सदा हमारी रक्षा हो ---
.
किसी भी व्यक्ति की बड़ी बड़ी बातों से और दिखावटी आचरण से हमें प्रभावित नहीं होना चाहिए| मार्गदर्शन के लिए प्रत्यक्ष परमात्मा से ही प्रार्थना करें| जो कुछ भी मिलेगा वह स्वयं में स्थित परमात्मा से ही मिलेगा, दूसरों से नहीं| जब भी मैं कुछ मिलने की बात कहता हूँ, उसका अर्थ है परमात्मा में स्थिति, न कि कोई धन-दौलत| किसी से भी कोई अपेक्षा और आशा न रखें, स्वयं में ही आत्म-विश्वास रखें| जो आत्म-साक्षात्कार का मार्ग दिखाये वही सद्गुरु है| गुरु हमारी दृष्टि परमात्मा की ओर कर देता है| हृदय में एक तीब्र अभीप्सा और भक्ति का होना आवश्यक है|
.
जैसे गिद्ध, चील-कौए, और लकड़बघ्घे मृत लाशों को ही ढूँढ़ते रहते हैं, और अवसर मिलते ही उन पर टूट पड़ते है, वैसे ही मनुष्य का मन भी एक गिद्ध है, जो दूसरों को लूटने, ठगने और विषय-वासनाओं की पूर्ति के अवसर ढूँढ़ता रहता है और अवसर मिलते ही उन पर टूट पड़ता है| इस संसार में मनुष्य के वेश में घूमने वाले अधिकांश प्राणी तो परभक्षी ही हैं, जिन की गिद्ध-दृष्टी दूसरों से घूस लेने, दूसरों को ठगने, लूटने और वासनापूर्ति को ही लालायित रहती है| ऐसे लोग बातें तो बड़ी बड़ी करते हैं पर अन्दर ही अन्दर उन में कूट कूट कर हिंसा, लालच, कुटिलता व दुष्टता भरी रहती है| मनुष्य के रूप में ऐसे परभक्षी चारों ओर भरे पड़े हैं| भगवान की परम कृपा ही उन से हमारी रक्षा कर सकती है, अन्य कुछ भी नहीं|
.
भगवान श्रीकृष्ण और गुरु महाराज की परम कृपा से जीवन में अब बड़ी-बड़ी बातों, बड़े-बड़े सिद्धांतों और उपदेशों का कोई महत्व नहीं रहा है| महत्व सिर्फ परमात्मा का है जो मेरे कूटस्थ चैतन्य में सर्वदा निरंतर बिराजमान हैं| कमी सदा मुझ में ही रही है, उन की ओर से कभी कोई कमी नहीं रही है| सर्वव्यापी कूटस्थ चैतन्य में आस्था रखें| कूटस्थ ही गुरु है, कूटस्थ ही परमात्मा है, और कूटस्थ ही हम स्वयं हैं| अपनी चेतना को सदा आज्ञाचक्र व सहस्त्रार के मध्य रखें| ध्यान साधना का आरंभ तो भ्रूमध्य से होता है, फिर धीरे-धीरे सहस्त्रार, ब्रह्मरंध्र, देह से बाहर परमात्मा की अनंतता, और फिर उस अनंतता से भी परे स्वतः ही चला जाता है| परमात्मा की अनंतता से भी परे की जो स्थिति है, उसे ही मैं 'परमशिव' कहता हूँ|
.
भगवान श्रीकृष्ण और गुरुपरंपरा से प्रार्थना है कि सब तरह के कुसंग, बुरे विचारों और प्रलोभनों से रक्षा करें, व निज चेतना में रखें|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ नवम्बर २०२०