परमात्मा के प्रेम में सब इच्छाओं की तृप्ति .....
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भगवान की यह प्रतिज्ञा है ..... "अहं स्मरामि मद्भक्तं नयामि परमां गतिम् |"
अपने भक्त का यदि वे मेरा स्मरण न कर सकें तो मैं स्वयं ही उनका स्मरण करता हूँ और उन्हे परम गति प्राप्त करा देता हूँ|
निश्चय कर संकल्प सहित अपने आप को परमात्मा के हाथों में सौंप दो| जहाँ हम विफल हो जाएँगे, वहाँ वे हाथ थाम लेंगे| अब और क्या चाहिए?
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उनके प्रति हृदय में जब परम प्रेम जागृत होता है तब सब इच्छाएँ तृप्त हो जाती हैं| भगवान की प्राप्ति के लिए ऐसी छटपटाहट और पीड़ा होनी चाहिए जैसे किसी ने एक परात में जलते हुए कोयले भर कर सिर पर रख दिए हों, और हमें उस अग्नि की दाहकता से मुक्ति पानी हो| ऐसा परम प्रेम हमें परमात्मा की कृपा द्वारा ही प्राप्त हो सकता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
11 November 2017