Tuesday 4 October 2016

परमात्मा की मातृरूप में आराधना .....

परमात्मा की मातृरूप में आराधना .....
--------------------------------------
आजकल शारदीय नवरात्र चल रहे हैं| यह भारतीय संस्कृति का सब से बड़ा पर्व है|
परमात्मा की मातृरूप में भी आराधना भारत की ही संस्कृति का भाग है|
जगन्माता की आराधना महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में की जाती है| इन सब का समन्वित रूप दुर्गा है|
महाकाली चित्त की दुष्वृत्तियों का नाश करती है, महालक्ष्मी सद्वृत्तियाँ प्रदान करती है और महासरस्वती आत्मज्ञान कराती है|
.
इसके पश्चात दशहरा और दीपावली है|
भारतीय संस्कृति में कोई भी पर्व हो वह आराधना के रूप में मनाया जाता है|
शारदीय नवरात्रों का साधना की दृष्टी से बड़ा महत्व है| उसके पश्चात् दशहरा और दीपावली भी साधना पर्व हैं|
.
इस अवसर पर सभी को मेरा सादर अभिनन्दन, शुभ कामनाएँ और प्रणाम|
.
जगन्माता से प्रार्थना ......
---------------------
माँ, मुझे प्रेममय बनाओ |
बिना किसी कामना या अपेक्षा के तुम्हारे प्रेम से यह ह्रदय भर जाए |
किसी कामना का जन्म ही ना हो |
तुम कहती हो कि इस ह्रदय का पात्र बहुत छोटा है, जिसमें अनंत प्रेम नहीं समा सकता |
इस सीमित पात्र को तोड़ दो |
इस सीमितता में मैं अब और नहीं बंध सकता |
तुम्हारे प्रेम पर मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है |
तुम्हारा ह्रदय ही मेरा ह्रदय है | मैं तुमसे पृथक नहीं हूँ |
मैं तुम्हारा पूर्ण पुत्र हूँ, तुम और मैं दोनों एक हैं |
.
माँ, तुमने अपनी सभी संतानों को पूर्णता दी है, अज्ञान के आवरण में जिसे मैं विस्मृत कर चुका हूँ | इस अज्ञान को दूर करो |
.
स्वयं से पृथकता ही मेरे सब दुखों का कारण है |
जो कुछ भी इस सृष्टि में मैं प्राप्त करना चाहता हूँ, वह सब तो मैं स्वयं ही हूँ |
जिस सुख, शांति, समृद्धि और आनंद को मैं ढूँढ रहा हूँ, वह सब भी मैं स्वयं ही हूँ |
तुम्हारे प्रेम रुपी महासागर में मैं अब एक लहर नहीं बल्कि स्वयं महा प्रेम सागर ही हूँ |
.
किसी से कुछ भी दुःखदायी अपेक्षा न हो |
शरणागति और समर्पण में पूर्णता हो, और तुम्हारी कृपा के द्वार सदा खुले रहें |
तुम्हारी जय हो |
.
ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment