त्याग किस का और कैसे करें (क्या अभी भी कोई उम्मीद बाकी है?) .....
--------------------------------------------------------------------------
व्यक्ति भावावेश में आकर त्याग करने का निश्चय तो कर लेता है, पर बाद में उसका चित्त उठ आता है और किन्तु-परन्तु के अनेक विचार आने लगते हैं और त्याग पता नहीं कहाँ चला जाता है| इस तरह के कई मामले देखे हैं|
वास्तव में त्याग भगवान की परम कृपा से ही होता है, सिर्फ संकल्प शक्ति से नहीं| त्याग से ही परम शांति मिलती है|
.
गीता के अनुसार चार चीजों का त्याग होता है :---
(१) जो प्राप्त नहीं है उसकी कामना|
(२) जो प्राप्त है उसकी ममता|
(३) निर्वाह की स्पृहा, यानि जीवन यापन की चिंता|
(४) अहंकार और अपेक्षा|
.
गीता में भगवान कहते हैं .....
"विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः| निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति||२:७१||"
--------------------------------------------------------------------------
व्यक्ति भावावेश में आकर त्याग करने का निश्चय तो कर लेता है, पर बाद में उसका चित्त उठ आता है और किन्तु-परन्तु के अनेक विचार आने लगते हैं और त्याग पता नहीं कहाँ चला जाता है| इस तरह के कई मामले देखे हैं|
वास्तव में त्याग भगवान की परम कृपा से ही होता है, सिर्फ संकल्प शक्ति से नहीं| त्याग से ही परम शांति मिलती है|
.
गीता के अनुसार चार चीजों का त्याग होता है :---
(१) जो प्राप्त नहीं है उसकी कामना|
(२) जो प्राप्त है उसकी ममता|
(३) निर्वाह की स्पृहा, यानि जीवन यापन की चिंता|
(४) अहंकार और अपेक्षा|
.
गीता में भगवान कहते हैं .....
"विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः| निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति||२:७१||"
भावार्थ : जो मनुष्य समस्त भौतिक कामनाओं का परित्याग कर इच्छा-रहित,
ममता-रहित और अहंकार-रहित रहता है, वही परम-शांति को प्राप्त कर सकता है||
.
जिस भी साधक को यह त्याग सिद्ध हो जाए तो उसे स्थितप्रज्ञ होने में देरी नहीं लगती| वह ब्राह्मी स्थिति को भी प्राप्त कर सकता है| भगवान कहते हैं.....
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति| स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति||२:७२||
भावार्थ : हे पार्थ! यह आध्यात्मिक जीवन (ब्रह्म की प्राप्ति) का पथ है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य कभी मोहित नही होता है, यदि कोई जीवन के अन्तिम समय में भी इस पथ पर स्थिति हो जाता है तब भी वह भगवद्प्राप्ति करता है||
.
इसका अर्थ है अभी भी उम्मीद बाकी है| निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है| भगवान से प्रार्थना करेंगे तो वे अपनी कृपा अवश्य करेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० नवम्बर २०१८
.
जिस भी साधक को यह त्याग सिद्ध हो जाए तो उसे स्थितप्रज्ञ होने में देरी नहीं लगती| वह ब्राह्मी स्थिति को भी प्राप्त कर सकता है| भगवान कहते हैं.....
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति| स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति||२:७२||
भावार्थ : हे पार्थ! यह आध्यात्मिक जीवन (ब्रह्म की प्राप्ति) का पथ है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य कभी मोहित नही होता है, यदि कोई जीवन के अन्तिम समय में भी इस पथ पर स्थिति हो जाता है तब भी वह भगवद्प्राप्ति करता है||
.
इसका अर्थ है अभी भी उम्मीद बाकी है| निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है| भगवान से प्रार्थना करेंगे तो वे अपनी कृपा अवश्य करेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० नवम्बर २०१८