जिसे प्यास लगी है, वही पानी पीयेगा; जिसे भूख लगी है, वही भोजन करेगा ---
Tuesday, 19 April 2022
जिसे प्यास लगी है, वही पानी पीयेगा; जिसे भूख लगी है, वही भोजन करेगा ---
साधक के लिए उन्नति का आधार और मापदंड उसका ब्रह्मज्ञान हो, न कि कुछ अन्य ---
आध्यात्मिक उन्नति के लिए हमारी दृष्टि समष्टि-दृष्टि हो, न कि व्यक्तिगत। परमात्मा की सर्वव्यापकता और पूर्णता पर हमारा ध्यान और समर्पण होगा तभी हमारी आध्यात्मिक उन्नति होगी। एक साधक के लिए उन्नति का आधार और मापदंड उसका ब्रह्मज्ञान हो, न कि कुछ अन्य।
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जो बीत गया सो बीत गया, जो हो गया सो हो गया। भूतकाल को तो बदल नहीं सकते, अभी जब से होश आया है, तब इसी समय से परमात्मा की चेतना में रहें। हमारा कार्य परमात्मा में पूर्ण समर्पण है। यह शरीर रहे या न रहे, इसका कोई महत्व नहीं है। महत्व इसी बात का है कि निज जीवन में परमात्मा का अवतरण हो।
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यह जीवन तो पूर्णतः परमात्मा को समर्पित है, इसमें "मैं" और "मेरा" कुछ भी नहीं है, ---
पिछले दस वर्षों में भगवान की कृपा और प्रेरणा से जितना मेरी बौद्धिक क्षमता में था, उतना -- भक्ति, ज्ञान और भारत भूमि के ऊपर यथासंभव खूब लिखा है। जो नहीं लिखा, उसकी क्षमता भगवान ने मुझे नहीं दी थी, यानि वह मेरी क्षमता से परे था। भगवान से जैसी प्रेरणा मिलेगी, और जैसी उनकी इच्छा होगी, वैसा ही होगा। यह जीवन तो पूर्णतः परमात्मा को समर्पित है। इसमें "मैं" और "मेरा" कुछ भी नहीं है। सर्वव्यापी परमात्मा ही सर्वस्व है।
उपासना ---
उपासना ---
मेरी दृष्टि में निष्काम कर्मयोग क्या है? ---
मेरी दृष्टि में निष्काम कर्मयोग क्या है? ---
भगवान की भक्ति पर कितना भी लिखो, कोई अंत नहीं है ---
भारत की आत्मा ही आध्यात्म है, और सनातन-धर्म ही भारत का प्राण है। यह भारत भूमि धन्य है। यहाँ धर्म, भक्ति, और ज्ञान पर जितना चिंतन और विचार हुआ है, उतना पूरे विश्व में अन्यत्र कहीं भी नहीं हुआ है। भगवान की भक्ति पर कितना भी लिखो, कोई अंत नहीं है। गंधर्वराज पुष्पदंत विरचित "शिव महिम्न स्तोत्र" का ३२वाँ श्लोक कहता है --
सिंहावलोकन ---
सिंहावलोकन ---
मैं प्रसन्न, संतुष्ट और तृप्त हूँ, भगवान से भी कुछ नहीं चाहिए ---
मैं किसी के भी किसी सांसारिक काम का नहीं हूँ। किसी का कोई भी प्रयोजन मुझसे सिद्ध नहीं हो सकता। अतः बेकार में मित्रता अनुरोध भेज कर, या मेरी मित्रता सूचि में बने रह कर, और मेरे आलेख पढ़कर अपना अमूल्य समय नष्ट न करें।
सिर्फ परमात्मा की प्रत्यक्ष उपस्थिती पर ही ध्यान दें ---
नित्य सायं और प्रातः, व जब भी समय मिले हर ओर से ध्यान हटाकर अपने मन को आत्म-तत्व (परमात्मा) में स्थित कर अन्य कुछ भी चिंतन न करने का अभ्यास करें। सिर्फ परमात्मा की प्रत्यक्ष उपस्थिती पर ही ध्यान दें। हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व, और यह सारी परम विराट और अनंत सृष्टि वे ही हैं। गीता के छठे अध्याय "आत्म संयम योग" में इसे बहुत अच्छी तरह समझाया गया है। उसका स्वाध्याय करें।
"श्रीगुरु चरण सरोज रज" में हमें आश्रय मिले ---
"श्रीगुरु चरण सरोज रज" में हमें आश्रय मिले ---
अगली शताब्दी तक रूस फिर से एक सनातन धर्मावलम्बी हिन्दू देश होगा ---
अगली शताब्दी तक रूस फिर से एक सनातन धर्मावलम्बी हिन्दू देश होगा ---
मैं यह हाड-मांस की भौतिक देह नहीं, सम्पूर्ण सृष्टि हूँ ---
मेरे से अन्य कुछ भी नहीं है। खुली आँखों से जड़-चेतन जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह मैं ही हूँ, मेरे सिवाय अन्य कोई भी नहीं है। आँखें बंद कर के भी जहाँ तक मेरी कल्पना जाती है, वह सारी अनंतता मैं स्वयं हूँ। परमात्मा का सारा सौन्दर्य, सारा प्रेम, सारी करुणा और पूर्णता -- मैं ही हूँ। मेरे से अन्य कुछ भी नहीं है।
धर्म एक ही है और वह है सनातन धर्म; अन्य कोई धर्म नहीं, बल्कि पंथ, मज़हब या रिलीजन हैं ----
भारत के मनीषियों ने "अभ्यूदय" और "निःश्रेयस" की सिद्धि को ही धर्म बताया है। सार रूप में इसका अर्थ है कि जिस से हमारा सर्वतोमुखी सम्पूर्ण विकास हो, और सब तरह के दुःखों/कष्टों से मुक्ति मिले, वही धर्म है।
हम सदा परमात्मा की चेतना में रहें, यही धर्म का पालन है ---
भारत में धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण भी होगा। भारत एक सत्यनिष्ठ धर्मावलम्बी अखंड हिन्दू राष्ट्र भी होगा। असत्य का अंधकार भी दूर होगा। हम सदा परमात्मा की चेतना में रहें। यही भगवत्-प्राप्ति है, यही सत्य-सनातन-धर्म का सार है, और यही धर्म का पालन है, जो सदा हमारी रक्षा करेगा। यही हमारा कर्म है और यही हमारी भक्ति है। भगवान स्वयं हमारी चिंता कर रहे हैं।
यह लेख मेरे प्राणों की वेदना और आनंद की एक अभिव्यक्ति मात्र है, और कुछ भी नहीं --
यह लेख मेरे प्राणों की वेदना और आनंद की एक अभिव्यक्ति मात्र है, और कुछ भी नहीं --
हमारे से भगवान की भक्ति या कोई साधना/उपासना नहीं हो रही है तो हम क्या करें? ---
हमारे से भगवान की भक्ति या कोई साधना/उपासना नहीं हो रही है तो हम क्या करें? ---
देश में बहू-विधान है या संविधान? ---
देश में बहू-विधान है या संविधान? संविधान का अर्थ होता है समान विधान, यानि एक देश, एक कानून। क्या देश में समान नागरिक संहिता है? पृथक-पृथक वर्गों के लिए पृथक-पृथक संहिताएँ क्यों हैं देश में? एक देश - एक कानून ही होना चाहिए सभी के लिए।
आध्यात्मिक साधना का एकमात्र उद्देश्य है -- समष्टि का कल्याण ---
आध्यात्मिक साधना का एकमात्र उद्देश्य है -- समष्टि का कल्याण, जो वर्तमान परिस्थितियों में तभी संभव है जब सत्य-सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण हो; व राष्ट्र में छाये हुये असत्य के अंधकार का नाश हो।
सौ बात की एक बात, जो बड़े काम की है ---
सौ बात की एक बात, जो बड़े काम की है ---
हिंदुओं को कौन सा देश शरण देगा? वहाँ जाने का रास्ता भी कौन देगा ?? ---
हिंदुओं को कौन सा देश शरण देगा? वहाँ जाने का रास्ता भी कौन देगा ?? ---