चिंता और भय से मुक्त हों .....
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चिंता और भय से मुक्त होने की बात बहुत अच्छी लगती है पर व्यवहार में बहुत
कठिन है| ये दोनों ही मस्तिष्क के क्षय रोग हैं जो हमारी क्षमता का तो
ह्रास करते ही हैं पर साथ साथ जीवित ही नर्क में भी डाल देते हैं| ये अकाल
मृत्यु के कारण भी हैं|
परमात्मा में श्रद्धा, विश्वास और निरंतर आतंरिक सत्संग ही हमें इस अकाल मृत्यु सम यन्त्रणा से मुक्त कर सकते हैं|
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हरेक व्यक्ति का अपना अपना प्रारब्ध होता है जिसे भुगतना ही पड़ता है| अतः
जो होनी है सो तो होगी ही, उसके बारे में चिंता कर के अकाल मृत्यु को क्यों
प्राप्त हों?
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चिंताओं और भय से त्रस्त होकर आजकल लोग आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रहे हैं, यह तो एक सकारात्मक रुझान है|
मेरी एक बात अनेक लोगों को बुरी लगेगी पर मुझे निरंतर यह प्रेरणा मिलती है
कि ...... "हमें हर प्रकार के बंधनों, मत-मतान्तरों, यहाँ तक की धर्म और
अधर्म से भी ऊपर उठना ही पड़ेगा|"
परमात्मा सब प्रकार के बंधनों से परे
है| चूँकि हमारा लक्ष्य परमात्मा है तो हमें भी उसी की तरह स्वयं को मुक्त
करना होगा, और साधना द्वारा अपने सच्चिदानंद स्वरुप में स्थित होना ही
होगा|
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ऐसे लोगों से दूर रहे जिन्हें भय और चिंता की आदत है,
क्योंकि यह एक संक्रामक मानसिक बीमारी है| सकारात्मक और आध्यात्मिक लोगों
का साथ करें, सद्साहित्य का अध्ययन करें, परमात्मा से प्रेम करें और उनका
खूब ध्यान करें|
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भगवान श्रीराम और हनुमान जी की उपासना हमें भयमुक्त कर सकती है| भगवान श्रीराम का यह वचन है ....
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||"
अर्थात् जो एक बार भी शरणमें आकर ‘मैं तुम्हारा हूँ’ ऐसा कहकर मेरे से
रक्षा की याचना करता है, उसको मैं सम्पूर्ण प्राणियोंसे अभय कर देता हूँ,
यह मेरा व्रत है|
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हनुमान जी के उपासकों को तो मैनें कभी भयभीत होते हुए देखा ही नहीं है|
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महाभारत के शांति पर्व में भी लिखा है ....
एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः|
दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय||
अर्थात् भगवान् श्रीकृष्णको एक बार भी प्रणाम किया जाय तो वह दस अश्वमेध
यज्ञोंके अन्तमें किये गये स्नानके समान फल देनेवाला होता है| दस अश्वमेध
करने वाले का तो पुनः संसारमें जन्म होता है, पर श्रीकृष्को प्रणाम
करनेवाला अर्थात् उनकी शरणमें जानेवाला फिर संसार-बन्धनमें नहीं आता|
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अपनी पीड़ा सिर्फ भगवान को अकेले में कहें, दुनियाँ के आगे रोने से कोई लाभ
नहीं है| हम दूसरों की दृष्टी में क्या हैं इसका महत्व नहीं है| महत्व तो
इसी बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं|
दुखी व्यक्ति को
सब ठगने का प्रयास करते हैं| धर्म के नाम पर बहुत अधिक ठगी हो रही है|
स्वयं को परमात्मा से जोड़ें, न कि इस नश्वर देह से|
समष्टि के कल्याण
की ही प्रार्थना करें| समष्टि के कल्याण में ही स्वयं का कल्याण है| बीता
हुआ समय स्वप्न है जिसे सोचकर ग्लानि ग्रस्त नहीं होना चाहिए|
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राम जी की कृपा सब भवरोगों का नाश करती है| अतः उन्हीं का आश्रय लें| वे
निश्चित ही रक्षा करेंगे| प्रभु भक्ति के द्वारा ही हम भय और चिंताओं से
मुक्त हो सकते हैं| अन्य कोई मार्ग नहीं है| हम परमात्मा के अंश हैं अतः
स्वयं का सम्मान करें| पमात्मा ने हमें विवेक दिया है अतः उसका उपयोग भी
करें|
अंत में मैं यही कहूंगा कि शरणागति और समर्पण के अतिरिक्त अन्य कोई गति नहीं है|
भगवान हम सब की रक्षा करें|
ॐ ॐ ॐ ||