ध्यान साधना .....
.
निरंतर अपने शिव-स्वरुप का ध्यान करो| शिवमय होकर शिव का ध्यान करो| पवित्र देह और पवित्र मन के साथ, एक ऊनी कम्बल पर कमर सीधी रखते हुए पूर्व या उत्तर की ओर मुँह कर के बैठ जाओ| भ्रूमध्य में भगवान शिव का ध्यान करो|
.
वे पद्मासन में शाम्भवी मुद्रा में बैठे हुए हैं, उनके सिर से ज्ञान की गंगा प्रवाहित हो रही है, और दसों दिशाएँ उनके वस्त्र हैं| धीरे धीरे उनके रूप का विस्तार करो| आपकी देह, आपका कमरा, आपका घर, आपका नगर, आपका देश, यह पृथ्वी, यह सौर मंडल, यह आकाश गंगा, सारी आकाश गंगाएँ, और सारी सृष्टि व उससे परे भी जो कुछ है वह सब शिवमय है| उस शिव रूप का ध्यान करो|
.
वह शिव आप स्वयं हो| आप यह देह नहीं बल्कि साक्षात शिव हो| बीच में एक-दो बार आँख खोलकर अपनी देह को देख लो और बोध करो कि आप यह देह नहीं हो बल्कि शिव हो| उस शिव रूप में यथासंभव अधिकाधिक समय रहो|
.
सारे ब्रह्मांड में ओंकार की ध्वनी गूँज रही है, उस ओंकार की ध्वनी को निरंतर सुनो| हर आती-जाती साँस के साथ यह भाव रहे कि मैं "वह" हूँ .... "हँ सः" या "सोsहं" | यही अजपा-जप है, यही प्रत्याहार, धारणा और ध्यान है| यही है शिव बनकर शिव का ध्यान, यही है सर्वोच्च साधना|
.
यह साधना उन्हीं को सिद्ध होती है जो निर्मल, निष्कपट है, जिन में कोई कुटिलता नहीं है और जो सत्यनिष्ठ और परम प्रेममय हैं| उपरोक्त का अधिकतम स्वाध्याय करो| भगवान परमशिव की कृपा से आप सब समझ जायेंगे|
.
भगवान परमशिव सबका कल्याण करेंगे| अपने अहंकार का, अपने अस्तित्व का, अपनी पृथकता के बोध का उनमें समर्पण कर दो|
.
जिसे हम खोज रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं| शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि|
.
निरंतर अपने शिव-स्वरुप का ध्यान करो| शिवमय होकर शिव का ध्यान करो| पवित्र देह और पवित्र मन के साथ, एक ऊनी कम्बल पर कमर सीधी रखते हुए पूर्व या उत्तर की ओर मुँह कर के बैठ जाओ| भ्रूमध्य में भगवान शिव का ध्यान करो|
.
वे पद्मासन में शाम्भवी मुद्रा में बैठे हुए हैं, उनके सिर से ज्ञान की गंगा प्रवाहित हो रही है, और दसों दिशाएँ उनके वस्त्र हैं| धीरे धीरे उनके रूप का विस्तार करो| आपकी देह, आपका कमरा, आपका घर, आपका नगर, आपका देश, यह पृथ्वी, यह सौर मंडल, यह आकाश गंगा, सारी आकाश गंगाएँ, और सारी सृष्टि व उससे परे भी जो कुछ है वह सब शिवमय है| उस शिव रूप का ध्यान करो|
.
वह शिव आप स्वयं हो| आप यह देह नहीं बल्कि साक्षात शिव हो| बीच में एक-दो बार आँख खोलकर अपनी देह को देख लो और बोध करो कि आप यह देह नहीं हो बल्कि शिव हो| उस शिव रूप में यथासंभव अधिकाधिक समय रहो|
.
सारे ब्रह्मांड में ओंकार की ध्वनी गूँज रही है, उस ओंकार की ध्वनी को निरंतर सुनो| हर आती-जाती साँस के साथ यह भाव रहे कि मैं "वह" हूँ .... "हँ सः" या "सोsहं" | यही अजपा-जप है, यही प्रत्याहार, धारणा और ध्यान है| यही है शिव बनकर शिव का ध्यान, यही है सर्वोच्च साधना|
.
यह साधना उन्हीं को सिद्ध होती है जो निर्मल, निष्कपट है, जिन में कोई कुटिलता नहीं है और जो सत्यनिष्ठ और परम प्रेममय हैं| उपरोक्त का अधिकतम स्वाध्याय करो| भगवान परमशिव की कृपा से आप सब समझ जायेंगे|
.
भगवान परमशिव सबका कल्याण करेंगे| अपने अहंकार का, अपने अस्तित्व का, अपनी पृथकता के बोध का उनमें समर्पण कर दो|
.
जिसे हम खोज रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं| शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!