Saturday 10 November 2018

त्याग किस का और कैसे करें (क्या अभी भी कोई उम्मीद बाकी है?) .....

त्याग किस का और कैसे करें (क्या अभी भी कोई उम्मीद बाकी है?) .....
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व्यक्ति भावावेश में आकर त्याग करने का निश्चय तो कर लेता है, पर बाद में उसका चित्त उठ आता है और किन्तु-परन्तु के अनेक विचार आने लगते हैं और त्याग पता नहीं कहाँ चला जाता है| इस तरह के कई मामले देखे हैं|
वास्तव में त्याग भगवान की परम कृपा से ही होता है, सिर्फ संकल्प शक्ति से नहीं| त्याग से ही परम शांति मिलती है|
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गीता के अनुसार चार चीजों का त्याग होता है :---
(१) जो प्राप्त नहीं है उसकी कामना|
(२) जो प्राप्त है उसकी ममता|
(३) निर्वाह की स्पृहा, यानि जीवन यापन की चिंता|
(४) अहंकार और अपेक्षा|
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः| निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति||२:७१||"

भावार्थ : जो मनुष्य समस्त भौतिक कामनाओं का परित्याग कर इच्छा-रहित, ममता-रहित और अहंकार-रहित रहता है, वही परम-शांति को प्राप्त कर सकता है||
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जिस भी साधक को यह त्याग सिद्ध हो जाए तो उसे स्थितप्रज्ञ होने में देरी नहीं लगती| वह ब्राह्मी स्थिति को भी प्राप्त कर सकता है| भगवान कहते हैं.....
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति| स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति||२:७२||
भावार्थ : हे पार्थ! यह आध्यात्मिक जीवन (ब्रह्म की प्राप्ति) का पथ है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य कभी मोहित नही होता है, यदि कोई जीवन के अन्तिम समय में भी इस पथ पर स्थिति हो जाता है तब भी वह भगवद्‍प्राप्ति करता है||
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इसका अर्थ है अभी भी उम्मीद बाकी है| निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है| भगवान से प्रार्थना करेंगे तो वे अपनी कृपा अवश्य करेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० नवम्बर २०१८

अपने शिवत्व की ओर हम निरंतर अग्रसर रहें ....

पूर्णता शिव में है, जीव में नहीं.
अपने शिवत्व की ओर हम निरंतर अग्रसर रहें .....
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भगवान भुवन-भास्कर आदित्य की तरह हम अपने पथ पर चलते रहें| अपनी विफलताओं व सफलताओं की परवाह न करें, उनका आना-जाना एक अवसर था कुछ सिखाने के लिए| हमारा कार्य सिर्फ चलते रहना है क्योंकि ठहराव मृत्यु और चलते रहना ही जीवन है| इस यात्रा में वाहन यह देह पुरानी और जर्जर हो जायेगी तो दूसरी देह मिल जायेगी, पर अपनी यात्रा को मत रोकें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, तब तक चलते रहें, जब तक अपने लक्ष्य परमात्मा को न पा लें|
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अंशुमाली मार्तंड भगवान सूर्य अपनी दिव्य आभा और प्रकाश के साथ जब अपने पथ पर अग्रसर होते हैं, तब उन्हें क्या इस बात की चिंता होती है कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है? निरंतर अग्रसर वे ही इस साधना पथ पर हमारे परम आदर्श हैं जो सदा प्रकाशमान और गतिशील हैं|
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हमारे कूटस्थ आत्मसूर्य की आभा निरंतर सदा हमारे समक्ष रहे, वास्तव में वह आत्मसूर्य हम स्वयं ही हैं| उस ज्योतिषांज्योति आत्मज्योति के चैतन्य को निरंतर प्रज्ज्वलित रखें और अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को उसी में विलीन कर दें| वह कूटस्थ ही परमशिव है, वही नारायण है, वही विष्णु है, वही परात्पर गुरु है और वही परमेष्ठी परब्रह्म हमारा वास्तविक अस्तित्व है|
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जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उससे तो अच्छा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दें| या तो यह देह ही रहेगी या लक्ष्य की प्राप्ति ही होगी जो हमारे जीवन का सही और वास्तविक उद्देश्य है| भगवान हमें सदा सफलता दें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० नवम्बर २०१८

यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः :----

यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः :----

देश में कई तरह के विवाद चल रहे हैं| मेरी सोच स्पष्ट है, किसी भी तरह का कोई भ्रम या कोई शंका नहीं है| जो राष्ट्र और धर्म के पक्ष में है उसका मैं समर्थक हूँ| जहाँ अधर्म है और जिस से राष्ट्र का अहित है, उसका मैं विरोध करता हूँ| अंततः एक ही बात कहूंगा कि धर्म की जय हो और अधर्म का नाश हो|

"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवानीतिर्मतिर्मम||१८:७८||
(जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं, और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है, वहीं पर श्री विजय विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है||) हर हर महादेव !

क्या "राम नाम सत्" और "ॐ तत्सत्" दोनों का अर्थ एक ही है ? .....

क्या "राम नाम सत्" और "ॐ तत्सत्" दोनों का अर्थ एक ही है ? .....
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:"ॐ तत्सत्" शब्द परमात्मा की ओर किया गया एक निर्देश है| इस का प्रयोग गीता के हरेक अध्याय के अंत में किया गया है ....."ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुन ... ."
इस शब्द का विशेष प्रयोग भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के सत्रहवें अध्याय के २३ वें श्लोक में किया है .....
ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः| ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा||१७:२३||
इस का भावार्थ है ..... सृष्टि के आरम्भ से "ॐ" (परम-ब्रह्म), "तत्‌" (वह), "सत्‌" (शाश्वत) इस प्रकार से ब्रह्म को उच्चारण के रूप में तीन प्रकार का माना जाता है, और इन तीनों शब्दों का प्रयोग यज्ञ करते समय ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करके ब्रह्म को संतुष्ट करने के लिये किया जाता है|
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ईसाई मत में इसी की नक़ल कर के "Father Son and the Holy Ghost" की परिकल्पना की गयी है| गहराई से यदि चिन्तन किया जाए तो "Father Son and the Holy Ghost" का अर्थ भी वही निकलता है जो "ॐ तत्सत्" का अर्थ है|
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कल ६ नवम्बर को मैनें राम नाम के ऊपर एक लिखा था जिसमें वह कारण बताया था कि मृतक की शवयात्रा में "राम नाम सत्" का उद्घोष क्यों करते हैं| उस लेख की टिप्पणी में भुवनेश्वर के प्रख्यात वैदिक विद्वान् माननीय श्री अरुण उपाध्याय जी ने बड़े संक्षेप में एक बड़ी ज्ञान की बात कह कर सप्रमाण सिद्ध कर दिया कि "राम नाम सत्" और "ॐ तत्सत्" इन दोनों का अर्थ भी एक ही है, अतः यह लेख मुझे लिखना पड़ रहा है|
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जब प्राण की गति होती है, जैसे शरीर से बाहर निकला, तो वह "ॐ" से "रं" हो जाता है ..... प्राणो वै रं, प्राणे हि इमानि सर्वाणि भूतानि रमन्ते (बृहदारण्यक उपनिषद्, ५/१२/१)| किसी व्यक्ति को निर्देश (तत् = वह) करने के लिये उसका नाम कहते हैं| अतः ॐ तत् सत् का ’राम नाम सत्'’ भी हो जाता है|
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एक समय सनकादि योगीश्वरों, ऋषियों और प्रह्लाद आदि महाभागवतों ने श्रीहनुमानजी से पूछा ..... हे महाबाहु वायुपुत्र हनुमानजी ! आप यह बतलानेकी कृपा करें कि वेदादि शास्त्रों, पुराणों तथा स्मृतियों आदि में ब्रह्मवादियों के लिये कौन सा तत्त्व उपदिष्ट हुआ है, विष्णुके समस्त नामों में से तथा गणेश, सूर्य, शिव और शक्ति .... इनमें से वह तत्त्व कौन-सा है ?
इस पर हनुमानजी बोले – हे मुनीश्वरो ! आप संसारके बन्धन का नाश करने वाली मेरी बातें सुनें | इन सब वेदादि शास्त्रोंमें परम तत्त्व ब्रह्मस्वरूप तारक ही है । राम ही परम ब्रह्म हैं | राम ही परम तपःस्वरूप हैं | राम ही परमतत्त्व हैं | वे राम ही तारक ब्रह्म हैं --
भो योगीन्द्राश्चैव ऋषयो विष्णुभक्तास्तथैव च ।
शृणुध्वं मामकीं वाचं भवबन्धविनाशिनीम् ।।
एतेषु चैव सर्वेषु तत्त्वं च ब्रह्मतारकम् ।
राम एव परं ब्रह्म राम एव परं तपः ।।
राम एव परं तत्त्वं श्रीरामो ब्रह्म तारकम् ।।
(रामरहस्योपनिषद्)
(‘कल्याण’ पत्रिका; वर्ष – ८८, संख्या – ४ : गीताप्रेस, गोरखपुर)
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गीता में "ॐ तत्सत्" का अर्थ .....
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गीता के सत्रहवें अध्याय के अंतिम छः श्लोक "ॐ तत्सत्" का अर्थ बतलाते हैं....
ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः ।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा॥ (२३)
भावार्थ : सृष्टि के आरम्भ से "ॐ" (परम-ब्रह्म), "तत्‌" (वह), "सत्‌" (शाश्वत) इस प्रकार से ब्रह्म को उच्चारण के रूप में तीन प्रकार का माना जाता है, और इन तीनों शब्दों का प्रयोग यज्ञ करते समय ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करके ब्रह्म को संतुष्ट करने के लिये किया जाता है। (२३)
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपः क्रियाः ।
प्रवर्तन्ते विधानोक्तः सततं ब्रह्मवादिनाम्‌॥ (२४)
भावार्थ : इस प्रकार ब्रह्म प्राप्ति की इच्छा वाले मनुष्य शास्त्र विधि के अनुसार यज्ञ, दान और तप रूपी क्रियाओं का आरम्भ सदैव "ओम" (ॐ) शब्द के उच्चारण के साथ ही करते हैं। (२४)
तदित्यनभिसन्दाय फलं यज्ञतपःक्रियाः ।
दानक्रियाश्चविविधाः क्रियन्ते मोक्षकाङ्क्षिभिः॥ (२५)
भावार्थ : इस प्रकार मोक्ष की इच्छा वाले मनुष्यों द्वारा बिना किसी फल की इच्छा से अनेकों प्रकार से यज्ञ, दान और तप रूपी क्रियाऎं "तत्‌" शब्द के उच्चारण द्वारा की जाती हैं। (२५)
सद्भावे साधुभावे च सदित्यतत्प्रयुज्यते ।
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते ॥ (२६)
भावार्थ : हे पृथापुत्र अर्जुन! इस प्रकार साधु स्वभाव वाले मनुष्यों द्वारा परमात्मा के लिये "सत्" शब्द ‍का प्रयोग किया जाता है तथा परमात्मा प्राप्ति के लिये जो कर्म किये जाते हैं उनमें भी "सत्‌" शब्द का प्रयोग किया जाता है। (२६)
यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते ।
कर्म चैव तदर्थीयं सदित्यवाभिधीयते ॥ (२७)
भावार्थ : जिस प्रकार यज्ञ से, तप से और दान से जो स्थिति प्राप्त होती है, उसे भी "सत्‌" ही कहा जाता है और उस परमात्मा की प्रसन्नता लिए जो भी कर्म किया जाता है वह भी निश्चित रूप से "सत्‌" ही कहा जाता है। (२७)
अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्‌ ।
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह ॥ (२८)
भावार्थ : हे पृथापुत्र अर्जुन! बिना श्रद्धा के यज्ञ, दान और तप के रूप में जो कुछ भी सम्पन्न किया जाता है, वह सभी "असत्‌" कहा जाता है, इसलिए वह न तो इस जन्म में लाभदायक होता है और न ही अगले जन्म में लाभदायक होता है। (२८)
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हरि: ॐ तत् सत् !
७ नवम्बर २०१८
(यह लेख मैनें स्वयं के आनंद के लिए ही लिखा है| इसे लिख कर मुझे बहुत आनंद प्राप्त हुआ है| कोई आवश्यक नहीं है कि यह लेख दूसरों को भी अच्छा लगे| सभी पाठकों को धन्यवाद!)

दीपावली पर सभी श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ और नमन .....

दीपावली पर सभी श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ और नमन !
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मेरे प्रिय निजात्मगण, आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियाँ हैं, आप सब मेरे प्राण हैं, मैं आप सब को नमन करता हूँ| आज दीपावली का उत्सव है| यह हर व्यक्ति के विवेक और दृष्टिकोण पर निर्भर है कि वह इस उत्सव को किस प्रकार मनाये| दीपावली की रात्री में अधिकाँश श्रद्धालु जगन्माता के महालक्ष्मी रूप की आराधना करते हैं| इसमें भी दो अलग अलग दृष्टिकोण हैं| अधिकाँश में से अधिकाँश लोगों के लिए महालक्ष्मी धन देने वाली देवी है, और कुछ के लिए सब प्रकार के सर्वश्रेष्ठ गुण प्रदान करने वाली| इसी तरह जगन्माता का महाकाली का रूप है जिस की भी आराधना आज की रात्री में अनेक लोग करते हैं| अधिकाँश लोगों के लिए महाकाली सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी हैं, कुछ के लिए आध्यात्म में बाधक सब प्रकार के विकारों, बाधाओं और अज्ञानता का नाश करने वाली देवी| कुछ लोग दीपावली जूआ खेल कर और शराब पीकर मनाते हैं, और कुछ लोग मंत्रसिद्धि के लिए| कुछ लोग श्रीकृष्ण की आराधना करते है, कुछ लोग शिव की, और कुछ लोग अपने अपने गुरु के रूप का ध्यान करते हैं| सब का अलग अलग दृष्टिकोण और सोच है|
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मैं न तो किसी को कोई सलाह दूंगा क्योंकि यह मेरा कार्य नहीं है| मैं सिर्फ अपने विचारों और भावों को ही व्यक्त करने के लिए अंतर्प्रेरणा से इस मंच पर हूँ| मैं यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं न तो किसी से कोई सहानुभूति प्राप्त करना चाहता हूँ, और न कोई अन्य लाभ| किसी से मुझे कुछ भी जो कुछ भी मिल सकता है, वह सब मुझे पहले से ही परमात्मा से प्राप्त है, अतः किसी से कुछ भी लेना-देना नहीं है|
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सबसे पहले तो मैं यह बता देना चाहता हूँ कि यह आध्यात्मिक यात्रा कोई फूलों की सेज नहीं है, अपितु एक कंटकाकीर्ण अति दुर्गम मार्ग है जिस में खांडे की धार पर चलना पड़ता है| इस में शक्ति और ऊर्जा का जो एकमात्र स्त्रोत है वह है "भक्ति" यानि परमात्मा के प्रति परमप्रेम और समर्पण| इस मार्ग में हमें सब कुछ खोना पड़ता है, हर तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और कई बार तो मरणान्तक पीड़ा तक भी सहन करनी पड़ती है| पाने को तो इस में कुछ भी नहीं है, सिर्फ खोना ही खोना है| एकमात्र लाभ जो है वह है ईश्वर-लाभ| पर उसको पाते पाते यानि वहाँ तक पहुँचते पहुँचते व्यक्ति वीतराग हो जाता है, कोई राग-द्वेष और अहंकार नहीं बचता और सांसारिक भोग महत्वहीन हो जाते हैं| श्रुति भगवती इसी के लिए कहती हैं .... "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत| क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति||" (कठोपनिषद्, १/३/१४)| श्रृति के वचन अंतिम प्रमाण और अंतिम आदेश हैं| इस पर किसी को कोई भी संदेह नहीं होना चाहिए|
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साधकों के लिए दीपावली की रात्रि का अत्यधिक महत्त्व है| दीपावली की रात्री को व्यर्थ की गपशप, इधर-उधर घूमने-फिरने, पटाखे फोड़ने, जूआ खेलने, शराब पीने, अदि में समय नष्ट नहीं करें| सब को पता होना चाहिए कि इस रात्री को समय का कितना बड़ा महत्त्व है| साधना की दृष्टी से चार रात्रियाँ बड़ी महत्वपूर्ण होती हैं ..... (१) कालरात्रि (दीपावली), (२) महारात्रि (शिवरात्रि), (३) दारुण रात्रि (होली), और (४) मोहरात्रि (कृष्ण जन्माष्टमी)| कालरात्रि (दीपावली) का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है| अपनी अपनी गुरु परम्परानुसार खूब जप तप व साधना इस रात्रि को अवश्य करनी चाहिए| कुछ समझ में नहीं आये तो राम नाम का खूब जप करें जो बहुत अधिक शक्तिशाली व परम कल्याणकारी है| राम नाम तारक मन्त्र है, जो सर्वसुलभ सर्वदा सब के लिए उपलब्ध है| जो योगमार्ग के साधक हैं, उन्हें इस कालरात्री में अनंत परमाकाश में ज्योतिर्मय कूटस्थ अक्षर ब्रह्म का ध्यान कालातीत अवस्था की प्राप्ति के लिए अवश्य करना चाहिए| शुद्ध आचार-विचार, और ब्रह्मचर्य का पालन करें|
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सभी को सभी को दीपावली की शुभ कामनाएँ और नमन!
हरि ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०७ नवम्बर २०१८

छोटी दीपावली की शुभ कामनाएँ .....

छोटी दीपावली की शुभ कामनाएँ .....
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आज छोटी दीपावली है जिसे "नर्क चतुर्दशी" व "रूप चतुर्दशी" भी कहते हैं| नरकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने सोलह हजार एक सौ महिलाओं को बंदी बना रखा था| जब उसका अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया तब देवता और ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए और उन्हें युद्ध के लिए मनाया| भयंकर युद्ध हुआ जिसमें भगवान श्रीकृष्ण कुछ समय के लिए मूर्छित हो गए| सारथी के रूप में गयी उनकी पत्नी सत्यभामा ने नरकासुर के साथ भयंकर युद्ध किया और उसका वध कर दिया| उस दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी थी, अतः इस दिन को नरकासुर चतुर्दशी या #नर्क_चतुर्दशी भी कहते हैं|
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रन्तिदेव एक पुण्यात्मा राजा थे| उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था, लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उन्हें नर्क में ले जाने उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए| यमदूतों को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप-कर्म ही नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो? पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया था यह उसी पापकर्म का फल है| राजा रंतिदेव ने प्रायश्चित करने के लिए समय माँगा तो यमदूतों ने उन्हें एक वर्ष का जीवन और दे दिया| राजा ने कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत किया और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर अपनी भूल के लिए क्षमा माँगी| इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ| इस प्रकार इस दिन व्रत रखने की परम्परा पड़ी|
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इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर उबटन या तेल लगाकर स्नान करने का बड़ा महात्म्य है| फिर मंदिर में जाना बड़ा पुण्यदायक है| इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है| सर्वाधिक मोहक रूप तो सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति भगवान श्रीकृष्ण का है| इस दिन उन की उपासना से वैसा ही रूप हमें भी प्राप्त होता है| इस लिए इस दिन को रूप_चतुर्दशी भी कहते हैं|
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छोटी_दीपावली की शुभ कामनाएँ !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ नवम्बर २०१८

तारक मन्त्र "राम" नाम सत्य है (रामनाम का महत्त्व) ....

तारक मन्त्र "राम" नाम सत्य है (रामनाम का महत्त्व) ....
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"र" अग्निबीज है जो शोक, मोह, और कर्मबंधनों का दाहक है|
"आ" सूर्यबीज है जो ज्ञान का प्रकाशक है|
"म" चंद्रबीज है जो मन को शांति व शीतलता दायक है|
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"राम" नाम और "ॐ" का महत्व एक ही है| "राम" नाम तारक मन्त्र है, और "ॐ" अक्षर ब्रह्म है| दोनों का फल एक ही है|
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विशेष :----- यह मैं पहिले भी लिख चुका हूँ| "राम" नाम के जाप और "ॐ" यानि ओंकार के ध्यान से एक रक्षा कवच का निर्माण होता है जो हमारी रक्षा करता है| मृत्यु एक अटल सत्य है| जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी होगी ही| जब किसी की शव यात्रा जा रही होती है तब मृतक के परिजन "राम नाम सत्य है" कहते हुए ही जाते हैं| ऐसी मान्यता है कि भौतिक मृत्यु के उपरांत जीवात्मा की उसके पुण्यों/पापों के अनुसार गति होती है| अधिकाँश मनुष्यों के अच्छे पुण्य नहीं होते अतः वे अपनी मृत देह के आसपास भटकते रहते हैं, और अपनी वासना की पूर्ति हेतु औरों की देह में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं| राम का नाम लेने से उपस्थित लोगों के ऊपर एक रक्षा-कवच का निर्माण होता है जो उनकी रक्षा करता है|
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राम का नाम न केवल सत्य है, बल्कि भारतीय जन मानस में रचा बसा भी है| यही कारण है कि परस्पर अभिवादन में 'राम-राम', कोई त्रुटि होने पर क्षोभ व्यक्त करने के लिए भी 'राम राम', आश्चर्य प्रकट करने के लिए 'हे राम', संकटग्रस्त होने पर सहायता की अपेक्षा में भी 'हे राम' और अंतिम यात्रा में तो "राम नाम सत्य है" कहते ही हैं|
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राम नाम जीवन का मंत्र है, मृत्यु का नहीं| राम, भगवान शिव के आराध्य हैं| राम ही हमारे जीवन की ऊर्जा हैं| जो रोम रोम में बसे हुए हैं वे राम है| जिसमें योगिगण निरंतर रमण करते हैं वे राम हैं| ‘रा’ शब्द परिपूर्णता का बोधक है और ‘म’ शब्द परमेश्वर का वाचक है| चाहे निर्गुण हो या सगुण, "राम" शब्द एक महामंत्र है|
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राम नाम निर्विवाद रूप से सत्य है| राम नाम के निरंतर जाप से सद्गति प्राप्त होती है|
राम राम राम राम राम राम राम राम !! जय श्रीराम ! जय श्रीराम ! जय श्रीराम !
कृपा शंकर
६ नवम्बर २०१८

भारत का संविधान और न्याय-व्यस्था भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए है, न कि विदेशी आतंकी लुटेरों के अधिकारों की रक्षा के लिए .....

भारत का संविधान और न्याय-व्यस्था भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए है, न कि विदेशी आतंकी लुटेरों के अधिकारों की रक्षा के लिए| बाबर नाम के एक विदेशी आतंकी लुटेरे आतताई ने पाँच लाख से अधिक भारतीयों की ह्त्या करवा कर, हज़ारों भारतीय महिलाओं का बलात्कार करवा कर, पूरे भारत देश को आतंकित कर के, भारत के पवित्रतम स्थान राम मंदिर को भग्न कर के एक विवादित ढांचा राममंदिर के भग्नावशेषों से ही वहीं खड़ा किया था|
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बाबर कोई भारतीय नहीं बल्कि मध्य एशिया के उज़बेकिस्तान नाम के देश से आया हुआ एक निकृष्टतम चोर दुर्दांत अत्याचारी और आतंकी लुटेरा था|
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भारत के संविधान और उच्चतम न्यायालय का यह उद्देश्य नहीं है कि वे बाबर या अन्य किसी विदेशी लुटेरे के अधिकारों की रक्षा करे| यह संविधान और न्याय-व्यवस्था भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए है न कि विदेशी आतंकी लुटेरों की|
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समाज की सुरक्षा के लिए चोरी, डकैती, ह्त्या आदि को अपराध माना गया है| लूटी हुई संपत्ति उसके स्वामी को बापस दिलवाना न्यायालय का दायित्व है|
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लाखों भारतीयों की ह्त्या कर के राम मंदिर लूटा व तोड़ा गया था| राम मंदिर के मालिकों को मंदिर बापस करने के बदले .....
(१) लुटेरों को लूट की संपत्ति पर तीस पीढ़ियों का अधिकार मानना,
(२) लूटमार और लुटेरों का सम्मान करना,
करोड़ों भारतीयों और भारत की अस्मिता का अपमान है|
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श्रीराम पूरे भारत के और हम सब के प्राण हैं| कृपया इसे अधिक से अधिक साझा और कॉपी/पेस्ट करें| धन्यवाद ! जय श्रीराम !

धनतेरस की शुभ कामनाएँ .....

धनतेरस की शुभ कामनाएँ .....
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सबसे बड़ा धन अच्छा स्वास्थ्य है| धनतेरस के दिन दीप जला कर भगवान से अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करें| बेकार में प्रचलित रीति-रिवाजों का अन्धानुशरण करते हुए सोना-चांदी आदि खरीदने के लिए न दौड़ें, और अपने बड़े परिश्रम से कमाए धन को नष्ट न करें| अपने स्वास्थ्य की रक्षा करें|
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कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है| इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है| धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है| इसका लौकिक धन-संपत्ति या रुपये-पैसे से कोई सम्बन्ध नहीं है| लोग इस दिन सोने-चांदी के आभूषण, बर्तन, भूमि, वस्त्र आदि जमकर खरीदते हैं, या नए भवन का निर्माण आरम्भ करते हैं| यह एक अन्धानुशरण की गलत परम्परा सी पड़ गयी है जिसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है|
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धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था| भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा पड़ गयी है| कहीं कहीं एक गलत और झूठी लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है|
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धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज से एक यमदूत ने पूछा कि अकाल-मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है| इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगण मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं|
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धन्यवाद ! धन तेरस की शुभ कामनाएँ !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ नवम्बर २०१८

आधी रात का सूर्य .....

आधी रात का सूर्य .....
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आधीरात को उगने वाले सूर्य को कुछ समय के लिए देखने की एक ४० वर्ष पुरानी स्मृति है मुझे| सन १९७८ में एक बार नोर्वे के उत्तरी भाग में कुछ दिनों के लिए जाने का अवसर मिला था जहाँ से आधी रात के सूर्य की भूमि (Land of midnight sun) आरम्भ होती है| वहाँ से उत्तर में उत्तरी ध्रुव क्षेत्र है|

आधीरात को सूर्य का उगना ..... आर्कटिक वृत्त के उत्तरी भाग में, और अंटार्कटिक वृत्त के दक्षिणी भाग में वहाँ के स्थानीय ग्रीष्मकाल में होने वाली एक प्राकृतिक घटना होती है| इसको देखने बहुत लोग आते हैं|

वहाँ आधी रात को सूर्य कुछ देर तक ही दिखाई देता है फिर तरह तरह का प्रकाश पूरे आकाश में छा जाता है|
मुझे अब तो विश्वास भी नहीं होता कि जीवन में मैनें भी कभी आधी रात का सूर्योदय देखा है| पर यह सत्य है|

एक अवधूत संत स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्र सरस्वती ......

एक अवधूत संत स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्र सरस्वती ......
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स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्र सरस्वती एक अवधूत संत थे जिन्होनें संन्यास ग्रहण के पश्चात अपने पूरे जीवनकाल में कभी कोई वस्त्र नहीं पहना, और सदा ध्यानमग्न रहते थे| सदाशिव ब्रह्मेन्द्र को अपने ज्ञान की तीव्रता होने के कारण आरम्भ में तर्क करने का स्वभाव था| अपने तर्कों से वे बड़े बड़े विद्वानों को निरुत्तर कर देते थे| कई विद्वानों ने उनकी शिकायत उनके गुरु स्वामी परमशिवेंद्र सरस्वती से की| गुरुदेव ने सदाशिव ब्रह्मेन्द्र को बुलाकर कहा कि तुम तो सब के मुंह बंद कर देते हो पर तुम स्वयं चुप कब रहोगे? उसी क्षण से सदाशिव ब्रह्मेन्द्र ने आजीवन मौन धारण का व्रत ले लिया|
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वे बिना किसी से कोई बात किये अवधूतावस्था में कावेरी नदी के तट पर घुमते रहते| अधिकाँश समय तो ध्यानमग्न ही रहते| लोगों ने उनके गुरु से उनकी शिकायत की तो गुरु ने यही कहा कि .... "जाने कब मैं भी इतना भाग्यशाली बनूँ|" सदाशिव ब्रह्मेन्द्र ने वेदान्त पर कई पुस्तकें लिखीं और अनेक काव्य रचनाएँ कीं|
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उनके चमत्कारों पर अनेक किस्से दक्षिण भारत में प्रचलित हैं| परमहंस योगानंद ने भी अपनी विश्वप्रसिद्ध पुस्तक "योगी कथामृत" में उनके बारे में बहुत कुछ लिखा है|
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उनका जन्म मदुराई में अठारहवीं शताब्दी में श्रीवत्स गौत्र के श्री मोक्षसोमसुन्दर और श्रीमती पार्वती के घर हुआ था| माता-पिता ने उनका नाम शिवरामकृष्ण रखा था| उनके माता-पिता भगवान रामनाथस्वामी (रामेश्वरम) के भक्त थे| रामेश्वरम भगवान शिव की कृपा से ही उनका जन्म हुआ था|
हमारी भारतभूमि धन्य है जिसने ऐसे महान संतों को जन्म दिया|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
४ नवम्बर २०१८

मनुष्य का मन भी एक गिद्ध है .....

जैसे गिद्ध, चील-कौए, और लकड़बघ्घे मृत लाशों को ही ढूँढ़ते रहते हैं और अवसर मिलते ही उन पर टूट पड़ते है, वैसे ही मनुष्य का मन भी एक गिद्ध है जो दूसरों को लूटने, ठगने और विषय-वासनाओं की पूर्ति के अवसर ढूँढ़ता रहता है और अवसर मिलते ही उन पर टूट पड़ता है|

मनुष्य के वेश में भी बहुत सारे परभक्षी घुमते हैं जिन की गिद्ध दृष्टी दूसरों से घूस लेने, दूसरों को ठगने, लूटने और वासनापूर्ति को ही लालायित रहती है| ऐसे लोग बातें तो बड़ी बड़ी करते हैं पर अन्दर ही अन्दर उन में कूट कूट कर हिंसा, लालच, कुटिलता व दुष्टता भरी रहती है| मनुष्य के रूप में ऐसे परभक्षी चारों ओर भरे पड़े हैं| भगवान की परम कृपा ही उन से हमारी रक्षा कर सकती है, अन्य कुछ भी नहीं|

हे प्रभु, हम अपने विचारों के प्रति सदा सजग रहें और हमारा मन निरंतर आपकी चेतना में रहे| सब तरह के कुसंग, बुरे विचारों और प्रलोभनों से हमारी रक्षा करो|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ नवम्बर 2018