Tuesday, 12 March 2019

शक्तिशाली की ही पूजा होती है .....

शक्तिशाली की ही पूजा होती है .....
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हम शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आर्थिक हर दृष्टी से संसार में शक्तिशाली बनें, तभी हम सम्मान से रह सकते हैं| कमजोर व्यक्ति को सदा और भी अधिक कमजोर बना कर उसका दमन और शोषण किया जाता है| भारत में आये सभी विदेशी आक्रमणकारियों ने भारतीयों को और भी अधिक बलहीन और सामर्थ्यहीन बनाने का कार्य किया| अभी भी हम उबरे नहीं हैं|
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हम स्वयं शक्तिशाली हों, हमारा समाज शक्तिशाली हो और हमारा राष्ट्र भी शक्तिशाली हो| हमारी साधना भी शक्ति की हो| भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के विफल रहने का मुख्य कारण यह था कि किसी भी भारतीय राजा के पास इतना सामर्थ्य नहीं था कि वे अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोही सैनिकों को दो समय का भोजन करा सकें और उन्हें अस्त्र-शस्त्र प्रदान कर सकें|
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रक्षात्मक युद्ध सदा हारे जाते हैं| भारत पर आये विदेशी आक्रान्ताओं ने लूट-खसोट, वीभत्स नरसंहार और अत्याचारों से ही पैसा जुटाया| अँगरेज़ भारत छोड़कर इसी लिए भागे क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध ने उनको शक्तिहीन बना दिया था और भारतीय सैनिकों ने उनके आदेश मानने से मना कर दिया था| विजयी हम तभी हो सकते हैं, जब हम रक्षात्मक न होकर आक्रामक हों, और पूरी क्षमता से संपन्न हों| हमारे में इतना सामर्थ्य हो कि हम शत्रु के घर में घुस कर उसका संहार कर सकें| भारत ने शताब्दियों के बाद पहली बार यह साहस जुटाया है| इसके लिए मैं भारत के वर्त्तमान नेतृत्व को साधुवाद देता हूँ|
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ॐ तत्सत् !
१२ मार्च २०१९

चीन के बारे में मेरे कुछ विचार .....

चीन के बारे में मेरे कुछ विचार .....
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सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है,
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है|
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो| (रामधारीसिंह दिनकर)
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बचपन में एक कविता हमारी चौथी या पांचवी कक्षा में थी ....
"उड़न खटोले उड़न खटोले चीन देश पहुंचा दे आज,
जहां किसानों मजदूरों ने बना लिया है अपना राज |"

यह दिखाता है कि सन १९५० के दशक में चीन के पक्ष में भारत में कितना अधिक असंतुलित प्रचार था| चीन के बारे में बचपन से मेरी कल्पना कुछ और ही थी| चीन ने तिब्बत पर अधिकार किया और भारत के साथ युद्ध हुआ तब विचार कुछ और ही बने| बड़े होने पर कुछ परिपक्वता आई और काफी अध्ययन किया तब विचार कुछ और ही हुए| तीन-चार बार चीन जाने का अवसर मिला, तब विचार कुछ और भी बदले| मैनें चीन की दीवार देखी भी है, उस पर और उसके आसपास खूब घूमा भी हूँ और वहाँ के कई लोगों से मिला भी हूँ| काफी कुछ वहाँ के बारे में जाना है|
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चीन के बारे में वास्तविकता यह है कि सन १९८५ तक चीन भारत से बहुत अधिक पिछड़ा हुआ देश था, वहाँ कोई विशेष विकास नहीं हुआ था| चीन में सन १९८५ से लेकर सन २००० के बीच के पंद्रह वर्षों में ही बहुत अधिक विकास हुआ और अब चीन एक विकसित देश हो गया है| अब तक तो वहाँ सब कुछ बदल गया है|
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नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पूर्व चीन की राजनीति में भारत की कोई परवाह नहीं करता था| अब भारत शक्तिशाली है, चीन के नेताओं की आँखों में आंख डाल कर देखता है, तब वहाँ भारतीयों का सम्मान बढ़ा है| वहाँ का आजीवन राष्ट्रपति शी जिनपिंग (习近平, Xi Jinping) (जन्म: १५ जून १९५३) जिसकी शक्ति किसी भी दृष्टिकोण से माओ से कम नहीं है, भारत के एक ही व्यक्ति से प्रभावित है, और वह व्यक्ति है ... श्री नरेन्द्र मोदी| ये दोनों व्यक्ति मिलकर ही सीमा-विवाद को निपटा सकते हैं|
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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में न तो कोई किसी का मित्र है और न शत्रु| हर देश की विदेश नीति अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप बनती है| वहाँ कोई भावुकता नहीं चलती| चीन इस समय पकिस्तान के अधिक समीप अपने आर्थिक हितों के कारण है, पर भारत का सम्मान भी करता है| आशा करता हूँ कि एक न एक दिन भारत और चीन के मध्य का सीमा विवाद भी सुलझ जाएगा, पर यह भारत के और अधिक शक्तिशाली होने पर निर्भर है| भारत शक्तिशाली होगा तभी भारत का सम्मान होगा|
कृपा शंकर
१२ मार्च २०१८

भारत एक हिन्दू राष्ट्र कैसे बने ? इस विषय पर मेरे विचार .....

भारत एक हिन्दू राष्ट्र कैसे बने ? इस विषय पर मेरे विचार .....
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हिन्दू राष्ट्र एक विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प है जो परमात्मा की कृपा से ही साकार हो सकता है| इसके लिए लाखों साधकों को आध्यात्मिक साधना करनी होगी| हम हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली बनें पर आध्यात्म की उपेक्षा नहीं कर सकते| राष्ट्र के लिए भी नित्य साधना करें| हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के लिए कार्य के साथ-साथ साधना का बल अर्थात ब्रह्म-तेज की भी आवश्यकता है| उसके लिए हिन्दुओं को आध्यात्मिक साधना भी करनी पड़ेगी| हिन्दुओं के पतन का मुख्य कारण उनका धर्मविषयक अज्ञान है| हिन्दुओं को यह ज्ञात नहीं है कि उनके धर्मकर्तव्य कौन से हैं| हिन्दुओं को अब उनके धार्मिक कर्तव्यों का स्मरण करवाने की, अर्थात उन्हें साधना के लिए प्रवृत्त करने की आवश्यकता है| धर्मरक्षा के लिए क्षात्रतेज के साथ-साथ ब्राह्मतेज भी आवश्यक है| यह कार्य केवल बाहुबल से नहीं हो पाएगा| इसके लिए दैवीय सामर्थ्य भी आवश्यक है| केवल शारीरिक, मानसिक अथवा बौद्धिक स्तर पर कार्य करने से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना नहीं हो पाएगी| इसके लिए आध्यात्मिक स्तर पर भी यत्न करने पडेंगे|
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जो जितना अधिक सूक्ष्म है, वह उतना अधिक शक्तिशाली है| प्राचीनकाल में धनुष पर चढाया हुआ बाण मन्त्रोच्चारण के साथ छोडा जाता था| मन्त्रोच्चारण से उस बाण पर शत्रु का नाम सूक्ष्मरूप से अंकित हो जाता था, और वह बाण, तीनों लोकों में कहीं भी छिपे हुए शत्रु को ढूंढकर मार डालता था| हमें उस शक्ति को पुनर्जागृत करने की आवश्यकता है| वह शक्ति ही ब्रह्मतेज है| हम पुराणों में ऋषि-मुनियों के शाप देने की कथाएं पढते हैं| इस शाप में संकल्प की ही शक्ति होती है| ऋषि-मुनियों को यह संकल्पशक्ति साधना से ही प्रप्त होती थी| हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए केवल शारीरिक स्तरपर यत्न करना पर्याप्त नहीं होगा, इसके लिए तो साधना से संकल्पशक्ति प्राप्त कर के कार्य करना होगा|
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कुंभ जैसे मेलों और सन्तों के सत्संग में उनके ब्रह्मतेज के कारण ही लाखों लोग श्रद्धापूर्वक स्वेच्छा से आते हैं| उन्हें बुलाने के लिए राजनीतिक दलों की भांति पैसे नहीं देने पडते अथवा वाहन की निःशुल्क व्यवस्था नहीं करनी पडती है| देश को आवश्यकता किस चीज की है और उसे कैसे साकार किया जा सकता है, इसे आजकल प्रायः सभी समझते हैं| उस दिशा में साकार कार्य करें| कई संस्थाएँ और अनेक व्यक्ति इस कार्य में लगे हुए हैं| पर उनकी संख्या बहुत कम है| देश की क्या समस्याएँ हैं और उनका समाधान क्या है, इसे बहुत लोग समझते हैं पर कार्यरूप में परिवर्तित नहीं कर पा रहे हैं| इस विषय पर मैं कई बार लेख लिख चुका हूँ|
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जो मैं करना चाहता हूँ, सब से पहले तो उसे स्वयं से ही पूर्ण मनोयोग से करने की आवश्यकता है| देश की समस्याओं को मैं बहुत अच्छी तरह समझता हूँ और उनके समाधान को भी| कमी मैं स्वयं में ही पाता हूँ, और समाधान भी स्वयं में ही है| आवश्यकता उस समाधान को और अधिक घनीभूत रूप देने की है| सृष्टिकर्ता परमात्मा की कृपा से ही हम अपनी आकांक्षाओं को साकार कर सकते हैं| हमें चाहिए एक प्रबल आध्यात्मिक शक्ति और ब्रह्मतेज जिसके लिए आध्यात्मिक साधना करनी होगी| वह आध्यात्मिक शक्ति और ब्रह्मतेज ही हमारी अभीप्साओं को घनीभूत रूप दे सकता है|

सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! हर हर महादेव ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० मार्च २०१९