Wednesday 8 August 2018

"प्राण तत्व" .....

 "प्राण तत्व" .....
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प्राण-तत्व एक ऐसा विषय है जो अनुभूति जन्य है, बुद्धि से इसे न तो समझाया जा सकता है और न ही यह समझ में आ सकता है| प्राचीन भारत में ऋषियों से जब प्राण तत्व पर प्रश्न पूछा जाता तो वे प्रश्नकर्ता को यही कहते कि पहिले तो कम से कम एक वर्ष तक मेरे आश्रम में मेरी बताई हुई विधि से ध्यान साधना करो, फिर विचार करूँगा कि प्रश्न का उत्तर दिया जाए या नहीं|
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योगमार्ग के हर साधक को कुछ महीनों की साधना के पश्चात प्राण तत्व की अनुभूतियाँ अवश्य होती हैं फिर यह साधना का ही अंग बन जाता है| इसे शब्दों का ही रूप देना चाहो तो .....
"जगन्माता ही प्राण हैं, वे ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व हैं"|
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परमात्मा के मातृरूप की कृपा से ही यह समस्त सृष्टि जीवंत है| वे जगन्माता ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व के रूप में जड़-चेतन सभी में व्याप्त हैं| एक जड़ धातु के अणु में भी प्राण हैं, और एक प्राणी की चेतना में भी| प्राण-तत्व की व्याप्तता और अभिव्यक्ति विभिन्न और पृथक पृथक है| एक मनुष्य जैसे जीवंत प्राणी की चेतना में भी जब तक प्राण विचरण कर रहा है, उसकी साँसे चलती हैं| प्राण के निकलते ही उसकी साँसे भी बंद हो जाती हैं|
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जगन्माता ही प्राण हैं | उन्होंने ही इस सृष्टि को धारण कर रखा है और अपनी विभिन्नताओं में सभी प्राणियों में और सभी अणु-परमाणुओं में स्थित हैं| वे ही ऊर्जा हैं, वे ही विचार हैं, वे ही भक्ति हैं और वे ही हमारी परम गति हैं |
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और भी स्थूल रूप में बात करें तो इस सृष्टि को श्रीराधा जी ने ही धारण कर रखा है, वे ही इस सृष्टि की प्राण हैं| परमप्रेम की उच्चतम और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति श्रीराधा जी हैं| परमात्मा के प्रेमरूप पर ध्यान करेंगे तो निश्चित रूप से श्री राधा जी की अनुभूतियाँ होती हैं|
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प्रश्नोपनिषद में इस विषय पर ऋषियों में खूब विचार विमर्श हुआ है| तंत्र आगमों में जिस कुण्डलिनी महाशक्ति का वर्णन है वह भी प्राण का ही घनीभूत रूप है| सृष्टि का अस्तित्व भी प्राण तत्व ही है| क्रियायोग साधना भी प्राण साधना ही है| यह प्राण ही अपने पाँच रूपों में सभी जीवों को और जगत को धारण किये हुए है|
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मेरा मेरुदंड ही मेरी पूजा की वेदी है, जहाँ से जगन्माता जागृत होकर अनंताकाश में परमशिव से मिलती हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अगस्त २०१८

फारस की खाड़ी में तनाव .....

पृथ्वी पर विश्व व्यापार और नौपरिवहन के लिए निम्न सात स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं| इनमें से किसी एक का भी अवरुद्ध होना वर्त्तमान परिस्थितियों में बहुत अधिक घातक हो सकता है .....
(१) होरमुज़ जलडमरूमध्य.
(२) बाब अल-मंडाब जलडमरूमध्य.
(३) मलक्का जलडमरूमध्य.
(४) जिब्राल्टर जलडमरूमध्य.
(५) बोस्फोरस जलडमरूमध्य.
(६) पनामा नहर.
(७) स्वेज़ नहर.
जब इराक और ईरान में युद्ध हो रहा था उस समय फारस की खाड़ी में स्थिति बड़ी भयावह थी| कब किस पर हमला हो जाय, कौन कब मारा जाए इसका कोई भरोसा नहीं था| उसके बाद इराक ने जब कुवैत पर अधिकार किया और उसके प्रत्युत्तर में अमेरिका ने कपने सहयोगी देशों के साथ इराक पर आक्रमण किया तब भी स्थितियाँ बड़ी गंभीर थीं|
आज से ईरान पर अमेरिकी प्रतिबन्ध लागू हो गए हैं| ईरान ने एक ओर तो सऊदी अरब से तनाव बना रखा है, दूसरी ओर इजराइल को नष्ट करने की धमकी दे रखी है| अमेरिका किसी भी परिस्थिति में ऐसा नहीं होने देगा चाहे उसे पूर्ण शक्ति से युद्ध लड़ना पड़े, क्योंकि उसके आर्थिक हित प्रभावित होते हैं|
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फारस की खाड़ी में, विशेषकर होरमुज़ पर नियंत्रण के लिए हुए युद्ध का भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा असर पड़ सकता है|
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फारस की खाड़ी में युद्ध की सी स्थितियों का निर्माण हो रहा है| "होरमुज़ जलडमरूमध्य" विश्व का सर्वाधिक संवेदनशील स्थान है| यह भारत के बहुत समीप है| वहाँ हुए किसी भी युद्ध के परिणाम भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक घातक होंगे| युद्ध की परिस्थितियों के लिए सबसे अधिक दोषी तो ईरान के नेताओं के उन्मादी वक्तव्य हैं, फिर अमेरिका की अत्यधिक संवेदनशीलता और आर्थिक हित|
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इराक़ और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत को तेल बेचने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है| भारत निम्न चार देशों से कच्चा तेल खरीदता है ... इराक़, सऊदी अरब, ईरान और वेनेज़ुएला| पहले तीन देशों से तेल होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर ही आता है| यदि ईरान होरमुज़ जलडमरूमध्य को अवरुद्ध कर देता है तब विश्व में हाहाकार मच जाएगा और फिर विश्वयुद्ध को कोई नहीं रोक सकता|

कृपा शंकर
८ अगस्त २०१८ 

करूणानिधि को श्रद्धांजलि .....

श्रद्धांजलि : --
मरे हुए व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए पर उसके कृत्यों की अल्प समीक्षा करने में कोई बुराई नहीं है| मैं यहाँ तमिलनाडु के तमिल फ़िल्मी पटकथा लेखक से राजनेता बने करूणानिधि की बात कर रहा हूँ| मैं इन को इन के एक ही डिजाइन के स्थायी रूप से पहिने जाने वाले काले चश्मे से प्रभावित होकर सन १९६५ से जानता हूँ| मैंने उस समय युवावस्था में कदम रखा ही था| मेरे तमिल मित्र बताते थे कि वे तमिल फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक हैं| उस समय तमिल फिल्मों के नायक MG रामचंद्रन के बाद करूणानिधि तमिलनाडु में सबसे अधिक लोकप्रिय व्यक्ति थे| इन दोनों की सार्वजनिक पहिचान इनके काले चश्मे से ही थी| दुनिया बदल गयी पर मरते दम तक इनके चश्मों की डिजाइन नहीं बदली| इनसे अधिक लोकप्रिय कोई व्यक्ति वहाँ हुआ है तो वे सिर्फ अन्नादुराई थे|
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जब MGR की मृत्यु हुई उस समय मैं तमिलनाडु में कोयम्बतूर गया हुआ था| इनके मरने के दुःख में पूरा तमिलनाडू ही बंद हो गया था| इनके वियोग में पूरे तमिलनाडू में दस-बारह से अधिक लोगों ने आत्मदाह कर के आत्महत्या कर ली थी| अनगिनत लोगों ने सिर मुंडवा लिए और हज़ारो स्त्रियाँ छाती और सिर पीट पीट कर रोईं| मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं स्वप्न देख रहा हूँ या वास्तविकता| पर यह स्वप्न नहीं था|
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सन १९६५ में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लालबहादुर शास्त्री ने हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित कर दिया था जिसके विरोध में करूणानिधि के नेतृत्व में पूरा तमिलनाडु जल उठा था| सारे रेलवे स्टेशनों से हिंदी में लिखे नामों पर रंग पोत दिया गया| पूरे राज्य में हिंदी में लिखे सारे साइन बोर्ड हटा दिए गए| सारी रेलगाड़ियाँ बंद कर दी गईं और केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों में आग लगा दी गयी| हिंदी विरोध में पूरा जनजीवन ठप्प कर दिया गया| कोई हिंदी में बात करता तो लोग उसे गाली देने लगते|
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इस घटना से क्षुब्ध होकर शास्त्री जी ने अपना निर्णय बापस ले लिया और यह भी घोषणा कर दी कि जब तक भारत का एक भी राज्य हिंदी को राजभाषा बनाना नहीं चाहेगा तब तक हिंदी राजभाषा नहीं बनेगी| उस समय तमिलनाडू को छोड़कर अन्य सारे राज्य हिंदी के समर्थन में थे|
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कालान्तर में कई घटनाक्रम हुए, कई बार वहाँ की सरकार बर्खास्त भी हुई| DMK पार्टी केंद्र की सत्ता में भी भागीदार बनी| इनके मंत्री भी केंद्र में बने| इनकी बेटी और एक सम्बन्धी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए और जेल की हवा भी खाई| कुल मिलाकर करूणानिधि ने तमिलनाडू पर सबसे अधिक राज किया|
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मैं इन का कभी भी प्रशंसक नहीं रहा और न ही हूँ| ये घोर हिन्दुद्रोही थे| हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों से इन्हें बड़ी चिढ़ थी| इनके परिवार वालों के नाम ही हिन्दू थे पर ये सब घोर नास्तिक थे| इन का रुझान ईसाईयत की ओर था| इन में या इन के परिवार में कोई ईमानदारी थी ऐसा कोई नहीं कह सकता|
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इन को मोक्ष प्राप्त हो ताकि ये संसार में बापस न आयें| श्रद्धांजलि ! सादर नमन !
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पुनश्चः : ये घोर रामद्रोही और ब्राह्मणद्रोही थे| हजारों ब्राह्मण परिवार इन की पार्टी के लोगों के कारण तमिलनाडू छोड़कर अन्यत्र चले गए|

भीतर की ही नहीं, बाहर की कमियों को भी देखें ....

भीतर की ही नहीं, बाहर की कमियों को भी देखें ....
इच्छा शक्ति से अधिक शक्तिशाली तो वातावरण का प्रभाव होता है| अधिकाँश आध्यात्मिक साधक अपनी साधना में विफल अपने घर वालों के नकारात्मक स्पंदनों के कारण होते हैं| हम सुख सम्पति और बड़ाई के लिए परिवार से चिपके रहते हैं, और घर-परिवार के नकारात्मक प्रभाव से भगवान को छोड़ देते हैं| साधना में निःसंगता अति आवश्यक है|
"सुख संपति परिवार बड़ाई | सब परिहरि करिहउँ सेवकाई ||
ये सब रामभगति के बाधक | कहहिं संत तब पद अवराधक ||"
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अगस्त २०१८

अब और क्या चाहिए ? भगवान ने सब कुछ तो दे दिया है .....

अब और क्या चाहिए ? भगवान ने सब कुछ तो दे दिया है .....
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इस जीवन के सारे विगत घटनाक्रमों का सिंहावलोकन व विश्लेषण करने के उपरांत मैं परमात्मा की कृपा से निम्न निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ ..... मेरी सारी कमियाँ, असफलताएँ, विफलताएँ, विपरीत परिस्थितियाँ, आदि आदि सब मेरे अपने ही कर्मों का फल थीं, इसमें किसी अन्य का कोई दोष नहीं है|
मेरे जन्म-जन्मान्तरों के विचार ही मेरे कर्म थे| इन कर्मफलों से मुक्त होने का एक ही मार्ग है और वह है ..... परमात्मा से परम प्रेम| अन्य कोई मार्ग नहीं है| परम प्रेम से ही हम इस देह की चेतना और कर्ताभाव से मुक्त होते हैं | यही वास्तविक मुक्ति है| अब भगवान तो सर्वत्र हैं, वे मेरी अंतर्दृष्टि से कभी भी ओझल नहीं हो सकते, और न ही मैं उन की दृष्टी से ओझल हो सकता हूँ|
सब कुछ तो मिल गया है फिर अब और क्या चाहिए?
भगवान कहते हैं .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति||६:३०||"
"सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः| सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते||६:३१||"
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अब और कुछ भी नहीं चाहिए, कोई बंधन नहीं हैं| जब भगवान साक्षात रूप से स्वयं मेरे ह्रदय में हैं तो उनकी अनुमति के बिना कोई ग्रह-नक्षत्र, कोई देवी-देवता, कोई भूत-पिशाच-राक्षस-असुर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता| जब भगवान ही नाश करना चाहेंगे तो कोई रोक भी नहीं सकता|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ अगस्त २०१८

निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा .....

निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा .....
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परमात्मा का स्मरण, उनकी भक्ति और उनकी उपासना, हम उनके अनुग्रह के बिना नहीं कर सकते| साधना तो एक बहाना यानि साधन मात्र है जिस से हमारा अन्तःकरण शुद्ध होता है, पर मुख्य चीज तो भगवान की कृपा है जो करुणावश वे स्वयं ही करते हैं| हमारे अज्ञान का निराकरण भी उनकी कृपा से ही होता है| भगवान स्वयं ही कहते हैं कि जिनका मन निर्मल होता है वे ही उन्हें पा सकते हैं, उन्हें छल-कपट पसंद नहीं है| साधना से हमारा मन निर्मल होता है| साधना भी बिना प्रेम के नहीं हो सकती अतः सबसे पहिला कार्य तो भगवान के प्रति प्रेम जागृत कर उसे विकसित करना है|
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ब्रह्मा जी ने जब यह सृष्टि रची तब ब्रह्मज्ञान सर्वप्रथम अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्व को दिया| अब इस पर ज़रा विचार कीजिये कि ब्रह्मा जी के ज्येष्ठ पुत्र अथर्व कौन थे| थर्व का अर्थ होता है .... कुटिलता| अथर्व वे सारे ऋषि-मुनि थे जिनके मन में कोई कुटिलता नहीं थी| अथर्व ने वह ब्रह्मज्ञान सत्यवाह को दिया| सत्यवाह का अर्थ होता है जो सत्य का वहन करते हैं, यानि सत्यनिष्ठ होते हैं| तत्पश्चात वह ब्रह्मज्ञान सत्यवाह ऋषियों को मिला| अतः प्रभु का अनुग्रह पाने के लिए स्वयं को ही अथर्व और सत्यवाह बनना पड़ता है| हमारे मन में कोई कुटिलता नहीं हो और हम सत्यनिष्ठ हों| तभी हम प्रभु की कृपा को पाने के पात्र हैं| वह पात्रता साधना से आती है|
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परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप आप सब को नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ अगस्त २०१८

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में देशों के पारस्परिक आर्थिक हित .....

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में देशों के पारस्परिक आर्थिक हित .....
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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कोई स्थायी शत्रु-मित्र नहीं होते| आपसी सम्बन्ध अब सिर्फ आर्थिक हितों से ही तय होते हैं| इसके दो उदाहरण दूंगा| (सिर्फ एक आत्मघाती देश पकिस्तान ही है जो जिहाद के नाम पर भारत से शत्रुता रखे हुए है).
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(१) सऊदी अरब और इजराइल अपने आर्थिक और सामरिक हितों के कारण लगातार मित्र बनते जा रहे हैं, जो कभी मज़हब के नाम पर एक-दूसरे के घोषित शत्रु थे| कुछ समय पूर्व सऊदी अरब और ईरान के मध्य युद्ध की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी पर युद्ध नहीं हुआ| इसका एक कारण सऊदी अरब और इजराइल के मध्य हुई एक गोपनीय दुरभिसंधि भी है कि यदि ईरान, सऊदी अरब पर आक्रमण करता है तो इजराइल की वायुसेना अपनी पूरी शक्ति से ईरान पर आक्रमण कर देगी और सऊदी अरब, इजराइल को पूरा सहयोग देगा||
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पिछले सप्ताह बुधवार को सऊदी अरब के दो तेलवाहक जहाजों पर, यमन और जिबूती व इरिट्रिया के मध्य अदन की खाड़ी के मुहाने पर २९ किलोमीटर चौड़े "बाब अल-मंडाब" जलडमरूमध्य को पार करते समय, यमन के ईरान समर्थित हाऊथी विद्रोहियों ने हमला कर दिया था, जिससे एक जहाज को कुछ नुकसान हुआ| इस घटना पर सऊदी अरब की प्रतिक्रिया से पहिले ही इजराइल ने तुरंत ईरान को गंभीर युद्ध के परिणामों की चेतावनी दे दी, जिसका तुरंत प्रभाव पड़ा| हमला हुआ था सऊदी अरब के जहाज़ों पर, पर प्रतिक्रिया व्यक्त हुई उसके मित्र देश इजराइल द्वारा|
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इस मार्ग से नित्य ४.८ मिलियन बैरल कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का परिवहन होता है| इजराइल के प्रधानमंत्री ने इस तरह की किसी भी घटना की पुनरावृति होने, या "बाब अल-मंडाब" जलडमरूमध्य को ईरान द्वारा बंद किये जाने पर पूर्ण युद्ध की चेतावनी दे दी है जिसमें सऊदी अरब और अमेरिका भी इजराइल के साथी होंगे| एक बात और है कि सऊदी अरब के लिए अब फिलिस्तीन का कोई महत्त्व नहीं रह गया है|
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(२) दूसरा उदाहरण चीन का दे रहा हूँ| चीन ने अपने देश में इस्लाम पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया है| वहाँ मुसलमानों के सारे कब्रिस्तानों को खोदकर ताबूतों को नष्ट किया जा रहा है, और लाशों को जलाया जा रहा है| मुसलमान औरतें बुर्का या हिजाब नहीं पहिन सकतीं, पुरुष दाढ़ी नहीं रख सकते, अज़ान और नमाज़ पर पाबंदी लगा दी गयी है, मज़हबी शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, और पवित्र कुरान शरीफ की सारी व्यक्तिगत प्रतियाँ पुलिस द्वारा जब्त कर ली गयी हैं|
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आश्चर्य की बात यह है कि किसी भी इस्लामी देश ने इसका विरोध करने का साहस नहीं किया है| पकिस्तान जैसे चरम कट्टर इस्लामी देश ने जो चीन को अपना परम मित्र मानता है, ने भी विरोध करने का साहस नहीं किया है| पाकिस्तान चीन के कर्ज के नीचे दबा हुआ है| पाकिस्तान शायद ही कभी चीन का कर्जा उतार पायेगा| मध्य एशिया के कजाकस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान नाम के इस्लामी देश जिनकी सीमाएँ चीन से मिलती है, भी चीन से प्रभावित हैं| वे देश अब सिर्फ नाम के ही इस्लामी रह गए हैं, वहाँ के लोग स्वतः ही धीरे धीरे अपने मज़हब को छोड़ रहे हैं|
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इस लेख को लिखने का उद्देश्य यही बताना है कि अब अंतर्राष्ट्रीय मित्रता और शत्रुता ..... आर्थिक हितों से ही होने लगी है, न कि किन्ही मज़हबी कारणों से|
इस लेख के सभी पाठकों को अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद!
कृपा शंकर
४ अगस्त २०१८

मेरे आराध्य देव भगवान परमशिव हैं .....

मेरे आराध्य देव भगवान परमशिव हैं .....
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वे सर्वव्यापी, अनंत, पूर्ण, परम कल्याणकारी और परम चैतन्य हैं| मैं धन्य हूँ कि वे मेरे कूटस्थ हृदय में नित्य निरंतर बिराजमान हैं| सृष्टि के सर्जन-विसर्जन की क्रिया उन का नृत्य है, उनके माथे पर चन्द्रमा ... कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का, उन के गले में सर्प ... कुण्डलिनी महाशक्ति का, उन की दिगंबरता ... सर्वव्यापकता का, उन की देह पर भस्म ... वैराग्य का, उन के हाथ में त्रिशूल ... त्रिगुणात्मक शक्तियों के स्वामी होने का, उन के गले में विष ... स्वयं के अमृतमय होने का, और उन के माथे पर गंगा जी ... समस्त ज्ञान का प्रतीक है जो निरंतर प्रवाहित हो रही है| उन के नयनों से अग्निज्योति की छटाएँ निकल रही हैं, वे मृगचर्मधारी और समस्त ज्ञान के स्त्रोत हैं| अपनी जटाओं पर उन्होंने सारी सृष्टि का भार ले रखा है| वे ही मेरे परात्पर परमेष्ठी सदगुरु हैं| मेरी चित्तवृत्तियाँ उन्हीं को अर्पित हैं|
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हे मेरे कुटिल मन, ऐसे भगवान परमशिव को छोड़कर तूँ क्यों संसार के पीछे भाग रहा है? वहाँ तुझे कुछ भी नहीं मिलेगा| तूँ उन परमशिव का निरंतर ध्यान कर| तुझे अन्य किसी कर्म की क्या आवश्यकता है?
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अगस्त २०१८

हमारा मूड बार बार क्यों बदलता है? हमें भयंकर क्रोध क्यों आता है ? ....

हमारा मूड बार बार क्यों बदलता है? हमें भयंकर क्रोध क्यों आता है ?
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हमारी तरह तरह की मनःस्थितियों (Moods) और भावावेशों (अचानक भयंकर क्रोध आना) का कारण .... पूर्व जन्मों में हमारा इन्द्रिय सुखों में अत्यधिक लिप्त होना, और इस जन्म में अपनी अपेक्षाओं की पूर्ति न होने व असहायता की भावना से उत्पन्न कुंठा ही है|
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इसका उपचार एक ही है, और वह है अनवरत दीर्घ कालीन नियमित साधना द्वारा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में सिखाई गयी निःस्पृहता का अभ्यास| अन्य कोई उपाय नहीं है|
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परमात्मा की कृपा हम सब पर बनी रहे| प्रभु की आरोग्यकारी उपस्थिति हम सब की देह, मन और आत्मा में प्रकट हो| सभी का कल्याण हो|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अगस्त २०१८

अंतहीन भागदौड़ .....

अंतहीन भागदौड़ .....
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सांसारिक दृष्टी से सब कुछ मिल जाने के पश्चात् भी एक खालीपन जीवन में रहता है, कहीं भी सुख, शांति, सुरक्षा और संतुष्टि नहीं मिलती| हमारी सांसारिक उपलब्धियाँ हीं हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तनाव और कष्टों का कारण बन जाती हैं| इतनी पारिवारिक कलह, तनाव, लड़ाई-झगड़े, मिथ्या आरोप-प्रत्यारोप, अवसादग्रस्तता और आत्महत्याएँ ..... हमारा सामाजिक ढाँचा ही खोखला हो गया है| सब कुछ होते हुए भी लोगों के जीवन में एक शुन्यता और पीड़ा है|
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यह पीड़ा अपनी अंतरात्मा यानि स्वयं को न जानने की पीड़ा है| जीवन में वास्तविक सुख, शांति, संतुष्टि और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, स्वयं से बाहर कहीं भी नहीं| यह मेरा अपना स्वयं का निजी अनुभव है जिसे मैं यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ|
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हम सब परमात्मा की साकार अभिव्यक्तियाँ हैं| सब को सप्रेम सादर नमन !
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
०३ अगस्त २०१८