"चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः" |
"चंद्रशेखर" शब्द का आध्यात्मिक अर्थ क्या हो सकता है ? ....
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भगवान शिव का एक नाम चंद्रशेखर भी है| उनके माथे पर चन्द्रमा सुशोभित है
इसलिए वे भगवान चंद्रशेखर है| सप्तकल्पांतजीवी ऋषि मार्कंडेय कृत चंद्रशेखर
स्तोत्र में एक पंक्ति है .... "चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै
यमः" ..... यह पंक्ति इस स्तोत्र का प्राण है| इस पर विचार करते करते जो
अर्थ मेरी अति अल्प और तुच्छ सीमित बुद्धि से समझ में आया उसे मैं यहाँ
व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ| वैसे तो यह पूरा स्तोत्र ही बहुत गहन
अर्थों वाला है, पर यहाँ सिर्फ इसी एक ही पंक्ति पर विस्तार से विचार
करेंगे|
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शिव का अर्थ है "शुभ"| मनुष्य अपनी उच्चतम चेतना में
परमात्मा के जिस सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और परम कल्याणमय साकार
विग्रह की कोई कल्पना कर सकता है, वह भगवान शिव का विग्रह है|
वे दिगंबर हैं, अर्थात दशों दिशाएँ ही उनके वस्त्र हैं, वे सर्वव्यापी हैं|
उनके गले में सर्प, कुण्डलिनी महाशक्ति का प्रतीक है| योगियों के लिए
महाशक्ति कुण्डलिनी और परमशिव का मिलन ही योग है| वे योगियों के आराध्य
हैं| कुण्डलिनी महाशक्ति जागृत होकर सभी चक्रों और सहस्त्रार को भेदती हुई
जब अनंत ब्रह्म से एकाकार हो जाती है वह ही परमशिव से मिलन है| तब कोई भेद
नहीं रहता| वह ब्राह्मी चेतना है जो उच्चतम परम चैतन्य है|
देह पर
उन्होंने भस्म रमा रखी है जो परम वैराग्य का प्रतीक है| कामदेव को भस्म कर
उसकी राख उन्होंने स्वयं की देह पर रमा ली थी| वे सब कामनाओं से परे हैं|
सारी सृष्टि का हलाहल उन्होंने स्वयं ग्रहण कर लिया है, किन्तु वे स्वयं
अमृतमय हैं अतः वह हलाहल गले से नीचे ही नहीं उतर रहा, इस लिए वे नीलकंठ
हैं|
उनके हाथों में त्रिशूल है जो त्रिगुणात्मक शक्तियों का प्रतीक है| वे तीनों गुणों के स्वामी हैं|
बैल, धर्म का प्रतीक है जिस पर वे सवारी करते हैं| वे जहाँ भी जाते हैं, धर्म वहीं स्थापित हो जाता है|
उनके सिर से गंगा जी बहती है, जो ज्ञान की प्रतीक है| वे निरंतर ज्ञान को प्रवाहित कर रहे हैं|
जिनका सृष्टि में कोई नहीं है, सब जिन से दूर रहना चाहते हैं, उन
भूत-प्रेतों को भी उन्होंने अपने गणों में सम्मिलित कर रखा है, अर्थात वे
सब के आराध्य हैं|
वे डमरू बजाते हैं जो अनाहत नाद का प्रतीक है, जिस से सभी स्वरों और सृष्टि की रचना हुई है|
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उन के माथे पर चन्द्रमा है जो कूटस्थ ज्योति का प्रतीक है| योगी लोग
कूटस्थ ज्योति का ध्यान करते हैं जो आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में
ध्यान के समय निरंतर दिखाई देती है| ध्यान में उस कूटस्थ ज्योति का दर्शन
करते हुए और साथ साथ कूटस्थ नाद-ब्रह्म को निरंतर सुनते सुनते जिस चेतना
में हमारी स्थिति हो जाती है वह "कूटस्थ चैतन्य" कहलाती है| वह ज्योति
पहिले एक स्वर्णिम आभा के रूप में दिखाई देती है, फिर उसमें एक नीला वर्ण
दिखाई देता है, जिसके मध्य में एक विराट सफ़ेद प्रकाश होता है| धीरे धीरे उस
श्वेत प्रकाश के मध्य में एक अत्यंत चमकीले पञ्च कोणीय श्वेत नक्षत्र के
दर्शन होते हैं जो पञ्चमुखी महादेव का प्रतीक है| योगिगण उस पञ्चमुखी
महादेव का ही ध्यान करते हैं|
उस कूटस्थ चैतन्य में स्थिति ही भगवान
चंद्रशेखर में आश्रय लेना है| जिसने भगवान चंद्रशेखर में आश्रय ले लिया,
यमराज उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि वह भक्त तो पहिले ही जीवनमुक्त
हो चुका होता है| यही "चंद्रशेखर" शब्द का आध्यात्मिक अर्थ है जो मुझे मेरी
अति अल्प और सीमित तुच्छ बुद्धि से समझ में आया है| मेरे समझने में कोई
भूल हुई हो तो मैं आप सब मनीषियों से क्षमा प्रार्थना करता हूँ|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अप्रेल २०१८
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सप्त कल्पान्तजीवी ऋषि मार्कंडेय अमर हैं और वे नर्मदा नदी के उद्गम पर
सदा विराजते हैं| वे नर्मदा के द्वारपाल हैं जिनकी कृपा और आशीर्वाद से ही
नर्मदा परिक्रमा सफल होती है|