मेरी सदगति होगी या दुर्गति ?? मुक्ति किसे मिलती है ?? ---
मेरी जो भी गति होगी वह मेरे कर्मफलों से होगी, न कि किसी कर्मकांड से| श्राद्ध या पिंडदान आदि मुझे मोक्ष नहीं दिला सकते| अपने सारे कर्मफल और सर्वस्व, यहाँ तक कि स्वयं को भी मैंने परमात्मा को अर्पित कर दिया है, अतः परमात्मा की कृपा ही मेरे काम आयेगी, अन्य कुछ भी नहीं| किसी सदगति/दुर्गति या स्वर्ग/नर्क आदि से मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि ये मेरे किसी काम के नहीं हैं| मेरा एकमात्र संबंध केवल परमात्मा से है, वे ही मेरे माँ-बाप, भाई-बहिन, पुत्र-पुत्री, सगे-संबंधी, मित्र-शत्रु आदि सब रूपों में व्यक्त हुए हैं, अतः उन्हीं का साथ शाश्वत है, अन्य कुछ भी नहीं| इस जन्म से पूर्व भी वे मेरे साथ थे, और इस देह की मृत्यु के पश्चात भी वे ही मेरे साथ रहेंगे| उन्हीं का प्रेम सभी के माध्यम से व्यक्त हुआ है, अतः मेरा एकमात्र संबंध सिर्फ उन्हीं से है| बाकी सब उन्हीं की अभिव्यक्तियाँ हैं|
किसी का कोई ऋण मुझ पर नहीं है| मेरे सारे पितृगण अब तक मुक्त हो चुके हैं| मैं यह देह नहीं, परमशिव की अनंतता व पूर्णता हूँ| मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे याद करे| किसी को याद ही करना है तो परमात्मा को याद करें| किसी को कुछ अर्पण ही करना है तो स्वयं को ही परमात्मा को अर्पित कर दें|
मुक्ति किसे मिलती है?? ---
श्रुति भगवती का कथन है कि जब तक परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति नहीं होती, तब तक किसी को मुक्ति नहीं मिल सकती ---
"वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात् |
तमेव विदित्वातिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ||"
(श्वेताश्वतरोपनिषद्तृतीयोऽध्यायः मंत्र ८)
अन्वय :-- तमसः परस्तात् आदित्यवर्णम् एतत् महान्तं पुरुषम् अहं वेद | तमेव विदित्वा अतिमृत्युम् एति अयनाय अन्यः पन्थाः न विद्यते ||
भावार्थ :-- मैं उस परम पुरुष को जान गया हूँ जो सूर्य के समान देदीप्यमान है और समस्त अन्धकार से परे है| जो उसे अनुभूति द्वारा जान जाता है वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है| जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारे का कोई अन्य मार्ग नहीं है|
सार की बात :--- निज विवेक के प्रकाश में अपने पिण्ड अर्थात् इस शरीर व अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) को ईश्वरार्पण कर दें| पहले तो यह भाव रखें कि इस शरीर से मैं जो कुछ भी करूंगा, वह परमात्मा के लिए ही करूंगा| फिर यह भाव दृढ़ करें कि स्वयं परमात्मा ही इस देह को धारण किए हुए हैं| तभी कल्याण हो सकता है, अन्यथा नहीं|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ फरवरी २०२१