दूसरों के गले काट कर कोई बड़ा नहीं बन सकता. दूसरों की ह्त्या कर के,
पराई संपत्ति का विध्वंश कर के, और दूसरों को हानि पहुंचा कर कोई महान नहीं
बनता. दूसरों को मारकर, और दूसरों को हानि पहुंचाकर लोग महान और पूर्ण
बनना चाहते हैं, पर उनके लिए ऐसी पूर्णता एक मृगतृष्णा ही रहती है.
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पूर्णता बाहरी संसार में नहीं है. पूर्णता निजात्मा में ही संभव है. पूर्णता की खोज में मनुष्य ने पूँजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद, फासीवाद, सेकुलरवाद, जैसे अनेक वाद खोजे, और अनेक कलियुगी मत-मतान्तरों, पंथों व सम्प्रदायों का निर्माण किया. पर किसी से भी मनुष्य को सुख-शांति नहीं मिली. इन्होने मनुष्यता को कष्ट ही कष्ट दिए.
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आज भी मानवता अशांत है और दूसरों के विनाश में ही पूर्णता खोज रही है. पर इतने नरसंहार और विध्वंश के पश्चात भी उसे कहीं सुख शांति नहीं मिल रही है. अभी भी अधिकाँश मानवता की यही सोच है कि जो हमारे विचारों से असहमत हैं उनका विनाश कर दिया जाए. पर क्या इस से उन्हें सुख शान्ति मिल जायेगी? कभी नहीं मिलेगी.
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पूर्णता स्वयं की आत्मा में ही हो सकती है, जो परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण से ही व्यक्त होती है. यह जो इतनी भयंकर मार-काट, अन्याय, और हिंसा हो रही है, अप्रत्यक्ष रूप से यह मनुष्य की निराशाजनक रूप से पूर्णता की ही खोज है. मनुष्य सोचता है कि दूसरों के गले काटकर वह बड़ा बन जाएगा, पर सदा असंतुष्ट ही रहता है और आगे भी दूसरोंके गले काटने का अवसर ढूंढता रहता है|
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पूर्ण तो सिर्फ परमात्मा ही है जिस से जुड़ कर ही हम पूर्ण हो सकते हैं, दूसरों के गले काट कर, या पराई संपत्ति का विध्वंश कर के नहीं.
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यहाँ मैं बाइबिल में (Matthew 26:52) ईसा मसीह को उद्धृत कर रहा हूँ ..... "Put your sword back in its place," Jesus said to him ...
"Those who use the sword will die by the sword. ... Then Jesus said to him, "Put your sword back into its place; for all those who take up the sword shall perish by the sword. ... Everyone who uses a sword will be killed by a sword.
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श्रुति भगवती पूर्णता के बारे में कहती है .....
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
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पूर्णता बाहरी संसार में नहीं है. पूर्णता निजात्मा में ही संभव है. पूर्णता की खोज में मनुष्य ने पूँजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद, फासीवाद, सेकुलरवाद, जैसे अनेक वाद खोजे, और अनेक कलियुगी मत-मतान्तरों, पंथों व सम्प्रदायों का निर्माण किया. पर किसी से भी मनुष्य को सुख-शांति नहीं मिली. इन्होने मनुष्यता को कष्ट ही कष्ट दिए.
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आज भी मानवता अशांत है और दूसरों के विनाश में ही पूर्णता खोज रही है. पर इतने नरसंहार और विध्वंश के पश्चात भी उसे कहीं सुख शांति नहीं मिल रही है. अभी भी अधिकाँश मानवता की यही सोच है कि जो हमारे विचारों से असहमत हैं उनका विनाश कर दिया जाए. पर क्या इस से उन्हें सुख शान्ति मिल जायेगी? कभी नहीं मिलेगी.
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पूर्णता स्वयं की आत्मा में ही हो सकती है, जो परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण से ही व्यक्त होती है. यह जो इतनी भयंकर मार-काट, अन्याय, और हिंसा हो रही है, अप्रत्यक्ष रूप से यह मनुष्य की निराशाजनक रूप से पूर्णता की ही खोज है. मनुष्य सोचता है कि दूसरों के गले काटकर वह बड़ा बन जाएगा, पर सदा असंतुष्ट ही रहता है और आगे भी दूसरोंके गले काटने का अवसर ढूंढता रहता है|
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पूर्ण तो सिर्फ परमात्मा ही है जिस से जुड़ कर ही हम पूर्ण हो सकते हैं, दूसरों के गले काट कर, या पराई संपत्ति का विध्वंश कर के नहीं.
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यहाँ मैं बाइबिल में (Matthew 26:52) ईसा मसीह को उद्धृत कर रहा हूँ ..... "Put your sword back in its place," Jesus said to him ...
"Those who use the sword will die by the sword. ... Then Jesus said to him, "Put your sword back into its place; for all those who take up the sword shall perish by the sword. ... Everyone who uses a sword will be killed by a sword.
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श्रुति भगवती पूर्णता के बारे में कहती है .....
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
शांति मन्त्र ......
"ॐ सहनाववतु | सह नौ भुनक्तु | सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु | मा विद्विषावहै ||
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
ॐ ॐ ॐ ||
१० सितम्बर २०१७
"ॐ सहनाववतु | सह नौ भुनक्तु | सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु | मा विद्विषावहै ||
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
ॐ ॐ ॐ ||
१० सितम्बर २०१७