Tuesday 17 April 2018

सिद्धि स्वयं के प्रयासों से नहीं, भगवत कृपा से मिलती है .....

मुझे वर्षों पहिले साक्षात शिवस्वरूप एक सिद्ध संत ने कहा था कि एक एकांत कमरे की व्यवस्था कर लो और सब तरह के प्रपंचों से दूर रहते हुए निरंतर 'शिव" का मानसिक जप और ध्यान करते रहो| उन्होंने यह भी कहा कि इधर-उधर की भागदौड़ करने की अब कोई आवश्यकता नहीं है| शिव का ध्यान करते करते तुम्हारी चेतना शिवमय हो जाएगी, और तुम शीघ्र ही जीवन-मुक्त हो जाओगे|
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पर मैं अपनी मानसिक कमजोरियों के कारण दुनियाँ के प्रपंचों से तो कभी दूर नहीं हो पाया| पर भगवान भी कृपा करते हैं जिस से अब तो दुनियाँ ही अपने प्रपंचों से दूर होने को मुझे बाध्य कर रही है| भगवान ने भी परम कृपा कर के अंतर्दृष्टि के दोषों को कम किया है, जिस से चेतना में और अधिक स्पष्टता आई है|
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एक बात तो निश्चित तौर से कह सकता हूँ कि किसी भी साधना में सिद्धि स्वयं के प्रयासों से नहीं, भगवत कृपा से ही मिलती है| प्रयास तो करते रहना चाहिए, पर यह परमात्मा की मर्जी है कि वे कब सफलता दें| इसी लिए बिना किसी शर्त के साधना करने का आदेश दिया जाता है| यह एक परीक्षा है जिस में उतीर्ण होना ही होता है| जहाँ थोड़ी सी भी अपेक्षा की वहीं अनुतीर्ण हो गए|
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और भी कई बाते हैं जिनका सार्वजनिक उल्लेख वर्जित है| परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप आप सब को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
१३ अप्रेल २०१८

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