Sunday, 9 February 2025

चलते-फिरते हर समय भगवान की चेतना में कैसे रहें? ---

 चलते-फिरते हर समय भगवान की चेतना में कैसे रहें?

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भगवान को भूलना ही पाप है, और उनका निरंतर स्मरण ही पुण्य है। अपने इष्ट देव की छवि को हर समय अपनी चेतना में रखें। उन्हीं को अपने जीवन का केंद्र-बिन्दु/कर्ता बनाएँ। यह भाव रखें कि वे ही आपके मन से सोच रहे हैं, वे ही आपकी बुद्धि/विवेक हैं, वे ही आपके पैरों से चल रहे हैं, वे ही आपके हाथों से हरेक कार्य कर रहे हैं, वे ही आपकी आँखों से देख रहे हैं, वे ही आपके हृदय में धड़क रहे हैं, और वे ही आपका जीवन हैं। वास्तव में वे ही आपका अस्तित्व हैं। आपकी हरेक क्रिया के पीछे उन्हीं का अस्तित्व है।
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इसका अभ्यास करते-करते आप भगवान को सदा अपने पास पाओगे। कभी भूल भी जाओ तो याद आते ही पुनः स्मरण आरंभ कर दीजिए। यह मैं अपनी ओर से नहीं कह रहा हूँ, यह गीता में भगवान का आदेश है --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् - "इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥"
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"क्षणभंगुर - जीवन की कलिका,
कल प्रात को जाने खिली न खिली।
मलयाचल की शुचि शीतल मन्द
सुगन्ध समीर मिली न मिली।
कलि काल कुठार लिए फिरता,
तन नम्र से चोट झिली न झिली।
कहले हरिनाम अरी रसना,
फिर अन्त समय में हिली न हिली।" (कवि: ना.रा.शा."नम्र" बरेली)
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
११ फरवरी २०२३