Tuesday 7 February 2017

"व्यभिचारिणी" भक्ति और "अव्यभिचारिणी" भक्ति ...........

"व्यभिचारिणी" भक्ति और "अव्यभिचारिणी" भक्ति ............
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उपासना में जहाँ परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण नहीं है, वह भक्ति "व्यभिचारिणी" है| भूख लगी तो भोजन प्रिय हो गया, प्यास लगी तो पानी प्रिय हो गया, जहाँ जिस चीज की आवश्यकता है वह प्रिय हो गयी, ध्यान करने बैठे तो परमात्मा प्रिय हो गया, यह भक्ति "व्यभिचारिणी" है| जब तक परमात्मा के अतिरिक्त अन्य विषयों में भी आकर्षण है, तब तक हुई भक्ति "व्यभिचारिणी" है| संसार में प्रायः जो भक्ति हम देखते हैं, वह "व्यभिचारिणी" ही है|
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जब सर्वत्र सर्वदा सब में परमात्मा के ही दर्शन हों वह भक्ति "अव्यभिचारिणी" है| भूख लगे तो अन्न में भी परमात्मा के दर्शन हों, प्यास लगे तो जल में भी परमात्मा के दर्शन हों, जब पूरी चेतना ही नाम-रूप से परे ब्रह्ममय हो जाए तब हुई भक्ति "अव्यभिचारिणी" है| वहाँ कोई राग-द्वेष औरअभिमान नहीं रहता है| वहाँ सिर्फ और सिर्फ भगवान ही होते हैं|
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जिनमें "अव्यभिचारिणी" भक्ति का प्राकट्य हो गया है वे इस पृथ्वी पर प्रत्यक्ष देवी/देवता हैं| यह पृथ्वी उनको पाकर सनाथ हो जाती है| जहाँ उनके पैर पड़ते हैं वह भूमि पवित्र हो जाती है| वह कुल और परिवार भी धन्य हो जाता है जहाँ उनका जन्म हुआ है|


ॐ तत्सत् ! नमस्ते ! ॐ ॐ ॐ !!

मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासाओं का समाधान मनुष्य के शांत मन व ह्रदय में ही है .....

मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासाओं का समाधान मनुष्य के शांत मन व ह्रदय में ही है|
ॐ ॐ ॐ ||
ब्रह्मांड अपना सौन्दर्य हमारी ही आँखों से देखता है|
ब्रह्मांड अनंत प्रेम की अनुभूति हमारे ह्रदय ही से करता है|
ब्रह्मांड सत्य का बोध हमारे ही स्पर्श से करता है|
ब्रह्मांड की मुस्कान हमारे ही आनंद से है|
ब्रह्मांड को अपनी महानता का ज्ञान हमारी ही आत्मा से होता है|
ब्रह्मांड अपनी जीवन्तता का उत्सव हमारे ही जीवन से मनाता है|
सब कुछ हमारे द्वारा ही|
पर यह तभी संभव है जब हमारा मन शांत हो व ह्रदय परम प्रेम से भरा हो|
नमस्ते !ॐ ॐ ॐ |
कृपा शंकर

मानवतावाद .....

मानवतावाद .....
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"मानवतावाद", "मनुष्यता" या "इंसानियत" ..... ये विजातीय, अस्पष्ट और भ्रमित करने वाले शब्द हैं| ये शब्द नास्तिक मार्क्सवादी महान रूसी साहित्यकार मेक्सिम गोर्की की देन हैं| उन्होंने ही सर्वप्रथम इन शब्दों का रूसी भाषा में प्रयोग किया था| उनका साहित्य विश्व की अनेक भाषाओँ में अनुवादित होकर अति लोकप्रिय हुआ और ये शब्द प्रयोग में आये| हिंदी में भी उनका साहित्य अनुवादित होकर छपा और बहुत लोकप्रिय हुआ था| हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद मेक्सिम गोर्की से बहुत अधिक प्रभावित थे| मेक्सिम गोर्की ने एक नारा दिया था कि हम मनुष्य हैं, इसका हमें अभिमान होना चाहिए| मार्क्सवादियों ने मानवतावाद को मानव मूल्यों और चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाला दर्शन बताया जो धार्मिकता को अस्वीकार कर नैतिकता और न्याय का पक्ष लेता है| यह नास्तिक रूसी साहित्य का ही प्रभाव था जिससे भारत के साहित्य पर मार्क्सवाद यानि प्रगतिवाद का इतना गहरा प्रभाव पड़ा|
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उपरोक्त मानवतावाद दर्शन वेदविरुद्ध है| समष्टिवाद वेदसम्मत है| भारतीय दर्शन समष्टि के कल्याण की बात करते हैं, न की सिर्फ मनुष्य जाति की|
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मानवतावाद की बातें करने वाले अपने स्वयं के देश में हुए नरसंहारों से कभी विचलित नहीं हुए| यह उनका पाखण्ड था| स्टालिन ने बाल्टिक सागर को श्वेत सागर से जोड़ने के लिए लेनिनग्राद से आर्केंगल्स्क तक एक नहर बनाने का आदेश दिया था, जिसमें लाखों राजनीतिक बंदियों को बलात् काम पर लगा दिया गया | दस लाख के लगभग राजनीतिक बंदी वहाँ ठण्ड और कुपोषण से मारे गए थे| जब वह नहर आधी-अधूरी बनी तब उसमें सर्वप्रथम यात्रा करने वालों में मेक्सिम गोर्की भी थे जिन्होनें मानवतावाद का सिद्धांत प्रचलित किया|
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मार्क्सवाद एक अंधे कुएँ का अन्धकार है जिसमें मैं भी कुछ समय के लिए डूब गया था पर हरिकृपा से शीघ्र ही उस अन्धकार से मुक्त हो गया| मार्क्सवाद की काट भारत का वेदांत दर्शन है जिसके आगे कोई भी नास्तिक सिद्धांत नहीं टिक सकता| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

"मैं कौन हूँ?" .....

"मैं कौन हूँ?" .....
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इस विषय पर बड़े बड़े दर्शन शास्त्र हैं, बड़े बड़े महान मनीषियों ने अपने महान विचार व्यक्त किये हैं| इस बारे में मेरे विचार बिलकुल स्पष्ट हैं, किसी भी तरह का कोई भ्रम या संदेह नहीं है| सोचने के दो स्तर हैं मेरे मेरे लिए ..... एक तो भौतिक है, और दूसरा आध्यात्मिक है|
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> चाहे मैं यह शरीर महाराज नही हूँ, पर मेरी हर अभिव्यक्ति इस शरीर महाराज के माध्यम से ही है| लोग मुझे इस शरीर महाराज के नाम कृपा शंकर के रूप में ही जानते हैं| यह सत्य मैं झुठला नहीं सकता| भौतिक स्तर पर मैं एक सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिक यानि Retired Senior Citizen हूँ और कुछ भी नहीं| मेरे जैसे लाखों करोड़ों लोग हैं, उनकी भीड़ में मैं भी एक अकिंचन और महत्वहीन हूँ| घर-परिवार वालों के लिए वास्तव में मैं एक रुपया-पैसा कमाने की मशीन ही था, जो उनका भावनात्मक व सामाजिक सहारा बना| इस जीवन में मैनें भगवान का भजन तो नहीं किया पर सांसारिक घर-परिवार के लिए रुपया-पैसा कमाने हेतु मशीन की तरह दिन-रात एक कर के दुनियाँ के हर कोने की धूल छानी है| फिर भी आत्म-संतुष्टि के सिवा अन्य कुछ भी नहीं मिला है, दूसरे शब्दों में .... 'न माया मिली न राम'|
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> आध्यात्मिक स्तर पर मैं परमात्मा के विराट अनंत महासागर की एक लहर के एक जल बिंदु का एक अकिंचन कण मात्र हूँ| महासागर में अनंत असंख्य लहरें उठती हैं और उसी में विलीन हो जाती हैं| एक लहर में भी असंख्य जल की बूँदें होती हैं| जल की एक एक बूँद के भी अनेक कण होते हैं| पर कभी कभी भूले से जल की बूँद का कोई कण स्वयं उस महासागर में विलीन होकर उसके साथ एक होने की चाह कर बैठता है ........ बस वो ही एक कण मात्र हूँ जिसके पीछे अनंत महासागर है| वह कण ही महासागर है| अन्य मैं कुछ भी नहीं हूँ|
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सांसारिक समाज के लिए मैं असंगत यानि Misfit हूँ .....
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समाज में जहाँ भी जाता हूँ लोग प्रायः इस चार विषयों पर ही बात करते हैं --- राजनीतिक आलोचना (परनिंदा), रुपया-पैसा, सेक्स और तथाकथित समाज सेवा| इसके अतिरिक्त अन्य कोई चर्चा न तो प्रायः वे पसंद करते हैं और न करते हैं| पर मैं ऐसा नहीं कर पाता अतः उनके लिए misfit हूँ|
समाज में अधिकाँश लोग अपने मनोरंजन के लिए या तो सिनेमा नाटक आदि देखते हैं, या शराब पीते हैं या गपशप करते हैं, ताश पत्ते आदि खेलते हैं या घूमने फिरने चले जाते हैं| पर मेरी इनमें से किसी में भी रूचि नहीं है| अतः मैं उन के समाज के लिए फिर misfit हूँ|
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भगवान का नाम लेने का एक लाभ .....
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भगवान का नाम लेने का एक बहुत बड़ा लाभ तो यह है कि कोई मेरा समय खराब नहीं करता और परेशान भी नहीं करता| कोई गपशप करने आता है तो मैं उससे हरिचर्चा छेड़ देता हूँ, फिर वह दुबारा लौटकर बापस नहीं आता| हर कोई मुझ से मिलना भी नहीं चाहता क्योंकि कोई बोर नहीं होना चाहता| मुझ से वे ही लोग मिलते हैं जिनको परमात्मा से प्रेम है| अन्य कोई मुझसे नहीं मिलता| वे ही लोग मुझे बुलाते हैं| अन्य कहीं मैं जाता भी नहीं हूँ| इस तरह के लोग ही मेरे मित्र हैं|
मेरा मनोरंजन .... परमात्मा का चिंतन और ध्यान है| बातें भी उसी की करता हूँ| लघु लेख भी मैं हिन्दू राष्ट्रवाद और प्रभु प्रेम पर ही लिखता हूँ| इससे मुझे बहुत लाभ हैं|
भगवान् ने सब कुछ दे रखा है, किसी के आगे आज तक न तो हाथ फैलाया है और न फैलाऊँगा| मेरे लिए किसी से कुछ माँगने से मरना भला है| मेरे अंतर में जो परमात्मा हैं, उन्हें मेरी हर आवश्यकता का पता है और वे ही मेरे योग-क्षेम का वहन करते हैं| मुझे परमात्मा में ही खूब आनंद आता है और मैं अपने जीवन में पूर्ण रूप से प्रसन्न और संतुष्ट हूँ|
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हे हरि, तुम कितने सुन्दर हो! पर्वतों में तुम कितने उन्नत हो, वनों में तुम हरे-भरे हो, मरुभूमि की शुष्कता हो, एकांत की नीरवता हो, नदियों की चंचलता हो, महासागर की गंभीरता हो, और मेरे अंतर का आनंद हो| तुम से अब पृथक हो ही नहीं सकता| मेरे ह्रदय का साम्राज्य अब तुम्हारा ही है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
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पुनश्चः .....
अयमात्मा ब्रह्म | आत्मा नित्य मुक्त है, सारे बंधन एक भ्रम मात्र हैं, उठो और अपने ब्रह्मत्व को व्यक्त करो| यह सारा जगत सृष्टिकर्ता के मन का एक संकल्प मात्र है, यहाँ कुछ भी अनुपयोगी नहीं है, पर सृष्टि के रहस्यों को समझना बड़ा कठिन है| कोई छोटा बड़ा नहीं है, सब परमात्मा की अभिव्यक्तियाँ हैं| "मैं" भी परमात्मा की ही अभिव्यक्ति हूँ| ॐ ॐ ॐ ||

इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है .....

इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है| जो भी सृष्ट हुआ है उसका कोई न कोई आकार अवश्य है चाहे वह किसी प्रतीक के रूप में हो, प्रकाश के रूप में हो या ध्वनि के रूप में| यह भी हो सकता है कि उसके आकार को समझना हमारी ज्ञानेन्द्रियों की क्षमता से परे हो| परमात्मा साकार भी है, निराकार भी है और इनसे परे भी है|
किसी भी तरह के विवाद में न पड़ते हुए अपनी गुरु परम्परा के अनुसार पूरी निष्ठा और समर्पण भाव से उपासना करो| कोई शंका संदेह हो तो उसका निवारण करने की अपने गुरु से प्रार्थना करो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

स्वयं परम प्रेममय हो जाना ही परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण है .....

स्वयं परम प्रेममय हो जाना ही परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण है .....
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पसंद और नापसंद का भाव ..... राग-द्वेष की ही एक अभिव्यक्ति है| हमें क्या पसंद है और क्या पसंद नहीं है, इसका कोई महत्व नहीं है| महत्व सिर्फ इसी बात का है कि हमारे परम प्रिय परमात्मा को क्या पसंद है| जो भगवान की पसंद है वही हमारी पसंद होनी चाहिए| हमारी निजी पसंद-नापसंद हमें परमात्मा से दूर करती है|
पूरी निष्ठा से पूछें तो इसका सही उत्तर हमारा ह्रदय दे देता है| जो भी विषय हमें परमात्मा से जोड़ता है वही परमात्मा को पसंद है, और जो हमें परमात्मा से पृथक करता है वह परमात्मा को नापसंद है| यही मेरा मापदंड है|
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जहां तक मेरा व्यक्तिगत मत है, मेरे लिए तो उनके प्रति अहैतुकी परम प्रेम ही उन्हें पसंद है| अतः उस परम प्रेम की अभिव्यक्ति ही मेरे जीवन का ध्येय यानि उद्देश्य है| उनके सिवा अन्य किसी का कोई अस्तित्व नहीं है| सम्पूर्ण समष्टि उन्हीं की अभिव्यक्ति है| स्वयं परम प्रेममय हो जाना ही परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण है|

ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

हमें साधना में सफलता क्यों नहीं मिलती ? .....

हमें साधना में सफलता क्यों नहीं मिलती ? .....
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किसी भी आध्यात्मिक साधना में सिद्धि उसी को मिलती है जिसका आचार विचार सही होता है| इसलिए ऋषि पातंजलि ने यम नियमों की आवश्यकता पर जोर दिया है| योग मार्ग में जो उच्चतर साधनाएँ हैं उन्हें गुरुमुखी यानि गुरुगम्य रखा गया है| वे प्रत्यक्ष गुरु द्वारा शिष्य की पात्रता देखकर ही दी जाती है| उनके बारे में सार्वजनिक चर्चा का निषेध है| सूक्ष्म प्राणायाम की क्रियाओं व ध्यान साधना के साधना काल में यदि साधक का आचरण सही नहीं होता तो उसे या तो मस्तिष्क की गंभीर विकृति हो जाती है या वह असुर बन जाता है| जिनके आचार विचार सही थे वे देवता बने, जिनके गलत थे वे असुर बने|
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"आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः" आचारहीन को वेद भी नहीं पवित्र कर सकते| श्रुति भगवती कहती है कि दुश्चरित्र कभी भी आत्मज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकता। सदाचार होने पर ही धर्म उत्पन्न होता है।
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हमें मंत्रसिद्धि असत्यवादन के कारण नहीं होती| असत्य बोलने के कारण हमारी वाणी दग्ध हो जाती है| जैसे जला हुआ पदार्थ यज्ञ के काम का नहीँ होता है, वैसे ही जिसकी वाणी झूठ बोलती है, उससे कोई जप तप नहीं हो सकता| वह चाहे जितने मन्त्रों का जाप करे, कितना भी ध्यान करे, उसे फल कभी नहीं मिलेगा|
दूसरों की निन्दा या चुगली करना भी वाणी का दोष है। जो व्यक्ति अपनी वाणी से किसी दूसरे की निन्दा या चुगली करता है वह कोई जप तप नहीं कर सकता| इसलिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की आवश्यकता है|
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शिष्यत्व की भी पात्रता होती है जिसके होने पर भगवन स्वयं गुरु रूप में साधक का मार्गदर्शन करते हैं|
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सभी को शुभ मंगल कामनाएँ| आप सब में हृदयस्थ भगवान नारायण को प्रणाम| परमशिव सब का कल्याण करें|

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ ॐ ॐ ||

आप सब परमात्मा की अभिव्यक्तियाँ हैं .......

प्रिय निजात्मगण, आप सब में मुझे परमात्मा के दर्शन होते हैं| मेरे प्रिय प्रभु, मेरे इष्ट देव ही आप सब में व्यक्त हो रहे हैं| आप सब के देवत्व को मेरा नमन!
आप सब के ह्रदय में उस परम तत्व की अनुभूति हो जिसे प्राप्त करने के पश्चात इस सृष्टि में प्राप्त करने योग्य अन्य कुछ भी नहीं है|
आप सब तरह के नाम रूप के भेदों से ऊपर उठें, और सदा कूटस्थ चैतन्य अर्थात ब्राह्मी स्थिति में रहें|
आप स्वयं परम प्रेम हैं, परमशिव हैं, नारायण हैं, जगन्माता हैं| पुनश्चः आप सब को मेरा नमन|
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हमारे राष्ट्र की आत्मा है -- सनातन धर्म| सनातन धर्म ही भारत की पहिचान है|
सनातन धर्म का आधार है --- परमात्मा के प्रति अहैतुकी परम प्रेम और समर्पण| इसी से अभ्युदय और नि:श्रेयस की सिद्धि होती है|
यह जीवन एक पाठशाला है जहाँ एक ही पाठ निरंतर सिखाया जा रहा है| वह पाठ सब को सीखना ही पड़ेगा चाहे बाद में सीखो या अब| यदि नहीं भी सीखोगे तो सीखने के लिए बाध्य कर दिए जाओगे|
आप सब परमात्मा की अभिव्यक्तियाँ हो| आप सब को मेरा नमन| उसका पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम भी आप सब को ही समर्पित है|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

स्वामी लोकनाथ ब्रह्मचारी और उन्हें नर्मदा तट पर माँ गंगा के दर्शन .....

नर्मदा जयंती पर सभी श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ.....
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स्वामी लोकनाथ ब्रह्मचारी और उन्हें नर्मदा तट पर माँ गंगा के दर्शन .....
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आज के युग में यह बात अविश्वसनीय सी लगती है पर यह पूर्ण सत्य है| भारत माँ ने हर युग में महान कालजयी संतों को जन्म दिया है| ऐसे ही एक महातपः सिद्ध ब्रह्मज्ञानी महात्मा थे बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी जिनका जन्म 31 अगस्त 1730 को कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बंगाल के चौबीस परगना जिले के कचुआ गाँव में श्री रामनारायण घोषाल और श्रीमती कमला देवी के घर हुआ| उनका नाम रखा गया लोकनाथ घोषाल| उनके पारिवारिक गुरु भगवान गांगुली उन्हें यज्ञोपवीत संस्कार के पश्चात तपस्या कराने के लिए हिमालय क्षेत्र में ले गए| तपस्या पूर्ण होने के पश्चात श्री लोकनाथ घोषाल बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी के नाम से प्रसिद्द हुए| बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी ने 160 वर्ष की आयु में हिमालय में समाधी अवस्था में अपनी शिवदेह का त्याग किया और ब्रह्मलीन हो गये|
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ऐसे जीवनमुक्त शिवदेह प्राप्त महापुरुष ने अपने शिष्यों को बताया था कि एक बार नर्मदा की परिक्रमा करते समय वे नर्मदा तट पर मुंडमहारण्य में निर्जन गंगावाह घाट पर बैठे हुए थे कि एक विचित्र दृश्य देखा| एक काली गाय जिसका शरीर एकदम काला था आई और नर्मदा नदी में स्नान करने उतर गयी| जब वह नहाकर बाहर निकली तो उसका रंग बिलकुल गोरा हो गया और वह गाय बहुत तेजी से उस महारण्य में लुप्त हो गयी|
इसका रहस्य जानने के लिए वे समाधिस्थ हुए और उन्हें बोध हुआ कि वह काली गाय और कोई नहीं साक्षात माँ गंगा थीं जो नर्मदा में स्नान करने आई थीं|
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इसके बारे में एक पौराणिक कथा है जिसमें मार्कन्डेय मुनि कहते हैं कि माँ गंगा ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की और भगवान से निवेदन किया कि हर प्रकार के पापी लोग मुझमें स्नान कर पापमुक्त होते हैं उनके पापविष की ज्वाला में मैं झुलसती रहती हूँ, अतः इस पाप की जलन से मुक्त होने का कोई उपाय मुझे बताइये| भगवान विष्णु ने प्रतिदिन गंगाजी को नर्मदाजल में स्नान कर पापमुक्त होने को कहा|
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नर्मदा रुद्रतेज से उत्पन्न हुई भगवान शिव की मानस कन्या है| भारत की पवित्र नदियों के दो रूप हैं| एक तो उनका भौतिक जलरूप है, दूसरा उनकी सूक्ष्म रूप में एक दैवीय सत्ता है जिसका दर्शन ध्यान में ही होता है|
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इस लेख का उद्देष्य भारत भूमि की महिमा का बर्णन करना था जहाँ पवित्र मोक्षदा नदियाँ, अनेक तपोभूमियाँ, हिमालय और महान संतजन हैं| जय जननी, जय माँ ||
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ॐ नमः शिवाय | हर नर्मदे हर | ॐ ॐ ॐ ||