Saturday 18 June 2016

सबसे बड़ी सेवा, सबसे बड़ा कर्तव्य, और मोक्ष की अवधारणा ......

यह निश्चित रूप से मेरा मत है कि जब भारतवर्ष की अस्मिता सनातन धर्म पर इतने कुटिल. क्रूर और मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं तब व्यक्तिगत मोक्ष और कल्याण की कामना धर्म नहीं हो सकती| मोक्ष की हमें व्यक्तिगत रूप से कोई आवश्यकता नहीं है| आत्मा तो नित्य मुक्त है, बंधन केवल भ्रम मात्र हैं|
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मोक्ष की अवधारणा ..........
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(1) उपनिषदों में अद्वैतानुभूती से प्राप्त आनंद की स्थिति को ही मोक्ष की स्थिति कहा गया है, क्योंकि आनंद में सारे द्वंद्वों का विलय हो जाता है| वेदांत में मुमुक्षु को श्रवण, मनन एवं निदिध्यासन, द्वारा अविद्याकृत नानात्व का विनाश कर ब्रह्मस्वरूप आत्मसाक्षात्कार करना होताहै| मुमुक्षु "तत्वमसि" से "अहंब्रह्मास्मि" की ओर बढ़ता है| यहाँ आत्मसाक्षात्कार को ही मोक्ष माना गया है| वेदांत में यह स्थिति जीवनमुक्ति की स्थिति है|
(2) भक्ति में भगवान का सान्निध्य और शरणागति द्वारा समर्पण ही मोक्ष है|
(3) सांसारिक लोग समझते हैं कि संसार से मुक्ति ही मोक्ष है| संसार में आवागमन, जन्म-मरण और इस अविद्याकृत प्रपंच से मुक्ति पाना ही मोक्ष माना जाता है, और इसे अंतिम परिणिति मानकर जीवन के परम उद्देश्य के रूप में स्वीकार किया गया है|
पर संसार से मुक्ति असम्भव है| जीव उच्चतर लोकों व सूक्ष्मतर देहों में जा सकता है पर रहेगा सृष्टि के घेरे में ही| जब पुण्य/पाप क्षीण हो जायेंगे तब बापस तो आना ही पड़ेगा| मोक्ष को वस्तुसत्य के रूप में स्वीकार करना कठिन है|
(4) जब तक देह बोध है तब तक देह व उससे जुड़ी हर वस्तु से मोह भी बना ही रहेगा| व्यष्टि की चेतना से मुक्त होकर जब प्राणी समष्टि की चेतना से युक्त हो जाता है, तब वह सब तरह के मोह से मुक्त हो जाता है| सब तरह के मोह का क्षय ही मोक्ष है|
पर ऐसी स्थिति आती है गहन साधना और जीवन्मुक्त सिद्ध गुरु की कृपा से| इसके लिए साधना द्वारा सब प्रकार के संचित कर्मों से मुक्त और सब ऋणों से उऋण भी होना पड़ता है| धर्म और राष्ट्र का भी एक ऋण होता है हर व्यक्ति पर| धर्माचरण हमारा सबसे बड़ा दायीत्व है| भगवान भी धर्म की रक्षा के लिए अवतृत होते हैं|
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सबसे बड़ी सेवा और सबसे बड़ा कर्तव्य .....
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सबसे बड़ी सेवा जो हम समाज, राष्ट्र और दूसरों के लिए कर सकते हैं, वह है परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण| हम स्वयं परमात्मा को उपलब्ध हो कर के, उस उपलब्धि के द्वारा बाहर के विश्व को एक नए साँचे में ढाल सकते हैं| सर्वप्रथम हमें स्वयं को परमात्मा के प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा|
फिर हमारा किया हुआ हर संकल्प पूरा होगा| तब प्रकृति की हरेक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य होगी| जिस प्रकार एक इंजन अपने ड्राइवर के हाथों में सब कुछ सौंप देता है, एक विमान अपने पायलट के हाथों में सब कुछ सौंप देता है वैसे ही हमें अपनी सम्पूर्ण सत्ता परमात्मा के हाथों में सौंप देनी चाहिए|
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मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है , इतिहास की धारा को बदल सकते हैं| एक दृढ़ संकल्पवान व्यक्ति का संकल्प पूरे विश्व को बदल सकता है| आप का दृढ़ संकल्प भी भारत के अतीत के गौरव और सम्पूर्ण विश्व में सनातन हिन्दू धर्म को पुनर्प्रतिष्ठित कर सकता है|
भारत की सभी समस्याओं का निदान हमारे भीतर है|
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जो लोग भगवान से कुछ माँगते हैं, भगवान उन्हें वो ही चीज देते हैं जिसे वे माँगते हैं| परन्तु जो लोग अपने आप को दे देते हैं और कुछ भी नहीं माँगते, उन्हें वे अपना सब कुछ दे देते हैं, उस व्यक्ति का हर संकल्प पूरा होता है|
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अपने लिए हमें कोई कामना नहीं रखनी चाहिये, जिससे परमात्मा हमारे माध्यम से कार्य कर सकें| उन्हें अपने भीतर प्रवाहित होने दें| सारे अवरोध नष्ट कर दें| हमारी एकमात्र कामना होनी चाहिए परमात्मा को उपलब्ध होना, अर्थात परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण|
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सारी सृष्टि का भविष्य इस पृथ्वी पर निर्भर है, इस पृथ्वी का भविष्य भारतवर्ष पर निर्भर है, और भारतवर्ष का भविष्य सनातन हिन्दू धर्म पर निर्भर है, सनातन हिन्दू धर्म का भविष्य आप के संकल्प पर निर्भर है| और भी स्पष्ट शब्दों में आप पर ही पूरी सृष्टि का भविष्य निर्भर है|
धर्मविहीन राष्ट्र और समाज से इस सृष्टि का ही विनाश निश्चित है|
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भारत माँ अपने पूर्ण वैभव के साथ पुनश्चः अखण्डता के सिंहासन पर निश्चित रूप से बिराजमान होगी| भारत के घर घर में वेदमंत्रों की ध्वनियाँ गूंजेगीं| पूरा भारत पुनश्चः अखंड हिन्दू राष्ट्र होगा और धर्म आधारित राज्य सत्ता होगी| ब्रह्मतेजमय एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति भारतवर्ष का अभ्युत्थान करेगी| यह कार्य सांसारिक राजनीतिक लोगों द्वारा संभव नहीं है|
कहीं भी कोई असत्य और अन्धकार नहीं होगा| राम राज्य फिर से स्थापित होगा|
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वह दिन देखने को हम जीवित रहें या ना रहें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता| अनेक बार जन्म लेना पड़े तो भी यह कार्य संपादित होते हुए ही हम देखेंगे| इसमें मुझे कोई भी संदेह नहीं है|
अब आवश्यकता है सिर्फ अपन सब के विचारपूर्वक किये हुए सतत संकल्प और प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण की|
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पूरी सृष्टि में परमात्मा की सबसे अधिक अभिव्यक्ति भारतवर्ष में ही हुई है| भारत से सनातन हिन्दू धर्म नष्ट हुआ तो इस विश्व का विनाश भी निश्चित है| वर्त्तमान अन्धकार का युग समाप्त हो चुका है| बाकि बचा खुचा अन्धकार भी शीघ्र दूर हो जाएगा| अतीत के कालखंडों में भी अनेक बार इस प्रकार का अन्धकार छाया है पर विजय सदा सत्य की ही रही है|
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परमात्मा के एक संकल्प से यह सृष्टि बनी है| आप भी एक शाश्वत आत्मा हैं| आप भी परमात्मा के एक दिव्य अमृत पुत्र हैं| जो कुछ भी परमात्मा का है वह आपका ही है| आप कोई भिखारी नहीं हैं| परमात्मा को पाना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| आप उसके अमृत पुत्र हैं|
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जब परमात्मा के एक संकल्प से इस विराट सृष्टि का उद्भव और स्थिति है तो आपका संकल्प भी भारतवर्ष का अभ्युदय कर सकता है क्योंकि आप स्वयं परमात्मा के अमृतपुत्र हैं| जो भगवान् का है वह आप का ही है| आपके विशुद्ध अस्तित्व और प्रभु में कोई भेद नहीं है| आप स्वयं ही परमात्मा हैं जिसके संकल्प से धर्म और राष्ट्र का उत्कर्ष हो रहा है| आपका संकल्प ही परमात्मा का संकल्प है|
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वर्तमान में जब धर्म और राष्ट्र के अस्तित्व पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे है तब व्यक्तिगत कामना और व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु साधना उचित नहीं है|
जो साधना एक व्यक्ति अपने मोक्ष के लिए करता है वो ही साधना यदि वो धर्म और राष्ट्र के अभ्युदय के लिए करे तो निश्चित रूप से उसका भी कल्याण होगा| धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है| हमारा सर्वोपरि कर्त्तव्य है धर्म और राष्ट्र की रक्षा|
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धर्म कि रक्षा धर्माचरण द्वारा ही हो सकती है| आप धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी आप की रक्षा करेगा| धर्म की रक्षा आप का सर्वोपरि कर्तव्य है
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एक छोटा सा संकल्प रूपी योगदान आप कर सकते हैं| जब भी समय मिले शांत होकर सीधे बैठिये| दृष्टि भ्रूमध्य में स्थिर कीजिये| अपनी चेतना को सम्पूर्ण भारतवर्ष से जोड़ दीजिये| यह भाव कीजिये कि आप यह देह नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष हैं| एक दिव्य अनंत प्रकाश की कल्पना कीजिये जो आपका अपना ही प्रकाश है| आप स्वयं ही वह प्रकाश हैं| वह प्रकाश ही सम्पूर्ण भारतवर्ष है| उस प्रकाश को और भी गहन से गहनतम बनाइये| अब यह भाव रखिये कि आपकी हर श्वास के साथ वह प्रकाश और भी अधिक तीब्र और गहन हो रहा है और सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्माण्ड और सृष्टि को आलोकित कर रहा है| आप में यानि भारतवर्ष में कहीं भी कोई असत्य और अन्धकार नहीं है| यह भारतवर्ष का ही आलोक है जो सम्पूर्ण सृष्टि को ज्योतिर्मय बना रहा है| इस ज्योतिर्मय ब्रह्म की भावना को दृढ़ से दृढ़ बनाइये| नित्य इसकी साधना कीजिये|
पृष्ठभूमि में ओंकार का जाप भी करते रहिये| आपको धीरे धीरे स्पष्ट रूप से प्रकाश भी दिखने लगेगा और ओंकार की ध्वनी भी सुनने लगेगी|
सदा यह भाव रखें की आप ही सम्पूर्ण भारतवर्ष हैं और आप निरंतर ज्योतिर्मय हो रहे हैं|
कहीं भी कोई असत्य और अन्धकार नहीं है|
आप की रक्षा होगी| भगवन आपके साथ है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

मन को जीते बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती .....

विद्या और ज्ञान तो वह है जो परमात्मा का बोध करा दे, बाकि सब तो अविद्या और अज्ञान ही है| जो सब तरह के राग, द्वेष, अहंकार, मन की दासता, व सभी विषयों से आसक्ति मिटा कर अंतःकरण पर विजय दिला दे, और जो पुनश्चः हमें अपने सच्चिदानंद स्वरुप में स्थित करा दे वही ज्ञान है|
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परमात्मा के स्थायी और पूर्ण बोध के अतिरिक्त अन्य कोई भी स्पृहा न हो|
कहाँ हम अपने सच्चिदानंद स्वरुप से पतित होकर मन और वासनाओं के दास हो गये हैं! जो यह ज्ञान दे वही गुरु है| आजकल ऐसे श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य कहाँ मिलते हैं? भगवान श्री कृष्ण सब गुरुओं के गुरु हैं| अतः उन्हीं को अपना सर्वस्व मानकर उन्हीं की ध्यान साधना में शरणागत होकर अपना जीवन समर्पित कर देना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ होगा| यह उनका दिया हुआ वचन है कि वे अपने शरणागत की रक्षा करेंगे, अतः चिंता की कोई बात नहीं है| निराकार रूप में भी वे ही परम ब्रह्म हैं|
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हम यह देह नहीं हैं, हम सच्चिदानंद परमात्मा के अंश हैं| समुद्र की एक बूँद महासागर को समर्पित होकर महासागर ही बन जाती है| वैसे ही अपनी सम्पूर्ण चेतना परमात्मा को समर्पित कर हम भी परम कल्याणकारक शिवस्वरुप ब्रह्म बन जाते हैं|
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अपने आत्मस्वरूप में स्थित कैसे हों, हमारे लिए यही विचारणीय और पुरुषार्थ का विषय है| यही हमारी एकमात्र समस्या है| बाकी सब समस्याएँ भगवान की हैं|


किसी भी नए साधक के लिए ध्यान साधना का आरम्भ आचार्य मधुसुदन सरस्वती द्वारा लिखे भगवान के इसी रूप से हो तो वह सर्वश्रेष्ठ होगा ....
"वंशीविभूषित करान्नवनीरदाभात्,
पीताम्बरादरूण बिम्बफला धरोष्ठात्, |
पूर्णेंदु सुन्दर मुखादरविंदनेत्रात्,
कृष्णात्परं किमपि तत्वमहं न जाने ||"
ॐ ॐ ॐ |

हम कभी भी अकेले नहीं हैं ......

हम कभी अकेले हो ही नहीं सकते | भगवान सदा हमारे साथ हैं | उस अदृष्य मित्र की परम प्रेममय उपस्थिति को सदा अनुभूत करना ही सर्वाधिक आनंददायक है|

परमात्मा अपरिभाष्य है ...

परमात्मा किसी भी तरह के ज्ञान की सीमा से परे हैं| हम उन्हें किसी भी तरह के ज्ञान में नहीं बाँध सकते क्योंकि वे रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श से परे होने के कारण बुद्धि द्वारा अगम्य हैं| सिर्फ श्रुतियां ही प्रमाण हैं|

जिसका अंतःकरण शुद्ध है, वही सिद्ध महात्मा है| अंतःकरण की शुद्धि ही सिद्धि है| अज्ञान की निवृत्ति ही ब्रह्म की प्राप्ति है|