इसी जन्म में ही परमात्मा की प्राप्ति क्यों आवश्यक है?
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इस भौतिक शरीर की मृत्यु हमारा अंतिम पड़ाव नहीं है। मृत्यु के समय जैसी भी हमारी भावनाएँ और अनुभूतियाँ होती हैं, सूक्ष्म शरीर में और अगले जन्म में भी वे ही रहती हैं। जब मृत्यु का हम वरण करते हैं, या जब भी हमें मृत्यु प्राप्त होती है, उस समय जिस आनन्द में हम रहते हैं, या जो भी पीड़ा हमें रहती है, वह आनन्द या पीड़ा अगले जन्म तक हमारे सूक्ष्म शरीर में भी रहेगी, और अगले जन्म में जो शरीर हमें प्राप्त होगा, उसमें भी रहेगी। यदि हम असहनीय पीड़ा से मरते हैं तो हमारा यह शरीर तो मर जाएगा लेकिन वह पीड़ा सूक्ष्म शरीर में भी रहेगी और अगले जन्म में भी रहेगी। यदि हम आनंदमय होकर यह शरीर छोडते हैं तो वह आनन्द सूक्ष्म देह में भी और अगले जन्म में भी रहेगा। इसलिए मृत्यु की तैयारी करना हमारा परम धर्म है। मृत्यु के समय हम प्रेम और आनन्द से भरे हों, और ईश्वर के साथ एक हों।
परमात्मा की चेतना में यदि हम आनंदमय होकर इस देह का त्याग करते हैं, तो सूक्ष्म शरीर में भी और अगले जन्म में भी जन्म के समय से ही हम परमात्मा की चेतना में रहेंगे। भगवान से हम प्रार्थना करें कि वे भारतवर्ष की और सत्य सनातन धर्म की रक्षा तो करें ही, इस भौतिक देह में भी हमारे इस जीवन को वे ही जीयें।
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"मैं नहीं, स्वयं परमात्मा ही यह जीवन जी रहे हैं, और वे ही इस देह में स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं।" -- यह भाव सदा निरंतर रहना चाहिए। अंत समय में केवल परमात्मा ही हमारे समक्ष हों। किसी भी तरह की घृणा या क्रोध हम में न हो।
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मंगलमय शुभ कामनाएँ ॥ ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ अगस्त २०२४
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