Friday, 6 December 2024

हृदय रोग से बचाव कैसे करें? ---

(१) हृदय रोग से बचाव का सब से बड़ा उपाय है --- "चिंतामुक्त जीवन|" इसका अभ्यास करना पड़ता है| भगवान में आस्था भी होनी चाहिए|
(२) यदि मधुमेह या उच्च-रक्तचाप की बीमारी है तो उसका तुरंत उपचार अति आवश्यक है| ये बहुत बड़े खतरे की घंटी हैं| "सादा जीवन और उच्च विचार" सदा हमारी रक्षा करते हैं| संतुलित व उचित मात्रा में ही भोजन करें| नित्य नियमित व्यायाम करें|

(३) यदि शरीर का भार अधिक है, और पेट बाहर निकला हुआ है तो यह खतरे की निशानी है| अपने शरीर का भार कम करें|

(४) नित्य प्रातः उठते ही हल्के गर्म पानी में आधा नीबू निचोड़ कर, एक चम्मच शहद, और एक चम्मच सेव का सिरका (Apple Cider Vinegar) मिला कर पीना चाहिए|

(५) दिन में दो लहसुन, थोड़ी सी अदरक, लगभग दस ग्राम अलसी, और एक अनार नित्य खाना चाहिए|

(६) रात्री में सोने से पहिले अर्जुन की छाल का काढ़ा पीना चाहिए| अर्जुन की छाल को दूध में भी उबाल सकते हैं| अर्जुन की छाल के साथ थोड़ी सी दालचीनी भी हो तो यह काढ़ा अधिक प्रभावशाली होगा|

(७) चीनी, नमक, मैदा, मावा और घी का प्रयोग कम से कम करें|

(८) नित्य कम से कम चालीस मिनट खुली हवा में तेजी से घूमना चाहिए|
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उपरोक्त बिन्दु हमारा हृदय रोगों से बचाव करेंगे| फिर भी कोई समस्या हो तो किसी अच्छे फिजिशीयन से तुरंत उपचार करवाएँ|
६ दिसंबर २०१९

सनातन धर्म ही भारत की अस्मिता है, जिसके बिना भारत -- भारत नहीं है

सनातन धर्म ही भारत की अस्मिता है, जिसके बिना भारत -- भारत नहीं है। किसी भी राजनीतिक दल से कोई उम्मीद नहीं है कि वे सनातन धर्म के उत्थान और रक्षा के लिए कुछ करेंगे। केवल हरिःकृपा पर ही आश्रित हैं।

वह समय भी निश्चित रूप से शीघ्र ही आयेगा जब भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी। सम्पूर्ण भारत से असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश होगा व सनातन धर्म की पुनःप्रतिष्ठा होगी। मार्क्सवाद, सेकुलरवाद, समाजवाद, जातिवाद, तथाकथित अल्पसंख्यकवाद यानि तुष्टिकरण, सर्वधर्मसमभाववाद और अन्य कई कलियुगी व्यवस्थाएँ ध्वस्त होंगी।
जो राष्ट्र महान ऋषि-मुनियों, तपस्वी साधू-संतों, भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण जैसे अवतारों का है, वह सदा पददलित नहीं रह सकता। हमारे लिए यह साक्षात माता है। यहाँ पर परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हुई है। अन्धकार और असत्य की आसुरी शक्तियाँ सदा यहाँ राज्य नहीं कर सकतीं, उन का सर्वनाश निश्चित है। हम अपने निज जीवन में परमात्मा की चेतना में रहें।
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
५ दिसंबर २०२४

यमदूतिका ---

जब कान के पास के बाल सफ़ेद हो जाएँ तब सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि कानों के पास के बालों का सफ़ेद होना यमराज का एक सन्देश है कि मैं कभी भी आ सकता हूँ| सफ़ेद बालों को यमदूतिका ही समझना चाहिए|
रामायण में बर्णन है कि महाराजा दशरथ ने एक बार दर्पण में अपना मुख देखा तो कानों के पास सफ़ेद बाल दिखाई दिए| उन्होंने तुरंत ही राम के राज्याभिषेक की तैयारी आरम्भ कर दी|
कहते हैं कि यमराज जब किसी के प्राण हरने आते हैं तो उनके भैंसे के गले में बंधी घंटी की ध्वनि मरने वाले को सुनाई देने लगती है| उसकी ध्वनि इतनी कर्णकटु होती है कि वह घबरा जाता है और विगत का पूरा जीवन उसको सिनेमा की तरह दिखाई देने लगता है| उसी चेतना में यमराज उसके गले में फंदा डालकर उस को देहचेतना से मुक्त कर देते हैं| फिर उसे बहुत अधिक कष्ट झेलने पड़ते हैं|
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यमराज के भैंसे के गले में बंधी घंटी की ध्वनी सुने इससे पहिले ही ओंकार की ध्वनी को या राम नाम की ध्वनी को निरंतर सुनने का अभ्यास आरम्भ कर देना चाहिए|
आप किसी बड़े मंदिर में जाते हैं तो वहाँ एक बड़ा घंटा लटका रहता है जिसे जोर से बजाने पर उसकी ध्वनी का स्पंदन बहुत देर तक सुनाई देता है| कल्पना करो कि ऐसे ही किसी घंटे से ओंकार की या रामनाम की ध्वनि निरंतर आ रही है| उस ध्वनी को सुनने और उस पर ध्यान करने का नित्य नियमित अभ्यास करो|
यह ध्वनि ही आपको मुक्ति दिला सकती है| अन्यथा एक बार यमराज के भैंसे के गले की घंटी सुन गयी तो फिर अंत समय में अन्य कुछ भी सुनाई नहीं देगा|
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अभी से अपने मृत्युंजयी भगवान शिव का निरंतर ध्यान करना आरम्भ कर दो| आपकी मृत्यु भय से वे ही रक्षा कर सकते हैं| कितनी शीतलता है उनके सान्निध्य में! वह शीतलता और दिव्यता ही आपकी रक्षा कर सकती है|
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ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
६ दिसंबर २०१६

यह क्रम कब तक चलता रहेगा ? ---

 यह क्रम कब तक चलता रहेगा ?

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जैसे क्रिकेट के स्कोर बोर्ड पर रनों की संख्या बढती रहती है वैसे ही नित्य (ना)पाकिस्तान द्वारा भारतीय सैनिकों के मारे जाने के समाचारों से अत्यधिक पीड़ा होती है| मैं जगन्माता से प्रार्थना करता हूँ कि भारत के बाहर और भीतर के शत्रुओं का नाश करें|
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पाकिस्तान एक नाजायज मुल्क है| इसका निश्चित रूप से नाश होगा| वर्तमान में जहाँ पाकिस्तान है वह पूरा इलाका अफगानिस्तान और कश्मीर सहित महाराजा रणजीतसिंह कि रियासत थी| आज़ादी के बाद दुष्ट अंग्रेजों ने सभी रियासतों को विकल्प दिया था भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनने का| पर महाराजा रणजीतसिंह की एकमात्र उत्तराधिकारी राजकुमारी बाम्बा सोफिया जिन्दान दिलीप सिंह की एक भी ना सुनी गयी| उसने अंग्रेजी सरकार से लेकर सभी राजे रजवाड़ों से गुहार लगाई थी कि उसके दादा के राज्य को बाँटने का अधिकार किसी को नहों है| बंटवारे के समय राजकुमारी बाम्बा को लाहौर जाने कि अनुमति भी नहीं दी गयी जो महाराजा रणजीतसिंह की राजधानी थी|
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पूरी कहानी बहुत लम्बी है| सही इतिहास भारत की जनता से पूर्ववर्ती सरकारों ने छिपाया है| इस विषय पर माननीय श्री अश्विनी कुमार जी ने पूर्व में विस्तार से कई लेख पंजाब केसरी समाचार पत्र में लिखे हैं|
पाकिस्तान को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसका अस्तित्व अनैतिक रूप से महान हिन्दू नायक महाराजा रणजीतसिंह की भूमि पर है|
इस दुष्ट राष्ट्र का विनाश सुनिश्चित है|
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भारत माता की जय|| जय श्री राम !
दिसंबर 6, 2014

सिंहावलोकन --- (विगत की स्मृतियों का सार)

सिंहावलोकन --- (११ वर्ष पुराना लेख शेयर कर रहा हूँ)

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विगत की स्मृतियों का सार व्यक्त करने को ह्रदय कह रहा है| अतः ह्रदय का आदेश मानते हुए कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ| मुझे बाल्यकाल व किशोरावस्था की स्मृतियों का बोध प्रभु कृपा से अभी तक है| मन में सदा से ही अनेक कुंठाएँ और वासनाएँ थीं व ह्रदय में एक सुप्त अभीप्सा थी किसी अज्ञात लक्ष्य को प्राप्त करने की|
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आज के मापदंडों के अनुसार तो उस समय चारों ओर अज्ञान और अंधकार ही था| अच्छा वातावरण नहीं था| कोई अच्छे मार्गदर्शक भी नहीं थे| न तो कंप्यूटर थे और न ही आज की तरह की सूचना प्रोद्योगिकी| सामान्य लोग भी अधिक पढ़े लिखे नहीं थे| सरकारी कार्यालयों और बैंकों में बाबू लोग दसवीं-ग्यारहवीं पास ही होते थे|
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पर वह ज़माना आज से अच्छा था| किसी भी प्रकार की ट्यूशन, कोचिंग आदि का दबाव विद्यार्थी जीवन में नहीं था| विद्यार्थियों को इतना समय मिल जाता था कि वे शाम को खेल के मैदान में या पुस्तकालयों में या संघ की शाखाओं में जा सकते थे| प्रातःकालीन भ्रमण का समय भी मिल जाता था|
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बिजली तो हमारे यहाँ सन १९६३ में आई थी| उससे पूर्व किरोसिन की लालटेन या लैंप की रोशनी में ही रात को पढ़ते थे| गाँव में तो घी का दिया जलाकर उसी के प्रकाश में विद्यार्थी पढ़ते थे| घरों में पानी भी कुँए से भरकर लाना पड़ता था| घर में पानी आता था पर घर से बाहर पानी नहीं जाता था अतः रास्तों में अधिक कीचड नहीं होता था| विद्यालयों में अध्यापक लोग बहुत ही लगन और निष्ठा से पढ़ाते थे| कभी भी वे गृहशिक्षा यानि ट्यूशन पर जोर नहीं देते थे| समाज में अध्यापकों का सम्मान खूब था| विद्यार्थी भी अध्यापकों का खूब सम्मान करते थे और अध्यापक लोग भी अपने विद्यार्थियों का खूब ध्यान रखते थे| गाँवों से बच्चे नित्य पैदल ही आते जाते थे| सरकारी विद्यालय मुश्किल से एक दो ही थे, प्रायः सारे विद्यालय सेठ साहूकारों के द्वारा बनाए गए और उन्हीं के द्वारा संचालित थे|
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समाज का वातावरण भी धार्मिक था| हमारे पिताजी और ताऊजी नित्य प्रातः साढ़े तीन बजे उठ कर बालू रेत के टीलों में यानि जंगल में शौचादि से निवृत होकर कुँए पर स्नान करते और कम से कम दो घंटे तक हमारे पारिवारिक शिवालय में शिव जी की पूजा करते| हमारे पिताजी बताते थे कि हमारे सभी पूर्वज परम शिव भक्त थे| माँ से मुझे कृष्ण भक्ति के भी संस्कार मिले|
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महिलाएं भी प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही कुँए से पानी निकाल कर नहाती थीं और सब एक साथ मंदिर जातीं| मंदिर में सब महिलाओं का आपस में मिलना होता था| वहीँ वे एक दुसरे का सुख दुःख पूछ लेतीं| अतः समाज में एकता रहती और महिलाओं में कोई संवादहीनता नहीं थी|
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प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर जंगल में शौचादि से निवृत होना मेरी नित्य की दिनचर्या थी| फिर तीन-चार किलोमीटर दौड़ कर जाने की और फिर घूमते हुए बापस आने की| नहाने के लिए कुँए से ही पानी लाना पड़ता था| घर में नहाना एक विलासिता थी| शाम को या तो किसी पुस्तकालय में जाता या संघ की शाखा में| उस ज़माने में संघ के प्रचारक पढ़े लिखे और विद्वान् ही नहीं, त्यागी तपस्वी भी होते थे| संघ के प्रचारकों ने ही विवेकानंद साहित्य से परिचय कराया और संघ कार्यालय में ही विवेकानंद साहित्य का अध्ययन किया| 15-16 वर्ष तक की आयु में ही सम्पूर्ण विवेकानद साहित्य, रामायण, महाभारत और अनेक महापुरुषों की जीवनियाँ गहनता से पढ़ ली थीं| यहीं से आध्यात्म में रूचि जागृत हुई|
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अब ये बातें सब स्वप्न सी लगती हैं| युग इतनी तीब्रता से परिवर्तित हुआ है कि आज की पीढ़ी विश्वास नहीं कर सकती कि वे कैसे दिन थे| हम लोग भी अपने से बड़ों की बातों पर आश्चर्य करते थे| उन्होंने भी बहुत बड़े बदलाव देखे थे|| हमारे जीवन काल में ही इतने बड़े परिवर्तन हुए हैं कि सोच कर आश्चर्य होता है| युग ऐसे ही बदलता रहेगा| हर्ष के और पीड़ा के क्षण ऐसे ही आते रहेंगे| पता नहीं सृष्टिकर्ता की क्या मंशा है| पर जो भी हो रहा है ठीक हो रहा है और प्रकृति के नियमानुसार हो रहा है| नियमों को न जानना हमारी अज्ञानता है|
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"जिसे तुम समझे हो अभिशाप
जगत की ज्वालाओं का मूल|
ईश का वह रहस्य वरदान
उसे तुम कभी न जाना भूल||" (प्रसाद)
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विडम्बना तो यह है कि सारा जीवन अपनी कुंठाओं से मुक्त होने और वासनाओं की पूर्ति में ही व्यतीत हो गया| अब तो प्रभु से यही प्रार्थना है कि वे हमें निरंतर अन्धकार से प्रकाश की ओर व असत्य से सत्य की ओर ले जाते रहें| फिर कभी असत्य और अन्धकार की शक्तियों से संपर्क ना हो| ॐ असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्माऽमृतं गमय॥
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मेरे जीवन के अब तक के समस्त अनुभवों का सार यही है की जब तक परमात्मा की प्राप्ति ना हो जाए यानि जब तक आत्मसाक्षात्कार न हो जाये तब तक किसी भी प्रकार का मनोरंजन यानि अन्य किसी भी दिशा में मन को लगाना स्वयं के प्रति अपराध है| मनोरंजन का अर्थ है ---- परमात्मा को भूलना|
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पुनश्च: --- मेरे पिताजी ने तो ठाकुर-ठिकानेदारों व राजा-महाराजाओं का अंतिम समय, अंगरजों के अत्याचार, स्वतंत्रता का आंदोलन, देश का विभाजन व तथाकथित स्वतंत्रता का समय देखा था। उनका भी अपने समय का विचित्र ही अनुभव रहा होगा।
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ॐ तत्सत्| ॐ शिव|
कृपा शंकर
०६ दिसंबर २०१३

यमराज जी का सदा स्वागत है ---

यमराज जी का सदा स्वागत है; जब भी उन को फुर्सत हो, बड़े आराम से अपनी सुविधानुसार कभी भी आ जायें। हर समय उनके साथ चलने को तैयार हैं ---
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जब कान के पास के बाल सफ़ेद हो जाएँ तब सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि कानों के पास के बालों का सफ़ेद होना यमराज का एक सन्देश है कि मैं कभी भी आ सकता हूँ। महाराजा दशरथ ने एक बार दर्पण में अपना मुख देखा तो कानों के पास सफ़ेद बाल दिखाई दिए। उन्होंने तुरंत ही राम के राज्याभिषेक की तैयारी आरम्भ कर दी।
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कहते हैं कि यमराज जब किसी के प्राण हरने आते हैं तो उनके भैंसे के गले में बंधी घंटी की ध्वनि मरने वाले को सुनाई देने लगती है। उसकी ध्वनि इतनी कर्णकटु होती है कि वह घबरा जाता है और विगत का पूरा जीवन उसको सिनेमा की तरह दिखाई देने लगता है। उसी चेतना में यमराज उसके गले में फंदा डालकर उस को देहचेतना से मुक्त कर देते हैं। फिर उसे बहुत अधिक कष्ट झेलने पड़ते हैं।
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यमराज के भैंसे के गले में बंधी घंटी की ध्वनी सुने इससे पहिले ही ओंकार की ध्वनी को या राम नाम की ध्वनी को निरंतर सुनने का अभ्यास आरम्भ कर देना चाहिए। आप किसी बड़े मंदिर में जाते हैं तो वहाँ एक बड़ा घंटा लटका रहता है जिसे जोर से बजाने पर उसकी ध्वनी का स्पंदन बहुत देर तक सुनाई देता है| कल्पना करो कि ऐसे ही किसी घंटे से ओंकार की या रामनाम की ध्वनि निरंतर आ रही है। उस ध्वनी को सुनने और उस पर ध्यान करने का नित्य नियमित अभ्यास करो। यह ध्वनि ही हमें मुक्ति दिला सकती है। अन्यथा एक बार यमराज के भैंसे के गले की घंटी सुन गयी तो फिर अंत समय में अन्य कुछ भी सुनाई नहीं देगा।
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जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ, अभी से उन मृत्युंजयी भगवान शिव का ध्यान स्वयं शिवमय होकर करना आरम्भ कर दो। यमराज फिर हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। "चन्द्रशेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः?" कितनी शीतलता और दिव्यता है भगवान शिव में!! वे भगवान चन्द्रशेखर शिव सदा हमारे में व्यक्त हों। ॐ नमः शिवाय॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
६ दिसंबर २०२१

हो जाये अगर शाह-ए-खुरासां का इशारा, सिजदा न करूँ हिन्द की नापाक जमीं पर

२९ दिसंबर १९३० को इलाहबाद में जब "अल्लामा इकबाल" की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग का २५ वां सम्मलेन हुआ तब इकबाल ने यह गाया था ---
"हो जाये अगर शाह-ए-खुरासां का इशारा, सिजदा न करूँ हिन्द की नापाक जमीं पर "
यानि ..... "अगर तुर्की का खलीफा इशारा भी कर दे तो मैं भारत की नापाक जमीन पर नमाज भी नहीं पढूंगा|"
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चूँकि नापाक का अर्थ अपवित्र होता है, और उसका विलोम शब्द "पाक" यानि पवित्र होता है| यही शब्द पाकिस्तान की नींव यानि बुनियाद बनी| पाकिस्तान एक विचार था जो अल्लामा इकबाल के दिमाग की उपज थी| जिन्ना तो एक उपकरण मात्र था| वह तो ब्रिटेन में जाकर बस गया था और बापस भारत आने की उसकी इच्छा भी नहीं थी| मुस्लिम लीग वाले बड़ी मुश्किल से बड़ी मान-मनुहार करके उसे बापस भारत लाये थे| पाकिस्तान की माँग करने के बाद भी वह अपनी माँग छोड़ने को तैयार था बशर्ते उसे स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधान मंत्री बनाया जाए| नेहरु इसके लिए तैयार नहीं था अतः भारत के विभाजन की त्रासदी हमें झेलनी पडी|
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”सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा” का लेखक मोहम्मद इकबाल (अल्लामा इकबाल) वास्तव में पाकिस्तान का जनक था| वह सियालकोट का रहने वाला और जन्म से एक कश्मीरी ब्राह्मण था जो बाद में मुसलमान बन गया| इसी इकबाल ने अपने इसी गीत में एक जगह लिखा है ….. ”मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना”|
परन्तु इसी इकबाल ने अपनी एक किताब ”कुल्लियाते इक़बाल” में अपने बारे में लिखा है .... ”मिरा बिनिगर कि दरहिन्दोस्तां दीगर नमी बीनी, बिरहमनजादए रम्ज आशनाए रूम औ तबरेज अस्त”| अर्थात ..... मुझे देखो, मेरे जैसा हिंदुस्तान में दूसरा कोई नहीं होगा, क्योंकि मैं एक ब्राह्मण की औलाद हूँ लेकिन मौलाना रूम और मौलाना तबरेज से प्रभावित होकर मुसलमान बन गया|
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कालांतर में यही इकबाल मुस्लिम लीग का अध्यक्ष बना| आश्चर्य की बात यह है कि जिस इकबाल ने “सारे जहाँ से अच्छा हिदोस्तान हमारा” और ”मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” जैसी पंक्तियाँ लिखीं थीं उसी इकबाल ने मुस्लिम लीग के खिलाफत मूवमेंट के समय 1930 के इलाहाबाद मुस्लिम लीग के सम्मलेन में कहा …..
“हो जाये अगर शाहे खुरासां का इशारा ,सिजदा न करूं हिन्द की नापाक जमीं पर“ .... यानि यदि तुर्की का खलीफा (जिसको अँगरेजों ने 1920 में गद्दी से उतार दिया था) इशारा भी कर दे तो मैं इस “नापाक हिंदुस्तान” की जमीन पर नमाज भी नहीं पढूंगा|
उसके इस गीत की एक पंक्ति जो हमें पढ़ाई जाती है, वह है ..... "हिंदी है हम वतन के हिन्दोस्ताँ हमारा"| यह किसी अन्य द्वारा बदला हुआ रूप है| वास्तव में यह इस प्रकार है .... "मुस्लिम हैं हम वतन के हिन्दोस्ताँ हमारा"|
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जब कांग्रेस शासन में अर्जुन सिंह मानव संसाधन मंत्री थे तब मोहम्मद इकबाल की जन्म शताब्दी मनाने के लिए भारत सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किये थे| अभी कुछ दिनों पूर्व एक संस्था ने माँग की है कि मोहम्मद इकबाल को भारत रत्न का सम्मान दिया जाए और उसके नाम पर एक उर्दू विश्वविद्यालय खोला जाए|
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यह संसार बड़ा विचित्र है| यहाँ कुछ भी हो सकता है| आश्चर्य की बात यह कि जिस इकबाल का जन्म एक हिन्दू ब्राह्मण के घर हुआ था, जो खूब पढ़ा लिखा होकर लाहौर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर भी था, वही इकबाल एक परम हिन्दू द्रोही और पाकिस्तान का जनक बना|
५ दिसंबर २०१५