May 22. 2013.
मनुष्य जीवन की एकमात्र समस्या और एकमात्र समाधान :--
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यह सृष्टि परमात्मा की रचना है जिसे चलाने में वह सक्षम है| उसे हमारे सुझावों की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम स्वयं भी उसी की रचना हैं|
हरेक कार्य विधिवत रूप से कुछ नियमों के अंतर्गत होता है, जिन्हें न जानना ही हमारी अज्ञानता है|
किसी नियम का उल्लंघन करने पर दंड तो हमें भुगतना ही पड़ता है| हमारा यह तर्क स्वीकार्य नहीं हो सकता कि हमें नियमों का ज्ञान नहीं था|
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कहीं न कहीं किसी आध्यात्मिक नियम का उल्लंघन करने से कष्ट और पीड़ा का सामना करना ही पड़ता है| यहीं से सभी तथाकथित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं|
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वास्तव में ये समस्याएँ हमारी नहीं बल्कि सृष्टिकर्ता परमात्मा की हैं| वही तो सब कुछ कर रहा है| जब हम कुछ करेंगे ही नहीं तो हम कैसे उत्तरदायी हो सकते हैं ? हम ने तो कहा नहीं था कि हमें पृथक जीवन दो| जिसने यह जीवन दिया है और जो सब कुछ कर रहा है वही अपने कर्मफलों का भोगी है, हम नहीं| हम अहंकारवश स्वयं को कर्ता बना देते हैं बस यहीं से सब दु:ख, कष्ट और पीडाएं आरम्भ होती हैं|
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मनुष्य के सब दु:खों, कष्टों और पीडाओं का एकमात्र कारण है ----- परमात्मा से पृथकता|
अन्य कोई कारण नहीं है|
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इसी तरह मनुष्य की एकमात्र समस्या है ---- परमात्मा को उपलब्ध/समर्पित होना| अन्य कोई समस्या नहीं है| हम परमात्मा को कैसे उपलब्ध हों यही तो सनातन धर्म सिखाता है|
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हमें धर्म-निरपेक्ष से धर्म-सापेक्ष बनना होगा|
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अपना ध्यान निरंतर कूटस्थ पर रखो और परमात्मा के उपकरण बन जाओ| वह जब इस अनंत अन्धकार से घिरे घोर भवसागर में हमारा ध्रुव तारा ही नहीं बल्कि कर्णधार भी बन जाएगा तब हम भटकेंगे नहीं| प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमारे अनुकूल बन जायेगी| बस उसे और सिर्फ उसे अपनी जीवन नौका का कर्णधार बना लो|
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ॐ तत्सत्| इति| ॐ ॐ ॐ ||
मनुष्य जीवन की एकमात्र समस्या और एकमात्र समाधान :--
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यह सृष्टि परमात्मा की रचना है जिसे चलाने में वह सक्षम है| उसे हमारे सुझावों की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम स्वयं भी उसी की रचना हैं|
हरेक कार्य विधिवत रूप से कुछ नियमों के अंतर्गत होता है, जिन्हें न जानना ही हमारी अज्ञानता है|
किसी नियम का उल्लंघन करने पर दंड तो हमें भुगतना ही पड़ता है| हमारा यह तर्क स्वीकार्य नहीं हो सकता कि हमें नियमों का ज्ञान नहीं था|
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कहीं न कहीं किसी आध्यात्मिक नियम का उल्लंघन करने से कष्ट और पीड़ा का सामना करना ही पड़ता है| यहीं से सभी तथाकथित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं|
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वास्तव में ये समस्याएँ हमारी नहीं बल्कि सृष्टिकर्ता परमात्मा की हैं| वही तो सब कुछ कर रहा है| जब हम कुछ करेंगे ही नहीं तो हम कैसे उत्तरदायी हो सकते हैं ? हम ने तो कहा नहीं था कि हमें पृथक जीवन दो| जिसने यह जीवन दिया है और जो सब कुछ कर रहा है वही अपने कर्मफलों का भोगी है, हम नहीं| हम अहंकारवश स्वयं को कर्ता बना देते हैं बस यहीं से सब दु:ख, कष्ट और पीडाएं आरम्भ होती हैं|
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मनुष्य के सब दु:खों, कष्टों और पीडाओं का एकमात्र कारण है ----- परमात्मा से पृथकता|
अन्य कोई कारण नहीं है|
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इसी तरह मनुष्य की एकमात्र समस्या है ---- परमात्मा को उपलब्ध/समर्पित होना| अन्य कोई समस्या नहीं है| हम परमात्मा को कैसे उपलब्ध हों यही तो सनातन धर्म सिखाता है|
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हमें धर्म-निरपेक्ष से धर्म-सापेक्ष बनना होगा|
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अपना ध्यान निरंतर कूटस्थ पर रखो और परमात्मा के उपकरण बन जाओ| वह जब इस अनंत अन्धकार से घिरे घोर भवसागर में हमारा ध्रुव तारा ही नहीं बल्कि कर्णधार भी बन जाएगा तब हम भटकेंगे नहीं| प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमारे अनुकूल बन जायेगी| बस उसे और सिर्फ उसे अपनी जीवन नौका का कर्णधार बना लो|
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ॐ तत्सत्| इति| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
May 22, 2013.
May 22, 2013.