आज का दिन बहुत शुभ है, प्रातःकाल उठते समय से ही परमात्मा की उपस्थिति की बड़ी दिव्य अनुभूतियाँ हो रही हैं। ये अनुभूतियाँ किसी अन्य को कराने की सामर्थ्य मुझ में नहीं हैं। यदि होती तो संपूर्ण सृष्टि को ही परमात्मा का आभास करा देता।
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मेरा यह संकल्प भी साकार हो रहा है। सम्पूर्ण सृष्टि ही परमात्मा की उपासना कर रही है। मैं साँस लेता हूँ तो सारी सृष्टि साँस लेती है, मैं साँस छोड़ता हूँ तो सारी सृष्टि साँस छोड़ रही है। मैं चैतन्य हूँ तो सारी सृष्टि भी चैतन्य है। मैं सारी सृष्टि के साथ एक हूँ, यह नश्वर देह नहीं। इस परम ज्योतिर्मय सृष्टि में कहीं भी अंधकार नहीं है। बहुत ही तीब्र गति से यह सृष्टि 'विष्णु नाभि' की परिक्रमा कर रही है। इस की गति से एक स्पंदन हो रहा है जिस की आवृति से उत्पन्न ध्वनि बहुत मधुर है। उस ध्वनि और प्रकाश में परमात्मा स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं। मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है, मैं उन के साथ एक हूँ।
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भगवान वासुदेव ही समान रूप से सर्वत्र व्याप्त हैं। वे ही परमशिव हैं। साकार रूप में पद्मासनस्थ शांभवी मुद्रा में वे स्वयं ही स्वयं का ध्यान कर रहे हैं। सारी सृष्टि उनके मन का एक संकल्प मात्र है। उनके सिवाय कोई अन्य नहीं है। पृथकता का आभास एक दुःस्वप्न था। वह दुःस्वप्न फिर नहीं आए। सभी जीवात्माएँ, समस्त जड़ और चेतन उनमें जागृत हों।
ॐ ॐ ॐ !!
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !!
कृपा शंकर
१५ सितंबर २०२१
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पुनश्च: --- सिद्ध गुरु की कृपा के बिना कोई अनुभूति नहीं होती। गुरु सिद्ध पुरुष हो, श्रौत्रीय व ब्रहमनिष्ठ हो। जय गुरु !!