चित्त को कहाँ लगाएँ ........
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अलादीन ने चिराग को रगडा तो एक जिन्न प्रकट हुआ| जिन्न ने कहा मेरे आक़ा मुझे हुक्म दो मैं क्या काम करूँ| अलादीन जो भी आदेश देता, जिन्न उसे तुरंत पूरा कर देता| जिन्न ने यह भी कहा कि जब तक तुम मुझसे निरंतर काम करवाते रहोगे मैं तब तक तुम्हारे वश में हूँ, जब कोई काम नहीं रहेगा तब मैं गला घोट कर तुम्हारी ह्त्या कर दूंगा|
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मनुष्य का चित्त वही जिन्न है| इसे निरंतर कहीं ना कहीं लगाए रखना पड़ता है| खाली होते ही यह मनुष्य को वासनाओं के जाल में ऐसा फँसाता है जहाँ से बाहर निकलना अति दुर्धर्ष हो जाता है| इस चित्त की वृत्तियों के निरोध को ही योग साधना कहा गया है| इस की वृत्तियाँ अधोगामी हैं, जिन्हें साधना द्वारा ऊर्ध्वगामी बना देने पर यह मनुष्य को परमात्मा तक ले जाता है|
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भगवान श्रीकृष्ण जो साकार रूप में परम ब्रह्म हैं, का आदेश है ....
"मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि |
अथ चेत्त्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनंक्ष्यसि ||"
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अलादीन ने चिराग को रगडा तो एक जिन्न प्रकट हुआ| जिन्न ने कहा मेरे आक़ा मुझे हुक्म दो मैं क्या काम करूँ| अलादीन जो भी आदेश देता, जिन्न उसे तुरंत पूरा कर देता| जिन्न ने यह भी कहा कि जब तक तुम मुझसे निरंतर काम करवाते रहोगे मैं तब तक तुम्हारे वश में हूँ, जब कोई काम नहीं रहेगा तब मैं गला घोट कर तुम्हारी ह्त्या कर दूंगा|
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मनुष्य का चित्त वही जिन्न है| इसे निरंतर कहीं ना कहीं लगाए रखना पड़ता है| खाली होते ही यह मनुष्य को वासनाओं के जाल में ऐसा फँसाता है जहाँ से बाहर निकलना अति दुर्धर्ष हो जाता है| इस चित्त की वृत्तियों के निरोध को ही योग साधना कहा गया है| इस की वृत्तियाँ अधोगामी हैं, जिन्हें साधना द्वारा ऊर्ध्वगामी बना देने पर यह मनुष्य को परमात्मा तक ले जाता है|
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भगवान श्रीकृष्ण जो साकार रूप में परम ब्रह्म हैं, का आदेश है ....
"मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि |
अथ चेत्त्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनंक्ष्यसि ||"
अर्थात् मुझमें ही चित्त लगा चुकने पर तूँ मेरी कृपा से इस संसार रूपी
दुर्ग के सारे संकटों को पार कर लेगा| पर यदि अहङ्कार के कारण मेरी बात
नहीं मागेगा तो तू विनष्ट हो जायेगा|
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अतः चित्त का अधिष्ठान "सच्चिदानन्द ब्रह्म" ही है| सारी सृष्टि का एकमात्र प्रयोजन यही है कि हम सच्चिदानंद परमात्मा में स्थित हो जाएँ| सांसारिक भोगों के लिये यह संसार नहीं बनाया गया है, यह तो परमेश्वर के ज्ञान के लिये बनाया गया है|
.
परमात्मा की सुन्दर सृष्टि को सब देखते हैं, पर उसे कोई नहीं देखता|
भगवान के अनुग्रह से ही हम इस मायावी संसार को पार कर सकते हैं, निज प्रयास से नहीं| दूसरे शब्दों में जब तक हम जीव की चेतना में हैं, माया का अनंत आवरण नहीं हटेगा| परमात्मा को समर्पित होने के बाद ही उनकी ही कृपा से यह अनंत मायाजाल दूर होगा| अनंत विघ्नों को कहाँ तक पार करेंगे?
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जहाँ अहंकार होगा वहाँ विनाश ही होगा| भगवान के वचन प्रमाण हैं| उनसे ऊपर कुछ नहीं है| अतः उनकी आज्ञा माननी ही पड़ेगी|
"निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्," स्वतन्त्रता सिर्फ परमात्मा में ही है, संसार में नहीं|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||
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अतः चित्त का अधिष्ठान "सच्चिदानन्द ब्रह्म" ही है| सारी सृष्टि का एकमात्र प्रयोजन यही है कि हम सच्चिदानंद परमात्मा में स्थित हो जाएँ| सांसारिक भोगों के लिये यह संसार नहीं बनाया गया है, यह तो परमेश्वर के ज्ञान के लिये बनाया गया है|
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परमात्मा की सुन्दर सृष्टि को सब देखते हैं, पर उसे कोई नहीं देखता|
भगवान के अनुग्रह से ही हम इस मायावी संसार को पार कर सकते हैं, निज प्रयास से नहीं| दूसरे शब्दों में जब तक हम जीव की चेतना में हैं, माया का अनंत आवरण नहीं हटेगा| परमात्मा को समर्पित होने के बाद ही उनकी ही कृपा से यह अनंत मायाजाल दूर होगा| अनंत विघ्नों को कहाँ तक पार करेंगे?
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जहाँ अहंकार होगा वहाँ विनाश ही होगा| भगवान के वचन प्रमाण हैं| उनसे ऊपर कुछ नहीं है| अतः उनकी आज्ञा माननी ही पड़ेगी|
"निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्," स्वतन्त्रता सिर्फ परमात्मा में ही है, संसार में नहीं|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||