Tuesday 27 December 2016

नव वर्ष .....

नव वर्ष .....
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वैसे तो हर दिन ही नववर्ष है, पर हर दिन ही क्यों हर पल भी नूतन वर्ष है| जो बीत गया सो बीत गया पर आने वाला हर पल बीत चुके पल से अधिक सार्थक हो ..... यही नव वर्ष का संकल्प और अभिनन्दन हो|
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हमारा एकमात्र लक्ष्य है ..... परमात्मा की प्राप्ति| हम कैसे शरणागत हों व कैसे प्रभु को समर्पित/उपलब्ध हों ..... यही हमारी एकमात्र समस्या है| बाकि सब समस्याएँ तो परमात्मा की हैं|
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यदि हमारा शिव-संकल्प दृढ़ हो तो प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य है| दृढ़ शिव-संकल्प हो तो सृष्टि की कोई भी शक्ति लक्ष्य तक पहुँचने से नहीं रोक सकती|
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सब तरह के नकारात्मक विचारों और भय से मुक्त होने की साधना करो| श्रुति भगवती जब कहती है कि हम परमात्मा के अंश और अमृतपुत्र हैं, तो परमात्मा की शक्ति भी हमारे भीतर निहित है| उस शक्ति का आवाहन कर अग्रसर हो जाओ साधना पथ पर| मार्गदर्शन और रक्षा करने के लिए प्रभु वचनबद्ध हैं|
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हमारे में लाख कमियाँ हैं पर उनका चिंतन ही मत करो| उनके प्रति कोई प्रतिक्रिया ही मत करो| परमात्मा की दिव्य उपस्थिति में वे सब कमियाँ भाग जायेंगी| कमलिनी कुलवल्लभ भगवान भुवनभास्कर जब अपने पथ पर अग्रसर होते हैं तो मार्ग में कहीं भी अन्धकार नहीं मिलता| वैसे ही जब आत्मसूर्य की ज्योति जागृत होगी तब अंतस का अन्धकार कहीं भी अवशिष्ट नहीं रहेगा|
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हमारी साधना समष्टि के कल्याण के लिए है क्योंकि अपने चैतन्य की गहराई में हम समष्टि के साथ एक हैं| जब हम अपना चिंतन करें तब साथ साथ दूसरों का भी चिंतन करें| मान लो किसी को भूत-प्रेत (बुराई) ने पकड रखा है तो आवश्यकता उसे उस प्रेतबाधा से मुक्त करने की है, न कि उसकी निंदा करने की या उसे मारने की| संसार को समय के प्रभाव से एक तरह के भूत-प्रेत ने पकड रखा है| निंदा करने से वह भूत नहीं भागेगा| उसके लिए तो उपाय करना होगा| आज भारत को कई भूत-प्रेतों (बुराइयों) ने पकड रखा है| उनसे देश को मुक्त कराने के लिए हमें एक ब्रह्मतेज की आवश्यकता है जो अनेक लोगों की साधना से प्रकट होगा| उसके प्रभाव से ही, ईश्वर की शक्ति से संयुक्त होकर ही हम कुछ प्रभावी और सार्थक कार्य कर सकते हैं| यही सबसे बड़ी सेवा होगी|
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अतः हर नूतन वर्ष का अभिनन्दन हम प्रभु की साधना द्वारा ही करें| जितना गहन ध्यान हम प्रभु का कर सकते हैं उतना करें और हर नए दिन हमारी साधना, हमारा ध्यान पिछले दिन से अधिक हो| यही हमारा नववर्ष का संकल्प हो|
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शराब पीकर, अभक्ष्य भक्षण कर, उन्मुक्त होकर नाच गाकर नववर्ष मनाने की परंपरा विजातीय है| उससे एक झूठी तृप्ति निज अहंकार को होती है पर उसका दुष्प्रभाव निज चेतना पर बहुत बुरा होता है| अपने साहस को जगाकर इस तरह की बुराई से बचो|
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हर नव वर्ष को प्रभु की चेतना में मनाओ| सदा ऐसे लोगों का संग करो जिनसे आपको सद्प्रेरणा मिलती हो| अधोगामी प्रवृति के लोगों से दूर रहो| यदि अच्छे लोगों का साथ नहीं मिलता है तो परमात्मा का साथ करो| वे तो सदा हमारे चैतन्य में हैं| परमात्मा की अनुभूति ध्यान साधना में सदा निश्चित रूप से होती है| ध्यान की गहराई में उतरो| सारे गुण अपने आप खिंचे चले आयेंगे|
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हमारे जीवन के भीतर और बाहर भगवान् की उपस्थिति निरंतर है| जैसे रेडियो को ट्यून करने पर ही चाहे हुए रेडियो स्टेशन की ध्वनी सुनती है वैसे ही सीधे होकर भ्रूमध्य में ध्यान करने से परमात्मा की उपस्थिति निश्चित रूप से होती है| एक पानी की बोतल को बंद कर यदि हम समुद्र में फेंक देते हैं तो बोतल का पानी समुद्र के पानी से नहीं मिल पाता | यदि ढक्कन को खोल देंगे तो बोतल का पानी समुद्र में मिल जाएगा| वैसे हमारे ऊपर से जब अज्ञान का आवरण हट जाएगा तो हम तत्क्षण परमात्मा के समक्ष होंगे| उस अज्ञान के आवरण को हटाने के लिए हमें भगवान् की शरणागत होना पडेगा तभी हम उन्हें उपलब्ध/समर्पित हो पायेंगे|
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प्रभु की अनंतता हमारा घर है| इस शरीर रुपी धर्मशाला में हम कुछ समय के लिए ही हैं| एक दिन सब कुछ छोडकर अनंत में चल देना होगा तब परमात्मा ही हमारे साथ होंगे| उनका साथ शाश्वत है| वे ही हमारे शाश्वत मित्र हैं| हर नववर्ष में उनसे मित्रता कर उनके साथ ही हम नववर्ष मनाएंगे|
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हर नववर्ष पर संकल्प करो की हम प्रभु के साथ हैं और हम सदा उनके साथ रहेंगे| यही नववर्ष के उत्सव की सार्थकता होगी|
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आप सब के ह्रदय में स्थित परमात्मा को प्रणाम| आप सब मेरी ही निजात्माएँ हैं| मेरे ह्रदय का सम्पूर्ण प्यार आपको अर्पित है| आप सब के जीवन का हर क्षण मंगलमय हो| पुनश्चः शुभ कामनाएँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

सुखी कौन ? .....

सुखी कौन ? .....
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जो प्रभु से सब के कल्याण की प्रार्थना करता है, जो सब को सुखी और निरामय देखना चाहता है, सिर्फ वही सुखी है| प्रभु की सब संतानें यदि सुखी हों तभी हम सुखी हो सकते हैं, अन्यथा नहीं|

सुखी होना एक मानसिक अवस्था है, कोई उपलब्धि नहीं| सुखी होना एक यात्रा है, गंतव्य नहीं| सुखी होना वर्तमान में है, भविष्य में नहीं| सुखी होना एक निर्णय है, परिस्थिती नहीं| सुखी होना स्वयं में स्थित होना है, दिखावे में नहीं|
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संसार को हम स्वयं को बदल कर और स्वयं के दृढ़ संकल्प से ही बदल सकते हैं, अन्यथा नहीं| किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखें और स्वयं का सर्वश्रेष्ठ करें|
 

सब से बड़ा कार्य जो कोई मेरी दृष्टी में कर सकता है वह है कि हम निरंतर प्रभु को प्रेम करें और उन्हीं को समर्पित होने की निरंतर साधना करें| इससे सब का कल्याण होगा|

सभी को शुभ कामनाएँ और सप्रेम नमन ! ॐ ॐ ॐ ||

क्या पाठ्य पुस्तकों में लिखा हुआ सच है ? .....

क्या पाठ्य पुस्तकों में लिखा हुआ सच है ? .....
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पाठ्य पुस्तकों में जो इतिहास पढ़ा था वह अब सारा अविश्वसनीय और गलत सिद्ध हो रहा है| प्रश्न यह है कि सत्य क्या है?
भारत का इतिहास तो भारत के शत्रुओं ने ही लिखा है| अंग्रेजों ने व उनके मानस पुत्रों ने जो इतिहास लिखा वह तो भारतीयों में हीन भावना भरने के लिए ही लिखा था| अपने स्वयं के कुकृत्यों को तो उन्होंने छिपा ही दिया पर भारत के गौरव को तो बिलकुल ही छिपा दिया गया है|
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भारत की तो छोडिये यूरोप और अमेरिका के बारे में भी जो कुछ लिखा है वह भी दुराग्रहग्रस्त है| अपने स्वयं के द्वारा किये गए नरसंहारों को और भारत में हुए नरसंहारों को बिलकुल छिपा दिया गया है|
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इतिहास में पढ़ा था कि कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की| पर जब कोलंबस वहाँ पहुँचा तब वहाँ की जनसंख्या दस करोड़ के लगभग थी, वह कहाँ से आ गयी? अमेरिका तो पहिले से ही था विश्व की एक तिहाई जनसंख्या के साथ| तब क्या खोज की उसने? अब कह रहे है कि कोलम्बस से पांच सौ वर्ष पूर्व ही लीफ एरिक्सन नाम का योरोपियन वहां पहुंचा था|
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ऐसे ही 25 दिसंबर को जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ इसका कोई प्रमाण नहीं है| सन 1836 ई. तक तो अमेरिका में ही 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने पर प्रतिबन्ध था क्योंकी इसे एक pagan परम्परा माना जाता था|
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रोम के सम्राट कोंसटेंटाइन दी ग्रेट ने ही यह तय किया था कि जीसस का जन्म 25 दिसम्बर को हुआ| उपरोक्त रोमन सम्राट एक सूर्योपासक था, ईसाई नहीं| उस जमाने में सबसे छोटा दिन 24 दिसंबर होता था (अब 22 दिसंबर)| 25 दिसंबर से दिन बड़ा होने लगता था अतः उसे जीसस का जन्मदिन उसने घोषित कर दिया|
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उसने ईसाईयत का उपयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया| जब वह मर रहा था तब पादरियों ने उस असहाय का बलात् बापतिस्मा कर दिया| वर्त्तमान बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट भी उसी के द्वारा संपादित हुए थे| जीसस के जीवन का असली घटनाक्रम भी छिपा दिया गया है|
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इतिहास में हमें यह कभी नहीं बताया गया कि कोंकण के एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मा विश्वनाथ बालाजी बाजीराव तत्कालीन भारत का महानतम सेनापति था| उसने चालीस से पचास के आसपास युद्ध किये पर कभी पराजय का मुंह नहीं देखा| उसकी असमय मृत्यु नहीं होती तो वह भारत का सम्राट होता| उससे पूर्व हुए हेमचन्द्र विक्रमादित्य जैसे वीरों को भी भारत के इतिहासकारों ने छिपा दिया| विजयनगर साम्राज्य के बारे में तो कुछ नहीं पढ़ाया जाता|
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अब किस पर विश्वास करें, किस पर नहीं, कुछ कह नहीं सकते| कभी न कभी तो भारत का सही इतिहास भी सामने आयेगा ही| असत्य और अन्धकार भी कभी न कभी दूर अवश्य होगा|

जय जननी जय भारत !

सभी लोक भाषाओँ में दिया संतों का ज्ञान .....

पूरे भारतवर्ष में सभी सम्प्रदायों के संतों ने सरलतम लोकभाषाओं में कम से कम शब्दों में कई बार अत्यंत गूढ़ बातें कहीं हैं| जब हरिकृपा से कभी कभी उनका अर्थ समझ में आता है तब हतप्रभ और नतमस्तक हो जाता हूँ|
लोग साहित्यिक दृष्टी से तो उनका अध्ययन करते हैं पर आध्यात्मिक दृष्टी से नहीं|

कई संतों की वाणियों में जब मैं अजपाजप, चक्रभेद, अनाहतनाद, स्वरयोग और भक्ति के बारे में पढता हूँ तो उनके अद्भुत अनुभूत ज्ञान के आगे नतमस्तक हो जाता हूँ|
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धन्य है भारतभूमि जहाँ संत जन्म लेते हैं| संतों के त्याग और तपस्या से ही हमारा धर्म, संस्कृति और राष्ट्र जीवित है| भारत का उद्धार भी उनकी अध्यात्मिक शक्ति ही करेगी|
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ॐ ॐ ॐ ||

साधना में कर्ताभाव से मुक्त रहें .....

अपनी व्यक्तिगत साधना/उपासना के पश्चात उससे प्राप्त आनंद में तो रहें पर कर्ताभाव को बिलकुल भी आस-पास न आने दें| देह और मन की चेतना से ऊपर उठें|

हम ध्यान की अनुभूतियों से ऊपर हैं, मानसिक रूप से जो भी अनुभूत होता है वह हम नहीं है| एकमात्र कर्ता परमात्मा है, अतः किसी भी तरह का अभिमान या दंभ हम में नहीं आना चाहिए| सिर्फ परमात्मा की चेतना में रहें| जो हैं सो परमात्मा ही हैं, हम तो हैं ही नहीं| वे ही कर्ता हैं और वे ही भोक्ता हैं|

किसी भी विभूति की कामना न हो और न ही तुरीयावस्था और तुरीयातीत आदि अवस्थाओं का चिंतन हो| साध्य साधना और साधक, दृष्टी दृश्य और दृष्टा भी वे ही हैं|

पूर्ण समर्पण, पूर्ण समर्पण और पूर्ण समर्पण ...... बस यही साधना का ध्येय है| इसमें कुछ भी प्राप्त करने को नहीं है, सिर्फ और सिर्फ समर्पण ही है| यह देह, मन, बुद्धि आदि सब कुछ, यहाँ तक कि साधन भी उसी का है| सब कामनाएँ विसर्जित हों|

हे परमशिव कृपा करो | हमारा पूर्ण समर्पण स्वीकार करो |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ

आज के इस युग में सद्गृहस्थ ही अधिक सकारात्मक कार्य कर सकते हैं ....

आज के इस युग में सद्गृहस्थ ही अधिक सकारात्मक कार्य कर सकते हैं ....
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वर्तमान समय में जो सज्जन हैं उनकी नियति में कष्ट पाना ही अधिक लिखा है| पर इससे उनको विचलित नहीं होना चाहिए| दुर्जन अधिक सुखी दिखाई दे रहे हैं पर वे भीतर से खोखले हैं| कष्ट पाकर भी सज्जनों को विचलित नहीं होना चाहिए क्योंकी यह आवश्यक नहीं है कि जो दिखाई दे रहा है वह सत्य ही है|
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किसी भी परिस्थिति में अपना सदाचरण नहीं छोड़ना चाहिए| हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं ..... महत्व सिर्फ इसी का है| नश्वर मनुष्य क्या सोचते हैं इसका अधिक महत्व नहीं है|
किसी भी व्यक्ति का आचरण और विचार देखकर ही यह तय करें कि वह कैसा है| किसी की वेश-भूषा और ऊंची ऊंची बातों से घोखा न खाएँ|
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एक बार एक शराब की दूकान के बाहर कुछ साधू वेशधारी पंक्तिबद्ध खड़े थे| यह देखकर मुझे बहुत पीड़ा हुई| पता लगाया तो ज्ञात हुआ उनकी घर-गृहस्थी भी थी| दिन में ये लोग साधू बनकर भीख मांगते और रात में उन पैसों से जमकर शराब पीते और चोरी भी करते| किसी ने साधू का वेश धारण कर रखा है इसका अर्थ यह नहीं है कि वह साधू ही है|
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विदेशी जासूस भी भारत में सदा साधू के वेश में रहे और देश का बहुत अहित किया| मध्य एशिया,मध्यपूर्व एशिया और पश्चिम एशिया से आये लुटेरे आक्रमणकारी अपने आक्रमण से पूर्व सदा अपने तथाकथित संतों को पहिले भेजते थे| वे यहाँ आकर आक्रमण की भुमिका बनाकर मार्गदर्शक का कार्य ही नही, आतताइयों के के लिए खाने पीने की व्यवस्था भी करते थे| पुर्तगाली और अँगरेज़ भी अपनी आक्रमणों से पूर्व जासूस पादरियों की सेना भेजते थे|
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भारत के जितने भी साधू संत पश्चिम में गए उनके साथ सदा अँगरेज़ जासूस साधू वेश में रहते थे| स्वामी रामतीर्थ ने लिखा है कि जब वे हिमालय की एक एकांत कन्दरा में तपस्या करते थे तो वहाँ भी हर समय एक अँगरेज़ जासूस साधू वेश में उनकी निगाह रखता था| एक बार वह अँगरेज़ साधू वेशधारी जासूस भूखा बैठा था तो स्वामी रामतीर्थ को दया आई और उन्होंने अपने मित्र सरदार पूरण सिंह को बोलकर उसके लिए भोजन की व्यवस्था करवाई और उस अँगरेज़ को बताया कि उनकी विश्व यात्रा के समय भी वह एक पादरी के वेश में सदा उनके साथ रहता था| उस अँगरेज़ जासूस को बड़ी ग्लानि हुई और वह अपनी नौकरी छोड़कर बापस अपने देश चला गया|
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वर्तमान समय में भी स्थिति ऐसी ही है किसी के बारे में भी अपने विचार उसके आचरण को देखकर ही बनाएं, उसकी मीठी बातों और वेशभूषा से नहीं| जो लोग साधू बने और जिन्होंने अपनी साधना नहीं की वे मात्र एक भिखारी ही बन पाए| धूने की लकड़ियों के लिए भी कई बार साधुओं को बुरी तरह लड़ते देखा है|
एक बार दो साधुओं के मध्य में मैं बैठ गया तो वे मुझसे लड़ पड़े और कहने लगे कि साधुओं की बराबरी में क्यों बैठे हो? नीचे दूर बैठो|
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संत अपने आचरण से और अपनी गरिमा से ही पहिचाना जाता है| श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ और तपस्वी ही वास्तविक संत हैं|
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इस युग में आध्यात्म जगत में भी सद्गृहस्थों ने बहुत सकारात्माक कार्य किये हैं और कर रहे हैं| गृहस्थ अपने धर्म को निभाएं, और परमात्मा को जीवन का केंद्र बिंदु बनाएं| आप सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, शाश्वत आत्मा है, परमात्मा के अंश हैं, और परमात्मा को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| कोई भी जन्म से पापी नहीं है| परमात्मा को पाने का मार्ग परमप्रेम है| आप सब के ह्रदय में परमात्मा का परम प्रेम जागृत हो, और जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो| आप सब को शुभ कामनाएँ और आपमें हृदयस्थ प्रभु को नमन|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

परमहंस पं.गणेश नारायण शर्मा, बावलिया बाबा .....

शेखावाटी (राजस्थान) के वचनसिद्ध महात्मा परमहंस पंडित गणेश नारायण जी शर्मा बावलिया बाबा एक परमसिद्ध अघोरी शिव उपासक थे| उनकी वाणी कभी मिथ्या नहीं होती थी| वे जो भी कहते वह सत्य हो जाता था|
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पंडित जी के भक्तों में पिलानी के सेठ श्री जुगल किशोर जी बिड़ला और खेतड़ी नरेश महाराजा अजित सिंह जी शेखावत (जिन्होंने स्वामी विवेकानंद को अमेरिका भेजा) आदि थे| बिड़ला परिवार में आज भी मुख्य पूजा पंडित जी की ही होती है| उनके आशीर्वाद से ही बिड़ला परिवार इतना धनाढ्य बना|
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पंडित जी का जन्म बुगाला गाँव में हुआ था, वे अधिकाशतः नवलगढ़ में ही रहे| उनकी साधना भूमि चौरासिया मंदिर चिड़ावा थी जिसे वे शिवभूमि बना गए|
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किसी भी व्यक्ति को देखते ही उसका भूत भविष्य और वर्तमान उनके सामने आ जाता था| किसी से कभी कुछ स्वीकार नहीं करते थे| एक बार महाराजा अजित सिंह ने उनसे कुछ स्वीकार करने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि कुछ केले ला दो| पूरे बाज़ार में और आसपास ढूंढ लिया पर कहीं भी केले नहीं मिले| फिर कहा चलो एक पैसे का ताम्बे का छेद वाला एक सिक्का दे दो| वैसा सिक्का कहीं भी किसी के पास भी नहीं मिला| कोई कुछ खाने का सामान लाता तो वे बाहर खेल रहे बच्चों में बांटने का आदेश दे देते थे|

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ऐसे परम संत को सादर नमन !

संयोग और वियोग .....

संयोग और वियोग .....
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प्रत्येक दिवस की मृत्यु सायंकाल में हो जाती है, और रात्री का जन्म होता है|
प्रत्येक रात्रि की मृत्यु प्रातःकाल में हो जाती है, और दिवस का जन्म होता है|
यह सनातन कालचक्र काल की गति है जिसे कोई नहीं रोक सकता|
इस सीमित जीवन को ही हम पूर्ण जीवन मान लेते हैं, यही विडम्बना है|
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संयोग और वियोग भी सदा ऐसे ही चलते रहेंगे| यही जीवन है| जिसने इसे समझ लिया वह मुक्त हो गया, और जिसने नहीं समझा वह बंधन में है|
फूल खिलता है मुरझाने के लिए, और मुरझाता है नया जन्म लेने के लिए|
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इस सीमित चेतना से परे एक और भी विराट चेतना है, जिससे जुड़ कर ही हम इसका रहस्य समझ पाते हैं|
हे परमशिव, कृपा करो | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

ईसाई मतावलंबियों को क्रिसमस की शुभ कामनाएँ .....

उन सभी मित्रों को जो ईसाई मतावलंबी हैं या ईसा मसीह में आस्था रखते हैं को क्रिसमस की शुभ कामनाएँ| मैं आप सब से यह विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ कि .....

>>> आप लोग अपने मत में दृढ़ आस्था रखो पर हमारे गरीब और लाचार हिंदुओं का धर्मांतरण यानि मत परिवर्तन मत करो, व हमारे साधू-संतों को प्रताड़ित मत करो| आप लोग हमारे सनातन धर्म की निंदा और हम पर झूठे दोषारोपण मत करो| आप लोगों ने भारतवर्ष और हम हिन्दुओं को इतना अधिक बदनाम किया है और हमारे ऊपर इतना अत्याचार किया है कि यदि हम पूरे विश्व का कीचड भी आपके ऊपर फेंकें तो वह भी कम पडेगा|
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आपको यह बताना चाहता हूँ कि .....
क्राइस्ट एक चेतना है ... "कृष्णचैतन्य"| आप उस चेतना में रहो|
ईश्वर को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है|
आप भी ईश्वर की संतान हो|
आप जन्म से पापी नहीं हो| आप अमृतपुत्र हैं| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है|
अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो और अपने पड़ोसी को भी उतना ही प्यार करो|
सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
ॐ ॐ ॐ ||

"मन" महाराज को धन्यवाद .....

"मन" महाराज को धन्यवाद .....
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आजकल मन अन्यत्र सब स्थानों से हट कर सिर्फ परमात्मा में ही लगा रहता है| इसकी रूचि अब अन्य कहीं भी नहीं रही है| पहिले यह बहुत चंचल और अशांत रहता था| पर अब बहुत कुछ सुधर गया है| अतः यह अब धन्यवाद का पात्र है|
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पीड़ा थोड़ी-बहुत सिर्फ "शरीर" महाराज से ही है जो रुग्ण होकर कई बार अनेक कष्ट देता है| यह भी कभी ना कभी तो सुधरेगा ही, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में|
ॐ ॐ ॐ ||

हे सर्वव्यापी असीम परम चैतन्य परमात्मा .......

हे सर्वव्यापी असीम परम चैतन्य परमात्मा, तुम ही मेरे माता-पिता और सर्वस्व हो|
तुम्हारी कोई भी स्तुति नहीं की जा सकती क्योंकि तुम सब शब्दों से परे हो| सब शब्द तुम्हें सीमाओं में बाँधते है| तुम तो असीम हो| सारे शब्द भी तुम्हीं हो और सारे आकार भी तुम्हीं हो|
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दशों दिशाएँ तुम्हारे वस्त्र हैं, सम्पूर्ण सृष्टि ..... सारी आकाश गंगाएँ, प्रत्येक अणु और प्रत्येक ऊर्जाकण तुम्हीं हो| सम्पूर्ण अस्तित्व तुम्ही हो| तुम सच्चिदानंद हो| तुम्हारी अनुभूती आनंद रूप में क्या सिर्फ समाधि में ही होती है? स्वयं को मुझमें व्यक्त करो|
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मैं तुम्हारे साथ एक हूँ, मैं तुम्हारा पूर्ण पुत्र हूँ, तुम स्वयं को मुझमें व्यक्त कर रहे हो|
हे परम शिव परमात्मा, मेरा आत्मतत्व तुम्हारा मंदिर है, मेरा हृदय तुम्हारा घर है, जहाँ तुम्हारा स्थायी निवास है| अब तुम मुझसे कभी पृथक नहीं हो सकते| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ |

हरियाणा की खाप पंचायतों द्वारा तैमूर लंग का प्रतिकार ......

हरियाणा की खाप पंचायतों द्वारा तैमूर लंग का प्रतिकार ......
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आजकल "तैमूर लंग" नाम के एक दुर्दांत मंगोल हत्यारे के बारे में काफी कुछ लिखा जा रहा है|
हरियाणा की उन खाप पंचायतों के शूरवीरों के बारे में भी लिखा जाना चाहिए जिन्होनें संगठित होकर इस दुर्दान्त आततायी का सामना किया, उसकी आधी से अधिक सेना को मार डाला और उस पर मर्मान्तक प्रहार कर भारत से भागने को विवश किया|
भारत ने सदा विदेशी लुटेरे आतताइयों का प्रतिकार किया है जिसे भारत के इतिहासकारों ने हमसे छिपा कर रखा| भारत का इतिहास भारत के शत्रुओं (अँगरेज़ व मार्क्सवादियों) ने लिखा है|
तैमूर लंग ने मार्च सन् 1398 ई० में भारत पर 92000 घुड़सवारों की सेना के साथ तूफानी आक्रमण किया| सार्वजनिक कत्लेआम, लूट-खसोट और अत्याचारों से उसने पूरे भारत को आतंकित कर दिया| उसका लक्ष्य हरिद्वार का विध्वंश था| हरियाणा की खाप पंचायतों ने संगठित होकर उसका सामना करने का निर्णय लिया| राजा देवपाल जाट और हरबीर सिंह गुलिया के नेतृत्व में इन्होनें स्वयं को संगठित किया|
हरबीरसिंह गुलिया ने अपनी खाप पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों पर हमला बोला और शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह बच तो गया पर उसी घाव से बापस समरकंद उज्बेकिस्तान जाकर मर गया|
पंचायती सेना में लगभग अस्सी हज़ार पुरुष और चालीस हज़ार महिलाओं ने शस्त्र उठाये| इस सेना को एकत्र करने में धर्मपालदेव जाट योद्धा जिसकी आयु 95 वर्ष की थी, ने बड़ा सहयोग दिया था| उसने घोड़े पर चढ़कर दिन रात दूर-दूर तक जाकर नर-नारियों को उत्साहित करके इस सेना को एकत्र किया| उसने तथा उसके भाई करणपाल ने इस सेना के लिए अन्न, धन तथा वस्त्र आदि का प्रबन्ध किया|
वीर योद्धा जोगराजसिंह गुर्जर को प्रधान सेनापति बनाया गया| पाँच महिला वीरांगनाएं सेनापती भी चुनी गईं जिनके नाम थे रामप्यारी गुर्जर, हरदेई जाट, देवीकौर राजपूत, चन्द्रो ब्राह्मण और रामदेई त्यागी|
धूला बालमीकी और हरबीर गुलिया उप प्रधान सेनापति चुने गए|
विभिन्न जातियों के बीस सहायक सेनापति चुने गये|
तैमूरी सेना को पंचायती सेना ने दम नहीं लेने दिया| दिन भर युद्ध होते रहते थे| रात्रि को जहां तैमूरी सेना ठहरती थी वहीं पर पंचायती सेना धावा बोलकर उनको उखाड़ देती थीं| वीर देवियां अपने सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री बड़े उत्साह से स्थान-स्थान पर पहुंचाती थीं| शत्रु की रसद को ये वीरांगनाएं छापा मारकर लूटतीं थीं| आपसी मिलाप रखवाने तथा सूचना पहुंचाने के लिए 500 घुड़सवार अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे| रसद न पहुंचने से तैमूरी सेना भूखी मरने लगी| उसके मार्ग में जो गांव आता उसी को नष्ट करती जाती थी|]
मेरठ से मुज़फ्फरनगर और सहारनपुर के मध्य पंचायती सेना ने तैमूरी सेना पर बड़े भयानक आक्रमण किये| हरिद्वार से पांच कोस पहिले तक तैमूरी सेना मार्ग में आने वाले हर गाँव को जलाती हुई और हर आदमी को मारते हुए पहुँच गयी थी|
सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर ने अपने 22000 मल्ल योद्धाओं के साथ शत्रु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को काट डाला|
हरद्वार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्षादल पर बाल्मीकि उपप्रधान सेनापति धूला धाड़ी ने अपने 190 सैनिकों के साथ धावा बोला और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ|
प्रधान सेनापति जोगराजसिंह ने अपने वीर योद्धाओं के साथ तैमूरी सेना पर भयंकर धावा करके उसे अम्बाला की ओर भागने पर मजबूर कर दिया|
तैमूरी सेना हरिद्वार तक नहीं पहुँच सकी और भाग खड़ी हुई|
सेनापति दुर्जनपाल अहीर मेरठ युद्ध में अपने 200 वीर सैनिकों के साथ वीर गति को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में तैमूर के ढ़ाई लाख सैनिकों में से खाप पंचायती वीर योद्धाओं ने लगभग एक लाख साठ हज़ार को मौत के घाट उतार कर तैमूर की आशाओं पर पानी फेर दिया था| पंचायती सेना के लगभग पैंतीस हज़ार वीर-वीरांगनाएं इस युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए| इस युद्ध के अभिलेख खाप पंचायतों के भाटों ने लिखे जो अभी तक सुरक्षित हैं|
(साभार : श्री अक्षय त्यागी रासना के मूल लेख से संकलित).

Sunday 25 December 2016

स्वामी विवेकानंद का संकल्प दिवस ....

December 25, 2012.
 

आज स्वामी विवेकानंद के संकल्प दिवस पर मैं सभी मित्रों का अभिनन्दन करता हूँ| आज ही के दिन एक महान घटना हुई थी जिससे भारतवर्ष के पुनरोभ्युदय का सूत्रपात हुआ था|

२५ दिसंबर १८९२ का दिन था| स्वामी विवेकानंद भारत माता की तत्कालीन दशा से अत्यधिक क्षुब्ध और व्यथित थे| उन्हें बहुत पीड़ा हो रही थी| ईश्वर से बस यही जानना चाहते कि पुण्यभूमि भारत का पुनः उत्थान कैसे हो| उस समय वे तमिलनाडु के दक्षिणी छोर पर कन्याकुमारी में थे| अभीप्सा की प्रचंड अग्नि उनके ह्रदय में जल रही थी| उनसे और रहा नहीं गया और उन्होंने समुद्र में छलांग लगा ली और प्राणों की बाजी लगाकर उथल पुथल भरे समुद्र की लहरों में तैरते हुए दूर एक बड़े शिलाखंड पर चढ़ गए| उनके ह्रदय में बस एक ही भाव था कि भारत का उत्थान कैसे हो|
 

उस शिलाखंड पर तीन दिन और तीन रात वे समाधिस्थ रहे| उसके बाद उन्हें ईश्वर से मार्गदर्शन मिला और उनका कार्य आरम्भ हुआ|
 

उस समय भारत के लोगों में इतनी हीन भावना व्याप्त थी कि लोग कहते कि चाहे मुझे गधा कह दो पर हिंदू मत कहो| उन्होंने ही सबको गर्व से हिंदू कहना सिखाया| उन्हीं का प्रयास और भारत के मनीषियों का पुण्यप्रताप था कि आज हम गर्व से सिर ऊँचा कर के बैठे हैं|
 

आज फिर हमारे धर्म और राष्ट्र पर संकट के बादल छाये हुए हैं| उसकी रक्षा करने के लिये हमारे युवकों में वो ही उत्साह, तड़प और अभीप्सा चाहिए| ईश्वर से जुड़कर ही हम कुछ अच्छा कार्य कर सकते हैं| मैं सभी से प्रार्थना करता हूँ कि सनातन हिंदू धर्म की रक्षा के लिये ईश्वर को जीवन का केंद्र बिंदु बनाएँ| आगे का मार्ग ईश्वर स्वयं दिखाएँगे|
 

वंदे मातरम ! भारत माता की जय ! सनातन हिंदू धर्म की जय !

Saturday 24 December 2016

क्रिसमस पर पठनीय एक विशेष लेख .....

क्रिसमस पर पठनीय एक विशेष लेख .....
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आज से दो हज़ार वर्ष पूर्व कल्पना कीजिये कि विश्व में कितना अज्ञान और अन्धकार था| वह एक ऐसा समय था जब भारतवर्ष में ही वैदिक धर्म का ह्रास हो गया था तब भारत से बाहर तो कितना अज्ञान रहा होगा ! वैदिक मत के स्थान पर बौद्ध मत प्रचलित हो गया था, जिसमें भी अनेक विकृतियाँ आ रही थीं| भारतवर्ष में वामाचार का प्रचलन बढ़ गया था और अधिकाँश लोगों के लिए इन्द्रीय सुखों की प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य रह गयी थी|
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उस समय के फिलिस्तीन की कल्पना कीजिये जो वास्तव में एक परम अज्ञान और घोर अन्धकार का केंद्र था| वहाँ कोई पढाई-लिखाई नहीं थी| कहीं भी आने जाने के लिए लोग गधे की सवारी करते थे| लोग रोमन साम्राज्य के दास थे| रोमन साम्राज्य का एकमात्र ध्येय भोग-विलास और इन्द्रीय सुखों की प्राप्ती था|
आप वर्त्तमान में ही फिलिस्तीन की स्थिति देख लीजिये| जो लोग उस क्षेत्र में गए हैं वे कह सकते हैं, और मैं भी मेरे अनुभव से कह रहा हूँ कि वह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ के बारे में कुछ भी प्रशंसनीय नहीं है| यही हालत आज पूरे अरब विश्व की है|
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उस समय एक ईश्वरीय चेतना ने वहाँ फिलिस्तीन के बैथलहम में जन्म लिया जिसे समझने वाला वहाँ कोई नहीं था| वह चेतना भारत में आकर पल्लवित हुई और बापस अपने देश फिलिस्तीन गयी जहाँ उसे सूली पर चढ़ा दिया गया| बच कर वह चेतना भारत आई और यहीं की होकर रह गयी|
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उस दिव्य चेतना के नाम पर एक मत चला जिसने पूरे विश्व में क्रूरतम हिंसा और अत्याचार किया| भारत में भी सबसे अधिक अति घोर अत्याचार और आतंक उस मत ने फैलाया और अभी भी फैला रहा है|
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देखा जाए तो उनके वर्त्तमान चर्चवादी मत और उनके मध्य कोई सम्बन्ध नहीं है| उन की मूल शिक्षाएं काल चक्र में लुप्त हो गयी हैं|
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मेरे सभी मित्रों को जो ईसाई मतावलंबी हैं या ईसा मसीह में आस्था रखते हैं उनको यह कहना चाहता हूँ कि .....

>>> आप लोग अपने मत में आस्था रखो पर पर हमारे गरीब और लाचार हिंदुओं का धर्मांतरण यानि मत परिवर्तन मत करो, व हमारे साधू-संतों को प्रताड़ित मत करो|
आप लोग हमारे सनातन धर्म की निंदा और हम पर झूठे दोषारोपण मत करो| आप लोगों ने भारतवर्ष और हम हिन्दुओं को इतना अधिक बदनाम किया है और हमारे ऊपर इतना अत्याचार किया है कि यदि हम पूरे विश्व का कीचड भी तुम्हारे ऊपर फेंकें तो वह भी कम पडेगा|
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उन सब को क्रिसमस की शुभ कामनाएँ| उनको मैं यह निवेदन करता हूँ .....
क्राइस्ट एक चेतना है -- कृष्ण चेतना| आप उस चेतना में रहो| ईश्वर को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है|
आप भी ईश्वर की संतान हो|
आप जन्म से पापी नहीं हो| आप अमृतपुत्र हैं| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है|
अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो, सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
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नववर्ष के बारे में ....
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काल अनन्त है, आध्यात्मिक मानव के लिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है .....
जनवरी १, नववर्ष नहीं है।
कृपया मुझे ग्रेगोरियन पंचांग के नववर्ष १ जनवरी को नव वर्ष की शुभ कामनाएँ ना भेजें| मैं चैत्र प्रतिपदा को ही नववर्ष मनाता हूँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

काल अनन्त है, आध्यात्मिक मानव के लिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है

काल अनन्त है, आध्यात्मिक मानव के लिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है .....
जनवरी १ नववर्ष नहीं है।
कृपया मुझे ग्रेगोरियन पंचांग के नववर्ष १ जनवरी को नव वर्ष की शुभ कामनाएँ ना भेजें|
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क्रिसमस यानि जीसस क्राइस्ट के जन्मदिवस पर शुभ कामनाएँ स्वीकार्य हैं क्योंकि जीसस क्राइस्ट ने भारत में अध्ययन कर सनातन धर्म की शिक्षाओं का ही फिलिस्तीन में प्रचार प्रसार किया था| उन्होंने अपना देह त्याग भी फिलिस्तीन से भारत आकर भारत में ही किया|
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कालान्तर में उनके नाम पर फैला मत घोर हिन्दू विरोधी हो गया और पूरे विश्व में उनके नाम पर क्रूरतम हिंसा और अत्याचार हुए| वर्तमान में उनके नाम पर फैले हुए मत का उनसे कोई सम्बन्ध नहीं है|
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उनकी मुख्य शिक्षा यह थी कि परमात्मा को पूर्ण ह्रदय से प्रेम करो| सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
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उनकी मूल शिक्षाएँ लुप्त हो गयी हैं|

क्राइस्ट का द्वितीय आगमन (Second Coming of Christ) :-------

क्राइस्ट का द्वितीय आगमन (Second Coming of Christ) :-------
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श्री श्री परमहंस योगानंद को जीसस क्राइस्ट (ईसा मसीह) ने स्वयं पश्चिम में भेजा था ताकि उनकी मूल शिक्षा को उनके अनुयायियों में पुनर्जीवित किया जा सके|
जीसस क्राइस्ट की मूल शिक्षा यह थी कि मनुष्य जन्म से पापी नहीं है, बल्कि परमात्मा की उपस्थिति से युक्त परमात्मा का अमृतपुत्र है|
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जीसस क्राइस्ट ने महावतार बाबाजी से प्रार्थना की थी कि उनकी शिक्षा को उनके अनुयायियों में पुनर्जीवित किया जाए| महावतार बाबाजी की प्रेरणा से मुकुन्दलाल घोष को स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी के पास प्रशिक्षण के लिए भेजा गया| स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी ने मुकुन्दलाल घोष को प्रशिक्षित किया और संन्यास में दीक्षित कर स्वामी योगानंदगिरी का नाम देकर पश्चिम में भेजा| स्वामी योगानंदगिरी तत्पश्चात पूरे विश्व में परमहंस योगानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए|
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स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी का बाबाजी से मिलना इलाहाबाद में कुम्भ के मेले में हुआ था| बाबाजी ने कहा कि पश्चिम में अनेक दिव्यात्माएँ परमात्मा की प्राप्ति के लिए व्याकुल हैं, उनके स्पंदन मेरे पास आ रहे हैं, वे सदा के लिए अन्धकार में नहीं रह सकतीं| उनके मार्गदर्शन के लिए मैं तुम्हारे पास एक बालक को भेजूंगा जिसे प्रशिक्षित कर तुम्हें पश्चिम में भेजना होगा| इस कार्य के लिए जिस बालक का चयन हुआ वह थे मुकुन्दलाल घोष|
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मुकुन्दलाल घोष अपने पूर्व जन्म में हिमालय में एक जीवनमुक्त सिद्ध योगी थे, उससे पूर्व के जन्म में वे इंग्लैंड के सम्राट थे, उससे भी पूर्व के जन्म में वे स्पेन के एक प्रसिद्ध सेनापती थे, और उससे भी पूर्व महाभारत के एक प्रसिद्ध योद्धा थे| जन्म से ही वे जीवन्मुक्त थे और पश्चिम में सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए ही उन्होंने जन्म लिया था| स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी ने उनको वेदान्त, योग आदि दर्शन शास्त्रों में पारंगत किया और जीसस क्राइस्ट द्वारा दी गयी सनातन धर्म की मूल शिक्षा के बारे में भी बताया जिसको पुनर्जीवित करने का दायित्व उन को सौंपा गया था|
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स्वामी योगानंदगिरी का पश्चिम में आगमन असत्य और अन्धकार की शक्तियों के विरुद्ध एक युद्ध था| उनका पश्चिम में आगमन क्राइस्ट का द्वितीय आगमन यानि Second Coming of Christ था| उन्होंने पश्चिमी जगत को वो ही शिक्षाएं दीं जो जीसस क्राइस्ट ने अपने समय में देनी चाहीं थीं|
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सभी श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ | आप सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, शाश्वत आत्मा है, परमात्मा के अंश हैं, और परमात्मा को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| कोई भी जन्म से पापी नहीं है| परमात्मा को पाने का मार्ग .... परमप्रेम है| आप सब के ह्रदय में परमात्मा का परम प्रेम जागृत हो, और जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

इस जीवन को धन्यवाद ! इस संसार को भी धन्यवाद ! .....

इस जीवन को धन्यवाद ! इस संसार को भी धन्यवाद ! .....
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अब जब मैं विगत जीवन का अवलोकन करता हूँ तो पाता हूँ कि इस जीवन को वास्तव में तो परमात्मा ने ही जीया है| मैं तो सदा एक निमित्त मात्र ही था और अब भी हूँ|
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अच्छा या बुरा जैसा भी जो भी जीवन बीता, वह परमात्मा के मन का एक विचार मात्र ही था| जिसने जब भी, जैसा भी व्यवहार मेरे साथ किया वह प्रत्यक्ष रूप से परमात्मा के साथ ही किया| मेरे साथ जिसने भी, जैसे भी, जितने भी जीवन के जितने भी पल बिताए, वे परमात्मा के साथ ही बिताए|
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वैसे ही मेरा भी एकमात्र व्यवहार सिर्फ परमात्मा के साथ ही था| इस जीवन में परमात्मा के सिवा अन्य कुछ भी नहीं था|
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अतः उन सब दिव्यात्माओं को मैं धन्यवाद देता हूँ जो मेरे जीवन में आईं| पता नहीं कितने जीवन जीए हैं, कितनी बार मरे हैं और जन्में हैं, वे सब भी परमात्मा की ही अभिव्यक्तियाँ थीं|
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अतः मैं इस जीवन को धन्यवाद देता हूँ| हे जीवन, तुमने परमात्मा को बहुत अच्छी तरह से जीया है| तुम्हारी हर साँस, हर पल प्रियतम परमात्मा का ही था|
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इस संसार को, इस सृष्टि को भी धन्यवाद देता हूँ जिसने परमात्मा को अपनी समग्रता में व्यक्त किया|
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रात्री के सन्नाटे में जब घर के सब लोग सोए हुए हों तब उठकर चुपचाप शांति से भगवान का ध्यान/जप आदि करें| न तो किसी को बताएँ और न किसी से इस बारे में कोई चर्चा करें| निश्चित रूप से आपको परमात्मा की अनुभूति होगी| किसी भी तरह के वाद-विवाद आदि में न पड़ें| हमारा लक्ष्य वाद-विवाद नहीं है, हमारा लक्ष्य परमात्मा को समर्पण है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

भारतवर्ष में जन्म लेकर भी यदि कोई भगवान की भक्ति ना करे तो वह अभागा है .....

भारतवर्ष में मनुष्य देह में जन्म लेकर भी यदि कोई भगवान की भक्ति ना करे तो वह अभागा है| धिक्कार है ऐसे मनुष्य को|
भगवान के प्रति भक्ति यानि परम प्रेम, समर्पण और समष्टि के कल्याण की अवधारणा भारत की ही देन है| सनातन धर्म का आधार भी यही है|
पहले निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करो, उसके उपकरण बनो, परमात्मा को ही कर्ता बनाओ, फिर जीवन के सारे कार्य श्रेष्ठतम ही होंगे|
परमात्मा को पूर्ण ह्रदय से प्रेम करो| सर्वप्रथम ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
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ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||

मेरी "माँ" सर्वत्र सर्वव्यापी है .....

मेरी "माँ" सर्वत्र सर्वव्यापी है .....
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हे प्रभु की अनंतता ..... सर्वव्यापी ओंकार स्पंदन के रूप में तुम मेरी माता हो|
मैं तुम्हारा पुत्र हूँ| मेरी निरंतर रक्षा करो|
मुझे अपनी पूर्णता की ओर सुरक्षित ले चलो|
हे करुणामयी माँ, तुम्हारी कृपा के बिना मैं एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ सकता|
तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरा आश्रय हो|
तुम्हारे बिना मैं निराश्रय हूँ|
तुम्हारा पूर्ण प्रेम मुझमें व्यक्त हो| मेरी सब बाधाओं को दूर करो|
मेरी चेतना में तुम निरंतर रहो| तुम्हारी ही चेतना मेरी चेतना हो|
मुझे अपने साथ एकाकार करो, मुझे अपनी पूर्णता दो|
इससे कुछ कम पाने की कभी कामना ही न हो|
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हे जगन्माता, मेरा अस्तित्व मात्र ही असत्य और अन्धकार की शक्तियों के विरुद्ध एक युद्ध हो| तुहारे चेतना रूपी प्रकाश से मैं सदा आलोकित रहूँ| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

Friday 23 December 2016

हर व्यक्ति स्वतः ही स्वाभाविक रूप से सनातन धर्मानुयायी हिन्दू है .....

हर व्यक्ति स्वतः ही स्वाभाविक रूप से सनातन धर्मानुयायी हिन्दू है .....
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वह हर व्यक्ति स्वतः ही स्वभाविक रूप से सनातन धर्मानुयायी हिन्दू है जिसकी चेतना ऊर्ध्वमुखी है, जिसके ह्रदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर परम प्रेम भरा पडा है, जो निज जीवन में परमात्मा को उपलब्ध होना चाहता है, जो समष्टि के कल्याण की कामना करता है, व जो सब में परमात्मा को और परमात्मा को सबमें देखता है| 
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ऐसा व्यक्ति चाहे किसी भी मत, पंथ या मज़हब का अनुयायी हो, व विश्व के किसी भी कोने में रहता हो, स्वतः ही हिन्दू हो जाता है क्योंकि हिंदुत्व एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है जो व्यक्ति को परमात्मा की ओर अग्रसर करती है और व्यष्टिगत चेतना को समष्टि के साथ जोड़ती है|
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हिन्दू होने के लिए किसी औपचारिक दीक्षा की आवश्यकता नहीं है| यदि आपको भगवान से अहैतुकी परम प्रेम हो जाता है तो आप अपने आप ही हिन्दू बन जाते हैं|
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सनातन धर्मानुयायी हिन्दू ऐसे लोगों का समूह है जिनकी चेतना ऊर्ध्वमुखी है चाहे वे पृथ्वी के किसी भी भाग में रहते हों|
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मुझे गर्व है कि मैंने उस धरती पर जन्म लिया है जहाँ गंगा, हिमालय और ऐसे व्यक्ति भी हैं जो निरंतर परमात्मा का चिंतन करते हैं|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

निरंतर परमात्मा की चेतना में रहें ......

निरंतर परमात्मा की चेतना में रहें ......
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भ्रूमध्य में परमात्मा की एक बार तो साकार कल्पना करें, फिर उसे समस्त सृष्टि में फैला दें| सारी सृष्टि उन्हीं में समाहित है, और वे सर्वत्र हैं| उनके साथ एक हों, वे हमारे से पृथक नहीं हैं| स्वयं की पृथकता को उनमें समाहित यानि समर्पित कर दें|
उपास्य के सारे गुण उपासक में आने स्वाभाविक हैं|
आगे के अनुभव आप स्वयं प्राप्त करें| यह हर आत्मा की अपनी निजी समस्या और दायित्व है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

Original Sin की अवधारणा सबसे बड़ा झूठ है .....

Original Sin की अवधारणा सबसे बड़ा झूठ है .....
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मैं Original Sin की अवधारणा को नहीं मानता| यह सबसे बड़ा झूठ है जिस पर वर्तमान चर्चवाद टिका है| कोई भी मनुष्य जन्म से पापी नहीं है| हर व्यक्ति परमात्मा का अंश है| परमात्मा को प्राप्त करना हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है| परमात्मा को पाने का एकमात्र मार्ग .... परमप्रेम है|
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परमात्मा की चेतना निरंतर अभ्यास के द्वारा स्वयं के ह्रदय में प्रकट हो| चलते-फिरते, उठते-बैठते, कार्य करते, विश्राम करते, और हर समय हमारी चेतना में एक ही भाव रहे कि भगवान् सर्वदा हमारी दृष्टि में हैं, और हम भगवान की दृष्टि में हैं| हमें मतलब सिर्फ उसी चेतना से है|
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जीवन में धर्म का पालन कर के ही हम धार्मिक बन सकते हैं, स्वयं की व दूसरों की निंदा कर के या गालियाँ देकर नहीं| अपनी मान्यता के विरुद्ध कोई बात सुनते ही हम लोग भड़क जाते हैं, यह कोई धार्मिकता नहीं है|
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जीवन में हमारे आदर्श उच्चतम हों, हमारे आचार-विचार शुद्ध व पवित्र हों| हमारी चेतना परमात्मा के साथ संयुक्त हो और हमें भगवान से भक्ति (परम प्रेम), विवेक और ज्ञान की प्राप्ति हो| जैसे जल की एक बूँद महासागर में मिलकर महासागर बन जाती है वैसे ही हमारा मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार परमात्मा की चेतना से जुड़कर परम शिवमय हो जाए|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

आने वाला समय सम्पूर्ण विश्व में सनातन हिन्दू धर्म के पुनरोत्थान का है ....

आने वाला समय सम्पूर्ण विश्व में सनातन हिन्दू धर्म के पुनरोत्थान का है .....
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पूरे विश्व में प्रबुद्ध वर्ग इस समय जितनी रूचि सनातन धर्म के सत्यों को समझने में ले रहा है ऐसा पिछले पंद्रह सौ वर्षों में तो कभी नहीं हुआ था|
योग, वेदान्त, और भक्ति का खूब प्रचार हो रहा है|
योरोप में ईसाईयत मात्र एक सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था बनकर रह गयी है जो अपने अनुयायियों को सुख, शांति, सुरक्षा व संतोष नहीं दे पा रही है| ईसाई देश इस समय आतंकवाद से त्रस्त हैं| उनके आदर्श ध्वस्त हो रहे हैं|
मुस्लिम देश शिया-सुन्नी विवादों व उद्देश्यहीन आपसी कलह से दुखी हैं|
जहाँ जहाँ साम्यवादी व्यवस्थाएं थीं वे अपने पीछे इतना विनाश छोड़ गयी हैं कि उसकी त्रासदी से लोग अभी तक उबर नहीं पाए हैं|
भारत में भी ये धर्मनिरपेक्षतावाद, समाजवाद, आल्पसंख्यकवाद आदि के नारे खोखले सिद्ध हो रहे हैं| अल्प मात्रा में सही पर धीरे धीरे अनेक लोग पक्काई से आध्यात्म की और आकर्षित हो कर आगे बढ़ रहे हैं| धर्म-विरोधी शक्तियां शनैः शनैः पराभूत हो रही हैं|
आगे आने वाला समय निश्चित रूपसे श्रेष्ठतर होगा| मैं तो इस बारे में आश्वस्त हूँ कि आने वाला समय सनातन हिन्दू धर्म के पुनरोत्थान का होगा|
ॐ ॐ ॐ ||

"जाति हमारी ब्रह्म है ......

"जाति हमारी ब्रह्म है माता पिता है राम| गृह हमारा शुन्य है अनहद में विश्राम|"
कल तक यह बात सत्य थी| अब तो यह भी बहुत पुरानी सी बात हो गयी है|
अब न तो किसी भी तरह की समाधि की कामना है, न ही किसी तरह की तुरियादिवस्था की| बस उनकी उपस्थिति निरंतर बनी रहे| उन की उपस्थिति के समक्ष सब विभूतियाँ बेकार हैं| अब तक की यही सबसे बड़ी उपलब्धी है| पता नहीं हम उन्हें उपलब्ध हुए हैं या वे हमें उपलब्ध हुए हैं|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय|

क्रिसमस पर विशेष लेख ...... (5)

क्रिसमस पर विशेष लेख ..... (5)

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श्री श्री परमहंस योगानंद के अनुसार जीसस क्राइस्ट की मूल शिक्षाएँ, भगवान श्रीकृष्ण की ही शिक्षाएँ थीं| स्वामी विवेकानंद ने भी लिखा है कि ईसा मसीह में देवत्व पूर्ण रूप से व्यक्त था| वे एक पूर्ण संत थे और ईश्वर के साथ एक थे|
उन्होंने जिस कृष्ण चैतन्य को व्यक्त किया उसी को हम भी व्यक्त करें|
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24 दिसंबर की पूरी रात ओंकार रूप परमात्मा का ध्यान करें| यदि ध्यान न कर सकें तो जप, भजन-कीर्तन आदि करें|
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जीसस क्राइस्ट एक यहूदी थे पर आचार विचार से विशुद्ध भारतीय थे| भारत में रहकर उन्होंने सनातन व बौद्ध धर्मों का अध्ययन किया| फिलिस्तीन/इजराइल बापस जाकर अपने उपदेश दिए| उनकी मूल शिक्षाएं लुप्त हो गयी हैं| सूली पर वे मरे नहीं थे| बापस भारत आकर वर्षों तक जीवित रहे और भारत में ही देह त्याग किया|
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आप पर परमात्मा की पूर्ण कृपा हो| आप का निवास परमात्मा के ह्रदय में हो| जीवन का लक्ष्य परमात्मा से जुड़ना है| हमारा उद्गम परमात्मा से है, और जब तक बापस परमात्मा से नहीं जुड़ेंगे तब तक ऐसे ही इस दुःख सागर में भटकते रहेंगे|
क्रिसमस की शुभ कामनाएँ|
अब क्रिसमस के बाद ही मिलेंगे| शुभ कामनाएँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
December 22, 2015.

क्रिसमस पर विशेष लेख ...... (4)

क्रिसमस पर विशेष लेख ..... (4)

((निम्न लेख गूगल पर ढूंढ कर कॉपी/ पेस्ट किया गया है| लेखक का नाम अज्ञात है|
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कृष्ण भक्त जीसस : .......
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लुईस जेकोलियत (Louis Jacolliot) ने 1869 ई. में अपनी एक पुस्तक 'द बाइबिल इन इंडिया' (The Bible in India, or the Life of Jezeus Christna) में लिखा है कि जीसस क्रिस्ट और भगवान श्रीकृष्ण एक थे। लुईस जेकोलियत फ्रांस के एक साहित्यकार और वकील थे। इन्होंने अपनी पुस्तक में कृष्ण और क्राइस्ट पर एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। 'जीसस' शब्द के विषय में लुईस ने कहा है कि क्राइस्ट को 'जीसस' नाम भी उनके अनुयायियों ने दिया है। इसका संस्कृत में अर्थ होता है 'मूल तत्व'।
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इन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी कहा है कि क्राइस्ट शब्द कृष्ण का ही रूपांतरण है, हालांकि उन्होंने कृष्ण की जगह क्रिसना शब्द का इस्तेमाल किया। भारत में गांवों में कृष्ण को क्रिसना ही कहा जाता है। यह क्रिसना ही योरप में क्राइस्ट और ख्रिस्तान हो गया। बाद में यही क्रिश्चियन हो गया। लुईस के अनुसार ईसा मसीह अपने भारत भ्रमण के दौरान जगन्नाथ के मंदिर में रुके थे।
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30 वर्ष की उम्र में येरुशलम लौटकर उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे। ज्यादातर विद्वानों के अनुसार सन् 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर येरुशलम पहुंचे। वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। अंतत: उन्हें विरोधियों ने पकड़कर क्रूस पर लटका दिया। उस वक्त उनकी उम्र थी लगभग 33 वर्ष।
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इससे पहले वे जब येरुशलम जा रहे थे तब रास्ते में पर्सिया यानी वर्तमान ईरान में रुके। यहां इन्होंने जरथुस्ट्र के अनुयायियों को उपदेश दिया।
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18 वर्ष उन्होंने भारत के काश्मीर और लद्दाख के हिन्दू और बौद्ध आश्रमों में रहकर बौद्घ एवं हिन्दू धर्म ग्रंथों एवं आध्यात्मिक विषयों का गहन अध्ययन किया। निकोलस लिखते हैं कि वे लद्दाख के बौद्ध हेमिस मठ में रुके थे। वहां उन्होंने ध्यान साधना की। अपनी भारत यात्रा के दौरान जीसस ने उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर की भी यात्रा की थी एवं यहां रहकर इन्होंने अध्ययन किया था।
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निकोलस अपनी किताब में यहां तक लिखते हैं कि सूली पर चढ़ाए जाने के बाद यह माना गया कि ईसा की मौत हो गई है लेकिन असलियत यह है कि ईसा सूली पर चढ़ाए जाने के बाद भी जीवित रह गए थे। सूली पर चढ़ाए जाने के 3 दिन बाद ये अपने परिवार और मां मैरी के साथ तिब्बत के रास्ते भारत आ गए। भारत में श्रीनगर के पुराने इलाके को इन्होंने अपना ठिकाना बनाया। 80 साल की उम्र में जीसस क्राइस्ट की मृत्यु हुई। उन्हें वहीं दफना दिया गया और उनकी कब्र आज भी वहीं पर है। लोग इस पर विश्वास करे या न करें लेकिन यह सूरज के दिखने जैसा सत्य है।
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लातोविच ने तिब्बत के मठों में ईसा से जुड़ी ताड़ पत्रों पर अंकित दुर्लभ पांडुलिपियों का दुभाषिए की मदद से अनुवाद किया जिसमें लिखा था, 'सुदूर देश इसराइल में ईसा मसीह नाम के दिव्य बच्चे का जन्म हुआ। 13-14 वर्ष की आयु में वो व्यापारियों के साथ हिन्दुस्तान आ गया तथा सिंध प्रांत में रुककर बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन किया। फिर वो पंजाब की यात्रा पर निकल गया और वहां के जैन संतों के साथ समय व्यतीत किया। इसके बाद जगन्नाथपुरी पहुंचा, जहां के पुरोहितों ने उसका भव्य स्वागत किया। वह वहां 6 वर्ष रहा। वहां रहकर उसने वेद और मनु स्मृति का अपनी भाषा में अनुवाद किया।'
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वहां से निकलकर वो राजगीर, बनारस समेत कई और तीर्थों का भ्रमण करते हुए नेपाल के हिमालय की तराई में चला गया और वहां जाकर बौद्ध ग्रंथों तथा तंत्रशास्त्र का अध्ययन किया फिर पर्शिया आदि कई मुल्कों की यात्रा करते हुए वह अपने वतन लौट गया।
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लातोविच के बाद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अभेदानंद ने 1922 में लद्दाख के होमिज मिनिस्ट्री का भ्रमण किया और उन साक्ष्यों का अवलोकन किया जिससें हजरत ईसा के भारत आने का वर्णन मिलता है और इन शास्त्रों के अवलोकन के पश्चात उन्होंने भी लातोविच की तरह ईसा के भारत आगमन की पुष्टि की और बाद में अपने इस खोज को बांग्ला भाषा में 'तिब्बत ओ काश्मीर भ्रमण' नाम से प्रकाशित करवाया।
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मिर्जा गुलाम अहमद कादियान का शोध : लुईस जेकोलियत और निकोलस नातोविच के शोध के बाद पाकिस्तान के आध्यात्मिक गुरु मिर्जा गुलाम अहमद ने इस पर गहन शोध किया। उनके अनुसार ईसा मसीह 120 वर्ष तक जीए और कश्मीर के रौजाबल में उनकी कब्र है। कादियान के अनुसार ईसा मसीह यूज आसफ (शिफा देने वाला) नाम से यहां रहते थे। इसके लिए उन्होंने कई पुख्ता दलीलें पेश कीं। अपने तमाम शोधों को पुख्ता प्रमाणों के साथ उन्होंने 'मसीह हिन्दुस्तान' नाम से लिखी अपनी किताब में लिपिबद्ध किया है।
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अहमद कादियान को मानने वालों को अहमदिया मुसलमान कहते हैं। आजकल पाकिस्तान में इनका कत्लेआम किया जा रहा है, क्योंकि ये परंपरागत बातों से हटकर धर्म को नए रूप में देखते हैं। लाखों अहमदी मुसलमानों को भागकर चीन की शरण में जाना पड़ा है।
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सादिक ने अपनी ऐतिहासिक कृति 'इकमाल-उद्-दीन' में उल्लेख किया है कि जीसस ने अपनी पहली यात्रा में तांत्रिक साधना एवं योग का अभ्यास किया। इसी के बल पर सूली पर लटकाये जाने के बावजूद जीसस जीवित हो गये। इसके बाद ईसा फिर कभी यहूदी राज्य में नज़र नहीं आए। यह अपने योग बल से भारत आ गए और 'युज-आशफ' नाम से कश्मीर में रहे। यहीं पर ईसा ने देह का त्याग किया।
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कश्मीरी विद्वानों का मत : कश्मीरी विद्वानों के अनुसार ईस्वी सन् 80 में कश्मीर के कुंडलवन में हुए चतुर्थ बौद्ध संगीति में ईसा ने भी हिस्सा लिया था। (श्रीनगर के उत्तर में पहाड़ों पर एक बौद्ध विहार के खंडहर हैं, मान्यता है कि इसी स्थान पर हुए उक्त बौद्ध महासंगीति में हजरत ईसा ने भाग लिया था।)
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हेमिस बौद्घ आश्रम लद्दाख के लेह मार्ग पर स्थि‍त है। किताब अनुसार ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आए थे और यह आश्रम इसी तरह के सिल्क रूट पर था। उन्होंने 13 से 29 वर्ष की उम्र तक यहां रहकर बौद्घ धर्म की शिक्षा ली और निर्वाण के महत्व को समझा। यहाँ से शिक्षा लेकर वे जेरूसलम पहुंचे और वहां वे धर्मगुरु तथा इसराइल के मसीहा या रक्षक बन गए।
पहली बार हुआ विवाद : सिंगापुर स्पाइस एयरजेट की एक पत्रिका में इसी बात की चर्चा की गई थी कि यीशु को जब क्रूस पर चढ़ाने के लिए लाया जा रहा था तब वे क्रूस से बचकर भाग निकले और कश्मीर पहुंचे और बाद में वहां उनकी मृत्यु हो गई। उनका मकबरा कश्मीर के रौजाबल नामक स्थान में है।
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कैथोलिक सेकुलर फोरम नामक एक संस्था ने इस खबर का कड़ा विरोध किया। भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में इस पत्रिका के खिलाफ प्रदर्शन भी हुआ। विरोध के बाद स्पाइस एयरजेट के डायरेक्टर अजय सिंह ने माफी मांगी और कहा कि पत्रिका की करीब 20 हजार प्रतियों का वितरण तुरंत बन्द कर दिया गया है।
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मेहर बाबा (मेरवान एस. ईरानी) का वक्तव्य : पारसी परिवार में जन्में मेहर बाबा को एक रहस्यमयी और चमत्कारिक संत माना जाता है। 30 वर्षों तक मेहर बाबा मौन रहे और मौन में ही उन्होंने देह त्याग दी। उन्होंने एक किताब लिखी जिसका नाम 'गॉड स्पीक' है। मेहर बाबा अनुसार ईसा मसीह सूली से बच गए थे। उन्होंने भारत में रहकर तप साधना की थी। जिसके माध्यम से उन्होंने सूली पर निर्विकल्प समाधी लगा ली थी। इस समाधी में व्यक्ति 3 दिन तक मृत समान रहता है। बाद में उसकी चेतना लौट आती है और उसके अंग-प्रत्यंग फिर से कार्य करने लगते हैं। आमतौर पर बहुत ज्यादा बर्फिले इलाके में भालू ऐसा करते हैं। समाधी से जागने के बाद ईसा मसीह फिर से भारत आ गए थे। यहां आकर उन्होंने रंगून की यात्रा की फिर पुन: भारत लौटकर उन्होंने अपना बाकी जीवन नार्थ कश्मीर में ही बिताया।
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मेहर बाबा की बातों का अभयानंद, सत्यसाईंबाबा, शंकराचार्य, आदि ने समर्थन किया। फिदा हसनैन, अजीज कश्मीरी, जेम्स डियरडोफ, मंतोशे देवजी आदि ने भी माना है कि कश्मीर के रौजाबल में जो कब्र है वह ईसा मसीह की ही है। खैस, कोई ईसाई इसे नहीं मानता है तो यह एक ऐतिहासिक और पवित्र स्थल को खो देने की बात होगी। नहीं मानने का कोई तो ठोस कारण होना चाहिए?
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होल्गर कर्स्टन : एक जर्मन विद्वान होल्गर कर्स्टन ने 1981 में अपने गहन अनुसन्धान के आधार पर एक पुस्तक लिखी 'जीसस लिव्ड इन इण्डिया: हिज लाइफ बिफोर एंड ऑफ्टर क्रूसिफिक्शन' में ये सिद्ध करने का प्रयास किया कि जीसस ख्रीस्त ने भारत में रहकर ही बुद्ध धर्म में दीक्षा ग्रहण की और वे एक बौद्ध थे।
उन्होंने बौद्धमठ में रहकर तप-योग ध्यान साधना आदि किया। इस योग साधना के कारण ही क्रॉस पर उनका जीवन बच गया था जिसके बाद वो पुनः अपने अनुयायियों की सहायता से भारत आ गए थे और लदाख में हेमिस गुम्फा नामक बौद्ध मठ में रहे। बाद में श्रीनगर में उनका वृद्धवस्था में देहांत हुआ। वहां आज भी उनकी मजार है।
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तिब्बत में ल्हासा में दलाई लामा के पोटाला पेलेस में एक दो हजार वर्ष पुराना हस्त लिखित ग्रंथ था जिसमें ईसा मसीह की तिब्बत यात्रा का विवरण दर्ज था। इसको यूरोप के कुछ पादरियों ने तिब्बत भ्रमण के समय देखा था और उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी थी, लेकिन प्रकाशित होने से पूर्व ही पोप को पता चल गया और तब उस पुस्तक की सभी प्रतियां नष्ट करा दी गयीं।-कादम्बिनी अगस्त 1995.
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लॉस एंजिलिस निवासीफिलिप गोल्ड़बर्ग का एक व्याख्यान टूर भारत में आयोजित किया गया था उन्होंने ‘अमेरिकन वेद’ सहित उन्नीस पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने बताया की आज अमेरिकावासी नाम के लिए ईसाई हैं जबकि व्यव्हार में बहुलवादी वेदांत को अपना चुके हैं। चर्च ने सत्य को छुपाने के अनेक उपाय किए।
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ओशो ने क्या कहा इस विषय पर...
कश्मीर में उनकी समाधि को बीबीसी पर एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई थी। रिपोर्ट अनुसार श्रीनगर के पुराने शहर की एक इमारत को 'रौजाबल' के नाम से जाना जाता है। यह रौजा एक गली के नुक्कड़ पर है और पत्थर की बनी एक साधारण इमारत है जिसमें एक मकबरा है, जहां ईसा मसीह का शव रखा हुआ है। श्रीनगर के खानयार इलाके में एक तंग गली में स्थिति है रौजाबल।
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आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग यह मानते हैं कि यह नजारेथ के यीशु यानी ईसा मसीह का मकबरा या मजार है। लोगों का यह भी मानना है कि सन् 80 ई. में हुए प्रसिद्ध बौद्ध सम्मेलन में ईसा मसीह ने भाग लिया था। श्रीनगर के उत्तर में पहाड़ों पर एक बौद्ध विहार का खंडहर हैं जहाँ यह सम्मेलन हुआ था।
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पहलगाव था पहला पड़ाव : पहलगाम का अर्थ होता है गडेरियों का गाँव। जबलपुर के पास एक गाँव है गाडरवारा, उसका अर्थ भी यही है और दोनों ही जगह से ईसा मसीह का संबंध रहा है। ईसा मसीह खुद एक गडेरिए थे। ईसा मसीह का पहला पड़ाव पहलगाम था। पहलगाम को खानाबदोशों के गाँव के रूप में जाना जाता है। बाहर से आने वाले लोग अक्सर यहीं रुकते थे। उनका पहला पड़ाव यही होता था। अनंतनाग जिले में बसा पहलगाम, श्रीनगर से लगभग 96 कि.मी. दूर है।
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पहलगाम चारों तरफ पहाड़ों से घिरा है। यहां की सुंदरता और प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। यहां के पहाड़ों के दर्रों से पाक अधिकृत कश्मीर या तिब्बत के रास्ते जाया जा सकता है। इसके आसपास बर्फीले इलाके की श्रृंखलाबद्ध पहाड़ियां है। यही से बाबा अमरनाथ की गुफा की यात्रा शुरू होती है। मान्यता है कि ईसा मसीह ने यही पर प्राण त्यागे थे और ओशो की एक किताब 'गोल्डन चाइल्ड हुड' अनुसार मूसा यानी यहूदी धर्म के पैंगबर (मोज़ेज) ने भी यहीं पर प्राण त्यागे थे। दोनों की असली कब्र यहीं पर है।
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'पहलगाम एक छोटा-सा गांव है, जहां पर कुछ एक झोपड़ियां हैं। इसके सौंदर्य के कारण जीसस ने इसको चुना होगा। जीसस ने जिस स्‍थान को चुना वह मुझे भी बहुत प्रिय है। मैंने जीसस की कब्र को कश्‍मीर में देखा है। इसराइल से बाहर कश्‍मीर ही एक ऐसा स्‍थान था जहां पर वे शांति से रह सकते थे। क्‍योंकि वह एक छोटा इसराइल था। यहां पर केवल जीसस ही नहीं मोजेज भी दफनाए गए थे। मैंने उनकी कब्र को भी देखा है। कश्मीर आते समय दूसरे यहूदी मोजेज से यह बार-बार पूछ रहे थे कि हमारा खोया हुआ कबिला कहां है (यहूदियों के 10 कबिलों में से एक कबिला कश्मीर में बस गया था)।
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यह बहुत अच्‍छा हुआ कि जीसस और मोजेज दोनों की मृत्यु भारत में ही हुई। भारत न तो ईसाई है और न ही यहूदी। परंतु जो आदमी या जो परिवार इन कब्रों की देखभाल करते हैं वह यहूदी हैं। दोनों कब्रें भी यहूदी ढंग से बनी है। हिंदू कब्र नहीं बनाते। मुसलमान बनाते हैं किन्‍तु दूसरे ढंग की। मुसलमान की कब्र का सिर मक्‍का की ओर होता है। केवल वे दोनों कब्रें ही कश्‍मीर में ऐसी है जो मुसलमान नियमों के अनुसार नहीं बनाई गई।'- ओशो
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ईसा का नामकरण : यीशु पर लिखी किताब के लेखक स्वामी परमहंस योगानंद ने दावा किया गया है कि यीशु के जन्म के बाद उन्हें देखने बेथलेहेम पहुंचे तीन विद्वान भारतीय ही थे, जो बौद्ध थे। भारत से पहुंचे इन्हीं तीन विद्वानों ने यीशु का नाम 'ईसा' रखा था। जिसका संस्कृत में अर्थ 'भगवान' होता है।
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एक दूसरी मान्यता अनुसार बौद्ध मठ में उन्हें 'ईशा' नाम मिला जिसका अर्थ है, मालिक या स्वामी। हालांकि ईशा शब्द ईश्वर के लिए उपयोग में लाया जाता है। वेदों के एक उपनिषद का नाम 'ईश उपनिषद' है। 'ईश' या 'ईशान' शब्द का इस्तेमाल भगवान शंकर के लिए भी किया जाता है।
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कुछ विद्वान मानते हैं कि ईसा इब्रानी शब्द येशुआ का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है होता है मुक्तिदाता। और मसीह शब्द को हिंदी शब्दकोश के अनुसार अभिषिक्त मानते हैं, अर्थात यूनानी भाषा में खीस्तोस। इसीलिए पश्चिम में उन्हें यीशु ख्रीस्त कहा जाता है। कुछ विद्वानों अनुसार संस्कृत शब्द 'ईशस्' ही जीसस हो गया। यहूदी इसी को इशाक कहते हैं।
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द सेकंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट : स्वामी परमहंस योगानंद की किताब 'द सेकंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट: द रिसरेक्शन ऑफ क्राइस्ट विदिन यू' में यह दावा किया गया है कि प्रभु यीशु ने भारत में कई वर्ष बिताएं और यहां योग तथा ध्यान साधना की। इस पुस्तक में यह भी दावा किया गया है कि 13 से 30 वर्ष की अपनी उम्र के बीच ईसा मसीह ने भारतीय ज्ञान दर्शन और योग का गहन अध्ययन व अभ्यास किया।
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उक्त सभी शोध को लेकर 'लॉस एंजिल्स टाइम्स' में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हो चुकी है। 'द गार्जियन' में भी स्वामीजी की पुस्तक के संबंध में छप चुका है।
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सेंट थॉमस..
सूली के बाद ही उनके ‍शिष्य ईसा की वाणी लेकर 50 ईस्वी में हिन्दुस्तान आए थे। उनमें से एक 'थॉमस' ने ही भारत में ईसा के संदेश को फैलाया। उन्हीं की एक किताब है- 'ए गॉस्पेल ऑफ थॉमस'। चेन्नई शहर के सेंट थामस माऊंट पर 72 ईस्वी में थॉमस एक भील के भाले से मारे गए। मेरी मेग्दालिन भी ईसा की शिष्या थीं जिन्हें उनकी पत्नी बताए जाने के ‍पीछे विवाद हो चला है। उक्त गॉस्पल में मेरी मेग्दालिन के भी सूत्र हैं।
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दक्षिण भारत में सीरियाई ईसाई चर्च, सेंट थॉमस के आगमन का संकेत देती है। थॉमस ने एक हिन्दू राजा के धन के बल पर भारत के केरल में ईसाइयत का प्रचार किया और जब उस राजा को इसका पता चला तो थॉमस बर्मा भाग गए थे।
इसके बाद सन 1542 में सेंट फ्रेंसिस जेवियर के आगमन के साथ भारत में रोमन कैथोलिक धर्म की स्‍थापना हुई जिन्होंने भारत के गरीब हिंदू और आदिवासी इलाकों में जाकर लोगों को ईसाई धर्म की शिक्षा देकर सेवा के नाम पर ईसाई बनाने का कार्य शुरू किया। इसके बाद भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान इस कार्य को और गति मिली। फिर भारत की आजादी के बाद 'मदर टेरेसा' ने व्यापक रूप से लोगों को ईसाई बनाया।
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फिफ्त गॉस्पल : ये फिदा हसनैन द्वारा लिखी गई एक किताब है जिसका जिक्र अमृता प्रीतम ने अपनी किताब 'अक्षरों की रासलीला' में विस्तार से किया है। ये किताब जीसस की जिन्दगी के उन पहलुओं की खोज करती है जिसको ईसाई जगत मानने से इंकार कर सकता है, मसलन कुंवारी मां से जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जीवित हो जाने वाले चमत्कारी मसले। किताब का भी यही मानना है कि 13 से 29 वर्ष की उम्र तक ईसा भारत भ्रमण करते रहे।
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ऐसी मान्यता है कि उन्होंने नाथ सम्प्रदाय में भी दीक्षा ली थी। सूली के समय ईशा नाथ ने अपने प्राण समाधि में लगा दिए थे। वे समाधि में चले गए थे जिससे लोगों ने समझा कि वे मर गए। उन्हें मुर्दा समझकर कब्र में दफना दिया गया।
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महाचेतना नाथ यहुदियों पर बहुत नाराज थे क्योंकि ईशा उनके शिष्य थे। महाचेतना नाथ ने ध्यान द्वारा देखा कि ईशा नाथ को कब्र में बहुत तकलीफ हो रही है तो वे अपनी स्थूल काया को हिमालय में छोड़कर इसराइल पहुंचे और जीसस को कब्र से निकाला। उन्होंने ईशा को समाधि से उठाया और उनके जख्म ठीक किए और उन्हें वापस भारत ले आए। हिमालय के निचले हिस्से में उनका आश्रम था जहां ईशा नाथ ने अनेक वर्षों तक जीवित रहने के बाद पहलगाम में समाधि ले ली।
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(उपरोक्त लेख गूगल पर ढूंढ कर कॉपी/ पेस्ट किया गया है| लेखक का नाम अज्ञात है| उपरोक्त तथ्यों पर अनुसंधान आवश्यक है)
December 22, 2015.

क्रिसमस पर विशेष लेख ..... (3)

क्रिसमस पर विशेष लेख ..... (3)  

(इस लेख में ओशो ने स्पष्ट किया है कि ईसा मसीह विश्व को भारत की देन थे)

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"ईसाइयत इसके बारे में बिलकुल बेखबर है कि जीसस निरंतर तीस वर्ष तक कहां थे? वे अपने तीसवें साल में अचानक प्रकट होते है और तैंतीसवें साल में तो उन्‍हें सूली पर चढ़ा दिया जाता है। उनका केवल तीन साल का लेखा जोखा मिलता है। इसके अतिरिक्‍त एक या दोबार उनकी जीवन-संबंधी घटनाओं का उल्‍लेख मिलता है। पहला तो उस समय जब वे पैदा हुए थे—इस कहानी को सब लोग जानते है। और दूसरा उल्‍लेख है जब सात साल की आयु में वे एक त्‍यौहार के समय बड़े मंदिर में जाते है। बस इन दोनों घटनाओं का ही पता है। इनके अतिरिक्‍त तीन साल तक वे उपदेश देते रहे। उनका शेष जीवन काल अज्ञात है। परंतु भारत के पास उनके जीवन काल से संबंधित अनेक परंपराएं है।
इस अज्ञातवास में वे काश्‍मीर के एक बौद्ध विहार में थे। इसके अनेक रिकार्ड मिलते है। और काश्‍मीर की जनश्रुतियों में भी इसका उल्‍लेख है। इस अज्ञातवास में वे बौद्ध भिक्षु बनकर ध्‍यान कर रहे थे। अपने तीसवें वर्ष में वे जेरूसलेम में प्रकट होते है—इसके बाद इनको सूली पर चढ़ा दिया जाता है। ईसाईयों की कहानी के अनुसार जीसस का पुनर्जन्‍म होता है। परंतु प्रश्‍न यह है कि इस पुनर्जन्‍म के बाद दोबारा वे कहां गायब हो गये। ईसाइयत इसके बारे में बिलकुल मौन है। कि इसके बाद वे कहां चले गए और उनकी स्‍वाभाविक मृत्‍यु कब हुई।
अपनी पुस्‍तक ‘’दि सर्पेंट ऑफ पैराडाइंज’’, में एक फ्रांसीसी लेखक कहता है कि काई नहीं जानता कि जीसस तीस साल तक कहां रहे और क्‍या करते रह? अपने तीसवें साल में उन्‍होंने उपदेश देना आरंभ किया। एक जनश्रुति के अनुसार इस समय वे ‘’काश्‍मीर’’ में थे। काश्‍मीर का मूल नाम है। ‘’का’’ अर्थात ‘’जैसा’’, बराबर, और ‘’शीर’’ का अर्थ है ‘’सीरिया’’।
निकोलस नाटोविच नामक एक रूसी यात्री सन 1887 में भारत आया था। वह लद्दाख भी गया था। और जहां जाकर वह बीमार हो गया था। इसलिए उसे वहां प्रसिद्ध ‘’हूमिस-गुम्‍पा‘’ में ठहराया गया था। और वहां पर उसने बौद्ध साहित्‍य और बौद्ध शस्‍त्रों के अनेक ग्रंथों को पढ़ा। इनमें उसको जीसस के यहां आने के कई उल्‍लेख मिले। इन बौद्ध शास्‍त्रों में जीसस के उपदेशों की भी चर्चा की गई है। बाद में इस फ्रांसीसी यात्री ने ‘’सेंट जीसस’’ नामक एक पुस्‍तक भी प्रकाशित की थी। इसमे उसने उन सब बातों का वर्णन किया है जिससे उसे मालूम हुआ कि जीसस लद्दाख तथा पूर्व के अन्‍य देशों में भी गए थे।
ऐसा लिखित रिकार्ड मिलता है कि जीसस लद्दाख से चलकर, ऊंची बर्फीला पर्वतीय चोटियों को पार करके काश्‍मीर के पहल गाम नामक स्‍थान पर पहुंच। पहल गाम का अर्थ है ‘’गड़रियों का गांव’’ पहल गाव में वे अपने लोगों के साथ लंबे समय तक रहे। यही पर जीसस को ईज़राइल के खोये हुए कबीले के लोग मिले। ऐसा लिखा गया है कि जीसस के इस गांव में रहने के कारण ही इस का नाम ‘’पहल गाव’’ रखा गया। कश्‍मीरी भाषा में ‘’पहल’’ का अर्थ है गड़रिया और गाम का अर्थ गांव। इसके बाद जब जीसस श्रीनगर जा रहे थे तो उन्‍होंने ‘’ईश-मुकाम’’ नामक स्‍थान पर ठहर कर आराम किया था और उपदेश दिये थे। क्‍योंकि जीसस ने इस जगह पर आराम किया इसलिए उन्‍हीं के नाम पर इस स्‍थान का नाम हो गया ‘’ईश मुकाम’’।
जब जीसस सूली पर चढ़े हुए थे तो उस समय एक सिपाही ने उनके शरीर में भाला भोंका तो उसमे से पानी और खून निकला। इस घटना को सेंट जॉन की गॉस्‍पल (अध्‍याय 19 पद्य 34) में इस प्रकार रिकार्ड किया गया है कि ‘’एक सिपाही ने भाले से उनको एक और से भोंका और तत्‍क्षण खून और पानी बाहर निकला।‘’ इस घटना से ही यह माना गया है कि जीसस सूली पर जीवित थे क्‍योंकि मृत शरीर से खून नहीं निकल सकता।
जीसस को दोबारा मरना ही होगा। या तो सूली पूरी तरह से लग गई और वे मर गए या फिर समस्‍त ईसाइयत ही मर जाती। क्‍योंकि समस्‍त ईसाइयत उनके पुनर्जन्‍म पर निर्भर करती है। जीसस पुन जीवित होते है और यही चमत्‍कार बन जाता है। अगर ऐसा न होता तो यहूदियों को यह विश्‍वास ही न होता कि वे पैगंबर है क्‍योंकि भविष्‍यवाणी में यह कहा गया था कि आने वाले क्राइस्‍ट को सूली लगेगी और फिर उसका पुनर्जन्‍म होगा।
इसलिए उन्‍होंने इसका इंतजार किया। उनका शरीर जिस गुफा में रखा गया था वहां से वे तीन दिन के बाद गायब हो गया। इसके बाद वे देखे गए—कम से कम आठ लोगों न उनको नए शरीर में देखा। फिर वे गायब हो गए। और ईसाइयत के पास ऐसा कोई रिकार्ड नहीं है कि जिससे मालूम हो कह वे कब मरे।
जीसस फिर दोबारा काश्‍मीर आये और वहां पर 112 वर्ष की आयु तक जीवित रहे। और वहां पर अभी भी वह गांव है जहां वे मरे।
अरबी भाषा में जीसस को ‘’ईसस’’ कहा गया है। काश्‍मीर में उनको ‘’यूसा-आसफ़’’ कहा जाता था। उनकी कब्र पर भी लिखा गया है कि ‘’यह यूसा-आसफ़ की कब्र है जो दूर देश से यहां आकर रहा’’ और यहाँ भी संकेत मिलता है कि वह 1900साल पहले आया।
‘’सर्पेंट ऑफ पैराडाइंज’’ के लेखक ने भी इस कब्र का देखा। वह कहता है कि ‘’जब मैं कब्र के पास पहुंचा तो सूर्यास्‍त हो रहा था और उस समय वहां के लोगों और बच्‍चों के चेहरे बड़े पावन दिखाई दे रहे थे। ऐसा लगता था जैसे वे प्राचीन समय के लोग हों—संभवत: वे ईज़राइल की खोई हुई उस जाति से संबंधित थे जो भारत आ गई थी। जूते उतार कर जब मैं भीतर गया तो मुझे एक बहुत पुरानी कब्र दिखाई दी जिसकी रक्षा के लिए चारों और फिलीग्री की नक्‍काशी किए हुए पत्‍थर की दीवार खड़ी थी। दूसरी और पत्‍थर में एक पदचिह्न बना हुआ था—कहा जाता है कि वह यूसा-आसफ़ का पदचिह्न है। उसकी दीवार से शारदा लिपि में लिखा गया एक शिलालेख लटक रहा थ जिसके नीचे अंग्रेजी अनुवाद में लिखा गया है—‘’यूसा-आसफ़ (खन्‍नयार। श्रीनगर) यह कब्र यहूदी है। भारत में कोई भी कब्र ऐसी नहीं है। उस कब्र की बनावट यहूदी है। और कब्र के ऊपर यहूदी भाषा, हिब्रू में लिखा गया है।
जीसस पूर्णत: संबुद्ध थे। इस पुनर्जन्‍म की घटना को ईसाई मताग्रही ठीक से समझ नहीं सकते किंतु योग द्वारा यह संभव हो सकता है। योग द्वारा बिना मरे शरीर मो मृत अवस्‍था में पहुंचाया जा सकता है। सांस को चलना बंद हो जाता है, ह्रदय की धड़कन और नाड़ी की गति भी बंद की जा सकती है। इस प्रकार की प्रक्रिया के लिए योग की किसी गहन विधि का प्रयोग किया क्‍योंकि अगर वे सचमुच मर जाते तो उनके पुन जीवित होने की कोई संभावना नहीं थी। सूली लगाने वालों ने जब यह समझा कि वे मर गए है तो उन्‍होंने जीसस को उतार कर उनके अनुयायियों का दे दिया। तब एक परंपरागत कर्मकांड के अनुसार शरीर को एक गुफा में तीन दिन के लिए रखा गया। किंतु तीसरे दिन गुफा को खाली पाया गया। जीसस गायब थे।
ईसाइयों के ‘’एसनीज’’ नामक एक संप्रदाय की परंपरागत मान्‍यता है कि जीसस के अनुयायियों ने उनके शरीर के घावों का इलाज किया और उनको होश में ले आए और जब उनके शिष्‍यों ने उनको दोबारा देखा तो वे विश्‍वास ही न कर सके कि ये वही जीसस है जो सूली पर मर गए। उनको विश्‍वास दिलाने के लिए जीसस को उन्‍हें अपने शरीर के घावों को दिखाना पडा। ये घाव उनके एसनीज अनुयायियों ने ठीक किए। गुफा के तीन दिनों में जीसस के घाव भर रहे थे। ठीक हो रहे थे। और जैसे ही वे ठीक हो गए जीसस गायब हो गए। उनको उस देश से गायब होना पडा क्‍योंकि अगर वे वहां पर रह जाते तो इसमे कोई संदेह नहीं कि उनको दोबारा सूली दे दी जाती।
सूली से उतारे जाने के बाद उनके घावों पर एक प्रकार की मलहम लगाई गई। जो आज भी ‘’जीसस की मलहम’’ कही जाती है। और उनके शरीर को मलमल से ढका गया। उनके अनुयायी जौसेफ़ और निकोडीमस ने जीसस के शरीर को एक गुफा में रख दिया। और उसके मुहँ पर एक बड़ा सा पत्‍थर लगा दिया। जीसस तीन दिन इस गुफा में रहे और स्‍वस्‍थ होते रहे। तीसरे दिन जबर्दस्‍त भूकंप आया और उसके बाद तूफान; उस गुफा की रक्षा के लिए तैनात सिपाही वहां से भाग गए। गुफा पर रखा गया बड़ा पत्‍थर वहां से हट कर नीचे गिर गया। और जीसस वहां से गायब हो गये। उनके इस प्रकार गायब हो जाने के कारण ही लोगों ने उनके पुनर्जन्‍म और स्‍वर्ग जाने की कथा को जन्‍म दिया गया।
सूली पर चढ़ाये जाने से जीसस का मन बहुत परिवर्तित हो गया। इसके बाद वे पूर्णत: मौन हो गए। न उन्‍हें पैगंबर बनने में कोई दिलचस्‍पी रही न उपदेशक बनने में। बस वे तो मौन हो गए। इसीलिए इसके बाद उनके बारे में कुछ भी पता नहीं है। तब वे भारत में रहने लगे। भारत में एक परंपरा है कि बाइबल में भी कि यहूदियों का एक कबीला गायब हो गया और उसको खोजने के लिए बहुत लोग भेजे गए थे। वास्‍तव में कश्‍मीरी अपने चेहरे-मोहरे और अपने खून से मूलत: यहूदी ही है।
प्रसिद्ध फ्रांसीसी इतिहासकार, बर्नीयर ने, जो औरंगज़ेब के समय भारत आया था। लिखा है कि ‘’पीर पंजाल पर्वत को पार करने के बाद भारत राज्‍य में प्रवेश करने पर इस सीमा प्रदेश के लोग मुझे यहूदियों जैसे लगे।‘’ अभी भी काश्‍मीर में यात्रा करते समय ऐसा लगता है मानो किसी यहूदी प्रदेश में आ गए हो। इसीलिए ऐसा माना जाता है कि जीसस काश्‍मीर में आए क्‍योंकि यह भारत की यहूदी भूमि थी। वहां पर यहूदी जाति रहती थी। काश्‍मीर में इस प्रकार की कई कहानियां प्रचलित है। जीसस पहल गाव में बहुत वर्षों तक रहे। उनके कारण ही यह जगह गांव बन गया। प्रतीक रूप में उनको गड़रिया कहा जाता है और पहल गाम में आज भी ऐसी अनेक लोककथाएँ प्रचलित है जिनमें बताया गया है कि 1900 वर्ष पहले ‘’यूसा-आसफ़’’ नामक व्यक्ति यहां आकर बस गया था और इस गांव को उसी ने बसाया था।
जीसस सत्‍तर साल तक भारत में थे और सत्‍तर साल तक वे आने लोगों के साथ मौन रहे।
ईसाइयत को जीसस के सारे जीवन के बारे में कुछ नहीं मालूम। कि उन्‍होंने कहां साधना की या कैसे ध्‍यान किया। उनके शिष्‍यों को भी नहीं मालूम कि अपनी मौन-अवधि में जीसस क्‍या कर थे। उन्‍होंने केवल इतना ही रिकार्ड किया कि जीसस पर्वत पर चले गए और वहां वे तीस दिन तक मौन रहे। उसके बाद वे फिर वापस आए और उपदेश देने लगे।"
(ओशो की पुस्‍तक ‘’दि सायलेंट एक्‍सप्‍लोजन’’के सम्पादित अंश, साभार)

क्रिसमस पर विशेष लेख ..... (2)

क्रिसमस पर विशेष लेख ..... (2)
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ओशो ने ईसा मसीह और ईसाईयत के ऊपर बहुत सारे व्याख्यान दिए थे जिन्हें उनके शिष्यों ने श्रुंखलाबद्ध तरीके से पुस्तकों के रूप में प्रकाशित करवाया था| जब वे जीवित थे उस समय मैनें उनका हिंदी में उपलब्ध लगभग सारा साहित्य पढ़ा था| उसमें कई परस्पर विरोधाभास भी थे पर निःसंदेह बौद्धिक धरातल पर उनकी प्रतिभा अद्वितीय थी|
उनका लगभग बत्तीस वर्ष पुराना एक प्रवचन यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ जिसके बाद ईसाईयत तिलमिला उठी थी और अमेरिका की रोनाल्‍ड रीगन सरकार ने उन्‍हें अमेरिका में हाथ-पैरों में बेडि़यां डालकर बंदी बना कर बहुत अधिक प्रताड़ित किया और उनके शिष्यों के अनुसार धीमा जहर दे कर धीमी मौत से मरने के लिए छोड़ दिया| उनसे बहुत अधिक जुर्माना लेकर भारत बापस आने दिया गया| अमेरिका में बसे रजनीशपुरम को नष्ट कर दिया गया और अमेरिका ने सभी देशों को यह निर्देश भी दे दिया कि न तो ओशो को कोई देश आश्रय देगा और न ही उनके विमान को उतरने की अनुमति देगा|
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ओशो का प्रवचन ..... (यह लगभग तीस वर्ष पूर्व उनकी "मेरा स्वर्णिम भारत" नामक पुस्तक में छपा था)
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"जब भी कोई सत्‍य के लिए प्‍यासा होता है, अनायास ही वह भारत आने के लिए उत्‍सुक हो उठता है। अचानक पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है। और यह केवल आज की ही बात नहीं है। यह उतनी ही प्राचीन बात है, जितने पुराने प्रमाण और उल्‍लेख मौजूद हैं। आज से 2500 वर्ष पूर्व, सत्‍य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था। ईसा मसीह भी भारत आए थे.
ईसा मसीह के 13 से 30 वर्ष की उम्र के बीच का बाइबिल में कोई उल्‍लेख नहीं है। और यही उनकी लगभग पूरी जिंदगी थी, क्‍योंकि 33 वर्ष की उम्र में तो उन्‍हें सूली ही चढ़ा दिया गया था। तेरह से 30 तक 17 सालों का हिसाब बाइबिल से गायब है! इतने समय वे कहां रहे? आखिर बाइबिल में उन सालों को क्‍यों नहीं रिकार्ड किया गया? उन्‍हें जानबूझ कर छोड़ा गया है, कि ईसायत मौलिक धर्म नहीं है, कि ईसा मसीह जो भी कह रहे हैं वे उसे भारत से लाए हैं. यह बहुत ही विचारणीय बात है। वे एक यहूदी की तरह जन्‍मे, यहूदी की ही तरह जिए और यहूदी की ही तरह मरे। स्‍मरण रहे कि वे ईसाई नहीं थे, उन्‍होंने तो-ईसा और ईसाई, ये शब्‍द भी नहीं सुने थे। फिर क्‍यों यहूदी उनके इतने खिलाफ थे? यह सोचने जैसी बात है, आखिर क्‍यों ? न तो ईसाईयों के पास इस सवाल का ठीक-ठाक जवाबा है और न ही यहूदियों के पास। क्‍योंकि इस व्‍यक्ति ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। ईसा उतने ही निर्दोष थे जितनी कि कल्‍पना की जा सकती है.
पर उनका अपराध बहुत सूक्ष्‍म था। पढ़े-लिखे यहूदियों और चतुर रबाईयों ने स्‍पष्‍ट देख लिया था कि वे पूरब से विचार ले रहे हैं, जो कि गैर यहूदी हैं। वे कुछ अजीबोगरीब और विजातीय बातें ले रहे हैं। और यदि इस दृष्टिकोण से देखो तो तुम्‍हें समझ आएगा कि क्‍यों वे बार-बार कहते हैं- '' अतीत के पैगंबरों ने तुमसे कहा था कि यदि कोई तुम पर क्रोध करे, हिंसा करे तो आंख के बदले में आंख लेने और ईंट का जवाब पत्‍थर से देने को तैयार रहना। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि अगर कोई तुम्‍हें चोट पहुंचाता है, एक गाल पर चांटा मारता है तो उसे अपना दूसरा गाल भी दिखा देना।'' यह पूर्णत: गैर यहूदी बात है। उन्‍होंने ये बातें गौतम बुद्ध और महावीर की देशनाओं से सीखी थीं. ईसा जब भारत आए थे-तब बौद्ध धर्म बहुत जीवंत था, यद्यपि बुद्ध की मृत्‍यु हो चुकी थी। गौतम बुद्ध के पांच सौ साल बाद जीसस यहां आए थे। पर बुद्ध ने इतना विराट आंदोलन, इतना बड़ा तूफान खड़ा किया था कि तब तक भी पूरा मुल्‍क उसमें डूबा हुआ था। बुद्ध की करुणा, क्षमा और प्रेम के उपदेशों को भारत पिए हुआ था.
जीसस कहते हैं कि '' अतीत के पैगंबरों द्वारा यह कहा गया था।'' कौन हैं ये पुराने पैगंबर?'' वे सभी प्राचीन यहूदी पैगंबर हैं: इजेकिएल, इलिजाह, मोसेस,- '' कि ईश्‍वर बहुत ही हिंसक है और वह कभी क्षमा नहीं करता है!? '' यहां तक कि प्राचीन यहूदी पैगंबरों ने ईश्‍वर के मुंह से ये शब्‍द भी कहलवा दिए हैं कि '' मैं कोई सज्‍जन पुरुष नहीं हूं, तुम्‍हारा चाचा नहीं हूं। मैं बहुत क्रोधी और ईर्ष्‍यालु हूं, और याद रहे जो भी मेरे साथ नहीं है, वे सब मेरे शत्रु हैं।'' पुराने टेस्‍टामेंट में ईश्‍वर के ये वचन हैं, और ईसा मसीह कहते हैं, '' मैं तुमसे कहता हूं कि परमात्‍मा प्रेम है।'' यह ख्‍याल उन्‍हें कहां से आया कि परमात्‍मा प्रेम है? गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के सिवाए दुनिया में कहीं भी परमात्‍मा को प्रेम कहने का कोई और उल्‍लेख नहीं है। उन 17 वर्षों में जीसस इजिप्‍त, भारत, लद्दाख और तिब्‍बत की यात्रा करते रहे। यही उनका अपराध था कि वे यहूदी परंपरा में बिल्‍कुल अपरिचित और अजनबी विचारधाराएं ला रहे थे। न केवल अपरिचित बल्कि वे बातें यहूदी धारणाओं के एकदम से विपरीत थीं। तुम्‍हें जानकर आश्‍चर्य होगा कि अंतत: उनकी मृत्‍यु भी भारत में हुई! और ईसाई रिकार्ड्स इस तथ्‍य को नजरअंदाज करते रहे हैं। यदि उनकी बात सच है कि जीसस पुनर्जीवित हुए थे तो फिर पुनर्जीवित होने के बाद उनका क्‍या हुआ? आजकल वे कहां हैं ? क्‍योंकि उनकी मृत्‍यु का तो कोई उल्‍लेख है ही नहीं !
सच्‍चाई यह है कि वे कभी पुनर्जीवित नहीं हुए। वास्‍तव में वे सूली पर कभी मरे ही नहीं थे। क्‍योंकि यहूदियों की सूली आदमी को मारने की सर्वाधिक बेहूदी तरकीब है। उसमें आदमी को मरने में करीब-करीब 48 घंटे लग जाते हैं। चूंकि हाथों में और पैरों में कीलें ठोंक दी जाती हैं तो बूंद-बूंद करके उनसे खून टपकता रहता है। यदि आदमी स्‍वस्‍थ है तो 60 घंटे से भी ज्‍यादा लोग जीवित रहे, ऐसे उल्‍लेख हैं। औसत 48 घंटे तो लग ही जाते हैं। और जीसस को तो सिर्फ छह घंटे बाद ही सूली से उतार दिया गया था। यहूदी सूली पर कोई भी छह घंटे में कभी नहीं मरा है, कोई मर ही नहीं सकता है. यह एक मिलीभगत थी, जीसस के शिष्‍यों की पोंटियस पॉयलट के साथ। पोंटियस यहूदी नहीं था, वो रोमन वायसराय था। जूडिया उन दिनों रोमन साम्राज्‍य के अधीन था। निर्दोष जीसस की हत्‍या में रोमन वायसराय पोंटियस को कोई रुचि नहीं थी। पोंटियस के दस्‍तखत के बगैर यह हत्‍या नहीं हो सकती थी।पोंटियस को अपराध भाव अनुभव हो रहा था कि वह इस भद्दे और क्रूर नाटक में भाग ले रहा है। चूंकि पूरी यहूदी भीड़ पीछे पड़ी थी कि जीसस को सूली लगनी चाहिए। जीसस वहां एक मुद्दा बन चुका था। पोंटियस पॉयलट दुविधा में था। यदि वह जीसस को छोड़ देता है तो वह पूरी जूडिया को, जो कि यहूदी है, अपना दुश्‍मन बना लेता है। यह कूटनीतिक नहीं होगा। और यदि वह जीसस को सूली दे देता है तो उसे सारे देश का समर्थन तो मिल जाएगा, मगर उसके स्‍वयं के अंत:करण में एक घाव छूट जाएगा कि राजनैतिक परिस्थिति के कारण एक निरपराध व्‍यक्ति की हत्‍या की गई, जिसने कुछ भी गलत नहीं किया था.
तो पोंटियस ने जीसस के शिष्‍यों के साथ मिलकर यह व्‍यवस्‍था की कि शुक्रवार को जितनी संभव हो सके उतनी देर से सूली दी जाए। चूंकि सूर्यास्‍त होते ही शुक्रवार की शाम को यहूदी सब प्रकार का कामधाम बंद कर देते हैं, फिर शनिवार को कुछ भी काम नहीं होता, वह उनका पवित्र दिन है। यद्यपि सूली दी जानी थी शुक्रवार की सुबह, पर उसे स्‍थगित किया जाता रहा। ब्‍यूरोक्रेसी तो किसी भी कार्य में देर लगा सकती है। अत: जीसस को दोपहर के बाद सूली पर चढ़ाया गया और सूर्यास्‍त के पहले ही उन्‍हें जीवित उतार लिया गया। यद्यपि वे बेहोश थे, क्‍योंकि शरीर से रक्‍तस्राव हुआ था और कमजोरी आ गई थी। पवित्र दिन यानि शनिवार के बाद रविवार को यहूदी उन्‍हें पुन: सूली पर चढ़ाने वाले थे। जीसस के देह को जिस गुफा में रखा गया था, वहां का चौकीदार रोमन था न कि यहूदी। इसलिए यह संभव हो सका कि जीसस के शिष्‍यगण उन्‍हें बाहर आसानी से निकाल लाए और फिर जूडिया से बाहर ले गए।
जीसस ने भारत में आना क्‍यों पसंद किया? क्‍योंकि युवावास्‍था में भी वे वर्षों तक भारत में रह चुके थे। उन्‍होंने अध्‍यात्‍म और ब्रह्म का परम स्‍वाद इतनी निकटता से चखा था कि वहीं दोबारा लौटना चाहा। तो जैसे ही वह स्‍वस्‍थ हुए, भारत आए और फिर 112 साल की उम्र तक जिए. कश्‍मीर में अभी भी उनकी कब्र है। उस पर जो लिखा है, वह हिब्रू भाषा में है। स्‍मरण रहे, भारत में कोई यहूदी नहीं रहते हैं। उस शिलालेख पर खुदा है, '' जोशुआ''- यह हिब्रू भाषा में ईसामसीह का नाम है। 'जीसस' 'जोशुआ' का ग्रीक रुपांतरण है। 'जोशुआ' यहां आए'- समय, तारीख वगैरह सब दी है। ' एक महान सदगुरू, जो स्‍वयं को भेड़ों का गड़रिया पुकारते थे, अपने शिष्‍यों के साथ शांतिपूर्वक 112 साल की दीर्घायु तक यहांरहे।' इसी वजह से वह स्‍थान 'भेड़ों के चरवाहे का गांव' कहलाने लगा। तुम वहां जा सकते हो, वह शहर अभी भी है-'पहलगाम', उसका काश्‍मीरी में वही अर्थ है-' गड़रिए का गाँव'. जीसस यहां रहना चाहते थे ताकि और अधिक आत्मिक विकास कर सकें। एक छोटे से शिष्‍य समूह के साथ वे रहना चाहते थे ताकि वे सभी शांति में, मौन में डूबकर आध्‍यात्मिक प्रगति कर सकें। और उन्‍होंने मरना भी यहीं चाहा, क्‍योंकि यदि तुम जीने की कला जानते हो तो यहां (भारत में)जीवन एक सौंदर्य है और यदि तुम मरने की कला जानते हो तो यहां (भारत में)मरना भी अत्‍यंत अर्थपूर्ण है। केवल भारत में ही मृत्‍यु की कला खोजी गई है, ठीक वैसे ही जैसे जीने की कला खोजी गई है। वस्‍तुत: तो वे एक ही प्रक्रिया के दो अंग हैं।
यहूदियों के पैगंबर मूसा ने भी भारत में ही देह त्‍यागी थी! इससे भी अधिक आश्‍चर्यजनक तथ्‍य यह है कि मूसा (मोजिज) ने भी भारत में ही आकर देह त्‍यागी थी! उनकी और जीसस की समाधियां एक ही स्‍थान में बनी हैं। शायद जीसस ने ही महान सदगुरू मूसा के बगल वाला स्‍थान स्‍वयं के लिए चुना होगा। पर मूसा ने क्‍यों कश्‍मीर में आकर मृत्‍यु में प्रवेश किया? मूसा ईश्‍वर के देश 'इजराइल' की खोज में यहूदियों को इजिप्‍त के बाहर ले गए थे। उन्‍हें 40 वर्ष लगे, जब इजराइल पहुंचकर उन्‍होंने घोषणा की कि, '' यही वह जमीन है, परमात्‍मा की जमीन, जिसका वादा किया गया था। और मैं अब वृद्ध हो गया हूं और अवकाश लेना चाहता हूं। हे नई पीढ़ी वालों, अब तुम सम्‍हालो!'' मूसा ने जब इजिप्‍त से यात्रा प्रारंभ की थी तब की पीढ़ी लगभग समाप्‍त हो चुकी थी। बूढ़े मरते गए, जवान बूढ़े हो गए और नए बच्‍चे पैदा होते रहे। जिस मूल समूह ने मूसा के साथ यात्रा की शुरुआत की थी, वह बचा ही नहीं था। मूसा करीब-करीब एक अजनबी की भांति अनुभव कर रहे थेा उन्‍होंने युवा लोगों शासन और व्‍यवस्‍था का कार्यभार सौंपा और इजराइल से विदा हो लिए। यह अजीब बात है कि यहूदी धर्मशास्‍त्रों में भी, उनकी मृत्‍यु के संबंध में , उनका क्‍या हुआ इस बारे में कोई उल्‍लेख नहीं है। हमारे यहां (कश्‍मीर में ) उनकी कब्र है। उस समाधि पर भी जो शिलालेख है, वह हिब्रू भाषा में ही है। और पिछले चार हजार सालों से एक यहूदी परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन दोनों समाधियों की देखभाल कर रहा है।
मूसा भारत क्‍यों आना चाहते थे ? केवल मृत्‍यु के लिए ? हां, कई रहस्‍यों में से एक रहस्‍य यह भी है कि यदि तुम्‍हारी मृत्‍यु एक बुद्धक्षेत्र में हो सके, जहां केवल मानवीय ही नहीं, वरन भगवत्‍ता की ऊर्जा तरंगें हों, तो तुम्‍हारी मृत्‍यु भी एक उत्‍सव और निर्वाण बन जाती है. सदियों से सारी दुनिया के साधक इस धरती पर आते रहे हैं। यह देश दरिद्र है, उसके पास भेंट देने को कुछ भी नहीं, पर जो संवेदनशील हैं, उनके लिए इससे अधिक समृद्ध कौम इस पृथ्‍वी पर कहीं नहीं हैं। लेकिन वह समृद्धि आंतरिक है|"
December 22, 2013.

Tuesday 20 December 2016

बौद्ध धर्म का तांत्रिक मत 'वज्रयान' .....

बौद्ध धर्म का तांत्रिक मत 'वज्रयान' .....
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गौतम बुद्ध के प्रामाणिक उपदेश क्या थे इनके बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता| उनके उपदेश उनके देहावसान के पांच सौ वर्षों बाद तक तो लिखे ही नहीं गए थे| हर सौ वर्ष में उनके अनुयायियों की एक सभा होती थी जिसमें उनके उपदेशों पर विचार विमर्श होता था| पांचवीं और अंतिम सभा श्रीलंका के अनुराधापुर नगर में हुई थी| वहाँ पर जो विचार विमर्श हुआ उसको पहली बार पाली भाषा में लिपिबद्ध किया गया| जिन्होंने उस समय लिपिबद्ध किये गए आलेखों को प्रामाणिक माना वे हीनयान कहलाये, और जिन्होंने नहीं माना वे महायान कहलाये| भारत के उत्तर में स्थित देशों में महायान मत फैला और दक्षिण के देशों में हीनयान| अतः बुद्ध के क्या उपदेश थे वे तो वे स्वयं ही बता सकते हैं| वर्तमान में उपलब्ध उनके उपदेशों की प्रामाणिकता पर कुछ नहीं कहा जा सकता|
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सन 0067 ई.में भारत से कश्यप मातंग और धर्मारण्य नाम के दो ब्राह्मण चीन गए और उन्होंने पूरे चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार किया| चीन से ही बौद्ध धर्म कोरिया और मंगोलिया में गया|
ईसा की छठी शताब्दी में भारत से बोधिधर्म नाम का एक ब्राह्मण चीन के हुनान प्रान्त में स्थित शाओलिन मंदिर में गया| वहाँ कुछ समय रहकर वह जापान गया जहाँ उसने 'झेन' (Zen) बौद्ध मत स्थापित किया जो कई शताब्दियों तक वहाँ का राजधर्म रहा|
इस्लाम के जन्म से पूर्व पूरा मध्य एशिया बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था| तुर्किस्तान तक बौद्ध मत था|
दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत से जो बौद्ध धर्म के प्रचारक गए उन्होंने एक विशाल नदी को देखा जिसका नाम उन्होंने 'माँ गंगा' रखा जो बाद में अपभ्रंस होकर 'मेकोंग' नदी हो गया जो वहां की जीवन रेखा है|
ईसा की पांचवी सदी में वज्रयान और सहजयान नाम के दो और तांत्रिक मत फैले| सहजयान में ६४ योगिनियों और उनके अनुचरों आदि की साधनाएँ थीं|
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तिब्बत में जो बौद्ध मत है वह वज्रयान है| सुषुम्ना में तीन उपनाड़ियाँ होती हैं ..... ब्राह्मी, चित्रा और वज्रा| वज्रा नाड़ी में जो शक्ति प्रवाहित होती है उसकी साधना वज्रयान है| वह शक्ति मणिपुर चक्र में स्थित होती है| तंत्र कि दश महाविद्याओं में वह छिन्नमस्ता देवी है| वज्रयान मत का मन्त्र है .... "ॐ मणिपद्मे हुम्"|
मणिपद्मे का अर्थ है .... जो मणिपुर चक्र में स्थित है| हुम् .... छिन्नमस्ता का बीज है, और उनका निवास मणिपुर चक्र में है| इसका अर्थ है ..... मैं उस महाशक्ति (छिन्नमस्ता) का ध्यान करता हूँ जो मणिपुर चक्रस्थ पद्म में स्थित है| माँ छिन्नमस्ता का मन्त्र है .... ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं अईं वज्र वैरोचनीये हुम् हुम् फट स्वाहा| वज्रयान मतानुयायी अप्रत्यक्ष रूप से उन्हीं (माँ छिन्नमस्ता) की साधना करते हैं| कुण्डलिनी महाशक्ति जागृत होकर यदि वज्रा उपनाड़ी में प्रवेश करती है तो समस्त सिद्धियाँ प्रदान करती हैं| ब्राह्मी व चित्रा उपनाड़ी का फल अलग है|
योग साधना में गुरु कृपा से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर सुषुम्ना में प्रवेश तो करती है पर आगे सब गुरु कृपा पर ही निर्भर है| साधक को तो सब कुछ गुरु को ही समर्पित करना होता है|
ॐ ॐ ॐ ||
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(Note: यह लेख चार-पांच वर्ष पूर्व लिखा था| इसमें काफी शोध की आवश्यकता है)

आज के हिन्दू समाज की एक अति ज्वलंत समस्या .....

आज के हिन्दू समाज की एक अति ज्वलंत समस्या .....
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हमारी युवा पीढ़ी संस्कारविहीन और दिशाभ्रमित हो रही है| संयुक्त परिवार टूट गए हैं| बड़े-बूढों की समाज में अब कोई पूछ नहीं रही है|
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओं के बच्चे धार्मिक शिक्षा नहीं पा सकते जब कि यह अधिकार तथाकथित अल्पसंख्यकों को है| तथाकथित अल्पसंख्यक अपने बच्चों को अपने विद्यालयों में अपने धर्म की शिक्षा दे सकते हैं पर हिन्दू नहीं|
अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पश्चिमी संस्कार ही दिए जाते हैं| आज के हिन्दू किशोरों व युवाओं को न तो रामायण महाभारत का ज्ञान है और न अपने अन्य धर्मग्रंथों का|
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हिन्दू युवा दिशाविहीन होकर नशे कि लत में पड़ने लगे हैं जिससे अपराध बहुत बढ़ गए हैं| सरकार भी असहाय है क्योंकि नशे के कारोबार में बड़े बड़े लोगों का बहुत अधिक धन लगा हुआ है| वे देश को बर्बाद कर मात्र पैसा बनाना चाहते हैं|
देश का भविष्य देश के युवा हैं| यदि देश के युवा बिगड़ गए तो देश का भविष्य अंधकारमय होगा| देश के युवाओं में अच्छे संस्कार देना और उन्हें नशे से बचाना हम सब का परम कर्तव्य है|
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सूचनार्थ बताता हूँ कि भारत को छोड़कर अन्य सारे देश अपने युवाओं को नशे से बचाने के प्रति बहुत सजग हैं| सिंगापूर, मलयेशिया और इंडोनेशिया में नशीले पदार्थ रखने पर मृत्युदंड की सजा है| जापान में तो बहुत कठोरता हैं, वहाँ ड्रग्स का धंधा करते कोई पकड़ा जाए तो मरते दम तक वह जेल में ही सड़ेगा| अमेरिका योरोपीय देशों व चीन में भी बहुत अधिक सख्ती है| चीन के लगभग सभी लोगों को अंग्रेजों ने गुलाम बनाने के लिए अफीमची बना दिया था| चीन ने अपने नागरिकों को अफीम के नशे से मुक्त कर लिया है| वहाँ अब कोई अफीम का सेवन नहीं करता| ज़रा सा संदेह होते ही वहाँ विदेशी पर्यटकों की भी जूते और मोज़े तक उतरवा कर तलाशी ली जाती है| भारत में भी नियमों को कठोर बना कर ड्रग्स के धंधे को बंद करना ही पड़ेगा नहीं तो देश का भविष्य अंधकारमय है|
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साथ साथ ध्यान आदि का अभ्यास करा कर व परमात्मा के प्रति भक्ति के संस्कार देकर युवा वर्ग को चरित्रवान बनाना ही पड़ेगा| बच्चों में सद्साहित्य का वितरण और लोकप्रिय बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए|
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फिर हमें सरकार पर दबाव डालकर संविधान से उन प्रावधानों को हटवाना चाहिए जिनके अंतर्गत हिन्दू धर्म की शिक्षा विद्यालयों में नहीं दी जा सकती| धर्म-निरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओं के साथ बहुत अन्याय हो रहा है|
ॐ ॐ ॐ ||

अपनी चेतना का विस्तार करें .....

अपनी चेतना का विस्तार करें ..... 
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(1) सृष्टि के सभी प्राणी मेरे ही भाग हैं| उनका कल्याण ही मेरा कल्याण है| पूरी समष्टि के साथ मैं एक हूँ| मैं किसी से पृथक नहीं हूँ| सभी मेरे ही भाग हैं|
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(2) उपरोक्त विचार पर गहनतम ध्यान करो| ध्यान में प्राप्त हुई उस चेतना को अपने भीतर स्थिर रखो|
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(3) सम्पूर्ण समष्टि मैं स्वयं हूँ| यह सम्पूर्ण सृष्टि, सारा जड़ और चेतन मैं ही हूँ| यह पूरा अंतरिक्ष, पूरा आकाश मैं ही हूँ| सब जातियाँ, सारे वर्ण, सारे मत-मतान्तर, सारे सम्प्रदाय और सारे विचार व सिद्धांत मेरे ही हैं|
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(4) मैं अपना प्रेम सबके ह्रदय में जागृत कर रहा हूँ| मेरा अनंत प्रेम सबके ह्रदय में जागृत हो रहा है| मैं अनंत प्रेम हूँ|
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उस प्रेम में स्थिर रहो| वह प्रेम ही इस सृष्टि का कल्याण करेगा | ॐ ॐ ॐ ||

आध्यात्मिक क्षेत्र में मेरा किसी से कोई विवाद नहीं है .....

आध्यात्मिक क्षेत्र में मेरा किसी से कोई विवाद नहीं है|


मैं अपने आप में पूर्ण संतुष्ट हूँ, मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है और न ही कोई आलोचना और निंदा का विषय मेरे पास है|
मेरी सोच और मेरे विचार एकदम स्पष्ट हैं, मुझे किसी भी तरह का कोई संदेह या शंका नहीं है|


मुझे Chatting यानि गपशप की आदत नहीं है अतः किसी से बेकार की बातें नहीं करता जिसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ|


सभी को मेरी शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ ॐ ॐ ||

Monday 19 December 2016

क्रिसमस पर विशेष (Special on Christmas) ..... (1)

क्रिसमस पर विशेष (Special on Christmas) .....   (1)
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मैं वह कृष्ण (Christ) चैतन्य हूँ जो सदा आपके साथ है|
आपका और इस सृष्टि का जन्म हुआ उससे पूर्व भी मैं था| 
मैं प्रभु की आत्मा हूँ जो प्रत्येक अणु के ह्रदय में है|
आप सदा मेरी दृष्टी में हैं पर आप मुझे देख नहीं सकते|
आप के अस्तित्व के हर भाग को मैं अपना सम्पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम प्रदान करता हूँ|
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वास्तव में मैं स्वयं ही परम प्रेम हूँ|
मैं ही परमात्मा की सर्वव्यापकता हूँ|
मैं ही आपके हृदयों में धडकता हूँ|
मैं ही आपका जीवन हूँ|
मैं और मेरे पिता एक है|
मैं उन का अमृत पुत्र हूँ|
जिस दिन आपका जन्म हुआ, मैं भी आपके भीतर जन्मा था|
मेरा जन्म आपके ह्रदय और मन के एक एकांत और शांत कोने में हुआ|
मैं ही आपके भीतर का कृष्ण हूँ|
मैं निरंतर आपके साथ हूँ|
मैं ही परमात्मा का एकमात्र पुत्र हूँ और मैं स्वयं ही परमात्मा हूँ|
मुझ में और उन में कोई भेद नहीं है| सोsहं|
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि|
|| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत्|
Father, Son and the Holy Ghost.
{ॐ (The Holy Ghost is the sound of Om, or the Word),
तत् (Son is the Krishna or Christ Consciousness),
सत् (Father is God)}.
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पुनश्चः --------- जन्म से कोई पापी नहीं है| आप पापी नहीं हैं| आप परमात्मा के दिव्य अमृत पुत्र हैं| जो परमात्मा का है वह आपका है, उस पर आपका जन्मसिद्ध अधिकार है|
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किसी पिता का पुत्र भटक जाए तो पिता क्या प्रसन्न रह सकता है| भगवान भी आप के दूर जाने से व्यथित हैं| भगवान के पास सब कुछ है पर आपका प्रेम नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं| क्या आप अपना अहैतुकी प्रेम उन्हें बापस नहीं दे सकते? उन्होंने भी तो आप को हर चीज बिना किसी शर्त के दी है| आप अपना सम्पूर्ण प्रेम उन्हें बिना किसी शर्त के दें|
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आप भिखारी नहीं हैं| आपके पास कोई भिखारी आये तो आप उसे भिखारी का ही भाग देंगे| पर अपने पुत्र को आप सब कुछ दे देंगे| वैसे ही परमात्मा के पास आप भिखारी के रूप में गए तो आपको भिखारी का ही भाग मिलेगा पर उसके दिव्य पुत्र के रूप में जाएंगे तो भगवान अपने आप को आप को दे देंगे|
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मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही परमात्मा की प्राप्ति है| आप स्वयं को उन्हें सौंप दें, आप उनके हो जाएँ पूर्ण रूप से तो भगवन भी आपके हो जायेंगे पूर्ण रूप से| अपने ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम बिना किसी शर्त के उन्हें दो| ईश्वर को पाना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है|
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यही इस अवसर का सन्देश है|
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Dec.20, 2013,