Monday 16 August 2021

भोजन वो ही करेगा जिसे भूख लगी हो ---

 

भोजन वो ही करेगा जिसे भूख लगी हो। भूख लगने पर भोजन भी स्वयं को ही करना पड़ेगा। दूसरों के द्वारा किए गए भोजन से स्वाद का पता नहीं चलता, पेट भी नहीं भरता, और क्षुधा भी शांत नहीं होती। ।
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आत्मा की परमात्मा के लिए जब अभीप्सा जागृत होती है, तब अभीप्सा की शांति उपासना से होती है, और उपासना बिना श्रद्धा, विश्वास, भक्ति और वैराग्य के नहीं होती। यह सत्य है कि भक्ति ही माता है, जिसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य हैं।
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"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥१८:७८॥"
जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं, और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है, वहीं पर -- श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है॥
१६ अगस्त २०२१

अब हम भारत का स्वतन्त्रता दिवस २१ अक्तूबर को या ३० दिसंबर को क्यों नहीं मना सकते? ---

 

स्वतन्त्रता दिवस --- अब हम भारत का स्वतन्त्रता दिवस २१ अक्तूबर को या ३० दिसंबर को क्यों नहीं मना सकते? ---
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२१ अक्तूबर १९४३ को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी थी, जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मंचूरिया और आयरलैंड ने मान्यता दे दी थी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप समूह इस अस्थायी सरकार को दे दिये थे। सुभाष बोस उन द्वीपों में गये, और उनका नया नामकरण किया। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया।
३० दिसंबर १९४३ को पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान में पहली बार स्वतन्त्र भारत का ध्वज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा फहराया गया था।
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इससे पहले प्रथम विश्व युद्ध के बाद अफ़ग़ानिस्तान में महान् क्रान्तिकारी राजा महेन्द्र प्रताप ने आज़ाद हिन्द सरकार और फ़ौज बनायी थी जिसमें ६००० सैनिक थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इटली में क्रान्तिकारी सरदार अजीत सिंह ने 'आज़ाद हिन्द लश्कर' बनाई तथा 'आज़ाद हिन्द रेडियो' का संचालन किया।
जापान में रासबिहारी बोस ने भी आज़ाद हिन्द फ़ौज बनाकर उसका जनरल कैप्टेन मोहन सिंह को बनाया था|
इन सभी का लक्ष्य भारत को अंग्रेज़ों के चंगुल से सैन्य बल द्वारा मुक्त कराना था।
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१५ अगस्त १९४७ तो भारत का विभाजन दिवस था। १५ अगस्त १९४७ का दिन भारत के लिए एक कलंक था, क्योंकि उस दिन भारत के दो टुकड़े हुए, लाखों लोगों की हत्या हुई, लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार हुए और करोड़ों लोग विस्थापित हुए। इस दिन लाशों से भरी हुई कई ट्रेन पाकिस्तान से आईं जिन पर खून से लिखा था .... Gift to India from Pakistan। १९७६ में छपी पुस्तक Freedom at midnight में उनके चित्र भी दिये दिये हुए हैं। वह कलंक का दिन भारत का स्वतन्त्रता दिवस नहीं हो सकता। यह विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक नरसंहार था।
निश्चित रूप से हमें यह भी नहीं पता कि भारत में सता का हस्तांतरण हुआ था या पूर्ण स्वतन्त्रता मिली थी
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१५ अगस्त को प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी और महान योगी श्रीअरविंद का जन्म दिन था। उनका जन्म १५ अगस्त १८७२ को हुआ था। उन्होने भगवान श्रीकृष्ण की आराधना कर उनका साक्षात्कार किया, और भारत की स्वतन्त्रता का वरदान मांगा। ३० मई १९०९ को उत्तरपाड़ा (बंगाल) में "धर्म रक्षिणी सभा" के वार्षिक अधिवेशन में उनके द्वारा दिये गए भाषण को प्रत्येक भारतीय द्वारा पढ़ना चाहिए। यह एक सर्वश्रेष्ठ लेख है, जो मैंने अपने पूरे जीवनकाल में पढ़ा है। इसमें उन्होंने अपने जेल-जीवन का आध्यात्मिक अनुभव और सच्ची राष्ट्रीयता का संदेश दिया। इसमें उन्होंने बताया है कि सच्चा हिंदू धर्म, सच्चा सनातन धर्म क्या है और आज के संसार को उसकी क्यों आवश्यकता है।
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भारत विभाजन की प्रक्रिया में अपना सब कुछ छोडकर केवल धर्म की रक्षा के लिये खंडित भारत की शरण में आकर उपेक्षा का जीवनयापन किये हुए विस्थापित हिन्दुओ का शतशः आभार ! अभिनंदन ! धन्यवाद ! जिन हिन्दुओ का सब कुछ लूटा गया, जो नरसंहार व अमानवीय अत्याचारों में मारे गये, जिन्होंने अपने प्राण दे दिये पर धर्मांतरण स्वीकार नहीं किया उन बलिदानी वीर परिवारों का आज विस्मरण नहीं करें। जीवन के अंत तक आप सब का वंदन करेंगे। अखंड भारत बना के रहेंगे !!
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तेरा गौरव अमर रहे माँ हम दिन चार रहें न रहें !! भारत माता की जय !!
वन्दे मातरं ! जय हिन्द ! जय भारत !
कृपा शंकर
१५ अगस्त २०२१

हमारा लोभ और हमारी अधोगामी काम-वासनायें ही शैतान हैं ---

 

"शैतान" हमें अब और विफल नहीं करे। हमें विजयी होना है। हमारी विजय "भारत" और "धर्म" की विजय होगी।
शैतान कौन है? --
हमारा लोभ और हमारी अधोगामी काम-वासनायें ही शैतान हैं। यह शैतान ही हमें परमात्मा से विमुख करता है। शैतान कोई राक्षस या बाहरी शक्ति नहीं, हमारे मन का असीम लोभ और अतृप्त वासनायें हैं। अतृप्त रहने पर वे क्रोध को जन्म देती हैं। क्रोध बुद्धि का विनाश कर देता है, और मनुष्य का पतन हो जाता है। ये ही मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं।
जिन लोगों का उद्देश्य ही अपनी कामवासना और लोभ को तृप्त करना है, वे शैतान के अनुयायी हैं। आज का अधिकांश विश्व इन्हीं से भरा हुआ है।
इन से बचने का एक ही मार्ग है, और वह है साधना द्वारा स्वयं को देह की चेतना से पृथक करना। यह अति गंभीर विषय है जिसे गुरुकृपा से ही समझा जा सकता है। सही स्वरुप का अनुसंधान और दैवीय शक्तियों का विकास हमें करना ही पड़ेगा जिसमें कोई प्रमाद ना हो। यह प्रमाद ही मृत्यु है जो हमें इस शैतान के शिकंजे में फँसा देता है। ॐ तत्सत् !
१४ अगस्त २०२१

भारतवर्ष स्वयं में है, इसे स्वयं में पहचानो ---

 

भारत एक अधोमुख जागृत शक्ति त्रिकोण है। कन्याकुमारी -- मूलाधार चक्र है। इसी मूलाधार से इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियाँ प्रस्फुटित होती हैं। कैलाश पर्वत सहस्त्रार है। "भारतभूमि -- आसेतु हिमालय पर्यन्त एक 'सिद्ध कन्या' ही नहीं साक्षात माता है।" इसे कोई भूमि का टुकड़ा ही न समझें।
भारत अखंड होगा तो सैनिक शक्ति के बल पर नहीं, अपितु एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति के बल पर होगा। वह आध्यात्मिक शक्ति हमें स्वयं को अपनी आध्यात्मिक साधना द्वारा जागृत करनी होगी। हमारे निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो। ॐ ॐ ॐ !!
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ॐ अहं भारतोऽस्मि ---
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"मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है| मैं भारतवर्ष, समस्त भारतवर्ष हूँ, भारत-भूमि मेरा अपना शरीर है। कन्याकुमारी मेरा पाँव है, हिमालय मेरा सिर है, मेरे बालों में श्रीगंगा जी बहती हैं, मेरे सिर से सिन्धु और ब्रह्मपुत्र निकलती हैं, विन्ध्याचल मेरा कमरबन्द है, कुरुमण्डल मेरी दाहिनी और मालाबार मेरी बाईं जंघाएँ है। मैं समस्त भारतवर्ष हूँ, इसकी पूर्व और पश्चिम दिशाएँ मेरी भुजाएँ हैं, और मनुष्य जाति को आलिंगन करने के लिए मैं उन भुजाओं को सीधा फैलाता हूँ। आहा ! मेरे शरीर का ऐसा ढाँचा है ! यह सीधा खड़ा है और अनन्त आकाश की ओर दृष्टि दौड़ा रहा है। परन्तु मेरी वास्तविक आत्मा सारे भारतवर्ष की आत्मा है। जब मैं चलता हूँ तो अनुभव करता हूँ कि सारा भारतवर्ष चल रहा है। जब मैं बोलता हूँ तो मैं भान करता हूँ कि यह भारतवर्ष बोल रहा है। जब मैं श्वास लेता हूँ, तो अनुभव करता हूँ कि भारतवर्ष श्वास ले रहा है। मैं भारतवर्ष हूँ, मैं शंकर हूँ, मैं शिव हूँ और मैं सत्य हूँ|" ---
ॐ ॐ ॐ ||
---- स्वामी रामतीर्थ ---
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भारतवर्ष स्वयं में है| इसे स्वयं में पहचानो| ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !!
मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है| ॐ ॐ ॐ ||
 
१४अगस्त २०२१
 

"विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" और "अखंड भारत संकल्प दिवस" ---

 

आज "विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" और "अखंड भारत संकल्प दिवस" भी है। अखंड भारत कोई कल्पना नहीं, हमारा विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प है, जिसे फलीभूत करने को प्रकृति की प्रत्येक शक्ति बाध्य होगी। हमारी श्रद्धा, विश्वास और आस्था कभी विफल नहीं हो सकती। कोई हमारे विचारों से सहमत हो या नहीं हो, हम अपने विचारों पर दृढ़ हैं।
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श्रीअरविन्द के शब्दों में भारत एक भूमि का टुकड़ा, मिटटी, पहाड़, और नदी नाले नहीं है। न ही इस देश के वासियों का सामूहिक नाम भारत है। भारत एक जीवंत सत्ता है। भारत हमारे लिए साक्षात माता है जो मानव रूप में भी प्रकट हो सकती है। भारत का अखंड होना उसकी नियति है। वर्तमान में भारत के अनेक टुकड़े हो गए हैं, जिनमें से सबसे बड़ा टुकड़ा India है, फिर बाकि अनेक। लेकिन भारत की आत्मा एक है, अतः भारत का अखंड होना निश्चित है।
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भारत के पतन के जो भी कारण रहे हों, यहाँ पर उनकी समीक्षा नहीं करेंगे, क्योंकि भूतकाल बापस नहीं आ सकता। हमारी आध्यात्मिक धरोहर हमें निरंतर प्रेरणा देगी, और हम भारत के प्राचीन वैभव को दुबारा प्राप्त करेंगे। हम हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली बन कर, अपने संकल्प को साकार करेंगे। केवल भारत की आत्मा ही इस देश को एक कर सकती है, जिसके साथ हम एक हैं। भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बैठ रही है, और अपने भीतर और बाहर छाए असत्य के अंधकार को दूर कर अपने शत्रुओं का विनाश कर रही है। भारत अखंड होगा, धर्म की पुनर्स्थापना और वैश्वीकरण भी होगा।
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पुनश्च:
भारत ही सत्य सनातन धर्म है, और सत्य सनातन धर्म ही भारत है। भारत की आत्मा ही धर्म है। धर्म के बिना भारत नहीं है, और भारत के बिना धर्म नहीं है। धर्म की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं ---
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत| अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्||४:७||"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्| धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे||४:८||"
"हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ||"
"साधु पुरुषों के रक्षण, दुष्कृत्य करने वालों के नाश, तथा धर्म संस्थापना के लिये, मैं प्रत्येक युग में प्रगट होता हूँ"
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भारत की मेरी अवधारणा है -- जो विभा में रत है, वह भारत है| विभा कहते हैं -- ज्योति की उन अति सूक्ष्म रेखाओं के प्रवाह को जो प्रज्वलित पदार्थों में से निकलकर चारों ओर फैलती हैं| भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है जो निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करती है| भारत की चेतना सारी सृष्टि को परमात्मा की चेतना में रत कर रही है| परमात्मा का प्रकाश यहाँ से चारों ओर फैल रहा है| भारत अखंड हो और असत्य का अंधकार यहाँ से सदा के लिए दूर हो| परमात्मा से हम यह प्रार्थना करते हैं की वे भारत भूमि में फिर से अवतरित हों|
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१४ अगस्त का दिन शोक का दिन है, मातम का, इस अपराध बोध का कि हमने इस दिन पाकिस्तान नाम के एक राक्षस को जन्म दिया था| इसके लिए मनुष्यता का इतिहास भारत के तत्कालीन राजनीतिक-तंत्र को कभी क्षमा नहीं करेगा|
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भारत को स्वतंत्रता (सत्ता-हस्तांतरण) मिली भी तो किस मूल्य पर? भारत माता की दोनों भुजाएँ पकिस्तान के रूप में काट दी गईं, लाखों परिवार विस्थापित हुए, लाखों निर्दोष लोगों की हत्याएँ हुईं, लाखों निर्दोष असहाय महिलाओं का बलात्कार हुआ, और लाखों असहाय लोगों का बलात् धर्मांतरण हुआ| क्या इन सब बातों को भुलाया जा सकता है? यह विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक नरसंहार था|
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भारत अखंड होगा तो सैनिक शक्ति के बल पर नहीं, अपितु एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति के बल पर होगा। वह आध्यात्मिक शक्ति हमें स्वयं को अपनी आध्यात्मिक साधना द्वारा जागृत करनी होगी। हमारे निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो। वन्दे मातरम्॥ भारत माता की जय॥
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वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।
 
१४ अगस्त २०२१

आध्यात्मिक प्रगति के लिए एक सरलतम उपाय ---

 

आध्यात्मिक प्रगति के लिए एक सरलतम उपाय ---
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संत-महात्माओं के सत्संग से ज्ञात एक सरलतम उपाय है, जिस से सरल और कुछ हो ही नहीं सकता। लेकिन इसके लिए अनुकूल वातावरण और दृढ़ संकल्प/इच्छा शक्ति चाहिए। रात्रि का भोजन सूर्यास्त से पहिले ही कर लें, और न करें तो और भी अधिक अच्छा है। रात्रि को देरी से ना सोकर जल्दी सोएँ। सोने से पूर्व भगवान का जप, प्राणायाम, यथासंभव गहनतम ध्यान, व भजन आदि कर के एक दिव्य चेतना में वैसे ही जगन्माता की गोद में सोएँ, जैसे एक शिशु अपनी माँ की गोद में सोता है।
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आपका बिस्तर ही भगवती की गोद है, और आपका तकिया ही उनका वरद् हस्त। दूसरे दिन जब आप प्रातः उठेंगे तो ईश्वर की चेतना में वैसे ही उठेंगे। उठते ही पुनश्च भगवान का ध्यान करें। दिन भर भगवान को अपनी स्मृति में बनाए रखें। स्वयं निमित्त मात्र बनकर उन्हें ही सारा काम करने दें।
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आपका जीवन बहुत अच्छा बीतेगा, आप निहाल हो जाओगे। जो आपको देखेगा वह, और जिस पर आपकी दृष्टि पड़ेगी, वह भी निहाल हो जाएगा। आप इस पृथ्वी पर एक चलते-फिरते देवता बन जाओगे। आप जहाँ भी जाएँगे, वह भूमि पवित्र हो जाएगी। आप की सात पीढ़ियाँ सद्गति को प्राप्त होंगी।
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शयन से पूर्व भगवान का गहनतम ध्यान पूर्णतः आवश्यक है। चाहे आपकी देह टूट कर गिर जाए, चाहे मृत्यु आ जाए, लेकिन प्रभु का ध्यान भजन किये बिना न सोएँ। दुसरे दिन का आरंम्भ भी भगवन के ध्यान, चिंतन या भजन से ही करें। पूरे दिन अपनी स्मृति में भगवान को बनाये रखें। यदि भूल जाएँ तो याद आते ही उनका स्मरण पुनश्च आरंभ कर दें। निज जीवन का केंद्र बिंदु भगवान को बनाएँ।
अपना पूरा प्रेम प्रभु को दें| यही है आध्यात्मिक प्रगति का रहस्य।
धन्यवाद ! ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ अगस्त २०२१

क्या यह देश अब केवल आरक्षित वर्ग का ही है?

 

क्या यह देश अब केवल आरक्षित वर्ग का ही है? कितने सौ वर्षों तक इसे ऐसा रखने की योजना है? ---
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पिछले ७२ वर्षों से चली आ रही वोट-आधारित, सत्ता-केन्द्रित, पिछड़ावादी और अन्य-पिछड़ावादी जातिगत राजनीति में अनारक्षित वर्गों का अब कोई महत्व नहीं रहा है। वे इसके लिए तैयार रहें, और अपने बच्चों का भविष्य सुनिश्चित करने के उपाय सोचते रहें। उनका कोई भविष्य नहीं है।
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अपने आत्मबल को बढ़ाएँ, हर दृष्टिकोण से सक्षम, शक्तिशाली और संगठित रहें।
समान नागरिक संहिता, समान धार्मिक स्वतन्त्रता, समान शिक्षा, समान नियम-कानून, और जनसंख्या-नियंत्रण के प्रावधानों के लिए सरकार पर दबाव बनाए रखें। यही निज रक्षा का उपाय बचा है।
१२ अगस्त २०२१

हमारा एकमात्र सम्बन्ध परमात्मा से है, अन्य सब मायावी आवरण हैं ---

 

हमारा एकमात्र सम्बन्ध परमात्मा से है, अन्य सब मायावी आवरण हैं ---
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परमात्मा से जुड़कर हम सम्पूर्ण सृष्टि से जुड़ जाते हैं। परमात्मा की अखण्डता, अनंतता और पूर्णता पर ध्यान से चैतन्य में आत्मस्वरूप की अनुभूति होती है। उस आत्मानुभव की निरंतरता ही मुक्ति है, वही जीवन है और उससे अन्यत्र सब कुछ मृत्यु है। आत्मानुभव ही दिव्य विलक्षण आनंद है। एक बार उस आनंद की अनुभूति हो जाने के पश्चात उस से वियोग ही सबसे बड़ी पीड़ा और मृत्यु है। उस आत्मानुभव का स्वभाव हो जाना हमारे मनुष्य जीवन की सार्थकता है।
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बाहरी संसार का एक प्रबल नकारात्मक आकर्षण है, जो हमारी चेतना को अधोगामी बनाता है। इस अधोगामी चुम्बकत्व से रक्षा सिर्फ भगवान के निरंतर स्मरण द्वारा ही हो सकता है। जिन लोगों की नकारात्मक चेतना हमारे मार्ग में बाधक है, उन लोगों का साथ विष की तरह तुरंत त्याग दें। कौन क्या सोचता है, इसकी बिलकुल भी परवाह न करें। किसी भी नकारात्मक टिप्पणी पर ध्यान न दें, उसे अपनी स्मृति से निकाल दें। अपना लक्ष्य सदा सामने रहे। सदा निष्ठावान और अपने ध्येय के प्रति अडिग रहें। वासनात्मक विचार उठें तो सावधान हो जाएँ, और अपनी चेतना को सूक्ष्म प्राणायाम द्वारा ऊर्ध्वमुखी कर लें। सदा प्रसन्न रहें। शुभ कामनाएँ॥
ॐ तत्सत्॥ गुरु ॐ॥ जय गुरु॥
कृपा शंकर
१२ अगस्त २०२१

स्वधर्म और परधर्म में क्या अंतर है? ---

 

स्वधर्म और परधर्म में क्या अंतर है? --- गीता में भगवान कहते हैं कि स्वधर्म में निधन श्रेयस्कर है, और परधर्म में भयावह है। अतः विचार करते हैं कि स्वधर्म और परधर्म क्या है।
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हम यह देह नहीं, एक शाश्वत आत्मा हैं। आत्मा का धर्म है - भगवान की प्राप्ति। भगवान की भक्ति जो भगवान की ओर ले जाए वह ही 'स्वधर्म' है। भगवान की भक्ति करते करते यानि भगवान को स्मरण करते करते मर जाना ही स्वधर्म में निधन है।
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काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर्य, चुगली, परनिंदा, परस्त्री व पराये धन की कामना 'परधर्म' है, जो मनुष्य को परमात्मा से दूर ले जाता है। भगवान से विमुख होना ही 'परधर्म' है।
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अतः चुनाव आपका है कि आप स्वधर्म में मरेंगे या परधर्म में।
१२ अगस्त २०२१

सनातन धर्म और भारत की रक्षा होगी, वे विजयी बन कर उभरेंगे ---

 

सनातन धर्म और भारत की रक्षा होगी, वे विजयी बन कर उभरेंगे ---
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जब धर्म और राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में हो, तब व्यक्तिगत मोक्ष की कामना पाप है। आध्यात्म -- सुख-भोग में नहीं है। स्वर्ग और मोक्ष-प्राप्ति हेतु की गई साधना में मेरी दृष्टि से कुछ भी आध्यात्मिक नहीं है, केवल स्वार्थ है। योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जो साक्षात परमब्रह्म हैं, उन्होने बंदीगृह में ही जन्म क्यों लिया? महलों में जन्म लेने से उन्हें कौन रोक सकता था? वे तो स्वयं नारायण थे। वे एक संदेश देना चाहते थे, जो उन्होने सफलतापूर्वक दिया।
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हमारे अस्तित्व में परमात्मा होंगे तो उनकी शक्ति से धर्म व राष्ट्र की रक्षा अवश्य होगी। जब धर्म नहीं रहेगा तो राष्ट्र भी नहीं रहेगा, और राष्ट्र नहीं रहेगा तो धर्म भी नहीं बचेगा। अपना सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा को समर्पित करें, उन्हें जीवन में अवतरित करें, उन्हें कर्ता बनाएँ और अपने माध्यम से उन्हें कार्य करने दें। यही सबसे बड़ी सेवा है जो हम समष्टि की कर सकते हैं। फिर परमात्मा ही हमारे माध्यम से कार्य करेंगे। हम तो उन के उपकरण मात्र बनें, यही हमारा धर्म है। जीवन में ईश्वर का साक्षात्कार ही सत्य सनातन धर्म है, जिस की सर्वाधिक अभिव्यक्ति भारत में हुई है।
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भारत के उत्थान का अर्थ है -- सनातन धर्म का उत्थान। भारत की महानता का अर्थ है -- सनातन धर्म की महानता। सनातन धर्म सत्य है क्योंकि यह अपने उपासकों का प्रत्यक्ष साक्षात्कार परमात्मा से कराता है। सत्य का वास्तविक आग्रह यही धर्म करता है। सत्य ही परमात्मा है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अगस्त २०२१

मैं एक अत्यंत कठिन मार्ग पर चल रहा हूँ, जिस पर चलने की क्षमता मुझमें नहीं है ---

 

मैं एक अत्यंत कठिन मार्ग पर चल रहा हूँ, जिस पर चलने की क्षमता मुझमें नहीं है। इसलिए भगवान को ही कर्ता बनाकर उनका हाथ थाम रखा है।आगे-पीछे, दायें-बायें क्या है? मुझे नहीं पता, उधर देख ही नहीं रहा। भगवान पर पूरी आस्था है, इसलिए श्रद्धा और विश्वास से स्वयं को समर्पित कर, उनकी ओर ही देख रहा हूँ। और कुछ जानना भी नहीं चाहता। यह शरीर रहे या न रहे, इसकी भी परवाह नहीं रही है।
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मेरा एकमात्र संबंध और व्यवहार सिर्फ परमात्मा से है, अन्य सब संबंध -- झूठ, छल, कपट और लोभ पर ही आधारित होते हैं, इसलिए उन्हें छोड़ने का प्रयास कर रहा हूँ। मेरे में लाखों कमियाँ होंगी, वे सब भगवान को ही बापस लौटा रहा हूँ। सारे गुण-अवगुण उन्हीं के हैं। सारी संतुष्टि भी सिर्फ परमात्मा में है।
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मैं किसी उन्माद से नहीं, अपने हृदय के पूर्ण प्रेम से ही स्वयं को व्यक्त कर रहा हूँ।
शिव शिव शिव शिव शिव !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
११ अगस्त २०२१

सब कुछ होते हुए भी जीवन में एक शुन्यता और पीड़ा क्यों है? ---

 

(संशोधित व पुनर्प्रस्तुत)
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हमारे जीवन में एक अंतहीन भागदौड़, खालीपन, तनाव, असुरक्षा, अशांति, असंतुष्टि और असत्य का अंधकार क्यों छा जाता है? हमारे जीवन में एक अंतहीन खोखलापन क्यों है? हमारी सांसारिक उपलब्धियाँ हीं हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तनाव और कष्टों का कारण क्यों बन जाती हैं? इतना पारिवारिक कलह, तनाव, लड़ाई-झगड़े, मिथ्या आरोप-प्रत्यारोप, अवसादग्रस्तता और आत्महत्या,आदि आदि !! -- लगता है सारा सामाजिक ढाँचा ही खोखला हो गया है।
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सब कुछ होते हुए भी जीवन में एक शुन्यता और पीड़ा क्यों है? यह पीड़ा तभी होती है जब हम अपनी आत्मा यानि स्वयं को भूल कर इस संसार में सुख ढूंढते हैं। अन्य कोई कारण नहीं है। यह मेरा अपना निजी अनुभव है। जब मैं स्वयं से दूर हो जाता हूँ, तब सारे नर्कों की घोर पीड़ायें मुझ पर टूट पड़ती हैं।
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🌹सुख की अनुभूति मुझे तो सिर्फ अपने आराध्य परमशिव के ध्यान में ही मिलती हैं, अन्यत्र कहीं भी नहीं।
मेरे आराध्य परमशिव -- सर्वव्यापी, अनंत, पूर्ण, परम कल्याणकारी और परम चैतन्य हैं। वे मेरे कूटस्थ हृदय में नित्य निरंतर बिराजमान हैं।
सृष्टि के सर्जन-विसर्जन की क्रिया उन का नृत्य है,
उनके माथे पर चन्द्रमा -- कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का,
उनके गले में सर्प -- कुण्डलिनी महाशक्ति का,
उन की दिगंबरता -- उनकी सर्वव्यापकता का,
उन की देह पर भस्म -- उनके वैराग्य का,
उन के हाथ में त्रिशूल -- त्रिगुणात्मक शक्तियों के स्वामी होने का,
उन के गले में विष -- स्वयं के अमृतमय होने का,
उन के माथे पर गंगा जी -- समस्त ज्ञान का प्रतीक है, जो निरंतर प्रवाहित हो रही है। अपनी जटाओं पर उन्होंने सारी सृष्टि का भार ले रखा है| उन के नयनों से अग्निज्योति की छटाएँ निकल रही हैं। वे मृगचर्मधारी और समस्त ज्ञान के स्त्रोत हैं। वे ही मेरे परात्पर परमेष्ठी सदगुरु हैं। मेरी चित्तवृत्तियाँ उन्हीं को समर्पित हैं।
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हे मेरे कुटिल मन, ऐसे भगवान परमशिव को छोड़कर तूँ क्यों संसार के पीछे भाग रहा है? वहाँ तुझे कुछ भी नहीं मिलेगा। तूँ उन परमशिव का निरंतर स्मरण और ध्यान कर। इस आयु में तुझे अन्य किसी कर्म की क्या आवश्यकता है? ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
३ अगस्त २०१७

हम ब्रह्ममय बनें, हम स्वयम् ब्रह्म बनें ---

 

हम ब्रह्ममय बनें, हम स्वयम् ब्रह्म बनें---
अब स्वयं को परमात्मा में व्यक्त करने की, या परमात्मा को स्वयं में व्यक्त करने (बात एक ही है) की ही एक प्रचंड अग्नि हृदय में जल रही है| यही अभीप्सा है, यही परमप्रेम है, और यही सब कुछ है| अपनी सम्पूर्ण पृथकता का बोध परमात्मा को समर्पित है|
परमात्मा की बड़ी कृपा है कि किसी भी तरह का कोई संशय या शंका मुझे नहीं है| पूरा मार्गदर्शन प्राप्त है| इस समय किसी से कोई शिकायत नहीं है, कोई निंदा या आलोचना करने को भी कुछ नहीं है| प्रशंसा, निंदा, आलोचना या शिकायत करनी होगी तो परमात्मा से परमात्मा की ही करेंगे| सभी को मेरी मंगलमय शुभ कामनाएँ और नमन|
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||१८:७८||"
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ !!
१६ अगस्त २०२०