Thursday, 27 May 2021

क्या वर्तमान सभ्यता और मनुष्य जाति नष्ट हो जायेगी ?

"मनुष्य नाम की एक जाति ने कुछ लाख वर्ष तक इस पृथ्वी ग्रह पर निवास और राज्य किया था, फिर अपने लोभ और अहंकार के कारण वह जाति उसी तरह नष्ट हो गई जैसे कभी डायनासोर हुए थे।" ---

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यह हो सकता है भविष्य में पृथ्वी पर राज्य करने वाली किसी मनुष्येतर अन्य जाति के इतिहास में पढ़ाया जाये। जिस तरह पृथ्वी पर कभी डायनासोर रहते थे, उन्हीं का राज्य था, फिर वे लुप्त हो गए। वैसे ही मनुष्य जाति भी लुप्त हो सकती है। हमारे से अधिक उन्नत दूसरे विज्ञानमय लोकों के प्राणी हैं, वे भी आकर इस पृथ्वी पर अधिकार और राज्य कर सकते हैं। मुझे कभी-कभी कुछ ऐसा लगता भी है।
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सन २०३० ई. से पेट्रोलियम तेल के कुएँ बहुत तेजी से सूखने आरंभ हो जाएँगे। तेल की कीमत अप्रत्याशित तरीके से बढ़ने लगेगी। इस बीच बचे-खुचे तेल पर अधिकार के लिए महाशक्तियाँ आपस में एक दूसरे से घातक युद्ध करेंगी। उनके बीच हुए युद्धों में ही अधिकांश मनुष्य जाति नष्ट हो जाएगी। वर्तमान पेट्रोलियम तेल उत्पादक देश तो जल कर भस्म हो जाएँगे।
अमेरिका और रूस आजकल अरब देशों में इतना हस्तक्षेप क्यों कर रहे हैं? उनका उद्देश्य तेल की लूट ही है।
सन २०५० ई. तक पृथ्वी से पेट्रोलियम तेल पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। पता नहीं फिर ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत क्या होगा?
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अब तो सूचना प्रोद्योगिकी इतनी विकसित हो चुकी है कि पृथ्वी पर कहीं कुछ भी होता है तो तुरंत पता चल जाता है। वह जमाना लौट कर बापस नहीं आ सकता जब लाखों लुटेरे आते थे, और अनेक सभ्यताओं को नष्ट कर करोड़ों लोगों का नर-संहार और लूट कर चले जाते थे। उन्होने ऐसे पंथ भी बना लिए थे जो उनके आक्रमण की भूमिका तैयार करते, और उनके अनैतिक राज्य को कायम भी रखते। सारी सूचना प्रोद्योगिकी -- उपग्रहों की संचार व्यवस्था पर निर्भर है। उपग्रहों को नष्ट कर दिये जाने की स्थिति में वह भी धराशायी हो जाएगी।
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वर्तमान विकास काल में सत्य तो अब छिपाया नहीं जा सकेगा। जब सत्य का बोध होगा तो मनुष्य के सोच-विचार भी बदलेंगे। अगले बीस वर्षों के बाद का युग दूसरा ही होगा। हमारे से अधिक उन्नत और सत्यनिष्ठ दूसरे विज्ञानमय लोकों के मनुष्य जैसे ही लगते प्राणी भी आकर पृथ्वी पर अधिकार और राज्य कर सकते हैं। वैसे भी अब समय आ गया है कि इस पृथ्वी पर से झूठ-कपट व अधर्म का राज्य समाप्त हो, और धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा हो। भगवान किसी न किसी रूप में तो यह काम करेंगे ही। मनुष्य जाति अपने उद्देश्य में विफल रही है। मनुष्यों की स्वयं से ही आस्था समाप्त हो रही है।
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चीनियों की सोच है कि इस पृथ्वी पर से उनके अतिरिक्त अन्य सब लोग नष्ट हो जायें, सिर्फ चीनी ही बचें। इसीलिए उन्होने विश्व के अन्य सभी देशों को नष्ट करने के लिए जैविक अस्त्र के रूप में विषाणुओं को फैलाया जिन से कोरोना महामारी फैली और लाखों लोग मरे। ऐसी ही सोच जिहादियों, क्रूसेडरों और अन्य भी अनेक गोपनीय पश्चिमी दानव समाजों की है, जो चाहते हैं कि सिर्फ उन्हीं के आदमी जीवित रहें, बाकी के या तो नष्ट हो जाएँ या गुलाम होकर रहें। विश्व में इतने सारे रासायनिक और नाभिकीय आणविक अस्त्र है जो इस पृथ्वी ग्रह को सैंकड़ों बार नष्ट कर सकते हैं। उनका प्रयोग जब होगा तब शायद ही कोई मनुष्य इस पृथ्वी पर जीवित बचे। बड़े भयानक युद्ध हो सकते हैं, पृथ्वी के संसाधनों पर अधिकार के लिए, जिनसे मनुष्य जाति पूरी तरह नष्ट हो सकती है।
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मेरी बात को लोग अभी तो एक गल्प समझेंगे, लेकिन इसके घटित होने की पूरी संभावना है। वह दिन देखने के लिए मैं जीवित नहीं रहूँगा, पर यह दृश्य सूक्ष्म जगत से अवश्य देखूंगा।
२५ मई २०२१

सृष्टि का एक रहस्य यह भी है ---

 सृष्टि का रहस्य ---

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जब भगवान ही हमारे हो गए तो और पाने के लिए बाकी कुछ भी नहीं रह गया है| सब कुछ तो प्राप्त कर लिया है| मैं और मेरे प्रभु एक हैं, अब उन में और मुझ में कोई भेद नहीं रह गया है| सृष्टि का रहस्य है कि समृद्धि के चिंतन से समृद्धि आती है, प्रचूरता के चिंतन से प्रचूरता आती है, अभावों के चिंतन से अभाव आते हैं, दरिद्रता के चिंतन से दरिद्रता आती है, दु:खों के चिंतन से दु:ख आते हैं, पाप के चिंतन से पाप आते हैं, और हम वैसे ही बन जाते हैं जैसा हम सोचते हैं| जिस भी भाव का चिंतन हम निरंतर करते हैं, प्रकृति वैसा ही रूप लेकर हमारे पास आ जाती है और हमारे चारों ओर की सृष्टि वैसी ही बन जाती है| ये विचार, ये भाव ही हमारे "कर्म" हैं जिनका फल भोगने को हम बाध्य हैं| पूरी सृष्टि में जो कुछ भी हो रहा है वह हम सब मनुष्यों के सामुहिक विचारों का ही घनीभूत रूप है| इसमें भगवान का कोई दोष नहीं है| हब सब भगवान के ही अंश हैं, हम सब ही भगवान में एक हैं, पृथक पृथक नहीं, हम ही भगवान हैं, यह देह नहीं|
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जब भी हम किसी से मिलते हैं या कोई हम से मिलता है तो आपस में एक दूसरे पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता| किसी के विचारों का प्रभाव अधिक शक्तिशाली होता है किसी का कम| इसीलिये साधक एकांत में रहना अधिक पसंद करते हैं| किसी महान संत ने ठीक ही कहा है कि ईश्वर से संपर्क करने के लिए एकांतवास की कीमत चुकानी पडती है| एक विद्यार्थी जो डॉक्टर बनना चाहता है उसे अपनी ही सोच के विद्यार्थियों के साथ रहना होगा| जो जैसा बनना चाहता है उसे वैसी ही अनुकूलता में रहना होता है|
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इसी तरह संसार की जटिलताओं में रहते हुए ईश्वर पर ध्यान करना अति मानवीय कार्य है जिसे हर कोई नहीं कर सकता है| इसे कोई लाखों में से एक ही कर सकता है| लोग उस लाखों में से एक का ही उदाहरण देते हुए दूसरों को निरुत्साहित करते हैं| जो ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें हर प्रतिकूलता पर प्रहार करना होगा| सबसे महत्वपूर्ण है अपने विचारों पर नियंत्रण| इसके लिए अपने अनुकूल वातावरण निर्मित करना पड़ता है|
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स्वामी रामतीर्थ स्वयं को बादशाह राम कहते थे| उनके लिए पूरी सृष्टि उनका परिवार थी, समस्त ब्रह्माण्ड उनका घर, और पूरा भारत ही उनकी देह थी|| बिना रुपये पैसे के पूरे विश्व का भ्रमण कर लिया, विदेशों में खूब प्रवचन दिए और जिस भी वस्तु की उन्हें आवश्यकता होती, प्रकृति उन्हें उस वस्तु की व्यवस्था कैसे भी स्वयं कर देती| अगर हमारे संकल्प में गहनता है तो इस सृष्टि में कुछ भी हमारे लिए अप्राप्य नहीं है| तपस्वी संत महात्मा एकांत में रहते है| भगवन उनकी व्यवस्था स्वयं कर देते हैं क्योंकि वे निरंतर भगवान का ही चिंतन करते है|
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अपने ह्रदय और मन को शांत रखो| जो कुछ भी परमात्मा का है वह सब हमारा ही है| यह समस्त सृष्टि हमारी ही है| जहाँ तक हमारी कल्पना जाती है वहां तक के हम ही सम्राट हैं| सृष्टि के सारे सद्गुण हमारे ही हैं| अपने आप को परमात्मा को सौंप दो| परमात्मा का सब कुछ हमारा ही है| स्वयं परमात्मा ही हमारे हैं| जब भगवान ही हमारे हो गए तो और पाने के लिए बाकी क्या बचा रह गया है ???. हमें आभारी होना चाहिए कि भगवान ने हमें स्वस्थ देह दी है, अपना चिंतन दिया है, अहैतुकी प्रेम दिया है, हमारे सिर पर एक छत दी है, अच्छा पौष्टिक भोजन मिल रहा है, स्वच्छ जल और हवा मिल रही है, पूरे विश्व में हमारे शुभचिंतक मित्र है जो हम से प्रेम करते हैं, और हमारे गुरु महाराज हैं जो निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं|
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जिस आसन पर बैठ कर हम भगवान का ध्यान करते हैं वह हमारा सिंहासन है| जहाँ तक हमारी कल्पना जाती है वहाँ तक के हम सम्राट हैं| हम स्वयं ही वह सब हैं| पूरी सृष्टि हमारा परिवार है, समस्त ब्रह्मांड हमारा घर है, हम परमात्मा की दिव्य संतान हैं| जो कुछ भी भगवान का वैभव है उस पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| वह सब हम स्वयं ही हैं| हम स्वयं ही परम ब्रह्म हैं| हम और हमारे परम पिता परमात्मा एक हैं|
शिवमस्तु ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ मई २०१३

जानने योग्य सिर्फ भगवान ही हैं ---

 जानने योग्य सिर्फ भगवान ही हैं ---

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मनुष्य का हृदय तो थोड़ी सी भक्ति से ही तृप्त हो जाता है, लेकिन मन सदा ही अतृप्त रहता है। अतृप्त मन को जब भगवान की भूख लगनी आरंभ हो जाये तब मान लेना चाहिये कि कोई पुण्योदय हुआ है। भगवान भी सबके हृदय में तो रहते हैं, लेकिन मन में कम ही आते हैं। इसलिए मन की बात न सुनें, हृदय की ही सुनें। मन धोखा दे सकता है, परंतु हृदय नहीं, क्योंकि हृदय में भगवान है।
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भगवान कहते हैं ---
"सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्॥१५:१५॥"
अर्थात् -- मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ। मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (उनका अभाव) होता है। समस्त वेदों के द्वारा मैं ही वेद्य (जानने योग्य) वस्तु हूँ तथा वेदान्त का और वेदों का ज्ञाता भी मैं ही हूँ॥
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अतः जानने योग्य सिर्फ भगवान ही हैं। उनकी कृपा ही किसी को सर्वज्ञ बना सकती है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२७ मई २०२१

जो और जैसी बात अंतर्प्रज्ञा यानि अंतर्चेतना में सही लगे वही बात बोलनी चाहिए, अन्यथा मौन रहना ही अच्छा है ---

 जो और जैसी बात अंतर्प्रज्ञा यानि अंतर्चेतना में सही लगे वही बात बोलनी चाहिए, अन्यथा मौन रहना ही अच्छा है ---

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अंतर्चेतना में भगवान की जो छवि मेरे समक्ष है, वह इस जीवनकाल में ही नहीं, अनंतकाल तक बनी रहे, और यह पृथक अस्तित्व भी उसी में विलीन हो जाये। यह कोई कामना नहीं बल्कि हृदय की गहनतम अभीप्सा है। सब कुछ तो "वे" ही हैं।
भगवान कहते हैं ---
"शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ॥६:२५॥"
अर्थात् -- शनै शनै धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा उपरामता (शांति) को प्राप्त होवे। मन को आत्मा में स्थित करके फिर अन्य कुछ भी चिन्तन न करे॥
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शनैः शनैः धैर्ययुक्त बुद्धि द्वारा मन को आत्मा में स्थित करके अर्थात् यह सब कुछ आत्मा ही है उससे अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है, इस प्रकार मन को आत्मामें अचल करके अन्य किसी भी वस्तु का चिन्तन न करे।
मुमुक्षुत्व और फलार्थित्व -- दोनों साथ साथ नहीं हो सकते। जब मुमुक्षुत्व जागृत होता है तब शनैः शनैः सब कामनाएँ नष्ट होने लगती हैं, क्योंकि तब कर्ताभाव ही समाप्त हो जाता है।
भगवान कहते हैं ---
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥४:११॥"
अर्थात् -- जो मुझे जैसे भजते हैं मैं उन पर वैसे ही अनुग्रह करता हूँ। हे पार्थ सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं॥
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जहाँ राग-द्वेष और अहंकार है वहाँ आत्मभाव नहीं हो सकता। जो भगवान के लिए व्याकुल हैं, भगवान भी उन के लिए व्याकुल हैं|
भगवान् कहते हैं ---
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
अर्थात् सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो।
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हम सब तरह की चिंताओं को त्याग कर भगवान में ही स्थित हो जाएँ, यही गुरु महाराज की शिक्षाओं का भी सार है।
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मई २०२१

हमारे शास्त्रों के अनुसार आतताई का वध कोई पाप नहीं, कर्तव्य है ---

 हमारे शास्त्रों के अनुसार आतताई का वध कोई पाप नहीं, कर्तव्य है ---

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"आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन्।
नाततायिवधे दोषो हन्तुर्भवति कश्चन॥" -- मनु स्मृति ( ८ | ३५०-३५१ )
अपना अनिष्ट करने के लिए आते हुए आततायी को बिना विचारे ही मार डालना चाहिए | आततायी के मारने से मारनेवाले को कुछ दोष नहीं होता॥
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"अग्निदो गरदश्चैव शस्त्रपाणिर्धनापहः।
क्षेत्रदारापहर्ता च षडेते ह्याततायिन॥" -- वसिष्ठस्मृति ( ३ | १९ )
आग लगानेवाला, विष देनेवाला , हाथ में शस्त्र लेकर मारने को उद्यत , धन हरण करने वाला , जमीन छीननेवाला और स्त्री का हरण करनेवाला - ये छहों ही आततायी है॥

भगवान की भक्ति और हमारा आत्मबल ही हमारी रक्षा कर सकता है ---


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भगवान का खूब ध्यान करें| हर प्रकार से अपनी सुरक्षा की व्यवस्था कर के रखें|
अगले चार-पाँच महीने मुझे लगता है कि शुभ नहीं हैं| अभी तो चीन द्वारा छेड़ा हुआ कोरोना जैविक विश्व युद्ध चल रहा है जो अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग पर कभी भी आ सकता है| कहीं यह आणविक युद्ध पर न आ जाए| लाशों के ढेर पर बैठकर चीन, रूस और अमेरिका क्या उत्सव मनायेंगे? ये ही देश है जो मानवता को नष्ट कर सकते हैं|
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चीन और पाकिस्तान मिल कर भारत पर युद्ध थोप सकते हैं| पाकिस्तान तो अति शीघ्र ही भुखमरी और विखंडन का शिकार होने वाला है| चीन के उकसावे पर और भी अधिक खुल कर भारत से युद्ध प्रारंभ कर सकता है|
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चीन की सेना भारत के सामने पारंपरिक युद्ध में नहीं टिक सकती| चीनी सैनिक एक तो इस लिए डरते हैं कि वे अपने परिवार के इकलौते पुरुष सदस्य हैं जिनके मरने पर उनका वंशनाश हो जाएगा| दूसरा उनका भोजन इतना अधिक आसुरी/राक्षसी है कि उनकी कामुकता अत्यधिक प्रबल है जिसके कारण उन में यौन विकृतियाँ बहुत अधिक हैं| अतः उनमें कोई नैतिक बल और साहस नहीं है| उनकी शक्ति उनके अणुबम ही हैं|
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भारत की रक्षा हमारा आत्मबल, आस्तिकता, आस्था व निष्ठा करेगी|
ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
२८ मई २०२०