Saturday, 15 July 2017

इफ्तार की दावतों का दौर .....

इफ्तार की दावतों का दौर .....
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मैं तो फूल हूँ .. मुरझा गया तो मलाल कैसा, तुम तो महक हो...तुम्हें अभी हवाओं में समाना है....
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आजकल इफ्तार पार्टियों का खूब फैशन सा चल रहा है| जिस को देखो वो ही इफ्तार पार्टी दे रहा है| मेरे पास भी यदि खूब रुपये पैसे होते तो मैं भी खूब धूमधाम से इफ्तार पार्टी देता|
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मेरे ह्रदय में मेरे मुस्लिम मित्रों सहित सब के प्रति खूब प्रेम और सद्भावना है, किसी भी तरह का कोई द्वेष किसी के लिए भी नहीं है|
भगवान सब का कल्याण करे| सब का ह्रदय प्रेम, करुणा, शांति, भाईचारा, सब के भले और सब के प्रति सम्मान के भाव से कूट कूट कर भर दे| सब के प्रति सब के ह्रदय में सच्चा प्रेम हो और किसी के प्रति भी किसी में कोई द्वेष न हो| सारे अच्छे से अच्छे मानवीय गुण सब में आ जाएँ| सब अच्छे से अच्छे इंसान बनें और किसी में कोई भी बुराई का अवशेष ना रहे|
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जो राजनेता और व्यापारी लोग इफ्तार पार्टी देते हैं उन्हें उस दिन ईमानदारी से रोजा भी रखना चाहिए और सार्वजनिक रूप से नमाज़ भी पढनी चाहिए| समाचार पत्रों में छपे चित्रों के अनुसार ये लोग उस समय एक जालीदार तुर्की टोपी पहन कर एक लाल सा गमछा ओढ़ लेते हैं जिसका क्या उद्देश्य है यह मुझे पता नहीं| मेरा एक सुझाव है कि इनको जालीदार गोल तुर्की टोपी और लाल गमछे के साथ साथ एक चेक वाली तहमद या टखनों से ऊँची सलवार या पायजामा भी पहनना चाहिए| इससे वे और भी शानदार लगेंगे| पूरे दिन रोजा रखकर और सार्वजनिक नमाज़ पढ़कर ही इन्हें इफ्तार में शामिल होना चाहिए, इससे और भी अधिक सद्भाव बढेगा|
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इन इफ्तार पार्टी करने वाले राजनेताओं व्यापारियों को नवरात्रों में कन्याओं को भोजन भी कराना चाहिए, श्रावण के महीने में शिव जी पर जल भी चढ़ाना चाहिए और कभी कभी हिन्दू त्योहारों पर सार्वजनिक पूजा, गीताज्ञान यज्ञ और भंडारे भी करने चाहिएं|
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सद्भावना का उदाहरण देखना है तो हमारे नगर में रामनवमी के जुलुस में देखो जहाँ मुसलमान भाई जुलुस में शामिल सब हिन्दुओं को बोतलबंद शीतल पेय भी पिलाते हैं और मिश्री का प्रसाद भी बाँटते हैं| किसी भी तरह का कोई लड़ाई झगड़ा नहीं है| ऐसा सद्भाव और भाईचारा सब जगह हो|
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सब सुखी हों, सब निरोगी हों, किसी को कोई दुःख या पीड़ा ना हो, सब के ह्रदय में सद्भावना हो| भगवान सब का भला करे|
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यह लेख प्रस्तुत करने का मेरा एकमात्र उद्देश्य यह बताना है कि किसी को किसी के प्रति भी द्वेष नहीं रखना चाहिए| राग और द्वेष ये दो ही पुनर्जन्म यानि इस संसार में बारम्बार आने के कारण हैं| जिससे भी हम द्वेष रखते हैं, अगले जन्म में उसी के घर जन्म लेना पड़ता है| जिस भी परिस्थिति और वातावरण से भी हमें द्वेष हैं वह वातावरण और परिस्थिति हमें दुबारा मिलती है|
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बुराई का प्रतिकार करो, युद्धभूमि में शत्रु का भी संहार करो पर ह्रदय में घृणा बिलकुल भी ना हो|
परमात्मा को कर्ता बनाकर सब कार्य करो| कर्तव्य निभाते हुए भी अकर्ता बने रहो| सारे कार्य परमात्मा को समर्पित कर दो, फल की अपेक्षा या कामना मत करो|

ॐ शांति शांति शांति ||

१५ जुलाई २०१६