Tuesday, 11 April 2017

"भारतीय नववर्ष" व "नवरात्र स्थापन" की शुभ कामनाएँ और अभिनन्दन .....

ॐ| विभिन्न देहों में मेरे ही प्रियतम निजात्मण, आप सब में साकार परमात्मा को मैं नमन करता हूँ| आप सब को ......
"भारतीय नववर्ष" व "नवरात्र स्थापन" की शुभ कामनाएँ और अभिनन्दन.
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नववर्ष का संकल्प :---- यह वर्ष हमारे जीवन का अब तक का सर्वश्रेष्ठ वर्ष होगा| हमारे जीवन में प्रभु का परम प्रेम और परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति होगी|
हम अपने राष्ट्र भारतवर्ष को अपनी वर्तमान स्थिति से उबारने के लिए एक ब्रह्मतेज को जागृत करेंगे, हम गुणातीत होंगे, किसी भी तरह की विकृती हमारे भीतर नहीं होगी और परम तत्व का साक्षात्कार कर हम उच्चतम आध्यात्मिक शिखर पर आरूढ़ होंगे|
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रक्तबीज और महिषासुर हमारे भीतर अभी भी जीवित हैं, उनकी चुनौती और अट्टहास हम सब को नित्य सुनाई देता है| ये हमारे अवचेतन मन में छिपे हैं और चित्त की वृत्तियों के रूप में निरंतर प्रकट होते हैं| जितना इनका दमन करते हैं, उतना ही इनका विस्तार होता है| सारे दुःखों, कष्टों, पीड़ाओं, दरिद्रता और दुर्गति के मूल में ये दोनों ही महा असुर हैं| निज प्रयास से इनका नाश नहीं हो सकता| भगवान श्रीराम और जगन्माता की शक्ति ही इनका विनाश कर सकती है| उस शक्ति के लिए हमें साधना करनी होगी|
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परस्त्री/पुरुष व पराये धन की कामना, अन्याय/अधर्म द्वारा धन पाने की इच्छा, परपीड़ा, अधर्माचरण और मिथ्या अहंकार ही रक्तबीज है|
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प्रमाद यानि आलस्य, काम को आगे टालने की प्रवृत्ति और तमोगुण ही महिषासुर है|
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जगन्माता ......
महाकाली के रूप में दुष्वृत्तियों का विनाश करती हैं|
महालक्ष्मी के रूप में सद्वृत्तियाँ प्रदान करती हैं|
महासरस्वती के रूप में आत्मज्ञान प्रदान करती हैं|
दुर्गा के रूप में मनुष्य को दुर्गति से बचाती है
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प्रार्थना :-
माँ, यह सारी सृष्टि तुम्हारे मन की एक कल्पना, विचार और संकल्प मात्र है|
हमारा समर्पण स्वीकार करो| हम सब तुम्हारी संतानें हैं, हमारी रक्षा करो| हमारे भीतर और बाहर चारों ओर छाई हुई असत्य और अन्धकार की शक्तियों व अज्ञान रुपी ग्रंथियों का नाश हो| भारत के भीतर और बाहर के सभी शत्रुओं का नाश हो| सनातन धर्म की सर्वत्र पुनर्प्रतिष्ठा हो| भगवान श्रीराम का हमारे चैतन्य में सदा निवास हो| सब का कल्याण हो| ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः.... भारतीय नववर्ष की शुभ कामनाएँ |
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जय माँ ! जय श्रीराम ! ॐ नमःशिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||


कृपाशंकर चै.शु.१वि.सं.२०७३ .  08April2016

हमें परमात्मा की प्राप्ति क्यों नहीं होती ?.............

हमें परमात्मा की प्राप्ति क्यों नहीं होती ? .....
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||ॐ|| विभिन्न देहों में मेरे ही प्रियतम निजात्मन, आप सब में साकार परमात्मा को मैं नमन करता हूँ| एक शाश्वत् प्रश्न है कि हमें परमात्मा की प्राप्ति क्यों नहीं होती ?
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इसका उत्तर मैं अपनी भाषा में यदि सरलतम और स्पष्टतम शब्दों में देना चाहूँ तो इसका एक ही उत्तर है, और वह यह है कि ..... "हमारे में ईमानदारी की कमी है, हम स्वयं के प्रति ईमानदार नहीं हैं, हम स्वयं को ठगना चाहते हैं और स्वयं के द्वारा ही ठगे जा रहे हैं|"
किसी भी सांसारिक उपलब्धी के लिए तो हम दिन रात एक कर देते हैं, हाडतोड़ परिश्रम करते हैं, पर जो उच्चतम उपलब्धी है वह हम सिर्फ ऊँची ऊँची बातों के शब्दजाल से ही प्राप्त करना चाहते हैं| वास्तविकता तो यह है की हम परमात्मा को प्राप्त करना ही नहीं चाहते| हम सिर्फ सांसारिक सुखों को, सांसारिक उपलब्धियों को और अधिक से अधिक अपने अहंकार की तृप्ति के लिए ही भगवान की विभूतियों को प्राप्त करना चाहते हैं| हमारे लिए भगवान एक माध्यम है, पर लक्ष्य तो संसार है| यानि साध्य तो संसार है और भगवान एक साधन मात्र| कोई दो लाख में से एक व्यक्ति ही ऐसा होता है जो परमात्मा को पाना चाहता है|
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प्राचीन भारत एक अपवाद था| यहाँ की सनातन संस्कृति ही विकसित हुई परमात्मा यानि ब्रह्म को पाने का ही लक्ष्य बनाकर| यहाँ की संस्कृति में सम्मान ही हुआ तो ब्रह्मज्ञों का| जीवात्मा का उद्गम जहाँ से हुआ है, वहाँ अपने स्त्रोत में उसे बापस तो जाना ही पड़ेगा चाहे लाखों जन्म और लेने पड़ें| तभी जीवन चक्र पूर्ण होगा|
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इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, बहुत सारा सद्साहित्य इस विषय पर उपलब्ध है| अनेक संत महात्मा हैं जो निष्ठावान मुमुक्षुओं का मार्गदर्शन करते रहते हैं| अतः और लिखने की आवश्यकता नहीं है| जब ह्रदय में अहैतुकी परम प्रेम और निष्ठा होती है तब भगवान मार्गदर्शन स्वयं ही करते हैं| पात्रता होने पर सदगुरु का आविर्भाव भी स्वतः ही होता है|
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जब हम अग्नि के समक्ष बैठते हैं तो ताप की अनुभूति अवश्य होती है| कई बार अनुभूति ना होने पर भी ताप तो मिलता ही है| वैसे ही जब भी हम परमात्मा का स्मरण या ध्यान करते हैं तो उनके अनुग्रह की प्राप्ति अवश्य होती है|
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परमात्मा को पाने का मार्ग है अहैतुकी (Unconditional) परम प्रेम| प्रेम में कोई माँग नहीं होती, मात्र शरणागति और समर्पण होता है| प्रेम, गहन अभीप्सा और समर्पण हो तो और कुछ भी नहीं चाहिए| सब कुछ अपने आप ही मिल जाता है| अपने प्रेमास्पद का ध्यान निरंतर तेलधारा के समान होना चाहिए| प्रेम हो तो आगे का सारा ज्ञान स्वतः ही प्राप्त हो जाता है और आगे के सारे द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं|
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जो लोग सेवानिवृत है उन्हें तो अधिक से अधिक समय नामजप और ध्यान में बिताना चाहिए| सांसारिक नौकरी में अपना वेतन प्राप्त करने के लिए दिन में कम से कम आठ घंटे काम करना पड़ता है| व्यापारी की नौकरी तो चौबीस घंटे की होती है| कुछ समय भगवान की नौकरी भी करनी चाहिए| जब जगत मजदूरी देता है तो भगवान क्यों नहीं देंगे? उनसे मजदूरी तो माँगनी ही नहीं चाहिए| माँगना ही है तो सिर्फ उनका प्रेम, प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं| प्रेम को ही मजदूरी मान लीजिये| एक बात का ध्यान रखें ..... मजदूरी उतनी ही मिलेगी जितनी आप मेहनत करोगे| बिना मेहनत के मजदूरी नहीं मिलेगी| इस सृष्टि में निःशुल्क कुछ भी नहीं है| हर चीज की कीमत चुकानी पडती है|
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सार :---- हमें परमात्मा की प्राप्ति इसलिए नहीं होती क्योंकि हम परमात्मा को प्राप्त करना ही नहीं चाहते| हम स्वयं के प्रति ईमानदार नहीं हैं| अपने अहंकार की तृप्ति के लिए भक्ति का झूठा दिखावा करते हैं| अपनी मानसिक कल्पना से और झूठे शब्द जाल से स्वयं को ठग रहे हैं| हमने परमात्मा को तो साधन बना रखा है, पर साध्य तो संसार ही है|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को पुनश्चः प्रणाम| आप सब की जय हो| ॐ तत्सत् ! ॐ श्रीगुरवे नमः ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ अप्रेल २०१५

जगन्माता से प्रेम ......

जगन्माता से प्रेम .....
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जब अरुणिमा की एक झलक दूर से मिलती है तब यह भी सुनिश्चित है कि सूर्योदय में अधिक विलम्ब नहीं है| वैसे ही जगन्माता के प्रेम की एक झलक मिल जाए तो यह सुनिश्चित है कि जीवन में माँ का अवतरण होने ही वाला है|
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बंगाल में राम प्रसाद नाम के एक भक्त कवि हुए हैं जो नित्य जगन्माता का दर्शन माँ काली के रूप में करते , उनसे बात भी करते और भाव जगत में उनके बालक बनकर साथ साथ खेलते भी थे| उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद करवा कर मैनें कई वर्षों पूर्व अध्ययन किया था| उनसे जगन्माता कोई वरदान माँगने के लिए कहतीं तो वे माँ से सिर्फ उनका पूर्ण प्रेम ही माँगते| सदा माँ का उत्तर यही होता कि यदि मैं तुम्हें अपना पूर्ण प्रेम दे दूँगी तो मेरे पास कुछ भी नहीं बचेगा|
माँ से कुछ माँगना ही है तो सिर्फ प्रेम ही माँगना चाहिए फिर सब कुछ अपने आप ही मिल जाता है|
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हमें अपने 'कर्ता' होने के मिथ्या अभिमान को त्याग देना चाहिए| एकमात्र कर्ता तो माँ भगवती ही हैं| अपना सर्वस्व उनके श्री चरणों में समर्पित कर देना चाहिए|
'कर्ता' तो जगन्माता माँ भगवती स्वयं है जो यज्ञ रूप में हमारे कर्मफल परमात्मा को अर्पित करती है| वे 'कर्ता' ही नहीं 'दृष्टा' 'दृश्य' व 'दर्शन' भी हैं, 'साधक' 'साधना' व 'साध्य' भी हैं, और 'उपासना' ;उपासक' और 'उपास्य' भी हैं|
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भगवन श्रीकृष्ण का अभय वचन है .....
"मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात् तरिष्यसि |"
अपना चित्त मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर लेगा|
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भगवान श्रीराम का भी अभय वचनं है --
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं ममः||"
एक बार भी जो मेरी शरण में आ जाता है उसको सब भूतों (यानि प्राणियों से) अभय प्रदान करना मेरा व्रत है|
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जब साकार परमात्मा के इतने बड़े वचन हैं तो शंका किस बात की? तुरंत कमर कस कर उनके प्रेम सागर में डुबकी लगा देनी चाहिए| मोती नहीं मिलते हैं तो दोष सागर का नहीं है, दोष डुबकी में ही है जिसमें पूर्णता लाओ|
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ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||