"प्राण तत्व" .....
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प्राण-तत्व एक ऐसा विषय है जो अनुभूति जन्य है, बुद्धि से इसे न तो समझाया जा सकता है और न ही यह समझ में आ सकता है| प्राचीन भारत में ऋषियों से जब प्राण तत्व पर प्रश्न पूछा जाता तो वे प्रश्नकर्ता को यही कहते कि पहिले तो कम से कम एक वर्ष तक मेरे आश्रम में मेरी बताई हुई विधि से ध्यान साधना करो, फिर विचार करूँगा कि प्रश्न का उत्तर दिया जाए या नहीं|
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योगमार्ग के हर साधक को कुछ महीनों की साधना के पश्चात प्राण तत्व की अनुभूतियाँ अवश्य होती हैं फिर यह साधना का ही अंग बन जाता है| इसे शब्दों का ही रूप देना चाहो तो .....
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प्राण-तत्व एक ऐसा विषय है जो अनुभूति जन्य है, बुद्धि से इसे न तो समझाया जा सकता है और न ही यह समझ में आ सकता है| प्राचीन भारत में ऋषियों से जब प्राण तत्व पर प्रश्न पूछा जाता तो वे प्रश्नकर्ता को यही कहते कि पहिले तो कम से कम एक वर्ष तक मेरे आश्रम में मेरी बताई हुई विधि से ध्यान साधना करो, फिर विचार करूँगा कि प्रश्न का उत्तर दिया जाए या नहीं|
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योगमार्ग के हर साधक को कुछ महीनों की साधना के पश्चात प्राण तत्व की अनुभूतियाँ अवश्य होती हैं फिर यह साधना का ही अंग बन जाता है| इसे शब्दों का ही रूप देना चाहो तो .....
"जगन्माता ही प्राण हैं, वे ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व हैं"|
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परमात्मा के मातृरूप की कृपा से ही यह समस्त सृष्टि जीवंत है| वे जगन्माता ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व के रूप में जड़-चेतन सभी में व्याप्त हैं| एक जड़ धातु के अणु में भी प्राण हैं, और एक प्राणी की चेतना में भी| प्राण-तत्व की व्याप्तता और अभिव्यक्ति विभिन्न और पृथक पृथक है| एक मनुष्य जैसे जीवंत प्राणी की चेतना में भी जब तक प्राण विचरण कर रहा है, उसकी साँसे चलती हैं| प्राण के निकलते ही उसकी साँसे भी बंद हो जाती हैं|
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जगन्माता ही प्राण हैं | उन्होंने ही इस सृष्टि को धारण कर रखा है और अपनी विभिन्नताओं में सभी प्राणियों में और सभी अणु-परमाणुओं में स्थित हैं| वे ही ऊर्जा हैं, वे ही विचार हैं, वे ही भक्ति हैं और वे ही हमारी परम गति हैं |
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और भी स्थूल रूप में बात करें तो इस सृष्टि को श्रीराधा जी ने ही धारण कर रखा है, वे ही इस सृष्टि की प्राण हैं| परमप्रेम की उच्चतम और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति श्रीराधा जी हैं| परमात्मा के प्रेमरूप पर ध्यान करेंगे तो निश्चित रूप से श्री राधा जी की अनुभूतियाँ होती हैं|
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प्रश्नोपनिषद में इस विषय पर ऋषियों में खूब विचार विमर्श हुआ है| तंत्र आगमों में जिस कुण्डलिनी महाशक्ति का वर्णन है वह भी प्राण का ही घनीभूत रूप है| सृष्टि का अस्तित्व भी प्राण तत्व ही है| क्रियायोग साधना भी प्राण साधना ही है| यह प्राण ही अपने पाँच रूपों में सभी जीवों को और जगत को धारण किये हुए है|
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मेरा मेरुदंड ही मेरी पूजा की वेदी है, जहाँ से जगन्माता जागृत होकर अनंताकाश में परमशिव से मिलती हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अगस्त २०१८
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परमात्मा के मातृरूप की कृपा से ही यह समस्त सृष्टि जीवंत है| वे जगन्माता ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व के रूप में जड़-चेतन सभी में व्याप्त हैं| एक जड़ धातु के अणु में भी प्राण हैं, और एक प्राणी की चेतना में भी| प्राण-तत्व की व्याप्तता और अभिव्यक्ति विभिन्न और पृथक पृथक है| एक मनुष्य जैसे जीवंत प्राणी की चेतना में भी जब तक प्राण विचरण कर रहा है, उसकी साँसे चलती हैं| प्राण के निकलते ही उसकी साँसे भी बंद हो जाती हैं|
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जगन्माता ही प्राण हैं | उन्होंने ही इस सृष्टि को धारण कर रखा है और अपनी विभिन्नताओं में सभी प्राणियों में और सभी अणु-परमाणुओं में स्थित हैं| वे ही ऊर्जा हैं, वे ही विचार हैं, वे ही भक्ति हैं और वे ही हमारी परम गति हैं |
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और भी स्थूल रूप में बात करें तो इस सृष्टि को श्रीराधा जी ने ही धारण कर रखा है, वे ही इस सृष्टि की प्राण हैं| परमप्रेम की उच्चतम और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति श्रीराधा जी हैं| परमात्मा के प्रेमरूप पर ध्यान करेंगे तो निश्चित रूप से श्री राधा जी की अनुभूतियाँ होती हैं|
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प्रश्नोपनिषद में इस विषय पर ऋषियों में खूब विचार विमर्श हुआ है| तंत्र आगमों में जिस कुण्डलिनी महाशक्ति का वर्णन है वह भी प्राण का ही घनीभूत रूप है| सृष्टि का अस्तित्व भी प्राण तत्व ही है| क्रियायोग साधना भी प्राण साधना ही है| यह प्राण ही अपने पाँच रूपों में सभी जीवों को और जगत को धारण किये हुए है|
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मेरा मेरुदंड ही मेरी पूजा की वेदी है, जहाँ से जगन्माता जागृत होकर अनंताकाश में परमशिव से मिलती हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अगस्त २०१८