Wednesday 16 November 2016

मुक्त और पारदर्शी अर्थव्यवस्था ........

मुक्त और पारदर्शी अर्थव्यवस्था ........
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अर्थशास्त्र कभी कभी अनर्थशास्त्र भी हो सकता है| भारत का अर्थशास्त्र ..... अनर्थशास्त्र में परिवर्तित हो रहा था जिसकी रक्षा का कार्य माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आरम्भ किया है| इसके लिए उन्हें शुभ कामनाएँ देता हुआ कुछ सुझाव देना चाहता हूँ|
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आप इस लेख को शेयर ही नहीं copy/paste भी कर सकते हैं, अपने नाम से छाप भी सकते हैं, पर कैसे भी इसे भारत की आर्थिक सता के गलियारों तक और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाइये| यह मेरी आपसे प्रार्थना है|
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भारत की अर्थव्यवस्था को मुक्त व पारदर्शी बनाने के लिए मुद्रा का प्रयोग कम से कम होना चाहिए| इसके लिए सारा लेन-देन बैंकों के माध्यम से डिजिटल हो|
इसके लिए सरकार को चाहिए कि ......

(1) स्वाईप मशीनों का अधिक से अधिक प्रयोग करने के लिए दुकानदारों को प्रोत्साहित किया जाए| स्वाइप करने पर एक बार तो कुछ वर्षों तक कोई ट्रांजेक्शन फीस न हो| डेबिट/क्रेडिट कार्डों से ही अधिक से अधिक खरीददारी और बिक्री हो| वर्तमान में गुजरात में अधिक से अधिक खरीददारी डेबिट कार्डों से ही होती है| यहाँ तक कि होटल/रेस्टोरेंट वाले भी भुगतान स्वाइप मशीन पर डेबिट कार्डों से स्वीकार करते हैं|
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(2) चेकबुक के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए| किसी को भेंट में रुपये पैसे देने हों तो वे चेक़ से ही दिए/लिए जाएँ|
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(3) सारे सरकारी भुगतान डिजिटल हों| नकदी के प्रयोग को हतोत्साहित किया जाए|
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मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि कम पढ़े लिखे लोग भी आजकल डिजिटल लेन-देन को समझते हैं|
माननीय श्री नरेन्द्र मोदी का उद्देश्य सफल हो| शुभ कामनाएँ|
ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः >>>>>
बड़ी राशि के लेन-देन के लिए डेबिट/क्रेडिट कार्ड, चेक बुक, payTm, डिजिटल ट्रांसफर आदि का प्रयोग करें|
छोटी राशि के लिए १००, ५०, २०, १०, ५ के नोट और सिक्कों का प्रयोग करें|
देशद्रोहियों, जमाखोरों, नक्सलियों, वामपंथियों और जिहादी आतंकियों की तरह परेशान मत होइए| भारत सरकार पर विश्वास कीजिये और माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को पूर्ण समर्थन दीजिये, उनका कोई विकल्प नहीं है|

पञ्चमुखी महादेव .....

पञ्चमुखी महादेव .....
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ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है ..... जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश| भगवान शिव पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले है| शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं .....
ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात|
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(1) भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व के अधिपति हैं| इसका अर्थ है सबके स्वामी|

(2) पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व के अधिपति हैं|
(3) दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व के अधिपति हैं|
(4) उत्तरी मुख का नाम वामदेव है, जो जल तत्व के अधिपति हैं|
(5) पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं|
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भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं|
भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है| काल की गणना 'पंचांग' के द्वारा होती है| काल के पाँच अंग ..... तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं|
रुद्राक्ष सामान्यत: पंचमुखी ही होता है|
शिव-परिवार में भी पांच सदस्य है..... शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर| नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं|
शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र .... 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है|
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शिव का अर्थ है ..... कल्याणकारी| शंभू का अर्थ है ..... मंगलदायक| शंकर का अर्थ है ..... शमनकारी और आनंददायक|
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है| इनमें कोई भेद नहीं है|
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योगियों को कूटस्थ में एक स्वर्णिम आभा के मध्य एक नीला प्रकाश दिखाई देता है जिसके मध्य में एक श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र दिखाई देता है...... जो पंचमुखी महादेव ही है| गहन ध्यान में योगीगण उसी का ध्यान करते हैं|
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शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है| यही हमारा लक्ष्य है|
ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च || ॐ नमःशिवाय || ॐ ॐ ॐ ||

यह मैं एक अनुभूत सत्य कह रहा हूँ .......

यह मैं एक अनुभूत सत्य कह रहा हूँ .......
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हमारे मन में यदि यश की, प्रशंसा की और प्रसिद्धि की कामना है तो ये हमें प्राप्त तो हो जायेंगी पर साथ साथ इसका निश्चित दंड भी अपयश, निंदा, और अपकीर्ति (बदनामी) के रूप में भुगतना ही पड़ेगा|
इसके विस्तार में नहीं जाऊंगा, इतना ही पर्याप्त है|
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जो कुछ भी हम इस सृष्टि में प्राप्त करना चाहते हैं वह तो हमें मिलता ही है पर उसका विपरीत भी निश्चित रूप से मिलता है| यह प्रकृति का नियम है|
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इस से बचने का एक ही उपाय है ........ हम कर्ताभाव, कामनाओं और अपेक्षाओं से मुक्त हों| इसके लिए हमें साधना/उपासना करनी ही पड़ेगी|
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भगवान परमशिव सब का कल्याण करें | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

मेरा काला धन ....

मेरा काला धन ....
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किसी मित्र ने आज मुझ से पूछा कि मेरे पास कितना काला धन है?
मेरा उत्तर था पाँच-छः बोरियों में खूब सारा काला धन घर के पिछवाड़े में पडा है जिसमें से आप चाहे जितना फ्री में ले सकते हैं|
उनकी उत्सुकता और अधिक बढ़ गई जब मैंने कहा कि काले धन को जलाकर मैं नित्य नहाने के लिए पानी गर्म करता हूँ|
उन्होंने देखने की इच्छा प्रकट की|
मैंने घर के पिछवाड़े में बोरियों में भरे कोयले और लकडियों को दिखाया कि यह ही मेरा काला धन है जो पानी गर्म करने के काम आता है|
पास में ही ईंटों पर रखे लोहे के जुगाड़ चुल्हे को देखकर वे समझ गए कि मैं लकडियाँ जलाकर नहाने का पानी गर्म करता हूँ और हर बार लकडियाँ बुझाने के पश्चात कुछ कोयले बच जाते हैं जिन्हें मैं काला धन कहता हूँ|
तो मित्रो, ये लकड़ियों के कोयले ही मेरा काला धन हैं|
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एक हज़ार और पाँच सौ के नोट बदलने के निर्णय से मुझे कोई शिकायत नहीं है| सिर्फ एक दिन छुट्टे रुपये न होने से थोड़ी देर के लिए मामूली सी असुविधा हुई|
राष्ट्रहित में यह निर्णय बहुत अच्छा हुआ है जिसका मैं पूर्ण समर्थन करता हूँ|
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मोदी जी सफल हुए तो निकट भविष्य में भारत में मुद्रा के रूप में नोटों का प्रयोग बहुत कम हो जाएगा और सारा लेन-देन बैंकों के माध्यम से ही होगा| यह एक बहुत बड़ी उपलब्धी होगी|

मेरा एक ही सुझाव है कि क्रेडिट या डेबिट कार्ड से सामान खरीदने पर कभी भी कोई सरचार्ज नहीं हो| अधिक से अधिक खरीददारी डेबिट कार्डों से हों|
प्रधान मंत्री मोदी जी को शुभ कामनाएँ| वे अपने उद्देश्य में सफल हों|

उन्होंने छुड़ाए थे गज के वो बंधन, वे ही मेरे बंधन छुड़ाया करेंगे ......

उन्होंने छुड़ाए थे गज के वो बंधन, वे ही मेरे बंधन छुड़ाया करेंगे ......
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{1} अब तो मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को उस चोर-जार-शिखामणि, कुहुक-शिरोमणि और दुःख-तस्कर हरि ने चुरा लिया है| उस तस्कर का आकर्षण इतना प्रबल है कि छुटाने से नहीं छूटता| अब उससे हमें प्रेम हो गया है| उस हरि ने अब ह्रदय में अभीप्सा की प्रचंड अग्नि भी जला दी है|
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उस हरि ने कभी गजराज को बंधनों से मुक्त किया था, अब मुझे भी उन बंधनों से मुक्त करेंगे| उस दुःख-तस्कर, चोर-जार-शिखामणि और कुहुक-शिरोमणि हरि से बस एक ही निवेदन है कि जो कुछ भी थोड़ा-बहुत तथाकथित 'मैं' और 'मेरापन' रूपी अज्ञान बचा है उसे भी चुरा ले| मेरे लिए पूर्ण समर्पण के अतिरिक्त अन्य सब मार्ग बंद हो गये हैं| मार्ग के अवरोध चोरी चोरी वह कब हटा लेगा इसका पता ही नहीं चलेगा|
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{2}भारत में प्रेमवश भक्तों ने भगवान को उलाहना देते हुए उन्हें ईर्ष्यालु और चोर तक कहा है| पर किसी ने भी उनकी इस बात का कभी बुरा या ईशनिंदा नहीं माना है| गोपाल सहस्त्रनाम में भगवान को तस्कर और चोरों का चोर कहा है .....
"बालक्रीड़ासमासक्तो नवनीतस्य तस्करः |
गोपालकामिनीजारश्चोरजारशिखामणि: ||"
यहाँ भगवान को नवनीत तस्कर और चोरजारशिखामणि कहा गया है| इसका अर्थ है कि भगवान के समान चोर और जार और कोई है ही नहीं, और हो सकता भी नहीं है| दुसरे चोर और जार तो केवल अपना ही सुख चाहते हैं, पर भगवान केवल दूसरों के सुख के लिए चोर और जार की लीला करते हैं| उनकी ये दोनों ही लीलाएँ दिव्य, अलौकिक और विलक्षण हैं|
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संसारी चोर तो केवल वस्तुओं की ही चोरी करते हैं, परन्तु भगवान् वस्तुओं के साथ-साथ उन वस्तुओं के राग, आसक्ति और मोह आदि को भी चुरा लेते है| वे सुखासक्ति का भी हरण कर लेते हैं, जिससे कामाकर्षण न रहकर केवल विशुद्ध प्रेमाकर्षण रह जाता है| अन्य की सत्ता न रहकर केवल भगवान की सत्ता रह जाती है|
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भगवान अपने भक्तों में किसी को चोर और जार रहने ही नहीं देते, उनके चोर और जारपने को ही हर लेते हैं| कनक और कामिनी की इच्छा ही मनुष्य को चोर और जार बनाती है| भगवन अपने भक्त की इस इच्छा को ही हर लेते हैं इसी लिए वे "हरि" हैं| आसक्ति का सर्वदा अभाव करने वाले होने से भगवान् चोर और जार के भी शिखामणि हैं| अर्थात चोरों के भी चोर हैं जो चोरी की इच्छा को ही चुपचाप चुरा लेते हैं|
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कुहुक का अर्थ होता है ..... कोहरा| जैसे कोहरे में कोई छिप जाता है वैसे ही वे अपने मायावी आवरण रुपी कोहरे में छिपे हैं| इसलिए वे कुहुक-शिरोमणि हैं| अब तो उनके बिना हम रह ही नहीं सकते|
दुःख तस्कर वे हैं क्योंकि अपने भक्तों के दुःखों को हर लेते हैं|
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एक प्रचलित पुराना भजन याद आ रहा है .....

कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे |
कहीं तो मिलेंगे, वो बाँके बिहारी,
उन्हीं के चरण चित लगाया करेंगे।
जो रुठेंगे हमसे वो बाँके बिहारी,
चरण पड़ उन्हें हम मनाया करेंगे।
कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे॥
उन्हें प्रेम डोरी से हम बाँध लेंगे,
तो फिर वो कंहाँ भाग जाया करेंगे।
कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे॥
उन्होंने छुड़ाए थे गज के वो बंधन,
वहीँ मेरे संकट मिटाया करेंगे।
कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे॥
उन्होंने नचाये थे ब्रह्माण्ड सारे,
मगर अब उन्हें हम नचाया करेंगे।
कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे॥

एक बार उनके हाथों में डोर देकर तो देखो .......

एक बार उनके हाथों में डोर देकर तो देखो .......
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महाभारत के महा भयंकर युद्ध में महारथी अर्जुन ने प्रतिज्ञा की थी कि यदि अगले दिन सूर्यास्त से पूर्व उसने जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह आत्मदाह कर लेगा| अगले दिन युद्ध में जयद्रथ को कौरव सेना ने रक्षा कवच में घेर लिया और उसकी रक्षा के लिए सारी शक्ति लगा दी| कौरव सेना का संहार करते हुए अर्जुन ने बड़ी वीरता से युद्ध किया पर जयद्रथ कहीं भी दिखाई न दिया| संध्या होने ही वाली थी और सूर्य भगवान अस्ताचल की ओट में छिपने को अग्रसर थे| सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण को अपने भक्त की चिंता थी| उन्होंने अपनी माया से सूर्य को बादलों से ढक दिया| सन्ध्या का भ्रम उत्पन्न हो गया| कहते हैं उन्होंने काल की गति ही रोक दी| युद्ध बंद होने की सूचना देने के लिए बाजे बज उठे| पांडव सेना में हाहाकार मच गया| कौरव सेना प्रसन्नता से झूम उठी| अब अर्जुन का आत्मदाह देखने के लिए दुर्योधन आदि कौरव हर्षातिरेक में उछल पड़े| अब तक छिपा हुआ जयद्रथ भी कौरव सेना के आगे आकर अट्टहास करने लगा|
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अर्जुन ने अग्नि में आत्मदाह की तैयारी कर ली| श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पूछा कि किसके भरोसे तुमने ऐसी कठोर प्रतिज्ञा की? अर्जुन नतमस्तक हो गया और कहा कि आपके ही श्री चरणों में शरणागति जो ली है उसी का भरोसा है, अब आप ही मेरी गति हैं| शरणागत भक्त की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अब अपनी माया समेट ली| मायावी बादल छँट गए और कमलिनीकुलवल्लभ भगवान भुवनभास्कर मार्तंड बादलों की ओट से निकलकर प्रखर हो उठे|
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जयद्रथ को सामने खडा देखकर श्रीकृष्ण बोले ..... 'पार्थ ! तुम्हारा शत्रु तुम्हारे सामने खड़ा है, उठाओ अपना गांडीव और वध कर दो इसका| वह देखो अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है|' सबकी दृष्टि आसमान की ओर उठ गई थी| सूर्य अभी भी चमक रहा था जिसे देखकर जयद्रथ और दुर्योधन के पैरों तले ज़मीन खिसक गई| जयद्रथ भागने को उद्द्यत हुआ लेकिन तब तक अर्जुन ने अपना गांडीव उठा लिया था| श्रीकृष्ण ने चेतावनी देते हुए बोले ..... 'हे अर्जुन! जयद्रथ के पिता ने इसे वरदान दिया था कि जो इसका मस्तक ज़मीन पर गिराएगा, उसका मस्तक भी सौ टुकड़ों में विभक्त हो जाएगा| इसलिए यदि इसका सिर ज़मीन पर गिरा तो तुम्हारे सिर के भी सौ टुकड़े हो जाएँगे| उत्तर दिशा में यहाँ से सौ योजन की दूरी पर जयद्रथ का पिता तप कर रहा है| तुम इसका मस्तक ऐसे काटो कि वह इसके पिता की गोद में जाकर गिरे|'
अर्जुन ने श्रीकृष्ण की चेतावनी ध्यान से सुनी और अपनी लक्ष्य की ओर ध्यान कर बाण छोड़ दिया| उस बाण ने जयद्रथ का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे ले जा कर सीधा जयद्रथ के पिता की गोद में गिरा दिया| जयद्रथ का पिता चौंक कर उठा तो उसकी गोद में से सिर ज़मीन पर गिर गया| सिर के ज़मीन पर गिरते ही उनके सिर के भी सौ टुकड़े हो गए| इस प्रकार अर्जुन की प्रतिज्ञा पूरी हुई, और भगवान ने अपने भक्त की रक्षा की|
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एक बार हम शरणागत होकर तो देखें| अपने आप को परमात्मा के हाथों में सौंप दो| यह शरणागति ही सबसे बड़ी गति है| हे प्रभु, मैं आपका हूँ, और सदा आपका ही होकर रहूँगा| भगवान के शरणागत हो जाना सम्पूर्ण साधनों का सार और भक्ति की पराकाष्ठा है| इसमें शरणागत भक्त को अपने लिये कुछ भी करना शेष नहीं रहता; जैसे पतिव्रता स्त्री का अपना कोई काम नहीं रहता| वह अपने शरीर की सार-सँभाल भी पति के लिये ही करती है| वह घर, कुटुम्ब, वस्तु, पुत्र-पुत्री और अपने कहलाने वाले शरीर को भी अपना नहीं मानती, प्रत्युत पतिदेव का ही मानती है| उसी प्रकार शरणागत भक्त भी अपने मन, बुद्धि और देह आदि को भगवान् के चरणों में समर्पित करके निश्चिन्त, निर्भय, निःशोक और निःशंक हो जाता है|
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हम अधिक से अधिक भगवान का ध्यान करें और उनके श्रीचरणों में समर्पित होकर शरणागत हों| एक बार जीवन की डोर उनके हाथों में देकर तो देखें|
भगवान श्रीकृष्ण हमारे चैतन्य में निरंतर अवतरित हों, एक क्षण के लिए भी उनकी विस्मृति ना हो| उनसे पृथक हमारा कोई अस्तित्व ना रहे|
."कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने | प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ||"
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सभी को शुभ कामनाएँ और सादर सप्रेम अभिनन्दन !
ॐ ॐ ॐ ||