"काम वासना" ही "शैतान" है .....
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इब्राहिमी मज़हबों (Abrahamic Religions) में जिसे "शैतान" कहा गया है, वह वास्तव में "काम वासना" ही है| "शैतान" का अर्थ लोग लगाते हैं कि वह कोई राक्षस या बाहरी शक्ति है, पर यह सत्य नहीं है| "शैतान" कोई बाहरी शक्ति नहीं अपितु मनुष्य के भीतर की कामवासना है जो कभी तृप्त नहीं होती और अतृप्त रहने पर क्रोध को जन्म देती है| क्रोध बुद्धि का विनाश कर देता है और मनुष्य का पतन हो जाता है| यही मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है|
इससे बचने का एक ही मार्ग है और वह है साधना द्वारा स्वयं को देह की चेतना से पृथक करना| यह अति गंभीर विषय है जिसे प्रभु-कृपा से ही समझा जा सकता है| स्वयं के सही स्वरुप का अनुसंधान और दैवीय शक्तियों का विकास हमें करना ही पड़ेगा जिसमें कोई प्रमाद ना हो| यह प्रमाद ही मृत्यु है जो हमें इस शैतान के शिकंजे में फँसा देता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०१६
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इब्राहिमी मज़हबों (Abrahamic Religions) में जिसे "शैतान" कहा गया है, वह वास्तव में "काम वासना" ही है| "शैतान" का अर्थ लोग लगाते हैं कि वह कोई राक्षस या बाहरी शक्ति है, पर यह सत्य नहीं है| "शैतान" कोई बाहरी शक्ति नहीं अपितु मनुष्य के भीतर की कामवासना है जो कभी तृप्त नहीं होती और अतृप्त रहने पर क्रोध को जन्म देती है| क्रोध बुद्धि का विनाश कर देता है और मनुष्य का पतन हो जाता है| यही मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है|
इससे बचने का एक ही मार्ग है और वह है साधना द्वारा स्वयं को देह की चेतना से पृथक करना| यह अति गंभीर विषय है जिसे प्रभु-कृपा से ही समझा जा सकता है| स्वयं के सही स्वरुप का अनुसंधान और दैवीय शक्तियों का विकास हमें करना ही पड़ेगा जिसमें कोई प्रमाद ना हो| यह प्रमाद ही मृत्यु है जो हमें इस शैतान के शिकंजे में फँसा देता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०१६