Saturday, 17 September 2016

ईश्वरार्पण बुद्धि से हर कार्य करना चाहिए .....

ईश्वरार्पण बुद्धि से हर कार्य करना चाहिए .....
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जीवन का छोटे से छोटा, और बड़े से बड़ा, हर कार्य परमात्मा को समर्पित होना चाहिए| हर कार्य के आरम्भ, मध्य और अंत में निरंतर परमात्मा का स्मरण कर उन्हें ही कर्ता बनाना चाहिए| हमारे द्वारा न चाहते हुए भी साँस चलती है, वह भी परमात्मा को समर्पित होनी चाहिए| यह साँस परमात्मा ही ले रहें, न कि हम| अतः हर दो सांसों के मध्य भी परमात्मा का स्मरण रहना चाहिए|
हमें भूख लगती है तब जो कुछ भी खाते हैं वह भी परमात्मा को ही समर्पित हो|
हमें सुख और दुःख की अनुभूतियाँ होती हैं, वे सुख और दुःख भी परमात्मा के ही हैं, हमारे नहीं| साधना मार्ग की जो भी कठिनाइयां हैं वे भी परमात्मा की ही हैं, हमारी नहीं|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

मरूँ पर माँगू नहीं, अपने तन के काज | परमारथ के कारणे, मोहिं न आवै लाज ||

"मरूँ पर माँगू नहीं, अपने तन के काज |
परमारथ के कारणे, मोहिं न आवै लाज ||"
(मर जाऊँ, परन्तु अपने शरीर के स्वार्थ के लिए नहीं माँगूँगा| परमार्थ के लिए माँगने में मुझे लज्जा नहीं लगती)
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हे, प्रभु, मैं यदि तुम से स्वयं के लिए कुछ माँगूँ तो मेरी प्रार्थना कभी भी स्वीकार मत करना| मेरे माध्यम से आप ही साधना कर रहे हो, जो समष्टि के कल्याण के लिए है| साधक, साध्य और साधना में कोई भेद न रहे| मेरी कोई पृथकता न रहे, कोई भेद न रहे, बस सिर्फ तुम रहो और तुम्हारीं ही इच्छा रहे| मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व तुम को समर्पित है|
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ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥ ॐ शांति शांति शांति ||
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अयमात्मा ब्रह्म | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||