Thursday 12 April 2018

जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति है .....

जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति है .....
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जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है, यह हमें सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म ही सिखाता है| सनातन हिन्दू धर्म कोई संगठित पंथ नहीं है, यह एक जीवन पद्धति है| कोई भी संगठित पंथ हमें परमात्मा से साक्षात्कार नहीं करा सकता| निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति करना हमें सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म ही सिखाता है| यह मेरे निजी अनुभवों का सार भी है| देश-विदेशों में मैं खूब घूमा हूँ, अनेक तरह के लोगों व विभिन्न धर्मगुरुओं से भी मिला हूँ, सभी प्रमुख पंथों का अध्ययन भी किया है, और जीवन में खूब अनुभव लिए हैं| अध्ययन भी खूब है और साधना मार्ग पर भी बहुत सारे निजी अनुभव हैं जो मेरी अमूल्य निधि हैं| अपने जीवन का यह सार बता रहा हूँ कि जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र लक्ष्य निज जीवन में आत्म-साक्षात्कार यानि ईश्वर की प्राप्ति है| हमारा लक्ष्य कोई स्वर्ग में जाना नहीं, बल्कि परमात्मा को पूर्ण समर्पण और परमात्मा के साथ एकाकार होना है|
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सभी से मेरा आग्रह है कि संगठित पंथों और मतों से ऊपर उठाकर नित्य परमात्मा का कम से एक घंटे तक ध्यान करो| कोई ऊपरी सीमा नहीं है| भगवान से प्रेम करो, जब प्रेम में प्रगाढ़ता आयेगी तब परमात्मा स्वयं आपका मार्ग-दर्शन करेंगे| सनातन हिन्दू धर्म हमें यही सिखाता है| ध्यान साधना का आपका अनुभव ही सबसे बड़ा प्रमाण होगा|
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जो भी मत आपको भयभीत होना यानि डरना सिखाता है, या आपको पापी बताता है वह गलत है| आप परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, उनके अंश हैं| उठो, जागो और अपने लक्ष्य यानि परमात्मा को उपलब्ध हों| शुभ कामनाएँ|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अप्रेल २०१८

ग्रीष्म ऋतु का सौन्दर्य और आनंद .....

इस ग्रीष्म ऋतु का भी एक सौन्दर्य, दिव्यता और आनंद है जिसका अनुभव लेने के लिए आपको सूर्योदय से डेढ़-दो घंटे पूर्व उठकर बाहर प्रकृति की गोद में खुली हवा में घूमते हुए जाना होगा|
मरुभूमि में तो यह आनंद और भी गहरा है, जहाँ की विरल वृक्षावली और रेतीली भूमि की सुरभित वायु आपको मुग्ध कर देगी| उस सुरभित वायु में घूमिये और उचित स्थान देखकर भगवान का ध्यान कीजिये, आप धन्य हो जायेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अप्रेल २०१८

वर्षा के जल का संग्रहण :-----

वर्षा के जल का संग्रहण :-----
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भारत में वर्षा के जल के संग्रहण की तकनीक हजारों वर्ष पुरानी है| इस तकनीक का उपयोग घरों में, सामुदायिक बावड़ियों/तालाबों में, प्राचीन मंदिरों/धर्म-स्थलों में बनवाए गए विशाल जलकुंडों में, और राजा-महाराजाओं द्वारा बनवाये गए किलों में होता आया है| राजस्थान के उन सब भागों में जहाँ पानी की कमी रही है, या जहाँ जहाँ भूमि में खारा पानी है, प्रायः हर घर में एक भूमिगत पक्का जलकुंड होता है| आजकल तो सीमेंट से उनका निर्माण होता है, प्राचीन काल में चूने और सुर्खी से होता था| घर की छत की ढाल और बंद नालियों की बनावट ऐसी होती है कि पानी सीधा भूमिगत कुंड में जाता है| घर की छत को हर समय बहुत साफ़ रखते हैं, वहाँ जूते या चप्पल पहिन कर नहीं जाते| कुंड में जाने वाले नाले के अंतिम सिरे को बंद रखते हैं ताकि भूल से भी उसमें अपवित्र जल नहीं चला जाए| पहली वर्षा का जल उसमें नहीं जाने देते| पहली वर्षा के बाद उस नाले को खोल देते हैं| फिर हर वर्षा का जल उस कुंड में एकत्र हो जाता है जिसे पूरे वर्ष पीने के काम में लेते हैं| कुंड को हर समय ढक कर रखते हैं| पानी निकालने के लिए साफ़ बाल्टी और रस्सी का प्रयोग करते हैं|
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अब सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया है कि बड़े बड़े भवनों की छतों का जल बाहर सड़क पर न बह कर भूमि में ही जाए, जिससे भूमिगत जल स्तर की वृद्धि हो| पीने के पानी की कमी होती जा रही है जिसका समाधान वर्षा के जल को एकत्र करना ही होगा|

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पिछले कुछ दिनों से वर्षा का संग्रहित जल ही पी रहा हूँ जिसे हमारे यहाँ पालर का पानी कहते हैं| वह इतना अच्छा लग रहा है कि RO का पानी बंद ही कर दिया है| अब समझ में आ रहा है कि वर्षा का संग्रहित पानी पीने वाले लोग इतने स्वस्थ क्यों रहते हैं, उनके घुटने कभी खराब नहीं होते| पचास वर्ष पूर्व तक तो हम लोग कुओं का पानी ही पीते थे| जिन क्षेत्रों में भूमिगत जल में फ्लुरोइड होता था वहाँ के लोग तो सदा ही पीने के लिए वर्षा के जल का संग्रह करते थे| भूजल स्तर नीचे जाने से अब म्युनिसिपल पानी में भी फ्ल्युरोइड आने लगा है| पीने के लिए वर्षा के जल का संग्रह ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है|

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
१२ अप्रेल २०१८

दरिद्रता सबसे बड़ा पाप है .....

दरिद्रता सबसे बड़ा पाप है जो मानसिक अयोग्यता से उत्पन्न होता है| दरिद्रता दो प्रकार की होती है ..... एक तो भौतिक दरिद्रता और दूसरी आध्यात्मिक दरिद्रता| दोनों ही हमारे पापों का फल है| अपना पूरा प्रयास कर के इन से हम मुक्त हों| पर हमारे प्रयास धर्मसम्मत हों|

भौतिक समृद्धि ..... आध्यात्मिक समृद्धि का आधार है| भारत आध्यात्मिक रूप से समृद्ध था क्योंकि वह भौतिक रूप से भी समृद्ध था| गरीबी यानि दरिद्रता कोई आदर्श नहीं है, यह एक पाप है|

कब तक हम प्रार्थना ही करते रहेंगे ? .....

कब तक हम प्रार्थना ही करते रहेंगे ? .....
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कब तक हम प्रार्थना ही करते रहेंगे| प्रार्थना करते करते युग बीत गए हैं पर हम वहीं के वहीं हैं| अपनी दुर्बलताओं का त्याग कर के हम अपने आत्म-तत्व में स्थित हों| जिनको हम ढूँढ रहे हैं वह तो हम स्वयं हैं|
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हमें अपने विचारों पर और वाणी पर सजगता पूर्वक नियंत्रण रखना चाहिए| अधोगामी विचार पतन के कारण होते हैं| अनियंत्रित शब्द स्वयं की आलोचना, निंदा व अपमान का कारण बनते हैं| परमात्मा के किसी पवित्र मन्त्र का निरंतर जाप हमारी रक्षा करता है| परमात्मा हाथ में डंडा लेकर किसी बड़े सिंहासन पर बैठा कोई अलोकिक पुरुष नहीं है जो अपनी संतानों को दंड और पुरष्कार दे रहा है| जैसी अपनी सोच होती है वैसी ही परिस्थितियों का निर्माण हो जाता है| हमारे विचार और सोच ही हमारे कर्म हैं|
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परमात्मा तो एक अगम, अगोचर, अचिन्त्य परम चेतना है जो हम से पृथक नहीं है| वह चेतना ही यह लीला खेल रही है| कुछ लोग यह सोचते हैं कि परमात्मा ही सब कुछ करेगा और वही हमारा उद्धार करेगा| पर ऐसा नहीं है| हमारी उन्नत आध्यात्मिक चेतना ही हमारी रक्षा करेगी| यह एक ऐसा विषय है जिस पर उन्हीं से चर्चा की जा सकती है जिन के ह्रदय में कूट कूट कर प्रेम भरा है और जो पूर्ण रूप से परमात्मा को समर्पित होना चाहते हैं|
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वर्तमान काल में हमें विचलित नहीं होना चाहिए| समय ही खराब चल रहा है| सारे सेकुलर चाहे वे राजनीति में हों, या प्रशासन में, या न्यायपालिका में ..... सब के सब धर्मद्रोही हैं| सारी सेकुलर मिडिया भी धर्मद्रोही है| अवसर मिलते ही वे हमारी आस्थाओं पर मर्मान्तक प्रहार करने से नहीं चूकते| हमें धैर्यपूर्वक अपना शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक बल निरंतर बढाते रहना चाहिए| हमारी आध्यात्मिक शक्ति निश्चित रूप से हमारी रक्षा करेगी|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अप्रेल २०१८