Thursday 25 October 2018

समाजवाद/साम्यवाद/मार्क्सवाद से सावधान ....

समाजवाद/साम्यवाद/मार्क्सवाद से सावधान ....
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मार्क्सवाद/साम्यवाद/समाजवाद .... एक अति कुटिल धूर्ततापूर्ण भ्रामक व्यवस्था है जिसने अपने अनुयायियों को सदा भ्रमित कर धोखा दिया है| जहाँ जहाँ भी यह व्यवस्था प्रभावी रही, अपने पीछे एक विनाशलीला छोड़ गई| यह व्यवस्था जहाँ भी फैली, बन्दूक की नोक पर या छल-कपट से फैली| समाज में व्याप्त अन्याय, अभाव और वर्गसंघर्ष की भावना ही मार्क्सवाद को जन्म देती है| यह एक घोर भौतिक और आध्यात्म विरोधी विचारधारा है| विश्व को इसके अनुभव से निकलना ही था| इस विचारधारा ने अन्याय और अभाव से पीड़ित विश्व में एक समता की आशा जगाई पर कालांतर में सभी को निराश किया|
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१०१ वर्ष पूर्व २५ अक्टूबर १९१७ को वोल्गा नदी में खड़े रूसी युद्धपोत औरोरा से एक सैनिक विद्रोह के रूप में आरम्भ हुई रूस की बोल्शेविक क्रांति विश्व की बहुत बड़ी एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे विश्व को प्रभावित किया| इस विचारधारा का उद्गम ब्रिटेन से हुआ पर ब्रिटेन में इसका प्रभाव शून्य था| रूस उस समय एक ऐसा देश था जहाँ विषमता, अन्याय, शोषण और अभावग्रस्तता बहुत अधिक थी| व्लादिमीर इल्यिच उलियानोव लेनिन एक ऊर्जावान और ओजस्वी वक्ता था जिसने रूस में इस विचार को फैलाया| लेनिन का जन्म १० अप्रेल १८७० को सिम्बर्स्क (रूस) में हुआ था| सन १८९१ में इसने क़ानून की पढाई पूरी की| अपने उग्र विचारों के कारण यह रूस से बाहर निर्वासित जीवन जी रहा था| रूसी शासक जार निकोलस रोमानोव ने इसके भाई को मरवा दिया था अतः यह जार के विरुद्ध एक बदले की भावना से भी ग्रस्त था| इसी के प्रयास से (और कुछ पश्चिमी शक्तियों की अप्रत्यक्ष सहायता से) सोवियत सरकार की स्थापना हुई और रूस एक कमजोर देश से विश्व की महाशक्ति बना| मार्क्स के विचारों को मूर्त रूप लेनिन ने ही दिया| मार्क्सवाद की स्थापना के लिए करोड़ों लोगों की हत्याएँ हुईं, बहुत अधिक अन्याय हुआ| पूरे विश्व में यह विचारधारा फ़ैली, कई देशों में मार्क्सवादी सरकारें भी बनीं, पर अंततः यह विचारधारा विफल ही सिद्ध हुई क्योंकि यह घोर भौतिक विचारधारा थी| ७ नवम्बर १९१७ को सोवियत सरकार स्थापित हुई थी अतः विधिवत रूप से ७ नवम्बर को ही बोल्शेविक क्रांति दिवस के रूप में रूस में मनाया जाता था| २१ जनवरी १९२४ को लेनिन की मृत्यु हुई| उसके बाद स्टालिन ने सोवियत संघ पर राज्य किया| स्टालिन रूसी नहीं था, जॉर्जियन था (जॉर्जिया अब रूस से अलग देश है)| निरंकुश निर्दयी तानाशाह स्टालिन को ही द्वितीय विश्वयुद्ध जीतने और मार्क्सवादी विचारधारा को फैलाने का श्रेय जाता है|
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चीन में साम्यवाद माओ के लम्बे अभियान से नहीं बल्कि स्टालिन की रूसी सेना की सहायता से आया| मध्य एशिया, पूर्वी यूरोप, कोरिया, क्यूबा आदि में में सोवियत संघ के सैन्य बल और पैसों के प्रभाव से साम्यवाद आया| भारत में इस आसुरी विचारधारा को ब्रिटेन ने एम.ऐन.राय जैसे विचारकों के माध्यम से निर्यात किया| दुनिया भर के फसादी लोगों को ब्रिटेन अपने यहाँ शरण देता है, और सारे विश्व में झगड़े और फसाद फैलाता है| अभी भी इल्युमिनाती जैसी अति खतरनाक गुप्त संस्थाएँ ब्रिटेन में ही हैं जो अमेरिका और वेटिकन के साथ मिलकर पूरे विश्व पर अपना राज्य स्थापित करना चाहती हैं| मार्क्स और लेनिन की जैसे खुराफाती भी ब्रिटेन द्वारा ही तैयार हुए|
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हम आज जीवित हैं तो भगवान की कृपा से ही जीवित हैं, अन्यथा तो ये जिहादी, क्रूसेडर, नाजी, साम्यवादी जैसे धूर्त कुटिल निर्दयी लोग हमें कभी का मार डालते| मनुष्य की सभी समस्याओं का हल परमात्मा से प्रेम और सनातन धर्म में है, अन्यत्र कहीं भी नहीं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अक्तूबर २०१८

धर्मांतरण करने वाले सैंट व फादरों से सावधान .....

धर्मांतरण करने वाले सैंट व फादरों से सावधान .....
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आजकल हिन्दुओं का धर्मांतरण करने और हिन्दुओं को भ्रमित करने बहुत सारे देशी-विदेशी सैंट लोग (Saint) साधू-संत के वेश में भांड/बहुरुपिये, भारत में घूम रहे हैं, अपने विद्यालय खोल रहे हैं, सेवा के दिखावे कर रहे हैं, व और भी अनेक फर्जी कार्य कर रहे हैं | उनके प्रभाव में न आयें |
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हमारी आस्था को खंडित करने वाला, हमारा धर्मांतरण करने वाला, हमारी जड़ें खोदने वाला, और हमारी अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार करने वाला कोई व्यक्ति कभी संत नहीं हो सकता है | आँख मींच कर किसी को संत ना मानें चाहे सरकार, समाज या दुनिया उसे संत कहती हो| संतों में कुटिलता का अंशमात्र भी नहीं होता ...... संत जैसे भीतर से हैं, वैसे ही बाहर से होते है| उनमें छल-कपट नहीं होता | संत सत्यनिष्ठ होते हैं ...... चाहे निज प्राणों पर संकट आ जाए, संत किसी भी परिस्थिति में झूठ नहीं बोलेंगे | रुपये-पैसे माँगने वे चोर-बदमाशों के पास नहीं जायेंगे| वे पूर्णतः परमात्मा पर निर्भर होते हैं | संत समष्टि के कल्याण की कामना करते हैं, न कि सिर्फ अपने मत के अनुयायियों की | उनमें प्रभु के प्रति अहैतुकी प्रेम लबालब भरा होता है | उनके पास जाते ही कोई भी उस दिव्य प्रेम से भर जाता है |
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२६ अक्तूबर २०१८

साधकों के लिए दीपावली की रात्रि का महत्त्व .....

साधकों के लिए दीपावली की रात्रि का महत्त्व .....
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दीपावली की रात्री को व्यर्थ की गपशप, इधर-उधर घूमने, पटाखे फोड़ने, जूआ खेलने, शराब पीने, अदि में समय नष्ट नहीं करें| सब को पता होना चाहिए कि उस रात्री को समय का कितना बड़ा महत्त्व है| साधना की दृष्टी से चार रात्रियाँ बड़ी महत्वपूर्ण होती हैं ..... (१) कालरात्रि (दीपावली), (२) महारात्रि (शिवरात्रि), (३) दारुण रात्रि (होली), और (४) मोहरात्रि (कृष्ण जन्माष्टमी)| कालरात्रि (दीपावली) का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है|
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जो योगमार्ग के साधक हैं, उन्हें इस रात्री को 'परमाकाश' (ब्रह्मरंध्र व सहस्त्रार से बहुत ऊपर उच्चतम अनंत विस्तार) का ध्यान अपनी गुरु परम्परानुसार करना चाहिए| साधक का लक्ष्य कालातीत अवस्था में स्थित होना है| वहाँ श्वेत रंग के परम ज्योतिर्मय पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र के दर्शन होंगे, वे पंचमुखी महादेव हैं, उन्हीं में दृढ़ता से स्थित होकर उन्हीं का ध्यान करना है| गुरु कृपा से मार्ग दर्शन व सिद्धि निश्चित रूप से प्राप्त होगी| कुछ पढ़ने की इच्छा हो तो अर्थ सहित पुरुष सूक्त व श्री सूक्त का पाठ करना चाहिए| शुद्ध आचार-विचार, ब्रह्मचर्य, नियमित साधना और पराभक्ति (परमात्मा से परम प्रेम) अत्यंत आवश्यक हैं| बिना भक्ति के कोई भी द्वार नहीं खुलता|
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सामान्यतः सभी को अपनी अपनी गुरु परम्परानुसार जप तप व साधना अवश्य करना चाहिए| कुछ समझ में नहीं आये तो राम नाम का खूब जप करें जो बहुत अधिक शक्तिशाली व परम कल्याणकारी है| राम नाम तारक मन्त्र है, जो सर्वसुलभ सर्वदा सब के लिए उपलब्ध है| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन!
हरि ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
२५ अक्टूबर २०१८

शरद पूर्णिमा .....

शरद पूर्णिमा पर आप सब का अभिनंदन ! इस दिन बालक भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था| उस समय उनकी आयु आठ-नौ वर्ष की थी| इस के पश्चात तो अध्ययन के लिए उन्हें गुरुकुल भेज दिया गया था| राजस्थान के कुछ भागों में हनुमान जी के मंदिरों में विशेष आराधना होती है और उत्सव मनाया जाता है|

शरदपूर्णिमा की चांदनी रात में रखी खीर को सुबह भोग लगाने का विशेष रूप से महत्व है| मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का चांद सम्पूर्ण १६ कलाओं से युक्त होकर रात भर अमृत की वर्षा करता है| ऐसी भी मान्यता है कि माँ लक्ष्मी इस रात्रि में भ्रमण करती हैं और उन्हें जागरण व आराधना करता हुआ कोई मिलता है तो उस पर कृपा करती हैं|

२४ अक्टूबर २०१८

Tuesday 23 October 2018

आततायी को चाहे वह गुरु हो या बालक,वृद्ध हो या बहुश्रुत-ब्राह्मण, बिना सोचे शीघ्र मार देना चाहिये .....

आततायी को चाहे वह गुरु हो या बालक,वृद्ध हो या बहुश्रुत-ब्राह्मण, बिना सोचे शीघ्र मार देना चाहिये .....
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कोई आततायी आपको मारने आ रहा है या आपके राष्ट्र और धर्म का अहित करने आ रहा है, तब क्या आप उस में परमात्मा का भाव रखेंगे?
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मेरे आदर्श तो भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण हैं| कहीं भी कोई संदेह या भ्रम होता है तो मैं स्वयं से यह प्रश्न करता हूँ कि यदि भगवान् श्रीराम मेरे स्थान पर होते तो वे क्या करते? जो भगवान करते या भगवान ने किया है वही मेरा आदर्श है और वही मुझे करना चाहिए| इस से सारे भ्रम दूर हो जाते हैं|
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'वशिष्ठ-स्मृति' के अनुसार आततायी का लक्षण निम्नलिखित है―
*अग्निदो गरदश्चैव शस्त्रपाणिर्धनापहः । क्षेत्रदारहरश्चैव षडेते आततायिनः ।।-(वशिष्ठ-स्मृति ३/१९)
आग लगाने वाला,विष देने वाला,हाथ में शस्त्र लेकर निरपराधों की हत्या करने वाला,दूसरों का धन छीनने वाला,पराया-खेत छीनने वाला,पर-स्त्री का हरण करने वाला-ये छह आततायी हैं।
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ऐसे आततायी के वध के लिए मनुजी का आदेश है―
गुरुं वा बालवृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतम् । आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन् ।।--(मनु० ८/३५०)
आततायी को चाहे वह गुरु हो या बालक,वृद्ध हो या बहुश्रुत-ब्राह्मण, बिना सोचे शीघ्र मार देना चाहिये।
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भगवान् राम ने इसी मनुस्मृति वचन का उल्लेख रामायण में किया है-
श्रूयते मनुना गीतौ श्लोकौ चारित्रवत्सलौ।
गृहीतौ धर्मकुशलैस्तत्तथा चरितं हरे॥(किष्किन्धा काण्ड, १८/३१)

इसके पूर्व ताड़का (ताटका) के वध के लिये भी विश्वामित्र ने राम को कहा था कि स्त्री का वध करने में उनको संकोच नहीं होना चाहिये।
बालकाण्ड, (सर्ग २५)-न हि ते स्त्री वधकृते घृणा कार्या नरोत्तम॥१६॥
चातुर्वर्ण्य हितार्थाय कर्तव्यं राजसूनुना।
नृशंसमनृशंसं वा प्रजारक्षणकारणात्॥१७॥
पातकं वा सदोषं वा कर्तव्यं रक्षता सदा।
राज्यभारनियुक्तानामेष धर्मः सनातनः॥१८॥
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२४ अक्टूबर २०१८

"निर्गुण" शब्द का क्या अर्थ हो सकता है ? हम "निर्गुण" कैसे हों ? ...

"निर्गुण" शब्द का क्या अर्थ हो सकता है ? हम "निर्गुण" कैसे हों ? ....
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इस सृष्टि में कुछ भी या कोई भी .... "गुणहीन" नहीं है| जो कुछ भी व्यक्त हो रहा है वह अपने "गुणों" से ही हो रहा है, यानि हर जीव या हर पदार्थ जो कुछ भी है, वह अपने "गुणों" से ही है| फिर "निर्गुण" तो कुछ है ही नहीं| अतः "निर्गुण" का क्या अर्थ हो सकता है? पारंपरिक रूप से जो निराकार ब्रह्म की उपासना करते हैं उन्हें "निर्गुणी" कहा जाता है, और प्रचलन में निराकार ब्रह्म ही "निर्गुण" कहा जाता है| पर यह बात पूरी तरह गले नहीं उतरती यानि कुछ जँचती नहीं है|
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एक दूसरा दृष्टिकोण भी है| गीता में भगवान "निस्त्रैगुण्य" होने का उपदेश करते हैं.....
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन| निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्||२:४५||
अतः मेरी तो अल्प व सीमित बुद्धि से यही समझ में आता है कि जो "गुणातीत" है वही "निर्गुण" है| शास्त्रों में तीन गुण बताएँ हैं जिनसे यह सृष्टि संचलित है, वे हैं .... "सत्त्व, रज, तम", इनसे परे जाना ही "निर्गुण" होना हो सकता है|
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अब प्रश्न उठता है कि हम "निर्गुण" यानी "गुणातीत" कैसे हों?
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अब इधर-उधर की बात न करते हुए मैं अपने निज अनुभव की बात करता हूँ| साधना द्वारा अनुभूत मेरा निजी अनुभव तो यही है कि ..... "स्वयं में व्यक्त हो रहे प्राण तत्व की स्थिरता" ही "गुणातीत" यानि "निर्गुण" होना है| प्राण तत्व की अनुभूति निष्ठावान साधकों को हर समय निरंतर होती है| यह प्राण तत्व ही सुषुम्ना नाड़ी में कुण्डलिनी, और नासिका में वायु के रूप में व्यक्त होता है|
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शास्त्रों में कहा है .... "ॐ नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि"| यहाँ मेरे विचार से वायु जो श्वास रूप में चल रहा है वह व्रह्म बताया गया है| श्वास-प्रश्वास एक प्रतिक्रया है चंचल प्राण की| प्राण की चंचलता ही चंचल मन के रूप में व्यक्त होती है| श्वास में सत्व, रज व तम न हो, ..... यानि कोई स्पंदन न हो, यही "निर्गुण" होने का लक्षण है| यह पूर्ण रूप से संभव है| प्राण तत्व को स्थिर कर के खेचरी मुद्रा में बिना श्वास लिए भी जीवित रहा जा सकता है| (आगे साधना का विषय है, अतः और नहीं लिख रहा).
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अक्तूबर २०१८

सबरीमाला के भगवान अय्यपा के मंदिर की आस्थाहीन नास्तिकों से रक्षा करो, और पूरे भारत में हिन्दू मंदिरों की सरकारी लूट बंद हो .....

सबरीमाला के भगवान अय्यपा के मंदिर की आस्थाहीन नास्तिकों से रक्षा करो, और पूरे भारत में हिन्दू मंदिरों की सरकारी लूट बंद हो .....
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भगवान शिव और विष्णु के मिश्रित बालरूप अय्यप्पा का मंदिर दक्षिण भारत का सबसे अधिक लोकप्रिय मंदिर है जिसकी पवित्रता को भंग करने पर केरल की नास्तिक मार्क्सवादी सरकार, जिहादी और क्रूसेडरी शक्तियाँ लगी हुई हैं| अपने इस कुत्सित उद्देश्य में उन्होंने भारत के उच्चतम न्यायालय को भी सम्मिलित कर लिया है| अय्यप्पा का विग्रह आजीवन बाल ब्रह्मचारी का है अतः एक विशेष आयुवर्ग की महिलायें मंदिर के भीतर प्रवेश नहीं करतीं| इस शताब्दियों से प्रचलित प्रथा से किसी भी श्रद्धालु हिन्दू महिला को कोई शिकायत नहीं है| मंदिर में जाने वाले श्रद्धालु दर्शन करने से पूर्व ४१ दिनों तक की एक तपस्या करते हैं, जिसमें वे भूमि पर सोते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और शाकाहारी भोजन करते हैं|
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मार्क्सवादियों के आराध्य देव कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्टालिन, फ्रेडरिक एंगेल्स, माओ, फिदेल कास्त्रो, चे ग्वेरा, आदि हैं| ये मार्क्सवादी उन्हीं आस्थाविहीन नास्तिकों के चश्मों से हिन्दुओं की आस्था को मापते हैं, और इन्होनें नास्तिक आस्थाहीनों को मंदिर के पदाधिकारियों के रूप में नियुक्त कर रखा है|
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स्वतन्त्रता के समय से ही पूरे भारत के सारे प्रमुख हिन्दू मंदिर अधर्मसापेक्ष (धर्मनिरपेक्ष) सरकारों के आधीन है, और जो धन सिर्फ हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में लगना चाहिए वह अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में खर्च होता है| यह हिन्दुओं का दुर्भाग्य है| भारत की सभी धर्मनिरपेक्ष सरकारों ने ईसाई अंग्रेजों के अंग्रेज़ी चश्में से हिन्दुओं की आस्था का आंकलन किया है|
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केरल की मार्क्सवादी सरकार ने भारी पुलिस संरक्षण में विधर्मी महिलाओं को महिला स्वतन्त्रता के नाम पर मंदिर में घुसा कर मंदिर की पवित्रता भंग करने का पूरा प्रयास किया है जिसे हजारों श्रद्धालु हिन्दू महिलाओं ने अपनी जान पर खेल कर विफल कर दिया| वयोवुद्ध श्रद्धालु महिलाओं पर बहुत अधिक अत्याचार हुआ है|
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भगवान हमारी सहायता करे|
कृपा शंकर
२२ अक्टूबर २०१८

पुलिस शहीद स्मृति दिवस :---

पुलिस शहीद स्मृति दिवस :---
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पुलिस शहीद स्मृति दिवस पर आज २१ अक्तूबर को मैं उन लगभग ३४८०० पुलिस के जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ जो स्वतन्त्रता के पश्चात आज तक अपना कर्तव्य निभाते हुए शहीद हुए हैं| उनके परिवारों को भी भगवान अपने प्रियजनों को खोने का दुःख सहन करने की शक्ति दे|
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कहीं पर कोई भी दुर्घटना हो जाए, अपराध हो जाए या प्राकृतिक प्रकोप हो जाए तो पुलिस बल ही सर्वप्रथम पहुँचता है| हम आज अपराधियों से सुरक्षित होकर सुख की सांस ले रहे हैं, यह कर्तव्यनिष्ठ और साहसी पुलिस वालों के कारण हैं|
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पुलिस में अगर कहीं कोई बुराई है तो वह अंग्रेजों की डाली हुई है जिसमें अपने हित के लिए राजनीतिकों ने स्वतंत्र भारत में कोई सुधार नहीं किया| इस विषय पर बहुत अनुसंधान हुआ है, बहुत सारे लेख और पुस्तकें भी लिखी गयी हैं| अतः इन पंक्तियों का यहीं समापन करता हूँ|

अंत में सभी कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मियों व उनके परिवारों को शुभ कामनाएँ !
कृपा शंकर
२१ अक्टूबर २०१८

भारत की प्रथम स्वतंत्र सरकार के ७५ वें स्थापना दिवस पर सभी देशवासियों का अभिनन्दन .....

भारत की प्रथम स्वतंत्र सरकार के ७५ वें स्थापना दिवस पर
सभी देशवासियों का अभिनन्दन .....
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आज से ७५ वर्ष पूर्व २१ अक्तूबर १९४३ को नेताजी सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी थी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुरिया और आयरलैंड ने मान्यता दे दी थी| जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये| सुभाष बोस उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया| अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया| ३० दिसंबर १९४३ को पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान में पर स्वतन्त्र भारत का ध्वज भी फहरा दिया गया था|
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इससे पहले प्रथम विश्व युद्ध के बाद अफ़ग़ानिस्तान में महान् क्रान्तिकारी राजा महेन्द्र प्रताप ने आज़ाद हिन्द सरकार और फ़ौज बनायी थी जिसमें ६००० सैनिक थे|
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इटली में क्रान्तिकारी सरदार अजीत सिंह ने 'आज़ाद हिन्द लश्कर' बनाई तथा 'आज़ाद हिन्द रेडियो' का संचालन किया|
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जापान में रासबिहारी बोस ने भी आज़ाद हिन्द फ़ौज बनाकर उसका जनरल कैप्टेन मोहन सिंह को बनाया था|
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इन सभी का लक्ष्य भारत को अंग्रेज़ों के चंगुल से सैन्य बल द्वारा मुक्त कराना था| पर स्वतंत्र सरकार की स्थापना नेताजी ने ही ७५ वर्ष पूर्व आज ही के दिन की थी| अतः वास्तविक स्वतंत्रता दिवस तो आज ही है| १५ अगस्त १९४७ तो भारत का विभाजन दिवस था|
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तेरा गौरव अमर रहे माँ हम दिन चार रहें न रहें| भारत माता की जय !
वन्दे मातरं ! जय हिन्द !
कृपा शंकर
२१ अक्तूबर २०१८

हिन्दू मंदिरों की पवित्रता की रक्षा हो .....

हिन्दू मंदिरों की पवित्रता की रक्षा हो .....
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जिस मंदिर के नियमानुसार मंदिर में दर्शन से पूर्व हर दर्शनार्थी को ४१ दिनों तक तपस्या करनी पड़ती हो ..... शाकाहारी भोजन, भूमि पर शयन और ब्रह्मचर्य के पालन के रूप में ..... फिर तुलसी व रुद्राक्ष की माला पहिन कर नेवैद्य सिर पर रखकर ले जाना पड़ता हो ..... उस मंदिर में उच्चतम न्यायालय के आदेश की अनुपालना करते हुए केरल की मार्क्सवादी अधर्मी सरकार द्वारा अश्रद्धालु और अधर्मी महिलाओं को भारी पुलिस बल के संरक्षण में ...... उन विधर्मी महिलाओं को जो छिपा कर प्रसाद के रूप में मंदिर की पवित्रता भंग करने के लिए अपने साथ मासिक धर्म के खून से सना सेनेट्री नेपकीन पेड और ब्रा लेकर जाती हो ....... उन विधर्मी महिलाओं को जो भगवान की मूर्ति के समक्ष मंदिर में अपने पुरुष मित्र के साथ सम्भोग करना चाहती हो ..... उन विधर्मी महिलाओं को जो सिर्फ देवता का मखौल उड़ाना चाहती हो ..... क्या श्रद्धालुओं का अपमान नहीं है?
मंदिर की पवित्रता की रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर एकत्र हुई हज़ारों वयोवृद्ध श्रद्धालु महिलाओं पर लाठीचार्ज कर सैंकड़ों श्रद्धालु महिलाओं को घायल करना कहाँ का धर्म है? लगता है यही मार्क्सवाद है|
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किन महिलाओं को समानता का अधिकार सुप्रीम कोर्ट ने दिया है? मंदिर की परम्पराओं की रक्षा करने वाली लाखों श्रद्धालु महिलाओं को या इन गिनी चुनी धर्मद्रोही अधर्मी/विधर्मी महिलाओं को?
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अब मार्क्सवादियों का अंत आ गया है| वे इतिहास का विषय बन कर रह जायेंगे|
कृपा शंकर
२१ अक्टूबर २०१८

Tuesday 16 October 2018

हम नित्य-नवीन, नित्य-चेतन, और नित्य-शाश्वत आनंद हैं .....

हम नित्य-नवीन, नित्य-चेतन, और नित्य-शाश्वत आनंद हैं .....
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नित्य से प्रेम होने पर अनित्य का लोप होने लगता है| अनित्यता असत्य है| जो नित्य है, वह परमात्मा ही एकमात्र सत्य और हमारा अस्तित्व है| अनित्य तो इस विस्तृत छाया-चित्रालय पर उभरते और मिटते छायाचित्र हैं| जो इन छायाचित्रों के रूप में स्वयं को व्यक्त कर रहा है वह परमात्मा ही नित्य है| वही हमारा वास्तविक स्वरुप है| अनित्यता और क्षणिकवाद असत्य है|
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इस विषय पर मेरा कुछ भी लिखना एक बौद्धिक मनोरंजन हो सकता है, मनोनिग्रह की प्रेरणा नहीं, अतः और लिखने की इच्छा अब नहीं रही है| नित्य से प्रेम होने पर अनित्य का लोप होने लगता है| यह माया का खेल है कि नित्य में मन लगाते ही अनित्य की याद आने लगती है| पर उस नित्य की कृपा है कि हमें उस अनित्य के दलदल में डूबने नहीं देता और बार बार उबार लेता है, क्योंकि हम उसी की एक लीला के अंग ही नहीं, उसके साथ एक हैं|
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हम कभी भी निःशक्त, निरर्थक और पौरुषहीन नहीं हैं क्योंकि हम परमात्मा के साथ एक हैं| परमात्मा से पृथकता का भाव ही हमारे सारे अनर्थ का मूल है| आजकल के सारे "वाद" जैसे साम्यवाद, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षतावाद, मानवतावाद, सर्वधर्मसमभाववाद, आदि आदि सब मिथ्या और भ्रामक हैं| सत्य को समझने के लिए उपनिषदों व गीता आदि का स्वाध्याय कर, पूर्ण प्रेम से परमात्मा की उपासना करनी होगी तभी निश्चित रूप से वे हमारे चित्त-पटल पर छाये मायावी अन्धकार को दूर कर स्वयं को व्यक्त करेंगे|
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रहस्यों का रहस्य यह है कि परमात्मा को कर्ता बनाकर हम निमित्त मात्र बनें, और अपनी सारी पृथकता परमात्मा को समर्पित कर दें| हमारी बुरी सोच और बुरे कर्म एक छूत की बीमारी है, जिससे हमें मुक्त होना है, सिर्फ लक्षणों को दबाना नहीं है|
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भारत की राजनीतिक व्यवस्था और संविधान ..... साम्प्रदायिक यानि communal हैं क्योंकि वे कुछ समुदायों को दूसरों से अधिक लाभ देते हैं, व जातिवाद और तुष्टिकरण को फैलाते हैं| जो राष्ट्र के अंग हैं वे राष्ट्र से अधिक प्रधान नहीं हो सकते| हमारी सारी राजनीति झूठ और कपट पर आधारित रही है| इसे बदलने के लिए भी हमें स्वयं में एक आध्यात्मिक चेतना जगानी होगी| परमात्मा की चेतना से जुड़कर ही इस बाहरी चित्र-पटल के छायाचित्रों के क्रमों व दृश्यों में परिवर्तन ला सकते हैं|
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हरि ॐ तत्सत् ! हर हर महादेव ! जय जय श्री नारायण हरि ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अक्तूबर २०१८

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पुनश्चः :---
अनित्य तो सिर्फ अज्ञान, अन्धकार और असत्य हैं| परमात्मा तो नित्य निरंतर हैं| परमात्मा हैं, यहीं पर हैं, इसी समय हैं, और सदा रहेंगे| वे एक क्षण के दस लाखवें भाग के लिए भी हम से दूर नहीं जा सकते| परमात्मा ने हमें निमित्त बनाया है यह उनकी परम कृपा है| कर्ता तो अंततः वे ही हैं| वे हमारे ह्रदय में आकर आड़े हो गए है, अब बाहर नहीं निकल सकते| आनंद ही आनंद है, आनंद ही आनंद में हम सदा रहेंगे|

हम सब के संकल्प में बड़ी शक्ति है.....

हम सब के संकल्प में बड़ी शक्ति है.....
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नित्य दिन में कम से कम दो बार एक निश्चित समय पर और निश्चित स्थान पर खड़े होकर अपने दोनों हाथ ऊपर कर के समष्टि के कल्याण, विश्व शांति, भाईचारे और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए प्रार्थना करें| हम सब के सामूहिक संकल्प और प्रार्थना का अति शक्तिशाली प्रभाव होगा|
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जब हम उपरोक्त विधि से प्रार्थना करते हैं तब हमारी अँगुलियों के अग्रभाग से एक अदृष्य प्रचंड घनीभूत ऊर्जा निकलती है जो चारों ओर फैलकर साकार रूप लेती है| सृष्टि में हो रहे समस्त घटनाक्रम हमारे सामूहिक विचारों के ही परिणाम है| जैसा हम सोचते हैं और संकल्प करते हैं वैसा ही चारों ओर घटित होता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१४ अक्तूबर २०१८

एक स्मृति इंदिरा पॉइंट की .....

एक स्मृति इंदिरा पॉइंट की .....
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भारत के सबसे दक्षिणी भाग का नाम "इंदिरा पॉइंट" है| यह नाम स्वयं इंदिरा गाँधी ने दिया था| इस से पूर्व इस स्थान का नाम पिग्मेलियन पॉइंट था| यह बहुत सुन्दर एक छोटा सा गाँव है| नौसेना, वायुसेना व कुछ अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारी भी यहाँ रहते हैं| यहाँ के प्रकाश-स्तम्भ पर चढ़ कर बहुत सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं| मैं सन २००१ में वहाँ गया था| बाद में २००४ में आई सुनामी में यह प्रकाश स्तम्भ थोड़ा सा हटकर पानी से घिर गया था| इस सुनामी में यहाँ के २० परिवार, चार वैज्ञानिक और बहुत सारे सरकारी कर्मचारी मारे गए थे| यहाँ जाने के लिए विशेष सरकारी अनुमति लेनी पड़ती है जो आसानी से मिल जाती है|
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यहाँ के जंगलों में मैनें एक विशेष अति सुन्दर चिड़िया की तरह के पक्षी देखे जो भारत में अन्यत्र कहीं भी दिखाई नहीं दिये| ऐसे ही एक विशेष शक्ल के बन्दर देखे जो अन्यत्र कहीं भी नहीं दिखाई दिए| एक समुद्र तट यहाँ है जिस की रेत में अंडे देने के लिए कछुए ऑस्ट्रेलिया तक से आते हैं| यह स्थान अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में ग्रेट निकोबार द्वीप पर निकोबार तहसील की लक्ष्मी नगर पंचायत में है|
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ग्रेट निकोबार द्वीप पर सबसे बड़ा स्थान "कैम्पवेल वे" है जो अच्छी बसावट वाला छोटा सा नगर है| सारी सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं| यहाँ तमिलनाडू से आकर बहुत लोग बसे हैं जो सब हिंदी बोलते हैं| यहाँ के समुद्र तट बहुत ही सुन्दर हैं जहाँ प्रातःकाल में घूमने का बड़ा ही आनंद आता है| दो-तीन हिन्दू मंदिर और एक चर्च भी यहाँ है| कैम्पवेल वे नगर में आने के लिए पोर्ट ब्लेयर से पवनहंस हेलिकोप्टर सेवा है| सप्ताह में एक दिन एक यात्री जलयान भी पोर्ट ब्लेयर से यहाँ आता है| यहाँ रुद्राक्ष के पेड़ बहुत हैं और रुद्राक्ष खूब मिलता है| अब तो व्यवसायिक रूप से यहाँ ताड़ के पेड़ और जायफल/जावित्री के पौधे भी खूब बड़े स्तर पर लगाए गए हैं| यहाँ के शास्त्री नगर से इंदिरा पॉइंट की दूरी २१ किलोमीटर है जो सड़क से जुड़ा हुआ है| मार्ग में गलाथिया नाम की एक नदी भी आती है जिस पर पुल बना हुआ है|
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यहाँ से सिर्फ १६३ किलोमीटर दक्षिण में इंडोनेशिया में सुमात्रा का सबांग जिला है जहाँ भारत के सहयोग से एक नौसैनिक अड्डा बनाए जाने की योजना है, जो लीज पर भारत के आधीन रहेगा| मैं अंडमान-निकोबार के कई द्वीपों में गया हूँ जिनमें से कुछ तो अविस्मरणीय हैं|
कृपा शंकर
१४ अक्टूबर २०१८

समत्व, अभ्यास, वैराग्य, प्रेम और अभीप्सा .....

समत्व, अभ्यास, वैराग्य, प्रेम और अभीप्सा .....
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"समत्व" की प्राप्ति योग की उच्चतम सिद्धि है, जिसके लिए अभ्यास और वैराग्य दोनों आवश्यक हैं| समत्व यानी समभाव को जिसने प्राप्त कर लिया, वह सिद्ध और ज्ञानी है| भगवान ने गीता में समझाया है कि किस प्रकार हमें कर्मफल की आकांक्षा न रखते हुए कर्म करने चाहियें| भगवान कहते हैं .....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||
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भगवान हमें यहाँ योग में यानि समत्व में स्थित होकर कर्म करने को कहते हैं| भगवान मुझ पर प्रसन्न हों, यह आशा रूपी आसक्ति भी हमें त्याग देनी चाहिए| फलतृष्णा रहित होकर कर्म करने से अंतःकरण की शुद्धि होती है, जिस से ज्ञान की प्राप्ति होती है|
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ज्ञान की प्राप्ति तो एक सिद्धि है, और ज्ञान की प्राप्ति का न होना असिद्धि है| ऐसी सिद्धि और असिद्धि में भी सम होकर कर्म करने का आदेश भगवान हमें देते हैं| यह सिद्धि और असिद्धि में समत्व ही योग है| आध्यात्मिक ज्ञान का एकमात्र मापदंड है "समभाव"| जो समत्व में स्थित है वह ही ज्ञानी है, और वह ही परमात्मा के सर्वाधिक निकट है.
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उपरोक्त स्थिति की प्राप्ति के लिए मन पर नियंत्रण आवश्यक है| मन पर नियंत्रण कैसे हो? इसके लिए भगवान कहते हैं .....

"असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं| अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते||६:३५||
मन चञ्चल और कठिनतासे वशमें होनेवाला है, इस में कोई संशय नहीं है| पर चितभूमि में एक समान वृत्ति की बारंबार आवृति यानि अभ्यास करने से चित्त की विक्षेपरूपी चंचलता को रोका जा सकता है| इस के लिए अभ्यास और वैराग्य दोनों ही परम आवश्यक हैं| वैराग्य का अर्थ है रागों से यानि मोह से विरक्ति| इसके लिए भी अभ्यास आवश्यक है|
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पर सब से अधिक तो आवश्यक है भगवान से प्रेम और उन्हें पाने की एक प्रचंड अभीप्सा| बिना भगवान से प्रेम किये तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अक्तूबर २०१८

माँ भगवती का स्थूल और सूक्ष्म रूप .....

माँ भगवती का स्थूल और सूक्ष्म रूप .....
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माँ भगवती के स्थूल और सूक्ष्म रूपों के बारे में बौद्धिक रूप से तो कुछ भी कह पाने में मैं असमर्थ हूँ, पर अपनी अनुभूतियों/ भावनाओं को तो व्यक्त कर ही सकता हूँ| वैसे तो सारी सृष्टि ही माँ भगवती का स्थूल रूप है, पर मेरी दृष्टी में हम जो साँस लेते और छोड़ते हैं, वह माँ भगवती का स्थूल रूप है| स्थूल रूप से श्वास-प्रश्वास के रूप में माँ अपनी उपस्थिति का आभास कराती हैं| श्वास-प्रश्वास के रूप में योग साधक "हं" और "सः" बीज मन्त्रों के साथ जो अजपा-जप करते हैं वह स्थूल रूप से माँ भगवती की ही साधना है|
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दीर्घ ध्यान साधना के पश्चात् हमें सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी में प्रचलित हो रहे प्राण तत्व की अनुभूति होती है| धीरे धीरे कूटस्थ में विस्तार रूप में महाप्राण की परम आनंददायक अनुभूति होने लगती है| वहाँ स्वतः ही नाद और ज्योति के रूप में कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का अनंत विस्तारमय ध्यान होने लगता है| वह विस्तार ही परमशिव हैं, जो हमारा वास्तविक सही रूप है| वह महाप्राण ही माँ भगवती का सूक्ष्म रूप है जिसमें समस्त सृष्टि समाहित है|
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मैंने आत्मप्रेरणावश जो कुछ भी लिखा है, वह मेरी अनुभूति है| किसी भी बौद्धिक प्रश्न का उत्तर मैं नहीं दे सकूंगा| सभी को मेरी शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ अक्टूबर २०१८

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पुनश्चः :-- 
पंचप्राणों के पाँच सौम्य और पाँच उग्र रूप ही दश महाविद्याएँ हैं| ये पंचप्राण ही गणेश जी के गण हैं जिनके वे ओंकार रूप में गणपति हैं| प्राणतत्व माँ भगवती का सूक्ष्म रूप है| विस्तृत महाप्राण के रूप में भगवान परमशिव व्यक्त हैं| प्राणतत्व की साधना से सारी साधनाएँ संपन्न हो जाती हैं| सारी सृष्टि ही प्राणमय है| ॐ ॐ ॐ !!
१३ अक्तूबर २०१८

विवाह का उद्देश्य क्या है ? .....

विवाह का उद्देश्य क्या है ? .....
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आजकल पारिवारिक संबंधों में बहुत अधिक बिखराव हो रहे हैं और विवाह की संस्था शनेः शनेः नष्ट हो रही है जिसे कोई नहीं बचा सकता| हिन्दुओं में विवाह का उद्देश्य काम-वासना की तृप्ति नहीं वरन् मनुष्य जीवन की अपूर्णता को दूर करके पूर्णता की और ले जाना था| आजकल इसका प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है| विवाह तो किया जाता है पर इसका उद्देश्य क्या है यह नहीं सिखाया जाता अतः विवाह असफल होंगे ही|
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विवाह कोई संविदा नहीं अपितु एक पवित्र बंधन है जिसका प्रमुख उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ती है| यह एक पवित्र यज्ञ है जिसमें सहयोग करने वाली ही पत्नी है| जो इस यज्ञ के लिए है वह पत्नी है और जिसके मात्र भरण-पोषण का दायित्व है वह भार्या है| यह पत्नी और भार्या के बीच का अंतर है|
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हिन्दू धर्म के अनुसार .....
बिना पत्नी के कोई व्यक्ति समाज में रहकर धर्माचरण नहीं कर सकता,
बिना विवाह के स्री- पुरुषों के उचित संबंध संभव नहीं हैं,
उचित व योग्य संतानोत्पत्ति द्वारा ही मनुष्य इस लोक और परलोक में सुख प्राप्त कर सकता है,
पत्नी ही धर्म अर्थ काम और मोक्ष का स्रोत है,
और विवाह करके ही मनुष्य देवताओं के लिए यज्ञ करने का अधिकारी है,
यही विवाह करने का उद्देश्य है| अन्य कोई उद्देश्य विवाह का नहीं है|
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जो विवाह चेहरे के कोण व त्वचा का रंग देखकर, और आर्थिक या अन्य किसी अपेक्षा और वासना पूर्ती के लिए ही किये जाते हैं, उनका असफल होना निश्चित है|
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यदि किसी पुरुष को महिला सेक्रेटरी चाहिए, या उसके परिवार वालों को कोई नौकरानी चाहिए तो वे किसी नौकरानी को रख लें पर इस के लिए विवाह करा के अपनी संतानों का या अपने से छोटे भाई बंधुओं का जीवन नष्ट न करें|
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ऐसे ही किसी महिला को यदि कोई गुलाम चाहिए जो उसे खूब घुमाए फिराए, खूब धन दे और उसकी वासनाओं की पूर्ती करता रहे, तो वह ऐसे ही किसी मनोनुकूल आदमी को ढूँढ ले, विवाह कर के किसी भले आदमी का जीवन नष्ट न करे|
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सिर्फ वासनाओं की ही पूर्ती करनी है तो आजकल live in relationship चल पड़ा है, उसी में रहकर वासनाओं की पूर्ती कर लें, विवाह की आवश्यकता नहीं है|
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बाकी सब तो संस्कारों का खेल है, जो प्रारब्ध में लिखा होगा वही होगा|
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पर सफल विवाह वही होता है, और अच्छी आत्माएँ भी उसी परिवार में जन्म लेती हैं जहाँ ....
नाम रूप में आसक्ति न हो,
वैवाहिक संबंधों में शारीरिक सुख की अनुभूति से ऊपर उठना हो,
एक-दुसरे के प्रति समर्पण हो
और परमात्मा से प्रेम हो|
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वेदान्त के दृष्टिकोण से ........
पत्नी को पत्नी के रूप में त्याग दीजिये, पति को पति के रूप में त्याग दीजिये, आत्मजों को आत्मजों के रूप में त्याग दीजिये, और मित्रों को मित्र के रूप में देखना त्याग दीजिये| उनमें आप परमात्मा का साक्षात्कार कीजिये| स्वार्थमय और व्यक्तिगत संबंधों को त्याग दीजिये और सभी में ईश्वर को देखिये| आप की साधना उनकी भी साधना है| आप का ध्यान उन का भी ध्यान है| आप उन्हें ईश्वर के रूप में स्वीकार कीजिये| पत्नी को अपने पति में परमात्मा के दर्शन करने चाहियें, और पति को अपनी पत्नी में अन्नपूर्णा जगन्माता के| उन्हें एक दुसरे को वैसा ही प्यार करना चाहिए जैसा वे परमात्मा को करते हैं| और एक दुसरे का प्यार भी परमात्मा के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए| वैसा ही अन्य आत्मजों व मित्रों के साथ होना चाहिए| अपने प्रेम को सर्वव्यापी बनाइए, उसे सीमित मत कीजिये| आप में उपरोक्त भाव होगा तो आप के यहाँ महापुरुषों का जन्म होगा|
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यही एकमात्र मार्ग है जिस से आप अपने बाल बच्चों, सगे सम्बन्धियों व मित्रों के साथ ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते है, अपने सहयोगी को भी उसी प्रकार लेकर चल सकते है जिस प्रकार पृथ्वी चन्द्रमा को लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है|
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सभी को शुभ मंगल कामनाएँ | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
झुंझुनू
१३ अक्टूबर २०१७

आध्यात्म क्या है ? .....

आध्यात्म क्या है ?
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आध्यात्म एक अनुभूति जन्य स्थिति है जिसे ईश्वर की कृपा से ही समझा जा सकता है| आत्‍म-तत्व की निरंतर अनुभूति यानि परमात्मा के साथ एक होने की सतत् अनुभूति, दृष्टा दृष्टि और दृश्‍य, ज्ञाता ज्ञान और ज्ञेय का एकाकार हो जाना, परम प्रेममय हो जाना, अकर्ता की स्थिति, साक्षी भाव का भी तिरोहित हो जाना, अनन्यता आदि ..... ये सब आध्यात्मिकता के लक्षण है| ईश्वर की कृपा से इस स्थिति को प्राप्त करना ही आध्यात्म है और जिस साधना से यह प्राप्त हो वह ही आध्यात्मिक साधना है|
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कोई मोक्ष प्राप्त करने के करने के लिए साधना करता है, वह किसी प्रयोजन के लिए, कुछ प्राप्त करने के लिए कर रहा है| यह आध्यात्म नहीं है| कोई स्त्री, पुत्र, धन-संपत्ति, मुकदमें में जीतने, सुख-शांति और व्यापार में सफलता के लिए साधना कर रहा है, वह किसी कामना पूर्ती के लिए कर रहा है| यह आध्यात्म नहीं है| जहाँ कोई माँग है वह आध्यात्म नहीं है|
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यह तो गूँगे का गुड़ है| मिश्री का स्वाद वही बता सकता है जिसने मिश्री खाई हो, शेष तो अनुमान ही लगा सकते हैं अथवा उसके गुणों को नकार सकते हैं| कोई बताये भी तो क्या ? .....नेति-नेति | आत्मन्येवात्मने तुष्टः अर्थात आत्मा द्धारा ही आत्मा को संतुष्टि मिलती है|
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परमात्मा की अभिव्यक्ति आप सब दिव्य आत्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१३ अक्तूबर २०१८

Sunday 7 October 2018

हमारा स्वधर्म क्या है ? .....

हमारा स्वधर्म क्या है ? .....
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गीता में भगवान कहते हैं ....
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्| स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः"||३:३५||
अब प्रश्न यह उठता है कि हमारा स्वधर्म और परधर्म क्या है? यहाँ मैं कम से कम शब्दों में अपने भावों को व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ|
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जिसके कारण किसी भी विषय का अस्तित्व सिद्ध होता है वह उसका धर्म है| एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की भिन्नता उनके विचारों, गुणों, वासनाओं और स्वभाव पर निर्भर है| इन गुणों, वासनाओं और स्वभाव को ही हम स्वधर्म कह सकते हैं|
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हमें स्वयं की वासनाओं, गुणों और स्वभाव के अनुसार कार्य करने से संतुष्टि मिलती है, और दूसरों के स्वभाव, गुणों और वासनाओं की नक़ल करने से असंतोष और पीड़ा की अनुभूति होती है| अतः स्वयं के स्वभाव और वासनाओं के अनुसार कार्य करना हमारा स्वधर्म है, अन्यथा जो है वह परधर्म है| इसका किसी बाहरी मत-मतान्तर, पंथ या मज़हब से कोई सम्बन्ध नहीं है|
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गीता में अर्जुन के स्वभाव के अनुसार भगवान ने उसे युद्ध करने का उपदेश दिया था| अर्जुन चूँकि ब्राह्मण वेश में भी रहा था अतः उसे ब्राह्मणों का धर्म याद आ गया होगा, तभी उसने एकांत में बैठकर ध्यानाभ्यास करने की इच्छा व्यक्त की थी जो ब्राह्मणों का धर्म है, क्षत्रियों का नहीं| भगवान ने उसे उपदेश दिया कि स्वधर्म में कुछ कमी रहने पर भी स्वधर्म का पालन ही उसके लिए श्रेयष्कर है|
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देह का धर्म और आत्मा का धर्म अलग अलग होता है| यह देह जिससे मेरी चेतना जुड़ी हुई है, उसका धर्म अलग है| उसे भूख प्यास, सर्दी गर्मी आदि भी लगती है, यह और ज़रा, मृत्यु आदि उसका धर्म है|
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आत्मा का धर्म परमात्मा के प्रति आकर्षण और परमात्मा के प्रति परम प्रेम की अभिव्यक्ति है, अन्य कुछ भी नहीं| परमात्मा के प्रति आकर्षण और प्रेम, आत्मा का धर्म है|
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पर जब हमने यह देह धारण की है और समाज व राष्ट्र में रह रहे हैं, तो हमारा समाज और राष्ट्र के प्रति भी कुछ दायित्व बन जाता है जिसको निभाना भी हमारा धर्म है|
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जब जीवन में परमात्मा की कृपा होती है तब सारे गुण स्वतः खिंचे चले आते हैं| उनके लिए किसी पृथक प्रयास की आवश्यकता नहीं है| परमात्मा के प्रति प्रेम ही सबसे बड़ा गुण है जो सब गुणों की खान है|
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अपना ईश्वर प्रदत्त कार्य स्वविवेक के प्रकाश में करो| जहाँ विवेक कार्य नहीं करता वहाँ श्रुतियाँ प्रमाण हैं| भगवान एक गुरु के रूप में मार्गदर्शन करते हैं पर अंततः गुरु एक तत्व बन जाता है| उसे किसी नाम रूप में नहीं बाँध सकते|
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जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मेरी जाति, सम्प्रदाय व धर्म वही है जो परमात्मा का है| मेरा एकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ परमात्मा से ही है, जो सब प्रकार के बंधनों से परे हैं| सार की बात यह है कि मुझे सब चिंताओं को त्याग कर निरंतर परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए| मेरे साथ क्या होगा और क्या नहीं होगा यह परमात्मा की चिंता है, मेरी नहीं| यही मेरा स्वधर्म है, अन्य सब परधर्म|
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परमात्मा में मेरी वृत्ति स्थिर हो तभी मेरा जीवन कृतार्थ होगा| बाहर की बुराइयाँ देखने से पूर्व मुझे स्वयं की बुराइयाँ दूर करनी चाहिए|
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सबको सप्रेम साभार धन्यवाद, अभिनन्दन और नमन !
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
६ अक्तूबर २०१८

उपासना .....

उपासना .....
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उपासना का अर्थ मेरे लिए परमात्मा के समीप बैठना यानि एकात्मता है| साकार और निराकार के बारे में कोई भ्रम मुझे नहीं है| घनीभूत ऊर्जा ही साकारता है अन्यथा निराकारता| जैसे जम गया तो बर्फ अन्यथा पानी| उपासना और उपवास दोनों का अर्थ एक ही है| परमात्मा भी एक विचार ही है जो पूर्ण सत्यता है|
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मौन निर्विचार होना उपासना का प्रथम अंग है| मौन निर्विचार होना कोई बेहोशी नहीं अपितु एक ही विचार के साथ पूर्ण सचेतन एकात्मता है| हम स्वयं ही वह विचार बन जाएँ, अन्य कोई विचार न आये, यही निर्विचारता है| इसका अभ्यास करना ही साधना है|
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जो नित्य है वह आत्म है, और जो अनित्य है वह है अनात्म| आत्म तत्व के साथ एकात्मता और अनात्म का अदर्शन निर्गुणोपासना है| मेरा अनुभव तो यही है कि सृष्टि में कुछ भी निर्गुण नहीं है| जो कुछ भी सृष्ट हुआ है वह सगुण है| जो नित्य है वह भी किसी न किसी रूप में सगुण ही है| हम कुछ कल्पना करते हैं, वह हमारी सृष्टि है जो सगुण है| सृष्टि से पूर्व यानी विचार आने से पूर्व जो था वह ही निर्गुण है| निर्गुण की कल्पना मेरी अल्प सीमित बुद्धि से परे है|
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सगुण का ध्यान करते करते यदि हम समाधिस्थ यानि समत्व में अधिष्ठित हो जाएँ तो इसे भी मैं निर्गुणोपासना ही कहूँगा, क्योंकि हम उस एक विचार के साथ एक हैं| यहाँ मेरी अनुभूति यानी जो मैं अनुभूत कर रहा हूँ वह ही मेरे लिए सत्य है|
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कई जन्मों के पुण्य फलों से परमात्मा को पाने की अभीप्सा का जन्म होता है| ह्रदय में उस तड़प का, उस प्यास का जन्म हुआ है यही हमारा सौभाग्य और परमात्मा की परम कृपा है| सगुण और निर्गुण के भाव से ऊपर उठकर परमात्मा का जो भी स्वरुप हमारे ह्रदय में आये उस के साथ निर्विकल्प यानि एकात्म हो जाना ही उपासना है|
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जो कुछ भी मैनें लिखा है वह मेरा अनुभव और मेरा विचार है| यहाँ मैं स्वयं के भावों को व्यक्त कर रहा हूँ| कोई आवश्यक नहीं है कि कोई इस से सहमत हो| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ अक्तूबर २०१८

पाप और पुण्य से परे की स्थिति ही सदा अभीष्ट हो .....

पाप और पुण्य से परे की स्थिति ही सदा अभीष्ट हो .....
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सारे पाप और पुण्यों से परे की भी कोई न कोई स्थिति तो अवश्य होती ही होगी क्योंकि स्वयं भगवान ने ऐसा कहा है .....
वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्| अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्||८:२८||
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स्वयं के प्रयासों से तो कुछ नहीं हो सकता| हमारे पास उन्हें देने के लिए प्रेम के सिवाय तो अन्य कुछ है भी नहीं, वह भी उन्हीं का दिया हुआ है| वे ही अनुग्रह कर के कल्याण करेंगे| स्वयं साक्षात परमात्मा से कम कुछ भी पाने की कामना का कभी जन्म ही न हो|

ॐ तत्सत् !
५ अक्टूवर २०१८

भगवान की भक्ति से क्या मिलेगा? .....

भगवान की भक्ति से क्या मिलेगा?

कुछ भी नहीं मिलेगा, जो कुछ पास में है वह भी छीन लिया जाएगा| सारी विषय-वासनाएँ और कामनाएँ समाप्त हो जायेंगी और हम इस दुनियाँ के भोगों के लायक नहीं रहेंगे| जिन्हें कुछ चाहिए वे भगवान की भक्ति नहीं करें क्योंकि भगवान एक स्वार्थी प्रेमी हैं, वे हमारा शत-प्रतिशत प्रेम चाहते हैं|

हम स्वयं परमात्मा के पुष्प बनें .....

हम स्वयं परमात्मा के पुष्प बनें| बाहर के सौन्दर्य से हम प्रभावित हो जाते हैं, पर उससे भी कई गुणा अधिक सौन्दर्य तो हमारे स्वयं के भीतर है जिसे हम नहीं जानते| ब्रह्ममुहूर्त में मेरुदंड उन्नत रखते हुए पूर्वाभिमुख होकर किसी पवित्र स्थान में एक ऊनी कम्बल के आसन पर बैठिये| दृष्टिपथ भ्रूमध्य में हो और चेतना उत्तरा सुषुम्ना में| अब उस चैतन्य को समस्त ब्रह्मांड में विस्तृत कर दें| यह अनंत विस्तार और परम चैतन्य और कोई नहीं हम स्वयं हैं| पूर्ण प्रेम से अपने इस आत्मरूप का ध्यान कीजिये| वहाँ एक ध्वनि गूँज रही है, उस ध्वनि को गहनतम ध्यान से सुनते रहिये| पूरी सृष्टि सांस ले रही है जिसके प्रति सजग रहें| हमारा यह रूप भगवान का ही रूप है| इसका आनंद लेते रहें| परमात्मा की निरंतर उपस्थिति से हमारे हृदय पुष्प की पंखुड़ियाँ जब खिलेंगी तो उनकी भक्ति रूपी महक सभी के हृदयों में फ़ैल जायेगी| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ अक्तूबर २०१८

मैं मानवतावादी नहीं, समष्टिवादी हूँ .....

मैं मानवतावादी नहीं, समष्टिवादी हूँ| "मानवता" व "इंसानियत" जैसे शब्द विदेशी मूल के हैं, भारतीय नहीं| ऐसे शब्दों का प्रयोग रूसी साहित्यकार मेक्सिम गोर्की द्वारा आरम्भ हुआ और सारे विश्व में फ़ैल गया| तत्कालीन रूसी इतिहास की जानकारी के कारण मैं ऐसे शब्दों से प्रभावित नहीं होता| मैं भीं किसी जमाने में मार्क्सवाद से प्रभावित था, पर वह मेरी भूल थी| जीवन में मुझे तृप्ति और संतुष्टि केवल "वेदांत" दर्शन में ही मिली है|
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किसानों और मजदूरों के नाम पर विश्व के जिन जिन देशों में भी तथाकथित सर्वहारा क्रांति से कुछ समय के लिए साम्यवादी सत्ताएँ आईं, जैसे रूस, चीन, क्यूबा, उत्तरी कोरिया, पूर्व सोवियत संघ के देश, अल्बानिया, रोमानिया, बुल्गारिया, हंगरी, पूर्व युगोस्लाविया के देश, पूर्व पूर्वी जर्मनी, यमन, बर्मा, कम्बोडिया व वियतनाम आदि आदि आदि में, वे अपने पीछे एक विनाशलीला छोड़ गईं| इन सब तथाकथित क्रांतियों के पीछे छल-कपट और असत्य था| इन तथाकथित क्रांति के नेताओं के जीवन में कुछ भी अनुकरणीय नहीं था| मार्क्सवाद और समाजवाद एक विफल सिद्धांत है जो कभी भी हमारा आदर्श नहीं हो सकता|

चिंता और भय से मुक्त होने के लिए अपनी पीड़ा किसे कहें ? ....

चिंता और भय से मुक्त होने के लिए अपनी पीड़ा किसे कहें ? .....
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मेरा विचार है कि हम अपनी पीड़ा भगवान को अकेले में कह कर उन्हें ही समर्पित कर दें| दुनिया के आगे रोने से कोई लाभ नहीं है| लोग हमारे सामने तो सहानुभूति दिखाएँगे पर पीठ पीछे हंसी और उपहास उड़ा कर मजा ही लेंगे| परमात्मा में श्रद्धा और विश्वास रखें व सदा उनसे आतंरिक सत्संग करते रहें| संसार में किसी से भी मिलना तो एक नदी-नाव संयोग मात्र है, और कुछ नहीं| सिर्फ परमात्मा का साथ ही शाश्वत है|
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चिंता और भय दोनों ही मानसिक क्षय रोग हैं जो जीवित ही हमें नरकाग्नि और मृत्युमुख में धकेल देते हैं| ऐसे लोगों से दूर रहे जिन्हें भय और चिंता की आदत है, क्योंकि यह एक संक्रामक मानसिक बीमारी है| सकारात्मक और आध्यात्मिक लोगों का साथ करें, सद्साहित्य का अध्ययन करें, परमात्मा से प्रेम करें और उनका खूब ध्यान करें| हरेक व्यक्ति का अपना अपना प्रारब्ध होता है जिसे भुगतना ही पड़ता है, अतः जो होनी है सो तो होगी ही, उसके बारे में चिंता कर के अकाल मृत्यु को क्यों प्राप्त हों?
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भगवान श्रीराम और हनुमान जी की उपासना हमें भयमुक्त करती है| भक्ति और सेवा में हनुमान जी से बड़ा अन्य कोई दूसरा आदर्श नहीं है| हनुमान जी के उपासकों को तो मैनें कभी भयभीत होते हुए देखा ही नहीं है| भगवान श्रीराम का यह वचन है ....
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||" (वा रा ६/१८/३३)
अर्थात् जो एक बार भी शरणमें आकर ‘मैं तुम्हारा हूँ’ ऐसा कहकर मेरे से रक्षा की याचना करता है, उसको मैं सम्पूर्ण प्राणियोंसे अभय कर देता हूँ, यह मेरा व्रत है
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गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
"अनान्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||
अर्थात् अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ|
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महाभारत के शांति पर्व में लिखा है ....
एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः| दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय|| (महाभारत, शान्तिपर्व ४७/९२)
अर्थात् ‘भगवान्‌ श्रीकृष्णको एक बार भी प्रणाम किया जाय तो वह दस अश्वमेध यज्ञोंके अन्तमें किये गये स्नानके समान फल देनेवाला होता है| इसके सिवाय प्रणाममें एक विशेषता है कि दस अश्वमेध करनेवालेका तो पुनः संसारमें जन्म होता है, पर श्रीकृष्को प्रणाम करनेवाला अर्थात्‌ उनकी शरणमें जानेवाला फिर संसार-बन्धनमें नहीं आता|'
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हमें हर प्रकार के बंधनों, मत-मतान्तरों, यहाँ तक की धर्म और अधर्म से भी ऊपर उठना ही पड़ेगा| परमात्मा सब प्रकार के बंधनों से परे है| चूँकि हमारा लक्ष्य परमात्मा है तो हमें भी उसी की तरह स्वयं को मुक्त करना होगा, और साधना द्वारा अपने सच्चिदानंद स्वरुप में स्थित होना होगा| दुखी व्यक्ति को सब ठगने का प्रयास करते हैं| धर्म के नाम पर बहुत अधिक ठगी हो रही है| स्वयं को परमात्मा से जोड़ें, न कि इस नश्वर देह से| समष्टि के कल्याण की ही प्रार्थना करें| समष्टि के कल्याण में ही स्वयं का कल्याण है| बीता हुआ समय स्वप्न है जिसे सोचकर ग्लानि ग्रस्त नहीं होना चाहिए|
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भगवान की कृपा सब भवरोगों का नाश करती है| अतः उन्हीं का आश्रय लें| वे निश्चित ही रक्षा करेंगे| प्रभु भक्ति के द्वारा ही हम भय और चिंताओं से मुक्त हो सकते हैं| अन्य कोई मार्ग नहीं है| हम परमात्मा के अंश हैं अतः स्वयं का सम्मान करें| पमात्मा ने हमें विवेक दिया है अतः उसका उपयोग भी करें| शरणागति और समर्पण के अतिरिक्त अन्य कोई गति नहीं है| भगवान हम सब की रक्षा करें|
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हमे अपने जीवन के महत्वपूर्ण रहस्यों को जहाँ तक संभव हो सके, गोपनीय रखना चाहिए| पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर, कौन व्यक्ति कब मित्र से शत्रु बन जाये अथवा ऐसे लोगों से जा मिले जो हमारे विरोधी हों| अतः अपनी पीड़ा भगवान से ही कहें ताकि कोई चिंता और भय न रहे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ अक्तूबर २०१८

Tuesday 2 October 2018

गाँधी-नेहरु-अंबेडकर आदि की अन्धपूजा हम कब तक करते रहेंगे ? ....

गाँधी-नेहरु-अंबेडकर आदि की अन्धपूजा हम कब तक करते रहेंगे ? ....
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भारत में राजनेताओं की व्यक्ति पूजा का प्रचलन नेहरु की देन है| नेहरू रूस से अत्यधिक प्रभावित थे जहाँ मार्क्स, लेनिन, फ्रेडरिक एंगल्स, और स्टालिन को देवताओं की तरह पूजा जाता था| चीन में माओ को, उत्तरी कोरिया में किम इल सुंग को, क्यूबा में फिडेल कास्त्रो, और कुछ दक्षिणी अमेरिकी देशों में चे गेवारा को देवताओं की तरह पूजा जाता था| नेहरु भी स्वयं को भारत में पुजवाना चाहते थे| अतः उन्होंने भारत में गाँधी और स्वयं की व्यक्ति-पूजा का क्रम आरम्भ करवाया| सन १९५० के दशक में मैं जब स्कूल में पढ़ता था तब १५ अगस्त और २६ जनवरी को सभी स्कूलों में बच्चों से "महात्मा गाँधी की जय", "पंडित जवाहरलाल नेहरु की जय" के नारे लगवाये जाते थे, उनके चित्रों पर फूलमालाएँ चढ़ाई जाती थीं और बताया जाता था कि देश में इन्हीं दो महापुरुषों के कारण आज़ादी आई है|
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वोट बैंक की राजनीति के कारण गाँधी और नेहरु के अतिरिक्त बाबा साहब अम्बेडकर नाम के एक और देवता भारत के क्षितिज पर प्रकट हुए हैं| भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री भी "बापू" और "बाबा साहिब" के परम भक्त हैं| वे अपने सता में आने का रहस्य बाबा साहब की कृपा को बताते हैं|
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हमारे देश की पाठ्य-पुस्तकों में नेहरू का गुण गान साम्यवादी देशों की परंपरा की नकल है| अन्य देशों में किसी की ऐसी पूजा नहीं होती जैसी यहाँ भारत में गाँधी, नेहरू और अम्बेडकर की होती है| अब तो रूसियों और चीनियों ने भी व्यक्ति पूजा बंद कर दी है अतः भारत में भी यह बंद हो जानी चाहिए| भारत में गाँधी और नेहरू को देश का प्रथम मार्गदर्शक, महामानव, और दार्शनिक आदि बताने का चलन रहा है| अब बहुत हो चुका है, देश को इस गाँधी, नेहरू और अम्बेडकर की मूर्तीपूजा से मुक्ति चाहिए|
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सभी को धन्यवाद और सादर नमन !
कृपा शंकर
२ अक्तूबर २०१८

हमारे धर्म में एक ही परमात्मा है .....

हमारे धर्म में एक ही परमात्मा है| इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु और ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि आदि सब उसी के विभिन्न रूप हैं| परमेश्वर का कौन सा रूप हमारे लिए आदर्श है, उसी की हम उपासना करते हैं| हमारे हृदय में श्रद्धा होगी तब यह सत्य भी समझ में आयेगा| सनातन वैदिक हिन्दू धर्म बहुदेववादी नहीं है| भगवान तो एक ही हैं, पर उनकी अभिव्यक्तियाँ अलग अलग हैं| भगवान को अलग अलग समझना हमारी अज्ञानता है|

हम अनवरत चलते रहें .....

महासागरों में विशाल जलयान (Ocean going ships) चलते हैं वे कभी छोटी-मोटी लहरों से विचलित होकर अपनी दिशा या मार्ग (Course) नहीं छोड़ते| जीवन में कैसी भी परिस्थिति हो, हमें विचलित नहीं होना चाहिए| हम स्वयं की और परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं, महत्त्व सिर्फ इसी का है| हमारा लक्ष्य परमात्मा है, उसको पाने के मार्ग पर हम चलते रहें, कभी विचलित न हों|
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बिना पेंदे के मिर्जापुरी लोटे की तरह हम न बनें जिसे कोई किधर भी लुढ़का दे| हम चट्टान की तरह दृढ़ बनें| महासागरों में अकेली खड़ी चट्टानों पर लहरें कितना भयानक आघात करती हैं, पर चट्टान कभी नहीं विचलित होती| वैसे ही हम बनें| हम परशु की तरह तीक्ष्ण भी बनें| कोई हम पर आघात करे तो वह स्वयं ही कट जाए| चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर गिरे, कटना खरबूजे को ही है| हमारे में स्वर्ण की सी पवित्रता भी हो| किसी के प्रति कोई दुर्भावना हमारे हृदय में न हो|

जब एक बार यह निश्चय कर लिया है कि हमें कहाँ जाना है तब यह न सोचें कि हमारे साथ कोई और भी चल रहा है या नहीं| हम अनवरत चलते रहें|

०१ अक्टूबर २०१८  

पाकिस्तानी भैंस .....

पाकिस्तानी भैंस .....
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पाकिस्तान में भैंस भी कोई बहुत ही धनवान व्यक्ति रख सकता है| गोधन तो वहाँ समाप्त कर दिया गया है, सारी गायों को मार मार कर लोग उनका मांस खा गए हैं| पूरे पाकिस्तान में एक भी गाय नहीं बची है| दूध का स्त्रोत या तो भैंस, बकरी, भेड़, गधी और ऊँटनी है या ऑस्ट्रेलिया से मंगाया हुआ दूध का पाउडर|
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अब गरीबी से तंग आकर लोग अपनी भैंसें भी बेचने लगे है| कहते हैं कि भैंस के दूध से बुद्धि मोटी होती है, अतः उनकी मोटी बुद्धि का कारण भैंस का दूध है| वहाँ के लोग इतने समृद्ध भी नहीं हैं कि अपनी बकरियों के दूध को गाढ़ा बनाने के लिए उन्हें नित्य एक किलो बादाम, काजू और किशमिश खिला सकें|
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कहते हैं कि गधी का दूध पीने से चेचक नहीं होता, बकरी के गाढ़े दूध से दिमाग ठंडा रहता है, ऊंटनी के दूध से ताक़त आती है, और गाय के दूध से बुद्धि तेज और शांत होती है| पाकिस्तान के शासकों को चाहिए कि भारत से देशी नस्ल की गायों का आयात करें, उन्हें प्रेम से पालें और उनका दूध पीयें| इस से उनकी बुद्धि तेज और स्वभाव शांत होगा| उनकी बंजर भूमि भी गाय के गोबर से उपजाऊ हो जायेगी| पर मोटी बुद्धि वाले इसे समझ नहीं पायेंगे|
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प्रधानमंत्री की कीमती कारें और भैंस बेचकर चीन की उधार नहीं उतार सकते| ग्वादर बन्दरगाह तो चीन का हो चुका है अब अगला नम्बर कराची का है| इंशा अल्लाह !


३० सितम्बर २०१८