Friday, 24 June 2016

सारे शिव संकल्प प्रत्यक्ष शिव ही हैं .........

तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु .....
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सारे शिव संकल्प प्रत्यक्ष शिव ही हैं .........
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जब भी भगवान कि गहरी स्मृति आये और भगवान पर ध्यान करने कि प्रेरणा मिले तब समझ लेना कि प्रत्यक्ष भगवान वासुदेव वहीँ खड़े होकर आदेश दे रहे हैं| उनके आदेश का पालन करना हमारा परम धर्म है|
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जब भी भगवान से किसी भी समय कोई भी शुभ कार्य करने की प्रेरणा मिले तो वह शुभ कार्य तुरंत आरम्भ कर देना चाहिए| सारी शुभ प्रेरणाएँ भगवान के द्वारा ही मिलती हैं|

जब भी मन में उत्साह जागृत हो उसी समय शुभ कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिये| भगवान ने जो आदेश दे दिया उसका पालन करने में किसी भी तरह के देश-काल शौच-अशौच का विचार करने की आवश्यकता नहीं है|
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सबसे बड़ा और सबसे बड़ा महत्वपूर्ण शुभ कार्य है ---- भगवान का ध्यान|
शुभ कार्य करने का उत्साह भगवान् की विभूति ही है| निरंतर भगवान का ध्यान करो| कौन क्या कहता है और क्या नहीं कहता है इसका कोई महत्व नहीं है|
हम भगवान कि दृष्टी में क्या हैं ---- महत्व सिर्फ इसी का है|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |
ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
‪#‎कृपाशंकर‬ ‪#‎शिवसंकल्प‬

हर मनुष्य समझदार होकर अपने मत / पंथ / मजहब / Religion का चुनाव स्वयं करे .......

क्या कभी यह सम्भव होगा कि हर मनुष्य समझदार होकर अपने मत / पंथ / मजहब / Religion का चुनाव स्वयं करे ? 
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कोई ईसाई के घर में जन्मा तो ईसाई हो गया, मुसलमान के घर में जन्मा तो मुसलमान हो गया, यहूदी के घर जन्मा तो यहूदी, हिन्दू के घर जन्मा तो हिन्दू, बौद्ध के घर जन्मा तो बौद्ध हो गया ........... क्या यह पागलपन नहीं है?
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क्या कभी ऐसी व्यवस्था हो सकती है कि व्यक्ति समझदार होकर अपने मत/पंथ यानि Religion का चुनाव स्वयं करे?
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किसी भी Religion की श्रेष्ठता का क्या मापदंड हो सकता है?
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कोई शिशु समझदार तो होता ही नहीं है, उससे पूर्व ही उस पर मुखौटे ओढा दिए जाते हैं तुम फलाँ फलाँ हो| क्या यह कृत्रिमता नहीं है? मनुष्य जन्म लेता है तब कोरा कागज़ होता है, अकेला होता है, उसे जब भीड़ के साथ जोड़ दिया जाता है तब उसकी आत्मा खो जाती है|
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कम से कम समझदार होने पर हर मनुष्य को यह अवसर मिलना चाहिए कि वह यह निर्णय ले सके कि कौन सा मत/पंथ/सिद्धान्त/Religion उसके लिए सर्वाधिक अनुकूल और सर्वश्रेष्ठ है| फिर उसके निर्णय में किसी अन्य को बाधा नहीं बनना चाहिए|

ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः .... इस विषय पर देश-विदेश में मेरी अनेक प्रबुद्ध स्वतंत्र विचारकों से चर्चा हुई है| सबने सहमति व्यक्त की है| कई तरह तरह के विचित्र उत्तर मुझे लोगों से मिले हैं| धीरे धीरे जैसे जैसे मनुष्य की चेतना विकसित होगी, मानव जाति इसी दिशा में आगे बढ़ेगी|