Wednesday, 15 January 2025

सारे सद्गुणों व ज्ञान के स्त्रोत परमात्मा हैं ---

 सारे सद्गुणों व ज्ञान के स्त्रोत परमात्मा हैं| हमारा प्रेम और समर्पण उन्हीं के प्रति हो| उन्हीं का हम ध्यान करें| पात्रतानुसार सारा मार्गदर्शन वे स्वयं करते हैं| परमात्मा से प्रेम -- सबसे बड़ा सद्गुण है जो सभी सद्गुणों को अपनी ओर आकर्षित करता है| अपने हृदय का पूर्ण प्रेम परमात्मा को दें| उन्हीं में सुख, शांति, समृद्धि, सुरक्षा, संतुष्टि, और तृप्ति है|

तारक मंत्र "राम" से अधिक सुंदर अन्य कोई दूसरा मंत्र नहीं है| "र" अग्नि का बीजमंत्र है, जो कर्म बंधनों का दाहक है| "अ" सूर्य का बीजमंत्र है, जो ज्ञान का प्रकाशक है| "म" चंद्रमा का बीजमंत्र है जो मन को शांत करता है|

शिव पूजा, -- गीता, सुंदरकांड, हनुमान चालीसा आदि का पाठ, -- जपयोग व भगवान का यथासंभव ध्यान, तो हरेक घर में नित्य होना ही चाहिए| जिनका उपनयन यानि यज्ञोपवीत संस्कार हो गया है, उन्हें गायत्री या सावित्री मंत्र का खूब जप करना चाहिए|

भारत की शासन व्यवस्था धर्मसम्मत व धर्मनिष्ठ हो| "सत्य सनातन धर्म" -- भारत की राजनीति हो|
परिस्थितियाँ अंधकारमय हैं, लेकिन मेरी पूर्ण आस्था परमशिव परमात्मा में है| उनकी शक्ति निश्चित रूप से भारत का उत्थान करेगी| असत्य का अंधकार दूर होगा|
आध्यात्मिक उपासना द्वारा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाएँगे| भारत एक सनातन धर्मावलम्बी धर्मसम्मत धर्मनिष्ठ हिन्दू राष्ट्र होगा| भारत माँ अपने द्वीगुणित परमवैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान होगी| सनातन धर्म का प्रसार पूरे विश्व में होगा|
भारत एक उच्च चरित्रवान व धर्मनिष्ठ लोगों का देश होगा|
हमारा भोजन, आचरण और विचार भी सात्विक हों| सबका कल्याण होगा|
कृपा शंकर १६ जनवरी २०२१

साधक कौन है?

 साधक कौन है? साधक मैं नहीं, स्वयं भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण हैं। साधक होने या साधना करने का भ्रम न पालें। स्वयं को देह से पृथक समझें ---

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आध्यात्मिक साधना में सबसे बड़ी बाधा "देहात्म बुद्धि" यानी स्वयं को यह देह समझना है। स्वयं को यह देह मानकर हम जब साधना करते हैं, तब कभी भी सफलता नहीं मिल सकती, और बहुत अधिक बाधाएँ आती हैं। भगवान स्वयं ही अपनी साधना स्वयं कर रहे हैं, हम तो उनके उपकरण -- एक निमित्त मात्र हैं।
यदि यह बात समझ में आ जाये तो अन्य कुछ भी समझने की आवश्यकता नहीं है। इस से अधिक लिखना इस समय संभव नहीं है।
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही स्वयं को नमन कर रहे हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ जनवरी २०२४