Tuesday 29 August 2017

राम काज क्या है ? क्या सीता जी की खोज ही राम काज है ?

राम काज क्या है ? क्या सीता जी की खोज ही राम काज है ? >>>>>
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यह विषय इतना व्यापक है कि अनेक स्वनामधन्य आचार्यों ने इस विषय पर बहुत अधिक लिखा और कहा है| रामायण में सबसे बड़ा आदर्श हनुमान जी का है जिन्हें राम काज करते करते कभी भी विश्राम नहीं मिला .... "राम काज कीन्हें बीना मोहि कहाँ विसराम"| इसका भी कोई बहुत बड़ा आध्यात्मिक अर्थ है| रामायण के बड़े बड़े मर्मज्ञ इस विषय पर जब बोलना आरम्भ करते हैं तो कई घंटों तक बोलने के बाद भी कहते हैं कि हम असली बात तो समझा ही नहीं पाए|
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आचार्य शंकर ने सीता जी को शांति रूप में नमन किया है ......
"शान्ति सीता समाहिता आत्मारामो विराजते" |
इस का अर्थ मुझे तो यही समझ में आया है कि शांति रूपी सीता जी उसी में समाहित है जो आत्मा में रमण करता हुआ विराजित है| अर्थात आत्मा यानि आत्म-तत्व में निरंतर रमण ही सीता जी की खोज है|
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पंडित रामकिंकर उपाध्याय के अनुसार ........ “वेदान्तियों की दृष्टि में सीता शांति हैं, भक्तों की दृष्टि में वे भक्ति हैं, कर्मयोगी की दृष्टि में वे शक्ति हैं और तुलसीदास जैसे अपने आप को दीन मानने वालों की दृष्टि में वे माँ हैं|"
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भगवान श्रीराम तो सर्व समर्थ थे, उन्हें किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं थी| फिर भी उन्होंने दूसरों की सहायता ली, इसके पीछे भी अवश्य ही कोई न कोई आध्यात्मिक रहस्य है, जिसका पता हमें करना है| भगवान ने यह कार्य हमें सौंपा है, जो हमें करना ही पड़ेगा| यह काम यानि सीता जी की ही खोज हम सब का दायित्व है और जब तक हम सीता जी को खोज नहीं लेते तब तक जीवन में कहीं भी कभी भी विश्राम नहीं मिलेगा|
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इस विषय पर मैंने लिखना तो आरम्भ कर दिया पर इसका समापन कैसे करूँ यह समझ में नहीं आ रहा है| जो मैं कहना चाहता था वह तो कह ही नहीं सका, और कभी कह भी नहीं सकूँगा| पर इतना तो निश्चित है कि सीता जी खोज हमारी अपनी ही शाश्वत खोज है और यही रामकाज है| निज जीवन में सीता जी को प्रतिष्ठित कर के ही हम राम के कोप से भी अपनी रक्षा कर सकते हैं| राम का कोप अहंकार रुपी रावण यानि अधर्माचरण करने वाले पर ही होता है| धर्माचरण ही सीता जी को निज ह्रदय में प्रतिष्ठित करना है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
२९ अगस्त २०१७

Monday 28 August 2017

आध्यात्मिक चुम्बकत्व .....

आध्यात्मिक चुम्बकत्व ......
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जैसे भौतिक चुम्बकत्व होता है, वैसे ही एक आध्यात्मिक चुम्बकत्व भी होता है | जिस में आध्यात्मिक चुम्बकत्व विकसित हो जाता है वह व्यक्ति मौन हो जाता है | उसे कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती | उसका चुम्बकत्व ही सब कुछ कह देता है |

ऐसे व्यक्ति ही मुनि होते हैं | वे जहाँ भी जाते हैं, जहाँ भी रहते हैं, उनकी उपस्थिति मात्र ही एक दिव्यता और आनंद का प्रकाश फैला देती है | उनकी उपस्थिति मात्र से से ही हम सब धन्य हो जाते हैं | ऐसे अनेक महात्माओं का सत्संग लाभ मुझे सौभाग्य से प्राप्त हुआ है |

ऐसे महात्माओं का सत्संग हमें सदा प्राप्त होता रहे | हम स्वयं भी उस महत्ता को प्राप्त हों |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
२८ अगस्त २०१७

सुख पदार्थों में नहीं है .....

सुख पदार्थों में नहीं है .....
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हम चाहे जितने पदार्थों का संग्रह कर लें, कितना भी परिग्रह कर लें, पर अन्ततः आवश्यकता से अधिक सारे पदार्थ दुःखदायी हो जाते हैं | ऐसे ही सारे बाह्य विषय भी दुःखदायी हैं | यह प्रकृति का नियम है | सुख पदार्थों में नहीं है | प्रत्येक पदार्थ अंत में दुःख ही देता है |

बाह्य विषयों से ध्यान प्रयासपूर्वक हटाकर परमात्मा में लगा देना ही आनंददायी हैं | बाहर के सभी पदार्थ नश्वर हैं | सिर्फ परमात्मा से प्राप्त आनंद ही शाश्वत है |

प्रयास तो कर के देखें | चित्त को एकाग्र कर के परमात्मा में एक बार लगा कर के तो देखें | इस संसार में इतने सारे निरर्थक कार्य करते हैं, उनके स्थान पर एक बार परमात्मा का चिंतन भी कर के देखें | अपना अनुभव स्वयं लें |


 ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||



कृपा शंकर
२८ अगस्त २०१७

महान आत्माओं को जन्म देना पड़ता है >>

महान आत्माओं को जन्म देना पड़ता है >>>>>>>>>
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जब स्त्री के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु का संयोग होता है उस समय सूक्ष्म जगत में एक विस्फोट सा होता है| उस समय जननी यानी माता के जैसे विचार होते हैं वैसी ही आत्मा आकर गर्भस्थ हो जाती है | पिता के विचारों का भी प्रभाव पड़ता है पर बहुत कम | बच्चा गर्भ में आये उस से पूर्व ही तैयारी करनी पड़ती है | प्राचीन भारत ने इतनी सारी महान आत्माओं को जन्म दिया क्योंकि प्राचीन भारत में एक गर्भाधान संस्कार भी होता था | संतानोत्पत्ति से पूर्व पति-पत्नी दोनों लगभग छः माह तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते थे, उस काल में परमात्मा की उपासना करते और चित्त में उच्चतम भाव रखते थे | अनेक महान आत्माएँ लालायित रहती थीं ऐसी दम्पत्तियों के यहाँ जन्म लेने के लिए |
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फिर अन्य भी संस्कार होते थे | बच्चे की शिक्षा उसी समय से आरम्भ हो जाती थी जब वह गर्भ में होता था | बालक जब गर्भ में होता है तब माता-पिता दोनों के विचारों का और माता के भोजन का प्रभाव गर्भस्थ बालक पर पड़ता है |
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प्रत्येक हिन्दु के सोलह संस्कार होते थे | कई महीनों के ब्रह्मचर्य और उपासना के पश्चात् वासना रहित संभोग के समय गर्भाधान संस्कार, फिर गर्भस्थ शिशु के छठे महीने का पुंसवन संस्कार, आठवें महीने सीमंतोंन्न्यन संस्कार, भौतिक जन्म के समय जातकर्म संस्कार, जन्म के ग्यारहवें दिन नामकरण संस्कार, जन्म के छठे महीने अन्नप्राशन संस्कार, और एक वर्ष का बालक होने पर चूड़ाकर्म संस्कार ....... इस तरह सात आरंभिक संस्कार होते थे | फिर अवशिष्ट जीवन में नौ संस्कार और भी होते थे | माता मन में सदा अच्छे भाव रखती थी और अच्छा भोजन करती थी | इस तरह से उत्पन्न धर्मज संतति महान होते थे |
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बुरा मत मानना, यह सत्य कहते हुए मुझे संकोच भी होता है कि आज की अधिकाँश मनुष्यता .... कचरा मनुष्यता है | यह कचरा मनुष्यता कामज संतानों के कारण है | धर्मज संतानों के लिए माता-पिता दोनों में अति उच्च संस्कार होने आवश्यक हैं |
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ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
२७ अगस्त २०१७

Friday 25 August 2017

भगवान श्रीकृष्ण मेरे प्राण हैं ......

भगवान श्रीकृष्ण मेरे प्राण हैं ......
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भगवान श्रीकृष्ण परम तत्व हैं| उनकी प्रशंसा या महिमा का बखान करने की मुझमें कोई योग्यता नहीं है| मैं तो उन्हें सदा अपने प्राणों में पाता हूँ| वे ही मेरे प्राण हैं, इससे अधिक कुछ कहने की मुझमें सामर्थ्य नहीं है|
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आचार्य मधुसुदन सरस्वती ने उनकी स्तुति इन शब्दों में की है .....
"वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् | पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् ||
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् | कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ||"
जिनके करकमल वंशी से विभूषित हैं, जिनकी नवीन मेघकी-सी आभा है, जिनके पीत वस्त्र हैं, अरुण बिम्बफल के समान अधरोष्ठ हैं, पूर्ण चन्द्र के सदृश्य सुन्दर मुख और कमल के से नयन हैं, ऐसे भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी भी तत्व को मैं नहीं जानता ||
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भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में जितना साहित्य लिखा गया है उतना भगवान के अन्य किसी भी रूप पर नहीं लिखा गया है | वे हमारे हृदय में, हमारी चेतना में निरंतर रहें, इससे अधिक कुछ भी लिखना अभी तो असंभव है |  वे तो मेरे प्राण हैं |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ

भवसागर को गोते लगाए बिना पार करें :----

भवसागर को गोते लगाए बिना पार करें :----
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श्रुति भगवती कहती हैं .....
"प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते | अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत् ||
–मुण्डकोपनिषद्,२/२/४.
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प्रणव रूपी धनुष पर आत्मा रूपी बाण चढ़ाकर ब्रह्म रूपी लक्ष्य को बेधना है | बाण सीधा अपने लक्ष्य को बेधता है, इधर उधर कहीं भी नहीं जाता | वैसे ही अपने लक्ष्य परमात्मा की ओर ही पूर्ण तन्मयता से अग्रसर होना है, इधर-उधर कहीं भी नहीं देखना है |
See nothing, look at nothing but your goal ever shining before you.
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कठोपनिषद में भी लिखा है कि आत्मा को अधर अरणि और ओंकार को उत्तर अरणि बनाकर मंथन रूप अभ्यास करने से दिव्य ज्ञानरूप ज्योति का आविर्भाव होता है, जिसके आलोक से निगूढ़ आत्मतत्व का साक्षात्कार होता है|
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श्रीमद्भगवद्गीता में भी ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


२३ अगस्त २०१७

महाजनो येन गतः सः पन्थाः ......

महाजनो येन गतः सः पन्थाः  ......
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श्रुतिर्विभिन्ना स्मृतयो विभिन्नाः नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् |
धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः सः पन्थाः || -- महाभारत
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अर्थ - वेद और धर्मशास्त्र अनेक प्रकारके हैं । कोई एक ऐसा मुनि नहीं है जिनका वचन प्रमाण माना जाय । अर्थात श्रुतियों, स्मृतियों और मुनियोंके मत भिन्न-भिन्न हैं । धर्मका तत्त्व अत्यंत गूढ है - वह साधारण मनुष्योंकी समझसे परे है । ऐसी दशामें, महापुरूषोंने अथवा अधिकतर श्रेष्ठ लोगोंने जिस मार्गका अनुकरण किया हो, वहीं धर्मका मार्ग है, उसीको आचरणमें लाना चाहिए ।
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मैं तो मेरे गुरुपथ का अनुगामी हूँ | संसार रूपी महाभय से रक्षा करने वाले, ब्रह्मज्ञान द्वारा मोक्षप्रदाता सदगुरु महाराज आप की जय हो | आप ने हृदय में जिज्ञासा उत्पना की और मुमुक्षु बना दिया | आप ही परमशिव हैं | आप की कोई भी सेवा करने में मैं अक्षम हूँ अतः आपको प्रणाम ही कर पा रहा हूँ | आपके श्रीचरणों में बारम्बार प्रणाम है | मेरे सारे गुण-अवगुण आपको समर्पित हैं | और मेरे पास है ही क्या ? मेरी कोई सामर्थ्य नहीं है | जो कुछ भी है वह आप की परम कृपा ही है |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
२२ अगस्त २०१७

भारत की शिक्षा व्यवस्था विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था थी .....

भारत की शिक्षा व्यवस्था विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था थी .....
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अंग्रेजी राज्य एक आसुरी राक्षस राज था| कुटिल दुष्ट अंग्रेजों ने भारत की प्राचीन शिक्षा और कृषि व्यवस्था को नष्ट कर दिया| देश के हर गाँव में गुरुकुल थे जहाँ निःशुल्क शिक्षा सभी को उपलब्ध थी|

अंग्रेजों ने सन १८५८ ई.में एक क़ानून बनाकर सारे गुरुकुलों पर प्रतिबन्ध लगा दिया, ब्राह्मण आचार्यों की हत्याएँ करवा दीं, बचे खुचों का सब कुछ छीन कर उन्हें दरिद्र बनाकर भगा दिया| वे इस योग्य भी नहीं रहे कि अपनी संतानों को शिक्षित कर सकें| गुरुकुलों को जलाकर नष्ट कर दिया गया| ब्राह्मणों से उनके ग्रन्थ छीन लिए गए| ग्रंथों को प्रक्षिप्त यानि उनमें मिलावट कर दी गयी| आर्य आक्रमण का कपोल कल्पित झूठा इतिहास रचा गया| ब्राह्मणों के विरुद्ध झूठा इतिहास लिखा गया|

स्वतंत्रता के पश्चात भी अंग्रेजों के मानस पुत्रों का ही राज्य रहा| वर्त्तमान शिक्षा व्यवस्था के कारण ही हमारी अस्मिता, राष्ट्रीय चरित्र और नैतिकता समाप्तप्राय है|

ॐ  तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
२२ अगस्त २०१७

दृढ़ निश्चयपूर्वक परमात्मा को समर्पण ......

दृढ़ निश्चयपूर्वक परमात्मा को समर्पण ......
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नदी का विलय जब महासागर में हो जाता है तब नदी का कोई नाम-रूप नहीं रहता, सिर्फ महासागर ही महासागर रहता है | वैसे ही जीवात्मा जब परमात्मा में समर्पित हो जाती है, तब जीवात्मा का कोई पृथक अस्तित्व नहीं रहता, सिर्फ परमात्मा ही परमात्मा रहते हैं |
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मनुष्य देह सर्वश्रेष्ठ साधन है परमात्मा को पाने का | मृत्यु देवता हमें इस देह से पृथक करें उस से पूर्व ही निश्चयपूर्वक पूरा यत्न कर के हमें परमात्मा को समर्पित हो जाना चाहिए | समय और सामर्थ्य व्यर्थ नष्ट न करें |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


२१ अगस्त २०१७

दो दृष्टिकोण :---

दो दृष्टिकोण :---
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(१) पता नहीं पिछले जन्मों में क्या बुरे कर्म किये थे जो इस असत्य, अन्धकार और अन्याय से भरे संसार में रहने को बाध्य हैं |

(२) पिछले जन्मों में निश्चित रूप से कोई अच्छे कर्म किये थे जो भगवान ने इस संसार में सदा रक्षा की है और अपने हृदय का प्रेम दिया है |
कौन सा दृष्टिकोण अच्छा है ? इसका निर्णय आप करें |
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सारे प्रश्नों के उत्तर, सारी शाश्वत जिज्ञासाओं का समाधान, पूर्ण संतुष्टि, पूर्ण आनंद और सभी समस्याओं का निवारण ...... सिर्फ और सिर्फ परमात्मा में हैं |
अपनी चेतना को सदा भ्रूमध्य में रखो और निरंतर परमात्मा का स्मरण करो | अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम उन्हें दीजिये | पूरा मार्गदर्शन स्वयं परमात्मा करेंगे |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

२१ अगस्त २०१७

भक्ति और आस्था का संगम ........

भक्ति और आस्था का संगम ........
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(१) ढाई हज़ार फीट की ऊँचाई पर स्थित बाबा मालकेत की २४ कौसीय परिक्रमा पूरे राजस्थान में होने वाली सबसे बड़ी परिक्रमा है जो राजस्थान के झुंझुनूं जिले की अरावली पर्वत माला के लोहार्गल तीर्थ से संत महात्माओं के नेतृत्व में ठाकुर जी की पालकी के साथ गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्ण नवमी) के दिन आरम्भ होकर भाद्रपद अमावस्या के दिन लोहार्गल तीर्थ में ही बापस आकर समाप्त हो जाती है| इस सात दिवसीय चौबीस कौसीय परिक्रमा में हर वर्ष सात से नौ लाख श्रद्धालु पूरे भारत से आकर भाग लेते हैं| इस वर्ष लगभग आठ लाख श्रद्धालुओं ने इस पदयात्रा परिक्रमा में भाग लिया| अमावस्या के दिन लोहार्गल में हज़ारों श्रद्धालु और एकत्र हो जाते हैं| सभी श्रद्धालु अमावस्या के दिन लोहार्गल तीर्थ के सूर्य कुंड में स्नान कर अपने अपने घरों को बापस चले जाते हैं| कहते हैं महाभारत युद्ध के पश्चात् इसी दिन पांडवों ने जब यहाँ सूर्यकुंड में स्नान किया तो भीम की लोहे की गदा गल गयी थी जिससे इस तीर्थ का नाम लोहार्गल पड़ा| अरावली पर्वत माला की घाटियों में यह यात्रा अति मनोरम होती है| अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ पदयात्रियों की हर सुविधा का ध्यान रखती हैं| आज सोमवती अमावस्या के दिन इस पर्व का विशेष महत्व था|
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(२) आज भाद्रपद अमावस्या के दिन ही सभी सती मंदिरों में मुख्य आराधना होती है| झुंझुनू के विश्व प्रसिद्ध श्रीराणीसती दादीजी के मंदिर में भी मुख्य आराधना इसी दिन होती है| ये सभी सतियाँ वीरांगणाएँ थीं जिन्होंने धर्मारक्षार्थ युद्धभूमि में युद्ध किया और स्वयं प्रकट हुए अपने तेज से सती हुईं|
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(३) आज भाद्रपद अमावस्या के दिन ही मध्याह्न काल में ६९ वर्ष पूर्व इस "शरीर महाराज" का जन्म झुंझुनूं में हुआ था| इस "शरीर महाराज" ने इस कथन को चरितार्थ किया ..... "आया था किस काम को, तु सोया चादर तान"| जाग बहुत देर से हुई; हुई तो भी बहुत सारे दुःस्वप्नों के साथ| फिर क्या हुआ ? .... "बाना पहिना सिंह का, चला भेड़ की चाल", ..... ऐसे ही जीवन व्यर्थ चला गया ..... "आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास"| अब वह दुःस्वप्न बीत गया है, देरी से ही सही यह ग़ाफिल जाग चुका है| आगे प्रकाश ही प्रकाश है| कहीं कोई निराशा नहीं है| जिनका कभी जन्म ही नहीं हुआ उनका आश्रय मिला है| वहाँ कोई मृत्यु नहीं , कोई भय नहीं है|
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आप सब को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!


२१ अगस्त २०१७

शैतान है और हर समय हमारे पीछे पड़ा रहता है ....

शैतान है और हर समय हमारे पीछे पड़ा रहता है .....
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शैतान की परिकल्पना झूठी नहीं है | शैतान एक सत्य है जो हर समय हमारे पीछे पीछे रहता है | उससे बचना हमारा दायित्व है | शैतान एक सर्वव्यापी सचेतन आसुरी शक्ति है जो हमें सत्य से दूर रखती है |

शैतान हमें अधोमुखी और निरंतर पतन की और धकेलने वाली शक्ति है जो सर्वप्रथम काम वासना के रूप में, फिर लोभ के रूप में, फिर राग-द्वेष और अहंकार के रूप में स्वयं को व्यक्त करती है |
अब हम उसे समझें या न समझें यह हमारी स्वयं की समस्या है |

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ ||

हर हिन्दू परिवार प्रमुख का दायित्व .....

हर हिन्दू परिवार प्रमुख का दायित्व
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हरेक हिन्दू सनातन धर्मावलम्बी परिवार प्रमुख का यह दायित्व है कि वह अपने परिवार में एक भयमुक्त प्रेममय वातावरण का निर्माण करे | अपने बालक बालिकाओं में इतना साहस विकसित करें कि वे अपनी कोई भी समस्या या कोई भी उलझन बिना किसी भय और झिझक के अपने माता/पिता व अन्य सम्बन्धियों को बता सकें | बच्चों की समस्याओं को ध्यान से सुनें, उन्हें डांटें नहीं, उनके प्रश्नों का उसी समय तुरंत उत्तर दें | इससे generation gap की समस्या नहीं होगी | बच्चे भी माँ-बाप व बड़े-बूढों का सम्मान करेंगे | हम अपने बालकों की उपेक्षा करते हैं, उन्हें डराते-धमकाते हैं, इसीलिए बच्चे भी बड़े होकर माँ-बाप का सम्मान नहीं करते |
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परिवार के सभी सदस्य दिन में कम से कम एक बार साथ साथ बैठकर पूजा-पाठ/ ध्यान आदि करें, और कम से कम दिन में एक बार साथ साथ बैठकर प्रेम से भोजन करें | इस से परिवार में एकता बनी रहेगी |
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बच्चों में परमात्मा के प्रति प्रेम विकसित करें, उन्हें प्रचूर मात्रा में सद बाल साहित्य उपलब्ध करवाएँ और उनकी संगती पर निगाह रखें | माँ-बाप स्वयं अपना सर्वश्रेष्ठ सदाचारी आचरण का आदर्श अपने बच्चों के समक्ष रखें |
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इस से पीढ़ियों में अंतर (generation gap) की समस्या नहीं रहेगी और बच्चे बड़े होकर हमारे से दूर नहीं भागेंगे | लड़कियाँ भी घर-परिवार से भागकर लव ज़िहाद का शिकार नहीं होंगी |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

२० अगस्त २०१७

अपने समय के एक-एक क्षणका सदुपयोग करें ....

अपने समय के एक-एक क्षणका सदुपयोग करें  ....
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जिस भौतिक विश्व में हम रहते हैं, उससे भी बहुत अधिक बड़ा एक सूक्ष्म जगत हमारे चारों ओर है, जिसमें नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की सत्ताएँ हैं| जितना हम अपनी दिव्यता की ओर बढ़ते हैं, ये नकारात्मक शक्तियां उतनी ही प्रबलता से हम पर अधिकार करने का प्रयास करती हैं| सबसे पहिले वे हमारा मनोबल क्षीण करती हैं| इनका उपकरण बनने से बचने के लिए निरंतर प्रयास करना पड़ता है| इसके लिए निरंतर हरि स्मरण, सत्संग, स्वाध्याय और कुसंग-त्याग व सात्विक भोजन ये ही उपाय हैं| अपने विचारों और भावों पर सदा ध्यान रखें और अच्छे संकल्प करें|
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अपने समय के एक-एक क्षणका सदुपयोग करें और ईश्वर प्रदत्त विवेक के प्रकाश में सारे कार्य करें| हमें अपने समय के एक एक क्षण का सदुपयोग करना होगा अन्यथा हम स्वयं को क्षमा नहीं कर पाएंगे | आग लगने पर कुआँ नहीं खोदा जा सकता, कुएँ को तो पहिले से ही खोद कर रखना पड़ता है|
भगवान सबकी रक्षा करें| हमारा समर्पण पूर्ण हो|
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ॐ गुरु ! जय गुरु !ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


२० अगस्त २०१७

बालक/बालिकाओं के माता-पिताओं से एक प्रार्थना .....

बालक/बालिकाओं के माता-पिताओं से एक प्रार्थना .....
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आजकल धर्मनिरपेक्ष सेकुलर शिक्षा पद्धति, और घरों में सात्विक वातावरण के अभाव के कारण लव जिहाद की बहुत सारी घटनाएँ घट रही हैं| माता-पिताओं को चाहिए कि वे सदाचार का पालन करें और अपने बच्चों के समक्ष अपना स्वयं का उच्चतम आदर्श प्रस्तुत करें|
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परिवार में एक भयमुक्त प्रेममय वातावरण हो| बालक/बालिकाओं में इतना साहस विकसित करें कि वे अपनी कोई भी समस्या/उलझन बिना किसी झिझक और भय के अपने माता/पिता व अन्य सम्बन्धियों को बता सकें|
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परिवार के सभी सदस्य दिन में एक बार साथ साथ बैठकर पूजा-पाठ/ ध्यान आदि करें, और कम से कम दिन में एक बार साथ साथ बैठकर भोजन करें|
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बालकों को संघ की शाखाओं में भेजो| बालिकाओं को "राष्ट्र सेवा समिति" और "दुर्गा वाहिनी" से जुड़ने की प्रेरणा दें| उनके विकास और उनकी संगती पर निगाह रखें|
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आपके बच्चे कभी नहीं बिगड़ेंगे और बालिकाएँ कभी भी लव जिहाद का शिकार नहीं होंगी|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

१९ अगस्त २०१७

अपने लक्ष्य परमात्मा को सदा सामने रखो.....

अपने लक्ष्य परमात्मा को सदा सामने रखो
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जब भी भगवान की याद आये वह क्षण सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है|
जिस समय दोनों नासिकाओं से साँस चल रही हो वह ध्यान करने का सर्वश्रेष्ठ समय है|

कोई कुछ भी कहे, कितना भी बुरा-भला कहे, चाहे कितने भी अच्छे-बुरे सुझाव दे, उस पर ध्यान मत दो | ध्यान दो सिर्फ अपने हृदयस्थ परमात्मा से मिल रही प्रेरणा पर | संसार क्या सोचता है, क्या कहता है, इसका कोई महत्त्व नहीं है | महत्त्व सिर्फ एक ही बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं |

अपने लक्ष्य परमात्मा को सदा सामने रखो और इधर-उधर किधर भी ध्यान मत दो |


ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||



१८ अगस्त २०१७

जिज्ञासु होकर रुकना नहीं चाहिए ......

जिज्ञासु होकर रुकना नहीं चाहिए ......
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जिज्ञासु होकर रुकना नहीं चाहिए , प्रयत्न पूर्वक साधना करते रहना चाहिए | मन लगे या न लगे अपना साधन नहीं छोड़ना चाहिए | अगर दिन में तीन घंटे नाम जप या ध्यान करना है तो करना ही है | उसे छोड़ने का कोई बहाना नहीं होना चाहिए | मन नहीं लगे तो भी बैठे रहो, पर साधन छूटना नहीं चाहिए | मार्ग में बाधाएँ तो बहुत आती हैं, असुर ही नहीं, देवता भी नहीं चाहते कि किसी साधक की साधना सफल हो, वे भी मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न करते रहते हैं | इस मार्ग में सिर्फ सद् गुरु की कृपा ही काम आती है | गुरु चूंकि परमात्मा के साथ एक हैं, और उनसे बड़ा हितकारी अन्य कोई नहीं है, अतः उन्हीं की कृपा साधक की रक्षा करती है |
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पुण्य से उत्तम गति प्राप्त होती है पर जन्म-मरण से छुटकारा नहीं मिलता | जन्म-मरण का कारण कामनाएँ हैं जिनसे मुक्ति गहन ध्यान साधना से ही मिलती है | मेरी दृष्टी में अन्य कोई उपाय नहीं है | गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है .....

तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिः |
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ||
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सूक्ष्म प्राणायाम द्वारा पाप नष्ट होते हैं | इनकी विधि सिद्ध गुरु ही शिष्य को बता सकता है | ये सूक्ष्म प्राणायाम ही प्रत्याहार कहलाते हैं | सदगुरु की कृपा से कहीं कोई अन्धकार नहीं रहता | गुरु सेवा का अर्थ है गुरु प्रदत्त साधना का अनवरत नियमित अभ्यास | जिन परमात्मा का ध्यान करना है, उनका आभास भी गुरु कृपा से ही होता है |
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
१८ अगस्त २०१७

क्या परमात्मा उपयोगिता की एक वस्तु मात्र हैं .....

क्या परमात्मा उपयोगिता की एक वस्तु मात्र हैं .....

क्या परमात्मा उपयोगिता की एक वस्तु मात्र है जिसकी उपयोगिता सिर्फ इतनी सी ही है कि वह अपनी पूजा-पाठ स्तुति आदि करवा कर, करने वाले को रुपया-पैसा, धन-संपत्ति, सुख-शांति प्रदान कर उसकी मनोकामनाओं की पूर्ती कर सकता है ? .....
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वर्त्तमान सभ्यता में जितने अधिक सभ्य हम होते जा रहे हैं, उस सभ्यता में सबसे अधिक सभ्य और सबसे अधिक सफल होने का एकमात्र मापदंड है ..... कितना रुपया-पैसा हमने बनाया है, और कितनी धन-संपत्ति हमने जोड़ी है| अगर हमने धन -संपत्ति नहीं जोड़ी है तो हम जीवन में अपने समाज द्वारा एक विफल व्यक्ति ही माने जाएँगे| समाज में हमारा कोई सम्मान नहीं होगा|
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समाज में यही देखता हूँ कि लोग अपने बूढ़े माँ-बाप की सेवा नहीं करते, उन्हें अपमानित और उपेक्षित करते हैं क्योंकि बूढ़े माँ-बाप के पास जो धन था वह वे अपनी संतानों को दे चुके हैं और अब वे अशक्त, निरीह और असहाय हैं|

बहुएँ सास की सेवा नहीं करतीं, बुढापे में उनका इलाज़ तक नहीं करवातीं क्योंकि सास अब रुग्ण रहती हैं और हाथ पैर नहीं चलने से किसी काम की नहीं रही हैं| बच्चों के पास माँ-बाप के लिए समय नहीं रहता है| जो देश जितने अधिक उन्नत हैं उनमें यह सभ्यता कुछ अधिक ही है|
जिन सज्जनों के बच्चे विदेशों में रहते हैं, वे सज्जन बुढ़ापे में बहुत दुःखी होकर यह पछताते पछताते मरते हैं कि हमने अपने बच्चों को इतना सभ्य और सफल बनाने के लिए अपने से दूर विदेश क्यों भेजा?
जो सज्जन अपने बच्चों के साथ विदेशों में रहते हैं उन्हें बुढ़ापे में यह पछतावा होता है कि हम यहाँ विदेश में किस से बातचीत करें, किसी को हमारे से बात करने की फुर्सत ही नहीं है| बूढ़े बूढ़े लोग अवकाश के समय बगीचों में एक -दूसरे से मिल लेते हैं और अपना दुःख-सुख बाँट लेते हैं| कई तो मृत्यु की प्रतीक्षा में बापस भारत आ जाते हैं|
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वर्त्तमान सभ्यता में उपयोगी चीज वही है जो धन को आकर्षित कर सके, कमा सके या उत्पन्न कर सके| यह भाव सभी व्यवसायों, धर्म, राजनीति, चिकित्सा, शिक्षा आदि सभी स्थानों में आ चुका है| रुपया, रुपया रुपया और अधिक से अधिक रुपया, बस रुपये के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए, चाहे कितना भी अधर्म और बेईमानी करनी पड़े|
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व्यक्तिगत जीवन में फेसबुक को छोड़कर मैं कहीं भी परमात्मा की बात नहीं करता| कुछ सत्संगी इसके अपवाद हैं| अन्यत्र परमात्मा की बात करते ही लोग कहते हैं कि इससे कुछ फ़ायदा हो तो बात करो अन्यथा नहीं| तथाकथित धार्मिकों की दृष्टी दूसरों के धन पर ही रहती है| वर्त्तमान सभ्यता में भगवान की अहैतुकी अनन्य भक्ति समय की बर्बादी है| लोग सोचते हैं कि जब हाथ-पैर नहीं चलेंगे तभी बुढ़ापे में भक्ति करेंगे|
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समाज में वे लोग misfit हैं जो भक्ति, योग वा ज्ञान आदि की साधना करते हैं| समाज में उनका रहना एक मजबूरी है| भगवान भी अब इस सभ्यता में उपयोगिता की एक वास्तु मात्र होकर रह गए हैं|
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आप सब परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप हैं | आप सब को नमन !

ॐ तत्सत् |ॐ ॐ ॐ ||

१६ अगस्त २०१६

आत्मा की पूर्णता के द्वारा ही बाह्य परिवेश को पूर्ण बनाया जा सकता है .....

आत्मा की पूर्णता के द्वारा ही बाह्य परिवेश को पूर्ण बनाया जा सकता है .....
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हम बाहरी जीवन में पूर्णता खोज रहे हैं, इसके लिए विकास की बातें करते हैं| वह विकास भी आवश्यक है, पर बाहरी भौतिक जीवन में हम चाहे जितना विकास कर लें, जीवन में एक शून्यता ही रहेगी व संतुष्टि और तृप्ति तो कभी भी नहीं मिलेगी|
आत्मा की पूर्णता के द्वारा ही बाह्य परिवेश को पूर्ण बनाया जा सकता है| पूर्णता कहीं बाहर नहीं,भीतर ही है|
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पूर्णता की खोज में मनुष्य ने पूंजीवाद, साम्यवाद (मार्क्सवाद), और समाजवाद जैसे सिद्धांत बनाए, पर इनसे मानव जाति का कुछ भी हित नहीं हुआ, उल्टा भयानक विनाश ही विनाश हुआ है|

अपने अहं की तुष्टि केलिए मनुष्य बड़ी बड़ी कोठियाँ बनाता है, बड़ी बड़ी शानदार कारें और विलासिता का खूब सामान खरीदता है, बड़ी बड़ी क्लबों का सदस्य बनता है, पर अंततः कुंठित और असंतुष्ट होकर ही मरता है|
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जिनको हम अति विकसित देश कहते हैं, उनमें से अधिकाँश देशों में जाने का मुझे खूब अवसर मिला है| समाज के समृद्ध वर्ग के लोगों के साथ ही अधिकतः रहा हूँ| पर मैनें संतुष्टि और तृप्ति तो कहीं नहीं देखी| इसका कारण है कि समाज के अधिकाँश लोग अपने से बाहर ही पूर्णता ढूंढ रहे हैं, कोई आत्मा की पूर्णता के बारे में नहीं सोचता| आत्मा की पूर्णता में ही आनंद है|
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मैं यह सब अपनी स्वयं की प्रसन्नता और संतुष्टि के लिए ही लिख रहा हूँ| ऐसी बातों को कोई नहीं पढ़ेगा| कोई पढ़े या न पढ़ें, स्वयं के विचारों को व्यक्त करने में कोई बुराई नहीं है| इसीलिये यह सब लिखा जा रहा है|
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हर हर महादेव ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

१५ अगस्त २०१७

सर्वप्रथम हम सच्चे भारतीय बनें .....

सर्वप्रथम हम सच्चे भारतीय बनें .....

सच्चा भारतीय वही है जो परमात्मा के लिए अपना जीवन जी रहा है | भारत का अस्तित्व सदा सिर्फ परमात्मा के लिए ही रहा है |

पिछले दो सहस्त्र वर्षों में जन्में कलियुगी पंथों ने भारत का अधिकतम अहित किया है | जितना वे कर सकते थे उतना कर चुके हैं | उन्होंने भारत को दरिद्र बनाया, भारत का झूठा इतिहास लिखा, भारत के धर्मग्रंथों को प्रक्षिप्त किया, भारत के धर्मग्रन्थों की और धर्म की अधिकतम निंदा की और बदनाम किया, झूठा इतिहास पढ़ाया, भारत की शिक्षा व्यवस्था और कृषि व्यवस्था को नष्ट किया व अत्यधिक धर्मांतरण किया |

पर भारत अब भी जीवित है और अपना विस्तार करेगा | भारत के जीवित रहने का एकमात्र उद्देश्य है परमात्मा के प्रति परम प्रेम का विस्तार | भारत सदा परमात्मा के लिए जीया है और परमात्मा के लिए ही जीएगा | भारत की अस्मिता पर जितना प्रहार हुआ है उसका दस लाखवाँ हिस्सा भी किसी अन्य संस्कृति पर होता तो वह पूर्णरूपेण नष्ट हो जाती |

भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है | भारत एक ऐसे लोगों का समूह है जो जीवन में श्रेष्ठतम और उच्चतम है को पाने का प्रयास करते है, अपनी चेतना को विस्तृत कर समष्टि से जुड़ना चाहते हैं, और नर में नारायण को साकार करते हैं |

अतः सच्चे भारतीय बनें और निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करें |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

१५ अगस्त २०१७.

अखंड भारत दिवस : 14 अगस्त |

अखंड भारत दिवस : 14 अगस्त |
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श्रीअरविन्द के शब्दों में भारतवर्ष एक भूमि का टुकड़ा, मिटटी, पहाड़, और नदी नाले नहीं है| न ही इस देश के वासियों का सामूहिक नाम भारत है| भारतवर्ष एक जीवंत सत्ता है| भारतवर्ष हमारे लिए साक्षात माता है जो मानव रूप में भी प्रकट हो सकती है| 

भारतवर्ष का अखंड होना उसकी नियति है|
वर्तमान में भारतवर्ष के अनेक टुकड़े हो गए हैं जिनमें से सबसे बड़ा टुकड़ा India है, फिर बाकि अनेक|
पर भारत की आत्मा एक है अतः भारत का अखंड होना निश्चित है|
भारतवर्ष दो विपरीत ध्रुवों के समन्वय का देश है| भारतीय मानस आध्यात्मिक, नीतिपरक, बौद्धिक और कलात्मक है|

भारत का पतन इसलिए हुआ कि लोगों का जीवन अधार्मिक, अहंकारी, स्वार्थपरक और भौतिक हो गया| एक ओर अत्यधिक बाह्याचार, कर्मकांड, यंत्रवत भक्तिभावरहित पूजापाठ में हम लोग भटक गए, दूसरी ओर अत्यधिक पलायनवादी वैराग्य वृत्ति में उलझ गये, जिसने समाज की सर्वोत्तम प्रतिभाओं को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया| जो लोग आध्यात्मिक समाज के अवलम्ब और ज्योतिर्मय जीवनदाता बन सकते थे वे समाज के लिए मृत हो गए| फिर हमें कोई सही मार्गदर्शक नहीं मिले|

श्रीमद् भगवद्गीता हमारी राष्ट्रीय धरोहर है अतः इससे प्रेरणा लेकर हमें शक्ति की साधना और देशभक्ति की भावना बढानी चाहिए|

केवल भारत की आत्मा ही इस देश को एक कर सकती है| भारत की आत्मा को व्यक्त करने और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने के लिए --------- हमें राष्ट्रभाषा के रूप में संस्कृत को अपनाना होगा और वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बनाना होगा|

आओ हम सब दृढ़ निश्चय कर यह संकल्प करें कि भारत माँ अपने परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बैठ रही है और अपने भीतर और बाहर के शत्रुओं का विनाश कर रही है|

भारतवर्ष अखंड होगा, होगा, और होगा| धर्म की पुनर्स्थापना होगी और अन्धकार, असत्य व अज्ञान की शक्तियों का नाश होगा|

वन्दे मातरम| भारत माता की जय|
वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।

 अगस्त १४, २०१३

चीन ने तिब्बत पर बलात् अधिकार क्यों किया ? भारत-चीन के मध्य तनाव का असली कारण क्या है ?

कल मैंने एक पोस्ट में दो प्रश्न पूछे थे .....
चीन ने तिब्बत पर बलात् अधिकार क्यों किया ?
भारत-चीन के मध्य तनाव का असली कारण क्या है ?
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चीन ने तिब्बत पर अधिकार किया इसका असली कारण वहाँ की अथाह जल राशि, और भूगर्भीय संपदा है, जिसका अभी तक दोहन नहीं हुआ है| तिब्बत में कई ग्लेशियर हैं और कई विशाल झीलें हैं| भारत की तीन विशाल नदियाँ ..... ब्रह्मपुत्र, सतलज, और सिन्धु ..... तिब्बत से आती हैं| गंगा में आकर मिलने वाली कई छोटी नदियाँ भी तिब्बत से आती हैं| चीन इस विशाल जल संपदा पर अपना अधिकार रखना चाहता है इसलिए उसने तिब्बत पर अधिकार कर लिया| हो सकता है भविष्य में वह इस जल धारा का प्रवाह चीन की ओर मोड़ दे| इस से भारत में तो हाहाकार मच जाएगा पर चीन का एक बहुत बड़ा क्षेत्र हरा भरा हो जाएगा|
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चीन का सीमा विवाद उन्हीं पड़ोसियों से रहा है जहाँ सीमा पर कोई नदी है, अन्यथा नहीं| रूस से उसका सीमा विवाद उसूरी और आमूर नदियों के जल पर था| ये नदियाँ अपना मार्ग बदलती रहती हैं, कभी चीन में कभी रूस में| उन पर नियंत्रण को लेकर दोनों देशों की सेनाओं में एक बार झड़प भी हुई थी| अब तो दोनों में समझौता हो गया है और कोई विवाद नहीं है|
वियतनाम में चीन से युआन नदी आती है जिस पर हुए विवाद के कारण चीन और वियतनाम में सैनिक युद्ध भी हुआ था| उसके बाद समझौता हो गया|
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चीन को पता था कि भारत से एक न एक दिन उसका युद्ध अवश्य होगा अतः उसने भारत को घेरना शुरू कर दिया| बंगाल की खाड़ी में कोको द्वीप इसी लिए उसने म्यांमार से लीज पर लिया|
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भारत को तिब्बत पर अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहिए था| अंग्रेजों का वहाँ अप्रत्यक्ष अधिकार था| आजादी के बाद भारत ने भारत-तिब्बत सीमा पर कभी भौगोलिक सर्वे का काम भी नहीं किया जो बहुत पहिले कर लेना चाहिए था| सन १९६२ में बिना तैयारी के चीन से युद्ध भी नहीं करना चाहिए था| जब युद्ध ही किया तो वायु सेना का प्रयोग क्यों नहीं किया? चीन की तो कोई वायुसेना तिब्बत में थी ही नहीं| १९६२ के युद्ध के बारे बहुत सारी सच्ची बातें जनता से छिपाकर अति गोपनीय रखी गयी हैं ताकि लोग भड़क न जाएँ|
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भारत-चीन में सदा तनाव बना रहे इस लिए अमेरिका की CIA ने भारत में दलाई लामा को घुसा दिया| वर्त्तमान में तनाव तो दलाई लामा को लेकर ही है| दलाई लामा चीन की दुखती रग है|
दलाई लामा आदतन बछड़े का मांस खाते हैं| सारे तिब्बती गाय का और सूअर का मांस खाते हैं| सनातन हिन्दू धर्म से उनका कोई लेना देना नहीं है|
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चीन भारत से लड़ाई इसलिए नहीं कर रहा है क्योंकि भारत से व्यापार में उसे बहुत अधिक लाभ हो रहा है| वह भारत से व्यापार बंद नहीं करना चाहता| भारत भी अपनी आवश्यकता के बहुत सारे सामानों के लिए चीन पर निर्भर है|
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भारत-चीन के बीच असली लड़ाई तो पानी की लड़ाई है| पीने के पानी की दुनिया में दिन प्रतिदिन कमी होती जा रही है| भारत और चीन में युद्ध होगा तो वह पानी के लिए ही होगा|
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दक्षिणी चीन सागर में उसका अन्य देशों से विवाद भूगर्भीय तेल संपदा के कारण है जो वहाँ प्रचुर मात्रा में है| अन्य कोई कारण नहीं है|
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धन्यवाद ! ॐ ॐ ॐ ||


१४ अगस्त २०१४

अखंड भारत संकल्प दिवस :--

अखंड भारत संकल्प दिवस :--
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आज १४ अगस्त को अखंड भारत संकल्प दिवस है | हम भारत को अखंड बनाने का संकल्प लें | हमारा संकल्प दृढ़ होगा तो भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ पुनश्चः अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी, असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश होगा व धर्म की पुनर्स्थापना होगी | "भारतभूमि .... आसेतु हिमालय पर्यन्त एक 'सिद्ध कन्या' ही नहीं साक्षात माता है|" इसे कोई भूमि का टुकड़ा ही न समझें |
मूलाधार चक्र कन्याकुमारी' है, जहाँ का त्रिकोण शक्ति का स्त्रोत है|
इसी मूलाधार से इड़ा पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियाँ प्रस्फुटित होती हैं| कैलाश पर्वत सहस्त्रार है|
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भारत अखंड होगा तो सैनिक शक्ति के बल पर नहीं अपितु एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति के बल पर होगा | वह आध्यात्मिक शक्ति हमें स्वयं को अपनी साधना द्वारा जागृत करनी होगी | हमारे निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो | इस दिशा में चिंतन करें |
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!! ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !! मेरी देह भारतवर्ष है | मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है| ॐ ॐ ॐ ||
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"मैं भारतवर्ष, समस्त भारतवर्ष हूँ, भारत-भूमि मेरा अपना शरीर है। कन्याकुमारी मेरा पाँव है, हिमालय मेरा सिर है, मेरे बालों में श्रीगंगा जी बहती हैं, मेरे सिर से सिन्धु और ब्रह्मपुत्र निकलती हैं, विन्ध्याचल मेरा कमरबन्द है, कुरुमण्डल मेरी दाहिनी और मालाबार मेरी बाईं जंघाएँ है। मैं समस्त भारतवर्ष हूँ, इसकी पूर्व और पश्चिम दिशाएँ मेरी भुजाएँ हैं, और मनुष्य जाति को आलिंगन करने के लिए मैं उन भुजाओं को सीधा फैलाता हूँ। आहा ! मेरे शरीर का ऐसा ढाँचा है ! यह सीधा खड़ा है और अनन्त आकाश की ओर दृष्टि दौड़ा रहा है। परन्तु मेरी वास्तविक आत्मा सारे भारतवर्ष की आत्मा है। जब मैं चलता हूँ तो अनुभव करता हूँ कि सारा भारतवर्ष चल रहा है। जब मैं बोलता हूँ तो मैं भान करता हूँ कि यह भारतवर्ष बोल रहा है। जब मैं श्वास लेता हूँ, तो अनुभव करता हूँ कि भारतवर्ष श्वास ले रहा है। मैं भारतवर्ष हूँ, मैं शंकर हूँ, मैं शिव हूँ और मैं सत्य हूँ|" --- स्वामी रामतीर्थ ---
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भारतवर्ष स्वयं में है| इसे स्वयं में पहचानो|
ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !! मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है|
ॐ ॐ ॐ ||
शुभ कामनाएँ | जय जननी जय भारत | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


१४ अगस्त २०१७

स्वतंत्र भारत में सबसे पहिले तिरंगा कहाँ, कब और किस के द्वारा फहराया गया था ?

फेसबुक पर सभी भारतीय मित्रों से मेरा एक प्रश्न है :--
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..... स्वतंत्र भारत में सबसे पहिले तिरंगा कहाँ, कब और किस के द्वारा फहराया गया था ?
..... यदि आप का उत्तर नई दिल्ली, १५ अगस्त १९४७ और जवाहरलाल नेहरु है तो आप गलत हैं |
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भारत के इतिहास का एक गौरवशाली सत्य है जिसे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से व्यक्तिगत द्वेष और घृणा के कारण छिपा दिया गया था| नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना की सहायता से ३० दिसंबर १९४३ को भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को अंग्रेजों के अधिकार से मुक्त करा लिया था| उसी दिन यानि ३० दिसंबर १९४३ को ही पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान में नेताजी सुभाष बोस ने सर्वप्रथम तिरंगा फहराया था| नेताजी ने अंडमान व निकोबार का नाम बदल कर शहीद और स्वराज रख दिया था| स्वतंत्र भारत की घोषणा कर के स्वतंत्र भारत की सरकार भी नेता जी ने बना दी थी|
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उसके पश्चात वहाँ पूरे एक वर्ष से अधिक समय तक आजाद हिन्द फौज का शासन रहा| नेताजी की संदेहास्पद तथाकथित मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों ने आजाद हिन्द फौज से वहाँ का शासन बापस छीन लिया|
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पर भारत के एक महत्वपूर्ण बड़े भाग को अंग्रेजों से मुक्त कराने और सबसे पहिले तिरंगा फहराने का श्रेय नेताजी सुभाष बोस को ही जाता है| यह सभी भारतीयों के साथ एक अन्याय है कि दुर्भावनावश इस सत्य को इतिहास की पुस्तकों से छिपा दिया गया|
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यह हमारा दुर्भाग्य है कि जिन्होंने लाखो भारतीयों की ह्त्या की उन अँगरेज़ जनरलों नील और हेवलॉक के सम्मान में रखे गए द्वीपों के नाम Neil Island और Havelock Island अभी तक वैसे के वैसे ही हैं| और भी वहां ऐसे कई टापू हैं जिनके नाम अत्याचारी अँगरेज़ सेनानायकों के सम्मान में रखे गये थे| उनके नाम बदलने चाहिएँ|
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भारत का सबसे दक्षिणी भाग इंदिरा पॉइंट है जो ग्रेट निकोबार के दक्षिण में है| पहले इसका नाम पिग्मेलियन पॉइंट था| यहाँ का लाइट हाउस बड़ा महत्वपूर्ण है| मुझे वहाँ दो बार वहाँ घूमने जाने का अवसर मिला है| अंडमान निकोबार के कई द्वीपों में गया हूँ और खूब घूमा हूँ|

भारत माता की जय | वन्दे मातरं | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ

१२ अगस्त २०१७

१५ अगस्त की प्रतीक्षा है .....

१५ अगस्त की प्रतीक्षा है .....
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१५ अगस्त की प्रतीक्षा है | १५ अगस्त को श्रीअरविन्द का जन्मदिवस है | इस दिन श्रीअरविन्दाश्रम झुंझुनू के बच्चों द्वारा प्रातः आठ बजे से मनाए जाने वाले उत्सव में अवश्य जाता हूँ | बच्चे बड़े सुन्दर भजन सुनाते हैं | यहाँ के बच्चों को संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी इन तीनों भाषाओँ का गहन अध्ययन कराया जाता है | श्रीअरविन्द और श्रीमाँ के साहित्य और सनातन धर्म का अध्ययन भी कराया जाता है |
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इस दिन श्रीअरविन्द द्वारा दिया हुआ उत्तरपाड़ा का भाषण अवश्य पढ़ें | यह मूल अंग्रेजी सहित हिंदी अनुवाद के साथ अंतरजाल (Internet) पर उपलब्ध है |
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इस वर्ष इस दिन श्रीकृष्णजन्माष्टमी भी है | वेदान्त के जो परमब्रह्म हैं, साकार रूप में वे ही भगवान श्रीकृष्ण हैं |
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पचास-साठ वर्षों पूर्व की बात है | जब हम बच्चे थे तब प्रायः सभी विद्यालयों में १५ अगस्त और २६ जनवरी के दिन सभी बच्चों से नारे लगवाए जाते थे ..... "महात्मा गाँधी की जय", "पंडित जवाहरलाल नेहरु की जय" | नारे लगाते लगाते जुलुस के रूप में एक मैदान में जाते जहाँ पुलिस की परेड होती थी|
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अब तो एक क्षोभ सा होता है इस दिन | क्या हम सचमुच स्वतंत्र हुए थे या यह सत्ता का एक हस्तांतरण मात्र था ? भारत माँ को यदि स्वतन्त्रता मिली भी तो किस मूल्य पर मिली ? भारत माँ के दोनों हाथ कन्धों सहित काट डाले गए, और आधा सिर काट दिया गया | तीस-पैंतीस लाख हिन्दुओं की हत्याएँ हुईं, लाखों हिन्दू महिलाओं ओर बच्चियों की दुर्गति हुई | हज़ारों बच्चे अनाथ हुए | करोड़ों लोग विस्थापित होने को बाध्य हुए | एक ओर दिल्ली में उत्सव मनाया जा रहा था, दूसरी ओर लाखों परिवार अपना सब कुछ गँवा कर शरणार्थी के रूप में भारत आ रहे थे | (ना)पाकिस्तान से हिन्दुओं की लाशों से भरी हुईं रेलगाड़ियाँ भारत भेजी जा रही थीं | कितने बुरे दिन थे !!!
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अब मन में एक प्रश्न उठता है कि क्या हम सचमुच स्वतंत्र हैं ? धन्य हैं वे लोग जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया पर अपना धर्म नहीं छोड़ा और खंडित भारत में शरण लेना स्वीकार किया |
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अब इन सब को भुलाकर परमात्मा पर ध्यान ही अच्छा लगता है | वास्तविक स्वतंत्रता परमात्मा में है | फिर भी विश्वास है कि वह दिन शीघ्र आयेगा जब भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान होगी | असत्य और अन्धकार का नाश होगा और धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा होगी |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


१२ अगस्त २०१७

Saturday 12 August 2017

परमात्मा पर नित्य ध्यान की आवश्यकता ......

परमात्मा पर नित्य ध्यान की आवश्यकता ......
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बाहरी संसार का एक प्रबल नकारात्मक आकर्षण है जो हमारी चेतना को अधोगामी बनाता है | इस अधोगामी चुम्बकत्व से रक्षा सिर्फ ध्यान साधना कर सकती है | ध्यान का समय और गहराई निरंतर बढाएँ | जिन लोगों की नकारात्मक चेतना हमारे मार्ग में बाधक है, उन लोगों का साथ विष की तरह तुरंत त्याग दें | कौन क्या सोचता है इसकी बिलकुल भी परवाह न करें | किसी भी नकारात्मक टिप्पणी पर ध्यान न दें और उसे अपनी स्मृति से निकाल दें | अपना लक्ष्य सदा सामने रहे | किसी भी अनुभव या परिस्थिति से हमारे साथ क्या होता है इसका महत्व नहीं है | हम उससे क्या बनते हैं इसी का महत्त्व है |
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कोई भी कठिनाई हो तो गुरु महाराज से प्रार्थना करें | गुरु महाराज सर्वत्र हैं | उनकी चेतना सर्वव्यापी है | वे एक मानव देह मात्र नहीं हैं |
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सदा निष्ठावान और अपने ध्येय के प्रति अडिग रहें | वासनात्मक विचार उठें तो सावधान हो जाएँ और अपनी चेतना को सूक्ष्म प्राणायाम द्वारा ऊर्ध्वमुखी कर लें | सदा प्रसन्न रहें | शुभ कामनाएँ |
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ॐ तत्सत् | गुरु ॐ | ॐ ॐ ॐ ||

Friday 11 August 2017

अल्पसंख्यक कौन है ? खतरे में तो भारत की अस्मिता है ....

अल्पसंख्यक कौन है ? खतरे में तो भारत की अस्मिता है ....
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भारत में अल्पसंख्यक होने का मापदंड क्या है ? कश्मीर से मार मार कर सब हिन्दुओं को भगा दिया गया है | दो चार बेचारे इधर उधर छिप कर रह रहे हैं, पर उनको अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त नहीं है | अल्पसंख्यक होने की सुविधा सिर्फ मुसलमानों को है जो वहाँ अन्य किसी को सहन नहीं करते | भारत की सब सरकारें देश के हिन्दुओं का खून चूसकर कश्मीरी मुस्लिमों को ही विशेष सुविधाएँ देती रही हैं | केरल, बंगाल और त्रिपुरा में हिन्दुओं की हत्याएँ नित्य हो रही हैं | पकिस्तान और बांग्लादेश तो हिन्दुओं के लिए नर्क हैं | भारत में ही हिन्दुओं को विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार नहीं है जो मुसलमानों और ईसाईयों को प्राप्त है | हिन्दू भावनाओं को नित्य आहत किया जा रहा है | अतः असुरक्षित तो हिन्दू हैं | हिन्दू ही वास्तविक अल्पसंख्यक हैं |
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भारत का सबसे बड़ा रिलिजन इस्लाम है .......
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हिंदुत्व कोई धर्म या रिलिजन नहीं है | हिन्दू कोई धर्म नहीं, एक जीवन पद्धति है जो शैव, वैष्णव, शाक्त, नाथ, आर्यसमाजी, राधास्वामी, कबीरपंथी, दादूपंथी, आदि सम्प्रदायों में बँटी हुई है | ये सम्प्रदाय रिलिजन नहीं हैं | इस हिसाब से इस्लाम भारत का सबसे बड़ा बहुसंख्यक रिलिजन है | ये शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, नाथ, आर्यसमाजी, राधास्वामी, आदि आदि ये सब सम्प्रदाय अल्पसंख्यक हैं |
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कोई किसी बहुत बड़े संवेधानिक पद पर बैठा हो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह एक आदर्श और प्रतिष्ठित ब्यक्ति है | अभी कुछ दिन पूर्व ही एक ओछे विचारों के आदमी ने जो घटिया से घटिया बात की उसकी जितनी निंदा की जाए वह कम है |
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भारतीय परिप्रेक्ष्य में अल्पसंख्यक ओर बहुसंख्यक को परिभाषित करना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है |

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पूरे विश्व को, विशेषतः भारत को इस समय सबसे बड़ा खतरा जेहाद की अवधारणा से है |
यह खतरा इतना भयावह है जिसकी एक सामान्य व्यक्ति पूरी कल्पना भी नहीं कर सकता |
बिना दैवीय शक्तियों की सहायता के इस खतरे से नहीं निपटा जा सकता | दैवीय शक्तियों को जागृत करना ही होगा | भगवान से स्वयं की, समाज की, राष्ट्र की और धर्म की रक्षा के लिए प्रार्थना करें | स्वयं को और समाज को संगठित व बलशाली बनाएँ | अन्यथा हम बड़ी क्रूरता से नष्ट कर दिए जाएँगे |

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ॐ ॐ ॐ ||

ॐ ॐ ॐ ||

नियमित साधना को न छोड़ें .....

नियमित साधना को न छोड़ें .....
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अपनी नियमित साधना को किसी भी कीमत पर न छोड़ें | ज्ञान (गीता में बताए हुए "समभाव" में स्थिति यानि "स्थितप्रज्ञता" ही ज्ञान है) की प्राप्ति नहीं भी होगी तो कम से कम भटकाव तो नहीं होगा | नियमित साधना छोड़ देने के कारण ही हम भ्रष्ट हो गए हैं जिसका परिणाम विनाश यानि सर्वनाश ही होता है | नियमित साधना करेंगे तो हमारी सद्गति तो निश्चित ही होगी | भगवान निश्चित रूप से दुर्गति से हमारी रक्षा करेंगे | अतः अपना नित्य कर्म न छोड़ें |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

एकमात्र सत्य ब्रह्म ही है .....

एकमात्र सत्य ब्रह्म ही है .....
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ब्रह्म शब्द की उत्पत्ति बृह् धातु से है जिसका अर्थ है बृहणशील, विस्तृत या विशाल, जिसका निरंतर विस्तार होता रहता है | इसी ब्रह्म से "एकोSहं बहुस्याम्" की भावना से सृष्टि का विस्तार हुआ है | यह परमाणु से भी सूक्ष्म और महत से भी बड़ा है | यह अपरिभाष्य, सच्चिदानन्दरूप और अनुभूतिगम्य है | इस पर उपनिषदों में खूब चर्चा हुई है और भाष्यकार आचार्य शंकर ने इस की खूब व्याख्या की है |
उस ब्रह्म से साक्षात्कार और एकत्व ही हमारे जीवन का लक्ष्य है | गहन ध्यान में ही इसकी अनुभूति की जा सकती है |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

आध्यात्म में अधिकाँश विषय अति सूक्ष्म हैं .....

आध्यात्म में अधिकाँश विषय अति सूक्ष्म हैं .....
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आध्यात्म में अधिकाँश विषय अति सूक्ष्म हैं, वे परमात्मा की प्रत्यक्ष कृपा से ही गहन ध्यान में समझ में आते हैं | बुद्धि की क्षमता से वे परे हैं | सिर्फ पढ़कर बुद्धि से उन्हें कोई नहीं समझ सकता | उन्हें समझने के लिए साधना करनी पड़ती है | उन्हें समझाने वाला भी तत्वज्ञ होना चाहिए और समझने का प्रयास करने वाला भी मुमुक्षु हो | सिर्फ बौद्धिक जानकारी प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति को कभी भी कुछ समझ में नहीं आ सकता |
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सबसे सरल मार्ग है ..... परमात्मा से परम प्रेम और उन पर नियमित ध्यान |
वही जीवन जिओ जो परमात्मा की ओर ले जाता है | संग भी उन्हीं का करो जो परमात्मा की प्राप्ति में सहायक हो, अन्यथा चाहे निःसंग ही रहना पड़े | संबंध भी उन्हीं लोगों से रखो जो परमात्मा से प्रेम करते हैं, अन्यों से नहीं, चाहे सारे सम्बन्ध तोड़ने ही पड़ें | वही भोजन करो जो साधना में सहायक हो, अन्यथा चाहे भूखा ही रहना पड़े | रहो भी वहीं जहाँ परमात्मा की स्मृति बनी रहे, अन्यथा उसकी व्यवस्था परमात्मा पर ही छोड़ दो | यह सांसारिक नारकीय जीवन जीने से तो भगवान का ध्यान करते करते यह देहत्याग करना अच्छा है | भगवान को भुलाकर संसार से आशा ही जन्म-मरण और समस्त दुःखों का कारण है |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

Thursday 10 August 2017

फेसबुक पर आने का मेरा उद्देश्य पूरा हो गया है ....

(१) फेसबुक पर मेरे आने का उद्देश्य पूर्ण हो गया है | छः वर्ष पूर्व मैं फेसबुक पर आया था तब स्वयं के राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक विचारों व भावनाओं को व्यक्त करने की एक तड़फ थी हृदय में | फेसबुक ने मुझे वह अवसर दिया जिसके लिए मैं इस मंच का आभारी हूँ | अब तक ९०० (नौ सौ) के लगभग छोटे बड़े लेख लिखे जा चुके है मुझ अकिंचन के माध्यम से |
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(२) उस समय हिंदी में लिखने का बिलकुल भी अभ्यास नहीं था | भाषा में व्याकरण की अत्यधिक अशुद्धियाँ थीं, शब्दों का ज्ञान अल्प था और शब्दों का चयन भी गलत था | कई मित्रों ने मेरी भाषा का बहुत बुरा माना पर कई ने पर्याप्त प्रोत्साहन भी दिया जिसके कारण भाषा में चमत्कारिक सुधार हुआ | अंग्रेजी में लिखना बंद करने से विदेशी मित्रों ने मुझे छोड़ दिया पर भारत में अनेक बहुत अच्छे अच्छे मित्र बने | अब तो हिंदी भाषा में लिखने की इतनी सामर्थ्य आ गयी है कि जीवन भर यदि नित्य लिखता रहूँ तब भी विषयों का, भावों का और शब्दों का अभाव नहीं रह सकता | पर अब ह्रदय भर गया है और पूर्ण संतुष्टि है |
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(३) फेसबुक को कभी छोडूंगा नहीं | इस पर कुछ समय के लिए नित्य आऊँगा | जब भी प्रभु से कुछ लिखने की प्रेरणा मिलेगी तब अवश्य लिखूँगा | मैं आप सब का सेवक मात्र हूँ | आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियाँ हैं | आप सब में मुझे परमात्मा के दर्शन होते हैं |
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(४) एक प्रबल आकर्षण है परमात्मा का जो मुझे निरंतर अपनी ओर खींच रहा है | परमात्मा को ही मुझ अकिंचन से अत्यधिक प्रेम हो गया है | वे ही मेरे जीवन के केन्द्रविन्दु बन गए हैं | जीवन के इस संध्याकाल का अवशिष्ट समय उनके ध्यान और उनकी सेवा में ही व्यतीत हो, यही परमात्मा की इच्छा है |
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आप सब को पुनश्चः नमन ! आप ने मुझे इतना समय और प्रेम दिया उसके लिए मैं आप सब का सदा आभारी रहूँगा |
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ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमो नारायण ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
१० अगस्त २०१७

Wednesday 9 August 2017

प्राण-तत्व पर मेरे अनुभूतिजन्य विचार .....

प्राण-तत्व पर मेरे अनुभूतिजन्य विचार .....
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जगन्माता ही प्राण हैं, वे ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व हैं | परमात्मा के मातृरूप की कृपा से ही यह समस्त सृष्टि जीवंत है | वे जगन्माता ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व के रूप में जड़-चेतन सभी में व्याप्त है | एक जड़ धातु के अणु में भी प्राण हैं, और एक प्राणी की चेतना में भी | प्राण-तत्व की व्याप्तता और अभिव्यक्ति विभिन्न और पृथक पृथक है | एक मनुष्य जैसे जीवंत प्राणी की चेतना में भी जब तक प्राण विचरण कर रहा है, उसकी साँसे चलती हैं | प्राण के निकलते ही उसकी साँसे भी बंद हो जाती हैं | जगन्माता ही प्राण हैं | उन्होंने ही इस सृष्टि को धारण कर रखा है और अपनी विभिन्नताओं में सभी प्राणियों में और सभी अणु-परमाणुओं में स्थित हैं| वे ही ऊर्जा हैं, वे ही विचार हैं, वे ही भक्ति हैं और वे ही हमारी परम गति हैं |
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और भी स्थूल रूप में बात करें तो इस सृष्टि को श्रीराधा जी ने ही धारण कर रखा है, वे ही इस सृष्टि की प्राण हैं | परमप्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति श्रीराधा जी हैं | परमात्मा के प्रेमरूप पर ध्यान करेंगे तो निश्चित रूप से श्री राधा जी के ही दर्शन होंगे |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

अभ्यास और वैराग्य .....

अभ्यास और वैराग्य पर लिखकर अनेक मनीषियों ने अपनी लेखनी को धन्य किया है| अभ्यास और वैराग्य की परिणिति है .... समभाव |
अभ्यास और वैराग्य से ही मन वश में होता है | समभाव ही स्थितप्रज्ञता है, यही ज्ञानी होने का लक्षण है | यही ज्ञान है |
भक्ति का अर्थ है परमप्रेम | स्वयं परम प्रेममय हो जाना ही भक्ति है | भक्ति की परिणिति भी समभाव ही है | अतः भक्ति और ज्ञान दोनों एक ही हैं | इनमें कोई अंतर नहीं है |
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मेरी स्वभाविक रूचि वेदांत और योग दर्शन में है | उपनिषदों और गीता को ही प्रमाण मानता हूँ | अब तो मेरी निजानुभुतियाँ ही मार्गदर्शन करती हैं | इष्ट है .... केवल आत्म-तत्व जिसे मैं परमशिव कहता हूँ | परमशिव ही मेरे इष्ट हैं |
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"अभ्यास- वैराग्याभ्यां तन्निरोधः" | महर्षि पातंजलि ने भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के ये दो साधन वैराग्य और अभ्यास ही बताए हैं | मन को समझा बुझा कर युक्ति से नियंत्रित किया जा सकता है बलपूर्वक नहीं | यह युक्ति .... वैराग्य और अभ्यास ही हैं |
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियों को सादर नमन !
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

भारत छोड़ो आन्दोलन .....

भारत छोड़ो आन्दोलन .....
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भारत छोडो आन्दोलन द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ८ अगस्त १९४२ को महात्मा गाँधी द्वारा मुम्बई के अगस्त क्रांति मैदान से आरम्भ किया गया था| यह एक बहुत विराट देशव्यापी आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था| पूरे देश में इस आन्दोलन को अंग्रेजों ने बड़ी निर्दयता और निर्ममता से कुचल दिया था| गाँधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था| जयप्रकाश नारायण भूमिगत हो गए थे| फिर श्री लालबहादुर शास्त्री ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया| "करो या मरो" का नारा गांधीजी ने दिया था जिसे लालबहादुर शास्त्री जी ने "मरो नहीं, मारो" बना दिया|
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मेरे विचार से आन्दोलन का समय एक गलत राजनीति से प्रेरित था| ९ अगस्त १९२५ को पं.रामप्रसाद 'बिस्मिल' के नेतृत्व में दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी काण्ड किया था जिसकी यादगार ताजा रखने के लिये पूरे देश में प्रतिवर्ष ९ अगस्त को "काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस" मनाने की परम्परा भगत सिंह ने आरम्भ कर दी थी जिसमें बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे| गांधीजी चाहते थे कि जनता उसे भूल जाए| इसलिए उन्होंने इस आन्दोलन का समय आठ और नौ अगस्त को रखा|
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विद्यालयों में पढ़ाया तो हमें यही गया था कि स्वतन्त्रता इसी आन्दोलन के कारण मिली| पर यह झूठ था| बड़े होकर ही हमें पता चला कि आज़ादी मिली थी तो अन्य कारणों से जिसे कभी भी विद्यालयों में पढ़ाया नहीं गया था|
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हमें आज़ादी मिली थी निम्न दो कारणों से :----

(१) द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति तक अंग्रेजी सेना की कमर टूट गयी थी और वह भारत पर अपना नियंत्रण रखने में असमर्थ थी| भारतीय सैनिकों ने अँगरेज़ अफसरों के आदेश मानने और उन्हें सलामी देना बंद कर दिया था| नौसेना ने विद्रोह कर दिया और अँगरेज़ अधिकारियों को बंदी बना लिया| इससे अँगरेज़ बहुत अधिक डर गए थे और उन्होंने भारत छोड़ने का निर्णय ले लिया|
(२) नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की और अपनी स्वतंत्र सेना बनाकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए युद्ध आरम्भ कर दिया| वे इतने अधिक लोकप्रिय हो चुके थे कि उन्हें भारत के प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता था| अँगरेज़ भयभीत थे| उन्होंने भारत का अधिक से अधिक नुकसान किया, भारत को अधिक से अधिक लूटा, विभाजन किया और अपने मानसपुत्र को सता हस्तांतरित कर के भारत से चले गए|
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सत्य सनातन धर्म की जय | भारत माता की जय | हर हर महादेव | जय श्रीराम |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

ब्रह्म मुहूर्त में ब्रह्मचिन्तन ही करना चाहिए, शयन नहीं ....

ब्रह्म मुहूर्त में ब्रह्मचिन्तन ही करना चाहिए, शयन नहीं|
उठते ही अनुभूति करें कि माँ भगवती की गोद में सो रहे थे, बिस्तर पर नहीं|
उठते ही एक गहरी साँस लें और पूरी देह को चार-पाँच क्षणों के लिए तनावयुक्त कर के तनावमुक्त कर लें| शरीर के किसी भी अंग में कोई तनाव न रहे|
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह कर के पद्मासन या सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाएँ| अपने इष्ट देव को मानसिक प्रणाम करें|
अपना प्रिय कोई भजन मानसिक रूप से गाएँ जिससे भक्ति भाव जागृत हो|
कुछ देर तक अजपा-जप करें|
कुछ देर बंद कानों से जो ध्वनि सुनाई देती है, उसे सुनें| उसके साथ ओंकार का मानसिक जप करें|
उषः पान (रात्रि को ताम्बे के पात्र में रखा जलपान) करें| फिर शौचादि से निवृत होकर, स्नान कर के संध्या कर्म करें|
पूरे दिन परमात्मा को अपनी स्मृति में रखें|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

क्या श्रावणी उपाकर्म और रक्षाबंधन का सम्बन्ध हयग्रीवावतार से है ? ...

क्या प्राचीन काल से चले आ रहे श्रावणी उपाकर्म और वर्तमान में रक्षाबंधन का सम्बन्ध भगवान् विष्णु के हयग्रीवावतार से है ? विद्वानों से प्रार्थना है कि प्रामाणिक ज्ञान प्रदान करें |
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जैसा कि बड़े-बूढों से सुनते आये हैं उसके अनुसार एक कालखंड में वेदों का ज्ञान लुप्त हो गया था| ब्रह्मा जी भी वेदों को भूल गए थे| तब भगवान विष्णु ने हयग्रीव का अवतार लेकर वेदों का ज्ञान ब्रह्मा जी को पुनश्चः प्रदान किया| उस दिन श्रावण माह की पूर्णिमा थी| तब से श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मण वर्ण के लोग मनाते आये हैं, जिसमें यज्ञोपवीत बदला जाता है|
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उपरोक्त विषय पर पौराणिक कथा इस प्रकार है ......
एक समय की बात है क‌ि भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी बैकुण्ठ में विराजमान थे| उस समय देवी लक्ष्मी के सुंदर रूप को देखकर भगवान विष्णु मुस्कुराने लगे| देवी लक्ष्मी को ऐसा लगा कि विष्णु भगवान उनके सौन्दर्य की हँसी उड़ा रहे हैं| देवी ने इसे अपना अपमान समझ लिया और ब‌िना सोचे भगवान विष्णु को शाप दे दिया कि आपका सिर धड़ से अलग हो जाए|
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उसी समय के आसपास की बात है| हयग्रीव नाम का एक परम पराक्रमी दैत्य हुआ| उसने सरस्वती नदी के तट पर जाकर भगवती महामाया की प्रसन्नता के लिए बड़ी कठोर तपस्या की| वह बहुत दिनों तक बिना कुछ खाए भगवती के मायाबीज एकाक्षर महामंत्र का जाप करता रहा| उसकी इंद्रियां उसके वश में हो चुकी थीं| सभी भोगों का उसने त्याग कर दिया था| उसकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती ने उसे तामसी शक्ति के रूप में दर्शन दिया| भगवती महामाया ने उससे कहा .... ‘‘महाभाग! तुम्हारी तपस्या सफल हुई, मैं तुम पर परम प्रसन्न हूँ| तुम्हारी जो भी इच्छा हो मैं उसे पूर्ण करने के लिए तैयार हूँ| वत्स! वर माँगो|’’
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भगवती की दया और प्रेम से ओत-प्रोत वाणी सुनकर हयग्रीव की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा| उसके नेत्र आनंद के अश्रुओं से भर गए| उसने भगवती की स्तुति करते हुए कहा .... ‘‘कल्याणमयी देवि, आपको नमस्कार है| आप महामाया हैं| सृष्टि, स्थिति और संहार करना आपका स्वाभाविक गुण है| आपकी कृपा से कुछ भी असंभव नहीं है| यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे अमर होने का वरदान देने की कृपा करें|’’
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देवी ने कहा, ‘‘दैत्य राज, संसार में जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु निश्चित है| प्रकृति के इस विधान से कोई नहीं बच सकता| किसी का सदा के लिए अमर होना असंभव है| अमर देवताओं को भी पुण्य समाप्त होने पर मृत्यु लोक में जाना पड़ता है| अत: तुम अमरत्व के अतिरिक्त कोई और वर माँगो|"
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हयग्रीव बोला, ‘‘अच्छा, तो हयग्रीव के हाथों ही मेरी मृत्यु हो| दूसरे मुझे न मार सकें| मेरे मन की यही अभिलाषा है| आप उसे पूर्ण करने की कृपा करें|’’
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"ऐसा ही हो", यह कह कर भगवती अंतर्ध्यान हो गईं| हयग्रीव असीम आनंद का अनुभव करते हुए अपने घर चला गया| वह दुष्ट देवी के वर के प्रभाव से अजेय हो गया| त्रिलोकी में कोई भी ऐसा नहीं था, जो उस दुष्ट को मार सके| उसने ब्रह्मा जी से वेदों को छीन लिया और देवताओं तथा मुनियों को सताने लगा| यज्ञादि कर्म बंद हो गए और सृष्टि की व्यवस्था बिगडऩे लगी| ब्रह्मादि देवता भगवान विष्णु के पास गए, किन्तु वे योगनिद्रा में निमग्र थे| उनके धनुष की डोरी चढ़ी हुई थी| ब्रह्मा जी ने उनको जगाने के लिए वम्री नामक एक कीड़ा उत्पन्न किया| ब्रह्मा जी की प्रेरणा से उसने धनुष की प्रत्यंचा काट दी| उस समय बड़ा भयंकर शब्द हुआ और भगवान विष्णु का मस्तक कटकर अदृश्य हो गया| सिर रहित भगवान के धड़ को देखकर देवताओं के दुख की सीमा न रही| सभी लोगों ने इस विचित्र घटना को देखकर भगवती की स्तुति की| भगवती प्रकट हुई| उन्होंने कहा, ‘‘देवताओ चिंता मत करो| मेरी कृपा से तुम्हारा मंगल ही होगा| ब्रह्मा जी एक घोड़े का मस्तक काटकर भगवान के धड़ से जोड़ दें| इससे भगवान का हयग्रीवावतार होगा| वे उसी रूप में दुष्ट हयग्रीव दैत्य का वध करेंगे|’’ ऐसा कह कर भगवती अंतर्ध्यान हो गई।
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भगवती के कथनानुसार उसी क्षण ब्रह्मा जी ने एक घोड़े का मस्तक उतारकर भगवान के धड़ से जोड़ दिया| भगवती के कृपा प्रसाद से उसी क्षण भगवान विष्णु का हयग्रीवावतार हो गया| फिर भगवान का हयग्रीव दैत्य से भयानक युद्ध हुआ| अंत में भगवान के हाथों हयग्रीव की मृत्यु हुई| हयग्रीव को मारकर भगवान ने वेदों को ब्रह्मा जी को पुन: समर्पित कर दिया और देवताओं तथा मुनियों का संकट निवारण किया| हयग्रीव भगवान विष्णु के चौदह अवतारों में से एक थे| इनका सिर घोड़े का और शरीर मनुष्य का था|
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हयग्रीव की कथा महाभारत के शान्ति पर्व के अनुसार यह है ....
कल्पान्त में जब यह पृथ्वी जलमग्न हो गयी तब विष्णु को पुन: जगत सर्जन का विचार हुआ| वह जगत की विविध विचित्र रचना का विषय सोचते हुए योगनिद्रा का अवलम्बन कर जल में सो रहे थे| कुछ समय के पश्चात भगवान ने कमल मध्य दो जलबिन्दु देखे| एक बिन्दु से मधु और दूसरे से कैटभ की उत्पत्ति हुई| उत्पन्न होते ही दैत्यों ने कमल के मध्य ब्रह्मा को देखा| दोनों सनातन वेदों को ले रसातल में चले गये| वेदों का अपहरण होने पर ब्रह्मा चिन्तित हुए कि वेद ही मेरे चक्षु हैं जिन के अभाव में लोकसृष्टि कैसे कर सकूँगा| उन्होंने वेदोद्धार के लिए भगवान विष्णु की स्तुति की| स्तुति सुन भगवान ने हयग्रीव की मूर्ति धारण कर वेदों का उद्धार किया|
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अब विद्वान् मनीषी प्रामाणिक ज्ञान प्रदान करें| साभार धन्यवाद !
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

हे हरि, यहाँ सिर्फ तुम ही हो .....

हे हरि, यहाँ सिर्फ तुम ही हो .....
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मुझ में जो व्यक्त हो रहा है उस देवत्व को नमन ! मैं परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्ति हूँ | मेरे चारों ओर मंत्रमय प्रकाश रूपी एक दिव्य जीवंत कवच है जो सब प्रकार की नकारात्मकताओं से निरंतर रक्षा कर रहा है |
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हर विचार, हर भाव, एक पर्यटक की तरह मेरे पास आता है जिसका अतिथि की तरह स्वागत है, पर उसके निवास के लिए मेरे पास कोई स्थान नहीं है | वे आएँ, उनका स्वागत है, पर तुरंत बापस भी चले जाएँ | मेरा हृदय कोई धर्मशाला नहीं है | इसमें निवास सिर्फ परमात्मा का है |
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मैं निःसंग हूँ | किसी का साथ नहीं करता | मेरा जन्म-मरण का शाश्वत एकमात्र साथी परमात्मा है जो सदा निरंतर मेरे साथ है | उसे अन्य किसी का साथ पसंद नहीं है |
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यह जीवन एक स्वतन्त्रता संग्राम है | इस मायावी युद्ध में विजयी होना हम सब का परम कर्तव्य है | यहाँ योद्धा परमात्मा स्वयं हैं, यह युद्ध और शत्रु आदि सब उनकी ही माया है |
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उन्हीं की परम कृपा से यह सब दिखाई दे रहा है | वे ही इन आँखों से देख रहे हैं, वे ही इस दिमाग से सोच रहे हैं, वे ही ये पंक्तियाँ लिख रहे हैं| वे ही सर्वत्र हैं, उनके सिवाय किसी अन्य का अस्तित्व नहीं है | उन्हीं के वचन हैं ...
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||"
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

साधना में रुकावट डालने वाले राग-द्वेष, काम, क्रोध आदि से मुक्त कैसे हों? ....

साधना में रुकावट डालने वाले राग-द्वेष, काम, क्रोध आदि से मुक्त कैसे हों?
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विषय परायणता से मुक्त कैसे हों? इसका कोई सामान्य उत्तर नहीं है| प्रत्येक व्यक्ति को जिन परिस्थितियों में वह है, उसका मूल्यांकन कर अपना उत्तर स्वयं ढूँढ़ना होगा कि वह उन परिस्थितियों से ऊपर कैसे उठ सकता है| प्रत्येक व्यक्ति की समस्या भी अलग है और समाधान भी अलग| एक ही उत्तर सभी के लिए नहीं हो सकता|
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फिर भी कुछ सामान्य उत्तर जो हो सकते हैं, वे हैं ...... सत्संग, स्वाध्याय, कुसंग का त्याग, सात्विक पवित्र आहार, नियमित दिनचर्या और नियमित साधना आदि|
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इस संसार में हमने बहुत अधिक कष्ट पाए हैं जो निश्चित रूप से हमारे कर्मों के ही फल थे| अब शांति से बैठकर विचार करें कि ऐसे हमारे कौन से कर्म हो सकते हैं जिनका हमें यह फल मिला है| जो संचित कर्म हैं उन से कैसे मुक्त हों, व ऐसे कर्मों से कैसे बचें जिन से इन कष्टों की पुनरावृति न हो? सार की बात यह है कि पूर्वजन्मों में हमने ऐसे अच्छे कर्म नहीं किये जिनसे हम जीवनमुक्त हो सकते थे, अन्यथा यह कष्टमय जन्म लेने को बाध्य नहीं होते| अब जीवनमुक्त होने की दिशा में आगे बढ़ें| मन में दृढ़ संकल्प होगा तो मार्गदर्शन भी मिलेगा|
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कभी निराश न हों| जीवन की कटुताओं और बुरे अनुभवों को याद न करें| भगवान की यह सृष्टि निश्चित रूप से सुव्यवस्थित है| इसमें कोई अव्यवस्था नहीं है| अपनी हर समस्या का समाधान भगवान में ही ढूंढें| उत्तर अवश्य मिलेगा|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

Friday 4 August 2017

नियमित अभ्यास .......

नियमित अभ्यास .......
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साधना काल में नियमित अभ्यास आवश्यक है| साधना क्रम और साधना काल को धीरे धीरे लगातार आगे बढ़ाएँ| राग-द्वेष और आलस्य .... ये साधक के सबसे बड़े शत्रु हैं, अभ्यास इनसे बचने का भी करें| धीरे धीरे अभ्यास करते करते मन भी मित्र बन जाता है| नित्य मन को प्रशिक्षण दो और बताओ कि हे मन, तूँ कहीं भी चला जा, तूँ जहाँ भी जाएगा, वहाँ मेरे प्रभु के चरण कमलों में ही स्थान पायेगा| मेरे प्रभु के चरण कमल सर्वत्र हैं| तूँ आकाश-पाताल, पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण .... कहीं भी चला जा, उनके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है| मन को समझा-बुझा कर ही वश में कर सकते हैं, बलात् नहीं| एक बार मन वश में हो जाए तो आधा युद्ध जीता हुआ मान लीजिये| अपने चैतन्य में परमात्मा को निरंतर रखें| अभ्यास द्वारा यह संभव है|

आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

हरियाली तीज .....

हरियाली तीज .....
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आज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है जिसे हरियाली तीज कहते हैं| कल सिंधारा दूज थी| सभी मातृशक्ति को मैं इस पावन अवसर पर नमन करता हूँ|
हरियाली तीज मुख्यत: स्त्रियों का त्योहार है|
इस समय जब प्रकृति में चारों ओर हरियाली की चादर सी बिछी हुई है| वन-बिहार करने पर प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाचने लगता है| तपती गर्मी से अब जाकर राहत भी मिली है|
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अभी कुछ वर्षों पूर्व तक हमारे यहाँ राजस्थान के हर भाग में खूब झूले लगते थे और स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते थे| अभी भी कहीं कहीं यह संस्कृति जीवित बची हुई है| झूलों पर पूरा दम लगाकर बालिकाएँ और महिलाऐं खूब ऊँचाई तक जाती हुईं झूला झूलती थीं मानो आसमान को छूने जा रही हों| इसे हमारी मारवाड़ी भाषा में "पील मचकाना" कहते हैं|
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स्त्रियाँ अपने हाथों पर त्योहार विशेष को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार की मेहंदी लगाती हैं|मेहंदी रचे हाथों से जब वह झूले की रस्सी पकड़ कर झूला झूलती हैं तो यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी लगता है| जैसे मानसून आने पर मोर नृत्य कर खुशी प्रदर्शित करते हैं, उसी प्रकार महिलाएँ भी बारिश में झूले झूलती हैं, नृत्य करती हैं और खुशियाँ मनाती हैं।
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इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ सुहागी पकड़कर सास के पांव छूकर उन्हें देती हैं| यदि सास न हो तो स्वयं से बड़ों को अर्थात जेठानी या किसी वृद्धा को देती हैं|
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हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है| यह त्योहार महिलाओं के लिए एकत्र होने का एक उत्सव है| नवविवाहित लड़कियों के लिए विवाह के पश्चात पड़ने वाले पहले सावन के त्योहार का विशेष महत्त्व होता है|
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पौराणिक रूप से यह शिव पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है|
तीज के बारे में लोक कथा है कि पार्वतीजी के 108वें जन्म में शिवजी उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और पार्वतीजी की अपार भक्ति को जानकर उन्हें अपनी पत्नी की तरह स्वीकार किया|
.पार्वतीजी का आशीष पाने के लिए महिलाएँ कई रीति-रिवाजों का पालन करती हैं| नवविवाहित महिलाएँ अपने मायके जाकर ये त्योहार मनाती हैं|

सिंधारा दूज के दिन जिन लड़कियों की सगाई हो जाती है, उन्हें अपने होने वाले सास-ससुर से सिंजारा मिलता है। इसमें मेहँदी, लाख की चूड़ियाँ, कपड़े (लहरिया), मिठाई विशेषकर घेवर शामिल होता है|
विवाहित महिलाओं को भी अपने पति, रिश्तेदारों एवं सास-ससुर के उपहार मिलते हैं|
कन्याओं का बड़ा लाड-चाव इस दिन किया जाता है|
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पुनश्चः सभी मातृ शक्ति को नमन और शुभ कामनाएँ| ॐ ॐ ॐ ||

05 August 2016

"लिव इन रिलेशनशिप" और समाज का भविष्य -----

मित्रता के नाम पर "लिव इन रिलेशनशिप" क्या सही है ?????
"लिव इन रिलेशनशिप" और समाज का भविष्य -----
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वर्तमान में बड़े शहरों में मित्रता के नाम पर बिना विवाह के लाखों युवक-युवतियाँ रह रहे हैं| यह पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है जिसे वर्तमान शिक्षा पद्धति के कारण पड़े संस्कारों की वजह से और बड़े शहरों में नौकरी करने और आवासीय समस्याओं के कारण बदल नहीं सकते| यह एक विवशता हो गयी है|
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इससे अनेक सामाजिक समस्याएँ आ रहीं हैं, पर कुछ कर नहीं सकते| इसका परिणाम यह होगा ------
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(१) विवाह की संस्था विफल हो जायेगी| लिव इन रिलेशनशिप में युवा वर्ग की सोच यह है कि जब तक निभती है साथ साथ रहो, जब नहीं निभती तब मित्र की तरह अलग हो जाओ|
लडके देख रहे हैं कि आजकल यह एक फैशन सा हो गया है लडकियों में कि किसी पैसे वाले लडके को कैसे भी फँसाकर विवाह कर लो फिर उसका जीवन दूभर कर दो, वह तलाक देगा और उसकी आधी संपत्ति मिल जायेगी|
महिला अत्याचार विरोधी कानूनों के दुरुपयोग ने लाखों लडके वालों का जीवन नर्क कर रखा है| अतः लड़के विवाह नहीं करना चाहते|
लडकियाँ विवाह से पूर्व अनेक लडकों से यौन सम्बन्ध बना लेती है| विवाह के बाद उसे अपने पति से वह यौन सुख नहीं मिलता जो प्रेमियों से मिलता था अतः अनबन शुरू हो जाती है और विवाह विच्छेद हो जाते हैं|
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(२) हिन्दुओं की जनसंख्या मुसलमानों से कम हो जायेगी और भारत के हिन्दुओं का वो ही हाल होगा जो पाकिस्तान और बंगलादेश में है|
भारत में सारे कानून सिर्फ हिन्दुओं के लिए हैं|
मुसलमानों को सबसे बड़ा लाभ यह है कि जब मर्जी आये तब चाहे जितने विवाह करो और बीबी को जब चाहे तब छोड़ दो| कोई भरण-पोषण का खर्चा भी नहीं देना पड़ता| फिर और विवाह कर लो|
परित्यक्ता हिन्दू से मुसलमान बनी लडकियाँ निराश्रित होने कारण देह-व्यापार में धकेल दी जाती हैं|
हजारों हिन्दू तो इस्लाम काबुल कर लेते हैं सिर्फ अपनी पत्नियों से पीछा छूटाने के लिए|
अतः इस समस्या पर गंभीरता से समाज के नेताओं को विचार करना चाहिए| सिर्फ कानून से इस का समाधान नहीं होगा|
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हिन्दू बच्चों को पहली कक्षा से ही धार्मिक शिक्षा देनी होगी| जो इसे नहीं चाहते वे अपने बच्चों को मदरसों और कोन्वेंट स्कूलों में भेज सकते हैं|
धन्यवाद|

अगस्त ०४, २०१४.

हे मन .....

हे मन .....
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हे मन, तूँ दौड़ता हुआ कहाँ तक कहाँ कहाँ जाएगा ? जहाँ भी तूँ जाएगा वहीं आत्म तत्व के रूप में मैं स्थित हूँ| मुझ ब्रह्म से अतिरिक्त अन्य कोई दूसरा है ही नहीं| याद रख आत्मा के सिवाय कोई अनात्मा नहीं है| तुम्हारी गति मुझ से बाहर नहीं है| अतः तूँ शांत हो और चुपचाप बैठ कर मेरा ही स्मरण चिंतन कर| यह मेरा आदेश है जिसे मानने को तूँ बाध्य है| ॐ ॐ ॐ ||
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हे मन, याद रख यह मोह महा क्लेश है, जिस पर तूँ मोहित है, वह तो है ही नहीं| इस मोह और राग-द्वेष का अस्तित्व निद्रा में एक स्वप्न मात्र था| क्या तो राग, और क्या द्वेष ? आत्म-तत्व के रूप में सर्वत्र ब्रह्म मैं ही हूँ| अतः निरंतर मेरा ही स्मरण चिंतन कर| मेरी जीवनमुक्त ब्रह्मभूतता का निरंतर अनुभव कर| ॐ ॐ ॐ ||
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शिवोहम् शिवोहम् अहं ब्रह्मास्मि || ॐ ॐ ॐ ||

सुख, शांति और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, बाहर कहीं भी नहीं .....

सुख, शांति और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, बाहर कहीं भी नहीं .....
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सुख, शांति और सुरक्षा, सामान्यतः ये तीन सबसे बड़े लक्ष्य हमारे जीवन में होते हैं जिनके लिए हम अपना पूरा जीवन दाँव पर लगा देते हैं| इन्हीं के लिए हम खूब रुपया पैसा कमाते हैं, मकान बनवाते या खरीदते हैं व तरह तरह की आवश्यकता और विलासिता के सामान खरीदते हैं| पूरे जीवन की भागदौड़ और कठिनतम संघर्ष के उपरांत जो हम प्राप्त करते हैं, उस से भौतिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक और सामाजिक संतुष्टि तो मिलती है, पर ह्रदय में एक असंतुष्टि के भाव की वेदना सदा बनी रहती है| सांसारिक दृष्टी से सब कुछ मिल जाने के पश्चात् भी एक खालीपन जीवन में रहता है|
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अनेक बार तो हमारी उपलब्धियाँ हीं हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तनाव और कष्टों का कारण बन जाती हैं| समाज में अपने आसपास कहीं भी देख लो ..... इतनी पारिवारिक कलह, तनाव, लड़ाई-झगड़े, मिथ्या आरोप-प्रत्यारोप, जिन्हें देख कर लगता है कि हमारा सामाजिक ढाँचा ही खोखला हो गया है| मानसिक अवसाद (मेंटल डिप्रेशन) समाज के संपन्न वर्ग में एक सामान्य रोग है| सबसे अधिक आत्महत्याएँ विश्व के संपन्न देशों में और संपन्न लोगों द्वारा ही होती हैं|
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निज जीवन में हम चाहे कितनी भी सकारात्मक सोच रखें पर ईमानदारी से यदि स्वयं से पूछें तो खुद के जीवन में एक खालीपन अवश्य पायेंगे| मुझे इस जीवन में पूरे भारत में और भारत से बाहर भी बहुत सारे देशों में जाने का काम पडा है, और खूब घूमने-फिरने के दुर्लभ अवसर मिले हैं| जीवन का सर्वश्रेष्ठ भाग भारत से बाहर ही बीता है| खूब समुद्री यात्राएँ की हैं| पृथ्वी के अनेक देशों में अनेक तरह के लोगों से मिलने और बातचीत करने के भी अवसर मिले हैं|

मैंने तो अपने पूरे जीवन में अपने इस भौतिक जीवन से संतुष्ट किसी भी व्यक्ति को आज तक नहीं पाया है, हालाँकि कहने मात्र को तो सब अपने आप को संतुष्ट बताते हैं, पर उनकी पीड़ा छिपी नहीं रहती है| सब कुछ होते हुए भी अंतहीन भागदौड़ ही सबका जीवन बन गयी है| खूब संपत्ति और सामाजिक सुरक्षा भी जहाँ है वहाँ भी सब कुछ होते हुए भी लोगों के जीवन में एक शुन्यता और पीड़ा है|
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यह पीड़ा अपनी अंतरात्मा यानि स्वयं को न जानने की पीड़ा है| जीवन में वास्तविक सुख, शांति और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, स्वयं से बाहर कहीं भी नहीं| यह मेरा अपना स्वयं का निजी अनुभव है जिसे मैं यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ|
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हम सब परमात्मा की साकार अभिव्यक्तियाँ हैं| सब को सप्रेम सादर नमन !

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
०३ अगस्त २०१७

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है .......

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है .......
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दर्शन शास्त्र के एक बहुत बड़े विश्व विख्यात भारतीय विद्वान् भारत पर हुए चीनी आक्रमण के कुछ वर्षों उपरांत चीन गए थे और चीन के राष्ट्र प्रमुख माओ से मिले| उन्होंने माओ को भारतीय दर्शन .... वेदांत और गीता आदि की अनेक अच्छी अच्छी बातें बताईं| माओ ने सब बातें बड़े ध्यान से सुनी और तत्पश्चात दो प्रश्न किये जिनके उत्तर वे भारतीय विद्वान् कभी नहीं दे सके|
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माओ ने पहला प्रश्न किया कि १९४८ के भारत-पाक युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया था फिर भी अधिकांश कश्मीर पकिस्तान के कब्जे में क्यों है?
माओ का दूसरा प्रश्न था कि आप युद्ध में हम से पराजित क्यों हो गए थे? आपके आध्यात्म, दर्शन और धर्म की बड़ी बड़ी बातें किस काम आईं?
अंतिम बात माओ ने यह कही कि बहुत शीघ्र ही चीन भारत से अक्साचान (अक्साईचिन) छीन लेगा| भारत में हिम्मत है तो रोक कर दिखा दे|
चीन ने वह भी कर के दिखा दिया क्योंकि हम बलहीन थे|
(अब वर्त्तमान सरकार ने भारत को अपेक्षाकृत काफी शक्तिशाली बना दिया है इसलिए चीन सिर्फ धमकियाँ ही दे रहा है| युद्ध आरम्भ करने का उसका भी साहस नहीं हो रहा है|)
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हमारी विश्व शांति की बड़ी बड़ी बातें, बड़े बड़े उपदेश और झूठा दिखावा सब व्यर्थ हैं यदि हम बलहीन हैं|
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भारत पर यूनानी आकमण हुआ तब पौरुष से पराजित हुई यूनानी फौजें तब भाग खड़ी हुईं जब उन्हें पता चला कि मगध साम्राज्य की सेनाएं लड़ने आ रही हैं| फिर कई शताब्दियों तक किसी का साहस नहीं हुआ भारत की और आँख उठाकर देखने का|
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हम में यह गलत धारणा भर गई थी कि युद्ध करना सिर्फ क्षत्रियों का काम है| यदि पूरे भारत का हिन्दू समाज एकजुट होकर आतताइयों का सामना करता तो किसी का भी साहस नहीं होता हिन्दुस्थान की ओर आँख उठाकर देखने का|
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भारत में विधर्मी मत किसी संत महात्मा द्वारा नहीं आए थे| ये आये थे क्रूरतम आतंक और प्रलोभन द्वारा| हम सिर कटाते रहे और 'अहिंसा परमोधर्म' का जप करते रहे| समय के साथ हम अपनी मान्यताओं और सोच को नहीं बदल सके|
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वर्तमान में हम फिर संकट में हैं| हमें सब तरह के भेदभाव मिटाकर एक होना होगा और शक्ति-साधना करनी होगी, तभी हम अपना अस्तित्व बचा पाएंगे| अपने सोये हुए क्षत्रियत्व और ब्रह्मत्व को जागृत करना होगा|
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हिंदू धर्म ही नहीं बचेगा तो ये दर्शन और आध्यात्म की सब बातें निराधार हो जायेंगी| न तो साधू-संत रहेंगे, न ये बड़े बड़े उपदेशक और दार्शनिक| बचे खुचे हिन्दुओं को तो समुद्र में ही डूब कर मरना पडेगा| भारतवर्ष का ही अस्तित्व समाप्त हो जाएगा|
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इन सारे सेकुलर, माओपंथी, वाममार्गी, प्र्गतिवादी, समाजवादी, साम्यवादी, सर्वधर्मसमभाववादी, धर्मनिरपेक्षतावादी आदि आदि इन सब का अस्तित्व भी तभी तक है जब तक भारत में हिन्दू बहुमत है| जिस दिन हिन्दू अल्पमत में आ गए उस दिन इन सब का हाल भी वही होगा जो सीरिया और इराक में हाल ही में देखने को मिला था|
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धर्म की रक्षा धर्म के पालन से ही होती है, सिर्फ बातों से नहीं| धर्म की रक्षा हम नहीं करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा नहीं करेगा|
सभी का कल्याण हो | भारत माता की जय | जय श्रीराम |ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
०२ अगस्त २०१७.

एक अनुभूतिजन्य सत्य .....

एक अनुभूतिजन्य सत्य .....
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हमारा जैसा भौतिक और मानसिक परिवेश है, तदनुरूप ही सूक्ष्म जगत के प्राणी हमारे पास आते हैं और हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं| जैसे भौतिक व मानसिक वातावरण में हम रहते हैं वैसे ही सूक्ष्म जगत के प्राणियों को हम आकर्षित करते हैं, जो देवता भी हो सकते हैं और निम्न जगत के अधम प्राणी भी जिन्हें हम आँखों से नहीं देख सकते पर अनुभूत कर सकते हैं|
सूक्ष्म और कारण जगत, भौतिक जगत से दूर नहीं है सिर्फ उनके स्पंदन अलग हैं, वैसे ही जैसे एक ही टेलीविजन पर अलग अलग चैनल पर अलग अलग कार्यक्रम|
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अतः भौतिक रूप से अपने आसपास स्वच्छता और पवित्रता रखें| सुन्दर और स्वच्छ वातावरण में रहें| आपके यहाँ देवताओं का निवास होगा अन्यथा बुरी आत्माएँ आकर्षित होंगी| वैसे ही अपने मन को भी निर्विकार रखने का निरंतर प्रयास करते रहें तो अच्छा है||
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हमारे विचार और भाव ही हमारे कर्म हैं| कर्म का अर्थ भौतिक क्रिया नहीं है| हमारे विचार और भाव ही हमारे कर्म हैं जो निरंतर हमारे खाते में जुड़ते रहते हैं| उनका फल हमें जन्म-जन्मान्तरों में अवश्य मिलता है| जैसे हमारे विचार और भाव होंगे, जैसा हमारा चिंतन होगा और वैसे ही प्राणियों को हम आकर्षित करते हैं|
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अतः हमारा हर विचार सद्विचार हो और हर संकल्प शिवसंकल्प हो| निरंतर प्रभु को अपने ह्रदय में रखें| बाहर का जगत हमारे विचारों की ही अभिव्यक्ति है|
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ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
०१ अगस्त, २०१४.

आध्यात्मिक साधना में हम प्रगति कर रहे हैं या अवनति :---

आध्यात्मिक साधना में हम प्रगति कर रहे हैं या अवनति :---
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स्वयं को धोखे में नहीं रखना चाहिए| महात्मा लोग साधक की तुरंत पहिचान कर लेते हैं| हम उन्हें अपने शब्दजाल से धोखा नहीं दे सकते| हमें भी चाहिए कि हम स्वयं की समय समय पर जाँच करते रहें और अपना स्वयं का मुल्यांकन भी कर लें| अनेक आचार्यों ने इस विषय पर खूब प्रकाश डाला है| नीचे दिए गए मापदंडों से हम अपना स्वयं का मूल्यांकन कर सकते हैं .....
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(१) सबसे पहला मापदंड है .... आहार और वाणी पर नियंत्रण| अधिक बोलने वाला और अधिक खाने वाला व्यक्ति साधक नहीं हो सकता| यदि हमारे में ये अवगुण हैं तो हम निश्चित रूप से कोई प्रगति नहीं कर रहे हैं|
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(२) दूसरों के प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना का न होना, यह दूसरा मापदंड है| धर्मरक्षा के लिए क्षत्रिय जाति युद्ध में शत्रुओं का बध कर देती थी पर अपने स्वयं के मन में कभी भी उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं आने देती थी| यदि बारबार हमारे मन में दूसरों के प्रति बुरे विचार आते हैं तो हमें तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए| यह हमारी अवनति की निशानी है|
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(३) प्रमाद और दीर्घसूत्रता का अभाव, यह तीसरा मापदंड है| प्रमाद का अर्थ होता है आलस्य, और दीर्घसूत्रता का अर्थ है आवश्यक कार्य को सदा आगे के लिए टालना| यदि हमारे में ये दुर्गुण हैं तो इनसे मुक्त हों| ये भी हमारी अवनति ही दिखाते हैं|
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(४) साँस की गति का सामान्य से अधिक न होना, यह चौथा मापदंड है| साधनाकाल में साधक के साँसों की गति बहुत कम होती है| साँस का तेज चलना अच्छा लक्षण नहीं है, यह दिखाता है कि साधना में हमने कोई प्रगति नहीं की है|
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(५) हमारे में कितनी जागरूकता और संवेदनशीलता है, इस से भी हम स्वयं की जाँच कर सकते हैं| धीरे हमारी इच्छाएँ भी कम होते होते समाप्त हो जाती हैं| बार बार इच्छाओं का जागृत होना भी हमारी अवनति है|
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(६) हम जीवन में दुःखी हैं तो यह हमारी अवनति की सबसे बड़ी निशानी है| दुःख एक अभिशाप और सबसे बड़ी पीड़ा है| यदि हम दुःखी हैं तो वास्तव में नर्क में हैं| कैसे भी इस स्थिति से बाहर निकलें| भगवान का भक्त साधक कभी दुःखी नहीं हो सकता| वह हर हाल में प्रसन्न रहता है|
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उपरोक्त मापदंडों से हम अपनी स्वयं की जांच कर सकते हैं कि हम आध्यात्मिक प्रगति कर रहे हैं या अवनति |
सभी को धन्यवाद और नमन !

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
१ अगस्त २०१७.