Monday 21 February 2022

भगवान की भक्ति कौन कर सकता है? ---

भगवान की भक्ति कौन कर सकता है? ---
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भगवान की भक्ति वही कर सकता है जिसने अपने पूर्व जन्मों में कुछ पुण्य किये हों या जिस पर भगवान की कृपा हो। मेरी यह अपेक्षा पूर्णतः गलत थी कि सब लोग भगवान की भक्ति करें, या भगवान का ध्यान करें। वास्तव में भगवान स्वयं ही स्वयं की भक्ति करते हैं। जिस पर भगवान की कृपा होती है, वही उनका माध्यम यानि निमित्त बनकर उनकी भक्ति कर सकता है।
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भगवान अपनी अनुभूति मातृरूप में भी करवाते हैं, और पितृरूप में भी। माँ अधिक करुणामयी होती है। मैं दूसरों के बारे में तो कुछ कह नहीं सकता, लेकिन स्वयं के बारे में ही कुछ कहना चाहता हूँ। मेरा प्रत्यक्ष अनुभव है कि भगवती स्वयं ही मुझे निमित्त बनाकर मेरे माध्यम से परमशिव की उपासना कर रही हैं। मैं तो उनका एक उपकरण मात्र हूँ। भगवती की अनुभूति मुझे सूक्ष्म देह में घनीभूत प्राण-तत्व के रूप में, और परमशिव की अनुभूति इस भौतिक देह से बाहर सूक्ष्म जगत की अनंतता से भी परे एक अवर्णनीय श्वेत परम ज्योतिर्मय ब्रह्म रूप में होती है। भगवती इस सूक्ष्म देह के मेरुदंड की ब्रह्मनाड़ी में विचरण करते हुए ब्रह्मरंध्र से बाहर निकलकर अनंताकाशों से भी परे जाकर परमशिव को नमन कर लौट आती हैं। उनकी उपस्थिती से ही यह जीव चैतन्य है। भगवान को अपने हृदय का पूर्ण प्रेम दें। कृपा करना उनका स्वभाव है, वे अवश्य ही कृपा करेंगे।
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हे भगवती, आप के अनुग्रह से ही यह अकिंचन जीव चैतन्य है। आप ही मेरी एकमात्र गति हैं। आप के प्रेम पर मेरा जन्मसिद्ध पूर्ण अधिकार है। आप परमशिव के साथ एक होकर मुझे भी उनके साथ एक कर दीजिये। आप मेरी माता हैं, मुझे स्वयं से पृथक नहीं कर सकतीं। मैं आपके साथ एक हूँ, और एक ही रहूँगा। मैं सदा परमशिव की चेतना में रहूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० फरवरी २०२२

तृतीय विश्व युद्ध की आहट हो रही है ---

 तृतीय विश्व युद्ध की आहट हो रही है। चाहे सारा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, भय की कोई बात नहीं है। कुछ भी हो सकता है, घबराएँ नहीं। भगवान सदा हमारे साथ हैं। हम अपने धर्म पर अडिग रहें। थोड़े-बहुत धर्म का पालन भी हमारी रक्षा करेगा। भगवान कहते हैं --

"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥२:४०॥"
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अति भयावह वन की घोर अंधकारमय निशा में जब सिंहनी भयानक गर्जना करती है तब सारा वन कांप उठता है। उस डरावने वातावरण में विकराल सिंहनी के समीप खड़ा सिंह-शावक क्या भयभीत होता है? यहाँ जगन्माता स्वयं प्रत्यक्ष हमारे समक्ष खड़ी हैं। उनको अपने हृदय का सर्वश्रेष्ठ प्रेम दें। हमारी रक्षा होगी।
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"क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं
चाहे हृदय को ताप दो चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ फरवरी २०२२

नित्य नियमित स्मरण और जप की आवश्यकता ---

 नित्य नियमित स्मरण और जप की आवश्यकता ---

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भगवान का निरंतर स्मरण, चिंतन, मनन, और जप आदि अति आवश्यक हैं क्योकि जब तक अन्तःकरण में हम उन को लाएँगे नहीं तब तक उनकी प्रत्यक्ष अनुभूति हमें नहीं हो सकती। जैसा भी हम सोचेंगे, वैसे ही हो जाएँगे। भगवान से परमप्रेम होगा तो बुरे विचार आयेंगे ही नहीं। आसुरी विचारों का चिंतन करते करते हम स्वयं ही एक असुर बन जाते हैं। सब से बुरा आसुरी विचार जो हमें भगवान से दूर ले जाता है, वह है - "परस्त्री/परपुरुष और पराये धन की कामना, व असत्य का आचरण।"
भगवान कहते हैं --
"प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते॥१६:७॥"
अर्थात् - आसुरी स्वभाव के लोग न प्रवृत्ति को जानते हैं, और न निवृत्ति को। उनमें न शुद्धि होती है, न सदाचार और न सत्य ही होता है॥
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आसुरी प्रकृति के मनुष्य अशुद्ध, दुराचारी, कपटी और मिथ्यावादी ही होते हैं। उनका संग किसी भी परिस्थिति में नहीं करना चाहिए। हमने धन के लोभ में शास्त्रों का अध्ययन छोड़ दिया है और वही अध्ययन करते हैं जिन से धन मिलता है। यह भी एक तरह की आसुरी वृत्ति ही है।
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भगवान का नित्य निरंतर स्मरण तो हम कर ही सकते हैं। भगवान कहते हैं --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् - इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
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भगवान ने सभी को विवेक दिया है। उस विवेक के प्रकाश में निरंतर भगवान की चेतना में रहें। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ फरवरी २०२२

भगवान के सारे रूप एक उन्हीं के हैं ---

 भगवान के सारे रूप एक उन्हीं के हैं। भगवान स्वयं ही पद्मासन में बैठे हैं, और स्वयं ही स्वयं का ध्यान कर रहे हैं; उनके सिवाय कोई अन्य है ही नहीं। भगवती के विभिन्न रूपों में जिनकी आराधना हम करते हैं, वे सारे रूप भी उन्हीं के हैं। वे ही ज्योतिर्मय ब्रह्म हैं, वे ही परमशिव हैं, वे ही विष्णु और वे ही नारायण हैं।

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साधना करने, व साधक होने का भाव एक भ्रम मात्र ही है। भगवान स्वयं ही स्वयं की साधना करते हैं। हम तो उनके एक उपकरण, माध्यम और निमित्त मात्र हैं। कर्ता तो वे स्वयं हैं। उनकी यह चेतना सदा बनी रहे।
ॐ तत्सत् !! 🌹🕉🕉🕉🌹
कृपा शंकर
२१ फरवरी २०२२

भगवान वासुदेव स्वयं ही पद्मासन में बैठे हैं, और स्वयं ही स्वयं का ध्यान कर रहे हैं| वे ही परमशिव हैं, वे ही नारायण हैं, और वे ही पारब्रह्म परमेश्वर हैं ---

 

🌹भगवान वासुदेव स्वयं ही पद्मासन में बैठे हैं, और स्वयं ही स्वयं का ध्यान कर रहे हैं| वे ही परमशिव हैं, वे ही नारायण हैं, और वे ही पारब्रह्म परमेश्वर हैं ---
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एक समय था जब हृदय में एक अभीप्सा, तड़प, अतृप्त प्यास और बेचैनी थी भगवान को प्राप्त करने की| बाधक था तो स्वयं का ही प्रारब्ध| अब कुछ-कुछ कृपा हुई है भगवान की, जिस से पता चला है कि वस्तुस्थिति कुछ और ही है|
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एक दिन अचानक ही पाया कि -- वह अभीप्सा, साधना करने, व साधक होने का भाव एक भ्रम मात्र ही था| भगवान स्वयं ही स्वयं की साधना करते हैं| हम तो उनके एक उपकरण, माध्यम और निमित्त मात्र हैं, कर्ता तो वे स्वयं हैं| जब भी उनसे प्रेम की अनुभूति होती है तो पाता हूँ कि प्रेमी, प्रेमास्पद और प्रेम वे स्वयं ही हैं| न तो मैं हूँ, और न कुछ मेरा है, और कुछ भी उन से अन्य नहीं है| सब कुछ तो व्यक्त हो गया, पता चल गया, और बचा ही क्या है? जो करना है वह वे ही करेंगे|
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यह भारतभूमि पुनश्च: भगवान की क्रीड़ास्थली बनेगी| यहाँ सनातन धर्म की पुनर्स्थापना होगी और वैश्वीकरण भी होगा| गीता के ब्रह्मज्ञान का घोष फिर से यहाँ गूंजेगा| असत्य का अंधकार दूर होगा| भारत एक आध्यात्मिक धर्मनिष्ठ राष्ट्र होगा|
हरिः ॐ तत्सत् !! 🥀🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
२१ फरवरी २०२१