हम भगवान को प्रिय बनें ---
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हरिः चरणों में आश्रय ही मेरी रक्षा कर रहा है, मुझ अकिंचन के पास और कुछ भी नहीं है। उनका चरणों का ध्यान तो मैं भ्रूमध्य में करता हूँ, लेकिन उनके चरणों के दर्शन प्रकाश रूप में मुझे सहस्त्रारचक्र में होते हैं। उनकी अनुभूति सारे विश्व में होती है। यही मेरा जीवन है। मुझ में यह जीवन भगवान ही जी रहे हैं, वे चाहते हैं कि यह जीवन मैं एक देवता की तरह जीऊँ, न कि एक अकिंचन मनुष्य की तरह।
भारत में वह दिन भी शीघ्र ही आयेगा जब बच्चों को वेदविरुद्ध शिक्षा नहीं दी जायेगी, बालक को बचपन से ही भगवान से प्रेम करने व भगवान का ध्यान करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०९ जनवरी २०२४