हे "पुरोहितो", इस राष्ट्र में जागृति लाओ और इस राष्ट्र की रक्षा करो ---
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प्राचीन भारत में राष्ट्र का दूरगामी हित देखने वाले ब्राह्मणों को "पुरोहित" कहते थे। वे राष्ट्र के दूरगामी हितों को समझ कर उनकी प्राप्ति की व्यवस्था करते थे। "पुरोहित" में चिन्तक और साधक दोनों के गुण होते हैं। "पुरोहित" शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। "पुरोहित" शब्द का अर्थ है जो इस पुर यानि इस राष्ट्र का हित करता है, और जो सही परामर्श दे सकें।
अर्थात् "हम पुरोहित राष्ट्र को जीवंत ओर जाग्रत बनाए रखेंगे"।
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ऋग्वेद का प्रथम मन्त्र है --
"अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥"
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उपरोक्त मंत्र का आध्यात्मिक अर्थ तो मैं नहीं लिख सकता क्योंकि वह बहुत गहन और लंबा है और उसे कोई पढ़ेगा भी नहीं। लेकिन भौतिक अर्थ आंशिक रूप से समझाया जा सकता है --
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इस पृथ्वी के देवता अग्नि हैं। भूगर्भ में जो अग्नि रूपी ऊर्जा (geothermal energy) है, उस ऊर्जा, और सूर्य की किरणों से प्राप्त ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन है। वह अग्नि ही हमें जीवित रखे हुए है। इस पृथ्वी से हमें जो भी धातुएं और रत्न प्राप्त होते हैं, वे इस भूगर्भीय अग्नि रूपी ऊर्जा से ही निर्मित होते हैं। अतः यह ऊर्जा यानी अग्निदेव ही इस पृथ्वी के "पुरोहित" हैं।
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ऊर्जा को ही अग्नि का नाम दिया हुआ है। हमारे विचारों और संकल्प के पीछे भी एक ऊर्जा है। ऐसे ऊर्जावान व्यक्तियों को ही हम "पुरोहित" कह सकते हैं, जो अपने संकल्पों, विचारों व कार्यों से हमारा हित करने में समर्थ हों। ऐसे लोगों से ही मैं निवेदन करता हूँ कि वे इस राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करें।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० अगस्त २०२४
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पुनश्च: --- पुराने जमाने में भारत में ऐसे ही "राज-ज्योतिषी" भी होते थे। वे अपने राज्य का हित ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखते थे, और राजा को उचित सलाह देते थे।
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