Tuesday, 26 June 2018

"काम वासना" ही "शैतान" है .....

"काम वासना" ही "शैतान" है .....
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इब्राहिमी मज़हबों (Abrahamic Religions) में जिसे "शैतान" कहा गया है, वह वास्तव में "काम वासना" ही है| "शैतान" का अर्थ लोग लगाते हैं कि वह कोई राक्षस या बाहरी शक्ति है, पर यह सत्य नहीं है| "शैतान" कोई बाहरी शक्ति नहीं अपितु मनुष्य के भीतर की कामवासना है जो कभी तृप्त नहीं होती और अतृप्त रहने पर क्रोध को जन्म देती है| क्रोध बुद्धि का विनाश कर देता है और मनुष्य का पतन हो जाता है| यही मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है|
इससे बचने का एक ही मार्ग है और वह है साधना द्वारा स्वयं को देह की चेतना से पृथक करना| यह अति गंभीर विषय है जिसे प्रभु-कृपा से ही समझा जा सकता है| स्वयं के सही स्वरुप का अनुसंधान और दैवीय शक्तियों का विकास हमें करना ही पड़ेगा जिसमें कोई प्रमाद ना हो| यह प्रमाद ही मृत्यु है जो हमें इस शैतान के शिकंजे में फँसा देता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०१६

भगवान की कृपा ही सब कुछ है (यही हमारा सहारा है, और कुछ भी नहीं) .....

भगवान की कृपा ही सब कुछ है (यही हमारा सहारा है, और कुछ भी नहीं) .....
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भगवान की कृपा से ही शाश्वत नित्य-अविनाशी पद प्राप्त होता है| यही मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है| गीता में भगवान कहते हैं .....
सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः | मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ||१८:५६||
अर्थात् मेरा आश्रय लेनेवाला भक्त सदा सब कर्म करता हुआ भी मेरी कृपासे शाश्वत अविनाशी पदको प्राप्त हो जाता है|
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अपनी अति अल्प और सीमित बुद्धि से समझ में तो यही आया है कि सदा सब कर्मोंको करने वाला भी जब भगवान को सब कुछ अर्पित कर देता है और उनका आश्रय ले लेता है तब वह भी भगवान के अनुग्रह से उन्हीं का हो जाता है|
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और तो हमें कुछ आता जाता नहीं है| अपने बुद्धिबल और विवेक पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है| न तो कोई साधना करने की शक्ति है, और न ही इस जीवन में और पूर्व जन्मों में कुछ उपलब्ध किया है| एकमात्र पूँजी है वह भगवान के प्रति ह्रदय में छिपा हुआ परम प्रेम है, और कुछ भी नहीं है| वह प्रेम ही भगवान को अर्पित है| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं चाहिए|
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अवचेतन मन में छिपे राग-द्वेष और पता नहीं कितनी कलुषता है जो मिटती नहीं है, वह भी भगवान को अर्पित है| अपने अच्छे-बुरे कर्म और उनके फल .... सब भगवान को समर्पित हैं| कुछ भी नहीं चाहिए| उनके चरणों में आश्रय मिल गया है जो सदा बना रहे|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०१८

हमारी सोच बड़ी विचित्र है .....

हमारी सोच बड़ी विचित्र है .....

(१) जब हम कोई अच्छा काम करते हैं तो भावना करते हैं कि भगवान उसे देख रहे हैं| उस समय भाव रखते हैं कि धर्म का काम कर रहे हैं तो इसका पुण्य अवश्य मिलगा|
(२) पर जब हम घूस लेते हैं, दूसरों को ठगते हैं, चोरी करते हैं, और झूठ बोलते हैं तब यह भाव रखते हैं कि किसी को कुछ नहीं पता, भगवान को भी नहीं मालुम है| स्वयं को न्यायोचित ठहराने के लिए स्वयं के गलत कृत्य को भगवती की लीला बताते हैं, और मानते हैं कि भगवान ही इसे करवा रहे हैं| अति धन्य हैं हम ! वाह ! वाह ! भगवान को भी अपने गलत काम में सहभागी बना लेते हैं|
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(३) सन १९९० के दशक में जब सभी सरकारी कार्यालयों में, बैंकों में और रेलवे आरक्षण में कंप्यूटर लगने आरम्भ हुए थे तब सभी कर्मचारियों ने पूरी शक्ति से इसका बिरोध किया था| कर्मचारियों ने कंप्यूटर खराब कर दिए थे और कम्प्युटरीकरण में कोई सहयोग नहीं दिया| पर समय की मांग के आगे हमें कंप्यूटर लगाने ही पड़े| अब तो बिना कंप्यूटर के काम करने की कोई सोच ही नहीं सकता| उस जमाने में बिना घूस दिए रेलवे में आरक्षण प्रायः नहीं ही मिलता था, बिना घूस लिए टेलीफोन ऑपरेटर ट्रंक कॉल नहीं मिलाते थे| टेलिफोन के अनाप-शनाप बढे हुए बिल आते थे, कहीं कोई सुनवाई नहीं होती थी| पूरे भारत में घूस देना एक शिष्टाचार हो गया था| कम्प्यूटरीकरण से बहुत अधिक लाभ हुआ है| भ्रष्टाचार में बहुत अधिक कमी आई है|
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(४) मोबाइल फ़ोन आये तब भी लोगों ने खूब हँसी उड़ाई थी और तत्कालीन केन्द्रीय संचार मंत्री पं.सुखराम के बारे में बहुत अधिक ही अपशब्दों का प्रयोग हुआ था| कुछ भी हो मोबाइल फोन के प्रयोग को सामान्य बनाने में पं.सुखराम का बहुत बड़ा हाथ था| हालाँकि उन्हें बहुत अधिक ही अपमानित होना पड़ा था| अब तो मोबाइल फोन के बिना जीवन की कोई कल्पना ही नहीं कर सकता|
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(५) यही बात GST की है| GST का महत्त्व दो साल बाद लोगों की समझ में आयेगा| करों की चोरी इस देश का सबसे बड़ा व्यवसाय है| करों की चोरी भारत में इतनी अधिक है कि कोई भी व्यापारी ईमानदारी का व्यापार आरम्भ कर ही नहीं पाता| GST से इसी चोरी के धंधे पर चोट पड़ने वाली है, इसीलिए हायतौबा इतनी अधिक मची हुई है| सभी सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को घूस लेने की आदत पडी हुई है, बिना घूस लिए किसी का काम करने की वे सोच ही नहीं सकते| यदि हमें कर चोरी का अधिकार है तो .... पुलिस, न्यायपालिका व कार्यपालिका को भी घूस लेने का अधिकार है| यह सभ्यता विनाश की ओर तेजी से जा रही है| इसका नष्ट होना निश्चित है|
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(६) जब पंजाब में आतंकवाद समाप्त हुआ तब सभी ईमानदार पुलिस अधिकारियों को मानवाधिकार के नाम पर बहुत अधिक अपमानित होना पड़ा था| कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तो आत्म-ह्त्या करने को बाध्य हो गए थे| उनके प्रशंसनीय कार्यों की सरकार ने ही सराहना नहीं की थी| इससे किसको लाभ हुआ?
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(७) भारत में आज परिस्थिति ऐसी बन रही है कि सरकारी लूट-खसोट करने वाले राजनेताओं व अधिकारियों को देश को लूटने के अवसर दिन प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं| इसलिए वे प्रसन्न नहीं हैं| इसलिए वे संगठित होकर इस व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं| यह पहली बार है कि भारत में एक ऐसी केन्द्रीय सरकार है जो गम्भीरता से जनता के लिए कार्य कर रही है, और भ्रष्ट नहीं है|
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फिर भी मैं आशावादी हूँ| यह चोरी, बेईमानी और अधर्म अधिक समय तक नहीं टिकेगा| भगवान की सृष्टि में अधर्म अधिक समय तक नहीं रहेगा|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ जून २०१८

जब भी याद आये तब भगवान का ध्यान करो .....

जब भी भगवान कि गहरी स्मृति आये और भगवान पर ध्यान करने कि प्रेरणा मिले तब समझ लेना कि प्रत्यक्ष भगवान वासुदेव वहीँ खड़े होकर आदेश दे रहे हैं| उनके आदेश का पालन करना हमारा परम धर्म है| सारी शुभ प्रेरणाएँ भगवान के द्वारा ही मिलती हैं| जब भी मन में उत्साह जागृत हो उसी समय शुभ कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिये| भगवान ने जो आदेश दे दिया उसका पालन करने में किसी भी तरह के देश-काल शौच-अशौच का विचार करने की आवश्यकता नहीं है| शुभ कार्य करने का उत्साह भगवान् की विभूति ही है| निरंतर भगवान का ध्यान करो| कौन क्या कहता है और क्या नहीं कहता है इसका कोई महत्व नहीं है| हम भगवान कि दृष्टी में क्या हैं ....महत्व सिर्फ इसी का है|
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परमात्मा की परोक्षता और स्वयं की परिछिन्नता को मिटाने का एक ही उपाय है ... परमात्मा का ध्यान| परम प्रेम और ध्यान से पराभक्ति प्राप्त होती है, जिसकी परिणिति ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति है, जिससे ऊँचा अन्य कुछ है ही नहीं| यहाँ तक पहुँचते पहुँचते सब कुछ निवृत हो जाता है| फिर त्याग करने को कुछ अवशिष्ट ही नहीं रहता| यह धर्म और अधर्म से परे की स्थिति है| ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति में भक्त और भगवान में कोई भेद नहीं रहता|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जून २०१८

भक्ति द्वारा ही भगवान को तत्त्वतः जाना जा सकता है, अन्यथा नहीं ....

भक्ति द्वारा ही भगवान को तत्त्वतः जाना जा सकता है, अन्यथा नहीं ....
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भगवान कहते हैं ..... "भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः| ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्||" १८:५५||

उपरोक्त श्लोक की अनेक स्वनामधन्य आचार्यों ने बहुत बड़ी बड़ी व्याख्याएँ की हैं| इस छोटे से पृष्ठ पर उन्हें उतारना असंभव है| भक्तिपूर्वक भगवान का ध्यान करने से ही यह समझ में आयेगा, बुद्धि से नहीं| जब भगवान स्वयं कह रहे हैं कि उन्हें सिर्फ भक्ति से ही जाना जा सकता है तो उसमें बुद्धि लगाने का कोई औचित्य नहीं है| मैं आचार्य शंकर, और आचार्य श्रीधर स्वामी जैसे अनेक सभी महान आचार्यों की वन्दना करता हूँ जो गीता का सही अर्थ जनमानस को समझा पाये|

हे भगवान वासुदेव, आप मेरे ह्रदय में स्थायी रूप से निरन्तर बिराजमान हैं| जब आप स्वयं प्रत्यक्ष यहाँ हैं तो मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए| कुछ भी जानने और समझने की मुझे अब कोई आवश्यकता नहीं है|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ जून २०१८

एक पुरानी स्मृति .....

एक पुरानी स्मृति .....
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३८ वर्ष पूर्व आज २३ जून ही के दिन सन १९८० में  तत्कालीन यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में रहस्यमय मृत्यु हुई थी| इस से भारतीय राजनीति के सारे समीकरण बदल गए थे| संजय गाँधी का इंदिरा गाँधी के स्थान पर प्रधान मंत्री बनाना उस समय तय था| आपातकाल में हुए अत्याचारों की जांच कर रहे शाह आयोग को संजय गाँधी ने काम ही नहीं करने दिया था| चौधरी चरण सिंह की सरकार को बिना पार्लियामेंट का मुंह देखे ही गिरा देने का श्रेय भी संजय गाँधी की कूटनीति को ही जाता है| आपातकाल के बाद दुबारा इंदिरा गाँधी को सत्ता में लाने का श्रेय भी उन को जाता है| वे भारत की राजनीति के सर्वाधिक दबंग व्यक्तित्व थे| सारा सरकारी प्रशासन उनकी जेब में रहता था| पूरे आपातकाल में भारत का पूरा प्रशासन उनके इशारों पर काम करता था| राज्यों के मुख्यमंत्री लोग उनके जूते हाथ में लिए लिए पीछे पीछे चलते थे| जयपुर में वे हाथी से नीचे उतरते तो वहाँ के मुख्यमंत्री उनको नीचे उतारने के लिए अपना कंधा उनके पैरों के नीचे लगा देते थे| भारत के राष्ट्रपति से लेकर सारे वरिष्ठ मंत्री उनके समक्ष झुकते थे| ऐसे व्यक्तित्व के असामयिक निधन ने पूरे भारत को स्तब्ध कर दिया था|
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तरह तरह के समाचार उन दिनों आये थे, तरह तरह की अफवाहें उडी थीं| कुछ लोगों ने कहा कि वायुयान में विस्फोट हुआ था जो उन्होंने देखा| कुछ लोगों ने कहा कि वायुयान का तेल समाप्त हो गया था| आधिकारिक रूप से आज तक किसी को नहीं पता कि उस दिन वास्तव में क्या हुआ था| कई ऐसी भी बातें उड़ी थीं जो लिखने योग्य नहीं हैं|
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मैं उस समय भारत में नहीं था| कुछ दिनों के लिए उत्तरी कोरिया गया हुआ था जहाँ न तो कोई विदेशी रेडियो प्रसारण सुनता था और न कोई अंग्रेजी का अखबार छपता था| वहाँ काम करने वाले कुछ रूसी लोगों से मुझे यह समाचार मिला जिन्होंने एक रूसी भाषा में छपे अखवार में दुर्घटना का समाचार दिखाया था| उसके बाद मैं कुछ महीनों तक विदेशों में ही रहा| उस घटना के कई महिनों बाद मैं अपने परिवार से मिलने दिल्ली से बीकानेर ट्रेन से जा रहा था| प्रथम श्रेणी के उस डिब्बे में संयोग से मेरे सामने वाली दो बर्थों पर श्री राजेश पायलट और उनकी पत्नी भी बीकानेर जा रहे थे| पूरी रात हमारी बातचीत होती रही| उनसे हुई बातचीत से भी कुछ स्पष्ट नहीं हुआ कि संजय गाँधी के विमान की दुर्घटना कैसे हुई| लगता है यह रहस्य एक रहस्य ही रहेगा|
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कृपा शंकर
२३ जून २०१८

भगवान की पराभक्ति के लिए समत्व में स्थित होना आवश्यक है .....

भगवान की पराभक्ति के लिए समत्व में स्थित होना आवश्यक है .....
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भगवान की पराभक्ति के लिए भी अति गहन साधना करनी पड़ती है| सिर्फ पढने या इच्छा करने मात्र से वह नहीं मिलती| साधना व उसका फल .... दोनों ही भगवान की कृपा पर निर्भर हैं| गीता में भगवान कहते हैं .....
"ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति| समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्"||१८:५४||
अर्थात् ..... जो साधक ब्रह्ममय बन गया है, वह प्रसन्नमना न आकांक्षा करता है और न शोक| समस्त भूतों के प्रति सम होकर वह मेरी परा भक्ति को प्राप्त करता है ||
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यह श्लोक और इसका भावार्थ दोनों ही अति सरल हैं| निज विवेक से कोई भी इनका अर्थ समझ सकता है| पर दूसरी पंक्ति में लिखा .... "समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्" वाक्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है| इस पर गहन चिंतन की आवश्यकता है|
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समत्व के बारे में भगवान कह चुके हैं .....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय | सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते" ||२:४८||
अर्थात् .... हे धनंजय आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हुये तुम कर्म करो, यह समभाव ही योग कहलाता है|
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भगवान के अनुसार समत्व ही योग है| जो समत्व को उपलब्ध हो चुका है वही पराभक्ति को प्राप्त होता है| यहाँ यह विषय बहुत जटिल हो गया है| तीन-चार बार मनन करेंगे तो भगवान की कृपा से समझ में आ जाएगा|
आप सब को सादर सप्रेम नमन ! शुभ कामनाएँ !!
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ जून २०१८

निर्जला एकादशी .....

आज निर्जला एकादशी है जिसे भीम एकादशी भी कहते हैं| आज का दिन बड़ा शुभ है क्योंकि यह पूर्ण रूपेण भगवान विष्णु को समर्पित है| आज के दिन विधि-विधान से व्रत करें, व भगवान विष्णु की आराधना करें| भगवान विष्णु आपकी हर मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे| यदि निर्जला न हो सके तो सजला कर लें, पर व्रत अवश्य करें| बीमार, अशक्त, वृद्ध और बालक, भी व्रत तो अवश्य करें, वे फलाहार दिन में दो तीन बार कर सकते हैं| यदि भूखे न रह सकें तो दूध पी लें, पर अन्न ग्रहण न करें| इस व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के पश्चात किया जाता है| जो श्रद्धालु शालिग्राम की पूजा करते हैं वे शालिग्राम की पूजा करें| विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ सब लोग दिन में कम से कम एक बार तो अवश्य करें और द्वादसाक्षरी भागवत मन्त्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का यथासंभव खूब जप करें|
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इस एकादशी को दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है| एक बिलकुल नए मिटटी के घड़े को अच्छी तरह धोकर उसमें स्वच्छ जल भरें, घड़े की गर्दन पर पर मौली बांधें, घड़े पर रोली से स्वस्तिक का निशान बनाएँ और उस पर फल, गुड़ और दक्षिणा रखकर किसी सुपात्र ब्राह्मण को दान करें| संभव हो तो एक छाते व श्वेत वस्त्र का भी दान करें| ज़रूरतमंदों को शुद्ध पानी पिलायें| इस का आज के दिन बड़ा महत्त्व है|
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आज के शुभ दिन होने का निजानुभूती से प्रमाण दे रहा हूँ| आज प्रातः जब मैं उठा तो उठते ही भगवान वासुदेव का स्वतः ही बहुत गहरा ध्यान हुआ| मन आनंद से भर कर प्रफुल्लित हो गया और भगवान वासुदेव की बहुत गहरी अनुभूतियाँ हुईं| तब याद आया कि आज निर्जला एकादशी है|
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एक पौराणिक कथा है कि द्रौपदी और पांडव एकादशी का व्रत बड़ी श्रद्धा से करते थे, पर भीम को बड़ी भूख लगती थी और व्रत करने में बड़ी कठिनाई होती थी| वे अपनी समस्या का हल ढूँढने महर्षि व्यास के पास पहुँचे और सारी बात बताई| तब महर्षि ने भीम को सलाह दी कि वे ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को व्रत और पूजन करें, इससे वर्ष में पड़ने वाली सभी एकादशियों का फल उन्हें एक बार में ही प्राप्त जाएगा| भीम ने महर्षि की बात मान कर निर्जला एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से किया और सभी २४ एकादशियों का फल एक ही बार में प्राप्त कर लिया| तब से निर्जला एकादशी को भीम एकादशी भी कहा जाता है|
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भगवान से उनकी भक्ति ही माँगें| भक्ति मिल गयी तो सब कुछ मिल गया| भगवान वासुदेव सब का कल्याण करें|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ जून २०१८

ब्रह्मभाव की प्राप्ति कैसे हो ? .....

ब्रह्मभाव की प्राप्ति कैसे हो ? .....
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कल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मैनें लिखा था ...."योग का लक्ष्य है ब्रह्मभाव की प्राप्ति| वह पूर्ण रूप से मेरा निजी अनुभव और व्यक्तिगत मत था| अब प्रश्न यह है कि ब्रह्मभाव की प्राप्ति कैसे हो? गीता में भगवान कहते हैं .....
"अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् | विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते" ||१८:५३||
अर्थात् .... अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को त्याग कर ममत्वभाव से रहित और शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति के योग्य बन जाता है|
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यह संकल्प शक्ति के द्वारा या बुद्धिबल से कभी संभव नहीं हो सकता| इसके लिए किसी ब्रह्मनिष्ठ, श्रौत्रीय, सिद्ध, योगी आचार्य महात्मा के सान्निध्य में गहन ध्यान साधना करनी होगी| परब्रह्म परमात्मा की कृपा के बिना यह संभव नहीं है|
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अतः इस विषय पर अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं है| जिस पर भगवान की कृपा होगी उसे भगवान स्वयं मार्गदर्शन प्रदान करेंगे| यह विषय ऐसा है जिसे गुरु महाराज अपने चेले को प्रत्यक्ष रूप से अपने सामने बैठाकर ही समझा सकते हैं| अपने आप यह समझ में नहीं आयेगा| वैराग्य, निरंतर अभ्यास और गुरुकृपा इसके लिए आवश्यक है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जून २०१८

ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करने के लिए हम निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बनें .....

ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करने के लिए हम निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बनें .....
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गीता के निम्न श्लोक पर कुछ दिनों पूर्व बहुत विस्तार से चर्चा हुई थी .....
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन| निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्"||२:४५||
अब यहाँ हम उस पर कोई चर्चा नहीं कर रहे हैं| पर दूसरी पंक्ति के चार शब्दों के महत्त्व पर पुनश्चः विचार कर रहे हैं| दूसरी पंक्ति के ये चार शब्द हैं .....
(१) निर्द्वंद्व (२) नित्यसत्त्वस्थ (३) निर्योगक्षेम (४) आत्मवान |
भगवान अर्जुन को निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बनने को कहते हैं| भगवान यह आदेश सिर्फ महाभारत के अर्जुन को ही नहीं दे रहे, हम सब को दे रहे हैं|
मेरा आप सब से अनुरोध है कि पहले तो हम स्वाध्याय द्वारा इन शब्दों के अर्थ को समझें और फिर गहन मनन चिंतन और ध्यान द्वारा इन्हें निज जीवन में पूर्ण निष्ठा से अवतरित करें| हम निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बन कर ही ब्रह्मनिष्ठ हो सकेंगे|
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भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने इन शब्दों के बारे में लिखा है .....
(१) निर्द्वन्द्वः सुखदुःखहेतू सप्रतिपक्षौ पदार्थौ द्वन्द्वशब्दवाच्यौ ततः निर्गतः निर्द्वन्द्वो भव |
(२) नित्यसत्त्वस्थः सदा सत्त्वगुणाश्रितो भव |
(३) निर्योगक्षेमः अनुपात्तस्य उपादानं योगः उपात्तस्य रक्षणं क्षेमः
योगक्षेमप्रधानस्य श्रेयसि प्रवृत्तिर्दुष्करा इत्यतः निर्योगक्षेमो भव |
(४) आत्मवान् अप्रमत्तश्च भव |
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हम सब द्वन्द्वातीत, नित्यसत्वस्थ, निर्योगक्षेम व आत्मवान हों| इसके लिए गहन ध्यान साधना करनी होगी| योगक्षेम की चिन्ता यानि अप्राप्त पदार्थ की प्राप्ति की कामना व प्राप्त पदार्थ के संरक्षण की कामना भी छोड़नी होगी| इसके लिए सदा सतोगुण में स्थित होना होगा, और सभी द्वंद्वों से परे जाना होगा| यह भगवान की परम कृपा पर ही निर्भर है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जून २०१८

योग का लक्ष्य है "ब्रह्मभाव की प्राप्ति". अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (२१ जून) पर शुभ कामनाएँ.......

योग का लक्ष्य है "ब्रह्मभाव की प्राप्ति".
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (२१ जून) पर शुभ कामनाएँ.......
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आध्यात्मिक रूप से योग है अपने अहंभाव का परमात्मा में पूर्ण विसर्जन| हठयोग तो उसकी तैयारी मात्र है क्योंकि साधना के लिए चाहिए एक स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन| तंत्र की भाषा में योग है कुण्डलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन| योगदर्शन का चित्तवृत्तिनिरोध भी एक साधन मात्र है, उसके लिए भी एक स्वस्थ शरीर चाहिए| पर परमात्मा से परम प्रेम और सदाचार के बिना योग साधक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता क्योंकि योग का लक्ष्य है ... ब्रह्मभाव की प्राप्ति|
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गीता में भगवान कहते हैं ....
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः | कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ||६:४६||
अर्थात् .... क्योंकि योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है और ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है, तथा कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है इसलिए हे अर्जुन तुम योगी बनो||
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ब्रह्मभाव की प्राप्ति किसे होती है? गीता में भगवान कहते हैं ....
विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः| ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः||१८:५२||
अर्थात् विविक्त सेवी (एकान्तप्रिय), लघ्वाशी (अल्पाहारी) जिसने अपने शरीर, वाणी और मन को संयत किया है| ध्यानयोग के अभ्यास में सदैव तत्पर तथा वैराग्य पर समाश्रित है| (ऐसा साधक ही ब्रह्मभाव पाने में समर्थ होता है)
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जो मैं कहना चाहता हूँ वह बात .....
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(१) भगवान से खूब प्रेम करो| जितना आवश्यक हो उतना ही पढ़ो, उससे अधिक नहीं, वह भी सिर्फ प्रेरणा प्राप्त करने के लिए ही, पर थोड़ा-बहुत गीता पाठ नित्य करो| गीता पाठ से पूर्व और पश्चात वैदिक शान्तिपाठ अवश्य करो|

(२) खूब ध्यान करो| ध्यान के लिए शक्तिशाली देह, दृढ़ मनोबल, प्राण ऊर्जा और आसन की दृढ़ता चाहिए | साथ साथ परमात्मा से परम प्रेम, और शुद्ध आचार-विचार भी चाहिए|
(३) सर्वदा निरंतर परमात्मा का चिंतन करो| हर समय भगवान को अपनी स्मृति में रखो | सबसे बड़ी आवश्यकता भगवान की भक्ति है जिसके बिना कोई योगी नहीं हो सकता| हर समय अपने विचारों के प्रति सचेत रहें और चिंतन सदा परमात्मा का ही रहे| मन में आने वाले दूषित विचारों पर यदि लगाम नहीं लगाई जाए तो सुषुम्ना में कुण्डलिनी का ऊर्ध्वगमन थम जाता है, सहस्त्रार में आनंद रूपी अमृत का प्रवाह बंद हो जाता है, सारे आध्यात्मिक अनुभव स्मृति से लुप्त होने लगते हैं, और उन्नति के स्थान पर अवनती आरम्भ हो जाती है|
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जिनके एक भृकुटी विलास मात्र से हज़ारों करोड़ ब्रह्मांडों की सृष्टि, स्थिति और विनाश हो सकता है, वे जब आपके ह्रदय में होंगे तो क्या संभव नहीं है|
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मैं उन सब महान योगियों को नमन करता हूँ जो दिन-रात निरंतर परमात्मा के चैतन्य में रहते हैं| उन सब भक्तों को भी नमन करता हूँ जिनके हृदय में प्रभु को पाने की प्रचंड अग्नि सदा प्रज्ज्वलित रहती है| उनकी चरण रज मेरे माथे की शोभा है| इस सृष्टि में जो कुछ भी शुभ है वह उन्हीं के पुण्यप्रताप से है|
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आप सब महान आत्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ जून २०१८

हमारी जाति कौन सी है ? .....

हमारी जाति कौन सी है ? .....
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जो वास्तव में अपने पूर्ण हृदय से भगवान को प्रेम करते हैं, उन सब की एक ही जाति है और वह है .... "अच्युत" | एक महिला का विवाह होता है तब विवाहोपरांत उसकी जाति, कुल व गौत्र वही हो जाता है, जो उसके पति का है|

वैसे ही जब हमने अपना जीवन भगवान को सौंप दिया है तो हमारी जाति वही हो जाती है जो भगवान की है| सांसारिक जातियाँ तो इस नश्वर देह की हैं, इस शाश्वत जीवात्मा की नहीं| इस नश्वर देह के अवसान के उपरांत यह नश्वर जाति भी नष्ट हो जायेगी| साथ सिर्फ परमात्मा का ही होगा| अतः भगवान ही हमारी जाति हैं जो अच्युत हैं| इस संसार में सब अपने प्रारब्ध कर्मों का भोग भोगने के लिए ही बाध्य होकर आये हैं| तब कोई विकल्प नहीं था| पर अब तो भगवान ने हमें यह विकल्प दिया है .....

"जाति हमारी ब्रह्म है, माता-पिता हैं राम |
घर हमारा शुन्य में, अनहद में विश्राम ||"

परमात्मा की अनंतता ही हमारा घर है और प्रणव रूपी अनाहत नाद का श्रवण ही विश्राम है| परमात्मा का और हमारा साथ शाश्वत है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२० जून २०१८

मन में किसी कुंठा को जन्म न लेने दें .....

मन में किसी कुंठा को जन्म न लेने दें .....
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मुझे यह प्रेरणात्मक आभास होता है कि जीवन में मिलने वाले प्रगति के सारे अवसर, संयोग से नहीं, पुरुषार्थ से मिलते हैं| संयोग से मिले अवसर भी, पूर्व में अर्जित हमारे अच्छे कर्मों के फल होते हैं| हमारी क्षमता, कार्यकुशलता, दक्षता और सहायक वातावरण भी हमारे पूर्व में अर्जित अच्छे कर्मों के फल हैं| मुझे जीवन में अनेक सुअवसर मिले पर मैं उनका लाभ नहीं ले पाया क्योंकि मेरे पास उनका उपयोग करने की दक्षता व क्षमता नहीं थी| पर मैं किसी को दोष नहीं देता, क्योंकि यह मेरा प्रारब्ध था जो कि मेरे पूर्व कर्मों का फल था|
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किसी भी तरह की महत्वाकांक्षा हमारे मानस में गहराई से आये, उससे पूर्व ही हमें अपने पास उपलब्ध साधनों और अपनी निज क्षमता का आंकलन कर लेना चाहिए| इससे किसी कुंठा का जन्म नहीं होगा| कुंठित व्यक्ति कभी सुखी नहीं होते| हमारे विचार और संकल्प सदा शुभ हों| हमारे विचार और संकल्प ही हमारे कर्म होते हैं, जिनका फल भविष्य में निश्चित रूप से मिलता है|
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सारी कुंठाओं का एकमात्र कारण हमारी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का साकार नहीं होना है| आकांक्षाओं और अपेक्षाओं से मुक्ति तो भगवान की कृपा से ही मिलती है|
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सब को नमन और शुभ कामनाएँ ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० जून २०१८

अंतरिक्ष सेना .....

अंतरिक्ष सेना :--

अंतरिक्ष में युद्ध के लिए एक अंतरिक्ष सेना (Space Force) के गठन का आदेश अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने दिया है| यह अमेरिका की सबसे अधिक शक्तिशाली सेना होगी| डोनाल्‍ड ट्रंप ने अंतर‍िक्ष में अमेरिकी दबदबे को बनाए रखने के लिए Space Force नाम के नए सैन्‍य यूनिट के गठन को अनुमति दे दी है| ट्रंप ने अंतरिक्ष को भी राष्‍ट्र‍ीय सुरक्षा की श्रेणी में डाल दिया है| ट्रंप के अनुसार अंतरिक्ष सेना को आधुनिक शक्‍त‍ियों और टेक्‍नॉलजी से लैस किया जाएगा| इसकी संहारक शक्‍त‍ि अभी मौजूद किसी भी सैन्‍य विभाग से ज्‍यादा होगी|
ट्रंप के अनुसार वे नहीं चाहते कि चीन और रूस या कोई और देश इस क्षेत्र में अमेरिका से आगे निकले| ट्रंप ने साथ ही दोबारा शीघ्र ही चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर पहुँचने के अभियान को पूरा करने को कहा है| अंतरिक्ष सेना के गठन का कार्यभार जनरल जोसेफ डनफोर्ड को सौंपा गया है|
Space Force अमेरिकी सैन्‍य शक्‍त‍ि की छठी शाखा होगी| अमेरिका की यह अंतरिक्ष सेना अंतरिक्ष में लड़ी जाने वाली किसी भी संभावित लड़ाई के लिए तैयार रहेगी|
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मुझे उपरोक्त समाचार से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है| हमारे पुराणों में अंतरिक्ष सेनाओं और अंतरिक्ष में हुए युद्धों के अनेक वर्णन है| भारत में भी प्राचीन काल में अंतरिक्ष सेनाएँ होती थीं| देवताओं और असुरों के मध्य अंतरिक्ष में भी युद्ध होते थे| त्रिपुरासुर ने तो एक पूरा नगर ही अंतरिक्ष में बसा रखा था| देवताओं के सेनापति रहे कार्तिकेय द्वारा अंतरिक्ष में वेलायुध नाम के एक अस्त्र के प्रयोग का भी वर्णन आता है|
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कृपा शंकर
२० जून २०१८

राष्ट्रहित सर्वोपरी है ....

राष्ट्रहित सर्वोपरी है ....
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भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है जो हमें परमात्मा की ओर उन्मुख करती है| परमात्मा की सर्वाधिक व सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारतवर्ष में हुई है| धर्म की अवधारणा का यहीं जन्म हुआ जो सनातन वैदिक है| महर्षि श्रीअरविंद के अनुसार भारत ही सनातन धर्म है और सनातन धर्म ही भारत है| सनातन वैदिक धर्म ही भारत का प्राण और आत्मा है जिसके बिना भारत, भारत नहीं है| भारत, भारत इसीलिए है कि सनातन वैदिक धर्म यहाँ का प्राण है| यदि सनातन वैदिक धर्म नष्ट हो गया तो भारत भी नष्ट हो जाएगा|
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भारत की अस्मिता पर सबसे भयंकर प्रहार सन २०१९ ई.के चुनावों में होने वाला है| वेटिकन, जिहादी, मार्क्सवादी, सेकुलर और निहित स्वार्थ वाले राजनेताओं का एक गठबंधन बनेगा जिसका समर्थन अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन व पाकिस्तान करेंगे| इनका लक्ष्य यही होगा कि कोई शक्तिशाली राष्ट्रवादी सरकार भारत में सत्तासीन न हो| कोई कमजोर शासन आये जो उन के हितों का समर्थक हो|
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यदि ये लोग विशेषकर के नेहरु-गाँधी परिवार सता में आ गया तो हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य और विनाश काल होगा| सुव्यवस्थित ढंग से इन्होनें भारत से हिंदुत्व का नाश पिछले ७० वर्षों में किया है, और अब की बार तो ये पूरे भारत को हिन्दू-विहीन कर देंगे| ऐसे ही ये अन्य सारे क्षेत्रीय दल हैं|
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अमेरिका तो कभी भी नहीं चाहेगा कि भारत में राष्ट्रवादी सत्तासीन हों| ये मानवाधिकार आदि की बातें अमेरिका का सबसे बड़ा शस्त्र है| अमेरिका वेटिकन का समर्थक है| भारत की रक्षा भगवान करेंगे| वर्त्तमान परिस्थितियों में भाजपा का दुबारा पूर्ण बहुमत के साथ सता में आना अति आवश्यक है| माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के अलावा अन्य कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो २०१९ में भारत का नेतृत्व कर सके|
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अभी से मैं तो यह अंतिम रूप से स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भाजपा में चाहे लाख कमियाँ हों पर वह अन्य सब दलों से श्रेष्ठ है| माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी में चाहे लाख कमियाँ हों पर वे अन्य सारे राजनेताओं से लाख गुना अधिक अच्छे हैं| मैं जमीनी वास्तविकता को समझता हूँ, और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को भी बहुत अच्छी तरह समझता हूँ| श्री नरेन्द्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है| लोग उनकी बुराई जातिगत आरक्षण के ऊपर करते हैं| वास्तविकता यह है कि जब तक भारत में लोकतंत्र है, जातिगत आरक्षण को कोई भी समाप्त नहीं कर सकता| जातिगत आरक्षण कोई सैनिक तानाशाही ही बन्दूक की नोक पर समाप्त कर सकती है| इसकी जड़ें इतनी गहरी फ़ैल गयी हैं कि इसे बंद करने का प्रयास भारत को गृहयुद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा कर देगा|
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मेरा पूर्ण समर्पण भाजपा और श्री नरेन्द्र मोदी को होगा| मेरा वोट भी कमल के निशान पर ही पड़ेगा| इस निर्णय में कोई परिवर्तन नहीं होगा| यह अंतिम निर्णय है| यह सुनिश्चित है कि २०१९ में भाजपा पूर्ण बहुमत से जीतेगी और देश के अगले प्रधानमंत्री भी श्री नरेन्द्र मोदी ही होंगे|
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जय जननी ! जय भारत ! वन्दे मातरं ! भारत माता की जय !
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ जून २०१८