Tuesday 29 May 2018

हमारी कोई समस्या नहीं है, समस्या हम स्वयं हैं .....

हमारी कोई समस्या नहीं है, समस्या हम स्वयं हैं .....
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"दीनदयाल सुने जब ते, तब ते मन में कछु ऐसी बसी है |
तेरो कहाये कै जाऊँ कहाँ, अब तेरे ही नाम की फ़ेंट कसी है ||
तेरो ही आसरो एक मलूक, नहीं प्रभु सो कोऊ दूजो जसी है |
ए हो मुरारी ! पुकारि कहूँ, मेरी नहीं, अब तेरी हँसी है ||"
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सभी समस्याएँ प्राणिक (Vital) और मानसिक (Mental) धरातल पर उत्पन्न होती हैं| उन्हें वहीं पर निपटाना होगा| पर वहाँ माया का साम्राज्य इतना प्रबल है जिसे भेदना हमारे लिए बिना हरिकृपा के असम्भव है| हमारी एकमात्र समस्या है ..... परमात्मा से पृथकता| यह बिना शरणागति और समर्पण के दूर नहीं होगी| परमात्मा का ध्यान और चिंतन ही सत्संग है| हमें चाहिए सिर्फ सत्संग, सत्संग और सत्संग| यह निरंतर सत्संग मिल जाए तो सारी समस्याएँ सृष्टिकर्ता परमात्मा की हो जायेंगी|
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>>>> हम साधना करते हैं, मंत्रजाप करते हैं, पर हमें सिद्धि नहीं मिलती इसका मुख्य कारण है.... असत्यवादन| झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है और किसी भी स्तर पर मन्त्रजाप का फल नहीं मिलता| इस कारण कोई साधना सफल नहीं होती|
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>>>> सत्य और असत्य के अंतर को शास्त्रों में, और विभिन्न मनीषियों ने स्पष्टता से परिभाषित किया है| सत्य बोलो पर अप्रिय सत्य से मौन अच्छा है| प्राणरक्षा और धर्मरक्षा के लिए बोला गया असत्य भी सत्य है, और जिस से किसी की प्राणहानि और धर्म की ग्लानी हो वह सत्य भी असत्य है|

>>>> जिस की हम निंदा करते हैं उसके अवगुण हमारे में भी आ जाते हैं|
जो लोग झूठे होते हैं, चोरी करते हैं, और दुराचारी होते हैं, वे चाहे जितना मंत्रजाप करें, और चाहे जितनी साधना करें उन्हें कभी कोई सिद्धि नहीं मिलेगी|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ मई २०१६

महान युग पुरुष वीर सावरकर को नमन .....

अति महान युग पुरुष, परम देश भक्त वीर सावरकर को आंग्ल दिनांकानुसार (जन्म: २८ मई १८८३ - मृत्यु: २६ फ़रवरी १९६६) उनकी १३५वीं जयंती पर कोटिशः नमन ---
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भारत की स्वतंत्रता में उनका योगदान सर्वोच्च था| भारत माँ को स्वतंत्र कराने व धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए --- जीवनमुक्त अनेक प्राचीन महात्माओं ने भारत भूमि पर करुणावश स्वेच्छा से जन्म लिया| ऐसी ही एक महान आत्मा थीं --- श्री विनायक दामोदर सावरकर | भारत माँ के अधिकाँश कष्ट उन्होंने अपनी स्वयं की देह पर लिए| वे कोई सामान्य मनुष्य नहीं थे जो अपने प्रारब्ध या संचित कर्मफलों के कारण जन्म लेते| वे तो एक जीवनमुक्त स्वतंत्र महान आत्मा थे जिन्होंने भारत माँ को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपने ही स्तर की कुछ महान आत्माओं के साथ भारत भूमि पर स्वेच्छा से जन्म लिया| इतने अमानवीय कष्ट व यंत्रणाएं सहन कर, और अनेक महान कार्य करके वे स्वेच्छा से इस संसार से चले भी गए|
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"१८५७ का स्वतंत्रता संग्राम" नामक ग्रन्थ उनका महानतम ऐतिहासिक साहित्य था जिससे सभी क्रांतिकारियों और देशभक्त सैनिकों ने प्रेरणा ली| यह ग्रन्थ भारत की स्वतंत्रता का हेतु बना| अंडमान के बंदी जीवन से मुक्त होकर उन्होंने पूरे भारत में घूम कर हज़ारों हिंदु युवकों को सेना में भर्ती कराया| उनके इस प्रयास से भारत की ब्रिटिश सेना में हिन्दू सैनिकों की संख्या अधिक हुई| उनका कहना था की हमारे पास न तो अस्त्र-शस्त्र है, न उनको चलाना जानने वाले युवा हैं| वे चाहते थे कि हिन्दू युवा सेना में भर्ती हों, अस्त्र-शस्त्र प्राप्त करें, उन्हें चलाना सीखें और उनका मुँह अंग्रेजों की ओर मोड़ दें| नेताजी सुभाष बोस ने वीर सावरकर की प्रेरणा से ही आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की थी|
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द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् भारतीय सिपाहियों ने अँगरेज़ अधिकारियों का आदेश मानने से मना कर दिया| नौ सेना का विद्रोह हुआ और अन्ग्रेज़ इतने डर गए कि भारत छोड़कर जाने को विवश हो गए| भारत माँ सदा ऐसे वीर पुत्र उत्पन्न करती रहेगी| 

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वीर सावरकर को श्रद्धांजलि और भारत माता की जय ! वन्दे मातरम् !!
ॐ ॐ ॐ !!

क्रिया योग साधना (Kriya Yoga Sadhna) :-----

क्रिया योग साधना (Kriya Yoga Sadhna) :-----
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे | प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ||४:२९||"
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यह एक सूक्ष्म प्राणायाम और गुरुमुखी विद्या है जिसे गुरु प्रत्यक्ष रूप से अपने शिष्य को अपने सामने बैठाकर सिखाते हैं| अतः पुस्तक में पढ़ने मात्र से इसे कोई नहीं समझ सकता| जो साधक योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की क्रियायोग साधना पद्धति में दीक्षित हैं और उनके द्वारा सिखाई हुई क्रिया योग साधना का अभ्यास करते हैं वे इसे ठीक से समझ पायेंगे क्योंकि यह वही साधना पद्धति है जिसको महावातार बाबाजी ने "क्रिया योग" के नाम से पुनर्जीवित किया| यह साधना पद्धति लुप्त हो गयी थी, जिसे सन १८६१ ई.में महावतार बाबाजी ने श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय को सिखाकर, उनके माध्यम से पुनः प्रचलित किया| इस साधना को गुरु प्रदत्त विधि से, और गुरु की आज्ञा से ही करने का विधान है|
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इसे गोपनीय इस लिए रखा गया है क्योंकि इस साधना से कुण्डलिनी जागरण होता है, और साधना काल में साधक का आचार विचार यदि सही नहीं हो तो इस से लाभ की बजाय हानि ही हानि हो सकती है|
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यह एक वैदिक साधना है जिसका आरम्भ वैदिक काल से है| यह साधना संभवतः 'कृष्ण यजुर्वेद' के 'श्वेताश्वतरोपनिषद' में मिल सकती है| इसका वर्णन मुझे अन्यत्र भी कई स्थानों पर मिला है| पर पुस्तकों से कुछ भी समझ में नहीं आयेगा| एक अधिकृत श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध सदगुरु ही इसे समझा सकता है|
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(इस विषय पर मैं अब कोई चर्चा या विचार विमर्श नहीं करूँगा, और न ही किसी प्रश्न का उत्तर दूंगा| "योगी कथामृत" (Autobiography of a Yogi) नामक पुस्तक के माध्यम से ही यह साधना पद्धति पूरे विश्व में लोकप्रिय हुई थी| जिनकी अधिक रूचि है वे उपरोक्त पुस्तक पढ़ सकते हैं, या नीचे दी हुई लिंक पर जाकर परमहंस योगानंद द्वारा लिखी गीता की टीका में उपरोक्त श्लोक का विस्तार से दिया अर्थ पढ़ सकते हैं|)
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संक्षेप में रूचि जागृत करने के लिए निम्न पंक्तियाँ लिख रहा हूँ| जो प्राणवायु सुषुम्ना के ऊपरी भाग में है, धीरे धीरे उसे रेचक क्रिया द्वारा सुषुम्ना मार्ग के भीतर भीतर से ही सहस्त्रार से मूलाधार चक्र में लाकर अपानवायु को अर्पित कर देते हैं| तत्पश्चात पूरक क्रिया द्वारा अपानवायु को सुषुम्ना मार्ग के भीतर भीतर से ही मूलाधार चक्र से उठाकर सहस्त्रार में प्राण वायु को अर्पित कर देते हैं| हर चक्र पर एक बीज मन्त्र का जप करते हैं| योगियों ने इसका नाम "केवली" प्राणायाम भी दिया है| इस क्रिया से प्राण और अपान की गति रुद्ध होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप प्राण तत्व अपनी चंचलता को छोड़ कर स्थिर होने लगता है| मन स्थिर होने लगता है, और चित्त व उसकी वृत्तियाँ भी नहीं रहतीं| उनका स्थान ज्ञान और आनंद ले लेता है| फिर भौतिक रूप से भी स्थिरता आने लगती है|
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इस श्लोक के विभिन्न अति प्रसिद्ध स्वनामधन्य आचार्यों द्वारा किये हुए अर्थ 'Gita Supersite' नामक वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, जहां से आप उन्हें कभी पढ़ भी सकते हैं| यह गुरुमुखी विद्या है जिसे अधिकृत गुरु ही अपने शिष्य को दे सकता है| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मई २०१८
Kriya Yoga (1)
Kriya Yoga - the life-force control technique, the technique of God-communion. Awakening of Kundalini, In-depth interpretation of the Bhagavad Gita.
yogananda.com.au

अंतरजाल (Internet) पर अश्लील संकेतस्थलों (pornographic websites) पर पता नहीं कब रोक लगेगी ? ....

अंतरजाल (Internet) पर अश्लील संकेतस्थलों (pornographic websites) पर पता नहीं कब रोक लगेगी ?
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महिलाओं के यौन शोषण और बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगाने की दिशा में सर्वप्रथम कार्य यह होना चाहिए कि इन्टरनेट पर आसानी से उपलब्ध सभी पोर्नोग्राफिक वेबसाइट्स पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया जाए| देश की युवा पीढी आज पतन की ओर अग्रसर हो रही है| इस पतन को रोकना सरकार का काम है| इस की मांग पहिले भी उठी थी पर देश के अनेक पत्रकारों ने और वामपंथी सेकुलर जमात ने उस मांग का विरोध किया था| उन्होंने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा था|
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अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर देश को चरित्रहीन नहीं बनाया जा सकता| कृपया इस सन्देश को सम्बंधित मंत्रालयों, मंत्रियों और अधिकारियों को भेजें| धन्यवाद !

सृष्टि का एक रहस्य .....

सृष्टि का एक रहस्य .....
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सृष्टि का एक रहस्य है कि समृद्धि के चिंतन से समृद्धि आती है, प्रचूरता के चिंतन से प्रचूरता आती है, अभावों के चिंतन से अभाव आते हैं, दरिद्रता के चिंतन से दरिद्रता आती है, दु:खों के चिंतन से दु:ख आते हैं, पाप के चिंतन से पाप आते हैं, और हम वैसे ही बन जाते हैं जैसा हम सोचते हैं| जिस भी भाव का चिंतन हम निरंतर करते हैं, प्रकृति वैसा ही रूप लेकर हमारे पास आ जाती है और हमारे चारों ओर की सृष्टि वैसी ही बन जाती है| ये विचार, ये भाव ही हमारे "कर्म" हैं जिनका फल भोगने को हम बाध्य हैं| पूरी सृष्टि में जो कुछ भी हो रहा है वह हम सब मनुष्यों के सामुहिक विचारों का ही घनीभूत रूप है| इसमें भगवान का कोई दोष नहीं है| हब सब भगवान के ही अंश हैं, हम सब ही भगवान में एक हैं, पृथक पृथक नहीं, हम ही भगवान हैं, यह देह नहीं|
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जब भी हम किसी से मिलते हैं या कोई हम से मिलता है तो आपस में एक दूसरे पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता| किसी के विचारों का प्रभाव अधिक शक्तिशाली होता है किसी का कम| इसीलिये साधक एकांत में रहना अधिक पसंद करते हैं| किसी महान संत ने ठीक ही कहा है कि ईश्वर से संपर्क करने के लिए एकांतवास की कीमत चुकानी पडती है| एक विद्यार्थी जो डॉक्टर बनना चाहता है उसे अपनी ही सोच के विद्यार्थियों के साथ रहना होगा| जो जैसा बनना चाहता है उसे वैसी ही अनुकूलता में रहना होता है|
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इसी तरह संसार की जटिलताओं में रहते हुए ईश्वर पर ध्यान करना अति मानवीय कार्य है जिसे हर कोई नहीं कर सकता है| इसे कोई लाखों में से एक ही कर सकता है| लोग उस लाखों में से एक का ही उदाहरण देते हुए दूसरों को निरुत्साहित करते हैं| जो ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें हर प्रतिकूलता पर प्रहार करना होगा| सबसे महत्वपूर्ण है अपने विचारों पर नियंत्रण| इसके लिए अपने अनुकूल वातावरण निर्मित करना पड़ता है|
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स्वामी रामतीर्थ स्वयं को बादशाह राम कहते थे| उनके लिए पूरी सृष्टि उनका परिवार थी, समस्त ब्रह्माण्ड उनका घर, और पूरा भारत ही उनकी देह थी|| बिना रुपये पैसे के पूरे विश्व का भ्रमण कर लिया, विदेशों में खूब प्रवचन दिए और जिस भी वस्तु की उन्हें आवश्यकता होती, प्रकृति उन्हें उस वस्तु की व्यवस्था कैसे भी स्वयं कर देती| अगर हमारे संकल्प में गहनता है तो इस सृष्टि में कुछ भी हमारे लिए अप्राप्य नहीं है| तपस्वी संत महात्मा एकांत में रहते है| भगवन उनकी व्यवस्था स्वयं कर देते हैं क्योंकि वे निरंतर भगवान का ही चिंतन करते है|
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अपने ह्रदय और मन को शांत रखो| जो कुछ भी परमात्मा का है वह सब हमारा ही है| यह समस्त सृष्टि हमारी ही है| जहाँ तक हमारी कल्पना जाती है वहां तक के हम ही सम्राट हैं| सृष्टि के सारे सद्गुण हमारे ही हैं| अपने आप को परमात्मा को सौंप दो| परमात्मा का सब कुछ हमारा ही है| स्वयं परमात्मा ही हमारे हैं| जब भगवान ही हमारे हो गए तो और पाने के लिए बाकी क्या बचा रह गया है ???. हमें आभारी होना चाहिए कि भगवान ने हमें स्वस्थ देह दी है, अपना चिंतन दिया है, अहैतुकी प्रेम दिया है, हमारे सिर पर एक छत दी है, अच्छा पौष्टिक भोजन मिल रहा है, स्वच्छ जल और हवा मिल रही है, पूरे विश्व में हमारे शुभचिंतक मित्र है जो हम से प्रेम करते हैं, और हमारे गुरु महाराज हैं जो निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं|
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जिस आसन पर बैठ कर हम भगवान का ध्यान करते हैं वह हमारा सिंहासन है| जहाँ तक हमारी कल्पना जाती है वहाँ तक के हम सम्राट हैं| हम स्वयं ही वह सब हैं| पूरी सृष्टि हमारा परिवार है, समस्त ब्रह्मांड हमारा घर है, हम परमात्मा की दिव्य संतान हैं| जो कुछ भी भगवान का वैभव है उस पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| वह सब हम स्वयं ही हैं| हम स्वयं ही परम ब्रह्म हैं| हम और हमारे परम पिता परमात्मा एक हैं| जब भगवान ही हमारे हो गए तो और पाने के लिए बाकी कुछ भी नहीं रह गया है| सब कुछ तो प्राप्त कर लिया है| मैं और मेरे प्रभु एक हैं, अब उन में और मुझ में कोई भेद नहीं रह गया है|
शिवमस्तु ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ मई २०१३