Tuesday 16 October 2018

हम नित्य-नवीन, नित्य-चेतन, और नित्य-शाश्वत आनंद हैं .....

हम नित्य-नवीन, नित्य-चेतन, और नित्य-शाश्वत आनंद हैं .....
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नित्य से प्रेम होने पर अनित्य का लोप होने लगता है| अनित्यता असत्य है| जो नित्य है, वह परमात्मा ही एकमात्र सत्य और हमारा अस्तित्व है| अनित्य तो इस विस्तृत छाया-चित्रालय पर उभरते और मिटते छायाचित्र हैं| जो इन छायाचित्रों के रूप में स्वयं को व्यक्त कर रहा है वह परमात्मा ही नित्य है| वही हमारा वास्तविक स्वरुप है| अनित्यता और क्षणिकवाद असत्य है|
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इस विषय पर मेरा कुछ भी लिखना एक बौद्धिक मनोरंजन हो सकता है, मनोनिग्रह की प्रेरणा नहीं, अतः और लिखने की इच्छा अब नहीं रही है| नित्य से प्रेम होने पर अनित्य का लोप होने लगता है| यह माया का खेल है कि नित्य में मन लगाते ही अनित्य की याद आने लगती है| पर उस नित्य की कृपा है कि हमें उस अनित्य के दलदल में डूबने नहीं देता और बार बार उबार लेता है, क्योंकि हम उसी की एक लीला के अंग ही नहीं, उसके साथ एक हैं|
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हम कभी भी निःशक्त, निरर्थक और पौरुषहीन नहीं हैं क्योंकि हम परमात्मा के साथ एक हैं| परमात्मा से पृथकता का भाव ही हमारे सारे अनर्थ का मूल है| आजकल के सारे "वाद" जैसे साम्यवाद, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षतावाद, मानवतावाद, सर्वधर्मसमभाववाद, आदि आदि सब मिथ्या और भ्रामक हैं| सत्य को समझने के लिए उपनिषदों व गीता आदि का स्वाध्याय कर, पूर्ण प्रेम से परमात्मा की उपासना करनी होगी तभी निश्चित रूप से वे हमारे चित्त-पटल पर छाये मायावी अन्धकार को दूर कर स्वयं को व्यक्त करेंगे|
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रहस्यों का रहस्य यह है कि परमात्मा को कर्ता बनाकर हम निमित्त मात्र बनें, और अपनी सारी पृथकता परमात्मा को समर्पित कर दें| हमारी बुरी सोच और बुरे कर्म एक छूत की बीमारी है, जिससे हमें मुक्त होना है, सिर्फ लक्षणों को दबाना नहीं है|
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भारत की राजनीतिक व्यवस्था और संविधान ..... साम्प्रदायिक यानि communal हैं क्योंकि वे कुछ समुदायों को दूसरों से अधिक लाभ देते हैं, व जातिवाद और तुष्टिकरण को फैलाते हैं| जो राष्ट्र के अंग हैं वे राष्ट्र से अधिक प्रधान नहीं हो सकते| हमारी सारी राजनीति झूठ और कपट पर आधारित रही है| इसे बदलने के लिए भी हमें स्वयं में एक आध्यात्मिक चेतना जगानी होगी| परमात्मा की चेतना से जुड़कर ही इस बाहरी चित्र-पटल के छायाचित्रों के क्रमों व दृश्यों में परिवर्तन ला सकते हैं|
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हरि ॐ तत्सत् ! हर हर महादेव ! जय जय श्री नारायण हरि ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अक्तूबर २०१८

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पुनश्चः :---
अनित्य तो सिर्फ अज्ञान, अन्धकार और असत्य हैं| परमात्मा तो नित्य निरंतर हैं| परमात्मा हैं, यहीं पर हैं, इसी समय हैं, और सदा रहेंगे| वे एक क्षण के दस लाखवें भाग के लिए भी हम से दूर नहीं जा सकते| परमात्मा ने हमें निमित्त बनाया है यह उनकी परम कृपा है| कर्ता तो अंततः वे ही हैं| वे हमारे ह्रदय में आकर आड़े हो गए है, अब बाहर नहीं निकल सकते| आनंद ही आनंद है, आनंद ही आनंद में हम सदा रहेंगे|

हम सब के संकल्प में बड़ी शक्ति है.....

हम सब के संकल्प में बड़ी शक्ति है.....
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नित्य दिन में कम से कम दो बार एक निश्चित समय पर और निश्चित स्थान पर खड़े होकर अपने दोनों हाथ ऊपर कर के समष्टि के कल्याण, विश्व शांति, भाईचारे और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए प्रार्थना करें| हम सब के सामूहिक संकल्प और प्रार्थना का अति शक्तिशाली प्रभाव होगा|
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जब हम उपरोक्त विधि से प्रार्थना करते हैं तब हमारी अँगुलियों के अग्रभाग से एक अदृष्य प्रचंड घनीभूत ऊर्जा निकलती है जो चारों ओर फैलकर साकार रूप लेती है| सृष्टि में हो रहे समस्त घटनाक्रम हमारे सामूहिक विचारों के ही परिणाम है| जैसा हम सोचते हैं और संकल्प करते हैं वैसा ही चारों ओर घटित होता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१४ अक्तूबर २०१८

एक स्मृति इंदिरा पॉइंट की .....

एक स्मृति इंदिरा पॉइंट की .....
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भारत के सबसे दक्षिणी भाग का नाम "इंदिरा पॉइंट" है| यह नाम स्वयं इंदिरा गाँधी ने दिया था| इस से पूर्व इस स्थान का नाम पिग्मेलियन पॉइंट था| यह बहुत सुन्दर एक छोटा सा गाँव है| नौसेना, वायुसेना व कुछ अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारी भी यहाँ रहते हैं| यहाँ के प्रकाश-स्तम्भ पर चढ़ कर बहुत सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं| मैं सन २००१ में वहाँ गया था| बाद में २००४ में आई सुनामी में यह प्रकाश स्तम्भ थोड़ा सा हटकर पानी से घिर गया था| इस सुनामी में यहाँ के २० परिवार, चार वैज्ञानिक और बहुत सारे सरकारी कर्मचारी मारे गए थे| यहाँ जाने के लिए विशेष सरकारी अनुमति लेनी पड़ती है जो आसानी से मिल जाती है|
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यहाँ के जंगलों में मैनें एक विशेष अति सुन्दर चिड़िया की तरह के पक्षी देखे जो भारत में अन्यत्र कहीं भी दिखाई नहीं दिये| ऐसे ही एक विशेष शक्ल के बन्दर देखे जो अन्यत्र कहीं भी नहीं दिखाई दिए| एक समुद्र तट यहाँ है जिस की रेत में अंडे देने के लिए कछुए ऑस्ट्रेलिया तक से आते हैं| यह स्थान अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में ग्रेट निकोबार द्वीप पर निकोबार तहसील की लक्ष्मी नगर पंचायत में है|
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ग्रेट निकोबार द्वीप पर सबसे बड़ा स्थान "कैम्पवेल वे" है जो अच्छी बसावट वाला छोटा सा नगर है| सारी सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं| यहाँ तमिलनाडू से आकर बहुत लोग बसे हैं जो सब हिंदी बोलते हैं| यहाँ के समुद्र तट बहुत ही सुन्दर हैं जहाँ प्रातःकाल में घूमने का बड़ा ही आनंद आता है| दो-तीन हिन्दू मंदिर और एक चर्च भी यहाँ है| कैम्पवेल वे नगर में आने के लिए पोर्ट ब्लेयर से पवनहंस हेलिकोप्टर सेवा है| सप्ताह में एक दिन एक यात्री जलयान भी पोर्ट ब्लेयर से यहाँ आता है| यहाँ रुद्राक्ष के पेड़ बहुत हैं और रुद्राक्ष खूब मिलता है| अब तो व्यवसायिक रूप से यहाँ ताड़ के पेड़ और जायफल/जावित्री के पौधे भी खूब बड़े स्तर पर लगाए गए हैं| यहाँ के शास्त्री नगर से इंदिरा पॉइंट की दूरी २१ किलोमीटर है जो सड़क से जुड़ा हुआ है| मार्ग में गलाथिया नाम की एक नदी भी आती है जिस पर पुल बना हुआ है|
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यहाँ से सिर्फ १६३ किलोमीटर दक्षिण में इंडोनेशिया में सुमात्रा का सबांग जिला है जहाँ भारत के सहयोग से एक नौसैनिक अड्डा बनाए जाने की योजना है, जो लीज पर भारत के आधीन रहेगा| मैं अंडमान-निकोबार के कई द्वीपों में गया हूँ जिनमें से कुछ तो अविस्मरणीय हैं|
कृपा शंकर
१४ अक्टूबर २०१८

समत्व, अभ्यास, वैराग्य, प्रेम और अभीप्सा .....

समत्व, अभ्यास, वैराग्य, प्रेम और अभीप्सा .....
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"समत्व" की प्राप्ति योग की उच्चतम सिद्धि है, जिसके लिए अभ्यास और वैराग्य दोनों आवश्यक हैं| समत्व यानी समभाव को जिसने प्राप्त कर लिया, वह सिद्ध और ज्ञानी है| भगवान ने गीता में समझाया है कि किस प्रकार हमें कर्मफल की आकांक्षा न रखते हुए कर्म करने चाहियें| भगवान कहते हैं .....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||
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भगवान हमें यहाँ योग में यानि समत्व में स्थित होकर कर्म करने को कहते हैं| भगवान मुझ पर प्रसन्न हों, यह आशा रूपी आसक्ति भी हमें त्याग देनी चाहिए| फलतृष्णा रहित होकर कर्म करने से अंतःकरण की शुद्धि होती है, जिस से ज्ञान की प्राप्ति होती है|
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ज्ञान की प्राप्ति तो एक सिद्धि है, और ज्ञान की प्राप्ति का न होना असिद्धि है| ऐसी सिद्धि और असिद्धि में भी सम होकर कर्म करने का आदेश भगवान हमें देते हैं| यह सिद्धि और असिद्धि में समत्व ही योग है| आध्यात्मिक ज्ञान का एकमात्र मापदंड है "समभाव"| जो समत्व में स्थित है वह ही ज्ञानी है, और वह ही परमात्मा के सर्वाधिक निकट है.
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उपरोक्त स्थिति की प्राप्ति के लिए मन पर नियंत्रण आवश्यक है| मन पर नियंत्रण कैसे हो? इसके लिए भगवान कहते हैं .....

"असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं| अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते||६:३५||
मन चञ्चल और कठिनतासे वशमें होनेवाला है, इस में कोई संशय नहीं है| पर चितभूमि में एक समान वृत्ति की बारंबार आवृति यानि अभ्यास करने से चित्त की विक्षेपरूपी चंचलता को रोका जा सकता है| इस के लिए अभ्यास और वैराग्य दोनों ही परम आवश्यक हैं| वैराग्य का अर्थ है रागों से यानि मोह से विरक्ति| इसके लिए भी अभ्यास आवश्यक है|
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पर सब से अधिक तो आवश्यक है भगवान से प्रेम और उन्हें पाने की एक प्रचंड अभीप्सा| बिना भगवान से प्रेम किये तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अक्तूबर २०१८

माँ भगवती का स्थूल और सूक्ष्म रूप .....

माँ भगवती का स्थूल और सूक्ष्म रूप .....
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माँ भगवती के स्थूल और सूक्ष्म रूपों के बारे में बौद्धिक रूप से तो कुछ भी कह पाने में मैं असमर्थ हूँ, पर अपनी अनुभूतियों/ भावनाओं को तो व्यक्त कर ही सकता हूँ| वैसे तो सारी सृष्टि ही माँ भगवती का स्थूल रूप है, पर मेरी दृष्टी में हम जो साँस लेते और छोड़ते हैं, वह माँ भगवती का स्थूल रूप है| स्थूल रूप से श्वास-प्रश्वास के रूप में माँ अपनी उपस्थिति का आभास कराती हैं| श्वास-प्रश्वास के रूप में योग साधक "हं" और "सः" बीज मन्त्रों के साथ जो अजपा-जप करते हैं वह स्थूल रूप से माँ भगवती की ही साधना है|
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दीर्घ ध्यान साधना के पश्चात् हमें सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी में प्रचलित हो रहे प्राण तत्व की अनुभूति होती है| धीरे धीरे कूटस्थ में विस्तार रूप में महाप्राण की परम आनंददायक अनुभूति होने लगती है| वहाँ स्वतः ही नाद और ज्योति के रूप में कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का अनंत विस्तारमय ध्यान होने लगता है| वह विस्तार ही परमशिव हैं, जो हमारा वास्तविक सही रूप है| वह महाप्राण ही माँ भगवती का सूक्ष्म रूप है जिसमें समस्त सृष्टि समाहित है|
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मैंने आत्मप्रेरणावश जो कुछ भी लिखा है, वह मेरी अनुभूति है| किसी भी बौद्धिक प्रश्न का उत्तर मैं नहीं दे सकूंगा| सभी को मेरी शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ अक्टूबर २०१८

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पुनश्चः :-- 
पंचप्राणों के पाँच सौम्य और पाँच उग्र रूप ही दश महाविद्याएँ हैं| ये पंचप्राण ही गणेश जी के गण हैं जिनके वे ओंकार रूप में गणपति हैं| प्राणतत्व माँ भगवती का सूक्ष्म रूप है| विस्तृत महाप्राण के रूप में भगवान परमशिव व्यक्त हैं| प्राणतत्व की साधना से सारी साधनाएँ संपन्न हो जाती हैं| सारी सृष्टि ही प्राणमय है| ॐ ॐ ॐ !!
१३ अक्तूबर २०१८

विवाह का उद्देश्य क्या है ? .....

विवाह का उद्देश्य क्या है ? .....
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आजकल पारिवारिक संबंधों में बहुत अधिक बिखराव हो रहे हैं और विवाह की संस्था शनेः शनेः नष्ट हो रही है जिसे कोई नहीं बचा सकता| हिन्दुओं में विवाह का उद्देश्य काम-वासना की तृप्ति नहीं वरन् मनुष्य जीवन की अपूर्णता को दूर करके पूर्णता की और ले जाना था| आजकल इसका प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है| विवाह तो किया जाता है पर इसका उद्देश्य क्या है यह नहीं सिखाया जाता अतः विवाह असफल होंगे ही|
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विवाह कोई संविदा नहीं अपितु एक पवित्र बंधन है जिसका प्रमुख उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ती है| यह एक पवित्र यज्ञ है जिसमें सहयोग करने वाली ही पत्नी है| जो इस यज्ञ के लिए है वह पत्नी है और जिसके मात्र भरण-पोषण का दायित्व है वह भार्या है| यह पत्नी और भार्या के बीच का अंतर है|
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हिन्दू धर्म के अनुसार .....
बिना पत्नी के कोई व्यक्ति समाज में रहकर धर्माचरण नहीं कर सकता,
बिना विवाह के स्री- पुरुषों के उचित संबंध संभव नहीं हैं,
उचित व योग्य संतानोत्पत्ति द्वारा ही मनुष्य इस लोक और परलोक में सुख प्राप्त कर सकता है,
पत्नी ही धर्म अर्थ काम और मोक्ष का स्रोत है,
और विवाह करके ही मनुष्य देवताओं के लिए यज्ञ करने का अधिकारी है,
यही विवाह करने का उद्देश्य है| अन्य कोई उद्देश्य विवाह का नहीं है|
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जो विवाह चेहरे के कोण व त्वचा का रंग देखकर, और आर्थिक या अन्य किसी अपेक्षा और वासना पूर्ती के लिए ही किये जाते हैं, उनका असफल होना निश्चित है|
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यदि किसी पुरुष को महिला सेक्रेटरी चाहिए, या उसके परिवार वालों को कोई नौकरानी चाहिए तो वे किसी नौकरानी को रख लें पर इस के लिए विवाह करा के अपनी संतानों का या अपने से छोटे भाई बंधुओं का जीवन नष्ट न करें|
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ऐसे ही किसी महिला को यदि कोई गुलाम चाहिए जो उसे खूब घुमाए फिराए, खूब धन दे और उसकी वासनाओं की पूर्ती करता रहे, तो वह ऐसे ही किसी मनोनुकूल आदमी को ढूँढ ले, विवाह कर के किसी भले आदमी का जीवन नष्ट न करे|
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सिर्फ वासनाओं की ही पूर्ती करनी है तो आजकल live in relationship चल पड़ा है, उसी में रहकर वासनाओं की पूर्ती कर लें, विवाह की आवश्यकता नहीं है|
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बाकी सब तो संस्कारों का खेल है, जो प्रारब्ध में लिखा होगा वही होगा|
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पर सफल विवाह वही होता है, और अच्छी आत्माएँ भी उसी परिवार में जन्म लेती हैं जहाँ ....
नाम रूप में आसक्ति न हो,
वैवाहिक संबंधों में शारीरिक सुख की अनुभूति से ऊपर उठना हो,
एक-दुसरे के प्रति समर्पण हो
और परमात्मा से प्रेम हो|
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वेदान्त के दृष्टिकोण से ........
पत्नी को पत्नी के रूप में त्याग दीजिये, पति को पति के रूप में त्याग दीजिये, आत्मजों को आत्मजों के रूप में त्याग दीजिये, और मित्रों को मित्र के रूप में देखना त्याग दीजिये| उनमें आप परमात्मा का साक्षात्कार कीजिये| स्वार्थमय और व्यक्तिगत संबंधों को त्याग दीजिये और सभी में ईश्वर को देखिये| आप की साधना उनकी भी साधना है| आप का ध्यान उन का भी ध्यान है| आप उन्हें ईश्वर के रूप में स्वीकार कीजिये| पत्नी को अपने पति में परमात्मा के दर्शन करने चाहियें, और पति को अपनी पत्नी में अन्नपूर्णा जगन्माता के| उन्हें एक दुसरे को वैसा ही प्यार करना चाहिए जैसा वे परमात्मा को करते हैं| और एक दुसरे का प्यार भी परमात्मा के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए| वैसा ही अन्य आत्मजों व मित्रों के साथ होना चाहिए| अपने प्रेम को सर्वव्यापी बनाइए, उसे सीमित मत कीजिये| आप में उपरोक्त भाव होगा तो आप के यहाँ महापुरुषों का जन्म होगा|
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यही एकमात्र मार्ग है जिस से आप अपने बाल बच्चों, सगे सम्बन्धियों व मित्रों के साथ ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते है, अपने सहयोगी को भी उसी प्रकार लेकर चल सकते है जिस प्रकार पृथ्वी चन्द्रमा को लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है|
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सभी को शुभ मंगल कामनाएँ | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
झुंझुनू
१३ अक्टूबर २०१७

आध्यात्म क्या है ? .....

आध्यात्म क्या है ?
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आध्यात्म एक अनुभूति जन्य स्थिति है जिसे ईश्वर की कृपा से ही समझा जा सकता है| आत्‍म-तत्व की निरंतर अनुभूति यानि परमात्मा के साथ एक होने की सतत् अनुभूति, दृष्टा दृष्टि और दृश्‍य, ज्ञाता ज्ञान और ज्ञेय का एकाकार हो जाना, परम प्रेममय हो जाना, अकर्ता की स्थिति, साक्षी भाव का भी तिरोहित हो जाना, अनन्यता आदि ..... ये सब आध्यात्मिकता के लक्षण है| ईश्वर की कृपा से इस स्थिति को प्राप्त करना ही आध्यात्म है और जिस साधना से यह प्राप्त हो वह ही आध्यात्मिक साधना है|
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कोई मोक्ष प्राप्त करने के करने के लिए साधना करता है, वह किसी प्रयोजन के लिए, कुछ प्राप्त करने के लिए कर रहा है| यह आध्यात्म नहीं है| कोई स्त्री, पुत्र, धन-संपत्ति, मुकदमें में जीतने, सुख-शांति और व्यापार में सफलता के लिए साधना कर रहा है, वह किसी कामना पूर्ती के लिए कर रहा है| यह आध्यात्म नहीं है| जहाँ कोई माँग है वह आध्यात्म नहीं है|
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यह तो गूँगे का गुड़ है| मिश्री का स्वाद वही बता सकता है जिसने मिश्री खाई हो, शेष तो अनुमान ही लगा सकते हैं अथवा उसके गुणों को नकार सकते हैं| कोई बताये भी तो क्या ? .....नेति-नेति | आत्मन्येवात्मने तुष्टः अर्थात आत्मा द्धारा ही आत्मा को संतुष्टि मिलती है|
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परमात्मा की अभिव्यक्ति आप सब दिव्य आत्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१३ अक्तूबर २०१८