Monday 24 December 2018

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग २) .....

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग २) .....
--------------------------------
ऐसे विद्यालयों में जहाँ विद्यार्थी, अध्यापक, प्रबंधक और मालिक आदि सभी हिन्दू हैं, वहाँ बड़ी धूमधाम से क्रिसमस मनाकर विदेशी संस्कृति का प्रचार प्रसार बड़ा अटपटा और विचित्र सा लगता है| क्या यह अज्ञान का प्रसार नहीं है? यह सांता क्लॉज़ नाम का फर्जी बूढ़ा जिसका जिक्र बाइबिल में कहीं भी नहीं है, भारत में कभी भी घुस नहीं सकता| वह अपनी स्लेज गाड़ी पर आता है जिसे रेनडियर खींचते हैं| भारत में इतनी बर्फ ही नहीं पड़ती जहाँ स्लेज गाड़ी चल सके| भारत में रेनडियर भी नहीं होते| अतः अपने बच्चों को सांता क्लॉज न बनाएँ| यदि उनके स्कूल वाले बनाते हैं तो सख्ती से उन्हें मना कर दें|
.
यह ईसाईयत का एक सबसे बड़ा उपदेश है जिसकी उपेक्षा कर ईसाईयों ने सिर्फ मारकाट और नर संहार ही किये हैं ....
Sermon on the Mount ..... He said ..... "But seek ye first the kingdom of God, and His righteousness; and all these things shall be added unto you." Matthew 6:33 KJV.
अर्थात् .... पहिले परमात्मा के राज्य को ढूंढो, फिर अन्य सब कुछ तुम्हें स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा.
.
ईसाईयत में कर्मफलों का सिद्धांत .....
"He that leadeth into captivity shall go into captivity: he that killeth with the sword must be killed with the sword.
Revelation 13:10 KJV."
उपरोक्त उद्धरण प्राचीन लैटिन बाइबल की Revelation नामक पुस्तक के किंग जेम्स वर्ज़न से लिया गया है| एक धर्मगुरु अपने एक नौकर के कान अपनी तलवार से काट देता है जिस पर जीसस क्राइस्ट ने उसे तलवार लौटाने को कहा और उपरोक्त बात कही|
(विडम्बना है कि उसी जीसस क्राइस्ट के अनुयायियों ने पूरे विश्व में सबसे अधिक अत्याचार और नर-संहार किये).
For all who will take up the sword, will die by the sword.
Live by the sword, die by the sword.
जो दूसरों को तलवार से काटते हैं वे स्वयं भी तलवार से ही काटे जाते हैं ....
प्रकृति किसी को क्षमा नहीं करती| कर्मों का फल मिले बिना नहीं रहता|

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग १) ...

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग १) ...
--------------------------------
भगवान के नाम पर शराब पी कर, मांस खा कर, और नाच गा कर क्रिसमस का त्यौहार मनाना यह स्पेन और पुर्तगाल की परम्परा है जो योरोप और अमेरिका में फ़ैली, अब भारत में बहुत अधिक लोकप्रिय हो गयी है| टर्की नाम की एक विशेष प्रकार की बतख का मांस और ब्रेड के सॉस को इस दिन चाव से खाया जाता है, और शराब पीकर नाच गा कर इस क्रिसमस के त्यौहार को मनाया जाता है| मेरे सभी मित्रों को जो ईसाई मतावलंबी हैं या ईसा मसीह में आस्था रखते हैं उनको यह कहना चाहता हूँ कि ..... आप लोग अपने मत में आस्था रखो पर हमारे गरीब और लाचार हिंदुओं का धर्मांतरण यानि मत परिवर्तन मत करो, व हमारे साधू-संतों को प्रताड़ित मत करो| आप लोग हमारे सनातन धर्म की निंदा और हम पर झूठे दोषारोपण भी मत करो| स्वामी विवेकानंद के शब्दों में आप लोगों ने भारतवर्ष और हम हिन्दुओं को इतना अधिक बदनाम किया है और हमारे ऊपर इतना अत्याचार किया है कि यदि हम पूरे विश्व का कीचड़ भी तुम्हारे ऊपर फेंकें तो वह भी कम पड़ेगा|
.
आज से दो हज़ार वर्ष पूर्व कल्पना कीजिये कि विश्व में कितना अज्ञान और अन्धकार था| वह एक ऐसा समय था जब भारतवर्ष में ही वैदिक धर्म का ह्रास हो गया था, तब भारत से बाहर तो कितना अज्ञान रहा होगा ! वैदिक मत के स्थान पर प्रचलित बौद्ध मत में अनेक विकृतियाँ आ रही थीं| भारतवर्ष में वामाचार का प्रचलन बढ़ गया था और अधिकाँश लोगों के लिए इन्द्रीय सुखों की प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य रह गया था|
.
उस समय के फिलिस्तीन की कल्पना कीजिये जो वास्तव में एक परम अज्ञान और घोर अन्धकार का केंद्र था| वहाँ कोई पढाई-लिखाई नहीं थी| कहीं भी आने जाने के लिए लोग गधे की सवारी करते थे| लोग रोमन साम्राज्य के दास थे| रोमन साम्राज्य का एकमात्र ध्येय .... दूसरों को गुलाम बनाना, भोग-विलास और इन्द्रीय सुखों की प्राप्ती था| आप वर्तमान में ही फिलिस्तीन की स्थिति देख लीजिये| जो लोग उस क्षेत्र में गए हैं वे कह सकते हैं, और मैं भी मेरे अनुभव से कह रहा हूँ कि वह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ के बारे में कुछ भी प्रशंसनीय नहीं है| यही हालत आज पूरे अरब विश्व की है|
.
उस समय एक ईश्वरीय चेतना ने वहाँ फिलिस्तीन के बैथलहम नगर में जन्म लिया जिसे समझने वाला वहाँ कोई नहीं था| वह चेतना भारत में आकर पल्लवित हुई और बापस अपने देश फिलिस्तीन गयी जहाँ उसे सूली पर चढ़ा दिया गया| बच कर वह चेतना बापस भारत आई और यहीं की होकर रह गयी|
.
उस दिव्य चेतना के नाम पर एक मत चला जिसने पूरे विश्व में क्रूरतम हिंसा और अत्याचार किया| भारत में भी सबसे अधिक अति घोर अत्याचार और आतंक उस मत ने फैलाया और अभी भी फैला रहा है| देखा जाए तो उनके वर्तमान चर्चवादी मत और उनके मध्य कोई सम्बन्ध नहीं है| उन की मूल शिक्षाएं काल चक्र में लुप्त हो गयी हैं|
.
क्राइस्ट एक चेतना है -- कृष्ण चैतन्य, आप उस चेतना में रहो| ईश्वर को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| आप भी ईश्वर की संतान हो| आप जन्म से पापी नहीं हो| आप अमृतपुत्र हैं| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है| अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो, सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
.
आने वाले नववर्ष के बारे में .... काल अनन्त है, आध्यात्मिक मानव के लिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है, जनवरी १, नववर्ष नहीं है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१८

मैं क्रिसमस पर ध्यान क्यों करता हूँ ? .....

मैं क्रिसमस पर ध्यान क्यों करता हूँ ? .....
.
कल से ईसाईयों का दो दिन का क्रिसमस का पर्व है| मैं हिन्दू होकर भी क्रिसमस की पूर्वरात्री (२४ दिसंबर) को भगवान का गहनतम ध्यान करता हूँ, इसका कारण मेरा दृढ़ विश्वास है कि एक न एक दिन शीघ्र ही पूरे विश्व के ईसाई मतावलंबी सनातन हिन्दू धर्म को मानने लगेंगे| पूरे विश्व में अधिकाँश ईसाई मतावलंबी ईसाईयत से निराश होकर नास्तिक हो गए हैं| सिर्फ भारत में ही सनातन धर्म को नष्ट करने में उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा रखी है| भारत से बाहर बड़े से बड़े ईसाई धर्मगुरुओं की आस्था भी खंडित हो चुकी है| वे सिर्फ दिखावे के लिए ही बड़ी बड़ी बातें करते हैं, अन्दर से खोखले हैं| यह मेरा निजी अनुभव है| असत्य पर कभी गहरी नींव नहीं पडती|
.
ईसाईयत का मुख्य आधार व मोड़-बिंदु ..... "Resurrection" यानी ईसा मसीह के पुनरोत्थान की अवधारणा है| भारतवर्ष में यह कोई चमत्कार नहीं है| भारत में अनेक संत-महात्मा पुनर्जीवित व दीर्घजीवी हुए हैं|
.
अन्य कुछ भी उल्लेखनीय नहीं है| मदिरा पान, नाच-गाना, और मांसाहार से कोई धार्मिक नहीं बनता| |सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! अभिनन्दन में सब का करता हूँ, अतः पुनश्चः सभी श्रद्धालुओं को नमन !

.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०१८

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग २) .....

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग २) .....
--------------------------------
ऐसे विद्यालयों में जहाँ विद्यार्थी, अध्यापक, प्रबंधक और मालिक आदि सभी हिन्दू हैं, वहाँ बड़ी धूमधाम से क्रिसमस मनाकर विदेशी संस्कृति का प्रचार प्रसार बड़ा अटपटा और विचित्र सा लगता है| क्या यह अज्ञान का प्रसार नहीं है? यह सांता क्लॉज़ नाम का फर्जी बूढ़ा जिसका जिक्र बाइबिल में कहीं भी नहीं है, भारत में कभी भी घुस नहीं सकता| वह अपनी स्लेज गाड़ी पर आता है जिसे रेनडियर खींचते हैं| भारत में इतनी बर्फ ही नहीं पड़ती जहाँ स्लेज गाड़ी चल सके| भारत में रेनडियर भी नहीं होते| अतः अपने बच्चों को सांता क्लॉज न बनाएँ| यदि उनके स्कूल वाले बनाते हैं तो सख्ती से उन्हें मना कर दें|
.
यह ईसाईयत का एक सबसे बड़ा उपदेश है जिसकी उपेक्षा कर ईसाईयों ने सिर्फ मारकाट और नर संहार ही किये हैं ....
Sermon on the Mount ..... He said ..... "But seek ye first the kingdom of God, and His righteousness; and all these things shall be added unto you." Matthew 6:33 KJV.
अर्थात् .... पहिले परमात्मा के राज्य को ढूंढो, फिर अन्य सब कुछ तुम्हें स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा.
.
ईसाईयत में कर्मफलों का सिद्धांत .....
"He that leadeth into captivity shall go into captivity: he that killeth with the sword must be killed with the sword.
Revelation 13:10 KJV."
उपरोक्त उद्धरण प्राचीन लैटिन बाइबल की Revelation नामक पुस्तक के किंग जेम्स वर्ज़न से लिया गया है| एक धर्मगुरु अपने एक नौकर के कान अपनी तलवार से काट देता है जिस पर जीसस क्राइस्ट ने उसे तलवार लौटाने को कहा और उपरोक्त बात कही|
(विडम्बना है कि उसी जीसस क्राइस्ट के अनुयायियों ने पूरे विश्व में सबसे अधिक अत्याचार और नर-संहार किये).
For all who will take up the sword, will die by the sword.
Live by the sword, die by the sword.
जो दूसरों को तलवार से काटते हैं वे स्वयं भी तलवार से ही काटे जाते हैं ....
प्रकृति किसी को क्षमा नहीं करती| कर्मों का फल मिले बिना नहीं रहता|

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग १) ...

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग १) ...
--------------------------------
भगवान के नाम पर शराब पी कर, मांस खा कर, और नाच गा कर क्रिसमस का त्यौहार मनाना यह स्पेन और पुर्तगाल की परम्परा है जो योरोप और अमेरिका में फ़ैली, अब भारत में बहुत अधिक लोकप्रिय हो गयी है| टर्की नाम की एक विशेष प्रकार की बतख का मांस और ब्रेड के सॉस को इस दिन चाव से खाया जाता है, और शराब पीकर नाच गा कर इस क्रिसमस के त्यौहार को मनाया जाता है| मेरे सभी मित्रों को जो ईसाई मतावलंबी हैं या ईसा मसीह में आस्था रखते हैं उनको यह कहना चाहता हूँ कि ..... आप लोग अपने मत में आस्था रखो पर हमारे गरीब और लाचार हिंदुओं का धर्मांतरण यानि मत परिवर्तन मत करो, व हमारे साधू-संतों को प्रताड़ित मत करो| आप लोग हमारे सनातन धर्म की निंदा और हम पर झूठे दोषारोपण भी मत करो| स्वामी विवेकानंद के शब्दों में आप लोगों ने भारतवर्ष और हम हिन्दुओं को इतना अधिक बदनाम किया है और हमारे ऊपर इतना अत्याचार किया है कि यदि हम पूरे विश्व का कीचड़ भी तुम्हारे ऊपर फेंकें तो वह भी कम पड़ेगा|
.
आज से दो हज़ार वर्ष पूर्व कल्पना कीजिये कि विश्व में कितना अज्ञान और अन्धकार था| वह एक ऐसा समय था जब भारतवर्ष में ही वैदिक धर्म का ह्रास हो गया था, तब भारत से बाहर तो कितना अज्ञान रहा होगा ! वैदिक मत के स्थान पर प्रचलित बौद्ध मत में अनेक विकृतियाँ आ रही थीं| भारतवर्ष में वामाचार का प्रचलन बढ़ गया था और अधिकाँश लोगों के लिए इन्द्रीय सुखों की प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य रह गया था|
.
उस समय के फिलिस्तीन की कल्पना कीजिये जो वास्तव में एक परम अज्ञान और घोर अन्धकार का केंद्र था| वहाँ कोई पढाई-लिखाई नहीं थी| कहीं भी आने जाने के लिए लोग गधे की सवारी करते थे| लोग रोमन साम्राज्य के दास थे| रोमन साम्राज्य का एकमात्र ध्येय .... दूसरों को गुलाम बनाना, भोग-विलास और इन्द्रीय सुखों की प्राप्ती था| आप वर्तमान में ही फिलिस्तीन की स्थिति देख लीजिये| जो लोग उस क्षेत्र में गए हैं वे कह सकते हैं, और मैं भी मेरे अनुभव से कह रहा हूँ कि वह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ के बारे में कुछ भी प्रशंसनीय नहीं है| यही हालत आज पूरे अरब विश्व की है|
.
उस समय एक ईश्वरीय चेतना ने वहाँ फिलिस्तीन के बैथलहम नगर में जन्म लिया जिसे समझने वाला वहाँ कोई नहीं था| वह चेतना भारत में आकर पल्लवित हुई और बापस अपने देश फिलिस्तीन गयी जहाँ उसे सूली पर चढ़ा दिया गया| बच कर वह चेतना बापस भारत आई और यहीं की होकर रह गयी|
.
उस दिव्य चेतना के नाम पर एक मत चला जिसने पूरे विश्व में क्रूरतम हिंसा और अत्याचार किया| भारत में भी सबसे अधिक अति घोर अत्याचार और आतंक उस मत ने फैलाया और अभी भी फैला रहा है| देखा जाए तो उनके वर्तमान चर्चवादी मत और उनके मध्य कोई सम्बन्ध नहीं है| उन की मूल शिक्षाएं काल चक्र में लुप्त हो गयी हैं|
.
क्राइस्ट एक चेतना है -- कृष्ण चैतन्य, आप उस चेतना में रहो| ईश्वर को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| आप भी ईश्वर की संतान हो| आप जन्म से पापी नहीं हो| आप अमृतपुत्र हैं| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है| अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो, सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
.
आने वाले नववर्ष के बारे में .... काल अनन्त है, आध्यात्मिक मानव के लिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है, जनवरी १, नववर्ष नहीं है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१८

क्रिसमस पर सभी ईसाई श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ .....

क्रिसमस पर सभी ईसाई श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ .....
.
वर्तमान ईसाई मत एक चर्चवाद है, उसका ईसा मसीह यानि जीसस क्राइस्ट से कोई सम्बन्ध नहीं है| कुछ वर्षों पूर्व अमेरिका में "द विन्सी कोड" नामक एक पुस्तक छपी थी, जिसके बाद पूरे विश्व में करोड़ों ईसाईयों की आस्था अपने मत से हट गयी| भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने उस पुस्तक पर तुरंत प्रतिबन्ध लगा दिया था| फिर भी भारत में लगता है उसका Ghost Edition (यानि चोरी-छिपे छद्म प्रकाशक के नाम से) छपा और बड़े शहरों के फुटपाथों पर वह पुस्तक चोरी-छिपे खूब बिकी| वह पुस्तक मैनें भी पढ़ी थी और मेरे जैसे सैंकड़ों लोगों ने पढ़ी| अवसर मिले तो आप भी पढ़िए|
.
भारत से बाहर ईसाईयत प्रभावहीन होती जा रही है| उसकी धार समाप्त हो गयी है| ईसाईयत ने अपना पूरा जोर, पूरी शक्ति भारत और नेपाल में झोंक दी है| चीन में और सभी मुस्लिम देशों में ईसाई प्रचारक प्रवेश भी नहीं कर सकते| श्रीलंका जैसे देश ने भी उन पर प्रतिबन्ध लगा रखा है| पर विश्व में अनेक अति गुप्त ईसाई संस्थाएँ हैं जो घोर कुटिलता और हिंसा से अभी भी पूरे विश्व पर अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहती हैं| ऐसी संस्थाओं से हमें अति सचेत रहना है| भारत की रक्षा तो भगवान ने ही की है, अन्यथा भारत तो उनके द्वारा अब तक नष्ट हो चुका होता|
.
मेरे कई ईसाई मित्र थे (रोमन कैथोलिक भी और प्रोटोस्टेंट भी) जिनके साथ मैं कई बार उनके चर्चों में गया हूँ और वहाँ की प्रार्थना सभाओं में भी भाग लिया है| दो बार इटली में वेनिस और कुछ अन्य नगरों में भी गया हूँ जहाँ खूब बड़े बड़े चर्च हैं जिनमें उपस्थिति नगण्य ही रहती है| यूरोप व अमेरिका के कई ईसाई पादरियों से भी मेरी मित्रता रही है| कुल मिलाकर मेरा अनुभवजन्य मत यही है कि जो जिज्ञासु ईसाई हैं उनको अपनी जिज्ञासाओं का समाधान सनातन हिन्दू धर्म में ही मिलता है, और इस बात की पूरी संभावना है कि विश्व के सारे समझदार ईसाई एक न एक दिन हिन्दू धर्म को ही अपना लेंगे| मुझे एक पूर्व ईसाई जिसने बाद में हिन्दू धर्म अपना कर संन्यास भी ले लिया था, ने बताया था कि यदि हिन्दू लोग जीसस क्राइस्ट को भी एक हिन्दू अवतार ही मान लें तो दुनियाँ के सारे समझदार ईसाई हिन्दू हो जायेंगे|
.
उन सब को क्रिसमस की शुभ कामनाएँ जो जीसस क्राइस्ट में विश्वास रखते हैं| उनको मैं यह निवेदन करता हूँ कि क्राइस्ट एक चेतना है -- कृष्ण चेतना| आप उस चेतना में रहो| ईश्वर को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| आप भी ईश्वर की संतान हो| आप जन्म से पापी नहीं हो| आप अमृतपुत्र हैं| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है| अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो, सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१८

पिंड दान .....

पिंड दान ...... हमें इस देह में जीवित रहते हुए ही अपना स्वयं का पिंडदान भी कर देना चाहिए| मृत्यु के बाद घर वालों को यह कष्ट न दें तो यह एक बहुत बड़ा परोपकार होगा| अपने अंतिम संस्कार के लिए भी स्वयं का कमाया हुआ ही पर्याप्त धन, घर वालों के पास छोड़ देना चाहिए ताकि उन पर कोई भार न पड़े| केवल श्राद्ध करने से कोई मुक्ति नहीं मिलती है, अपना स्वयं का किया हुआ सत्कर्म ही अंततः काम आयेगा|
.
यह देह रूपी जो वाहन भगवान ने दिया है, वह पिंड ही है, और इसे भगवान को अर्पण कर देना ही पिंडदान है| जिसने अपना जीवन, अपना अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) भगवान को अर्पित कर दिया उसका पिंडदान ही सच्चा है| यह पिंडदान ही सार्थक है| अपना अन्तःकरण पूर्ण रूप से परमात्मा को सौंप दें|
.
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं ....
"उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्‌| आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः||६:५||"
अर्थात् मनुष्य को चाहिये कि वह अपने मन के द्वारा अपना जन्म-मृत्यु रूपी बन्धन से उद्धार करने का प्रयत्न करे, और अपने को निम्न-योनि में न गिरने दे, क्योंकि यह मन ही जीवात्मा का मित्र है, और यही जीवात्मा का शत्रु भी है||

श्रुति भगवती भी कहती है .....
"एको हंसः भुवनस्यास्य मध्ये स एवाग्निः सलिले संनिविष्टः |
तमेव विदित्वा अतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय || श्वेताश्वतरोपनिषद:६:१५||"
परमात्मा को जानकर ही हम मृत्यु का उल्लंघन कर सकते हैं| परमात्मा को हमें स्वयं ही प्राप्त करना होगा| यह उनकी कृपा और अनुग्रह के द्वारा ही संभव है जो करुणावश वे स्वयं ही कर सकते हैं| अन्य कोई उसे प्रकाशित नहीं कर सकता|
श्रुति भगवती ने यहीं यह भी कहा है .....
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः|
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति||
श्वेताश्वतरोपनिषद:६:१४||"
.
अपना अंतःकरण भगवान को सौंप दें, यही सबसे बड़ा पिंडदान है, यही सच्चा श्राद्ध है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०१८

कमाई खुद की ही काम आयेगी, दूसरों की नहीं .....

कमाई खुद की ही काम आयेगी, दूसरों की नहीं .....
----------------------------------------------------
पर्वतों पर चढ़ाई करने वालों को ही पर्वतों से आगे के दृश्य दिखाई देते हैं, सिर्फ कल्पनाओं में, सुनी-सुनाई बातों और दूसरों के अनुभवों में कुछ नहीं रखा है| स्वयं अपने परिश्रम से साधना के शिखर पर चढ कर परमात्मा की अनुभूतियों को प्राप्त करना होगा| जितना परिश्रम करोगे, परमात्मा से उतना ही अधिक पारिश्रमिक मिलेगा| बिना परिश्रम के कुछ भी नहीं मिलेगा| परमात्मा भी अपना अनुग्रह यानी कृपा उसी पर करते हैं जो परमप्रेममय होकर उनके लिए परिश्रम करता है| मेहनत करोगे तो मजदूरी भी मिलेगी| संसार भी हमें मेहनत के बदले मजदूरी देता है, तो फिर भगवान क्यों नहीं देंगे? संत तुलसीदास जी ने कहा है .....
"तुलसी विलम्ब न कीजिए भजिये नाम सुजान| जगत मजूरी देत है क्यों राखे भगवान्||"
.
अधिकांश लोग संत-महात्माओं के पीछे पीछे इसलिए भागते हैं कि संभवतः संत-महात्मा अपनी कमाई में से कुछ दे देंगे| पर ऐसा होता नहीं है| संत-महात्मा अधिक से अधिक हमें प्रेरणा दे सकते हैं, मार्गदर्शन कर सकते हैं, और सहायता कर सकते हैं| वे अपनी कमाई किसी को क्यों देंगे? मेहनत तो खुद को ही करनी होगी और मजदूरी भी खुद ही कमानी होगी, क्योंकि खुद की कमाई ही काम आयेगी, दूसरे की नहीं| मैं फिर से निवेदन कर रहा हूँ .... जगत मजूरी देत है, क्यों राखे भगवान !
.
हरि ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०१८
अक्षर ब्रह्म का ध्यान .....
---------------------
भगवान गीता में कहते हैं ... "ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्| यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्||८:१३||
अर्थात् जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है वह परम गति को प्राप्त होता है|
 .
भगवान ने गीता में ओंकार को अक्षर ब्रह्म बताया है| श्रुति भगवती यानि सारे उपनिषद् ओंकार की महिमा से भरे पड़े हैं| योग सूत्रों में इसे परमात्मा का वाचक बताया है .... तस्य वाचकः प्रणवः||१:२७||
 .
इसलिए अपनी अपनी गुरु-परम्परानुसार गुरु के आदेश से गुरु की बताई हुई विधि से अक्षर ब्रह्म ओंकार का का निरंतर अनुस्मरण और नामजप करते रहना चाहिए|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० दिसंबर २०१८

Thursday 20 December 2018

भगवान तो अनंत हैं, वे इस छोटे से हृदय में कैसे समा सकते हैं?

भगवान तो अनंत हैं, वे इस छोटे से हृदय में कैसे समा सकते हैं?
---------------------------------------------------------------------
भगवान अनंत हैं, वे इस छोटे से भौतिक हृदय में नहीं समा सकते| ये आँखें तो हृदय से भी छोटी हैं जो उनकी सीमित अनंतता को ही देख पा रही हैं| इस भौतिक दृष्टी की एक सीमा है, दृश्य तो अनंत है| पर जिनसे यह सम्पूर्ण सृष्टि आच्छादित है, वे वासुदेव ही सर्वस्व हैं| उनकी अनंतता ही मेरा ह्रदय है| उनका अस्तित्व ही मेरा अस्तित्व है, जो वे हैं वह ही मैं हूँ| उनसे पृथक अन्य कुछ भी नहीं है| वे असीम हैं, उन्हें किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता| स्कन्दपुराण में वे स्वयं ही स्वयं को नमन कर रहे हैं ....
नमस्तुभ्यं नमो मह्यं तुभ्यं मह्यं नमोनमः | अहं त्वं त्वमहं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ||
.
गीता में वे कहते हैं .....
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते| वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः||७:१९||
.
वे अंतर्रात्मा परमात्वतत्व वासुदेव ही सर्वस्व हैं| सम्पूर्ण सृष्टि उन्हीं की स्वतन्त्र सत्ता है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय || ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० दिसंबर २०१८

ब्राह्मी स्थिति क्या है ?.....

ब्राह्मी स्थिति क्या है ?.....
-----------------------
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मी स्थिति के बारे में कहते हैं ....
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति| स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति||२:७२||
अर्थात् हे पार्थ, यह ब्राह्मी स्थिति है जिसे प्राप्त कर पुरुष मोहित नहीं होता| अन्तकाल में भी इस निष्ठा में स्थित होकर ब्रह्मनिर्वाण (ब्रह्म के साथ एकत्व) को प्राप्त होता है||
.
यह अवस्था ब्रह्म में होनेवाली स्थिति है| यह सर्व कर्मों का संन्यास कर के केवल ब्रह्मरूप से स्थित हो जाना है| इस स्थिति को पाकर मनुष्य फिर मोहको प्राप्त नहीं होता| इस ब्राह्मी स्थिति में स्थित होकर मनुष्य ब्रह्म में लीनता रूप मोक्ष का लाभ प्राप्त करता है| अब प्रश्न यह है कि यह स्थिति कैसे प्राप्त हो सकती है? इस पर विचार करें| योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी के अनुसार यह क्रिया की परावस्था है| मेरे विचार से यह कूटस्थ चैतन्य से भी उच्चतर स्थिति है| यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए |


ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ दिसंबर २०१८
.
पुनश्चः ---- इस से पूर्व भगवान ने कहा है जिस पर भी विचार करें ......
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्‌ ।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥ (७०)
भावार्थ : जिस प्रकार अनेकों नदियाँ सभी ओर से परिपूर्ण, दृड़-प्रतिष्ठा वाले समुद्र में समुद्र को विचलित किए बिना ही समा जाती हैं, उसी प्रकार सभी इच्छायें स्थित-प्रज्ञ मनुष्य में बिना विकार उत्पन्न किए ही समा जाती हैं, वही मनुष्य परम-शान्ति को प्राप्त होता है, न कि इन्द्रिय सुख चाहने वाला। (२:७०)

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः ।
निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति ॥ (२:७१)
भावार्थ : जो मनुष्य समस्त भौतिक कामनाओं का परित्याग कर इच्छा-रहित, ममता-रहित और अहंकार-रहित रहता है, वही परम-शांति को प्राप्त कर सकता है। (२:७१)

Tuesday 18 December 2018

सभी समस्याओं का समाधान और सभी प्रश्नों का उत्तर :---

सभी समस्याओं का समाधान और सभी प्रश्नों का उत्तर :---
-----------------------------------------------------------
इसी क्षण मेरे पास सभी समस्याओं का समाधान भी है, और सभी प्रश्नों का उत्तर भी है| पर यह मेरा विशेषाधिकार है कि मैं उसे व्यक्त करूं या नहीं| यहाँ मैं मेरे अनुभव साझा कर रहा हूँ| जिस स्तर पर मेरी सोच है, उत्तर भी उसी स्तर पर होगा| मैं अपना स्तर नीचे नहीं कर सकता| कोई नहीं समझे तो यह उसकी समस्या है|
.
सभी समस्याएँ और उनका समाधान :---
----------------------------------------
हमारी एक ही समस्या है और उसका समाधान भी एक ही है| हमारी प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या है ..... "परमात्मा से पृथकता", अन्य कोई समस्या नहीं है|

इस समस्या का एक ही समाधान है .... "परमात्मा से परम प्रेम, परम प्रेम व परम प्रेम, और परमात्मा को पूर्ण समर्पण"| अन्य कोई समाधान नहीं है|
यह सृष्टि परमात्मा की रचना है, अतः सारी समस्याएँ उसी की हैं, हमारी नहीं| हमारी एकमात्र समस्या है कि हम परमात्मा को कैसे प्राप्त हों|
कुतर्कों द्वारा स्वयं को ठगें नहीं, कुतर्क बहुत है और कुतर्क भी भी वे ही लोग करते हैं जो स्वयं को परमात्मा का होना बताते हैं| अतः प्रत्यक्ष परमात्मा से ही प्रश्न कीजिये, उत्तर अवश्य मिलेगा|
इधर-उधर भटकने की कोई आवश्यकता नहीं है| अपने मन को शांत करें, अपनी चेतना को भ्रूमध्य या उस से ऊपर रखें और अपने हृदय के पूर्ण प्रेम के साथ परमात्मा का निरंतर स्मरण करें| जगन्माता के रूप में परमात्मा की कृपा अवश्य होगी| फिर कोई समस्या नहीं रहेगी|
.
सारे प्रश्न और उनका उत्तर :----
------------------------------
सारे प्रश्नों का जन्म हमारे व्याकुल, अशांत व सीमित मन के कारण होता है| हमारा सीमित व अशांत मन ही सारे प्रश्नों का जनक है| जिस क्षण हमारा मन शांत होगा, उसकी सीमाएँ टूटेंगी, उसी क्षण हमारे सारे प्रश्न भी तिरोहित हो जायेंगे|
किसी शांत स्थान पर शांत होकर बैठो, परमात्मा से प्रार्थना करो और परमात्मा का ध्यान करो| परमात्मा से प्रेम होगा तो सारे प्रश्नों का उत्तर भी वे स्वयं ही दे देंगे|
.
और मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ दिसंबर २०१८
.
पुनश्चः :---- गीता जयंती की शुभ कामनाएँ !

गीता जयंती १८ दिसंबर २०१८ की प्रातः शोभायात्रा :----

गीता जयंती १८ दिसंबर २०१८ की प्रातः शोभायात्रा :----
-------------------------------------------------------
"कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः |
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ||गीता:२:७||
भावार्थ :--- करुणा के कलुष से अभिभूत और कर्तव्यपथ पर संभ्रमित हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिये जो श्रेयष्कर हो उसे आप निश्चय करके कहिये क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ. शरण में आये मुझको आप उपदेश दीजिये ||
.
"गीता जयंती" कल मंगलवार १८ दिसंबर २०१८ को पूरे देश में मनाई जा रही है| इसकी तिथि पर कुछ मतभेद था, कुछ विद्वान् पंडित इसे १९ दिसंबर को बता रहे थे, पर अब प्रायः सभी १८ को ही मना रहे हैं| गीता के किसी भी एक अध्याय का अर्थ सहित स्वाध्याय करें| यदि अधिक का कर सकते हैं तो अधिक का करें, पर करें अवश्य|
.
राजस्थान के झुंझुनूं नगर में कई माताएँ तीन अलग अलग स्थानों से प्रातः संकीर्तन करते हुए प्रभातफेरी निकालती हैं| वे तीनों प्रभातफेरी परिवार मिल कर इंदिरा नगर के नगर नरेश बालाजी मंदिर से कल मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी दिनांक १८ दिसंबर २०१८ मंगलवार को प्रातः ६ बजे हरिकीर्तन व गीता जी के श्लोकों के शुद्ध उच्चारण के साथ शोभायात्रा निकालेंगी| यह शोभायात्रा गौशाला तक जायेगी| वहीं से पूजा और प्रसाद वितरण के बाद विसर्जन होगा| वहाँ छोटे बच्चों के मुंह से गीता के श्लोकों का शुद्ध उच्चारण सुनकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाएगा|
.
गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है| गीता ईश्वर का ज्ञान है जिसे स्वयं भगवान ने दिया है ..... या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता || श्रीगीताजी की उत्पत्ति धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुई थी| यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है|
.
गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं| इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है| इसके छोटे-छोटे १८ अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश हैं, जो मनुष्य मात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं|
.
सभी स्थानीय श्रद्धालुगण अवश्य पधारें.
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्| देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्||

साधना में कर्ता कौन हैं ?.....

साधना में कर्ता कौन हैं ?.....
--------------------------
आध्यात्मिक साधना में "कर्ता" सिर्फ भगवान हैं| वे ही साध्य हैं, वे ही साधना हैं, और साधक भी वे ही हैं| भक्ति का दिखावा और भक्ति का अहंकार ..... साधना पथ पर सबसे बड़ी बाधाएँ हैं| यह स्वयं को ठगना और स्वयं को धोखा देना है| आध्यात्मिक साधना और भक्ति, गोपनीय होनी चाहिएँ| इस धोखे से बचने का एक ही उपाय है, और वह है .... "समर्पण"| अपनी भक्ति और साधना का फल तुरंत भगवान को अर्पित कर दो, अपने पास बचाकार कुछ भी ना रखो, सब कुछ भगवान को अर्पित कर दो| अपने आप को भी परमात्मा को अर्पित कर दो| कर्ता भाव से मुक्त हो जाओ| हम भगवान के एक उपकरण या खिलौने के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं हैं| कर्ता तो भगवान स्वयं हैं|
.
वास्तव में हम कोई साधना नहीं करते हैं| हमारे माध्यम से हमारे गुरु और परमात्मा ही साधना करते हैं| उन्हें कर्ता बनाने से लाभ यह है कि किसी भी भूल-चूक का वे शोधन कर देते हैं| हम तो निमित्त मात्र हैं| प्रभु प्रेम के अतिरिक्त हृदय में अन्य कोई वासना नहीं होनी चाहिए| उनके प्रेम पर तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| अन्य कुछ भी हमारा नहीं है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ गुरु ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०१८

संक्षेप में, सुख और आनंद की खोज क्या है ? .....

संक्षेप में, सुख और आनंद की खोज क्या है ? .....
----------------------------------------------
वैशेषिक दर्शन के आचार्य ऋषि कणाद के अनुसार चार प्रकार के अस्थायी सुख होते हैं .... (१) विषयभोगजन्य. (२) अभिमानजन्य. (३) मनोरथजन्य. (४) अभ्यासजन्य. उन्होंने इन्हें अस्थायी सुख बताया है|
.
सुख की खोज वास्तव में अनजाने में आनंद की खोज है जिसे हम नहीं समझते| आनन्द .... परमात्मा की उपस्थिति का आभास है| "ख" का अर्थ आकाश तत्व है| जो आकाश तत्व यानि परमात्मा के समीप होने की अनुभूति कराता है वह सुख है| जो आकाश तत्व से दूर होने की अनुभूति कराता है वह दुःख है| ये दोनों ही अनुभूतियाँ अस्थायी और मन की अवस्थाएँ मात्र हैं| स्थायी तो सिर्फ आनंद है जिसका स्त्रोत परमप्रेम यानी भक्ति है| सार की बात यह है कि भगवान की अनन्य भक्ति और समर्पण से ही हमें आनंद प्राप्त हो सकता है| अन्य कोई स्त्रोत नहीं है|
.
वेदान्त दर्शन के अनुसार जिस आनंद को हम अपने से बाहर खोज रहे हैं, वह आनंद तो हम स्वयं हैं| कृष्ण यजुर्वेद शाखा के तैत्तिरीयोपनिषद में एक पूरा अध्याय ही ब्रह्मानन्दवल्ली के नाम से है| सार की बात है कि आनंद कुछ पाना नहीं, बल्कि स्वयं का होना है| हम आनंद को कहीं से पा नहीं सकते, स्वयं आनंदमय हो सकते हैं| हमारा वास्तविक अस्तित्व ही आनंद है|
शान्तिपाठ :----
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०१८

आज से दो वर्ष पूर्व हुई एक अनुभूति .....

आज से दो वर्ष पूर्व हुई एक अनुभूति .....

"कल पूरी रात खाँसी से त्रस्त था, रात को सो नहीं पाया, पूरी रात बहुत खाँसी आई| भोर में बहुत थोड़ी सी देर नींद आई| जब नींद खुली तब एक बड़ी दिव्य अनुभूति हुई| मन में यही प्रश्न उठा कि मनुष्य जीवन की उच्चतम उपलब्धि क्या हो सकती है? अचानक दोनों नासिकाएँ खुल गईं, दोनों नासिकाओं से सांस चलने लगी, सुषुम्ना चैतन्य हो गयी, मैं कमर सीधी कर के बैठ गया और एक दिव्य अलौकिक चेतना में चला गया| पूरा ह्रदय प्रेम से भर उठा| प्रेम भी ऐसा जो अवर्णनीय है| पूरा अस्तित्व प्रेममय हो गया| प्रेमाश्रुओं से नयन भर गए| ऐसा लगा जैसे एक छोटा सा बालक जगन्माता की गोद में बैठा हो और माँ उसे खूब प्रेम कर रही हो| तब इस प्रश्न का उत्तर मिल गया कि जीवन की उच्चतम उपलब्धी क्या हो सकती है| जब प्रत्यक्ष परमात्मा का प्यार चाहे वह अति अल्प मात्रा में ही मिल जाए, तो उससे बड़ी अन्य क्या कोई उपलब्धी हो सकती है? हे जगन्माता, चाहे तुमने अपने प्यार का एक कण ही दिया हो, पर वह मेरे लिए अनमोल है| माँ, मुझे अपनी चेतना में रखो| तुम्हारा प्यार ही मेरे लिए सर्वोच्च उपलब्धी है| तुम्हारे प्रेम की चेतना में निरंतर सचेतन स्थित रहूँ| और कुछ भी नहीं चाहिए| 

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१६

मन को निराश न करें, सदा उत्साह बनाए रखें .....

मन को निराश न करें, सदा उत्साह बनाए रखें .....
---------------------------------------------------
आध्यात्मिक साधकों को कभी भी निराश और उत्साहहीन नहीं होना चाहिए| भगवान हर समय हमारे साथ हैं, अभी हैं, इसी समय हैं, और सदा रहेंगे| जब भगवान सदा हमारे साथ हैं तो निराशा कैसी? अपने उत्साह को बनाए रखें| कई अति उन्नत आत्माएँ मेरे अच्छे मित्र हैं जिन्होनें अपना पूरा जीवन परमात्मा को समर्पित कर रखा है और आध्यात्मिक क्षेत्र में खूब प्रगति की है| समय समय पर उन से सत्संग होता रहता है| उनके साथ सत्संग से मेरा भी उत्साह बढ़ता रहता है|
.
एक बात जिस पर मैं और चर्चा नहीं करना चाहूँगा, वह यह है कि एक अतिमानसी दैवीय शक्ति का पिछले कुछ दिनों में ही भारत में अवतरण हो चुका है, जिसकी मुझे स्पष्ट अनुभूतियाँ हो रही हैं| उसके प्रभावशाली तेज से अनेक उन्नत आत्माओं का रुझान भगवान की भक्ति, व आध्यात्म में होने लगा है, और निरंतर होगा| अनेक अति उन्नत आत्माएँ भारत में जन्म ले रही हैं| असत्य और अन्धकार की शक्तियों का कोई भविष्य नहीं है, उनका पराभव सुनिश्चित है| भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र होगा .... इसमें मुझे तो कोई संदेह नहीं है| जैसे हर कार्य अपने तय समय पर होता है वैसे ही भारतवर्ष का पुनश्चः एक आध्यात्मिक राष्ट्र बनने का समय आ गया है| भगवान की ऐसी ही इच्छा है|
.
रात्री को सोने से पूर्व भगवान का ध्यान कर के सोयें, प्रातःकाल उठते ही फिर भगवान का ध्यान करें, और निरंतर अपनी हर सांसारिक गतिविधि के मध्य भगवान का स्मरण रखें| जीवन का केंद्रबिंदु और अपने हर कार्य का कर्ता परमात्मा को बनाएँ, स्वयं तो निमित्त मात्र ही बन कर रहें| भगवान से प्रेम हमारा स्वभाव बन जाए| हम स्वयं ही प्रेममय बन जाएँ|
.
चिंता की कोई बात नहीं है| भगवान का स्पष्ट आश्वासन है .....
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि|१८:५८||

जितनी भी हो सके, जितनी भी संभव हो, साधना करें .....
"नेहाभिक्रम-नाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पम् अप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"
समभाव में स्थित होने का सदा प्रयास करें जो साधना द्वारा ही संभव है .....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्धय्-असिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||"
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१८

"विजय दिवस" पर अभिनन्दन, बधाई और शुभ कामनाएँ .....

"विजय दिवस" पर अभिनन्दन, बधाई और शुभ कामनाएँ .....
-------------------------------------------------------------------
विजय दिवस ..... १६ दिसंबर १९७१ के दिन भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है| इस युद्ध में ९३००० पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था और एक नए देश 'बांग्लादेश' का जन्म हुआ| इस युद्ध में भारत के लगभग ३९०० सैनिक शहीद हुए और ९८५१ घायल हुए|
.
इस युद्ध में हुतात्मा भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि, और उस समय के सभी अब तो वयोवृद्ध हुए, युद्ध में जिन्होनें सक्रीय भाग लिया था, War Veterans (जिनमें मैं भी हूँ) का अभिनन्दन !
.
(१९७१ के युद्ध में बंगाल की खाड़ी में भारतीय नौसेना की एक ही पनडुब्बी I.N.S.Khanderi थी, जिसने उस समय के पूर्वी पाकिस्तान जाने के समुद्री मार्ग को अवरुद्ध कर युद्ध में सक्रीय भाग लिया था. उस पनडुब्बी पर मैं नियुक्त था. कुछ समय के लिए मैं नौसेना में था और १९६५ व १९७१ के युद्धों में सक्रीय भाग लिया था. १९६५ के युद्ध में मैं नौसेना के फ्लैगशिप I.N.S.Mysore पर नियुक्त था. दोनों युद्धों के सारे घटनाक्रम मुझे पूरी तरह याद हैं. मेरे कई मित्रों ने १९७१ के युद्ध में बड़े साहसिक कार्य किये थे).
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१८

भीड़ में अकेला हूँ .....

भीड़ में अकेला हूँ, पर अपनी मान्यताओं पर दृढ़ हूँ| मेरी मान्यता है कि वास्तविक विकास आत्मा का विकास है| देशभक्त, स्वाभिमानी, चरित्रवान, ईमानदार, निष्ठावान, शिक्षित, कार्यकुशल और राष्ट्र को समर्पित नागरिक ही राष्ट्र की वास्तविक संपत्ति हैं| वे होंगे तो सब कुछ सही होगा| हमें अपनी अस्मिता और राष्ट्रीय चरित्र की रक्षा करनी चाहिए| साफ सुथरी चौड़ी चौड़ी सड़कें और अति सुन्दर बड़े बड़े भवनों से ही राष्ट्र विकसित नहीं होता|
कृपा शंकर
१२ दिसंबर २०१८

Friday 14 December 2018

हम गुलाम क्यों हुए और अब भी क्यों हैं ? .....

हम गुलाम क्यों हुए और अब भी क्यों हैं ? .....
.
भारत में सद्गुण विकृति के कारण एक ऐसी सोच आ गयी थी कि युद्ध करना सिर्फ क्षत्रिय वर्ग का ही कार्य है| अतः समाज ने एकजूट होकर विदेशी आक्रान्ताओं का प्रतिकार नहीं किया| समाज और राष्ट्र की भावना विकसित नहीं हो पाई| जो भी युद्ध में जीतता, उसी की आधीनता सब लोग स्वीकार कर लेते| यह भारत के पराभव और पराधीनता का मुख्य कारण था|
.
जब मध्य एशिया और पश्चिम एशिया से विदेशी लुटेरे आये तब पूरे समाज ने एकजूट होकर उनका प्रतिकार नहीं किया| तभी भारत पराधीन हुआ|
.
सबसे पहिले जो पुर्तगाली और अँगरेज़ भारत में आये थे वे सब समुद्री डाकू थे| अंग्रेजों ने तो सबसे पहिले समुद्री मार्ग से सूरत में आकर अपनी छावनी बनाई जिसका विरोध किसी ने नहीं किया| फिर कुछ भाड़े के सिपाहियों को साथ लेकर घोड़ों पर बैठकर सूरत से आगरा आये जहाँ मुग़ल बादशाह जहाँगीर को भेंट में शराब, फिरंगी औरतें, और कुछ लूटे हुए कीमती रत्न देकर, भारत में निर्बाध व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की| फिर धीरे धीरे जो हुआ उसी का परिणाम था भारत पर अंग्रेजों की गुलामी|
.
अंग्रेजों ने मराठों को कुटिलता से हराकर भारत का राज्य प्राप्त किया था| मराठों ने और महाराजा रणजीतसिंह ने मुगलों को हराकर लगभग सारा भारत उन से मुक्त करा लिया था| पर हमारी ही विकृतियों से हम फिर गुलाम बने| इसमें किसी अन्य का दोष नहीं था|
.
अँगरेज़ भारत से गए इसका कारण था ..... द्वितीय विश्वयुद्ध में उनकी पराजय, आज़ाद हिन्द फौज, १९४६ में नौसेना का विद्रोह, भारतीय सिपाहियों द्वारा अँगरेज़ अधिकारियों के आदेश न मानना, और क्रांतिकारियों का भय| जाते जाते वे सत्ता अपने मानस पुत्रों को सौंप गए| मानसिक रूप से हम अभी भी गुलाम हैं|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ दिसंबर २०१८

लोगों को मुफ्तखोर, हरामी और बेईमान मत बनाओ .....

लोगों को मुफ्तखोर, हरामी और बेईमान मत बनाओ .....
----------------------------------------------------------
मुफ्त का सामान बाँटना बंद करो| फ्री राशन. फ्री शौचालय, फ्री गैस, फ्री मकान .... सब बंद करो| लोगो को काम करना सिखाओ, उनको ईमानदार, देशभक्त, मेहनती और चरित्रवान बनाओ| उनमें काम करने की आदत डालो| लोगों को भिखारी और बेईमान मत बनाओ| योग्यता का सम्मान करो, सब तरह का आरक्षण बंद करो| समान नागरिक संहिता लाओ, तुष्टिकरण बंद करो| 

जनसंख्या नियंत्रित करो, धारा ३७०, ३५अ, ३०, जैसी देश विरोधी धाराएँ हटाओ| वास्तविक विकास आत्मा का विकास है| देशभक्त, स्वाभिमानी, चरित्रवान, ईमानदार, निष्ठावान, शिक्षित, कार्यकुशल और राष्ट्र को समर्पित नागरिक ही राष्ट्र की वास्तविक संपत्ति हैं| वे होंगे तो सब कुछ सही होगा| हमें अपनी अस्मिता और राष्ट्रीय चरित्र की रक्षा करनी चाहिए| साफ सुथरी चौड़ी चौड़ी सड़कें और अति सुन्दर बड़े बड़े भवनों से ही राष्ट्र विकसित नहीं होता|

भारत का मतदाता .....

भारत का मतदाता .....
--------------------
भारत के एक सामान्य मतदाता को क्या पता है कि ..... (१) राजकोषीय घाटा क्या होता है?, (२) जो सब्सिडी में और निःशुल्क वितरण में मिलता है उसका मूल्य कौन चुकाता है?, (३) जीडीपी रेट में वृद्धि क्या होती है?.
भारत का मतदाता सदा शिकायत ही करता रहता है| उसे प्याज और दाल बहुत सस्ते में चाहिए, उसी समय किसान को उसकी ऊंची कीमत भी मिलनी चाहिए| भारत के मतदाता में ऐसी धारणा है कि हर कार्य सरकार ही करेगी, उसे तो शिकायत और निंदा के सिवाय और कुछ भी नहीं करना है| भारत के मतदाता को दूरगामी परिणामों के बारे कोई चिंता नहीं है| उसको तो सब कुछ इसी समय और अभी चाहिए| भारत के मतदाता की याददाश्त बहुत कम है और भविष्य की दृष्टी भी बहुत सीमित है| भूतकाल को तो वह बहुत ही शीघ्र भूल जाता है|
.
भारत का मतदाता जाति के आधार पर मतदान करता है| जातिवाद सरकारी आरक्षण के कारण जीवित है| इस जातिवादी आरक्षण के कारण भारत में योग्यता की कोई कद्र नहीं है, प्रतिभाशाली लोग देश छोड़कर चले जाते हैं, और अयोग्य लोग प्रशासन चलाते हैं|
.
भारत के समृद्ध किसान ऋण माफी के लिए आन्दोलन करते हैं| पर उस ऋण की कीमत कौन चुकाएगा? वह राशि तो देश के नागरिकों से ही करों के रूप में वसूली जायेगी| क्या उस ऋण की राशि को सचमुच कृषि में ही लगाया जाता है? उससे कृषि मजदूर और बटाई पर खेती करने वाले को क्या लाभ होता है?
.
भारत की रक्षा व्यवस्था पांच वर्ष पहिले से बहुत अच्छी है| पाकिस्तान और चीन भारत से युद्ध करने में घबराते हैं| पर यह कैसे हुआ इसका मतदाता को क्या पता है?
.
भारत के दूरगामी हितों के बारे में ही सोचते रहने से कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता| चुनाव वही जीत सकता है जो खाओ और खाने दो की नीति में विश्वास रखता हो| बड़ी जटिल अवस्था है भारत की| भगवान ही मालिक है| वही २०१९ के चुनावों में भारत का बेड़ा पार लगाएगा|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१३ दिसंबर २०१८

Tuesday 11 December 2018

भोजन एक यज्ञ है जिसे यज्ञकर्म की भाँति ही करें .....

भोजन एक यज्ञ है जिसे यज्ञकर्म की भाँति ही करें .....
------------------------------------------------------
आज श्रीमाँ द्वारा भोजन से पूर्व की जाने वाली एक प्रार्थना पढ़ रहा था| बड़ी प्रभावशाली प्रार्थना है .....
"हे मधुर स्वामी, परम सत्य, मैं अभीप्सा करती हूँ कि मैं जो भोजन कर रही हूँ, वह सारे शरीर के कोषाणुओं में तुम्हारी सर्वज्ञता और तुम्हारी सर्वशक्तिमत्ता को भर दे|"
.
भगवान सर्वज्ञ हैं इसलिए शरीर का हर कोषाणु सचेतन बन जाता है, उनकी सर्व-शक्तिमत्ता से हर कोषाणु सर्व-शक्तिमान बन जाता है| हमें अपनी भोजन सम्बन्धी आदतें भगवान को अर्पित कर देनी चाहिएँ, वे हमारी चेतना में से उन आदतों को दूर कर देंगे| हमें भोजन यथासंभव एकांत में बैठकर इस भाव से करना चाहिए कि स्वयं भगवान इसे ग्रहण कर रहे हैं और इससे सारी सृष्टि को पुष्टि और तृप्ति मिल रही है| गीता में भगवान कहते हैं ....
"अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः| प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्||१५:१४||"
.
भगवान ही पेट में रहने वाले जठराग्नि वैश्वानर हैं जो भक्ष्य, भोज्य, लेह्य व चोष्य अन्न को प्राण और अपान वायु से संयुक्त कर पचाते हैं| जो खाया जा रहा है, वह अन्न भी सोम रूप में भगवान हैं| खाने वाले भी भगवान हैं और जिसे खाया जा रहा है वह भी भगवान हैं| यह प्रक्रिया भी भगवान् हैं| गीता में भगवान कहते हैं .....
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्| ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना||४:२४||"
भोजन से पूर्व उपरोक्त मन्त्र का पाठ और इसके साथ शान्तिमंत्र का पाठ अधिकांश साधक करते हैं| पंचप्राणों को भी प्रथम पाँच ग्रासों के साथ स्मरण करते हैं| कम से कम प्रथम ग्रास के साथ ... "ॐ प्राणाय स्वाहा" ... इस मन्त्र को तो मानसिक रूप से अवश्य बोलना चाहिए|
.
ब्रह्मवेत्ता पुरुष जिस साधन द्वारा अग्निमें हवि अर्पण करता है उस साधन को ब्रह्मरूप ही देखा करता है| ब्रह्म ही अर्पण है, हवि भी ब्रह्म है, अग्नि भी ब्रह्म है, कर्ता भी ब्रह्म है, और क्रिया भी ब्रह्म है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ दिसंबर २०१८

उपासना में श्रवण परम्परा यानी सुनने का महत्व :---

उपासना में श्रवण परम्परा यानी सुनने का महत्व :---
-----------------------------------------------------
संत-महात्माओं के मुख से सुना है कि वेदांत में श्रवण करने यानि सुनने का बड़ा महत्व है| श्रवण परम्परा से ही वेदों का ज्ञान गुरु से शिष्यों में आया अतः वेदों के ज्ञान को श्रुति कहते हैं| ब्राह्मणों ने इन्हें बार बार सुन कर ही अभ्यास किया और उन्हें कंठस्थ कर के जीवित रखा| इसी के कारण वेदों का ज्ञान जीवित रहा अन्यथा ये कभी के भुला दिए गए होते| सिर्फ लिख कर ही किसी ज्ञान को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता| विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारे करोड़ों ग्रंथों की पांडुलिपियों को नष्ट किया| भट्टियों में लकड़ी की जगह हिन्दुओं के धर्मग्रंथों की पांडुलिपियाँ जलाई जाती रहीं, पुस्तकालयों में जलाई हुई अग्नि महीनों तक जलती रहतीं| पर महत्वपूर्ण ग्रंथों को रट रट कर स्मृति में रख कर ब्राह्मण वर्ग ने उनको जीवित रखा| बाद में अंग्रेजों ने गुरुकुल पद्धति को प्रतिबंधित कर के ब्राह्मणों को इतना दरिद्र बना दिया कि वे अपने बच्चों को पढ़ाने में भी असमर्थ हो गए और फिर अंग्रेजों ने उनसे सारी पांडुलिपियाँ रद्दी के भाव खरीद लीं| फिर भी भगवान की कृपा से कुछ समर्पित ब्राह्मणों ने रट रट कर वेदों के ज्ञान को जीवित रखा| आज उन्हीं के कारण वेद सुरक्षित हैं|
.
अब मैं उपासना में श्रवण के महत्व की चर्चा करूँगा| महात्माओं के मुख से सुना है कि श्रवण करने से धर्म का ज्ञान होता है, कुबुद्धि का त्याग होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और भवसागर से मुक्ति होती है| पर क्या सुनें ???
.
इस विषय पर योगदर्शन में भी सूत्र हैं, और अनेक महात्माओं द्वारा लिखी हुई पुस्तकें भी हैं| इसके बारे में मैं यही सुझाव दूँगा कि किसी सिद्ध श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से इसकी विधि सीखें और उनसे दीक्षा लेकर ही उसका अभ्यास करें| गुरु-परम्परा से बाहर इस साधना की विधि की चर्चा करने का निषेध है| अतः निषेधात्मक कारणों से मैं इस विषय पर और चर्चा नहीं करूँगा| जितना बोलने का मुझे अधिकार है उतना ही बोलूँगा, उस से अधिक नहीं| मैं बात अनाहत नाद की कह रहा था| कुछ आचार्यों ने इसे जठराग्नि की ध्वनि बताया है, कुछ ने सुषुम्ना में जागृत हो रही कुण्डलिनी की आवाज़| यह बहुत ही शक्तिशाली साधना है जिसे किसी अधिकृत आचार्य से ही सीखें| बृहदारण्यक उपनिषद् में इस साधना की महिमा ऋषि याज्ञवल्क्य ने राजा जनक की सभा में सभी उपस्थित ऋषियों को बताई है|
.
ॐ श्री गुरवे नमः ! ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

संत-महात्माओं के सत्संग से प्राप्त कुछ ज्ञान की बातें .....

संत-महात्माओं के सत्संग से प्राप्त कुछ ज्ञान की बातें .....
----------------------------------------------------------
(१) किसी भी शब्द को बोलने से पहले दस बार सोचें| अनमोल हैं हमारे वचन| हमारी वाणी मिथ्या न हो| लोभ-लालच में आकर झूठ न बोलें| सत्य ही नारायण है और सत्य ही परमशिव परमात्मा है| असत्य बोलने से हमारी वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से की गयी कोई भी प्रार्थना, जप, स्तुति आदि कभी फलीभूत नहीं होती|
.
(२) द्वैत-अद्वैत, साकार-निराकार सब परमात्मा ही है| इस विषय पर कोई विवाद न करें|
.
(३) हम लोग अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अनेक मजारों पर जाकर अपना सिर पटकते हैं, विभिन्न देवी-देवताओं की मनौतियाँ करते हैं, यह हमारा लोभ ही है| हमें पता ही नहीं चलता कि ऐसा करने से हमारी चेतना कितनी नीचे चली जाती है| हम मंगते भिखारी ही बने रहते हैं|
.
(४) भगवान् तो हमारे साथ सदैव हैं, यहीं हैं, इसी समय हैं, निरंतर हैं और सदा रहेंगे| अब भय और चिंता किस बात की? जहाँ भगवान हैं वहाँ चिंता और भय हो ही नहीं सकते| भय की सीमा इतनी ही है कि वह कोई गलत कार्य करने से पूर्व हमें चेतावनी दे दे, बस, इससे अधिक और कुछ नहीं| जो लोग भगवान से डरना सिखाते हैं वे गलत शिक्षा दे रहे हैं| भगवान तो प्रेम हैं, प्रेम से भय कैसा? हम लोग अपने बच्चों को डरा डरा कर डरपोक बना देते हैं, जो गलत है| किसी को भी भयभीत करना सबसे बड़ा दंड है और पाप भी है|
.
(५) भगवान को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| उस जन्मसिद्ध अधिकार को प्राप्त करने के लिए कैसी प्रार्थना? क्या आप अपने माता-पिता का प्यार पाने के लिए प्रार्थना करते हैं? वह तो आपका अधिकार है| कोई प्रार्थना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई गिडगिडाना नहीं, सिर्फ प्यार करना, सिर्फ प्यार करना, सिर्फ प्यार करना, और वे भी आपको प्यार करने को बाध्य हो जायेंगे क्योंकि यह उनका स्वभाव है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ दिसंबर २०१८

Monday 10 December 2018

चिंता और भय हमारे सबसे बड़े छिपे हुए शत्रु हैं ......

 चिंता और भय हमारे सबसे बड़े छिपे हुए शत्रु हैं ......
------------------------------------------------------
ये हम पर कब प्रहार करते हैं हमें पता ही नहीं चलता| जब तक इनके दुष्परिणाम सामने आते हैं तब तक बहुत देर हो जाती है| प्रकृति ने हमें भय और चिंता मात्र सतर्क रहने के लिए ही प्रदान की हैं, न कि इनका शिकार बनने के लिए| बीमारी, दरिद्रता, अपमान, अपेक्षाओं का पूरा न होना, और मृत्यु की चिंता हमें सबसे अधिक होती हैं| मनोचिकित्सकों के अनुसार भय हमारी इच्छा शक्ति को समाप्त कर हमें मानसिक रूप से विक्षिप्त कर देता है| चिंता ह्रदय और फेफड़ों की क्षमता को कम कर देती है| यदि आपको विश्वास न हो तो यह बात आप मनोचिकित्सकों से पूछ सकते हैं| इससे शरीर में लकवा भी मार सकता है और अकाल मृत्यु भी हो सकती है| भगवान ने यह देह हमें एक उपकरण के रूप में दी है पर इसमें पूर्णता इसलिए नहीं दी कि हम इस देह में रहते हुए पूर्णता की प्राप्ति कर सकें|
.
भय और चिंता एक मृत्यु दंड है जो हम स्वयं को बिना किसी कारण के देते हैं| ये भय और चिंता हमें पता नहीं कितनी बार मृत्यु दंड देते है| बार बार या निरंतर कष्ट पाने से तो साहस के साथ एक बार मर जाना ही अधिक अच्छा है| हम यह हाड-मांस की देह नहीं हैं, शाश्वत आत्मा हैं| यह देह एक वाहन है जो भगवान ने हमें लोकयात्रा के लिए दिया है| परमात्मा में गहन आस्था रखें और अपनी सारी चिंताएँ और भय भगवान को सौंप दें| भगवान सब परिस्थितियों में हमारी रक्षा करता है| मेरी ही नहीं हम सब की रक्षा भगवान ने अनेक बार की है| एक ऐसी चेतना का विकास करें जिसमें कोई हमें विचलित न कर सके| ऐसे नकारात्मक लोगों का साथ विष की तरह छोड़ दो जो जीवन में सदा शिकायत ही शिकायत, निंदा ही निंदा और असंतोष ही असंतोष व्यक्त करते रहते हैं| समष्टि के कल्याण में ही हमारा कल्याण है अतः निरंतर समष्टि के प्रति सद्भावना और प्रेम व्यक्त करते रहो| परमात्मा कोई भय या डरने का विषय नहीं है| जो लोग परमात्मा से डरने की बात कहते हैं वे गलत शिक्षा दे रहे हैं| परमात्मा तो प्रेम का विषय है| जो परमात्मा को प्रेम नही कर सकते वे किसी को भी प्रेम नहीं कर सकते| मेरा प्रत्यक्ष अनुभव तो यही है कि जब हम परमात्मा से प्रेम करते हैं तो प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमें प्रेम करेगी|
.
हर रात सोने से पूर्व यह प्रार्थना करके सोयें .... "हे जगन्माता, आप मेरी निरंतर रक्षा कर रही हैं, आप सदा मेरे साथ हैं, इस जीवन का समस्त भार आपको समर्पित है| मेरे चैतन्य में आप निरंतर बिराजमान रहो| ॐ ॐ ॐ ||" फिर एक बालक की तरह जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर सो जाओ| दिन का प्रारम्भ भी परमात्मा के ध्यान के साथ करो| पूरे दिन उनकी स्मृति बनाए रखें|
.
ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
१० दिसंबर २०१६

हिन्दुओ, स्वयं धर्माचरण द्वारा अपने धर्म की रक्षा करो .....

हिन्दुओ, स्वयं धर्माचरण द्वारा अपने धर्म की रक्षा करो .....
-----------------------------------------------------------
हमने धर्म की रक्षा की तो हमें ईश्वर के आशीर्वाद प्राप्त होंगे| हिन्दुओं को धर्मशिक्षा न मिलने से ही उनके द्वारा धर्माचरण नहीं होता, व धर्म के प्रति जागरूकता नहीं होती| इसी कारण हमें हिन्दू धर्म पर मंडरा रहे संकटों का ज्ञान नहीं है| हिन्दुओं को धर्मरक्षा हेतु धर्म के प्रति उदासनीता को छोड़कर संगठित होना चाहिए| भारत के वर्तमान संविधान के हिन्दू विरोधी प्रावधानों और वर्तमान शिक्षा पद्धति ने हिन्दुओं की विचारधारा को ही बदल दिया है| सर्वत्र भोगवाद बढ़ा है, हिन्दू देवताओं का अनादर हो रहा है, और मंदिरों का सरकारीकरण होने से श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धापूर्वक अर्पित धन का दुरूपयोग हो रहा है| धर्म ही ईश्वर है| हमने धर्म की रक्षा की तो ईश्वर के आशीर्वाद हमें प्राप्त होंगे|
९ दिसंबर २०१८ 

ईसाईयत में कर्मफलों का सिद्धांत .....

ईसाईयत में कर्मफलों का सिद्धांत .....
------------------------------------
"He that leadeth into captivity shall go into captivity: he that killeth with the sword must be killed with the sword.
Revelation 13:10 KJV."
उपरोक्त उद्धरण प्राचीन लैटिन बाइबल की Revelation नामक पुस्तक के किंग जेम्स वर्ज़न से लिया गया है| एक धर्मगुरु अपने एक नौकर के कान अपनी तलवार से काट देता है जिस पर जीसस क्राइस्ट ने उसे तलवार लौटाने को कहा और उपरोक्त बात कही|
(विडम्बना है कि उसी जीसस क्राइस्ट के अनुयायियों ने पूरे विश्व में सबसे अधिक अत्याचार और नर-संहार किये).
For all who will take up the sword, will die by the sword.
Live by the sword, die by the sword.
जो दूसरों को तलवार से काटते हैं वे स्वयं भी तलवार से ही काटे जाते हैं ....
प्रकृति किसी को क्षमा नहीं करती| कर्मों का फल मिले बिना नहीं रहता|

Saturday 8 December 2018

असुरों व पिशाचों से मनुष्य नहीं लड़ सकता. उसे आत्मरक्षार्थ दैवीय शक्तियों को जागृत करना ही होगा ....

असुरों व पिशाचों से मनुष्य नहीं लड़ सकता. उसे आत्मरक्षार्थ दैवीय शक्तियों को जागृत करना ही होगा ....
>
सूक्ष्म जगत अत्यधिक विशाल है, उसमें भी अनेक वर्ग हैं| यह भौतिक जगत उसके समक्ष बहुत छोटा है| सूक्ष्म जगत की आसुरी पैशाचिक शक्तियाँ हम पर हावी हो रही है, उन्होंने अधिकांश मनुष्यों को अपना उपकरण बना रखा है| धर्म की रक्षा हेतु हमें संगठित भी होना होगा और आध्यात्मिक साधना द्वारा दैवीय शक्तियों का जागरण भी करना होगा| पिछले दो सहस्त्र वर्षों से आसुरी शक्तियाँ हम पर बहुत अधिक हावी हो रही हैं| इसके लिए हमें आपस के सारे मतभेद भुलाकर संगठित भी होना होगा और भगवान का आश्रय/शरण भी लेनी होगी|
>
माँ भगवती की शक्तियाँ .... नौ दुर्गा / दश महाविद्याएँ, सप्त चिरंजीवी, और भगवान श्रीराम/श्रीकृष्ण जैसे अवतार ही हमारी रक्षा कर सकते हैं| अन्यथा हम नष्ट होने के लये तैयार रहें| इसके अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है| हमें अपने जीवन का केंद्रबिंदु परमात्मा को बनाना होगा, और उपासना द्वारा निज जीवन में अव्यक्त ब्रह्म को व्यक्त करना होगा| हृदय में परमप्रेम (भक्ति) जागृत करें व परमात्मा की उपासना करें| हृदय में परमप्रेम होगा तो भगवान स्वयं मार्गदर्शन करेंगे|
>
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
९ दिसंबर २०१८

सौलह दिन पहिले ही क्रिसमस की शुभ कामनाएँ ......

सौलह दिन पहिले ही क्रिसमस की शुभ कामनाएँ ......
-----------------------------------------------------
(पूरा लेख पढ़े बिना कोई प्रतिक्रिया न दें और अभद्र भाषा का प्रयोग न करें)
.
मेरे कई देशी/विदेशी मित्र ऐसे हैं जो भगवान श्रीकृष्ण और गीता में आस्था रखते हैं, ध्यान साधना भी करते हैं, पर अपने ईसाई मूल वश जीसस क्राइस्ट से भी बंधे हुए हैं| ऐसे कुछ अमेरिकन व इटालियन मित्रों के साथ मैंने दो बार क्रिसमस मनाई है| २४ दिसंबर को पूरे दिन उनके साथ भगवान का ध्यान भी किया है और रात भर खूब भजन (Christmas Carols) भी गाये हैं|
.
सौलह दिन बाद क्रिसमस आने वाली है| अतः कुछ बातों का ध्यान रखें.....
(१) यह सांता क्लॉज़ नाम का फर्जी बूढ़ा जिसका जिक्र बाइबिल में कहीं भी नहीं है, भारत में कभी भी घुस नहीं सकता| वह अपनी स्लेज गाड़ी पर आता है जिसे रेनडियर खींचते हैं| भारत में इतनी बर्फ ही नहीं पड़ती जहाँ स्लेज गाड़ी चल सके| भारत में रेनडियर भी नहीं होते| अतः अपने बच्चों को सांता क्लॉज न बनाएँ| यदि उनके स्कूल वाले बनाते हैं तो सख्ती से उन्हें मना कर दें|
(२) क्रिसमस सादगी से मनाएँ| बिजली की बरबादी न हो ताकि गरीबों के घरों में भी रोशनी रह सके|
(३) पौधों को जबरदस्ती काट कर क्रिसमस ट्री नहीं बनाएँ|
(४) क्रिसमस पर ईसाई श्रद्धालु खूब शराब पीते हैं और टर्की नाम के एक पक्षी का मांस खाते हैं| नाच-गाना भी खूब होता है| अतः वातावरण में एक तामसिकता आ जाती है| इसका प्रतिकार करने के लिए दिन में हवन करें, और रात्री में भगवान का ध्यान करें|
.
२४ दिसंबर की पूरी रात मैं यथासंभव भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करूंगा| आप कहीं भी हो, मेरे साथ ध्यान कीजिये| अगले दिन हवन भी करूंगा| हर रात क्रिसमस हो और हर दिन नववर्ष हो| आप सब का कल्याण हो|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! हर हर महादेव !
कृपा शंकर
८ दिसंबर २०१८

मनोनिग्रह और धार्मिक-मनोरंजन .....

मनोनिग्रह और धार्मिक-मनोरंजन .....
--------------------------------------
मनोनिग्रह और मनोरंजन में कुछ तो अंतर होगा ही जो स्पष्ट होना चाहिए| मनोरंजन ..... धार्मिक-मनोरंजन भी हो सकता है, उस से क्या व कितना लाभ है, और कितनी आध्यात्मिक प्रगति की संभावना है? मुझे लगता है आजकल भक्ति के नाम पर धार्मिक-मनोरंजन ही अधिक हो रहा है| धार्मिक-मनोरंजन कुछ कुछ बुराई की ओर जाने से तो रोकता है पर उसमें आगे और प्रगति की संभावनाएँ क्रमशः क्षीण होती जाती हैं, और आध्यात्मिक प्रगति अवरुद्ध हो जाती है|
.
व्यवहारिक रूप से देखने में आता है कि व्यक्ति जितना धार्मिकता का दिखावा या ढोंग करता है उतना ही उसमें झूठ, छल-कपट, अहंकार, व हिंसा आ जाती है| धार्मिकता का दिखावा अत्यधिक भयावह हिंसा को जन्म देता है| पिछले दो हज़ार वर्षों का इतिहास देख लीजिये, सारी हिंसाएँ धर्म/मज़हब/रिलीजन के नाम पर ही हुई हैं| हज़ारों करोड़ मनुष्यों की ह्त्या और अनेक सभ्यताओं का क्रूरतम विनाश धर्म/मज़हब/रिलीजन के नाम पर ही हुआ है| यह तो दूर की बात है, अपने समाज में ही देख लीजिये, जो व्यक्ति जितना धार्मिकता का दिखावा करता है वह उतना ही अधिक स्वार्थी और हिंसक है|
.
अंतःकरण में मन अकेला ही नहीं है, उसके साथ बुद्धि, चित्त और अहंकार भी हैं| अकेला मनोनिग्रह कभी सफल नहीं हो सकता| उसके साथ बुद्धि, चित्त और अहंकार का निग्रह भी आवश्यक है| यह सब के अलग अलग विचार का विषय है कि पूरे अंतःकरण की शुद्धि और उसका परमात्मा को समर्पण कैसे हो? सिर्फ संकल्प से या विचार से ही समर्पण नहीं हो सकता| गीता में भगवान कहते हैं .....
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||
यहाँ "धर्म" शब्द का क्या अभिप्राय है, यह समझना अति आवश्यक है| इस श्लोक की व्याख्या करने में सभी अनुवादकों, भाष्यकारों, समीक्षकों और टीकाकारों ने अपनी सम्पूर्ण क्षमता एवं मौलिकता की पूँजी लगा दी है| व्यापक आशय के इस महान् श्लोक के माध्यम से प्रत्येक दार्शनिक ने अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है|
.
अंत में मैं एक ही निवेदन करूंगा कि हम समय समय पर विचार करते रहें कि क्या हम सचमुच आध्यात्मिक प्रगति कर रहे हैं? यदि नहीं, तो कहाँ पर अटके हुए हैं, और वह अवरोध दूर कैसे हो?
.
आप सब प्रबुद्ध आत्माओं को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
८ दिसंबर २०१८

पृथकता का बोध हमारी अज्ञानता है .....

पृथकता का बोध हमारी अज्ञानता है .....
---------------------------------------
(१) प्राप्त करने योग्य क्या है ? कुछ भी नहीं| सब कुछ तो पहिले से ही मिला हुआ है| भगवान को पाने की बात अब इस समय कुछ विचित्र सी लगती है, क्योंकि कभी उनको खोया ही नहीं था|
(२) भगवान क्या स्वयं से परे हैं? बिलकुल नहीं| भगवान कहीं बाहर या दूर या स्वयं से परे नहीं हैं| वे स्वयं ही सब कुछ हैं| वे अनुभूत नहीं होते क्योंकि हमने स्वयं को आसक्ति के दोषों यानी मान और मोह से ढक रखा है| वे कहते हैं .....
निर्मानमोहा जितसंगदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः |
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत् ||१५:५||
इसका अर्थ स्वयं समझें| यहाँ "अध्यात्मनित्या" शब्द पर विशेष विचार करें| क्या भगवान का यह आदेश नहीं है कि हम निरंतर आत्म तत्व यानि परमात्मा से एकत्व का चिंतन करें ?
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
८ दिसंबर २०१८

मौनी बाबा हरिदास .... (एक मधुर स्मृति) .....

मौनी बाबा हरिदास .... (एक मधुर स्मृति) .....
.
मौनी बाबा हरिदास से कोई १०-१२ वर्ष पूर्व हरिद्वार के पास उनके द्वारा चलाये जा रहे एक अनाथाश्रम में दो बार मिलना हुआ था| मैं हर दृष्टी से उनको एक महान संत कह सकता हूँ| वे हर समय अपने निष्ठावान पंद्रह-बीस अमेरिकन शिष्यों से घिरे रहते थे| उनके शिष्य भी कोई छोटे मोटे लोग नहीं, पश्चिमी जगत की कई बड़ी बड़ी हस्तियाँ भी उनके शिष्यों में थीं| युवावस्था में वे एक स्थापत्य इंजिनियर (Architect Engineer) थे और अधिकतर अमेरिका के केलिफोर्निया प्रांत में ही रहे| डेढ़-दो साल में एक बार भारत आते थे और हरिद्वार के पास अपने स्व निर्मित एक आश्रम में रहते थे जो अनाथ बालक-बालिकाओं का एक आश्रय स्थल, अनाथों के लिए निःशुल्क विद्यालय/कॉलेज/अस्पताल और कृषि फार्म था, जिसकी सारी व्यवस्था उनकी अमेरिकन शिष्याएँ करती थीं| अनेक विशाल मंदिर और भवन उन्होंने विश्व के अनेक स्थानों पर बनवाए| एक दिन उन्हें वैराग्य हुआ और वे विरक्त साधू बन गए व मौन धारण कर लिया|
.
मुझे आज ही पता चला कि इसी वर्ष २५ सितम्बर २०१८ को ९५ वर्ष की आयु में उन्होंने अमेरिका में देह त्याग कर दिया और ब्रह्मलीन हो गए| ऐसे महान संत को श्रद्धांजलि|
.
अपने साथ में वे एक स्लेट रखते थे| कुछ भी कहना होता तो उस स्लेट पर लिख देते| उनके शिष्य उसी समय उस लेखन की फोटो खींच लेते| मैंने उनसे वेदान्त व योग दर्शन पर एक लघु चर्चा की थी जिसमें उन्होंने मेरे हर प्रश्न का उत्तर संक्षिप्त में स्लेट पर लिख कर दिया| पूरी चर्चा की विडियो रिकॉर्डिंग हो गयी| बाद में उन्होंने स्व लिखित एक पुस्तक मुझे भेंट की जो योग दर्शन पर उनके उपदेशों का संग्रह था| उस पुस्तक का नाम ही था .... "From the slate of Baba Hari Das".
.
वाणी से वे मौन थे पर अपनी भावभंगिमा, स्लेट पर लेखन और आध्यात्मिक शक्ति से अपनी बात दूसरो को समझा देते थे| अपने व्यस्ततम जीवन में भी मौन रहकर अपना सन्देश दूसरों तक पहुंचाने में उन्हें कभी कोई कठिनाई नहीं हुई| यह उनका आध्यात्मिक बल था|
.
एक पश्चिमी दार्शनिक का कथन है कि .... “It is not speaking that breaks our silence, but the anxiety to be heard.”
यह बात सत्य है| मौन का अपना महत्त्व है जिसको वो ही समझ सकता है जिसने मौन रहकर तपस्या की हो| परमात्मा की हमारे भीतर मौन उपस्थिति ही हमें शांति प्रदान करती है| दूसरे हमारी बात सुनें ..... यह कामना बड़ी दुखदायी है|
एक अन्य पश्चिमी दार्शनिक का कथन था कि .... "Lord, Thou hast made us for Thyself, and our heart is restless until it finds its rest in Thee".
.
आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब में परमात्मा को नमन!
ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०१८

Friday 7 December 2018

जीवन का हर क्षण परमात्मा का आशीर्वाद है .....

जीवन का हर क्षण परमात्मा का आशीर्वाद है .....
-------------------------------------------------
आज प्रातः उठते ही यह देखकर मन बड़ा प्रसन्न हुआ कि नित्य की तरह आज भी मैं परमात्मा की कृपा से परमात्मा का ही चिंतन, मनन और ध्यान करने के लिए जीवित हूँ| यह जीवन जीने के लिए परमात्मा ने दिया है, और वे ही इस जीवन को जी रहे हैं| आज का दिन ही नहीं अपितु हर दिन जीवन का श्रेष्ठतम दिन है, और बीते हुए दिन से अधिक अच्छा होगा| गुरु व परमात्मा को प्रणाम कर थोड़ी देर उनका ध्यान किया| अब कुछ व्यायाम करूँगा और पास के ही एक बगीचे में घूमने जा रहा हूँ| आधा घंटा वहाँ घूमूँगा और मतदान केंद्र पर सबसे पहिले पहुँच कर ठीक प्रातः ८ बजे (राज्य विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव में) अपने विवेक से मतदान करूँगा जो मेरा राष्ट्रीय दायित्व है|
.
प्रातःकाल स्वयं को जीवित पाना परमात्मा का एक आशीर्वाद है| यह जीवन परमात्मा द्वारा उन्हीं की उपासना के लिए दिया हुआ एक सुअवसर है, जिसे वे स्वयं ही जीते हैं| जीवन का हर क्षण आनंद है| पूरा ह्रदय प्रेम से भर गया है|
.
आनंद ही आनंद है आनंद में रहेंगे,
कल क्या हुआ कल क्या होगा चिंता नहीं करेंगे.
हम रामजी के रामजी हमारे ही रहेंगे,
कल क्या हुआ कल क्या होगा चिंता नहीं करेंगे..
.
चिंता करने के लिए माँ भगवती के रूप में स्वयं परमात्मा हैं| चिंता करना उनका काम है| उन्होंने अपने चरणों में आश्रय दे दिया है, यही क्या कम है ?
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||
.
हे प्रभु, तुम्हारा इतना चिंतन करने का सामर्थ्य दो कि सब चिंताएँ तुम्हारी ही हो जायें|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! हर हर महादेव !
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०१८

हम एक कण नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रवाह हैं ....

हम एक कण नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रवाह हैं ....
>>>
सागर की लहरें उठती हैं, गिरती हैं, फिर उठती हैं और निरंतर प्रवाहित होती रहती हैं| उनमें अनंत कण हैं जल के| यह समस्त सृष्टि भी एक प्रवाह है| कुछ भी स्थिर नहीं है| सब कुछ गतिशील है| इसके पीछे एक अनंत ऊर्जा है| उस अनंत ऊर्जा का सतत प्रवाह ही यह सृष्टि है| वह सम्पूर्ण प्रवाह हम स्वयं ही हैं|
.
हम एक कण नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रवाह हैं| सम्पूर्ण प्रवाह ही नहीं यह महासागर भी हम स्वयं ही हैं| उसके पीछे की समस्त ऊर्जा और विचार भी हम स्वयं ही हैं| रात्रि की नि:स्तब्धता में सृष्टि और प्रकृति का जो अनंत विस्तार दिखाई देता है, वह अनंतता भी हम ही हैं|
.
दिन का प्रकाश और रात्रि का अन्धकार हम ही हैं| प्रकृति का सौंदर्य, फूलों की महक, पक्षियों की चहचहाहट, सूर्योदय और सूर्यास्त, प्रकृति की सौम्यता और विकरालता सब कुछ हम ही हैं| दुनिया की सारी भागदौड़, सारी चाहतें, अपेक्षाएँ और कामनाएँ भी हम ही हैं| सारा विस्तार हमारा ही विस्तार है|
.
सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमता, सर्वज्ञता, सारे विचार, सारे दृश्य और सम्पूर्ण अस्तित्व ..... हम से परे कुछ भी अन्य नहीं है| जो कुछ भी परमात्मा का है वह सब हम ही है| उस होने पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| हम उसके अमृतपुत्र हैं, हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं|
.
परमात्मा को अपने भीतर प्रवाहित होने दो| फिर उस प्रवाह में सब कुछ समर्पित कर दो| कहीं पर भी कोई अवरोध नहीं होना चाहिए| जो भी अवरोध आये उसे ध्वस्त कर दो| परमात्मा से पृथकता ही सब दु:खों का कारण है| अन्य कोई कारण नहीं है| उससे जुड़ाव ही आनंद है| बाकि सारी खोज एक मृगमरीचिका है जिसकी परिणिति मृत्यु है|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
५ दिसंबर २०१७

"उपासना" "तैलधारा" के समान अखंड हो .....

"उपासना" "तैलधारा" के समान अखंड हो .....
-----------------------------------------------
तेल को एक पात्र से जब दूसरे में डालते हैं तब उसकी धारा अखंड रहती है, बीच बीच में टूटती नहीं है, वैसी ही हमारी साधना होनी चाहिए| गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते| सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्||१२:३||"
आचार्य शंकर ने अपने भाष्य में इस श्लोक की बहुत विस्तृत टीका की है| वह टीका और उसका हिंदी में अनुवाद बहुत बड़ा है जिसे यहाँ इस लेख में प्रस्तुत करना मेरे लिए असम्भव है| अपने भाष्य में इस श्लोक की विवेचना में आचार्य शंकर ने 'उपासना' को 'तैलधारा' के समान बताया है|
.
उपासना का शाब्दिक अर्थ है .... समीप बैठना| हमें किसके समीप बैठना चाहिए? मेरी चेतना में एक ही उत्तर है ... गुरु रूप ब्रह्म के| गुरु रूप ब्रह्म के सिवाय अन्य किसी का अस्तित्व चेतना में होना भी नहीं चाहिए| यहाँ यह भी विचार करेगे कि गुरु रूप ब्रह्म क्या है|
.
शंकर भाष्य के अनुसार "उपास्य वस्तु को शास्त्रोक्त विधि से बुद्धि का विषय बनाकर, उसके समीप पहुँचकर, तैलधारा के सदृश समान वृत्तियों के प्रवाह से दीर्घकाल तक उसमें स्थिर रहने को उपासना कहते हैं"| 
यहाँ उन्होंने "तैलधारा" शब्द का प्रयोग किया है जो अति महत्वपूर्ण है| तैलधारा के सदृश समानवृत्तियों का प्रवाह क्या हो सकता है? पहले इस पर विचार करना होगा|
.
योगियों के अनुसार ध्यान साधना में जब प्रणव यानि अनाहत नाद की ध्वनी सुनाई देती है तब वह तैलधारा के सदृश अखंड होती है| प्रयोग के लिए एक बर्तन में तेल लेकर उसे दुसरे बर्तन में डालिए| जिस तरह बिना खंडित हुए उसकी धार गिरती है वैसे ही अनाहत नाद यानि प्रणव की ध्वनी सुनती है| प्रणव को परमात्मा का वाचक यानि प्रतीक कहा गया है| यह प्रणव ही कूटस्थ अक्षर ब्रह्म है|
.
समानवृत्ति क्या हो सकती है? जहाँ तक मैं समझता हूँ इसका अर्थ है श्वास-प्रश्वास और वासनाओं की चेतना से ऊपर उठना| चित्त स्वयं को श्वास-प्रश्वास और वासनाओं के रूप में व्यक्त करता है| अतः समानवृत्ति शब्द का यही अर्थ हो सकता है|
.
मेरी सीमित अल्प बुद्धि के अनुसार "उपासना" का अर्थ .... हर प्रकार की चेतना से ऊपर उठकर ओंकार यानि अनाहत नाद की ध्वनी को सुनते हुए उसी में लय हो जाना है| मेरी दृष्टी में यह ओंकार ही गुरु रूप ब्रह्म है|
.
योगी लोग तो ओंकार से भी शनेः शनेः ऊपर उठने की प्रेरणा देते हैं क्योंकि ओंकार तो उस परम शिव का वाचक यानि प्रतीक मात्र है जिस पर हम ध्यान करते हैं| हमारी साधना का उद्देश्य तो परम शिव की प्राप्ति है| उपासना तो साधन है, पर उपास्य यानि साध्य हैं ..... परम शिव| उपासना का उद्देश्य उपास्य के साथ एकाकार होना ही है| "उपासना" और "उपनिषद्" दोनों का अर्थ एक ही है| प्रचलित रूप में परमात्मा की प्राप्ति के किसी भी साधन विशेष को "उपासना" कहते हैं|
.
व्यवहारिक रूप से किसी व्यक्ति में कौन सा गुण प्रधान है उससे वैसी ही उपासना होगी| उपासना एक मानसिक क्रिया है| उपासना निरंतर होती रहती है| मनुष्य जैसा चिंतन करता है वैसी ही उपासना करता है| तमोगुण की प्रधानता अधिक होने पर मनुष्य परस्त्री/परपुरुष व पराये धन की उपासना करता है जो उसके पतन का कारण बनती है| चिंतन चाहे परमात्मा का हो या परस्त्री/पुरुष का, होता तो उपासना ही है| रजोगुण प्रधान व सतोगुण प्रधान व्यक्तियों की उपासना भी ऐसे ही अलग अलग होगी| हमें तो इन तीनों गुणों से भी ऊपर उठना है|
.
अतः एक उपासक को सर्वदा सत्संग करना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में कुसंग का त्याग करना चाहिए क्योंकि संगति का असर पड़े बिना रहता नहीं है| मनुष्य जैसे व्यक्ति का चिंतन करता है वैसा ही बन जाता है| योगसूत्रों में एक सूत्र आता है ..... "वीतराग विषयं वा चित्तः", इस पर गंभीरता से विचार करें|
.
उपासना के लिए व्यक्त तथा अव्यक्त दोनों आधार मान्य हैं| जीव वस्तुत: शिव ही है, परंतु अज्ञान के कारण वह इस प्रपंच के पचड़े में पड़कर भटकता फिरता है। अत: ज्ञान के द्वारा अज्ञान की ग्रंथि का भेदन कर अपने परम शिवत्व की अभिव्यक्ति करना ही उपासना का लक्ष्य है|
.
जब ह्रदय में परमप्रेम उदित होता है तब भगवान किसी गुरु के माध्यम से मार्गदर्शन देते हैं| गुरु ही इस देहरूपी नौका के कर्णधार होते हैं| गीता और सारे उपनिषद ओंकार की महिमा से भरे पड़े हैं| अतः मुझ जैसे अकिंचन व अल्प तथा सीमित बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए स्वभाववश और गुरु महाराज की स्पष्ट आज्ञा से भी ओंकार रूपी अनाहत नाद (कूटस्थ अक्षरब्रह्म) का ध्यान में तैलधारा के सदृश निरंतर श्रवण, और कूटस्थ ब्रह्मज्योति का निरंतर दर्शन ही उपासना है| यह कूटस्थ ही गुरुरूप ब्रह्म है|
.
ॐ गुरुभ्यो नमः ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ दिसंबर २०१८

"भारतीय नौसेना दिवस" पर सभी पूर्व वयोवृद्ध व वर्तमान सेवारत नौसैनिकों का अभिनन्दन ......

"भारतीय नौसेना दिवस २०१८" पर सभी पूर्व वयोवृद्ध व वर्तमान सेवारत नौसैनिकों का अभिनन्दन ......
---------------------------
४ दिसंबर १९७१ को Operation Trident नामक अभियान चलाकर नौसेना ने पाकिस्तान के कराची बन्दरगाह पर सफल आक्रमण किया था| उस दिन की स्मृति में हर वर्ष ४ दिसंबर को नौ सेना दिवस मनाया जाता है| इस हमले में पाकिस्तान के कई जहाज नष्ट कर दिए गए थे| कराची का तेल डिपो सात दिन तक लगातार जलता रहा| कराची के तेल टैंकरों में लगी आग की लपटों को ६० किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था|
उस समय बंगाल की खाड़ी में भी नौसेना ने बहुत प्रशंसनीय कार्य किया था| नौसेना ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के समुद्री मार्ग को अवरुद्ध कर दिया था और पाकिस्तान की एक पनडुब्बी को विशाखापट्टनम के बाहर डुबा दिया|
.
ब्रिटिश भारतीय नौसेना का भारत की स्वतन्त्रता में निर्णायक योगदान ....
----------------------------------------------------------------------------
भारत की स्वतन्त्रता में तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय नौसेना का बहुत बड़ा निर्णायक योगदान था| सन १९४६ में तत्कालीन रॉयल इंडियन नेवी के नौसैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था जिसमें सभी अँगरेज़ अधिकारियों को कोलाबा में बंद कर उनके चारों ओर बारूद लगा दी थी| नौसैनिकों ने भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में प्रदर्शन भी किया और बंबई (मुंबई) की सारी जनता नौसैनिकों के पक्ष में आ गयी थी| भारतीय सिपाहियों ने अन्ग्रेज़ अधिकारियों के आदेश मानने बंद कर दिए| इस घटना से अँगरेज़ इतना डर गये थे की उन्होंने भारत छोड़ने का निर्णय ले लिया|
.
भारत को आज़ाद करने का जो आधिकारिक कारण ब्रिटिश संसद में वहाँ के प्रधानमंत्री ने जो बताया वह यह था कि .....
........ हिन्दुस्तानी भाड़े के सैनिकों ने अँगरेज़ अधिकारियों का आदेश मानने से मना कर दिया है और द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात ब्रिटिश सेना इतनी बुरी तरह टूट चुकी है कि उनमें भाड़े की हिन्दुस्तानी फौज को काबू में रखने का सामर्थ्य नहीं है| ......
.
अँगरेज़ एक तो क्रांतिकारियों से, और नेताजी सुभाष बोस द्वारा आज़ाद हिन्द फौज के गठन से ही डरे हुए थे| फिर नौसेना के विद्रोह से तो बिलकुल ही डर गए थे| भारतीय सैनिकों ने अँगरेज़ अधिकारियों को सलामी देना और उनका आदेश मानना बंद कर दिया था| अँगरेज़ समझ गए कि भारत में कुछ समय और रहे तो उन्हें मार-पीट कर और धक्का देकर भगा दिया जाएगा| इसलिए वे भारत के टुकड़े कर सत्ता अपने मानस पुत्रों को सौंप कर चले गए|
.
हमें झूठा इतिहास पढाया जाता है कि .... दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल ..... जो कि भारत के इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है|
.
भारत माता की जय | वन्दे मातरम् |
कृपा शंकर
४ दिसंबर २०१८

राष्ट्र हित सर्वोपरि...

राष्ट्र हित सर्वोपरि...
आज राष्ट्र की स्थिति अत्यधिक विस्फोटक और चिंताजनक है| इस पर मैनें कई मनीषियों के साथ गंभीर चिंतन भी किया है| मेरे विचार यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ .....
जो परिवर्तन लाना है वह तो भगवान ही लायेंगे, मैं तो एक निमित्त मात्र हूँ| आध्यात्मिक उपासना करनी होगी उसके लिए| 
वह कौन करेगा? क्या मुझे ही करनी होगी?
नहीं, मुझे निमित्त बनाकर स्वयं भगवान ही करेंगे|
फिर जो परिवर्तन लाना है वह तो स्वयं सृष्टिकर्ता भगवान ही लायेंगे| स्वयं की उपासना भी वे स्वयं ही करेंगे| मैं तो उनका एक उपकरण मात्र हूँ, मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| मैं सिर्फ समर्पण ही कर सकता हूँ, इसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ दिसंबर २०१८

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः .....

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः ..... (यजुर्वेद ९:२३)
-------------------------------
अर्थात् "हम पुरोहित राष्ट्र को जीवंत ओर जाग्रत बनाए रखेंगे"| पुरोहित का अर्थ होता है जो इस पुर का हित करता है| प्राचीन भारत में शायद ऐसे व्यक्तियों को पुरोहित कहते थे जो राष्ट्र का दूरगामी हित समझकर उसकी प्राप्ति की व्यवस्था करते थे| पुरोहित में चिन्तक और साधक दोनों के गुण होते हैं, जो सही परामर्श दे सकें| हे पुरोहितो, इस राष्ट्र में जागृति लाओ और इस राष्ट्र की रक्षा करो| 
.
ऋग्वेद का प्रथम मन्त्र है ..... "अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतारं रत्नधातमम् ||"
.
मैं यहाँ आध्यात्मिक दृष्टी से नहीं भौतिक दृष्टी से बात कर रहा हूँ, इसलिए मेरी बातों को कोई अन्यथा न ले| फेसबुक पर अपने विचारों से ज़रा सी भी असहमति होते ही लोग बिना पूरा लेख पढ़े, लेखक के भावों को समझे बिना ही दुर्वचनों और गालियों की बौछार कर देते हैं| ऐसे लोग मुझे अपने मित्रता-संकुल से बाहर कर दें तो उनकी बड़ी कृपा होगी|
.
भौतिक दृष्टी से इस पृथ्वी के देवता अग्नि हैं| भूगर्भ में जो अग्नि रूपी ऊर्जा (geothermal energy) है, उस ऊर्जा, और सूर्य की किरणों से प्राप्त ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन है| वह अग्नि ही हमें जीवित रखे हुए है| इस पृथ्वी से हमें जो भी धातुएं और रत्न प्राप्त होते हैं वे इस भूगर्भीय अग्नि रूपी ऊर्जा से ही निर्मित होते हैं| अतः यह ऊर्जा यानी अग्नि ही इस पृथ्वी के देवता हैं, वे अग्निदेव ही इस पृथ्वी के पुरोहित हैं, ऐसी मेरी सोच है|
.
जैसा मैं समझता हूँ ऊर्जा को ही अग्नि का नाम दिया हुआ है| हमारे विचारों और संकल्प के पीछे भी एक ऊर्जा है| ऐसे ऊर्जावान व्यक्तियों को ही हम पुरोहित कह सकते हैं जो अपने संकल्पों, विचारों व कार्यों से हमारा हित करने में समर्थ हों| ऐसे लोगों को ही मैं निवेदन करता हूँ कि वे इस राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करें|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
३ दिसंबर २०१८

संत गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रामजन्मभूमि विध्वंश का वर्णन .....

संत गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रामजन्मभूमि विध्वंश का वर्णन .....
.
(साभार: Arun Lavania) संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने "दोहा शतक" 1590 मे लिखा था। इसके आठ दोहे , 85 से 92, में मंदिर के तोड़े जाने का स्पष्ट वर्णन है। इसे रायबरेली के तालुकदार राय बहादुर बाबू सिंह जी 1944 में प्रकाशित किया।यह राम जंत्रालय प्रेस से छपा।यह एक ही बार छपा और इसकी एक कौपी जौनपुर के शांदिखुर्द गांव में उपलब्ध है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया। उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है।
अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जी ने जो कि बाबर के समकालीन भी थे, राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस कि बात है उसमे तो कहीं भी मुग़लों की भी चर्चा नहीं है इसका मतलब ये निकाला जाना गलत होगा कि तुलसीदास के समय में मुगल नहीं रहे।
गोस्वामी जी ने 'तुलसी दोहा शतक' में इस बात का साफ उल्लेख किया है कि किस तरह से राम मंदिर को तोड़ा गया .....
मंत्र उपनिषद ब्रह्माण्हू बहु पुराण इतिहास।
जवन जराए रोष भरी करी तुलसी परिहास।।
सिखा सूत्र से हीन करी, बल ते हिन्दू लोग।
भमरी भगाए देश ते, तुलसी कठिन कुयोग।।
सम्बत सर वसु बाण नभ, ग्रीष्म ऋतू अनुमानि।
तुलसी अवधहि जड़ जवन, अनरथ किये अनमानि।।
रामजनम महीन मंदिरहिं, तोरी मसीत बनाए।
जवहि बहु हिंदुन हते, तुलसी किन्ही हाय।।
दल्यो मीरबाकी अवध मंदिर राम समाज।
तुलसी ह्रदय हति, त्राहि त्राहि रघुराज।।
रामजनम मंदिर जहँ, लसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबांकी खाल नीच।।
रामायण घरी घंट जहन, श्रुति पुराण उपखान।
तुलसी जवन अजान तहँ, कइयों कुरान अजान।।
.
दोहा अर्थ सहित नीचे पढ़ें।
(1) राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय ।
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी किन्ही हाय ॥
जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।
(2) दल्यो मीरबाकी अवध मन्दिर रामसमाज ।
तुलसी रोवत ह्रदय हति हति त्राहि त्राहि रघुराज ॥
मीरबकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदिर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।
(3) राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।
तुलसी रची मसीत तहँ मीरबाकी खाल नीच ॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनाई ।
(4) रामायन घरि घट जँह, श्रुति पुरान उपखान ।
तुलसी जवन अजान तँह, कइयों कुरान अज़ान ॥
श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।
(5) मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास ।
जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।
(6) सिखा सूत्र से हीन करि बल ते हिन्दू लोग ।
भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवित से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।
(7) बाबर बर्बर आइके कर लीन्हे करवाल ।
हने पचारि पचारि जन जन तुलसी काल कराल ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।
(8) सम्बत सर वसु बान नभ ग्रीष्म ऋतु अनुमानि ।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किये अनखानि ॥
(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है ।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।
अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में रामजन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया किया है।
(साभार धन्यवाद माननीय श्री Arun Lavania)

७ दिसंबर २०१७ 

भारत का मौसम सर्वश्रेष्ठ है ......

भारत का मौसम सर्वश्रेष्ठ है ......
------------------------------
पूरी पृथ्वी पर भारत का मौसम सर्वश्रेष्ठ है| यहाँ वर्ष में अधिकतम दो या तीन बार समुद्री चक्रवात आते हैं, जिनकी भी गहनता अधिक नहीं होती| इनके प्रभाव से तटीय क्षेत्रों में खूब वर्षा होती है|
अगर हम उन विकराल समुद्री तूफानों से तुलना करें जो उत्तरी प्रशांत के पश्चिमी भाग में 180° व 100°E.की देशान्तर रेखाओं के मध्य में फिलिपीन्स सागर में उत्पन्न होते हैं तो भारत के चक्रवात उनके सामने कुछ भी नहीं हैं|
वहाँ अभी सर्दियों में एक के बाद एक महा भयावह तूफानों की श्रृंखला जन्म लेना प्रारम्भ कर देगी| ये फिलिपीन के लुज़ॉन द्वीप के पूर्वी भाग से टकराते हुए ताइवान के पास से जापान की ओर बढ़ जाते हैं| कभी तो ये जापान से टकराते हैं और कभी जापान के पास से अमेरिका के अल्युशियन द्वीप समूह की ओर बढ़ जाते हैं| इनके केंद्र के आसपास कोई जहाज आ जाए तो उसका डूबना निश्चित है| पूरा उत्तरी प्रशांत महासागर छोटे मोटे अनेक तूफानों से भर जाता है| सबसे खराब मौसम तो जापान का है|
प्रकृति ने हमें पृथ्वी पर सबसे अच्छा मौसम दिया है|
धन्य है भारत माँ | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०१६