"मनुष्य नाम की एक जाति ने कुछ लाख वर्ष तक इस पृथ्वी ग्रह पर निवास और राज्य किया था, फिर अपने लोभ और अहंकार के कारण वह जाति उसी तरह नष्ट हो गई जैसे कभी डायनासोर हुए थे।" ---
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यह हो सकता है भविष्य में पृथ्वी पर राज्य करने वाली किसी मनुष्येतर अन्य जाति के इतिहास में पढ़ाया जाये। जिस तरह पृथ्वी पर कभी डायनासोर रहते थे, उन्हीं का राज्य था, फिर वे लुप्त हो गए। वैसे ही मनुष्य जाति भी लुप्त हो सकती है। हमारे से अधिक उन्नत दूसरे विज्ञानमय लोकों के प्राणी हैं, वे भी आकर इस पृथ्वी पर अधिकार और राज्य कर सकते हैं। मुझे कभी-कभी कुछ ऐसा लगता भी है।
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सन २०३० ई. से पेट्रोलियम तेल के कुएँ बहुत तेजी से सूखने आरंभ हो जाएँगे। तेल की कीमत अप्रत्याशित तरीके से बढ़ने लगेगी। इस बीच बचे-खुचे तेल पर अधिकार के लिए महाशक्तियाँ आपस में एक दूसरे से घातक युद्ध करेंगी। उनके बीच हुए युद्धों में ही अधिकांश मनुष्य जाति नष्ट हो जाएगी। वर्तमान पेट्रोलियम तेल उत्पादक देश तो जल कर भस्म हो जाएँगे।
अमेरिका और रूस आजकल अरब देशों में इतना हस्तक्षेप क्यों कर रहे हैं? उनका उद्देश्य तेल की लूट ही है।
सन २०५० ई. तक पृथ्वी से पेट्रोलियम तेल पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। पता नहीं फिर ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत क्या होगा?
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अब तो सूचना प्रोद्योगिकी इतनी विकसित हो चुकी है कि पृथ्वी पर कहीं कुछ भी होता है तो तुरंत पता चल जाता है। वह जमाना लौट कर बापस नहीं आ सकता जब लाखों लुटेरे आते थे, और अनेक सभ्यताओं को नष्ट कर करोड़ों लोगों का नर-संहार और लूट कर चले जाते थे। उन्होने ऐसे पंथ भी बना लिए थे जो उनके आक्रमण की भूमिका तैयार करते, और उनके अनैतिक राज्य को कायम भी रखते। सारी सूचना प्रोद्योगिकी -- उपग्रहों की संचार व्यवस्था पर निर्भर है। उपग्रहों को नष्ट कर दिये जाने की स्थिति में वह भी धराशायी हो जाएगी।
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वर्तमान विकास काल में सत्य तो अब छिपाया नहीं जा सकेगा। जब सत्य का बोध होगा तो मनुष्य के सोच-विचार भी बदलेंगे। अगले बीस वर्षों के बाद का युग दूसरा ही होगा। हमारे से अधिक उन्नत और सत्यनिष्ठ दूसरे विज्ञानमय लोकों के मनुष्य जैसे ही लगते प्राणी भी आकर पृथ्वी पर अधिकार और राज्य कर सकते हैं। वैसे भी अब समय आ गया है कि इस पृथ्वी पर से झूठ-कपट व अधर्म का राज्य समाप्त हो, और धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा हो। भगवान किसी न किसी रूप में तो यह काम करेंगे ही। मनुष्य जाति अपने उद्देश्य में विफल रही है। मनुष्यों की स्वयं से ही आस्था समाप्त हो रही है।
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चीनियों की सोच है कि इस पृथ्वी पर से उनके अतिरिक्त अन्य सब लोग नष्ट हो जायें, सिर्फ चीनी ही बचें। इसीलिए उन्होने विश्व के अन्य सभी देशों को नष्ट करने के लिए जैविक अस्त्र के रूप में विषाणुओं को फैलाया जिन से कोरोना महामारी फैली और लाखों लोग मरे। ऐसी ही सोच जिहादियों, क्रूसेडरों और अन्य भी अनेक गोपनीय पश्चिमी दानव समाजों की है, जो चाहते हैं कि सिर्फ उन्हीं के आदमी जीवित रहें, बाकी के या तो नष्ट हो जाएँ या गुलाम होकर रहें। विश्व में इतने सारे रासायनिक और नाभिकीय आणविक अस्त्र है जो इस पृथ्वी ग्रह को सैंकड़ों बार नष्ट कर सकते हैं। उनका प्रयोग जब होगा तब शायद ही कोई मनुष्य इस पृथ्वी पर जीवित बचे। बड़े भयानक युद्ध हो सकते हैं, पृथ्वी के संसाधनों पर अधिकार के लिए, जिनसे मनुष्य जाति पूरी तरह नष्ट हो सकती है।
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मेरी बात को लोग अभी तो एक गल्प समझेंगे, लेकिन इसके घटित होने की पूरी संभावना है। वह दिन देखने के लिए मैं जीवित नहीं रहूँगा, पर यह दृश्य सूक्ष्म जगत से अवश्य देखूंगा।
२५ मई २०२१