Sunday 1 January 2017

देश-काल से परे .....

देश-काल से परे .....
------------------
समय नित्य नूतन है| समय को खंडित नहीं किया जा सकता| पर कालगणना के लिए प्रकृति के नियमानुसार युग, संवत्, वर्ष इत्यादि बनाए गए हैं| इसके लिए भारतीय मनीषियों ने बहुत गहन साधना और अध्ययन किया है| इसीलिए भारतीय कालगणना सर्वाधिक वैज्ञानिक है| गृह नक्षत्रों की स्थितियों और प्रभावों का गहन अध्ययन कर ज्योतिषादि शास्त्र निर्मित हुए, और विशिष्ट कार्यों के लिए विशिष्ट तिथियाँ, मुहूर्त आदि निर्धारित करने की विधियाँ बनीं| इनके पीछे भारत के प्राचीन ऋषियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है|
.
जिस तरह से आजकल नववर्ष मनाया जाता है यह भारत की परम्परा नहीं है| पर समय के प्रभाव के कारण हम इसे मानने को बाध्य हैं| भारत की परम्परानुसार हर पल, हर क्षण एक उत्सव है| जब भी परमात्मा की अनुभूति हो वह क्षण ही शुभ से शुभ है|
.
परमात्मा के गहन ध्यान में हम देश-काल से परे (Beyond Time and Space) चले जाते हैं| देश-काल (Time & Space) दोनों ही बंधन हैं| हमारी चेतना इनसे मुक्त होकर इनसे परे हो, यही योग और वेदांत की शिक्षा है, और यही हमारी साधना है| हम यह भौतिक देह नहीं हैं, हम परमात्मा के अंश हैं, हम असीम और अनंत हैं| समय हमारा भाग है, हम समय के नहीं| सब प्रकार के बंधनों से मुक्त हम शाश्वत आत्मा हैं, परमात्मा के साथ एक हैं, हम जीव नहीं अपितु शिव हैं| यही हमारा ध्यान का विषय है|
.
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ ||

नववर्ष ईस्वी सन 2017 का स्वागत .....

कोई कुछ भी कहे, मैं नववर्ष ईस्वी सन 2017 का स्वागत करता हूँ|
यह सृष्टि .... परमात्मा के मन का एक विचार मात्र है| मैं इस ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम सम्पूर्ण सृष्टि को दे रहा हूँ, क्योंकि यह प्रेम मेरा नहीं, परमात्मा का है जिनके अथाह प्रेम सागर की गहराइयों में मैं डूबा हुआ हूँ|
हे प्रियतम प्रभु, मेरी पृथकता भी आपके मन का एक विचार मात्र है| मैं तो हूँ ही नहीं, आप ही आप हो| आपकी जय हो|
.

परमात्मा द्वारा लोकयात्रा के लिए दी हुई यह देह एक तीर्थ बन गयी है जिसके अधिपति स्वयं साक्षात परमात्मा हैं| विवेक के प्रकाश में श्रद्धा, भक्ति और गुरु चरणों का ध्यान .... त्रिवेणी संगम बन गया है| अब और कहाँ जाएँ ? अन्य कोई ठिकाना नहीं है|
भगवान ने जहाँ रखा है वही प्रसन्न हैं| श्रद्धा, भक्ति और गुरु चरणों का ध्यान .... बस यही मेरी एकमात्र संपत्ति और आश्रय है, जो पर्याप्त है, और कुछ नहीं चाहिए|
हे प्रभु आपकी जय हो| ॐ तत्सत् |ॐ ॐ ॐ ||

31 दिसंबर की रात्री का वातावरण .....

आज 31 दिसंबर की रात्री का वातावरण अत्यधिक तमोगुण और रजोगुण से भरपूर होता है| पूरे विश्व में ही मांस, मदिरा का सेवन और नाच-गा कर बहुत सारे लोग उत्सव मनाते हैं|
यदि आप आध्यात्म मार्ग के पथिक हैं तो ऐसे वातावरण से दूर रहिये और एकांत में या सामूहिक रूप से भगवान का ध्यान / जप / कीर्तन / भजन आदि कीजिये| जो कुछ भी हो रहा है, जिसे हम बदल नहीं सकते, उसके लिए उपाय यही है कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ करें और अन्यों की आलोचना, निंदा व शिकायत ना करें| दूसरो के कामों के लिए हम उत्तरदायी नहीं हैं, अतः उनका चिंतन न कर प्रभु का ही चिंतन करें|
ॐ ॐ ॐ ||

ग्रेगोरियन नववर्ष 2017 के आरम्भ पर संकल्प .....

(ॐ सत्यसंकल्पाय नमः) ग्रेगोरियन नववर्ष 2017 के आरम्भ पर संकल्प .....
-----------------------------------------------------------------------------
(1) समष्टि का कल्याण हो|
(2) सम्पूर्ण भारतवर्ष में असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो|
(2) सनातन धर्म की सर्वत्र पुनर्प्रतिष्ठा हो|
(3) भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हों|
(4) परमात्मा का साक्षात्कार .....जिस के लिए यह जन्म लिया है, वह कार्य संपन्न हो|
.
यह नववर्ष पूर्णरूपेण उस अनंत के स्वामी को समर्पित है जिसने स्वयं को माया के आवरण में छिपा रखा है| वे कितने विक्षेप उत्पन्न करेंगे? कितने गहरे आवरण में छिपेंगे? कब तक छिपेंगे? अंततः हैं तो वे भक्त-वत्सल ही| अपनी संतानों की करुण पुकार सुनकर उन्हें आना ही पड़ेगा| अब वे और नहीं छिप सकते|
.
एक मानसिक अवधारणा कि 'सब रूप उन्हीं के हैं', संतुष्ट नहीं करती| हमें अपनी भौतिक, प्राणिक और मानसिक आदि सभी चेतनाओं से ऊपर उनकी परम चेतना में ही परम साक्षात्कार से कम कुछ भी नहीं चाहिए| अब हम और नहीं भटक सकते|
.
हे अनंत के स्वामी, तुमने हमें जहाँ भी रखा है वहीँ तुम्हें आना ही पडेगा| अब शीघ्रातिशीघ्र चले आओ, तुम्हारे बिना अब जीना संभव नहीं है| किसी भी तरह की दार्शनिक अवधारणाएँ अब और रोक नहीं सकतीं| किसी भी तरह का ज्ञान नहीं, हमें तो प्रत्यक्ष साक्षात्कार चाहिए|
.
गहन ध्यान में तुम्हारी झलक हमें अवश्य मिलती है पर वह संतुष्ट नहीं करती| तुम्हारा साम्राज्य उससे भी ऊपर है जहाँ से तुम आभासित होते हो| जब चेतना गहन ध्यान में होती है तब दिखाई देने वाले स्वर्णिम, नीले और विराट श्वेत ज्योति मंडल से भी तुम परे हो| सदा आभासित होने वाले पंचमुखी महादेव के प्रतीक पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र से भी तुम परे हो| तुम प्रणव और नाद से भी परे हो| जो अगम और अवर्णनीय है, हे प्रभु वो तुम ही हो| अब तरह तरह के मानसिक और बौद्धिक आभासों से मुक्त करो और तुम्हें पाने के लिए हमारे ह्रदय में जल रही प्रचण्ड अग्नि और अभीप्सा को अपनी उपस्थिति से शांत करो| अब तुम्हें आना ही होगा| तुम अब और छिप नहीं सकते| जहाँ भी तुमने हमें रखा है वहीँ तुम्हें आना ही होगा| हम अब और कहीं भी जा नहीं सकते|
.
अब तुम्हीं साधक हो, तुम्हीं साधना हो और तुम्ही साध्य हो| तुम ही तुम हो, मैं नहीं|
हे सच्चिदानंद, तुम्हें प्रणाम ! अब देर मत करो|
यह नववर्ष तुम्हें ही समर्पित है| ॐ सच्चिदानंदाय नमः ||
.
ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं| द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम्||
एकं नित्यं विमलंचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्| भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि||
ॐ श्री गुरवे नमः |
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम |तस्मात कारुण्य भावेन, रक्षस्व परमेश्वर ||
.
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥

ॐ स्वस्ति | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

ग्रेगोरियन पंचांगानुसार 1 जनवरी का नववर्ष .........

ग्रेगोरियन पंचांगानुसार 1 जनवरी का नववर्ष .........
------------------------------------------------
मैं व्यक्तिगत रूप से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को जगन्माता की आराधना के साथ नववर्ष मनाता हूँ, पर 1 जनवरी को मनाये जाने वाले नववर्ष का विरोध भी नहीं करता| मुझे विरोध सिर्फ उसको मनाये जानी वाली विधि से है| कुछ मुस्लिम देशों को छोड़कर सारे विश्व में, यहाँ तक कि पूर्व साम्यवादी व वर्त्तमान में साम्यवादी देशों में भी नववर्ष इसी दिन मनाते हैं| भारत से बाहर विदेशों में बहुत बार नववर्ष मनाया है|
.
मुझे विरोध सिर्फ उन लोगों से है जो नववर्ष को शराब पी कर फूहड़ता से मनाते हैं| मेरा एक अनुरोध मात्र है कि संभव हो तो प्रभु का ध्यान करके भक्ति से ही नववर्ष मनाया जाए| जीवन के पूर्ण अनुभव से कह रहा हूँ कि वास्तविक आनंद और जीवन की सार्थकता भगवान की भक्ति में ही है|
.
आप सब के जीवन का हर क्षण नववर्ष हो, आपकी हर रात क्रिसमस और हर दिन नववर्ष हो| यह भी कह सकते हैं कि हर दिन होली हो और हर रात दीपावली हो| सभी को नववर्ष की शुभ कामनाएँ|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत परमात्मा है, पुस्तकें नहीं .....

ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत परमात्मा है, पुस्तकें नहीं .....
----------------------------------------------------
ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत "परमात्मा" है| पुस्तकों से सूचना मात्र मिलती है, ज्ञान नहीं| शास्त्र अनंत और अति गहन हैं| जीवन बहुत अल्प है, समय बहुत कम है| अत्यधिक अध्ययन भी एक भटकाव है| पुस्तकों से प्रेरणा ही मिल सकती है| कम से कम समय का अधिकाधिक लाभ लेना चाहिए|
.
अतः सर्वश्रेष्ठ मार्ग है ..... जो समय बचा है उसमें भगवान की भक्ति और ध्यान| यही जीवन का सदुपयोग होगा|
.
मन वो ही रूप धारण कर लेता है जिस का हम निरंतर चिंतन करते हैं| हम भी फिर वो ही बन जाते हैं| यह शाश्वत सत्य है, अतः परमात्मा का निरंतर चिंतन हमें करना चाहिए|
.

गुरु महाराज से मुझे तो सदा यही प्रेरणा मिलती है कि हम चाहे कितने भी ग्रन्थ पढ़ लें, कितने भी प्रवचन और उपदेश सुन लें, इनसे प्रभु नहीं मिलेंगे|
पुस्तकें, प्रवचन और उपदेश सिर्फ प्रेरणा दे सकते हैं, और अधिक कुछ भी नहीं|
.
परमात्मा से प्रेम और उनका ध्यान, गहन ध्यान, गहनतर ध्यान, गहनतम ध्यान, और उस ध्यान की निरंतरता ........ बस यही प्रभु तक पहुंचा सकते है|
.
हे गुरु रूप परम ब्रह्म, मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि आपका ध्यान कर सकूं| जब आप ही इस नौका के कर्णधार हैं, तो अब मेरी कोई कामना या अपेक्षा नहीं रही है| आपका साथ जब मिल ही गया है तो और कुछ भी नहीं चाहिए| आप ही साक्षात् परमब्रह्म हो|
.
ओम् नमः शम्भवाय च, मयोभवाय च, नमः शंकराय च, मयस्कराय च, नमः शिवाय च, शिवतराय च।।

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

वितृष्णा और वैराग्य .....

वितृष्णा और वैराग्य .....
---------------------
वितृष्णा और वैराग्य .... इन दोनों में बहुत अंतर है|
हम वितृष्णा को वैराग्य मान बैठते हैं जो एक भटकाव है| संसार में दुःखों के अनुभव से वितृष्णा उत्पन्न होती है| उसमें मनुष्य संसार को निःसार मानकर संसार से दूर जाने का यत्न करता है| यह एक अस्थायी स्थिति है| दुःखों का कारण दूर होते ही पुनश्चः राग हो जाता है| अतः यह वैराग्य नहीं है|
वैराग्य तो विवेक का फल है| विवेक के द्वारा राग से अलग होना वैराग्य है| आत्मतत्व में बापस लौटना वैराग्य है|

"आवरण" और "विक्षेप" के रूप में "माया" तो अपना काम करेगी ही .....

"आवरण" और "विक्षेप" के रूप में "माया" तो अपना काम करेगी ही|
हमें भी अपना काम "भक्ति", "शरणागति", "समर्पण", "अभ्यास", "सत्संग" और "वैराग्य" द्वारा निरंतर करते रहना चाहिए|
.
रात्रि में सोने से पहिले, और प्रातः उठते ही भगवान का स्मरण, जप और ध्यान करें| निरंतर भगवान की स्मृति बनाये रखें| जब भी समय मिले खूब जप और ध्यान करो| जितना साधन हो सके उतना करो, बाकी शरणागत होकर भगवान को समर्पित कर दो| आगे का काम उनका है| भगवान का इतना चिंतन करो कि वे स्वयं ही आप की भी चिंता करने लगें| ॐ ॐ ॐ ||