जो विभा में रत है, जहाँ से ज्योति की अति सूक्ष्म रेखाओं का प्रवाह सम्पूर्ण सृष्टि को ज्योतिर्मय बना रहा है, वह भारत है। भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है जो निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त कर रही है। भारत की चेतना सम्पूर्ण सृष्टि को परमात्मा की चेतना में रत कर रही है। परमात्मा का प्रकाश यहाँ से चारों ओर फैल रहा है। भारत अखंड हो, और असत्य का अंधकार यहाँ से सदा के लिए दूर हो। भगवान भारत भूमि में फिर से अवतरित होंगे।
Sunday, 25 August 2024
आज "भारत-विभाजन विभीषिका दुःखद स्मृति दिवस" और "अखंड भारत संकल्प दिवस" है ---
🌹🌹🌹 सभी भक्तों और साधकों के लिए :--- (प्रश्न) : सारी भक्ति और साधना कौन कर रहा है?
(उत्तर) : सारी साधना और भक्ति -- भगवान स्वयं कर रहे हैं। हम केवल एक निमित्त साक्षी मात्र हैं। भगवान स्वयं ही कर्ता और भोक्ता हैं। हमारी भूमिका अधिक से अधिक उतनी ही है जितनी यज्ञ में एक यजमान की होती है।
एक परम गोपनीय सत्य --- .
भगवान की प्राप्ति एक सरल से सरल कार्य है। इससे अधिक सरल अन्य कुछ भी नहीं है। इस अति अति गोपनीय रहस्यों के रहस्य को जनहित में बता देना ही उचित है। भगवान की कृपा को प्राप्त करना कोई बड़ी बात नहीं है। भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए हमें सिर्फ सत्यनिष्ठा और परमप्रेम ही चाहिए। अन्य सारे गुण अपने आप ही खींचे चले आते हैं। भगवान सत्य-नारायण हैं, वे सत्य-नारायण की कथा से नहीं, हमारे स्वयं के सत्यनिष्ठ बनने से ही प्राप्त होते हैं। हमें स्वयं को ही सत्य-नारायण बनना होगा।
कहीं पर भी हमें रुकना नहीं चाहिए। जहाँ भी रुकते हैं, वहीं से हमारा पतन आरंभ हो जाता है।
प्रति वर्ष २१ अगस्त को "वरिष्ठ नागरिक दिवस" (Senior Citizens' Day) मनाया जाता है ---
प्रति वर्ष २१ अगस्त को "वरिष्ठ नागरिक दिवस" (Senior Citizens' Day) मनाया जाता है। मैं स्वयं ७८ वर्षीय अति वरिष्ठ नागरिक हूँ। सभी वरिष्ठ नागरिकों को मेरा अभिनंदन !!
आज श्रावण पूर्णिमा को हमारा उपाकर्म का दिन है, जो ब्राह्मणों के लिए विशेष है
अब तक की सारी सरकारी गलत शिक्षा नीतियों और गलत संवैधानिक नियमों ने पूरे हिन्दू समाज को वैदिक शिक्षा से वंचित रखा है। इस कारण विदेशी फिरंगी संस्कृति हम सब पर हावी हो गई है, और हम अपनी प्राचीन परंपराओं को भूल गए हैं। स्थिति इतनी अधिक खराब है कि ईश्वर ही हमारा उद्धार कर सकते हैं।
रक्षाबंधन पर्व की मंगलमय शुभ कामनाएँ ---
समाज को स्नेह सूत्र व प्रेम में बांधने वाले आत्मशुद्धि के रक्षाबंधन पर्व पर मैं सभी का अभिनंदन करता हूँ। रक्षा-बंधन वह बंधन है जो रक्षा के लिए बांधा जाता है।
हे "पुरोहितो", इस राष्ट्र में जागृति लाओ और इस राष्ट्र की रक्षा करो ---
हे "पुरोहितो", इस राष्ट्र में जागृति लाओ और इस राष्ट्र की रक्षा करो ---
परमात्मा का नाम ही हमारा कवच है, जो निरंतर हमारी रक्षा करता है।
परमात्मा का नाम ही हमारा कवच है, जो निरंतर हमारी रक्षा करता है।
'देवो भूत्वा देवं यजेत्' --- ('शिवो भूत्वा शिवं यजेत्') -
'देवो भूत्वा देवं यजेत्' --- ('शिवो भूत्वा शिवं यजेत्') -
अपने स्वभाव के अनुकूल उपासना करें ---
अपने स्वभाव के अनुकूल उपासना करें --- (संशोधित )
इसी जन्म में ही परमात्मा की प्राप्ति क्यों आवश्यक है?
जब तुम ही सर्वस्व हो, फिर यह विक्षेप और आवरण क्यों है?
जब तुम ही सर्वस्व हो, फिर यह विक्षेप और आवरण क्यों है?
वह कौन सी मुख्य शक्ति है जो हमें बंधन में डालती है?
(उत्तर) : बंधन में डालने वाली बहुत सी चीजें हैं, लेकिन उनमें से मुख्य है -- हमारा अहङ्कार। जब तक स्वयं को हम यह भौतिक शरीर मानते हैं तब तक हम बंधन में हैं। साधना द्वारा जब हमारी चेतना ब्रह्ममय हो जाती है, तब हम मुक्त हैं। वास्तव में ब्रह्म ही हमारा अस्तित्व है। जब तक पराविद्या की प्राप्ति नहीं होती तब तक सारे बन्धनों का कारण यह अहङ्कार है। इसलिये अहङ्कार ही बन्धन और मोक्ष दोनों का कारण है।
धर्म-रक्षा और राष्ट्र-रक्षा के लिए यदि हमारा कर्तव्य हो जाता है, तो हम इस सारी सृष्टि का विनाश कर के भी पाप के भागी नहीं होते ---
जिसका अहंकृतभाव नहीं है, और जिसकी बुद्धि कभी कहीं भी लिप्त नहीं होती, वह संसार के सम्पूर्ण प्राणियों को मारकर भी न तो मारता है और न बँधता है। गीता में भगवान कहते हैं ---