Saturday, 4 September 2021

भगवान मुझमें विश्वास करते हैं, इसलिए मैं भगवान के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता ---

 

भगवान मुझमें विश्वास करते हैं, इसलिए मैं भगवान के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता ---
.
पिछले जन्मों के कर्मों में कोई न कोई कमी थी, इसलिए कर्मफलों को भुगतने के लिए यह जन्म लेना पड़ा। इसमें किसी अन्य का कोई दोष नहीं है। कर्मफलों की प्राप्ति, पुनर्जन्म और मरणोपरांत गति -- इनमें भगवान का कोई हस्तक्षेप नहीं होता, ये सब जीवात्माओं को अपने-अपने कर्मों के अनुसार प्रकृति द्वारा दिये जाते हैं। वीतरागता और समर्पण द्वारा संचित कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। लेकिन मुझे किसी अदृश्य शक्ति ने बताया है कि जो लोग दूसरों के साथ छल करते हैं, उन्हें प्रकृति कभी क्षमा नहीं करती। किसी को विश्वास में लेकर उसके साथ छल यानि विश्वासघात करना अक्षम्य पाप है।
.
घूसखोर सरकारी नौकर - भगवान के साथ छल करते हैं और पाप का अन्न खाते हैं, उनको भी प्रकृति कभी क्षमा नहीं करती, चाहे वे कितना भी पूजा-पाठ और धर्म-कर्म कर लें। उनका अधर्म उन्हें कभी क्षमा करेगा, उन्हें अपने परिजनों सहित अति भयानक दुःख और यातनाओं से गुजरना ही पड़ेगा। आज वे कितने भी खुश हो लें, पर एक दिन बहुत बुरी तरह रोयेंगे।
.
आध्यात्म में और लौकिक जगत में कोई उपलब्धी अंतिम नहीं होती। लौकिक दृष्टि से जिसे हम खजाना मानकर खुश होते हैं, कुछ समय पश्चात पता चलता है कि वह कोई खजाना नहीं बल्कि कंकर पत्थर का ढेर मात्र था। आध्यात्मिक जगत में होने वाली अनुभूतियाँ अनंत हैं, जैसे जैसे हम आगे बढ़ते हैं, पीछे की अनुभूतियाँ महत्वहीन हो जाती हैं| यहाँ तो बस एक ही काम है कि बढ़ते रहो, बढ़ते रहो और बढ़ते रहो; पीछे मुड़कर ही मत देखो। अन्य कुछ भी मत देखो, कहीं पर भी दृष्टी मत डालो; सिर्फ और सिर्फ हमारा लक्ष्य परमात्मा ही हमारे सामने निरंतर ध्रुव तारे की तरह चमकता रहे। चाहे कितना भी घोर अंधकार हो, भगवान की कृपा से वह दूर हो जाएगा।
.
भगवान मुझमें विश्वास करते हैं इसीलिए मैं यहाँ हूँ। मैं जो भी हूँ, जैसे भी हूँ, और जहाँ भी हूँ, भगवान के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता। उन्हें विश्वास था कि मैं सब बाधाओं को पार कर सकता हूँ तभी ये सब बाधाएँ हैं। अंत समय तक अपने स्वधर्म (भगवान के लिए परमप्रेम, अतृप्त असीम प्यास और तड़प) पर अडिग रहूँगा, और भगवान के साथ विश्वासघात नहीं करूंगा।
.
भगवान की पूर्ण कृपा है, लेकिन प्रारब्ध कर्म तो भुगतने ही पड़ेंगे। ध्यान के समय ही नहीं, लगभग हर समय सहस्त्रारचक्र में गुरु महाराज की ही अनुभूति होती है। पद्मासनस्थ अपने ज्योतिर्मय रूप में ध्यान मुद्रा में वे वहाँ बिराजमान हैं। उनकी छवि इतनी अलौकिक और आकर्षक है कि अन्यत्र कहीं दृष्टि जाती ही नहीं है। कभी कूटस्थ में भगवान वासुदेव अपने अनन्य रूप में दृष्टिगत होते हैं, जिनके सिवाय कोई अन्य इस सृष्टि में है ही नहीं। पद्मासनस्थ वे स्वयं अपने स्वयं का ध्यान कर रहे होते हैं। जब भगवान की इतनी बड़ी कृपा है, तब उन्हें छोड़कर अन्यत्र कहाँ जाऊँ?
.
पानी का एक बुलबुला महासागर से दूर होकर अत्यंत असहाय, अकेला और अकिंचन है। उस क्षणभंगुर बुलबुले से छोटा और कौन हो सकता है? लेकिन वही बुलबुला जब महासागर में मिल जाता है तो एक विकराल, विराट और प्रचंड लहर का रूप धारण कर लेता है, जिसके पीछे महासागर है।
वैसे ही मनुष्य है। जितना वह परमात्मा से दूर है उतना ही छोटा है। परमात्मा से जुड़ कर ही मनुष्य महान बनता है। मनुष्य जितना परमात्मा से समीप है उतना ही महान है।
.
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन !
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ सितंबर २०२१

जिन लोगों ने देश को लूटकर हजारों करोड़ की संपत्ति बनाई है, वह संपत्ति उन के क्या काम आएगी? ---

 

जिन लोगों ने देश को लूटकर हजारों करोड़ की संपत्ति बनाई है, वह संपत्ति उन के क्या काम आएगी?
मुगल बादशाहों के वंशज अब कपड़ों की सिलाई कर के या सब्जियाँ बेचकर दिल्ली में अपना गुजारा कर रहे हैं| बड़े बड़े नवाबों की सन्तानें पहले तांगा चलाती थीं, अब टेक्सी चला रहे हैं| पूर्व शासकों के परिवारों के सदस्य नरेगा में मजदूरी कर रहे हैं| अनेक समृद्ध लोग आत्महत्या कर के या पागल होकर मर रहे हैं| बड़े बड़े महल और हवेलियाँ खंडहर हो रही हैं, किसी को पता ही नहीं है कि इन के स्वामी कौन थे?
 
किसी भी मंदिर के बाहर भिखारियों की भीड़ देखो| ये भिखारी अपने पूर्व जन्म में बड़े-बड़े सरकारी कर्मचारी और अधिकारी थे| दुनियाँ इनसे डरती थी| इनकी माँगने की आदत नहीं गई तो भगवान ने इनकी ड्यूटि यहाँ लगा दी| अब जो घूसखोर व चोर कर्मचारी हैं, वे भी दर दर भटक कर भीख माँगने की तैयारी कर रहे हैं|
 
यह सदा से होता आया है और सदा होता ही रहेगा|
४ सितंबर २०२१

अपनी पीड़ा और व्यथा किस से कहें? ---

 

अपनी पीड़ा और व्यथा किस से कहें? ---
.
🌹🙋‍♂️🌹आप सब निजात्मगण, परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हों| आप सब की कीर्ति, यश और महिमा अमर रहे| परमात्मा की परम कृपा आप सब पर बनी रहे| आप सब की जय हो|
बहुत ही सत्यनिष्ठा से मैंने अपने जीवन का विहंगावलोकन किया तो इस जीवन में कमियाँ ही कमियाँ दिखाई दीं| एक भी कोई अच्छी बात नहीं मिली| अपनी निम्न प्रकृति व अवचेतन को तमोगुण से भरा हुआ पाया| अंधकार ही अंधकार, कहीं कोई प्रकाश नहीं| स्वयं को निरंतर असहाय पाया| पता नहीं, कभी नर्क में भी कहीं स्थान मिलेगा या नहीं, इतनी अधिक कमियाँ स्वयं में पाईं|
.
हारे को हरिः नाम !! और करता भी क्या? मेरे एक ही शाश्वत मित्र हैं... भगवान स्वयं, दुःखी होकर उन्हीं को याद किया| वे हर प्रश्न का उत्तर तुरंत दे देते हैं| उन्हीं से उत्तर मिला कि यह सृष्टि, प्रकाश और अंधकार का खेल है, यहाँ पूर्ण प्रकाश भी नहीं हो सकता, और पूर्ण अंधकार भी, अन्यथा यह सृष्टि ही नहीं रहेगी| इस द्वैत से ऊपर उठो जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है, अन्य कोई उपाय नहीं है| सारा मार्ग ही प्रशस्त हो उठा, सब कुछ उसी क्षण समझ में आ गया| गीता में वे कहते हैं ...
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
"तुम मच्चित, मद्भक्त और मेरे पूजक (मद्याजी) बनो और मुझे नमस्कार करो; (इस प्रकार) तुम मुझे ही प्राप्त होगे; यह मैं तुम्हे सत्य वचन देता हूँ,(क्योंकि) तुम मेरे प्रिय हो||
सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो|"
.
हमारा लोभ और अहंकार ही हमें भगवान से दूर करते हैं| चिंता और भय से मुक्त होने के लिए अपनी पीड़ा भगवान को अकेले में कह कर उन्हें ही समर्पित कर दें| दुनिया के आगे रोने से कोई लाभ नहीं है| लोग हमारे सामने तो सहानुभूति दिखाएँगे पर पीठ पीछे हंसी और उपहास उड़ा कर मजा ही लेंगे| परमात्मा में श्रद्धा और विश्वास रखें व सदा उनसे आतंरिक सत्संग करते रहें| संसार में किसी से भी मिलना तो एक नदी-नाव संयोग मात्र है, और कुछ नहीं| सिर्फ परमात्मा का साथ ही शाश्वत है|अपने लोभ और अहंकार को दूर कर उनके शरणागत हों तो वे हमारी रक्षा करते हैं| वाल्मीकि रामायण में वे कहते हैं ...
""सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||" (वा रा ६/१८/३३)
अर्थात् जो एक बार भी शरणमें आकर ‘मैं तुम्हारा हूँ’ ऐसा कहकर मेरे से रक्षा की याचना करता है, उसको मैं सम्पूर्ण प्राणियोंसे अभय कर देता हूँ, यह मेरा व्रत है
.
ऐसे लोगों से दूर रहे जिन्हें भय और चिंता की आदत है, क्योंकि यह एक संक्रामक मानसिक बीमारी है| सकारात्मक और आध्यात्मिक लोगों का साथ करें, सद्साहित्य का अध्ययन करें, परमात्मा से प्रेम करें और उनका खूब ध्यान करें| हरेक व्यक्ति का अपना अपना प्रारब्ध होता है जिसे उसे भुगतना ही पड़ता है, अतः जो होनी है सो तो होगी ही, उसके बारे में चिंता कर के अकाल मृत्यु को क्यों प्राप्त हों? भगवान कहते हैं ....
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अर्थात् अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ|
.
महाभारत के शांति पर्व में लिखा है ....
एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः| दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय|| (महाभारत, शान्तिपर्व ४७/९२)
अर्थात् ‘भगवान्‌ श्रीकृष्ण को एक बार भी प्रणाम किया जाय तो वह दस अश्वमेध यज्ञों के अन्त में किये गये स्नान के समान फल देने वाला होता है| इसके सिवाय प्रणाम में एक विशेषता है कि दस अश्वमेध करने वाले का तो पुनः संसार में जन्म होता है, पर श्रीकृष्ण को प्रणाम करने वाला अर्थात्‌ उनकी शरण में जाने वाला फिर संसार-बन्धनमें नहीं आता|'
.
दुःखी व्यक्ति को सब ठगने का प्रयास करते हैं| धर्म के नाम पर बहुत अधिक ठगी हो रही है| स्वयं को परमात्मा से जोड़ें, न कि इस नश्वर देह से| समष्टि के कल्याण की ही प्रार्थना करें| समष्टि के कल्याण में ही स्वयं का कल्याण है| बीता हुआ समय स्वप्न है जिसे सोचकर ग्लानि ग्रस्त नहीं होना चाहिए| भगवान की कृपा सब भवरोगों का नाश करती है| अतः उन्हीं का आश्रय लें| अपने जीवन के महत्वपूर्ण रहस्यों को जहाँ तक संभव हो सके, गोपनीय रखना चाहिए| पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर, कौन व्यक्ति कब मित्र से शत्रु बन जाये या वह ऐसे लोगों से जा मिले जो हमारे विरोधी हों| अतः अपनी पीड़ा भगवान से ही कहें ताकि कोई चिंता और भय न रहे| वे हमारे सब कष्टों को हरते हैं, उनका नाम ही हरिः है|
"ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने| प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:||"
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ सितंबर २०२०