भगवान की भक्ति कौन कर सकता है? ---
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भगवान की भक्ति वही कर सकता है जिसने अपने पूर्व जन्मों में कुछ पुण्य किये हों या जिस पर भगवान की कृपा हो। मेरी यह अपेक्षा पूर्णतः गलत थी कि सब लोग भगवान की भक्ति करें, या भगवान का ध्यान करें। वास्तव में भगवान स्वयं ही स्वयं की भक्ति करते हैं। जिस पर भगवान की कृपा होती है, वही उनका माध्यम यानि निमित्त बनकर उनकी भक्ति कर सकता है।
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भगवान अपनी अनुभूति मातृरूप में भी करवाते हैं, और पितृरूप में भी। माँ अधिक करुणामयी होती है। मैं दूसरों के बारे में तो कुछ कह नहीं सकता, लेकिन स्वयं के बारे में ही कुछ कहना चाहता हूँ। मेरा प्रत्यक्ष अनुभव है कि भगवती स्वयं ही मुझे निमित्त बनाकर मेरे माध्यम से परमशिव की उपासना कर रही हैं। मैं तो उनका एक उपकरण मात्र हूँ। भगवती की अनुभूति मुझे सूक्ष्म देह में घनीभूत प्राण-तत्व के रूप में, और परमशिव की अनुभूति इस भौतिक देह से बाहर सूक्ष्म जगत की अनंतता से भी परे एक अवर्णनीय श्वेत परम ज्योतिर्मय ब्रह्म रूप में होती है। भगवती इस सूक्ष्म देह के मेरुदंड की ब्रह्मनाड़ी में विचरण करते हुए ब्रह्मरंध्र से बाहर निकलकर अनंताकाशों से भी परे जाकर परमशिव को नमन कर लौट आती हैं। उनकी उपस्थिती से ही यह जीव चैतन्य है। भगवान को अपने हृदय का पूर्ण प्रेम दें। कृपा करना उनका स्वभाव है, वे अवश्य ही कृपा करेंगे।
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हे भगवती, आप के अनुग्रह से ही यह अकिंचन जीव चैतन्य है। आप ही मेरी एकमात्र गति हैं। आप के प्रेम पर मेरा जन्मसिद्ध पूर्ण अधिकार है। आप परमशिव के साथ एक होकर मुझे भी उनके साथ एक कर दीजिये। आप मेरी माता हैं, मुझे स्वयं से पृथक नहीं कर सकतीं। मैं आपके साथ एक हूँ, और एक ही रहूँगा। मैं सदा परमशिव की चेतना में रहूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० फरवरी २०२२