Tuesday, 18 December 2018

सभी समस्याओं का समाधान और सभी प्रश्नों का उत्तर :---

सभी समस्याओं का समाधान और सभी प्रश्नों का उत्तर :---
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इसी क्षण मेरे पास सभी समस्याओं का समाधान भी है, और सभी प्रश्नों का उत्तर भी है| पर यह मेरा विशेषाधिकार है कि मैं उसे व्यक्त करूं या नहीं| यहाँ मैं मेरे अनुभव साझा कर रहा हूँ| जिस स्तर पर मेरी सोच है, उत्तर भी उसी स्तर पर होगा| मैं अपना स्तर नीचे नहीं कर सकता| कोई नहीं समझे तो यह उसकी समस्या है|
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सभी समस्याएँ और उनका समाधान :---
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हमारी एक ही समस्या है और उसका समाधान भी एक ही है| हमारी प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या है ..... "परमात्मा से पृथकता", अन्य कोई समस्या नहीं है|

इस समस्या का एक ही समाधान है .... "परमात्मा से परम प्रेम, परम प्रेम व परम प्रेम, और परमात्मा को पूर्ण समर्पण"| अन्य कोई समाधान नहीं है|
यह सृष्टि परमात्मा की रचना है, अतः सारी समस्याएँ उसी की हैं, हमारी नहीं| हमारी एकमात्र समस्या है कि हम परमात्मा को कैसे प्राप्त हों|
कुतर्कों द्वारा स्वयं को ठगें नहीं, कुतर्क बहुत है और कुतर्क भी भी वे ही लोग करते हैं जो स्वयं को परमात्मा का होना बताते हैं| अतः प्रत्यक्ष परमात्मा से ही प्रश्न कीजिये, उत्तर अवश्य मिलेगा|
इधर-उधर भटकने की कोई आवश्यकता नहीं है| अपने मन को शांत करें, अपनी चेतना को भ्रूमध्य या उस से ऊपर रखें और अपने हृदय के पूर्ण प्रेम के साथ परमात्मा का निरंतर स्मरण करें| जगन्माता के रूप में परमात्मा की कृपा अवश्य होगी| फिर कोई समस्या नहीं रहेगी|
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सारे प्रश्न और उनका उत्तर :----
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सारे प्रश्नों का जन्म हमारे व्याकुल, अशांत व सीमित मन के कारण होता है| हमारा सीमित व अशांत मन ही सारे प्रश्नों का जनक है| जिस क्षण हमारा मन शांत होगा, उसकी सीमाएँ टूटेंगी, उसी क्षण हमारे सारे प्रश्न भी तिरोहित हो जायेंगे|
किसी शांत स्थान पर शांत होकर बैठो, परमात्मा से प्रार्थना करो और परमात्मा का ध्यान करो| परमात्मा से प्रेम होगा तो सारे प्रश्नों का उत्तर भी वे स्वयं ही दे देंगे|
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और मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ दिसंबर २०१८
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पुनश्चः :---- गीता जयंती की शुभ कामनाएँ !

गीता जयंती १८ दिसंबर २०१८ की प्रातः शोभायात्रा :----

गीता जयंती १८ दिसंबर २०१८ की प्रातः शोभायात्रा :----
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"कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः |
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ||गीता:२:७||
भावार्थ :--- करुणा के कलुष से अभिभूत और कर्तव्यपथ पर संभ्रमित हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिये जो श्रेयष्कर हो उसे आप निश्चय करके कहिये क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ. शरण में आये मुझको आप उपदेश दीजिये ||
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"गीता जयंती" कल मंगलवार १८ दिसंबर २०१८ को पूरे देश में मनाई जा रही है| इसकी तिथि पर कुछ मतभेद था, कुछ विद्वान् पंडित इसे १९ दिसंबर को बता रहे थे, पर अब प्रायः सभी १८ को ही मना रहे हैं| गीता के किसी भी एक अध्याय का अर्थ सहित स्वाध्याय करें| यदि अधिक का कर सकते हैं तो अधिक का करें, पर करें अवश्य|
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राजस्थान के झुंझुनूं नगर में कई माताएँ तीन अलग अलग स्थानों से प्रातः संकीर्तन करते हुए प्रभातफेरी निकालती हैं| वे तीनों प्रभातफेरी परिवार मिल कर इंदिरा नगर के नगर नरेश बालाजी मंदिर से कल मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी दिनांक १८ दिसंबर २०१८ मंगलवार को प्रातः ६ बजे हरिकीर्तन व गीता जी के श्लोकों के शुद्ध उच्चारण के साथ शोभायात्रा निकालेंगी| यह शोभायात्रा गौशाला तक जायेगी| वहीं से पूजा और प्रसाद वितरण के बाद विसर्जन होगा| वहाँ छोटे बच्चों के मुंह से गीता के श्लोकों का शुद्ध उच्चारण सुनकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाएगा|
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गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है| गीता ईश्वर का ज्ञान है जिसे स्वयं भगवान ने दिया है ..... या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता || श्रीगीताजी की उत्पत्ति धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुई थी| यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है|
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गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं| इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है| इसके छोटे-छोटे १८ अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश हैं, जो मनुष्य मात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं|
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सभी स्थानीय श्रद्धालुगण अवश्य पधारें.
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्| देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्||

साधना में कर्ता कौन हैं ?.....

साधना में कर्ता कौन हैं ?.....
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आध्यात्मिक साधना में "कर्ता" सिर्फ भगवान हैं| वे ही साध्य हैं, वे ही साधना हैं, और साधक भी वे ही हैं| भक्ति का दिखावा और भक्ति का अहंकार ..... साधना पथ पर सबसे बड़ी बाधाएँ हैं| यह स्वयं को ठगना और स्वयं को धोखा देना है| आध्यात्मिक साधना और भक्ति, गोपनीय होनी चाहिएँ| इस धोखे से बचने का एक ही उपाय है, और वह है .... "समर्पण"| अपनी भक्ति और साधना का फल तुरंत भगवान को अर्पित कर दो, अपने पास बचाकार कुछ भी ना रखो, सब कुछ भगवान को अर्पित कर दो| अपने आप को भी परमात्मा को अर्पित कर दो| कर्ता भाव से मुक्त हो जाओ| हम भगवान के एक उपकरण या खिलौने के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं हैं| कर्ता तो भगवान स्वयं हैं|
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वास्तव में हम कोई साधना नहीं करते हैं| हमारे माध्यम से हमारे गुरु और परमात्मा ही साधना करते हैं| उन्हें कर्ता बनाने से लाभ यह है कि किसी भी भूल-चूक का वे शोधन कर देते हैं| हम तो निमित्त मात्र हैं| प्रभु प्रेम के अतिरिक्त हृदय में अन्य कोई वासना नहीं होनी चाहिए| उनके प्रेम पर तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| अन्य कुछ भी हमारा नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ गुरु ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०१८

संक्षेप में, सुख और आनंद की खोज क्या है ? .....

संक्षेप में, सुख और आनंद की खोज क्या है ? .....
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वैशेषिक दर्शन के आचार्य ऋषि कणाद के अनुसार चार प्रकार के अस्थायी सुख होते हैं .... (१) विषयभोगजन्य. (२) अभिमानजन्य. (३) मनोरथजन्य. (४) अभ्यासजन्य. उन्होंने इन्हें अस्थायी सुख बताया है|
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सुख की खोज वास्तव में अनजाने में आनंद की खोज है जिसे हम नहीं समझते| आनन्द .... परमात्मा की उपस्थिति का आभास है| "ख" का अर्थ आकाश तत्व है| जो आकाश तत्व यानि परमात्मा के समीप होने की अनुभूति कराता है वह सुख है| जो आकाश तत्व से दूर होने की अनुभूति कराता है वह दुःख है| ये दोनों ही अनुभूतियाँ अस्थायी और मन की अवस्थाएँ मात्र हैं| स्थायी तो सिर्फ आनंद है जिसका स्त्रोत परमप्रेम यानी भक्ति है| सार की बात यह है कि भगवान की अनन्य भक्ति और समर्पण से ही हमें आनंद प्राप्त हो सकता है| अन्य कोई स्त्रोत नहीं है|
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वेदान्त दर्शन के अनुसार जिस आनंद को हम अपने से बाहर खोज रहे हैं, वह आनंद तो हम स्वयं हैं| कृष्ण यजुर्वेद शाखा के तैत्तिरीयोपनिषद में एक पूरा अध्याय ही ब्रह्मानन्दवल्ली के नाम से है| सार की बात है कि आनंद कुछ पाना नहीं, बल्कि स्वयं का होना है| हम आनंद को कहीं से पा नहीं सकते, स्वयं आनंदमय हो सकते हैं| हमारा वास्तविक अस्तित्व ही आनंद है|
शान्तिपाठ :----
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०१८

आज से दो वर्ष पूर्व हुई एक अनुभूति .....

आज से दो वर्ष पूर्व हुई एक अनुभूति .....

"कल पूरी रात खाँसी से त्रस्त था, रात को सो नहीं पाया, पूरी रात बहुत खाँसी आई| भोर में बहुत थोड़ी सी देर नींद आई| जब नींद खुली तब एक बड़ी दिव्य अनुभूति हुई| मन में यही प्रश्न उठा कि मनुष्य जीवन की उच्चतम उपलब्धि क्या हो सकती है? अचानक दोनों नासिकाएँ खुल गईं, दोनों नासिकाओं से सांस चलने लगी, सुषुम्ना चैतन्य हो गयी, मैं कमर सीधी कर के बैठ गया और एक दिव्य अलौकिक चेतना में चला गया| पूरा ह्रदय प्रेम से भर उठा| प्रेम भी ऐसा जो अवर्णनीय है| पूरा अस्तित्व प्रेममय हो गया| प्रेमाश्रुओं से नयन भर गए| ऐसा लगा जैसे एक छोटा सा बालक जगन्माता की गोद में बैठा हो और माँ उसे खूब प्रेम कर रही हो| तब इस प्रश्न का उत्तर मिल गया कि जीवन की उच्चतम उपलब्धी क्या हो सकती है| जब प्रत्यक्ष परमात्मा का प्यार चाहे वह अति अल्प मात्रा में ही मिल जाए, तो उससे बड़ी अन्य क्या कोई उपलब्धी हो सकती है? हे जगन्माता, चाहे तुमने अपने प्यार का एक कण ही दिया हो, पर वह मेरे लिए अनमोल है| माँ, मुझे अपनी चेतना में रखो| तुम्हारा प्यार ही मेरे लिए सर्वोच्च उपलब्धी है| तुम्हारे प्रेम की चेतना में निरंतर सचेतन स्थित रहूँ| और कुछ भी नहीं चाहिए| 

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१६

मन को निराश न करें, सदा उत्साह बनाए रखें .....

मन को निराश न करें, सदा उत्साह बनाए रखें .....
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आध्यात्मिक साधकों को कभी भी निराश और उत्साहहीन नहीं होना चाहिए| भगवान हर समय हमारे साथ हैं, अभी हैं, इसी समय हैं, और सदा रहेंगे| जब भगवान सदा हमारे साथ हैं तो निराशा कैसी? अपने उत्साह को बनाए रखें| कई अति उन्नत आत्माएँ मेरे अच्छे मित्र हैं जिन्होनें अपना पूरा जीवन परमात्मा को समर्पित कर रखा है और आध्यात्मिक क्षेत्र में खूब प्रगति की है| समय समय पर उन से सत्संग होता रहता है| उनके साथ सत्संग से मेरा भी उत्साह बढ़ता रहता है|
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एक बात जिस पर मैं और चर्चा नहीं करना चाहूँगा, वह यह है कि एक अतिमानसी दैवीय शक्ति का पिछले कुछ दिनों में ही भारत में अवतरण हो चुका है, जिसकी मुझे स्पष्ट अनुभूतियाँ हो रही हैं| उसके प्रभावशाली तेज से अनेक उन्नत आत्माओं का रुझान भगवान की भक्ति, व आध्यात्म में होने लगा है, और निरंतर होगा| अनेक अति उन्नत आत्माएँ भारत में जन्म ले रही हैं| असत्य और अन्धकार की शक्तियों का कोई भविष्य नहीं है, उनका पराभव सुनिश्चित है| भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र होगा .... इसमें मुझे तो कोई संदेह नहीं है| जैसे हर कार्य अपने तय समय पर होता है वैसे ही भारतवर्ष का पुनश्चः एक आध्यात्मिक राष्ट्र बनने का समय आ गया है| भगवान की ऐसी ही इच्छा है|
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रात्री को सोने से पूर्व भगवान का ध्यान कर के सोयें, प्रातःकाल उठते ही फिर भगवान का ध्यान करें, और निरंतर अपनी हर सांसारिक गतिविधि के मध्य भगवान का स्मरण रखें| जीवन का केंद्रबिंदु और अपने हर कार्य का कर्ता परमात्मा को बनाएँ, स्वयं तो निमित्त मात्र ही बन कर रहें| भगवान से प्रेम हमारा स्वभाव बन जाए| हम स्वयं ही प्रेममय बन जाएँ|
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चिंता की कोई बात नहीं है| भगवान का स्पष्ट आश्वासन है .....
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि|१८:५८||

जितनी भी हो सके, जितनी भी संभव हो, साधना करें .....
"नेहाभिक्रम-नाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पम् अप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"
समभाव में स्थित होने का सदा प्रयास करें जो साधना द्वारा ही संभव है .....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्धय्-असिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||"
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१८

"विजय दिवस" पर अभिनन्दन, बधाई और शुभ कामनाएँ .....

"विजय दिवस" पर अभिनन्दन, बधाई और शुभ कामनाएँ .....
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विजय दिवस ..... १६ दिसंबर १९७१ के दिन भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है| इस युद्ध में ९३००० पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था और एक नए देश 'बांग्लादेश' का जन्म हुआ| इस युद्ध में भारत के लगभग ३९०० सैनिक शहीद हुए और ९८५१ घायल हुए|
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इस युद्ध में हुतात्मा भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि, और उस समय के सभी अब तो वयोवृद्ध हुए, युद्ध में जिन्होनें सक्रीय भाग लिया था, War Veterans (जिनमें मैं भी हूँ) का अभिनन्दन !
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(१९७१ के युद्ध में बंगाल की खाड़ी में भारतीय नौसेना की एक ही पनडुब्बी I.N.S.Khanderi थी, जिसने उस समय के पूर्वी पाकिस्तान जाने के समुद्री मार्ग को अवरुद्ध कर युद्ध में सक्रीय भाग लिया था. उस पनडुब्बी पर मैं नियुक्त था. कुछ समय के लिए मैं नौसेना में था और १९६५ व १९७१ के युद्धों में सक्रीय भाग लिया था. १९६५ के युद्ध में मैं नौसेना के फ्लैगशिप I.N.S.Mysore पर नियुक्त था. दोनों युद्धों के सारे घटनाक्रम मुझे पूरी तरह याद हैं. मेरे कई मित्रों ने १९७१ के युद्ध में बड़े साहसिक कार्य किये थे).
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१८

भीड़ में अकेला हूँ .....

भीड़ में अकेला हूँ, पर अपनी मान्यताओं पर दृढ़ हूँ| मेरी मान्यता है कि वास्तविक विकास आत्मा का विकास है| देशभक्त, स्वाभिमानी, चरित्रवान, ईमानदार, निष्ठावान, शिक्षित, कार्यकुशल और राष्ट्र को समर्पित नागरिक ही राष्ट्र की वास्तविक संपत्ति हैं| वे होंगे तो सब कुछ सही होगा| हमें अपनी अस्मिता और राष्ट्रीय चरित्र की रक्षा करनी चाहिए| साफ सुथरी चौड़ी चौड़ी सड़कें और अति सुन्दर बड़े बड़े भवनों से ही राष्ट्र विकसित नहीं होता|
कृपा शंकर
१२ दिसंबर २०१८