प्रिय निजात्मगण, आप सब में मुझे परमात्मा के दर्शन होते हैं| मेरे प्रिय
प्रभु, मेरे इष्ट देव ही आप सब में व्यक्त हो रहे हैं| आप सब के देवत्व को
मेरा नमन!
आप सब के ह्रदय में उस परम तत्व की अनुभूति हो जिसे प्राप्त करने के पश्चात इस सृष्टि में प्राप्त करने योग्य अन्य कुछ भी नहीं है|
आप सब तरह के नाम रूप के भेदों से ऊपर उठें, और सदा कूटस्थ चैतन्य अर्थात ब्राह्मी स्थिति में रहें|
आप स्वयं परम प्रेम हैं, परमशिव हैं, नारायण हैं, जगन्माता हैं| पुनश्चः आप सब को मेरा नमन|
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हमारे राष्ट्र की आत्मा है -- सनातन धर्म| सनातन धर्म ही भारत की पहिचान है|
सनातन धर्म का आधार है --- परमात्मा के प्रति अहैतुकी परम प्रेम और समर्पण| इसी से अभ्युदय और नि:श्रेयस की सिद्धि होती है|
यह जीवन एक पाठशाला है जहाँ एक ही पाठ निरंतर सिखाया जा रहा है| वह पाठ सब को सीखना ही पड़ेगा चाहे बाद में सीखो या अब| यदि नहीं भी सीखोगे तो सीखने के लिए बाध्य कर दिए जाओगे|
आप सब परमात्मा की अभिव्यक्तियाँ हो| आप सब को मेरा नमन| उसका पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम भी आप सब को ही समर्पित है|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
आप सब के ह्रदय में उस परम तत्व की अनुभूति हो जिसे प्राप्त करने के पश्चात इस सृष्टि में प्राप्त करने योग्य अन्य कुछ भी नहीं है|
आप सब तरह के नाम रूप के भेदों से ऊपर उठें, और सदा कूटस्थ चैतन्य अर्थात ब्राह्मी स्थिति में रहें|
आप स्वयं परम प्रेम हैं, परमशिव हैं, नारायण हैं, जगन्माता हैं| पुनश्चः आप सब को मेरा नमन|
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हमारे राष्ट्र की आत्मा है -- सनातन धर्म| सनातन धर्म ही भारत की पहिचान है|
सनातन धर्म का आधार है --- परमात्मा के प्रति अहैतुकी परम प्रेम और समर्पण| इसी से अभ्युदय और नि:श्रेयस की सिद्धि होती है|
यह जीवन एक पाठशाला है जहाँ एक ही पाठ निरंतर सिखाया जा रहा है| वह पाठ सब को सीखना ही पड़ेगा चाहे बाद में सीखो या अब| यदि नहीं भी सीखोगे तो सीखने के लिए बाध्य कर दिए जाओगे|
आप सब परमात्मा की अभिव्यक्तियाँ हो| आप सब को मेरा नमन| उसका पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम भी आप सब को ही समर्पित है|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
>>> इस जीवन में वो ही समय सार्थक है जो प्रभु के ध्यान में व्यतीत होता है, बाकी सब मरुभूमि में गिरी जल की कुछ बूंदों की तरह है| जीवन की सार्थकता प्रभु की शरणागति और समर्पण में है| प्रभु को अपने ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम दो| भगवान् से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मत माँगो|<<<
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