Sunday 25 July 2021

"राम" नाम सत्य है, और सत्य ही परमात्मा है ---

साकार रूप में तो भगवान श्रीराम परमात्मा के अवतार हैं ही, निराकार रूप में भी परमब्रह्म हैं| "राम" नाम तारकमंत्र है| मृत्युकाल में "राम" नाम जिनके स्मरण में रहे वे स्वयं ही ब्रह्ममय हो जाते हैं| अजपा-जप और नाद-श्रवण करते करते अनंत परमात्मा व आत्म-तत्व की अनुभूति होती है| उस आत्म-तत्व में रमण करते-करते चेतना राममय हो जाती है| आत्मतत्व में रमण करने का नाम "राम" है|

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तंत्र की भाषा में साधना के पंच मकार और राम नाम .....
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(१) मद्य :-- परमात्मा के निरंतर चिंतन से मद्य यानि शराब का सा नशा होता है| परमात्मा का निरंतर चिंतन ही मद्यपान है|
(२) मांस :-- पुण्य और पाप रूपी पशुओ की ज्ञान रूपी खड़ग से हत्या कर उनका भक्षण करने से मौन में स्थिति होती है| मौन में स्थिति ही मांस है|
(३) मीन :-- ध्यान के द्वारा इड़ा (गंगा) और पिंगला (यमुना ) के मध्य सुषुम्ना (सरस्वती) में विचरण करने वाली प्राण-ऊर्जा मीन है|
(४) मुद्रा :-- दुष्टों की संगती रूपी बंधन से बचे रहना ही मुद्रा है|
(५) मैथुन :-- मूलाधार से कुंडलिनी महाशक्ति को उठाकर सहस्त्रार से भी परे परमशिव से मिलाना मैथुन है|
महाशक्ति कुंडलिनी और परमशिव के मिलन के बाद की स्थिति आत्माराम और राममय होना है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जुलाई २०२०

मुक्त-चयन (Free Choice) और नियति (Destiny) ---


निम्न पंक्तियाँ मैं अपने अनुभव से लिख रहा हूँ| यह आवश्यक नहीं है कि ये सत्य ही हों| मेरा आंकलन भी गलत हो सकता है|
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सनातन हिन्दू धर्म में पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष) को मानव जीवन का उद्देश्य या लक्ष्य बताया गया है| माता-पिता, आचार्यों और शास्त्रों के उपदेशानुसार आचरण भी पुरुषार्थ है|
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लेकिन इस जीवन का मेरा अनुभव यह कहता है कि जीवन में हमारे साथ वही होता है जो हमारी नियति में है| हमारे पास कोई विकल्प नहीं होता| हमारी महत्वाकांक्षायें कभी पूरी नहीं होतीं| होता वही है जैसी परिस्थितियाँ हमारे चारों ओर होती हैं, और जैसी हमारी समझ और मस्तिष्क यानि दिमाग की क्षमता होती है| जितनी अधिक आकांक्षाएँ हमारे में होती हैं, उतनी ही अधिक हमारे जीवन में कुंठायें होती हैं| पुरुषार्थ भी तभी होता है जब वह हमारे भाग्य यानि नियति में लिखा हो, अन्यथा नहीं|
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हमारे पास एक ही स्वतंत्र चयन (free choice) है कि हम परमात्मा को प्रेम करें या नहीं| अन्य सब तरह के पुरुषार्थ की बात एक आदर्श लुभावनी मीठी-मीठी अव्यवहारिक कल्पना मात्र ही है| हम अपने कर्मफलों को भोगने के लिए ही आते हैं| बहुत ही कम विकल्प/अवसर, और उनका उपयोग करने की क्षमता हमें जीवन में मिलती हैं| होता वही है जैसी सृष्टिकर्ता की इच्छा होती है|
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आप सब महान आत्माओं को नमन !! आप के विचार आमंत्रित हैं|
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२५ जुलाई २०२०

"राम" नाम परम सत्य है, और सत्य ही परमात्मा है ---


साकार रूप में तो भगवान श्रीराम परमात्मा के अवतार हैं ही, निराकार रूप में भी परमब्रह्म हैं| "राम" नाम तारकमंत्र है| मृत्युकाल में "राम" नाम जिनके स्मरण में रहे वे स्वयं ही ब्रह्ममय हो जाते हैं| अजपा-जप और नाद-श्रवण करते करते अनंत परमात्मा व आत्म-तत्व की अनुभूति होती है| उस आत्म-तत्व में रमण करते-करते चेतना राममय हो जाती है| आत्मतत्व में रमण करने का नाम "राम" है|
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तंत्र की भाषा में साधना के पंच मकार और राम नाम .....
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(१) मद्य :-- परमात्मा के निरंतर चिंतन से मद्य यानि शराब का सा नशा होता है| परमात्मा का निरंतर चिंतन ही मद्यपान है|
(२) मांस :-- पुण्य और पाप रूपी पशुओ की ज्ञान रूपी खड़ग से हत्या कर उनका भक्षण करने से मौन में स्थिति होती है| मौन में स्थिति ही मांस है|
(३) मीन :-- ध्यान के द्वारा इड़ा (गंगा) और पिंगला (यमुना ) के मध्य सुषुम्ना (सरस्वती) में विचरण करने वाली प्राण-ऊर्जा मीन है|
(४) मुद्रा :-- दुष्टों की संगती रूपी बंधन से बचे रहना ही मुद्रा है|
(५) मैथुन :-- मूलाधार से कुंडलिनी महाशक्ति को उठाकर सहस्त्रार से भी परे परमशिव से मिलाना मैथुन है|
महाशक्ति कुंडलिनी और परमशिव के मिलन के बाद की स्थिति आत्माराम और राममय होना है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जुलाई २०२०