Tuesday, 4 October 2016

समस्याएँ मन में हैं या संसार में ? .......

समस्याएँ मन में हैं या संसार में ? .......
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यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर अति कठिन है| आध्यात्मिक दृष्टी से तो सब समस्याएँ मन में ही हैं, पर सांसारिक दृष्टी से सब समस्याएँ परिस्थितियों में हैं|
उलझनें तो मन में हैं पर उनका समाधान लगता तो परिस्थितियों की अनुकूलता पर ही है| आध्यात्म तो कहता है कि बाहर कोई समस्या नहीं है, सारी समस्याएँ मन की ही उपज हैं| पर कई बार हम अज्ञानतावश या अपनी जन्मजात कमजोरियों से कुछ ऐसी भूल कर बैठते हैं जिनके दुष्परिणाम बहुत लम्बे समय तक या पूरे जीवन भर भुगतने पड़ते हैं| यह हमारा प्रारब्ध है या अज्ञानतावश की गई भूल? कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या यह भी मन की ही समस्या है?
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किसी भी तरह की विकट से विकट परिस्थिति का हम बिना विचलित हुए सामना तभी कर सकते हैं जब हमारी परमात्मा में अति गहन आस्था हो, अन्यथा नहीं|
मैनें एक जर्मन यहूदी की आत्मकथा पढी थी जिसकी आँखों के सामने ही उसके माता-पिता और भाई-बहिनों की हत्या कर दी गयी थी| उसके सारे सम्बन्धी प्रताड़ित और यंत्रणा देकर मार दिए गए थे| यंत्रणा शिविर में उसके सारे मित्र पागल होकर मर गए थे| सब तरह की यंत्रणाओं को सहकर और कई दिनों की भूख-प्यास के बावजूद भी उसने अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया और दृढ़ मनोबल और परमात्मा में आस्था के कारण तब तक जीवित रहा जब तक जर्मनी की हार हुई और अमेरिकी सेनाओं द्वारा जीवित बचे यहूदी बंदियों को बचाया गया|
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भारत के विभाजन के समय हजारों हिन्दू महिलाओं ने नदी में या कुएँ में कूद कर अपने प्राण दे दिए, लाखों हिन्दुओं की हत्याएँ हुईं, रेलगाड़ियों में हज़ारों हिन्दुओं की लाशों को भरकर पकिस्तान से भारत भेजा गया| ऐसे दृश्य देखकर भी अनेक लोग विचलित नहीं हुए| इसके पीछे उनकी आस्था ही थी| यहाँ समस्या मन में नहीं परिस्थितियों में थीं|
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वे लोग वास्तव में बड़े भाग्यशाली हैं जिन्हें भयभीत होने या चिंता करने की फुर्सत ही नहीं मिलती| हमारे व्यवहार में मधुरता होनी चाहिए| किसी भी तरह के कुटिल या कटु प्रश्न का उत्तर भी हम शालीनता से दें| हमारी प्रसन्नता और मुस्कराहट हमारी अमुल्य संपत्ति है| अर्थ भी आवश्यक है और स्वाभिमान भी| विवशता के साथ समझौता भी करना पड़ता है| हिम्मत तो कभी भी नहीं हारनी चाहिए|
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यह संसार परमात्मा की रचना है| उसी के बनाए नियमों से और उसी की इच्छा से यह संसार चल रहा है और चलता रहेगा| बिना किसी अपेक्षा के जीवन में जो भी सर्वश्रेष्ठ हम कर सकते हैं वह ही हमें करना चाहिए और अन्य सब बातों की चिंता छोड़कर परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए| तभी हम सुखी हो सकते हैं|
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ॐ ॐ ॐ !!

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