुदायिक बावड़ियों/तालाबों में, प्राचीन मंदिरों/धर्म-स्थलों में बनवाए गए विशाल जलकुंडों में, और राजा-महाराजाओं द्वारा बनवाये गए किलों में होता आया है| राजस्थान के उन सब भागों में जहाँ पानी की कमी रही है, या जहाँ जहाँ भूमि में खारा पानी है, प्रायः हर घर में एक भूमिगत पक्का जलकुंड होता है| आजकल तो सीमेंट से उनका निर्माण होता है, प्राचीन काल में चूने और सुर्खी से होता था| घर की छत की ढाल और बंद नालियों की बनावट ऐसी होती है कि पानी सीधा भूमिगत कुंड में जाता है| घर की छत को हर समय बहुत साफ़ रखते हैं, वहाँ जूते या चप्पल पहिन कर नहीं जाते| कुंड में जाने वाले नाले के अंतिम सिरे को बंद रखते हैं ताकि भूल से भी उसमें अपवित्र जल नहीं चला जाए| पहली वर्षा का जल उसमें नहीं जाने देते| पहली वर्षा के बाद उस नाले को खोल देते हैं| फिर हर वर्षा का जल उस कुंड में एकत्र हो जाता है जिसे पूरे वर्ष पीने के काम में लेते हैं| कुंड को हर समय ढक कर रखते हैं| पानी निकालने के लिए साफ़ बाल्टी और रस्सी का प्रयोग करते हैं|
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अब सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया है कि बड़े बड़े भवनों की छतों का जल बाहर सड़क पर न बह कर भूमि में ही जाए, जिससे भूमिगत जल स्तर की वृद्धि हो| पीने के पानी की कमी होती जा रही है जिसका समाधान वर्षा के जल को एकत्र करना ही होगा|

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पिछले कुछ दिनों से वर्षा का संग्रहित जल ही पी रहा हूँ जिसे हमारे यहाँ पालर का पानी कहते हैं| वह इतना अच्छा लग रहा है कि RO का पानी बंद ही कर दिया है| अब समझ में आ रहा है कि वर्षा का संग्रहित पानी पीने वाले लोग इतने स्वस्थ क्यों रहते हैं, उनके घुटने कभी खराब नहीं होते| पचास वर्ष पूर्व तक तो हम लोग कुओं का पानी ही पीते थे| जिन क्षेत्रों में भूमिगत जल में फ्लुरोइड होता था वहाँ के लोग तो सदा ही पीने के लिए वर्षा के जल का संग्रह करते थे| भूजल स्तर नीचे जाने से अब म्युनिसिपल पानी में भी फ्ल्युरोइड आने लगा है| पीने के लिए वर्षा के जल का संग्रह ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है|

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
१२ अप्रेल २०१८

दरिद्रता सबसे बड़ा पाप है .....

दरिद्रता सबसे बड़ा पाप है जो मानसिक अयोग्यता से उत्पन्न होता है| दरिद्रता दो प्रकार की होती है ..... एक तो भौतिक दरिद्रता और दूसरी आध्यात्मिक दरिद्रता| दोनों ही हमारे पापों का फल है| अपना पूरा प्रयास कर के इन से हम मुक्त हों| पर हमारे प्रयास धर्मसम्मत हों|

भौतिक समृद्धि ..... आध्यात्मिक समृद्धि का आधार है| भारत आध्यात्मिक रूप से समृद्ध था क्योंकि वह भौतिक रूप से भी समृद्ध था| गरीबी यानि दरिद्रता कोई आदर्श नहीं है, यह एक पाप है|

कब तक हम प्रार्थना ही करते रहेंगे ? .....

कब तक हम प्रार्थना ही करते रहेंगे ? .....
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कब तक हम प्रार्थना ही करते रहेंगे| प्रार्थना करते करते युग बीत गए हैं पर हम वहीं के वहीं हैं| अपनी दुर्बलताओं का त्याग कर के हम अपने आत्म-तत्व में स्थित हों| जिनको हम ढूँढ रहे हैं वह तो हम स्वयं हैं|
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हमें अपने विचारों पर और वाणी पर सजगता पूर्वक नियंत्रण रखना चाहिए| अधोगामी विचार पतन के कारण होते हैं| अनियंत्रित शब्द स्वयं की आलोचना, निंदा व अपमान का कारण बनते हैं| परमात्मा के किसी पवित्र मन्त्र का निरंतर जाप हमारी रक्षा करता है| परमात्मा हाथ में डंडा लेकर किसी बड़े सिंहासन पर बैठा कोई अलोकिक पुरुष नहीं है जो अपनी संतानों को दंड और पुरष्कार दे रहा है| जैसी अपनी सोच होती है वैसी ही परिस्थितियों का निर्माण हो जाता है| हमारे विचार और सोच ही हमारे कर्म हैं|
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परमात्मा तो एक अगम, अगोचर, अचिन्त्य परम चेतना है जो हम से पृथक नहीं है| वह चेतना ही यह लीला खेल रही है| कुछ लोग यह सोचते हैं कि परमात्मा ही सब कुछ करेगा और वही हमारा उद्धार करेगा| पर ऐसा नहीं है| हमारी उन्नत आध्यात्मिक चेतना ही हमारी रक्षा करेगी| यह एक ऐसा विषय है जिस पर उन्हीं से चर्चा की जा सकती है जिन के ह्रदय में कूट कूट कर प्रेम भरा है और जो पूर्ण रूप से परमात्मा को समर्पित होना चाहते हैं|
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वर्तमान काल में हमें विचलित नहीं होना चाहिए| समय ही खराब चल रहा है| सारे सेकुलर चाहे वे राजनीति में हों, या प्रशासन में, या न्यायपालिका में ..... सब के सब धर्मद्रोही हैं| सारी सेकुलर मिडिया भी धर्मद्रोही है| अवसर मिलते ही वे हमारी आस्थाओं पर मर्मान्तक प्रहार करने से नहीं चूकते| हमें धैर्यपूर्वक अपना शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक बल निरंतर बढाते रहना चाहिए| हमारी आध्यात्मिक शक्ति निश्चित रूप से हमारी रक्षा करेगी|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अप्रेल २०१८

Tuesday 10 April 2018

राजधर्म .....

राजधर्म .....
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भारत की प्राचीन राज्य व्यवस्था सर्वश्रेष्ठ थी| राजा धर्मनिष्ठ होते थे जिन पर धर्म का अंकुश रहता था| हर युग के राजा तपस्वी ऋषियों से मार्गदर्शन लेते थे| राजा निरंकुश न होकर जन-कल्याण के लिए समर्पित होते थे| श्रुतियों के अनुसार राजा की नीतियाँ निर्धारित होती थीं| भारत में अंग्रेजों के आने तक सभी हिन्दू राजा मनुस्मृति से मार्गदर्शन लेते थे| कुटिल धूर्त अंग्रेजों ने मनुस्मृति को ही विकृत करवा दिया| मनुस्मृति के ७वें अध्याय में राजधर्म की चर्चा की गयी है|
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हिन्दू राजाओं के शासन काल में राजधर्म की शिक्षा के मूल वेद ही थे| महाभारत में राजधर्म का विस्तृत विवेचन किया गया है| महाभारत युद्ध के समाप्त होने के पश्चात् महाराज युधिष्ठिर को भीष्म ने भी राजधर्म का उपदेश दिया था| मनुस्मृति के ७वें अध्याय में राजधर्म की चर्चा की गयी है| विदुर नीति, शुक्रनीति में भी राजधर्म की शिक्षा है| कालान्तर में चाणक्य ने भी राजधर्म पर बहुत कुछ लिखा है| जयपुर के राजाओं ने बड़े बड़े विद्वानों को बुलाकर राजधर्म पर पुस्तकें लिखवाई थीं, ऐसे उल्लेख मिलते हैं|
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भारत में वर्त्तमान लोकतंत्र अगले पचास वर्षों में पूरी तरह विफल हो जाएगा, और कोई नई व्यवस्था आयेगी जो वर्त्तमान व्यवस्था से श्रेष्ठतर ही होगी|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१० अप्रेल २०१८

नवरात्री का आध्यात्मिक महत्व :---

(११ अप्रेल २०१३)
नवरात्री का आध्यात्मिक महत्व :-
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भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है नवरात्री| इसका आध्यात्मिक महत्व जितना और जैसा मेरी सीमित बुद्धि से समझ में आया है उसे मैं यहाँ व्यक्त करने का दु:साहस कर रहा हूँ| अगर मेरे लेख में कोई कमी है तो वह मेरी नासमझी के कारण है जिसके लिए मैं विद्वजनों से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी कमी दूर करें|
दुर्गा देवी तो एक है पर उसका प्राकट्य तीन रूपों में है, या यह भी कह सकते हैं कि इन तीनों रूपों का एक्त्व ही दुर्गा है| ये तीन रूप हैं ----
(१) महाकाली| (२) महालक्ष्मी (३) महासरस्वती|
नवरात्रों में हम माँ के इन तीनों रूपों की साधना करते हैं| माँ के इन तीन रूपों की प्रीति के लिए ही समस्त साधना की जाती है|

(१) महाकाली ----
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महाकाली की आराधना से विकृतियों और दुष्ट वृत्तियों का नाश होता है| माँ दुर्गा का एक नाम है -- महिषासुर मर्दिनी| महिष का अर्थ होता है -- भैंसा, जो तमोगुण का प्रतीक है| आलस्य, अज्ञान, जड़ता और अविवेक ये तमोगुण के प्रतीक हैं| महिषासुर वध हमारे भीतर के तमोगुण के विनाश का प्रतीक है| इनका बीज मन्त्र "क्लीम्" है|
(२) महालक्ष्मी ------
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ध्यानस्थ होने के लिए अंतःकरण का शुद्ध होना आवश्यक होता है जो महालक्ष्मी की कृपा से होता है| सच्चा ऐश्वर्य है आतंरिक समृद्धि| हमारे में सद्गुण होंगे तभी हम भौतिक समृद्धि को सुरक्षित रख सकते हैं| तैतिरीय उपनिषद् में ऋषि प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु जब पहिले हमारे सद्गुण पूर्ण रूप से विकसित हो जाएँ तभी हमें सांसारिक वैभव देना| हमारे में सभी सद्गुण आयें यह महालक्ष्मी की साधना है| इन का बीज मन्त्र "ह्रीं" है|
(३) महासरस्वती ----
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गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अपनी आत्मा का ज्ञान ही ज्ञान है| इस आत्मज्ञान को प्रदान करती है -- महासरस्वती| इनका बीज मन्त्र है "अईम्"|
नवार्ण मन्त्र:
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माँ के इन तीनों रूपों से प्रार्थना है कि हमें अज्ञान रुपी बंधन से मुक्त करो| बौद्धिक जड़ता सबसे अधिक हानिकारक है| यही अज्ञान है और यही हमारे भीतर छिपा महिषासुर है जो माँ की कृपा से ही नष्ट होता है|
सार -----
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नवरात्रि का सन्देश यही है कि समस्त अवांछित को नष्ट कर के चित्त को शुद्ध करो| वांछित सद्गुणों का अपने भीतर विकास करो| आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करो और सीमितताओं का अतिक्रमण करो|
यही वास्तविक विजय है|
मैंने मेरी बात कम से कम शब्दों में व्यक्त कर दी है जो समझाने के लिए पर्याप्त है| इससे अधिक लिखना मेरे लिए बौद्धिक स्तर पर संभव नहीं है| जय माँ|
सबका कल्याण हो|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
११ अप्रेल २०१३

सिद्धि नहीं मिलती तो कमी हमारे प्रयास की है, किसी अन्य की नहीं .....

सिद्धि नहीं मिलती तो कमी हमारे प्रयास की है, किसी अन्य की नहीं .....
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जब अरुणिमा की एक झलक दूर से मिलती है तब यह भी सुनिश्चित है कि सूर्योदय में अधिक विलम्ब नहीं है| भगवान से कुछ माँगना ही है तो सिर्फ उनका प्रेम ही माँगना चाहिए, फिर सब कुछ अपने आप ही मिल जाता है| हमें अपने 'कर्ता' होने के मिथ्या अभिमान को त्याग देना चाहिए| एकमात्र कर्ता तो जगन्माता माँ भगवती स्वयं है जो यज्ञ रूप में हमारे कर्मफल परमात्मा को अर्पित करती है| वे 'कर्ता' ही नहीं 'दृष्टा' 'दृश्य' व 'दर्शन' भी हैं, 'साधक' 'साधना' व 'साध्य' भी हैं, और 'उपासना' 'उपासक' व 'उपास्य' भी हैं| उनको पूर्ण रूपेण समर्पित होना ही सबसे बड़ी सिद्धि है|
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गीता में भगवन श्रीकृष्ण कहते हैं .....
मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि||१८:५८||
अर्थात् अपना चित्त मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर लेगा| परंतु यदि तूँ मेरे कहे हुए वचनों को अहंकार वश नहीं ग्रहण नहीं करेगा तो नष्ट हो जायगा|
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वाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम का भी अभय वचन है ....
सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं ममः||६:१८:३३||
अर्थात् जो एक बार भी मेरी शरण में आ जाता है उसको सब भूतों (यानि प्राणियों से) अभय प्रदान करना मेरा व्रत है|
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जब साकार परमात्मा के इतने बड़े वचन हैं तो शंका किस बात की? तुरंत कमर कस कर उनके प्रेम सागर में डुबकी लगा देनी चाहिए| मोती नहीं मिलते हैं तो दोष सागर का नहीं है, दोष डुबकी में ही है, डुबकी में ही पूर्णता लाओ|
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उनकी कृपा से सब कुछ संभव है .....
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्| यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्||
जिनकी कृपा से गूंगे बोलने लगते हैं, लंगड़े पहाड़ों को पार कर लेते हैं, उन परम आनंद स्वरुप श्रीमाधव की मैं वंदना करता हूँ||
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भगवान ही हमारे माता-पिता, बंधू-सखा व सर्वस्व हैं| उन्हीं को सब कुछ समर्पित कर देना चाहिए..
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव|
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देव देवः||
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यह उन्हीं का कार्य है, पर जब तक कण मात्र भी कर्ताभाव है, तब तक करना तो हमें ही पड़ेगा| परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप आप सब को सप्रेम नमन !
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० अप्रेल २०१८

Monday 9 April 2018

मेरा धर्म और मेरी राजनीति ......

अब तक मेरे इस लौकिक जीवन का अधिकाँश भाग व्यतीत हो चुका है, बहुत थोड़ा सा समय बाकी है, वह भी अनिश्चित है| जो समय बीत चुका है वह तो बापस आ नहीं सकता, पर जितना भी अनिश्चित समय बचा है, उसमें मेरा इसी क्षण से एक ही धर्म है और एक ही राजनीति है, वह है ..... निरंतर ईश्वर में रमण, उसी का चिंतन और उसी का ध्यान, उसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं|

आध्यात्मिक और बौद्धिक रूप से कहीं भी कण मात्र की भी कोई शंका या संदेह नहीं है, और भगवान की परम कृपा से आगे का पूरा मार्ग स्पष्ट है| एक परावस्था की मैं कल्पना किया करता था, पर अब पाता हूँ कि जहाँ मैं अवस्थित हूँ वही परावस्था है| जहाँ पर मैं हूँ वहीं भगवान स्वयं हैं, कहीं पर भी कोई भेद नहीं है| अब कहीं भी कोई यात्रा नहीं है, सारी यात्राएँ पूर्ण हो चुकी हैं|

हर तरह की अन्य सामाजिकता, राजनीति और मनोरंजन से दूर हट रहा हूँ| अनावश्यक लेख भी नहीं लिखूंगा, और संपर्क व सम्बन्ध भी सिर्फ समान विचारधारा के लोगों से ही रहेगा| अब तक जीवन में भगवान स्वयं ही मित्रों, सम्बन्धियों व अन्य सब के रूप में आये| उन सब के रूप में भगवान परमशिव को नमन !

किसी की भी निंदा, आलोचना , उलाहना, प्रतिवाद व शिकायत करने को मेरे पास अब कुछ भी नहीं है|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
१० अप्रेल २०१८

सांसारिक भोगों में आसक्त मनुष्यों का प्रेम भगवान से नहीं हो सकता .....

सांसारिक भोगों में आसक्त मनुष्यों का प्रेम भगवान से नहीं हो सकता .....
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जैसे अन्धकार और प्रकाश एक साथ नहीं रह सकते वैसे ही सांसारिक भोगों में आसक्ति और भगवान की भक्ति एक साथ कभी भी नहीं हो सकती| भगवान शत-प्रतिशत प्रेम माँगते हैं| अन्यत्र भी कहीं आसक्ति होती है तो भक्ति व्यभिचारिणी हो जाती है|
गीता में भगवान कहते हैं .....
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्| व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते||२:४४||
अर्थात् उस पुष्पित वाणीसे जिसका अन्तःकरण हर लिया गया है अर्थात् भोगोंकी तरफ खिंच गया है और जो भोग तथा ऐश्वर्यमें अत्यन्त आसक्त हैं उन मनुष्योंकी परमात्मामें निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती|

जो भोग तथा ऐश्वर्य में आसक्त हैं, जो सांसारिक भोगों और ऐश्वर्य को ही पुरुषार्थ मानते हैं, उनके अंतःकरण में भगवान के प्रति प्रेम नहीं ठहर सकता| हम भोगी मनुष्य और तो कर ही क्या सकते हैं, भगवान से निरंतर प्रार्थना तो कर ही सकते हैं कि हे प्रभु, हमारी आसक्ति इस संसार से हटा कर स्वयं में ही लगाओ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
९ अप्रेल २०१८

Sunday 8 April 2018

हमारा वास्तविक "स्व" तो परमात्मा है जिसकी चेतना में जीना हमारा स्वभाव है .....

हमारा वास्तविक "स्व" तो परमात्मा है जिसकी चेतना में जीना हमारा स्वभाव है .....
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निरंतर ब्रह्म-चिंतन और भक्ति ही हमारा स्वभाव है, अन्यथा हम अभाव ग्रस्त हैं| अभाव में जीने से हमारा पतन सुनिश्चित है| माया के विक्षेप और आवरण बहुत अधिक शक्तिशाली हैं जो हमें निरंतर अधोगामी बनाते है| सिर्फ भगवान की भक्ति और उनका ध्यान ही हमारी रक्षा कर सकते हैं| जब हम स्वभाव में जीते हैं तब पूर्णतः सकारात्मक होते हैं, अन्यथा बहुत अधिक नकारात्मक| हमारा वास्तविक "स्व" तो परमात्मा है, जिनकी चेतना में जीना हमारा वास्तविक और सही स्वभाव है| हम अपने स्वभाव में जीएँ और स्वभाव के विरुद्ध जो कुछ भी है उसका परित्याग करें|
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निरंतर अभ्यास करते करते परमात्मा व गुरु की असीम कृपा से निरंतर ब्रह्म-चिंतन और भक्ति ही हमारा स्वभाव बन जाता है| जब भगवान ह्रदय में आकर बैठ जाते हैं तब वे फिर बापस नहीं जाते| यह स्वाभाविक अवस्था कभी न कभी तो सभी को प्राप्त होती है| सरिता प्रवाहित होती है, पर किसी के लिए नहीं| प्रवाहित होना उसका स्वभाव है| व्यक्ति .. स्वयं में जब परमात्मा को व्यक्त करना चाहता है, यह उसका स्वभाव है|
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जो लोग सर्वस्व यानि समष्टि की उपेक्षा करते हुए इस मनुष्य देह के हित की ही सोचते हैं, प्रकृति उन्हें कभी क्षमा नहीं करती| वे सब दंड के भागी होते हैं| समस्त सृष्टि ही अपना परिवार है और समस्त ब्रह्माण्ड ही अपना घर| यह देह रूपी वाहन और यह पृथ्वी भी बहुत छोटी है अपने निवास के लिए| अपना प्रेम सर्वस्व में पूर्णता से व्यक्त हो|
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्ति आप सब को सादर नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ अप्रेल २०१८

अंतरतम भाव कभी व्यक्त नहीं हो सकते .....

अंतरतम भाव कभी व्यक्त नहीं हो सकते .....
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प्रिय निजात्मगण, आज अपनी जिन अनुभूतियों को मैं व्यक्त करना चाहता हूँ उन्हें व्यक्त करने का सामर्थ्य या क्षमता मुझमें नहीं है| उन्हें शब्दों का रूप नहीं दे सकता| भविष्य में भी कभी नहीं दे पाऊँगा| शब्दों की एक सीमा होती है, पर यह अनुभूति और भाव अथाह है| सामने ईश्वर का अनंत साम्राज्य है जहाँ से पीछे मुड़ कर देखना असम्भव है| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०१८

पूजा में नारियल का महत्व .....

जब कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करते हैं तब पूजा में एक पानी वाला नारियल अवश्य रखा जाता है| इसे एक जल से भरे कलश पर रखते हैं| कलश पर रखने से पूर्व इस पर कलावा बाँध कर कुमकुम से अर्चना भी करते हैं| यदि उपलब्ध हो तो अशोक की पत्तियों से कलश को सजाते भी हैं| कलश की भी पूजा होती है| यह परम्परा मैंने पूरे भारत में सभी हिन्दुओं में देखी है| इसके बिना कोई भी विशेष पूजा नहीं होती| ऐसा हम लोग लक्ष्मी जी के आशीर्वाद और कृपा के लिए करते हैं| इस से सारे वास्तु दोष भी दूर हो जाते हैं|

साथ साथ कलश के सामने गणेश पूजन के लिए एक साबुत सुपारी पर कलावा बांधकर कुमकुम से अर्चित कर के रखते हैं| इस से गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पूजा निर्विघ्न संपन्न होती है| इन के पीछे वैज्ञानिक कारण भी अवश्य हैं तभी तो यह परम्परा हजारों वर्षों से चली आ रही है|

७ अप्रेल २०१८

मानवीय चेतना से ऊपर उठें .....

मानवीय चेतना से ऊपर उठें .....
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मानवीय चेतना से ऊपर उठ कर देवत्व में स्वयं को स्थापित करने का कोई न कोई मार्ग तो अवश्य ही होगा| हमें अपने जीवन का केंद्र बिंदु परमात्मा को बनाना ही पड़ेगा| वर्तमान सभ्यता में मनुष्य की बुद्धि का तो खूब विकास हो रहा है पर अन्य सद् गुणों का अधिक नहीं| मूक और निरीह प्राणियों पर क्रूर अत्याचार और अधर्म का आचरण प्रकृति कब तक सहन करेगी? मनुष्य का लोभ और अहंकार अपने चरम पर है| कभी भी महाविनाश हो सकता है| धर्म का थोड़ा-बहुत आचरण ही इस महाभय से रक्षा कर सकेगा| हम स्वयं को यह शरीर समझ बैठे हैं यही पतन का सबसे बड़ा कारण है| इस विषय पर कुछ मंथन अवश्य करें|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
६ अप्रेल २०१७

भगवान के ध्यान से क्या प्राप्त होता है ? ....

भगवान के ध्यान से क्या प्राप्त होता है ? ....
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मेरा उत्तर स्पष्ट है कि कुछ भी प्राप्त नहीं होता, जो कुछ पास में है वह भी चला जाता है| ध्यान साधना एक समर्पण की साधना है, कुछ प्राप्त करने की नहीं| यह अपना अहंकार और सर्वस्व परमात्मा में समर्पित करने का प्रयास है, बदले में कुछ प्राप्त करने का नहीं| कुछ अभ्यास के पश्चात कर्ताभाव भी समाप्त हो जाता है| कुछ बनने की या कुछ पाने की कामना ही नष्ट हो जाती है| हाँ, एकमात्र फल जो मिलता है वह है .... संतुष्टि, प्रेम और आनंद| अन्य कुछ पाने की कामना भी मत करना, अन्यथा घोर निराशा प्राप्त होगी|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ
६ अप्रेल २०१७

तीज त्योहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर .......

तीज त्योहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर .......
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होली के दूसरे दिन से ही नित्य अनेक घरों में मंगल गीत गाये जा रहे थे| सभी नवविवाहिताएँ अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए, और कुँआरी कन्याएँ अच्छे वर की प्राप्ति के लिए गणगौर के रूप में पार्वती-शिव की उपासना कर रही थीं|

आज उस अठारह दिन के उपासना पर्व का अवसान हो गया है| आज नवविवाहिता सौभाग्याकांक्षिणी महिलाओं ने और कन्याओं ने खूब उत्साह से गणगौर की पूजा की, और प्रतीकात्मक मिट्टी की मूर्तियों को तालाबों या बावड़ियों में प्रवाहित कर दिया|

अब भयंकर गर्मी का मौसम आ जाएगा और कई दिनों तक तीज त्यौहार नहीं आयेंगे| उलाहना के रूप में इसीलिए यह कहावत पडी ...."तीज त्योहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर"|


९ अप्रेल २०१६

महान बनने के लिए स्वयं को महत् तत्व यानि सर्वव्यापी परमात्मा से जुड़ना होगा ........

महान बनने के लिए स्वयं को महत् तत्व यानि सर्वव्यापी परमात्मा से जुड़ना होगा ........
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जो महत् तत्व से जुड़ी है वह आत्मा ही महात्मा है, न कि अन्य कोई| महत् तत्व से जुड़ा व्यक्ति ही महान है| महत् तत्व है परमात्मा की अनन्तता और सर्वव्यापकता| हमें परमात्मा से जुड़ कर स्वयं को महान बनना होगा| सिर्फ बातों से हम महान नहीं बन सकते| एक छोटी और एक बड़ी लकीर साथ साथ हैं| छोटी लकीर बड़ी बननी चाहे तो उसे स्वयं को बड़ी बनाना होगा| दूसरी को छोटी बनाकर बड़ी बनने का प्रयास अंतत विफल होगा| बड़ा बनने के प्रयास में कोई पंजों के बल चले तो वह बड़ा नहीं कहलायेगा, ठोकर खाकर शीघ्र ही नीचे गिरेगा| सिर्फ आत्मप्रशंसा से कोई बड़ा नहीं बन सकता| ऐसे ही दुर्भावनावश या मतान्धतावश दूसरों का गला काटकर बड़ा बनने वाले कभी बड़े नहीं बन सकते| जिस अस्त्र-शस्त्र से वे दूसरों को मारते हैं उन्हीं अस्त्र-शस्त्रों से एक दिन वे स्वयं भी मारे जायेंगे| प्रकृति उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगी| कालखंड में स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे|
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वर्षा का जल पर्वतशिखर और तालाब पर समान रूप से ही गिरता है| यदि पर्वतशिखर का जल बहकर तालाब में आता है तो इसमें पर्वतशिखर का कोई दोष नहीं है| जो गिरा हुआ है उसे सब गिराते हैं और जो शिखर पर है उसको सब नमन करते हैं| हमें शिखर बनना होगा तभी हमारा वर्चस्व और सम्मान होगा| हमारा पतन हुआ हमारी सद्गुण विकृतियों से| जिस तरह व्यक्ति के कर्म होते हैं वैसे ही समाज और राष्ट्र के भी सामूहिक कर्म और उनके फल होते हैं जिनका परिणाम अवश्य मिलता है| ये हमारे कर्म ही थे जिनके कारण हमारा पतन हुआ और हम इतनी पीड़ाओं और कष्टों में से गुजरे हैं और हैं| हम उनसे आध्यात्मिकता द्वारा ही मुक्त हो सकते हैं| इसके लिए हमें स्वयं महान बनना होगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०१६

हमारा निश्चयपूर्वक किया हुआ दृढ़ संकल्प राष्ट्र की रक्षा कर सकता है .....

हमारा निश्चयपूर्वक किया हुआ दृढ़ संकल्प राष्ट्र की रक्षा कर सकता है .....
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जो साधना एक व्यक्ति अपने मोक्ष के लिए करता है वो ही साधना यदि वह धर्म और राष्ट्र के अभ्युदय के लिए करे तो निश्चित रूप से उसका भी कल्याण होगा| धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है| हमारा सर्वोपरि कर्त्तव्य है धर्म और राष्ट्र की रक्षा जिसे हम परमात्मा को समर्पित होकर ही कर सकते हैं| हमें अपनी साधना में ''राष्ट्र और धर्म के कल्याण के लिए'' भी संकल्प जोड़ना चाहिए| इससे हमारी साधना से एक दैवीय शक्ति का प्रादुर्भाव होगा, जो हमें ''राष्ट्रहित'' में कार्य करने के लिए हमारे ''बल और बुध्दि'' को प्रखर करेगी| आज हमें आवश्यकता है एक ब्रह्म तेज की| जो इस बात को समझते हैं वे समझते हैं, जो नहीं समझते हैं उन्हें समझाया भी नहीं जा सकता| यह कार्य हम स्वयं के लिए नहीं अपितु भगवान के लिए कर रहे हैं| मोक्ष की हमें व्यक्तिगत रूप से कोई आवश्यकता नहीं है| आत्मा तो नित्य मुक्त है, बंधन केवल भ्रम मात्र हैं| ज्ञान की गति के साथ साथ हमें भारत की आत्मा का भी विस्तार करना होगा| यह परिवर्तन बाहर से नहीं भीतर से करना होगा|
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वर्तमान में जब धर्म और राष्ट्र की अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे है तब व्यक्तिगत कामना और व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु साधना उचित नहीं है| भारत की सभी समस्याओं का निदान हमारे भीतर है| एक बात ना भूलें कि भारत की आत्मा सनातन हिन्दू धर्म है| सनातन हिन्दू धर्म ही भारत की अस्मिता है| भारत का अस्तित्व ही सनातन धर्म के कारण है| सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो भारत भी नहीं बचेगा और यह सृष्टि भी नष्ट हो जाएगी| सनातन धर्म ही भारत है, और भारत ही सनातन धर्म है| निरंतर यह भाव रखें की आप स्वयं ही अखंड भारतवर्ष हैं और आप स्वयं ही सनातन धर्म हैं| पूरा भारत आपकी देह है जो विस्तृत होकर समस्त सृष्टि में फ़ैल गया है| आपकी हर साँस के साथ भारत का विस्तार हो रहा है, असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो रहा है, व भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हो रही है| आप का संकल्प परमात्मा का संकल्प है|
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एक व्यक्ति का दृढ़ संकल्प भी पूरी सृष्टि की दिशा बदल सकता है, फिर आप का संकल्प तो परमात्मा का संकल्प है| आप के शिव संकल्प के सम्मुख असत्य व अन्धकार की शक्तियों का नाश हो जाएगा| भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है| भारत एक ऐसे लोगों का समूह है जिनकी अभीप्सा और ह्रदय की तड़फ ऐसे लोगों की हैं जो जीवन में पूर्णता चाहते हैं, जो अपने नित्य जीवन में परमात्मा को व्यक्त करना चाहते हैं| भारत की आत्मा आध्यात्मिक है और एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति भारत का पुनरोत्थान करेगी|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ||
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०१२

Friday 6 April 2018

प्राचीन भारत में कृष्ण मृग निर्भय होकर घुमते थे ....

कृष्ण मृग यानी काले हिरण को प्राचीन भारत में पवित्र माना गया था| प्राचीन भारत में कृष्ण मृग निर्भय होकर घुमते थे, उनका शिकार प्रतिबंधित था| मनुस्मृति में कहा गया है कि जितनी भूमि पर स्वतन्त्रतापूर्वक घूमता हुआ कृष्ण मृग मिले वह यज्ञ की पुण्यभूमि है|
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मुझे एक तपस्वी साधू ने बताया था कि तपस्या करने करने के लिए वह स्थान सर्वश्रेष्ठ है जहाँ .......(१) कृष्ण मृग निर्भय होकर घुमते हों, (२) शमी वृक्ष यानी खेजडी के वृक्ष हों, (३) जहाँ निर्भय होकर मोर पक्षी रहते हों, और (४) कूर्म भूमि हो, यानि कछुए की पीठ के आकार की भूमि हो|
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राजस्थान का विश्नोई समाज तो खेजडी के वृक्षों और कृष्ण मृगों की रक्षा के लिए अपने प्राण भी न्योछावर करता आया है| उन विश्नोइयों के गाँव में जाकर सलमान खान फ़िल्मी हीरो ने कृष्ण मृग का शिकार किया| वह वहाँ से तुरंत भाग गया, यदि गाँव वालों के हाथ में आ जाता तो अपने जीवन में अगले दिन का प्रकाश नहीं देख पाता| धन्य है विश्नोई समाज जो हर प्रकार के प्रलोभन और भय के पश्चात भी इस मुकदमें में अडिग खडा रहा और बीस वर्ष तक प्रतीक्षा कर के भी सलमान खान को सजा दिलवाई|
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हरियाणा में नवाब पटौदी नाम का पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी भी काले हिरण का शिकार करते पकड़ा गया था| उसको भी सजा अवश्य मिलती पर उसको तो प्रकृति ने ही सजा दे दी| वह अधिक दिन जीवित नहीं रहा|

६ अप्रेल २०१८

हे दैवीय शक्तियो, हमारी सहायता करो .....

हे दैवीय शक्तियो, हमारी सहायता करो .....
हमारे राष्ट्र के भीतर व बाहर के सभी शत्रुओं का नाश करो| हमारा राष्ट्र आध्यात्म के शिखर पर आरुढ़ हो अपने परम वैभव को प्राप्त करे| यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि जो राष्ट्र, विश्व को मुक्ति का मार्ग दिखाता था वह आज अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है| हमें आवश्यकता है दैवीय शक्तियों के अवतरण की जो इस देश में व्याप्त असत्य और अन्धकार की राक्षसी व पैशाचिक शक्तियों को मिटा कर धर्म की पुनर्स्थापना कर सके| हे दैवीय शक्तियो, हमारे अस्तित्व को बचाने में हमारी सहायता करो| यह कार्य मनुष्य की क्षमता से परे है| दैवीय शक्तियाँ ही यह कार्य संपन्न करवा सकती हैं| हम उन दैवीय शक्तियों का आवाहन करते हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !
कृपा शंकर
५ अप्रेल २०१७

ब्राह्मण वर्ग की धर्म-रक्षा हेतु विशेष जिम्मेदारी बनती है .....

वर्तमान विकट परिस्थितियों में जब राष्ट्र और धर्म पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं, तब ब्राह्मण वर्ग की धर्म-रक्षा हेतु विशेष जिम्मेदारी बनती है| उन्हें निम्न कदम तो उठाने ही होंगे ......
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(१) वर्त्तमान समय की माँग के अनुसार उपजाति भेद समाप्त करना होगा| उपजातियों को समाप्त किये बिना ब्राह्मण कभी भी संगठित और सशक्त नहीं हो पायेंगे| ये कान्यकुब्ज, सरयूपारीण, गौड़, सारस्वत, अय्यर, अयंगार, नम्बूदरी, दाधीच, खंडल, पारीक, शाकद्वीपीय, सनाढ्य, भूमिहार जैसे सारे सैंकड़ों उपजातीय भेद समाप्त करने होंगे| ब्राह्मण ब्राह्मण है, ये उपजातियाँ नहीं| स्वयं संगठित होकर ही हम पूरे हिन्दू समाज को संगठित कर पायेंगे|
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(२) अपने धर्म को न छोड़ें| अपने धर्म का यथासंभव और यथाशक्ति पूर्णरूपेण पालन करें| संध्या आदि नित्य नैमेत्तिक कर्म पूरी निष्ठा से करें और अपनी संतानों को भी सिखाएँ| धर्म की शिक्षा अपनी संतानों को घर पर ही देने की व्यवस्था करें| संस्कृत भाषा का मूलभूत ज्ञान अपने बच्चों को अवश्य कराएँ| अपने बच्चों को हर तरह से अच्छी से अच्छी शिक्षा दें ताकि वे स्वावलंबी बनें|
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(३) आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हर दृष्टी से सशक्त बनें और सारे हिन्दू समाज में समरसता और एकता बनाए रखते हुए समाज का नेतृत्व करें| अपना आदर्श औरों के समक्ष रखें|
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शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ अप्रेल २०१८

समता का अधिकार हमें नहीं है .....

जब तक भारत में वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था है, समता का अधिकार हमें कभी भी नहीं मिल सकता| आरक्षण और तुष्टिकरण को बंद करने का साहस कोई भी राजनेता कभी भी नहीं कर पायेगा| हर राजनीतिक दल को सत्ता में रहने के लिए वोट चाहियें| आरक्षण और तुष्टिकरण के बिना भारत में वोट नहीं मिलते| राष्ट्रविरोधी शक्तियाँ शत्रु देशों के साथ मिलकर वर्गसंघर्ष और गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न कर देंगी| ये राष्ट्रविरोधी शक्तियाँ सत्ता पाने हेतु भारत पर विदेशी आक्रमण भी करवा सकती हैं|
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इस आरक्षण के कारण सबसे अधिक पीड़ित तो ब्राह्मण वर्ग है| सबसे अधिक अत्याचार ब्राह्मणों पर ही हुए हैं| सनातन हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए कुटिल अंग्रेज विद्वानों ने सबसे पहले ब्राह्मणों को नष्ट करने की योजना बनाई|
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प्रथम चरण में भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करने के लिए गुरुकुलों पर प्रतिबन्ध लगा दिया, और ब्राह्मणों का सब कुछ छीनकर इतना निर्धन बना दिया गया कि वे अपने बच्चों को शिक्षा देने में भी असमर्थ हो गए| फिर मेक्समूलर जैसे वेतनभोगी पादरियों की सहायता से हिन्दुओं के अनेक धर्मग्रंथों में, विशेषतः मनुस्मृति में इस तरह की मिलावट और परिवर्तन कर दिए गए कि भविष्य में हिन्दू सदा आपस में लड़ते ही रहें|
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भारत पर आर्य आक्रमण का झूठा इतिहास रचा गया और एक झूठे इतिहास और झूठी कहानियों की रचना की गयी जिनमें यह बताया गया कि ब्राह्मणों ने अन्य जातियों पर अत्याचार किये| अन्य जातियों की दुर्दशा का जिम्मेदार ब्राह्मणों को बताया गया| इस झूठे इतिहास से जातिगत वैमनस्य उत्पन्न किया गया|
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द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की परिस्थितियों के कारण ही अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा| जाते जाते वे भारत की जितनी हानि कर सकते थे उतनी हानि कर गए, और सत्ता भी एक फर्जी पंडित हिन्दू नामधारी को दे गये जो एक काला अँगरेज़ था| वह हिन्दू भी नहीं था| उसने सनातन हिन्दू धर्म का बहुत बड़ा अहित किया|
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अब सभी हिन्दुओं को संगठित होना पड़ेगा| विशेष कर के ब्राह्मणों को तो अपना उपजाति भेद मिटाकर अपने ब्राह्मणत्व को पुनर्जागृत कर शक्ति-संपन्न होना होगा| देश में कोई वर्ग-संघर्ष और गृह-युद्ध की परिस्थितियाँ उत्पन्न न हों, इसका ध्यान रखना होगा| भगवान निश्चित रूप से इस देश और धर्म की रक्षा करेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ अप्रेल २०१८

किसी भी देश की विदेश नीति उस देश के आर्थिक हितों पर आधारित होती है .....

April 7, 2017 
यह लेख आज के मध्य-पूर्व में हुए नवीनतम घटनाक्रम पर है .....
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किसी भी देश की विदेश नीति उस देश के आर्थिक हितों पर आधारित होती है| कोई भी देश अपनी नीतियाँ भावुकता में बह कर नहीं बनाता| सीरिया और इराक में गृहयुद्ध वास्तव में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच का युद्ध है| रूस और अमेरिका दोनों के आर्थिक हित वहाँ हैं अतः दोनों वहाँ डटे हुए हैं और डटे रहेंगे| एक बार तो दोनों में युद्ध की सी स्थिति आ गयी थी पर वे कभी आपस में लड़ेंगे नहीं, एक दूसरे को गीदड़ भभकी देकर भीतर ही भीतर समझौता कर लेंगे| ISIS सुन्नी मुसलमानों का संगठन था जिसने शियाओं का नरसंहार किया जिससे शिया और सुन्नियों में एक स्थायी दरार आ गयी है|
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ISIS को बनाया भी अमेरिका ने और समाप्त भी किया अमेरिका ने| अमेरिका ने ही उसे हथियार दिए और उकसाया भी| अमेरिका तुर्की के माध्यम से ISIS से बहुत सस्ती कीमत पर कच्चा तेल खरीदता था| जब तक ISIS शिया मुसलमानों को मार रहा था, अमेरिका ने उसे सहन किया, पर जब वह ईसाइयों को मारने लगा तो अमेरिका ने उसे समाप्त कर दिया|
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सीरिया में सुन्नी बहुमत है पर वहाँ का तानाशाह शासक असद एक शिया है जो सुन्नियों का नरसंहार कर रहा है| इराक में शिया बहुमत था| वहाँ के पूर्व सुन्नी तानाशाह सद्दाम हुसैन ने शियाओं का नरसंहार किया था| अब अमेरिका की सहायता से वहाँ शिया सरकार है जो सुन्नियों को दबाकर रखती है| इस की प्रतिक्रया में सुन्नी उग्रवाद पनपा|
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यमन में भी गृहयुद्ध शियाओं और सुन्नियों के मध्य है| यमन पर भी सऊदी अरब की वायु सेना आक्रमण करती रहती है| सऊदी अरब खुल कर यमन पर हमला ईरान के डर से नहीं कर पा रहा है| ईरान दुनिया में कहीं भी शियाओं को हारने नहीं देगा|
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कहते हैं कि सीरिया ने अपने विद्रोहियों पर रासायनिक हमला किया जिसके उत्तर में आज प्रातः अमेरिका ने सीरिया पर 60 से अधिक क्रूज मिसाइल दाग दिए| इस पर दुनिया भर के देशों से समर्थन और विरोध में प्रतिक्रियाएँ आने लगी हैं| अमेरिका की ओर से किये गये जवाबी हमले का जहाँ रूस ने विरोध किया है, वहीं इस्रायल ने उसका समर्थन किया है|
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इस युद्ध में होगा कुछ नहीं| जब तक अरब देशों में तेल है तब तक अमेरिका और रूस अरबों का खून चूसते रहेंगे| जब तेल समाप्त हो जाएगा तब अमेरिका अरबों का सारा धन जब्त कर लेगा जो अमेरिका की बैंकों में पड़ा है| और ये दोनों देश और इजराइल मिल कर अरबों का बहुत बुरा हाल कर देंगे|
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दो माह पूर्व सऊदी अरब .... यमन में जब शियाओं के विरुद्ध नरसंहार कर रहा था तब तो अमेरिका कुछ भी नहीं बोला क्योंकि सऊदी अरब अमेरिका का सहयोगी देश है| पर आज सीरिया में असद ने सुन्नियों पर तथाकथित रासायनिक आक्रमण किया तब अमेरिका ने खुल कर सीरिया पर हमला बोल दिया है क्योंकि सीरिया की सरकार रूस की मित्र है|
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यह सारा मामला महाशक्तियों के आर्थिक हितों का है, अतः इस पर हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए| वैसे शिया और सुन्नियों के आपसी संघर्षों से अरब देशों में इस्लाम का विघटन आरम्भ हो गया है| सीरिया के पड़ोसी देश ... इराक, इजराइल, जॉर्डन, लेबनान और तुर्की भी कभी आपस में शान्ति से नहीं रहे हैं|
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यहाँ यह भी बता देना चाहता हूँ कि भविष्य में ईरान और इजराइल में युद्ध अवश्यम्भावी है जिसे कोई टाल नहीं सकता| इसमें भयानक विनाश होगा पर युद्ध का परिणाम क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में ही है जिसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता| इति ||
ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०१७

राष्ट्र के वर्तमान दुखद परिदृश्य के लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी हैं ....

राष्ट्र के वर्तमान दुखद परिदृश्य के लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी हैं क्योंकि हम में से अनेक ने अब तक अपना मत ..... जाति, मजहब, शराब की बोतल, कुछ रुपयों, या अंधी भावुकता के वशीभूत होकर दिया है| जब तक प्रखर राष्ट्रवादी, निष्ठावान, कार्यकुशल व समर्पित शासक नहीं होंगे, हम ऐसे ही कष्ट पाते रहेंगे| हमारा निश्चयपूर्वक किया हुआ दृढ़ संकल्प राष्ट्र की रक्षा कर सकता है|
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हम धर्म और राष्ट्र रक्षा के लिए भी साधना करें| धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है| हमारा सर्वोपरि कर्त्तव्य है धर्म और राष्ट्र की रक्षा, जिसे हम परमात्मा को समर्पित होकर ही कर सकते हैं| हमें अपने साधन पूजन में भी अपने घर परिवार व स्वयं के साथ साथ --- ''राष्ट्र और धर्म के कल्याण के लिए'' भी संकल्प जोड़ना चाहिए| हमारी साधना से एक दैवीय शक्ति का प्रादुर्भाव होगा , जो '' राष्ट्रहित '' में कार्य करने के लिए हमारे ''बल और बुध्दि'' को प्रखर करेगी| आज हमें आवश्यकता है एक ब्रह्म तेज की | जो इस बात को समझते हैं वे समझते हैं, जो नहीं समझते हैं उन्हें समझाया भी नहीं जा सकता|
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यह कार्य हम स्वयं के लिए नहीं अपितु भगवान के लिए कर रहे हैं| मोक्ष की हमें व्यक्तिगत रूप से कोई आवश्यकता नहीं है| आत्मा तो नित्य मुक्त है, बंधन केवल भ्रम मात्र हैं| ज्ञान की गति के साथ साथ हमें भारत की आत्मा का भी विस्तार करना होगा| यह परिवर्तन बाहर से नहीं भीतर से करना होगा| वर्तमान में जब धर्म और राष्ट्र के अस्तित्व पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे है तब व्यक्तिगत कामना और व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु साधना उचित नहीं है| भारत की सभी समस्याओं का निदान हमारे भीतर है| एक बात ना भूलें कि भारत की आत्मा सनातन हिन्दू धर्म है| सनातन हिन्दू धर्म ही भारत की अस्मिता है| भारत का अस्तित्व ही सनातन धर्म के कारण है| सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो भारत भी नहीं बचेगा और यह सृष्टि भी नष्ट हो जाएगी| सनातन धर्म ही भारत है, और भारत ही सनातन धर्म है|
निरंतर यह भाव रखें कि हम स्वयं ही अखंड भारतवर्ष हैं और हम स्वयं ही सनातन धर्म हैं| पूरा भारत हमारी देह है जो विस्तृत होकर समस्त सृष्टि में फ़ैल गया है| हमारी हर साँस के साथ भारत का विस्तार हो रहा है, असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो रहा है, व भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हो रही है| हमारा संकल्प परमात्मा का संकल्प है| एक व्यक्ति का दृढ़ संकल्प भी पूरी सृष्टि की दिशा बदल सकता है, फिर हमारा संकल्प तो परमात्मा का संकल्प है| हमारे शिव संकल्प के सम्मुख असत्य व अन्धकार की शक्तियों का नाश हो जाएगा|
भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है| भारत एक ऐसे लोगों का समूह है जिनकी अभीप्सा और ह्रदय की तड़फ ऐसे लोगों की हैं जो जीवन में पूर्णता चाहते हैं, जो अपने नित्य जीवन में परमात्मा को व्यक्त करना चाहते हैं| भारत की आत्मा आध्यात्मिक है और एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति भारत का पुनरोत्थान करेगी| भगवान को कर्ता ही नहीं, दृष्टा और दृश्य भी बनाइये| 'कर्ता' तो जगन्माता स्वयं 'काली' है जो यज्ञ रूप में हमारे कर्मफल श्रीकृष्ण को अर्पित करती है| वे 'कर्ता' ही नहीं 'दृष्टा' और 'दृश्य' भी हैं| भगवन श्रीकृष्ण का अभय वचन है ----- "मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात् तरिष्यसि |"
अपना चित्त मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर लेगा| भगवान श्रीराम का भी अभय वचनं है ---
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं ममः ||"
एक बार भी जो मेरी शरण में आ जाता है उसको सब भूतों (यानि प्राणियों से) अभय प्रदान करना मेरा व्रत है|
हमें मार्गदर्शन मिलेगा और रक्षा भी होगी| भगवान हमारे साथ है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०१४

Tuesday 3 April 2018

विनाश के लक्षण .....

विनाश के लक्षण .....
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जहाँ अपूज्य व्यक्तियोंका पूजन होता है और पूज्य व्यक्तियों का तिरस्कार होता है, वहाँ ये तीन बातें अवश्य होती है ..... "अकाल, मृत्यु और भय" | स्कंदपुराण में कहा है ...
अपूज्य यत्र पूज्यन्ते पूज्यपूजाव्यतिक्रमः |
त्रीणि तत्र प्रजायन्ते दुर्भिक्षं मरणं भयम् || (स्कन्दपुराण, मा॰के॰३/४८)
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प्राचीन भारत के राजा बड़े गर्व से कहते थे कि ....."मेरे राज्यमें न तो कोई चोर है, न कोई कृपण है, न कोई मदिरा पीनेवाला है, न कोई अनाहिताग्नि (अग्निहोत्र न करनेवाला) है, न कोई अविद्वान् है और न कोई परस्त्रीगामी ही है, फिर कुलटा स्त्री (वेश्या) तो होगी ही कैसे ?’
न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः |
नानाहिताग्निर्नाविद्वान्न स्वैरी स्वैरिणी कुतः || (छान्दोग्योपनिषद ५/११/५)
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जिस गति से अधर्म बढ़ रहा है, वह दिखाता है कि विनाशकाल अब दूर नहीं है|
भगवान सब की रक्षा करें| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अप्रेल २०१८

Monday 2 April 2018

जो "आत्माराम" है, वह सब कर्तव्यों से परे है, उसका संसार में कोई कर्तव्य नहीं है .....

जो "आत्माराम" है, वह सब कर्तव्यों से परे है, उसका संसार में कोई कर्तव्य नहीं है .....
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नारद भक्ति सूत्र के प्रथम अध्याय का छठा सूत्र भक्त की तीन अवस्थाओं के बारे में बताता है ..... "यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति|" यानि उस परम प्रेम रूपी परमात्मा को जानकर यानि पाकर भक्त प्रेमी पहिले तो मत्त हो जाता है, फिर स्तब्ध हो जाता है और अंत में आत्माराम हो जाता है, यानि आत्मा में रमण करने लगता है|
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः | आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते ||१३:१७||"
अर्थात् जो मनुष्य आत्मा में ही रमने वाला आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो उसके लिये कोई कर्तव्य नहीं रहता|
ऐसा व्यक्ति जीवनमुक्त होता है| उसमें कोई कर्ताभाव या कोई कामना नहीं होती| आत्मवेत्ता के लिये कोई कर्तव्य नही बचता, वह सब कर्मों से परे है|
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गीता में ही भगवान् कहते हैं .....
"नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन | न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः||३:१८||"
अर्थात् उस महापुरुष के लिये इस संसार में न तो कर्तव्य-कर्म करने की आवश्यकता रह जाती है और न ही कर्म को न करने का कोई कारण ही रहता है तथा उसे समस्त प्राणियों में से किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नही रहती है|
सार यह है कि सबसे अच्छी गति आत्माराम की है| हम आत्माराम बनें, यानि आत्मा में ही रमण करें| यही जीवनमुक्त की स्थिति है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अप्रेल २०१८

जातिवाद और जातीय वर्गसंघर्ष को बढ़ावा देने वाले लोग भारत के सबसे बड़े शत्रु हैं....


जातिवाद और जातीय वर्गसंघर्ष को बढ़ावा देने वाले लोग भारत के सबसे बड़े शत्रु हैं....
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इस समय जातिवाद और जातीय वर्गसंघर्ष को बढ़ावा देने वाले लोग भारत के सबसे बड़े शत्रु हैं| सत्ता प्राप्ति के लिए जातिवाद उनके लिए एक माध्यम है| ऐसे लोग अधिक समय तक टिकेंगे नहीं| वर्त्तमान कालखंड में ये शीघ्र स्वयं ही आपस में लड़कर नष्ट हो जायेंगे|
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विदेशी ईसाई मिशनरियाँ भी भारत की सबसे बड़ी शत्रु हैं| वे योजनाबद्ध तरीके से पिछली कई शताब्दियों से भारत की अस्मिता को नष्ट करने का प्रयास कर रही हैं| मध्य एशिया और अरब से आये हमलावरों ने तो सिर्फ मारकाट और विध्वंश ही किया पर सनातन धर्म की जड़ों को खोदने का काम विदेशी मिशनरियों ने किया है, और आज भी कर रही हैं|
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भारत की सबसे बड़ी संपत्ति भारत का आध्यात्म है जो वामपंथियों और जातिवादियों को कभी भी समझ में नहीं आ सकता| कुशिक्षा के कारण भारत की युवा पीढी भी आध्यात्म से दूर हुई है| पर वर्त्तमान सभ्यता की विफलता उन्हें एक न एक दिन बापस आध्यात्म की ओर मोड़ देगी|
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वास्तविक विकास तो आत्मा का विकास है, जो निष्ठापूर्ण, आध्यात्मिक और चरित्रवान लोगों के द्वारा व्यक्त होता है| यह जातिवादियों के दिमाग में नहीं घुस सकता| जितनी भौतिकता बढ़ेगी उतना ही आसुरी भाव भी बढेगा| आसुरी समाजों का अस्तित्व प्रकृति अधिक समय तक सहन नहीं कर सकती| ऐसे लोग भी आपस में ही लड़कर स्वयं को नष्ट कर देंगे|
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समाजवाद, साम्यवाद, जातिवाद और तुष्टिकरण .... ये सब विफल व्यवस्थाएँ हैं| इन्होनें विनाश ही विनाश किया है| भारत की राजनीतिक व्यवस्था भी एक ढोंग है| एक तरफ तो कहते हैं कि देश धर्मनिरपेक्ष है, दूसरी ओर अल्पसंख्यकवाद को बढावा देकर अल्पसंख्यक आयोग आदि बना रखे हैं| एक तरफ तो कहते हैं कि देश में समानता है, दूसरी ओर जातिगत आरक्षण है| जातिगत आरक्षण तो इतनी गहरी जड़ें जमा चुका है जो कभी समाप्त हो ही नहीं सकता| इसे तो कोई सैनिक तानाशाही ही समाप्त कर सकती है|
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सभी का कल्याण हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ अप्रेल २०१८