(उत्तर) : सारी साधना और भक्ति -- भगवान स्वयं कर रहे हैं। हम केवल एक निमित्त साक्षी मात्र हैं। भगवान स्वयं ही कर्ता और भोक्ता हैं। हमारी भूमिका अधिक से अधिक उतनी ही है जितनी यज्ञ में एक यजमान की होती है।
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हरेक साँस के साथ हम उन्हें याद करें, जिनके कारण हम जीवंत हैं। भगवान श्रीकृष्ण हमें हर समय मूर्धा में ओंकार का स्मरण करने को कहते हैं। मूर्धा में हर समय ओंकार का जप, और हर आती-जाती साँस के साथ अजपा-जप (हँसः योग, हंसवतीऋक) चलता रहे। हर युवा को चाहिए कि वह खेचरी मुद्रा का अभ्यास करे। भगवान की स्मृति निरंतर बनी रहे। सारी साधना खेचरी या अर्ध-खेचरी मुद्रा में करें।
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हमारे माध्यम से कौन जी रहे है? हमारे जन्म से पूर्व, और मृत्यु के पश्चात कौन हमारे साथ रहेंगे? कौन हमारे माँ-बाप, भाई-बहिन, सगे-संबंधी, और शत्रु-मित्र बनकर आये? कौन हमारे हृदय में धडक रहे हैं? कौन हमारी इस देह की सारी गतिविधियों को संचालित कर रहे हैं? वे कौन हैं, जो यह सम्पूर्ण अस्तित्व है? उन्हें हम हर समय अपनी स्मृति में रखें।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अगस्त २०२४
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