हम नित्य-नवीन, नित्य-चेतन, और नित्य-शाश्वत आनंद हैं .....
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नित्य से प्रेम होने पर अनित्य का लोप होने लगता है| अनित्यता असत्य है| जो नित्य है, वह परमात्मा ही एकमात्र सत्य और हमारा अस्तित्व है| अनित्य तो इस विस्तृत छाया-चित्रालय पर उभरते और मिटते छायाचित्र हैं| जो इन छायाचित्रों के रूप में स्वयं को व्यक्त कर रहा है वह परमात्मा ही नित्य है| वही हमारा वास्तविक स्वरुप है| अनित्यता और क्षणिकवाद असत्य है|
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इस विषय पर मेरा कुछ भी लिखना एक बौद्धिक मनोरंजन हो सकता है, मनोनिग्रह की प्रेरणा नहीं, अतः और लिखने की इच्छा अब नहीं रही है| नित्य से प्रेम होने पर अनित्य का लोप होने लगता है| यह माया का खेल है कि नित्य में मन लगाते ही अनित्य की याद आने लगती है| पर उस नित्य की कृपा है कि हमें उस अनित्य के दलदल में डूबने नहीं देता और बार बार उबार लेता है, क्योंकि हम उसी की एक लीला के अंग ही नहीं, उसके साथ एक हैं|
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हम कभी भी निःशक्त, निरर्थक और पौरुषहीन नहीं हैं क्योंकि हम परमात्मा के साथ एक हैं| परमात्मा से पृथकता का भाव ही हमारे सारे अनर्थ का मूल है| आजकल के सारे "वाद" जैसे साम्यवाद, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षतावाद, मानवतावाद, सर्वधर्मसमभाववाद, आदि आदि सब मिथ्या और भ्रामक हैं| सत्य को समझने के लिए उपनिषदों व गीता आदि का स्वाध्याय कर, पूर्ण प्रेम से परमात्मा की उपासना करनी होगी तभी निश्चित रूप से वे हमारे चित्त-पटल पर छाये मायावी अन्धकार को दूर कर स्वयं को व्यक्त करेंगे|
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रहस्यों का रहस्य यह है कि परमात्मा को कर्ता बनाकर हम निमित्त मात्र बनें, और अपनी सारी पृथकता परमात्मा को समर्पित कर दें| हमारी बुरी सोच और बुरे कर्म एक छूत की बीमारी है, जिससे हमें मुक्त होना है, सिर्फ लक्षणों को दबाना नहीं है|
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भारत की राजनीतिक व्यवस्था और संविधान ..... साम्प्रदायिक यानि communal हैं क्योंकि वे कुछ समुदायों को दूसरों से अधिक लाभ देते हैं, व जातिवाद और तुष्टिकरण को फैलाते हैं| जो राष्ट्र के अंग हैं वे राष्ट्र से अधिक प्रधान नहीं हो सकते| हमारी सारी राजनीति झूठ और कपट पर आधारित रही है| इसे बदलने के लिए भी हमें स्वयं में एक आध्यात्मिक चेतना जगानी होगी| परमात्मा की चेतना से जुड़कर ही इस बाहरी चित्र-पटल के छायाचित्रों के क्रमों व दृश्यों में परिवर्तन ला सकते हैं|
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हरि ॐ तत्सत् ! हर हर महादेव ! जय जय श्री नारायण हरि ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अक्तूबर २०१८
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पुनश्चः :---
अनित्य तो सिर्फ अज्ञान, अन्धकार और असत्य हैं| परमात्मा तो नित्य निरंतर हैं| परमात्मा हैं, यहीं पर हैं, इसी समय हैं, और सदा रहेंगे| वे एक क्षण के दस लाखवें भाग के लिए भी हम से दूर नहीं जा सकते| परमात्मा ने हमें निमित्त बनाया है यह उनकी परम कृपा है| कर्ता तो अंततः वे ही हैं| वे हमारे ह्रदय में आकर आड़े हो गए है, अब बाहर नहीं निकल सकते| आनंद ही आनंद है, आनंद ही आनंद में हम सदा रहेंगे|
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नित्य से प्रेम होने पर अनित्य का लोप होने लगता है| अनित्यता असत्य है| जो नित्य है, वह परमात्मा ही एकमात्र सत्य और हमारा अस्तित्व है| अनित्य तो इस विस्तृत छाया-चित्रालय पर उभरते और मिटते छायाचित्र हैं| जो इन छायाचित्रों के रूप में स्वयं को व्यक्त कर रहा है वह परमात्मा ही नित्य है| वही हमारा वास्तविक स्वरुप है| अनित्यता और क्षणिकवाद असत्य है|
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इस विषय पर मेरा कुछ भी लिखना एक बौद्धिक मनोरंजन हो सकता है, मनोनिग्रह की प्रेरणा नहीं, अतः और लिखने की इच्छा अब नहीं रही है| नित्य से प्रेम होने पर अनित्य का लोप होने लगता है| यह माया का खेल है कि नित्य में मन लगाते ही अनित्य की याद आने लगती है| पर उस नित्य की कृपा है कि हमें उस अनित्य के दलदल में डूबने नहीं देता और बार बार उबार लेता है, क्योंकि हम उसी की एक लीला के अंग ही नहीं, उसके साथ एक हैं|
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हम कभी भी निःशक्त, निरर्थक और पौरुषहीन नहीं हैं क्योंकि हम परमात्मा के साथ एक हैं| परमात्मा से पृथकता का भाव ही हमारे सारे अनर्थ का मूल है| आजकल के सारे "वाद" जैसे साम्यवाद, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षतावाद, मानवतावाद, सर्वधर्मसमभाववाद, आदि आदि सब मिथ्या और भ्रामक हैं| सत्य को समझने के लिए उपनिषदों व गीता आदि का स्वाध्याय कर, पूर्ण प्रेम से परमात्मा की उपासना करनी होगी तभी निश्चित रूप से वे हमारे चित्त-पटल पर छाये मायावी अन्धकार को दूर कर स्वयं को व्यक्त करेंगे|
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रहस्यों का रहस्य यह है कि परमात्मा को कर्ता बनाकर हम निमित्त मात्र बनें, और अपनी सारी पृथकता परमात्मा को समर्पित कर दें| हमारी बुरी सोच और बुरे कर्म एक छूत की बीमारी है, जिससे हमें मुक्त होना है, सिर्फ लक्षणों को दबाना नहीं है|
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भारत की राजनीतिक व्यवस्था और संविधान ..... साम्प्रदायिक यानि communal हैं क्योंकि वे कुछ समुदायों को दूसरों से अधिक लाभ देते हैं, व जातिवाद और तुष्टिकरण को फैलाते हैं| जो राष्ट्र के अंग हैं वे राष्ट्र से अधिक प्रधान नहीं हो सकते| हमारी सारी राजनीति झूठ और कपट पर आधारित रही है| इसे बदलने के लिए भी हमें स्वयं में एक आध्यात्मिक चेतना जगानी होगी| परमात्मा की चेतना से जुड़कर ही इस बाहरी चित्र-पटल के छायाचित्रों के क्रमों व दृश्यों में परिवर्तन ला सकते हैं|
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हरि ॐ तत्सत् ! हर हर महादेव ! जय जय श्री नारायण हरि ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अक्तूबर २०१८
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पुनश्चः :---
अनित्य तो सिर्फ अज्ञान, अन्धकार और असत्य हैं| परमात्मा तो नित्य निरंतर हैं| परमात्मा हैं, यहीं पर हैं, इसी समय हैं, और सदा रहेंगे| वे एक क्षण के दस लाखवें भाग के लिए भी हम से दूर नहीं जा सकते| परमात्मा ने हमें निमित्त बनाया है यह उनकी परम कृपा है| कर्ता तो अंततः वे ही हैं| वे हमारे ह्रदय में आकर आड़े हो गए है, अब बाहर नहीं निकल सकते| आनंद ही आनंद है, आनंद ही आनंद में हम सदा रहेंगे|