"जाति हमारी ब्रह्म है माता पिता है राम| गृह हमारा शुन्य है अनहद में विश्राम|"
कल तक यह बात सत्य थी| अब तो यह भी बहुत पुरानी सी बात हो गयी है|
अब न तो किसी भी तरह की समाधि की कामना है, न ही किसी तरह की तुरियादिवस्था की| बस उनकी उपस्थिति निरंतर बनी रहे| उन की उपस्थिति के समक्ष सब विभूतियाँ बेकार हैं| अब तक की यही सबसे बड़ी उपलब्धी है| पता नहीं हम उन्हें उपलब्ध हुए हैं या वे हमें उपलब्ध हुए हैं|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय|
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